दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिक और उनके आविष्कार The World’s Leading Inventors And Their Invention

गैलीलियो गैलीली Galileo Galilei

(1564 – 1642) टेलीस्कोप के आविष्कारक – गैलीलियो एक प्रतिभाशाली और प्रयोगात्मक वैज्ञानिक थे। उन्होंने यह साबित कर दिया था कि, एक पेंडुलम के एक दोलन के लिए लिया गया समय केवल पेंडुलम की लंबाई पर निर्भर करता है। गैलीलियो यह समझ गए थे की किसी वस्तु को ऊंचाई से गिराने पर वः एक समान त्वरण के साथ गिरती है, और किसी बहुत चिकनी सतह पर कोई वस्तु देर तक अपनी गति बनायीं रखती है।

परन्तु गैलीलियो टेलिस्कोप (telescope) के अपने अविष्कार के कारण दुनिया में प्रसिद्द हुए। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने वृहस्पति (Jupiter) ग्रह के 4 चंद्रमाओं का पता लगाया। साथ ही सबसे पहले सूर्य के धब्बों और शुक्र ग्रह की कलाओं (Phases of Venus) को देखा। अपने परीक्षणों के दौराण उन्होंने यह निष्कर्ष निकला की सभी ग्रह, सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

गैलीलियो ने लगभग 200 टेलिस्कोप बनाये और उन्हें विभिन्न शिक्षण संस्थाओं को खगोलीय प्रेक्षणों (astronomical observations) के लिए  दान कर दिया। उन्होंने इटली की ही भाषा में अपनी किताब लिखी ताकि आम आदमी भी उसे पढ़ सके। गैलीलियो ने चर्च के विचारों का खंडन किया था, इसलिए उन्हें न्यायिक जाँच और कई अन्य यातनाओं का सामना करना पड़ा।

गैलीलियो वैज्ञानिक सोच के एक महान प्रतिपादक थे। सही मायनों में गैलीलियो को आधुनिक विज्ञानं का पिता कहा जा सकता है।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – फरवरी 1564, पिसा, इटली


मृत्यु – 8 जनवरी, 1642, इटली

1589 में इटली के पीसा विश्वविद्यालय में गणित में व्याख्याता बने।

1591 में, उन्हें विश्वविद्यालय से निकल दिया गया क्योंकि गुरुत्व पर अपने विचार से उन्होंने अरस्तू के सिद्धांतों पर सवाल उठायाथा।

1592 में, पडुआ विश्वविद्यालय में गणित के एक प्रोफेसर नियुक्त किये गए।

7 जनवरी, 1610 को अपने बनाये गए टेलिस्कोप के माध्यम से पहली बार बृहस्पति के चार उपग्रहों को देखा।

1637 में उनकी आँखों की रौशनी चली गयी।

उन्होंने ग्रहों की गति पर अपना सिद्धांत दिया, जो कि कोपर्निकस के सिद्धांत के आधार पर ही आधारित था। जड़त्व के सिद्धांतों (Principles of Inertia ) प्रस्तावित किया। उन्होंने अरस्तु के विचारों को चुनौती दी। मैकेनिक्स और गति से सम्बंधित अपनी प्रसिद्द पुस्तक Discourses & Mathematical Demonstrations Concerning two New Sciences लिखी।


एंटोन वान ल्युवेन्हॅाक Anton Van Leeuwenhoek

(1632 – 1723) माइक्रोस्कोप के आविष्कारक एवं, माइक्रोबायोलॉजी के पिता  ल्युवेन्हॅाक को अपने परिवार की कपडे की दुकान चलने से ज्यादा रूचि, कांच को पीसकर उनसे लेंस बनाने में थी। एक दिन उन्होंने ध्यान दिया कि, एक विशिष्ट दूरी पर दो लेंसों को रखने पर बेहद छोटी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से रखा जा सकता है। यहीं से माइक्रोस्कोप का जन्म हुआ था।

उन्होंने अपने बनाये गए माइक्रोस्कोप से धूल और पानी की बूंद को देखा और इनमे अनगिनत छोटे-छोटे जीवों को तेजी से चरों ओर घूमते हुए भी पाया।  इस डच अन्वेषक ने एक नयी दुनिया में जीवन की खोज कर ली थी। अब तक निर्जीव समझे जाने वाली चीजों में भी जीवों की बड़ी संख्या में घर की खोज हुई।

ल्युवेन्हॅाक ने इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी (Royal Society of England) को कई लम्बे शोध-पत्र लिखे, जिसमे उन्होंने इन सूक्ष्मजीवों के सभी विवरणों का वर्णन किया। ल्युवेन्हॅाक में तीव्र जिज्ञासा थी और अपने पत्रों में उन्होंने छोटे-छोटे विवरणों को भी लिखा है।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म- 24 अक्टूबर, 1632, डेल्फ्ट, हालैंड

मृत्यु- 26 अगस्त, डेल्फ्ट, हालैंड

1660 में वह शेरिफ बने, और 1680 में लंदन की रॉयल सोसाइटी के लिए चुने गए। उनके शोध-पत्र सोसायटी के जर्नल “Philosophical Transactions” में प्रकाशित हुए। ल्युवेन्हॅाक ने करीब 419 लेंस बनाये।

उन्होंने अपने द्वारा देखे गए सूक्षम जीवों को “Animalcules” कहा। उन्होंने लाल रक्त कणिकाओं (Red Blood Cells) का भी अध्ययन किया। उनके द्वारा बनाये गए लेंसों से सूक्ष्म चीजों को 50 से 400 तक बड़ा देख पाना संभव हुआ, जिससे रक्त केशिकाओं (blood capillaries), प्रोटोजोआ (protozoa) और बैक्टीरिया की खोज हुई।


सर विलियम हार्वे Sir William Harvey

(1578-1657) रक्त परिसंचरण की प्रक्रिया की खोज – विलियम हार्वे एक ब्रिटिश चिकित्सा विज्ञानी थे, जिन्हीने अपने विभिन्न प्रयोगों द्वारा रक्त के प्रवाह पर निष्कर्ष निकला, और उनका यह शोध 1628 में प्रकाशित हुआ। उन्होंने सिर्फ इस बात की ही खोज नहीं की थी की रक्त शरीर में वाहिकाओं के माध्यम से बहता है, बल्कि उन्होंने दो चरणों वाली रक्त परिसंचरण की पूरी प्रक्रिया की खोज की। उन्होंने इस बात का पता लगाया की रक्त ह्रदय से फेफड़ों में जाता है, जहाँ यह शुद्ध होकर वापस ह्रदय में आता है। यहाँ से रक्त धमनियों के एक संजाल के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों में जाता है।

हार्वे की इस खोज से कई प्रकार के रोगों और रक्त वाहिकाओं के ठीक प्रकार से काम न करने आदि के इलाज में मदद मिली।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार एक अरब डाक्टर इब्न-अल-नफीस (Ibne-Al-Naffis , 1205-1288) ने भी यही खोज पहले ही कर ली थी। परन्तु इसका श्रेय विलियम हार्वे को ही जाता है।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 1 अप्रैल 1578, फोकस्टोन, केंट, इंग्लैंड

मृत्यु – 3 जून 1657, केंट, इंग्लैंड

हार्वे को जानवरों पर प्रयोग करने में रूचि थी। उनका विवाह सुश्री ब्राउन के साथ हुआ था, जी कि 1604 में रानी एलिजाबेथ के चिकित्सक की पुत्री थी। हार्वे ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, से स्तानक की पढाई की, तथा पडुआ, इटली में मेडिकल स्कूल से मेडिकल की शिक्षा प्राप्त की। हार्वे 1628 में, राजा जेम्स प्रथम और उनके उत्तराधिकारी राजा चार्ल्स प्रथम के चिकित्सक नियुक्त हुए। हार्वे को गुस्सा बहुत जल्दी आता था और वह हमेशा एक खंजर रखते थे। 1628 में उन्हें नाइट की उपाधि मिली।

उनके शोध-पात्र लैटिन में प्रकाशित हुए, जिनका बाद में “On Motion of Heart and Blood in Animals” नाम से अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। उन्होंने रक्त के परिसंचरण और ह्रदय की चिकित्सा की कुछ विधियों की भी खोज की। उन्होंने इस बात का भी पता लगाया की शिरायें (veins) और धमनियां (arteries) छोटे और लगभग अदृश्य किसी माध्यम से जुडी रहती हैं।


ग्रेगर जोहान मेंडेल Gregor Johann Mendel

(1822 – 1884) आधुनिक आनुवंशिकी के पिता – ग्रेगर जोहान मेंडेल को उनके किसी शैक्षिक प्रतिभा के लिए नहीं जाना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में कई काम करने की कोशिश की, जब तक कि वह अंतिम रूप से ऑस्ट्रिया ने ब्रुन में नहीं बस गए। यहाँ के ग्रामीण परिवेश के उत्कृष्ट बागानों में उन्होंने बागवानी का काम किया। यहाँ मेंडेल 7 सालों तक मटर के पौधों के साथ खेलते रहे। उन्होंने लम्बे, बौने और अलग-अलग रंगों के पौधों के बीच संकरण (cross) कराया और लगभग 28 हजार पौधों का अध्ययन किया और अपने निष्कर्षों को दर्ज किया।

एक पीढ़ी की विशेषताएं अगली पीढ़ी तक कैसे जाती हैं? मेंडेल ने देखा कि प्रत्येक गुणवत्ता को नियंत्रित करने वाला एक विशिष्ट कारक है। मेंडेल ने यह पाया की इन कारकों को, जिसे अब हम जींस कहते हैं, आपस में मिलाया नहीं जा सकता। ये कारक अपनी स्वतंत्रता को बनाये रखते हैं, प्रमुख कारक (dormant) ही अपना प्रभाव दिखता है, जबकि निष्क्रिय कारक (recessive), प्रमुख कारक के साथ निष्क्रिय रूप से साथ ही रहता है। उनके ये निष्कर्ष आनुवंशिकी की शुरुआत थी।

