व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी Womesh Chunder Bonnerjee

(1844-1906), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध्यक्ष

कलकत्ता के बैरिस्टर व्योमेश चन्द्र बैनर्जी या उमेश चंद्र बनर्जी ने 28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम बैठक की अध्यक्षता की थी| क्रिसमस सप्ताह के दौरान, ब्रिटिश भारत के प्रमुख शहरों और दूर दराज के जिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले 73 प्रमुख लोग नए भारत के अभिजात वर्ग के लिए एक आत्म चयनित संसद के लिए मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज (Gokuldas Tejpal Sanskrit College) में एकत्र हुए|

व्योमेश चंद्र बनर्जी, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील गिरीश चंद्र बैनर्जी के दुसरे पुत्र थे, जिनका जन्म 29 दिसम्बर 1844 को बंगाल में सोनई में हुआ था| उन्होंने कलकत्ता में ओरिएंटल सेमिनरी और हिन्दू स्कूल से शिक्षा ग्रहण की| 1864 में मुंबई में आर॰जे॰ जीजीभाई (R. J. Jijibhai) से छात्रवृत्ति मिलने के बाद वह कानून की पढाई करने के लिए इंग्लैण्ड चले गए, जहाँ उन्हें बार ऑफ़ लंदन, मिडिल टेम्पल द्वारा बुलाया गया| 1865 में दादाभाई नौरोजी (Dadabhai Naoroji) ने लंदन भारतीय समाज (London Indian society) की स्थापना की और बैनर्जी को इसका महासचिव बनाया गया। दिसंबर 1866 में, नौरोजी लंदन भारतीय समाज को भंग कर दिया और पूर्व भारतीय संघ (East Indian Association) का गठन किया। जब बैनर्जी कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तो नैरोजी ने अर्डले नॉर्टन और विलियम डिग्बी (Eardley Norton and William Digby) के साथ मिलकर लंदन में कांग्रेस राजनीतिक एजेंसी (Congress Political Agency), के नाम से कांग्रेस की एक शाखा खोली|

1868 में वह कलकत्ता वापस आ गए और उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में बैरिस्टर-एट-लॉ की नौकरी कर ली| बैनर्जी, लंदन की संसद और न्यायालयों की अपनी यात्राओं से बहुत प्रभावित थे, जल्द ही वह भारत सरकार के युवा और सबसे सुवक्ता, वकीलों में से एक बन गए| बैनर्जी ने कांग्रेस के पहले सत्र की अध्यक्षता के दौरान कहा, “भारत की धरती पर इतना महत्वपूर्ण और व्यापक जमावड़ा कभी नहीं हुआ|” हालाँकि ये प्रतिनिधि जनता द्वारा निर्वाचित नहीं हुए थे, फिर भी वे भारत की मौन जनता की भावनाओं को साझा करने और उस पर बात करने एवं विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करने के लिए विशिष्ट रूप से योग्य थे| 1892 में व्योमेश चंद्र बनर्जी को फिर से इलाहाबाद में भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस के एक बड़े सातवें सत्र की  अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया गया। इस अधिवेशन में उन्होंने भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए उसकी योग्यता साबित करने की स्थिति की निंदा की। इसी वर्ष बनर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के सीनेट की तरफ से विधान परिषद में प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्वाचित किया गया| 1892 में बैनर्