ये सभी घटनाएँ 1866 के आस-पास की थी। मेंडेल के इन सभी अध्ययन और निष्कर्ष पर लगभग 34 वर्षों तक किसी का ध्यान नहीं गया। परन्तु बाद में यह पाया गया की मेंडेल के यह सिद्धांत डार्विन के विकास (evolution) के सिद्धांत को समर्थन देते हैं, जल्दी ही मेंडेल और आनुवंशिकी पर उसका अवलोकन सुर्खियों में आ गया और मेंडेल को आधुनिक आनुवंशिकी का पिता स्वीकार कर लिया गया।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 22 जुलाई 1822, मोराविया, चेक गणराज्य

मृत्यु – 1884, ब्रनो, चेक गणराज्य

वार्षिक पौधों में संकरण कराना मेंडेल का शौक बन गया था। मेंडेल 1842 में दर्शन शास्त्र से स्नातक हुए, 1843 में वह ब्रुन ऑस्ट्रिया, के एक इसाई मठ में पुजारी नियुक्त हुए, जो अब ब्रनो नाम से चेक गणराज्य में है। उन्होंने दो बार अध्यापक के लिए परीक्षा दी पर सफल नहीं हुए। पुजारी के रूप में उन्हें ग्रेगर (gregor) की उपाधि मिली थी। 1849 में उन्हें एक स्कूल में अस्थाई अध्यापक की नियुक्ति मिली। 1850 में वह विएना, ऑस्ट्रिया में उच्च शिक्षा के लिए गए, परन्तु वह अपनी शिक्षा पूरी किये बिना ही लौट आये और 1854 में उन्होंने पुनः अध्यापक की नौकरी कर ली। 1856 से 1864 तक इसाई मठ में रहन्र के दौरान ही उन्होंने मटर के पौधों पर अपने प्रयोग किये।

उनके शोध पत्र 1865 में ब्रुन नेशनल हिस्ट्री सोसाइटी के वार्षिक पत्र में प्रकाशित हुए। उन्होंने 21000 पौधों पर अपने प्रयोगों के आधार पर आनुवंशिकी के दो नियम दिए-

1. First Law : The Law of Segregation 

2. Second Law : The Law of Independent Assortment


सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग Sir Alexander Fleming

(1881 – 1955) पेनिसिलीन के उपचारात्मक औषध की खोज  लगभग 100 वर्ष पहले हमें यह तो पता था कि बैक्टीरिया द्वारा बहुत से रोग होते हैं, परन्तु यह कोई नहीं जनता था कि इन बैक्टीरिया को कैसे नष्ट करके इन रोगों को नियंत्रित किया जा सकता है। प्लेग और हैजा जैसी बीमारियाँ बहुत ही खतरनाक थी और इनको नियंत्रित करना एक चुनौती थी। इस समय एक ब्रिटिश वैज्ञानिक अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने इस चुनौती को स्वीकार किया।

फ्लेमिंग ने अपनी प्रयोगशाला में बैक्टीरिया पर प्रयोग करते समय यह पाया की कुछ फफूंद की वजह से बैक्टीरिया की वृद्धि रुक जाती है। इन फफूंद का नाम पेनिसिलिन (penicillin) था। ये एक रासायनिक तत्व का स्रावण करते थे, जिसकी वजह से बैक्टीरिया में विकास नहीं होता था। फ्लेमिंग ने इस रासायनिक तत्व को निकाल लिया और इसे पेनिसिलिन (penicillin) कहा।

परन्तु फ्लेमिंग द्वारा निकला गया पेनिसिलिन स्थाई (stable) नहीं था और इसे दवाओं के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता था। इस चुनौती को पूरा किया ऑस्ट्रेलिया के हावर्ड फ्लोरी (Howard Flory) और जर्मनी के अर्नस्ट चेन (Ernst Chain) ने, जिन्होंने पेनिसिलिन की स्थाई संरचना बनाने में सफलता प्राप्त की और इनके इस कम ने ही पेनिसिलिन के महत्त्व को पूरा किया।

इन तीनो को एक साथ विभिन्न संक्रामक रोगों में पेनिसिलिन की खोज और उसके उपचारात्मक प्रभाव के लिए 1945 में चिकित्सा का नोबल पुरस्कार मिला। पेनिसिलीन अब तक ज्ञात सबसे उपयोगी दवाओं में से एक है।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 6 अगस्त 1881, लॅाकफील्ड, आयरशायर, स्कॉटलैंड

मृत्यु – 11 मार्च 1955, लंदन

फ्लेमिंग ने शुरुआत में, लंदन में एक शिपिंग कंपनी में एक क्लर्क के रूप में काम किया। 20 वर्ष की आयु में उन्हें लन्दन के सेंट मैरी अस्पताल के मेडिकल स्कूल से छात्रवृत्ति मिली। 1915 में उन्होंने सराह मैक एलोरी से शादी की, परन्तु उनका 1949 में निधन हो गया। 1944 में उन्हें नाईट की उपाधि मिली। 1953 में उन्होंने एक जीवाणुविज्ञानी (bacteriologist) एमालिया कोटसूरिस से शादी कर ली।

1928 में उन्होंने लन्दन के सेंट मैरी अस्पताल के मेडिकल स्कूल में, एक फफूंद (fungus) पेनिसिलियम नोटेटम (Penicillium notatum) से एक जीवाणुनाशक दवा बनाई। उन्होंने आँसू और लार में में पाए जाने वाले एक जीवाणुरोधी तत्व (antibacterial agent) लाइसोजाइम (Lysozyme) की खोज की।


विलहम कॉनरैड रॉन्टजन Wilhelm Conrad Roentgen

 (1923 1845) – एक्स-रे के खोजकर्ता – एक्स-रे से प्राप्त चित्रों का प्रयोग हड्डियों के फ्रैक्चर, पथरी और शरीर के विभिन्न संक्रमण को देखने के लिए किया जाता है। इन शक्तिशाली एक्स किरणों की खोज जर्मनी के वैज्ञानिक विलहम कॉनरैड रॉन्टजन ने की थी। रॉन्टजन कैथोड रे ट्यूब में विद्युत् के प्रवाह का अध्ययन कर रहे थे, तब उन्होंने देखा कि इस ट्यूब के पास बेरियम प्लेटिनोसाईनाइड (barium platinocyanide) का एक टुकड़ा रख देने से वह चमकने लगता है। रॉटजन इस बात को समझ गए थे कि कैथोड रे ट्यूब, द्वारा उत्सर्जित कुछ अज्ञात विकिरण इस प्रतिदीप्ति का कारण है। रॉन्टजन ने पाया कि ये किरणें विद्युत चुंबकीय विकिरण हैं, जो कि कागज, लकड़ी और ऊतकों के माध्यम के पार जा सकती हैं। उनकी इस खोज के कुछ सप्ताह के भीतर ही जर्मनी में कई एक्स-रे मशीने हड्डी के फ्रैक्चर का पता लगाने के लिए लगा दी गयीं।

एक्स-किरणों का उपयोग चिकित्सा निदान के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी किया जाता है। उदाहरण के लिए  एक्स-रे का, क्रिस्टल की संरचना का अध्ययन और अणुओं की संरचना का अध्ययन करने के लिए भी उपयोग किया जाता है। रॉन्टजन की इस खोज के बाद भौतिकी की एक नई शाखा एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी (X-ray spectroscopy) का उदय हुआ, जिससे बड़े जैविक अणुओं के अध्ययन करने में भी मदद मिली।  रॉन्टजन को 1901 में नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 27 मार्च 1845, लेनेप, प्रशिया, जर्मनी

मृत्यु – 1923, जर्मनी

विलहम कॉनरैड रॉन्टजन के पिता एक किसान थे और इनकी मां एक डच स्त्री थीं। रॉन्टजन ज्यूरिख पॉलिटेक्निक में इंजीनियरिंग के छात्र थे। 1885 के बाद से रॉन्टजन ने स्ट्रासबर्ग, गिएस्सेन, वुर्जबर्ग और म्यूनिख में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। अपने काम के लिए इन्हें रॉयल सोसाइटी के रमफोर्ड पदक (Rumford Medal) से सम्मानित किया गया।

इनके द्वारा खोजी एक्स किरणें विद्युत् और चुम्बकीय क्षेत्र से विचलित नहीं होती थी, ये मांस से गुजर सकती थी और इनसे फोटोग्राफिक प्लेट पर शरीर के अंगों के चित्र पाए जा सकते थे। इन्होने एक्स-रे ट्यूब को डिजाइन किया और कई अंगों की जाँच के लिए एक्स-रे बनाये।


इवान पेट्रोविच पावलोव Ivan Petrovich Pavlov

(1849 – 1936) प्रतिवर्ती क्रिया या अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत (Conditioned Reflex) के खोजकर्ता  भूख, मुंह में लार का स्राव और खान खाना हमारे जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसके बारे में हम शायद ही कभी सोचते हैं। रूस के वैज्ञानिक इवान पेट्रोविच पावलोव ने सबसे पहले हमें बाते कि इस सरल सी प्रक्रिया में मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित गतिविधियों की एक बड़ी संख्या होती है। पावलोव का प्रयोग बड़ा ही साधारण था, उन्होंने यह दिखाया कि, यदि एक कुत्ते को एक घंटी की आवाज पर ही खाना दिया जाय तो घंटी की आवाज सुनकर ही उसके मुंह में लार का स्रावण होने लगता है, चाहे वहां खाना हो ही ना। पावलोव के प्रयोग ने इस बात को सिद्ध कर दिया की भोजन का पाचन केवल जैव-रासायनिक (bio-chemical) गतिविधियों पर निर्भर नहीं करता है, बल्कि लार का स्राव आदि जैसी गतिविधियाँ हमारे मस्तिष्क पर भी निर्भर करती हैं। पावलोव ने इस प्रक्रिया को अनुकूलित प्रतिक्रिया (Conditioned Reflex) का नाम दिया और सीखने की इस क्रिया को अनुकूलन (conditiong) कहा। पावलोव ने यह भी दिखाया की कुत्ते में उस भोजन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है, जिसे उसने पहले नहीं देखा हो।

पावलोव ने यह सिद्ध कर दिया था की अनुकूलित प्रतिक्रिया (Conditioned Reflex) मष्तिष्क द्वारा नियंत्रित होती है, और इसलिए यह केवल विकसित मष्तिष्क वाले प्राणियों में ही पाई जाती है। पावलोव के सिद्धांत ने हमें तंत्रिका तंत्र के बारे में समझने में काफी मदद की।  उनके इन सिद्धांतो का शिक्षा और मनोविज्ञान में काफी उपयोग किया गया। इवान पेट्रोविच पावलोव को 1904 में नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 26 सितम्बर 1849, रियाज़ान, रूस

मृत्यु – 27 फ़रवरी 1936, मास्को, रूस

पावलोव के माता-पिता उन्हें पादरी बनाना चाहते थे और इसलिए उन्होंने, उन्हें थियोलॉजिकल सेमिनारी (theological seminary) भेजा। उन्होंने 1875 में सेंट पीटर्सबर्ग (अब लेनिनग्राद) में चिकित्सा में स्नातक किया और 1879 में फिजियोलॉजी (Physiology) में पीएच.डी. की। वह लेनिनग्राद में इंस्टिट्यूट ऑफ एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन के फिजियोलॉजी विभाग के 1891 to1936 तक निदेशक रहे। उन्होंने 1897-1914 तक सेंट पीटर्सबर्ग के सैन्य चिकित्सा अकादमी में एक प्रोफेसर के रूप में भी सेवा की थी। सोवियत साम्यवाद का आलोचक होने के कारन, 1922 में उन्होंने विदेश में स्थानांतरित होने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। 87 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक पावलोव अपनी प्रयोगशाला में सक्रिय रूप से कार्य करते रहे।

उन्होंने अनुकूलित प्रतिक्रिया की अपनी प्रसिद्द खोज के अलावा, पाचन और लार के स्राव से सम्बंधित कई अन्य खोजें कीं। उनके विचारों ने मनोविज्ञान की व्यवहारवादी सिद्धांत (behaviourist theory of Psychology) में एक बड़ी भूमिका निभाई।


जेराल्ड मौरिस एडेलमैन Gerald Maurice Edelman

(1929-2014) एंटीबॉडी की संरचना की खोज  प्रकृति ने हमें बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया आदि से बचाव के लिए हमें दो तरह के सुरक्षा तंत्र प्रदान किये हैं। पहली लिम्फ कोशिकाएं जो रक्त और शरीर की अन्य ग्रंथियों में पाई जाती हैं, दूसरी एंटीबाडी जिसे लिम्फ कोशिकाओं द्वारा पैदा किया जाता है। मोटे तौर पर हमने इस बात को जानते थे कि, एंटीबॉडी किसी तरह का प्रोटीन होते हैं, लेकिन उनकी सटीक संरचना की खोज अभी की जानी थी।

प्रोटीन एमिनो एसिड की श्रृंखलाएं (chain) होते हैं और इन सभी अमीनो एसिड के अनुक्रम का निर्धारण करने की जरुरत थी। ब्रिटिश वैज्ञानिक प्रो रॉडने आर पोर्टर (Prof. Rodney R. Porter) भी इस काम को करने के लिए अग्रणी वैज्ञानिकों में से एक थे। अमेरिकन वैज्ञानिक एडेलमैन ने अपने प्रयोगों से यह पता लगाया की एंटीबॉडी में, एमिनो एसिड की एक नहीं बल्कि दो श्रृंखलायें होती हैं। उनमें से एक, लंबी और भारी और दूसरी छोटी और हल्की होती है। उनकी इस खोज से बेहतर एंटीबायोटिक दवाओं के लिए नए रास्ते खुल गए। बाद में पोर्टर ने इस बात का पता लगाया की ये श्रृंखलायें किस तरह से आपस में उलझीं होती हैं।

उनके इस शोध ने एंटीबॉडी की संरचना पर काफी प्रकाश डाला और ये एंटीबाडी बैक्टीरिया से हमारी रक्षा कैसे करते हैं, इस बात को समझने में हमारी मदद की। उनकी इस खोज से हमें अंग प्रत्यारोपण (organ transplants) में भी मदद मिली। एडेलमैन और पोर्टर उनके श्रमसाध्य काम के लिए 1972 में संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार मिला।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 1 जुलाई 1929, न्यूयॉर्क सिटी, संयुक्त राज्य अमेरिका

मृत्यु – 17 मई 2014, ला जोला, सैन डिएगो, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका

एडेलमैन के पिता न्यूयॉर्क में एक चिकित्सक थे। न्यूयॉर्क पब्लिक स्कूल में अपनी शिक्षा के बाद उन्होंने उर्सिनस कालेज, पेंसिल्वेनिया से अपनी पढाई पूरी की। एडेलमैन एक वायलिन वादक बनना चाहते थे, लेकिन उन्होंने पेंसिल्वेनिया के मेडिकल स्कूल में प्रवेश लिया। उन्होंने चिकित्सक के रूप में अमेरिकी सेना के लिए पेरिस में काम किया। न्यूयार्क लौटकर वह रॉकफेलर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बन गए। वे नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज और कई अन्य अकादमियों के सदस्य रहे। उन्होंने 1950 में मैक्सिन एम मॉरिसन से शादी कर ली। 1954 में उन्हें पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के स्पेंसर मॉरिस पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ आरआर पोर्टर के साथ 1972 में चिकित्सा विज्ञानं के नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

उन्होंने इम्युनो-ग्लोब्युलिन (immuno-globulins) की संरचना पर काम किया और यह पटाया लगाया की ये दो तरह के प्रोटीन से बने होते है जो सल्फाहाईड्रल पुलों से जुड़े होते हैं। उन्होंने अणुओं और कोशिकाओं के विभाजन के नए तरीकों को भी खोजा। 1969 में मानव इम्युनोग्लोबुलिन के अमीनो एसिड अनुक्रम का भी पता लगाया। वर्तमान अनुसंधानों में उनकी रूचि प्रोटीन की संरचना, पौधों के उत्परिवर्तजन (plant mutagens) कोशिकाओं की सतह के अध्ययन में थी।


सर आइजैक न्यूटन Sir Isaac Newton

(1727 1642) गुरुत्वाकर्षण और गति के नियमों की खोज  न्यूटन के नाम का उल्लेख होते ही हमें सबसे पहले गुरुत्वाकर्षण का ध्यान आता है। हालांकि, इस महान ब्रिटिश वैज्ञानिक ने सैद्धांतिक और प्रायोगिक दोनों तरह की गणित और भौतिकी, की शाखाओं के लिए काफी योगदान दिया है। अपने गति के प्रसिद्द तिन नियमों के आलावा उन्होंने इस बात को भी सिद्ध किया की सूर्य के प्रकाश में 7 तरह के रंग होते हैं। वर्तमान में भौतिक विज्ञान और इंजीनियरिंग न्यूटन के सिद्धांतों पर टिके हुए हैं। न्यूटन ने यह भी बताया की दो वस्तुएं एक दुसरे को आकर्षित करती हैं। गुरुत्वाकर्षण और गति के उनके इन नियम्मों से हमें ग्रहों और उपग्रहों की गति को समझने में भी मदद मिली। न्यूटन ने अपने सभी नियमों के लिए सटीक गणितीय समीकरण भी दिए।

न्यूटन के समय में गणित ने बहुत उन्नति नहीं की थी। न्यूटन ने कैल्कुलस (calculus) और द्विपद प्रमेय (binomial theorem) की भी खोज की। न्यूटन की भौतकी की यह खोज, अपने आप में अद्वितीय थी। उनकी इन उपलब्धियों के बावजूद वह बहुत विनम्र थे।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 25 दिसंबर 1642, वूल्स्थोर्पे, इंग्लैंड

मृत्यु – 20 मार्च 1727, केंसिंग्टन (वेस्टमिंस्टर में 28 मार्च को दफनाया गया)

न्यूटन की माँ और उनके सौतेले पिता उन्हें किसान बनाना चाहते थे। 1969 में वह कैम्ब्रिज में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। 1696 में उन्हें एक टकसाल (mint) का वार्डन नियुक्त किया गया। 1699 में उन्होंने फिर से सिक्के बनाने की प्रक्रिया पूरी की, और उन्हें टकसाल का प्रमुख नियुक्त किया गया। 1703 में रॉयल सोसाइटी के अध्यक्ष चुने गए। 1705 में उन्हें नाइट की उपाधि मिली। कुछ दिनों तक संसद में भी उन्होंने सेवा की। 1727 में अविवाहित ही पित्त की पथरी के दर्द के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। उन्होंने परावर्तन दूरदर्शी (reflecting telescope) का भी अविष्कार किया। 1665 से 1668 के बीच उन्होंने कैलकुलस के सिद्धांतों की भी खीज की। उन्होंने प्रकाश के कण सिद्धांत (Corpuscular Theory of Light) को दिया। वे पहले वैज्ञानिक थे जिसने प्रकाश को उसके घटक रंगों में तोडा, और उसे फिर से जोड़ दिया। 1686 में गति और गुरुत्वाकर्षण के नियमों को दिया। उन्होंने प्रिन्सिपिया (फिलोसोफी नेचुरेलिस) और प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका (Principia (Philosophiae Naturalis) and Principia Mathematica) लिखी।


रॉबर्ट कॉख Robert Koch

(1843-1910) जीवाणु विज्ञान के जनक Father of Science of Bacteriology  हम सभी जानते हैं की बैक्टीरिया बहुत सारी महामारियों के लिए जिम्मेदार होते हैं, परन्तु कुछ सौ साल पहले बैक्टीरिया और ये किस प्रकार जानलेवा महामारियां फैलाते हैं इस बात हमें बहुत कम  की जानकारी थी। इस समय जर्मनी के जीवाणु विज्ञानी रॉबर्ट कॉख ने बहुत ही साधारण तकनीकों के द्वारा एंथ्रेक्स, हैजा और तपेदिक (anthrax, cholera and tuberculosis) फ़ैलाने वाले जीवाणुओं की खोज की। उन्होंने ही सबसे पहले टी.बी. के बैक्टीरिया की खोज की और औए अलग करने में सफलता प्राप्त की। रॉबर्ट कॉख ने मानव शरीर के बहार भी इन बैक्टीरिया की कालोनियों को विकसित किया और यह दिखाया की वे कैसे जानवरों में भी इस रोग को फैलाते हैं। टी.बी. को कॉख रोग (Koch’s disease) भी कहा जाता है।

साधारण तरीकों से अपनी असाधारण खोजों के लिए रॉबर्ट कॉख को उनकी उपलब्धियों के लिए 1905 में नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 11 दिसंबर 1843, क्लौस्थल, (हार्ज़ के पहाड़ों में एक शहर), जर्मनी

मृत्यु – 28 मई 1910, बाडेन बाडेन, जर्मनी

रॉबर्ट कॉख ने गौटिंगेन विश्वविद्यालय से 1862 में चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन किया। अपने अनुसंधानों के लिए उन्होंने हैम्बर्ग में एक अस्पताल में कम किया और एमी फ्राटी से शादी कर ली। 1879 में उन्होंने माइक्रोस्कोप ख़रीदा और एंथ्रेक्स का अध्ययन किया। उनके सभी कामों को पोलैंड के ब्रेसलु विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता मिली। कॉख को 1883 में मिस्र और भारत में हैजा का अध्ययन करने के लिए बने एक आयोग का प्रमुख बनाया गया। 1879-1882 तक उन्होंने बर्न में स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में काम किया। 1890 में पूर्व और पश्चिम एशिया में उष्णकटिबंधीय रोगों का अध्ययन किया।

रॉबर्ट कॉख ने सबसे पहले ट्युबर्कल बेसिलस (Tubercle bacillus) को अलग करने में सफलता प्राप्त की। 1883 में उन्होंने हैजा के जीवाणु की भी खोज कर ली थी। उन्होंने पशुओं में पाए जाने वाले एक संक्रामक एवं घातक रोग एंथ्रेक्स का भी अध्ययन किया। 1876 में उन्होंने यह बताया की एंथ्रेक्स के कारक जीवाणु, बीजाणुओं के माध्यम से ऑक्सीजन मुक्त वातावरण और कम तापमान में भी पनपते हैं। उन्होंने बैक्टीरिया को अलग करने की विधियों की भी खोज की और उनके कुछ सिद्धांतों को कॉख सिद्धांत (Koch’s Postulates) के नाम से भी जाना जाता है।


भिसे शंकर आबाजी Bhise Shankar Abaji

(1867-1935) भारतीय मुद्रण प्रौद्योगिकी के प्रमुख अनुसंधानकर्ता – 

मुद्रण प्रौद्योगिकी (printing technology) का सबसे पहले अविष्कार चीन में हुआ था। लगभग 150 वर्ष पहले छपाई का कम बहुत धीमा होता था, लगभग 150 अक्षर प्रति मिनट। तब एक प्रमुख ब्रिटिश छपाई कम्पनी ने दुनिया भर के इंजिनियरयों को इस चुनौती का सामना करने के लिए बुलाया।

भिसे ने इस चुनौती को स्वीकार किया और वह मुद्रण प्रौद्योगिकी में छपाई की गति को 1200 अक्षर प्रति मिनट तक पहुँचाने में सफल रहे। भिसे ने बाद में इस गति को 3000 अक्षर प्रति मिनट तक पहुंचा दिया। तब उस समय की प्रतिष्ठित अमेरिकन जर्नल ‘साइंटिफिक अमेरिकन’ ने भिसे की उप्लाब्ध्लियों के बारे में एक लेख छापा। भिसे ने स्वचालित माडल का भी अविष्कार किया। भिसे ने मुद्रण प्रौद्योगिकी में 40 से ज्यादा पेटेंट हासिल किये। उन्होंने अमेरिका में मुद्रण मशीने बनाने की फैक्ट्री भी लगायी, और उन्हें दुनिया भर में बेचा।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 1867, भारत

मृत्यु – 1935 भारत

भिसे शंकर आबाजी बचपन से ही अभिनव और मेहनती थे। उनकी शिक्षा बहुत अच्छी नहीं थी। मुद्रण प्रौद्योगिकी में अपना सिक्का ज़माने के बाद उन्होंने दवाओं का भी निर्माण करने का काम किया। उनकी बनाई गई एक दवा प्रथम विश्व युद्ध में में अमेरिकी सेना द्वारा बहुत प्रयोग की गयी। अन्होने अन्य कई अविष्कार भी किये, इस कारन उन्हें भारत का एडिसन भी कहा जाता है।


एडवर्ड जेनर Edward Jenner

(1749-1823) चेचक (smallpox) के टीके के अविष्कारक  अठारहवीं सदी में चेचक के महामारी दुनिया भर में, विशेष रूप से यूरोप में फैली हुई थी। इस समय एक ब्रिटिश चिकित्सक एडवर्ड जेनर, ने इन रोगियों के इलाज के बारे में सोचा। उन्होंने ध्यान दिया की वे दूधवाले जिन्हें कभी गायों में पाया जाने वाला चेचक (cowpox) हुआ था, वे चेचक से बहुत कम प्रभावित होते थे।

उन्होंने गायों में पाए जाने वाले चेचक का अध्ययन किया। उन्होंने चेचक से पीड़ित गाय के थन के छालों में से एक तरल निकला, और उसे एक लड़के के शरीर में इंजेक्ट कर दिया। लड़का कुछ समय तक बुखार से पीड़ित रहा, परन्तु वह जल्दी ही ठीक हो गया।  जेनर ने तब एक और साहसिक प्रयोग करने का निश्चय किया, और उन्होंने चेचक से पीड़ित व्यक्ति के शरीर के छालों में से थोडा तरल लेकर उस लड़के के शरीर में इंजेक्ट कर दिया, अब यह लड़का चेचक से पीड़ित नहीं हुआ। तब जेनर ने इस प्रयोग को अपने रोगियों को चेचक से बचाने के लिए किया।

इसके बाद उनके इन तरीकों से ही टीकों को बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ, और मानव जाति को कई जानलेवा महामारियों से मुक्ति मिली। चेचक (smallpox) दुनिया भर में अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। इसका श्रेय एडवर्ड जेनर को ही जाता है।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 17 मई 1749, बर्कले, ग्लूस्टरशायर, इंग्लैंड

मृत्यु – 26 जनवरी 1823, इंग्लैंड

जेनर एक पैरिश पादरी के बेटे थे। 1762 में जेनर ने डॉ डैनियल लुडलो के साथ प्रशिक्षु के रूप में काम किया। 1770 में उन्होंने लन्दन के प्रसिद्ध सर्जन और शरीर-रचना विज्ञानी (anatomist), जॉन हंटर (John Hunter) के साथ काम किया। 1773 से बर्कले में उन्होंने स्वयं चिकित्सा सेवाएं देनी शुरू की।

अपनी चेचक के निदान की खोज के दौरान उन्होंने एक 8 वर्ष के लड़के जेम्स फिप्स (James Phipps) के ऊपर अपने प्रयोग किये, और यहीं से टीकाकरण का विचार उनके दिमाग में आया। उनके इस काम से चेचक को इंग्लैंड में 1872 तक नियंत्रित कर लिया गया। 1980 तक इसे पूरी तरह मिटा दिया गया। उनकी इस खोज से इस बात का भी पता चला की हमारा शरीर कैसे एंटीबाडी बनाकर विभिन्न रोगों से हमारी प्रतिरक्षा करता है।


लुई पाश्चर Louis Pasteur

(1822- 1895) पश्चुराइजेशन के जनक, जिसके कारण श्वेत क्रांति संभव हुई  जीवाणुओं की वजह से हमें कई संक्रामक रोग होते हैं यह तो हमें पता था, परन्तु  बैक्टीरिया हमारे जीवन में अन्य कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं भी निभाते हैं, इस बात का पता सबसे पहले फ्रांस के रसायन शास्त्री लुई पाश्चर ने लगाया। ये दूध और शराब को भी ख़राब कर देते थे। पाश्चर ने जीवाणुओं को नष्ट करने के तरीकों का आविष्कार किया, जिससे दूध, शराब और अन्य खाद्य सामग्रियों को लंबे समय के लिए संरक्षित किया जा सका।

सामान्य रूप से हम सभी को यह अनुभव था की दूध को उबालने से इसमें मौजूद बैक्टीरिया मर जाते हैं, और दूध देर तक ख़राब नहीं होता है। पाश्चर ने इस बात की खोज कि, यदि दूध को 72°C तक उबला जाय, और फिर कुछ ही सेकंड में इसे 10°C तक ठंडा किया जाय और यह प्रक्रिया कई बार दोहराया जाय, तो दूध के आवश्यक तत्वों को नष्ट किये बिना ही उसमे मौजूद बैक्टीरिया आदि को नष्ट किया जा सकता है, और दूध को काफी लम्बे समय तक संरक्षित किया जा सकता है। इया प्रक्रिया को पश्चुराइजेशन (Pasteurisation) कहा जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा ही विश्व के कई देशो में खाद्य सामग्रियों को लम्बे समय तक संरक्षित रखना संभव हुआ और भारत जैसे देशो में श्वेत क्रांति या ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) सफल हुआ। पाश्चर ने डिप्थीरिया, हैजा और एंथ्रेक्स के लिए जिम्मेदार जीवाणुओं के बारे में भी कई खोजे की। पाश्चर की, एक निपुण चित्रकार होने के अलावा, गणित में भी काफी दिलचस्पी थी।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 27 दिसंबर 1822, डोल, फ्रांस

मृत्यु – 28 सितम्बर 1895, सेंट क्लाउड, फ्रांस

उनकी स्कूली शिक्षा अरोबिस में हुई। स्नातक की डिग्री के बाद वह युवा छात्रों को ट्यूशन दिया करते थे। अपनी स्कूल की शिक्षा के दौरान ही उन्होंने दो सामान से दिखने वाले टार्टरिक एसिड (Tartaric Acid) और रैसीमिक एसिड (Racemic Acid) के बीच अंतर की भी खोज की, जो अलग-अलग तरह से अपने क्रिस्टल बनाते थे। 1847 में उन्होंने पीएच.डी. की। बाद में वह स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर बने। एक देशभक्त होने के नाते उन्होंने अपने अविष्कारों से कभी भी कोई लाभ नहीं लिया। 1849 में पाश्चर ने मारी लॉरेंट से शादी की। 1867 में उन्हें पक्षाघात (paralysis) हो गया, लेकिन उन्होंने अपने शोधों को जारी रखा।

लोगो के सहयोग के पाश्चर इंस्टीट्यूट (Pasteur Institute) की स्थापना की, जो की आज विश्व प्रसिद्द है। लिली की स्थानीय डिस्टिलरी के अनुरोध पर उन्होंने इस बात की भी खोज की, की किण्वन (Fermentation) / अश्मन (Petrifaction) आदि प्रक्रियाओं में सूक्ष्मजीवों की  उपस्थिति आवश्यक है। दूध के आस्कंदन या अम्लीकरण (souring of milk) और लैक्टिक एसिड लैक्टिक एसिड के गठन पर, 1857 में अपना शोध पत्र दिया। उन्होंने रोगाणु सिद्धांत (Germ theory) भी दिया। 1865 में उन्होंने फ्रांस के सिल्क उद्योग को भी दो रोहों से बर्बाद होने से बचाया। एंथ्रेक्स (मवेशियों, भेड़ का रोग) और चिकन हैजा की रोकथाम के लिए सफलतापूर्वक टीकाकरण की तकनीक विकसित कर इसका इस्तेमाल किया। उन्होंने ही सबसे पहले संरोपण (inoculation) या टीकाकरण के लिए वैक्सीन शब्द का इस्तेमाल किया। लुई पाश्चर और एमिल रॉक्स (Louis Pasteur and Emile Roux) को रेबीज का टीका विकसित करने का भी श्रेय जाता है। इस टीके का सबसे पहले प्रयोग 6 जुलाई 1885, को जोसेफ मीस्टर नाम के बच्चे पर प्रयोग किया गया था। लुई पाश्चर की खोजें तत्काल व्यावहारिक अनुप्रयोग में आ गयीं थीं।


जोसेफ लिस्टर Joseph Lister

(1827-1912) शल्य क्रिया के बाद होने वाले संक्रमण से बचाने की महत्वपूर्ण खोज (Surgical Operations Aseptic and Safe) – एनेस्थीसिया (anaesthesia) का प्रयोग हम लगभग 150 वर्षों से कर रहे हैं, जिसके बाद से सर्जरी से गुजरने वाले रोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। लगभग 100 वर्ष पहले सर्जरी से गुजरने वाले 50 प्रतिशत रोगियों की मौत, सर्जरी के बाद होने वाले संक्रमण से हो जाती थी। सफल ऑपरेशनों के बाद भी घाव में सड़न (septic) और संक्रमण हो जाता था। एक ब्रिटिश सर्जन, जोसेफ लिस्टर, ने इस बाद को महसूस किया कि यह सब आपरेशन थिएटर में सफाई की कमी के कारण ही होता है।

जोसेफ लिस्टर ने एक अजीब चीज पर ध्यान दिया कि, स्वतंत्र रूप से खुले गटर की बदबू कम करने के लिए कार्बोलिक एसिड (Carbolic acid) का इस्तेमाल किया जाता था। उन्हें इस बात का विश्वास हो गया था कि, कार्बोलिक एसिड गंध पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मर डालता है, और उन्होंने आपरेशन थिएटर में इसका छिड़काव शुरू किया। इसी समय फ्रांस में पाश्चर की खोज की खबर – कि बैक्टीरिया संक्रामक रोगों का कारण बनता है, इंग्लैंड पहुंच गयी थी। इससे उनका विश्वास और दृढ हो गया, और उन्होंने अपने हाथ, शल्य चिकित्सा उपकरणों और यहां तक कि घावों को साफ करने के लिए कार्बोलिक एसिड का इस्तेमाल किया। लिस्टर ने अपने सहयोगियों से भी इस विधि को प्रयोग करने का अनुरोध किया, परन्तु उन्होंने इसका विरोध किया। परन्तु लिस्टर की इस विधि के प्रयोग के शल्य क्रिया के बाद जीवित बचने वाले रोगियों की संख्या 50 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत तक हो गयी। अपनी उपलब्धियों के कारण लिस्टर महारानी विक्टोरिया के सहकर्मी भी रहे।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 5 अप्रैल 1827 अपटन, एसेक्स, इंग्लैंड

मृत्यु – 10 फ़रवरी 1912, वाल्मर, केंट, इंग्लैंड

लिस्टर ने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन से चिकित्सा की स्नातक की डिग्री ली। वह 1861 में ग्लासगो रॉयल इनफर्मरी के सर्जन बने, जब सर्जरी के बाद मृत्यु दर 50% थी। 1869 में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में नैदानिक सर्जरी (clinical surgery) और 1877 में किंग्स कॉलेज, लंदन में नियुक्त हुए। हाउस ऑफ लॉर्ड्स में जाने वाले पहले चिकित्सक थे।

उनके कार्बोलिक एसिड के सुरक्षित इस्तेमाल के बाद सर्जरी के बाद होने वाली मौतें 50% से घटकर 15% तक रह गयीं। उन्होंने रोगाणुओं को घावों में कभी भी प्रवेश ना कर पाने का सिद्धांत भी दिया, जिसे बाद में लिस्टर के सिद्धांत (Lister’s Principle) के रूप में जाना गया।   


सर फ्रेडरिक ग्रांट बैंटिंग Sir Frederick Grant Banting

(1891-1941) एक हड्डी रोग विशेषज्ञ (Orthopaedic), जिन्होंने इंसुलिन की खोज की – हम सभी जानते हैं कि, इंसुलिन की कमी के कारण मधुमेह (diabetes) होता है। इंसुलिन आम तौर पर अग्न्याशय (pancreas) में बनता है और रक्त द्वारा इसका परिसंचरण होता है। यदि किसी कारन से इंसुलिन अग्न्याशय में पर्याप्त मात्र में तैयार नहीं होता है, तो रोगी मधुमेह से ग्रस्त हो जाता है। इंसुलिन की खोज से पहले डायबिटीज का कोई इलाज नहीं था, कुछ मामलो में चीनी आदि का सेवन कम करने के बाद भी, रोगी अक्सर कोमा में चले जाते थे, और अंततः उनकी मौत हो जाती थी। कनाडा के चिकित्सक बैंटिंग ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इंसुलिन की खोज की। उन्होंने एक कुत्ते की अग्नाशय की नलिकाओं को बांध दिया और देखा कि कुछ समय बाद अग्नाशय की लैंगरहैन्स की द्वीपकाओं (Islets of Langerhans), की कोशिकाओं में इंसुलिन बन गया था। बैंटिंग ने इंसुलिन को निकालने में भी सफलता प्राप्त की। इंसुलिन के साथ मधुमेह रोगियों के इलाज से, रोहियों ने काफी राहत महसूस की। उनके घाव भी आसानी से सामान्य व्यक्तियों की तरह भर गए।

बैंटिंग ने अपना सारा काम सिर्फ 8 महीने में एक साधारण सी प्रयोगशाला में किया। बैंटिंग एक महान चिकित्सक थे, उन्होंने अपनी खोज में मैकलिओड (Macleod) और बेस्ट (best) के योगदान को स्वीकार किया। इन तीनो वैज्ञानिकों को 1923 में सयुंक्त रुप से नोबेल पुरुस्कार मिला।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 14 नवंबर 1891, एलिसटन, ओंटारियो, कनाडा

मृत्यु – 21 फ़रवरी 1941, न्यूफ़ाउंडलैंड, कनाडा

1916 में उन्होंने टोरंटो विश्वविद्यालय से चिकित्सा में शिक्षा प्राप्त की, और एम. डी. की उपाधि ली। लंदन, ओंटारियो में एक सर्जन के रूप में अपना अभ्यास प्रारंभ किया। वेस्टर्न ओंटारियो विश्वविद्यालय में शरीर विज्ञान (physiology) की शिक्षा भी दी। 1923 में कनाडा के लिए संयुक्त रूप से प्रोफेसर जे. जे. आर. मेक्लेओड (Prof J.J.R. MacLeod) के साथ नोबेल पुरुस्कार जीतने वाले कनाडा के प्रथम व्यक्ति बने। अपनी पुरुस्कार राशि में से अधि उन्होंने श्री best को दे दी, जिन्होंने शुगर के अध्ययन में उनका साथ दिया था। 1934 में बैंटिंग को नाइट की उपाधि मिली। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वे सेना में शामिल हो गए। कनाडा में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। मधुमेह के उपचार के लिए द्वारा अग्न्याशय द्वारा स्रावित, इंसुलिन हार्मोन की खोज की खोज की और उसे शुद्ध रूप में निकला भी। साथ ही यह भी बताया की इंसुलिन का एक अणु 51 एमिनो एसिड से बना होता है, जो अलग-अलग स्तनपायी जानवरों में अलग- अलग होता है।


फ्रेड्रिक सैंगर Frederick Sanger

(1918 – 1982) इंसुलिन की संरचना निर्धारित की –  

हमारे यह जानने के बाद कि, इंसुलिन मधुमेह को नियंत्रित करता है, इसकी संरंचना हमारे लिए रहस्य बनी हुई थी, जब तक ब्रिटिश जैव रसायन शास्त्री ने इसकी खोज नहीं कर ली। सैंगर ने इस बात का पता लगाया कि, इंसुलिन एमिनो अम्लों की दो श्रृंखलाओं से से बना होता है, जो सल्फर अणुओं के द्वारा जुड़े होते हैं। उन्होंने इंसुलिन के सभी अमीनो एसिड की पहचान भी की, और उनके अनुक्रम को भी निर्धारित किया।

यह एक आसान खोज नहीं थी। उन्होंने एक नयी तकनीक विकसित की जिससे किसी श्रृंखला के अंत में एमिनो अम्ल का पता लगाया जा सकता था। इस प्रक्रिया ने प्रोटीन की संरचना का निर्धारण करने की भी नींव रखी।सेंगर इस खोज के लिए 1958 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने इस पद्धति में और सुधार करके इसे और भी शक्तिशाली बनाया, जिससे डीएनए अणु में अमीनो एसिड के अनुक्रम का निर्धारण करने में भी मदद मिली। उनकी इस खोज से वैज्ञानिक अब डीएनए अणुओं में एमिनो एसिड के अनुक्रम को निर्धारित कर सकते थे, या अपनी इच्छानुसार डीएनए अणुओं का निर्माण कर सकते थे। उनके इस काम के लिए सैंगर को 1980 में, गिल्बर्ट और बर्ग, के साथ संयुक्त रूप से दूसरी बार नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 13 अगस्त 1918, रेंडकोंब गांव, इंग्लैंड

मृत्यु – 19 नवंबर 2013, कैम्ब्रिज, यूनाइटेड किंगडम

सैंगर एक चिकित्सक के पुत्र थे, जिन्होंने 1932 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह एक औसत छात्र थे, परन्तु उनकी जीव विज्ञान में रुचि थी। 1940 में उन्होंने मार्गरेट जोआन होवे से विवाह किया। 1944 से 1951 तक उन्हें चिकित्सा अनुसन्धान के लिए बीट मेमोरियल फैलोशिप भी मिली। 1951-82 तक उन्होंने ब्रिटिश मेडिकल रिसर्च काउंसिल में भी काम किया। कैम्ब्रिज में आने के बाद उन्हें जैव विज्ञान में दिलचस्पी हो गयी थी। सैंगर ने जैव रसायन क्षेत्र में कई नाइ तकनीकों की भी खोज की। वे विश्व के उन चुनिन्दा वैज्ञानिकों में से हैं, जिन्हें दो बार नोबेल पुरस्कार मिला।


विललेम एंथोवेन Willem Einthoven

(I860 – 1927) इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ (ECG) मशीन विकसित की  तंत्रिका तंत्र से एक सन्देश मिलने के बाद ह्रदय, रक्त को बहार पम्प करता है। डच चिकित्सक विललेम एंथोवेन ने इन तंत्रिकीय आवेगों में परिवर्तनों को दर्ज करने के लिए एक मशीन बनाई, जिसकी मदद से बिना शल्य चिकित्सा के इस बात की जाँच की जा सकती थी, की ह्रदय ठीक से कम कर रहा है या नहीं।

यह एक साधारण स्ट्रिंग गैल्वेनोमीटर था, जो उन विद्युतीय आवेगों को नापने में सक्षम था जो ह्रदय के संकुचन और फैलने से उत्पन्न होते हैं। चूँकि ह्रदय में यह प्रक्रिया बार-बार होती रहती है, इसलिए इस आवेगों की लहर को दर्ज किया जा सकता है। आज की ECG (Electro Cardio Graph) मशीने आधुनिक हो गयीं हैं, परन्तु ये आज भी उसी सिद्धांत पर काम करती हैं। इसी सिद्धांत पर काम करने वाली EEG (Ecectro Encephalo Graph) मशीन को बाद में विकसित किया गया, जिससे मस्तिष्क के आवेगों को दर्ज किया जा सकता है। विललेम एंथोवेन को इस खोज के लिए 1924 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 21 मई 1860, सेमारेंग, जावा, (इंडोनेशिया)

मृत्यु – 29, 1927, लीडेन, नीदरलैंड

एंथोवेन एक डच चिकित्सक के पुत्र थे, जो डच ईस्ट इंडीज (इंडोनेशिया) में कार्यरत थे। जब वह 6 वर्ष के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई, और उनकी माँ हालैंड (नीदरलैंड) वापस लौट आयीं। स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने 1878 में उट्रेच विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ से उन्होंने औषधि विज्ञान का अध्ययन किया। 1886 में वह लीडेन विश्वविद्यालय में फिजियोलॉजी के प्रोफेसर नियुक्त हुए। एंथोवेन, शारीरिक शिक्षा में बहुत विश्वास करते थे, और स्वयं भी एक अच्छे खिलाडी थे। वह जिमनास्टिक्स और तलवारबाजी संघ के अध्यक्ष भी थे। 1886 में उन्होंने फ्रेडरिक जे. एल. डे. वोगेल से शादी की। उनके इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ (ElectroCardioGraph) के आविष्कार ने बहुत दिल की बीमारियों का पता लगाने के लिए मानव जाति की बहुत मदद की।


जॉन डाल्टन John Dalton

(1766-1844) द्रव्य के परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादित किया  सदियों से लोग इस बात से सहमत थे कि, कोई पदार्थ अणुओं से बना होता है, लेकिन किसी ने भी इसका कोई प्रयोगात्मक प्रमाण नहीं दिया था। इस कम के लिए सबसे पहले ब्रिटिश वैज्ञानिक जॉन डाल्टन ने सफलता हासिल की थी।

डाल्टन के समय में कई रासायनिक क्रियाओं का अध्ययन किया जा रहा था। इन अध्ययनों मे इस बात की जानकारी हो चुकी थी की किसी रासायनिक क्रिया में अभिकारकों (reactants) कुल वजन संरक्षित रहता है और रासायनिक पदार्थ सरल अनुपात में एक दूसरे से जुड़ते हैं। यह जानने के बाद डाल्टन ने बताया की किसी एक तत्व के सभी परमाणु बिलकुल एक जैसे ही होते हैं, लेकिन अन्य तत्वों के परमाणुओं से भिन्न होते है और किसी रासायनिक क्रिया में एक तत्व के परमाणु  दुसरे तत्व के परमाणु के साथ गठबंधन बनाते है।

डाल्टन के सिद्धांत के दूरगामी परिणाम हुए और हमें इस बात का पता चला की रासायनिक क्रियाएं परमाणुओं के स्तर पर होती हैं। इस बात का पता चलने के बाद की किसी तत्व में सभी परमाणु एक जैसे होते हैं, तत्वों के परमाणु भार का महत्त्व बढ़ गया। इस अवधारणा ने परमाणु भार के मापन में तेजी ला दी। बाद की आधुनिक खोजों के बाद हमें यह पता चला कि, किसी तत्व के समस्थानिकों (isotopes) के सभी परमाणु एक सामान नहीं होते हैं। परन्तु आज भी डाल्टन की खोज विज्ञान में मील का पत्थर है।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 6 सितंबर 1766, ईगल्स फ़ील्ड, कम्ब्रिया, यूनाइटेड किंगडम

मृत्यु – 27 जुलाई 1844, मैनचेस्टर, यूनाइटेड किंगडम

1793 से 1799 तक डाल्टन ने मैनचेस्टर के एक स्कूल टीचर के रूप में छात्रों को गणित और भौतिकी पढ़ाया। 1799 में वह प्राइवेट ट्यूटर बन गए। उनके छात्रों में से एक, जेम्स प्रेस्कॉट जूल (James Prescott Joule) ने ऊर्जा की इकाई की खोज की। 1781 से अपनी मृत्यु तक उन्होंने मौसम संबंधी रिकॉर्ड बनाए।

1801 में उन्होंने अपना आंशिक दबाव (Dalton’s Law of Partial Pressure) का सिद्धांत दिया। 1805 में उन्होंने अपना परमाणु सिद्धांत (Atomic theory) दिया। 1803 में डाल्टन ने परमाणु भार की पहली सारणी (chart) बनायीं।। परमाणु भार से सम्बंधित इनकी किताब A New System of Chemical Philosophy 1808 में प्रकाशित हुई। उन्होंने ग्रीक शब्द एटम (a – not, tomos – divisible), को भी प्रतिपादित किया, जिसका अर्थ होता है, ‘जिसका विभाजन न किया जा सके’। उनके परमाणु सिद्धांत के अनुसार, सभी तत्व छोटे कणों से मिलकर बने होते है, जिसे परमाणु कहते हैं, और परमाणुओं का विभाजन नहीं किया जा सकता है। परमाणुओं को न तो बनाया जा सकता है, न ही नष्ट किया जा सकता है। भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु अलग-अलग होते हैं। किसी एक तत्व के सभी परमाणु द्रव्यमान, आकार और रासायनिक गुणों में एक सामान होते हैं। परमाणुओं के जुड़ने से अणुओं का निर्माण होता है, जो किसी तत्व का निर्माण करते हैं। किसी तत्व के परमाणुओं की संख्या और प्रकार निश्चित होती है। रासायनिक क्रिया के दौरान ये परमाणु आपस में जुड़ कर, नए यौगिक का निर्माण करते हैं।


सर जोसेफ जॉन थॉमसन Sir Joseph John Thomson

(1856 – 1940) इलेक्ट्रॉन की खोज की – जे.जे. थॉमसन, एक ब्रिटिश वैज्ञानिक थे, जिन्होंने गैसों के माध्यम से बिजली के निर्वहन का अध्ययन किया था। अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया की एक ट्यूब के माध्यम से  विद्युत का प्रवाह करने पर ऋण आवेशित  इलेक्ट्रोड (कैथोड), एक विकिरण को उत्सर्जित कर्ता है, जो एक फोटोग्राफिक प्लेट को आकर्षित कर्ता है। ये कैथोड किरणें कोई विद्युत चुम्बकीय विकिरण नहीं बल्कि, कण (particles) थीं, क्योंकि उनमे द्रव्यमान था। एक चुम्बकीय क्षेत्र में वे ऋण आवेशित (negatively charged) व्यवहार का प्रदर्शन करती थीं। थॉमसन उन्हें कॉर्पुसल्स कहा (corpuscles) कहा, जिन्हें बाद में इलेक्ट्रॉनों के रूप में जाना गया।

थॉमसन ने कई तरह के विद्युत् और चुम्बकीय क्षेत्रों में इस बात का अध्ययन किया की ये किरणें किस प्रकार मुड़ती (bend) होती हैं। अपनी इन विधयों का प्रयोग करके उन्होंने द्रव्यमान और आवेश के अनुपात का निर्धारण किया और यह निष्कर्ष निकाला की, इलेक्ट्रॉन उप परमाणु (sub atomic) कण होते हैं। थॉमसन ने यह भी बताया की यदि इलेक्ट्रॉन ऋण आवेशित कण हैं, तो परमाणु के विद्युत् आवेश को शून्य करने के लिए, इस आवेश के बराबर एक धन आवेशित कण भी होना चाहिये।

थॉमसन ने बताया की एक परमाणु एक तरबूज की तरह होता है, जिसमे धन आवेश तरबूज के आयतन (volume) को भरता है, और ऋण आवेशित कण इलेक्ट्रॉन तरबूज के बीजों की तरह इसमें धंसे रहते हैं। आधुनिक खोजों के बाद बाद हम इस परमाणु संरचना की गलत अवधारणाओं के बारे में जानते हैं। परन्तु उनकी इस खोज ने परमाणु संरंचना को ऋण और धन आवेश के सन्दर्भ में आगे बढ़ाया। सर जोसेफ जॉन थॉमसन को उनकी खोज के लिए 1906 में नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 18 दिसंबर 1856, चीथम, मैनचेस्टर, इंग्लैंड

मृत्यु – 30 अगस्त 1940, कैम्ब्रिज, इंग्लैंड

थॉमसन 1882 में व्याख्याता नियुक्त हुए। उन्होंने रोज एलिजाबेथ पेजेट से 1890 में शादी की। इन दोनों के पुत्र सर जॉर्ज पेजेट थॉमसन (Sir George Paget Thomson) को 1937 में नोबेल पुरस्कार मिला।  जे.जे. थॉमसन ने, 1884 में प्रायोगिक भौतिकी में कैवेंडिश प्रोफेसरशिप जीती। उन्हें नाइट व अन्य कई विश्वविद्यालयों द्वारा विभिन्न उपाधियों से सम्मानित किया गया। 1915 से 1920 तक रॉयल सोसाइटी के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने विद्युत् प्रवाह, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन विज्ञान में इलेक्ट्रॉनों के महत्त्व की नींव रखी। 1883 में उनकी किताब Treatise On The Motion Of Vortex Rings  प्रकाशित हुई, जिसके लिए 1884 में उन्हें एडम पुरस्कार (adam’s prize) मिला। उन्होंने विद्युत् और चुम्बकत्व पर भी अपने लेख लिखे। उन्होंने नियॉन के आइसोटोप की भी खोज की।


बारूक एस ब्लमबर्ग Baruch S. Blumberg

(1925 – 2011) हेपेटाइटिस-बी की प्रतिरक्षा के लिए टीके की खोज की  पीलिया (jaundice), जिगर (liver) पर वायरस के संक्रमण के कारण होता है, और ब्लमबर्ग के समय में पीलिया का इलाज करना मुश्किल था, क्योंकि एंटीबायोटिक दवाये इस रोग में असर नहीं करती थीं। सामान्य तौर पर पीलिया दो प्रकार का होता है, एक जो दूषित भोजन से फैलता है और दूसरा संक्रमित रक्त से फैलता है। दूसरे प्रकार का पीलिया एक घातक वायरस से फैलता है, जिसे हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis-B) कहते हैं, और इससे लीवर का कैंसर भी हो जाता है। बारूक एस ब्लमबर्ग ने इस रोग से सम्बंधित तिन तरह की खोज की, पहली- उन्होंने उस वायरस के उन पदार्थो की पहचान की, जिनके कारण हमारा शरीर इस वायरस के खिलाफ एंटीबाडी बनाता है, और उन्होंने इस वायरस की पहचान भी की। दूसरा, उन्होंने इन विशिष्ट प्रकार की एंटीबाडीज की पहचान करके, हेपेटाइटिस-बी की पहचान करने की विधि भी विकसित की। तीसरा, उन्होंने हेपेटाइटिस-बी की प्रतिरक्षा के लिए वैक्सीन बनाने में भी सफलता प्राप्त की। उनकी इस उपलब्धि के लिए बारूक एस ब्लमबर्ग को 1976 में डैनियल कार्लटन गाजदुसेक (Daniel Carleton Gajdusek) के साथ संयुक्त रूप से चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार मिला।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 28 जुलाई 1925, फिलाडेल्फिया, पेनसिल्वेनिया, संयुक्त राज्य अमेरिका

मृत्यु – 5 अप्रैल 2011, माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका

ब्लमबर्ग ने अपनी प्राथमिक शिक्षा फ्लैटबुश येशिवा स्कूल से प्राप्त करने के बाद 1943 में अमेरिकी नौसेना में शामिल हो गए, और यहीं से अपनी कालेज की पढाई समाप्त की। ब्लमबर्ग को एक डेक अधिकारी के रूप में कमीशन मिला और उन्होंने लैंडिंग पोत पर सेवा की। न्यूयॉर्क में यूनियन कॉलेज से उन्होंने अंडर ग्रेजुएशन किया और कोलंबिया विश्वविद्यालय से 1946 में गणित में स्नातक किया। बाद में वह पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में चिकित्सा और मानव विज्ञान के प्रोफेसर बने। फिलाडेल्फिया में क्लीनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कैंसर रिसर्च के एसोसिएट निदेशक रहे। उनकी पत्नी जीन एक चित्रकार थी। 1957 – 1964 तक उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ में काम किया।

1964 में उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ़ कैंसर रिसर्च में शामिल हो गए और एक अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया। ब्लमबर्ग को एक समर्पित जीवाणु विज्ञानी और मानव विज्ञानी के रूप में जाना जाता है। बाद में वह पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में मेडिसिन के प्रोफेसर रहे।


मस्काटी जयकर Muscati Jayakar

(1844 – 1911) भारतीय वैज्ञानिक जिन्होंने मछलियों की 22 नई प्रजातियों की पहचान की  आत्माराम सदाशिव जयकर (Atmaram Sadashiv Jayakar)  भारत से एम.बी.बी.एस. करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड चले गए। बाद में वे भारतीय चिकित्सा सेवा में  कम करने लगे। औपनिवेशिक शासन के दौरान उन्हें मस्कट, ओमान भेज दिया गया।

जयकर को पशुओं के जवान के अध्ययन का बहुत शौक था। वे यहाँ बकरी की एक विशेष किस्म की पहचान करने में सफल रहे, जिसका नाम उनके नाम पर हेगीट्रेगस जयकरी (Hegitragus Jayakari) रखा गया। अपने ओमान के 30 वर्षों के अधिवास के दौरान जयकर ने विभिन्न प्रकार की दुर्लभ मछलियों का संग्रह किया, जिसे उन्होंने ब्रिटिश म्यूजियम ऑफ़ नैचुरल हिस्ट्री को दान कर दिया। उनके द्वारा पहचानी गयी मछलियों की 22 नयी प्रजातियों में से 7 का नाम उनके नाम पर रखा गया है। इसके आलावा साँपों और छिपकली की 2 नयी प्रजातियों का नाम भी इनके नाम पर रखा गया है।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 1844, भारत

मृत्यु- 1911, भारत

जयकर की खोजे सिर्फ जिव जंतुओं की प्रजातियों तक ही सीमित नहीं थीं। अपने ओमान प्रवास के दौरा ही उन्होंने मेडिकल टोपोग्राफी ऑफ़ ओमान (Medical Topography of Oman) के नाम से एक विशेष लेख भी लिखा। जयकर ने ओमान की भाषा के मुहावरों का शब्दकोश भी संकलित किया, जो इस विषय पर सम्बंधित सबसे अच्छा काम था। हम सभी भारतीयों को उनके काम पर गर्व है।


चैम वीज़मैन Chaim Weizmann

(1874 – 1952) किण्वन उद्योग (Fermentation Industry) की नींव रखी  एसीटोन (Acetone) विस्फोटकों में प्रयुक्त होने वाला एक प्रमुख कच्चा मॉल है, जिसकी प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान कमी हो गई। ब्रिटेन को इस बात की चिंता थी कि, लकड़ियों के आसवन से मिलने वाल एसीटोन पर्याप्त नहीं है। इया संसय का हल निकला, चैम वीज़मैन ने, जो एक युवा वैज्ञानिक थे और रूस से यहाँ आये थे। उन्होंने पाश्चर की खोज के बारे में सुना था, जिसमे बैक्टीरिया शुगर का किण्वन करके उसे अल्कोहल में बदल देते हैं। उन्होंने सोचा की क्या कुछ बैक्टीरिया लकड़ी की स्टार्च को एसीटोन में भी बदल सकते है। अपने कठिन परिश्रम के द्वारा उन्होंने इस बैक्टीरिया की खोज कर ली। अब एसीटोन का उत्पादन बड़े पैमाने पर हो सकता था। उनके लिए एक सुखद आश्चर्य की बात और थी कि, किण्वन के द्वारा ब्यूटाइल अल्कोहल (butyl alcohol) भी बनाया जा सकता है, जिसकी भी अच्छी मांग थी। इस बैक्टीरिया का नाम क्लोस्ट्रीडियम एसीटोब्यूटाइलिकम (Clostridium Acetobutylicum) था। वीज़मैन ने न सिर्फ इस समस्या को हल किया था, बल्कि उन्होंने किण्वन उद्योग को नींव भी डाल दी थी।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म- 27 नवम्बर, 1874, मोटाल, बेलारूस

मृत्यु – 9 नवम्बर, 1952, रेहोवोत, इसराइल

वीज़मैन ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान किए गए सभी प्रतिष्ठित सम्मान को बड़ी विनम्रता से लेने से इनकार कर दिया। इसके बजाय उन्होंने यहूदियों के लिए एक अलग राज्य बनाने का अनुरोध किया। इससे 917 की ऐतिहासिक बाल्फोर घोषणा (Balfour declaration) और तीस साल बाद इस्राएल के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। वीज़मैन इजरायल के पहले राष्ट्रपति बने। बाद में उन्होंने डैनियल सीएफ़ अनुसंधान संस्थान (Daniel Sieff Research Institute) में कम किया और इसके निदेशक बने। इस संसथान को अब वीज़मैन संसथान (Weizmann Institute) के नाम से जाना जाता है।

वीज़मैन एक यहूदी (Zeonist) नेता थे और वह कई बार विश्व यहूदी संगठन (World Zionist Organisation) के अध्यक्ष भी रहे। वीज़मैन 1892 में जर्मनी आ गए थे, जहाँ से रसायन शास्त्र की पढाई की थी। 1897 में वे स्विट्जरलैंड आ गए, जहाँ उन्होंने फ़्राइबर्ग विश्वविद्यालय (University of Fribourg) से रसायन शास्त्र से पी. एच. डी. की। उन्होंने 1948 में अपनी आत्मकथा ट्रायल एंड एरर (Trial and Error) लिखी। उन्होंने एसीटोन बनाने की कृत्रिम विधि खोज निकाली, जिससे ट्राई नाइट्रो टोल्यूइन (tri-nitro-toluene) बनाना संभव हुआ।


जोशुआ लेडरबर्ग Joshua Lederberg

(1925 – 2008) जेनेटिक इंजीनियरिंग की नींव रखी – एक कोशिकीय (single cell) जीवों में साधारण विभाजन (multiplication) द्वारा प्रजनन होता है, उनके DNA अणु दो भागों में विभाजित हो जाते हैं और दो एक सामान जीव बनते हैं। जबकि बहु कोशिकीय (multi cell) जीव लैंगिक प्रजनन करते हैं, जिनमें आधी आनुवांशिक सूचनाएं अपनी माँ से और आधी अपने पिता से प्राप्त होती हैं, जिससे यह बात सुनिश्चित होती है कि, जन्म लेना वाला नया जीव अपने पूर्व पीढ़ी की सटीक प्रतिकृति न हो। आनुवांशिकी विद मानते थे की एक कोशिकीय जीव अपनी पूर्व पीढ़ी के सामान ही होते हैं।

जोशुआ लेडरबर्ग ने अपनी खोजो से हमें यह बताया की एक कोशिकीय जीव भी प्रजनन के बाद अपनी पूर्व पीढ़ियों की तरह नहीं होते हैं। इनमें विभाजन से पूर्व दो भिन्न जीव आपस में मिलकर एक नए तरह के DNA बनाकर विभाजित होते हैं। उन्होंने इस बात का भी पता लगाया की कुछ वायरस, बैक्टीरिया के क्रोमोसोम को एक बैक्टीरिया से दुसरे बैक्टीरिया में स्थानांतरित करते हैं। इस प्रक्रिया को पारगमन (transduction) कहा जाता है। यह घटना लैंगिक प्रजनन (sexual reproduction) की शुरुआत थी।

लेडरबर्ग के काम ने हमें आनुवंशिकी के रहस्योंको जानने में सक्षम बनाया। इनके अध्ययनों की शुरुआत ने ही जेनेटिक इंजीनियरिंग की नींव रखी। लेडरबर्ग को उनके इस काम के लिए, टेटम और बीडल (Tatum and Beadle) के साथ संयुक्त रूप से आनुवंशिकी के विभिन्न पहलुओं पर काम करने के लिए 1958 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 23 मई 1925, मोंटक्लेयर, न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेंरिका

मृत्यु – 2 फ़रवरी 2008, न्यूयॉर्क प्रेस्बिटेरियन अस्पताल

लेडरबर्ग जीव विज्ञान से स्नातक करने के बाद 1944 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से मेंडिकल के छात्र रहै। 1954-1959 तक विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहै उसके बाद स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में जेनेटिक्स के प्रोफेसर के रूप में काम किया। 1978 में उन्हें रॉकफेलर विश्वविद्यालय का अध्यक्ष बनाया गया। मात्र 33 साल की उम्र में 1958 में बैक्टीरियल जेनेटिक्स में शोध के लिए नोबेल पुरस्कार जीता।

उन्होंने Approaches to life beyond the Earth नाम की किताब लिखी। उन्होंने आँतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया एस्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) पर काम किया और उसमें जीन की उपस्थिति का पता लगाया। उन्होंने एक बैक्टेरियोफ़ाज (bacteriophage), वह वायरस जो बैक्टीरिया पर आक्रमण करता है) का पता लगाया, और यह दिखाया की वह किस प्रकार अपने जीन बैक्टीरिया में प्रवेश कराता है।


वर्नर आर्बर Werner Arber

(1929- ) विषाणुओं को नष्ट करने वाले एंजाइम की खोज की – वायरस किसी अन्य जीव की कोशिकाओं पर परजीवियों की तरह रहते हैं। वे जब किसी कोशिका पर आक्रमण करते हैं, तो अपना DNA उस कोशिका के साथ मिलाकर प्रजनन करते हैं। अब उस जीव के पास कोई रास्ता नहीं बचता, की वह वायरस को प्रजनन ना करने दे। परन्तु कुछ जीव आश्चर्यजनक रूप से इन विषाणुओं के खिलाफ अपनी प्रतिरक्षा करते हैं। ये ऐसा किस प्रकार कर पाते हैं, स्विस सूक्ष्मजीव विज्ञानी (Microbiologist) वर्नर आर्बर ने इसी बात का पता लगाने की कोशिश की। वर्नर आर्बर ने अपने अनुसंधानों में यह पाया की जब कोई वायरस ऐसे किसी जीव पर हमला करता है तो ये एक प्रकार के एंजाइम का स्राव करते हैं, जो उस वायरस की डीएनए को छोटे टुकड़ों में काट देता है। उन्होंने यह भी पाया की ये जीव ऐसे एंजाइम का भी स्राव करते हैं जो उन्हें उनके डीएनए को विभाजित होने से भी बचाता है। यह एक बहुत महत्वपूर्ण खोज थी।

वर्नर आर्बर की इस खोज के दूरगामी परिणाम हुए, और अब ऐसे एंजाइम उपलब्ध हैं जिनसे कई संक्रामक वायरस के डीएनए को नष्ट किया जा सकता है। उनकी इस खोज से डीएनए में इच्छित परिवर्तन करना भी संभव हुआ। वास्तव में वर्नर आर्बर ने जैव प्रौद्योगिकी (biotechnology) की नींव डाली। उन्हें 1978 में अमेंरिका के नाथन और स्मिथ (Nathan and Smith) के साथ संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार मिला।

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान Major Events in Life & Major Scientific Contributions

जन्म – 3 जून 1929, ग्रनिचें, स्विट्जरलैंड

मृत्यु – जीवित, उम्र 85 वर्ष

केंटन ऑफ़ आरगाउ (Canton of Aargau) के एक पब्लिक स्कूल से उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। 1949 से 1953 तक उन्होंने ज्यूरिख के एक स्कूल से प्राकृतिक विज्ञान (Natural Sciences) में डिप्लोमा किया। 1953 में जिनेवा विश्वविद्यालय में बायोफिज़िक्स लेबोरेटरी में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी में सहयोगी के रूप में काम किया। जिनेवा विश्वविद्यालय से उन्होंने सूक्ष्म जीव विज्ञान (microbiology) का अध्ययन भी किया। 1958 में लॉस एंजिल्स विश्वविद्यालय, दक्षिण कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेंरिका से लैम्ब्डा-गल बैक्टेरियोफ़ाज (lambda-gal bacteriophage) पर पीएच.डी. की। 1966 में उन्होंने एंटोनिया के साथ शादी कर ली।

वर्नर आर्बर की खोजों से आनुवंशिक सुधारों और इंजीनियरिंग के नए क्षेत्र खुल गए, जिससे कई रोगों का समाधान खोजने में मदद मिली।


अंटोनी हैनरी बैकेरल Antoine Henri Becquerel

(1852 – 1908) रेडियोधर्मिता की खोज की – शताब्दियों तक वैज्ञानिक इस बात पर विश्वास करते रहै की परमाणुओं का विभाजन नहीं किया जा सकता। बड़ी संख्या में रासायनिक क्रियाओ के अध्ययन के बाद भी कोई इस विश्वास को हिला नहीं सका। परन्तु 1895 से 1905 तक विज्ञानं में बड़े बदलाव आये, जब थॅामसन (Thomson) ने इलेक्ट्रान की खोज और हैनरी बैकेरल ने रेडियोधर्मिता (radioactivity) की खोज की। अब यह स्पष्ट था की परमाणु विभाज्य (divisible) है ।

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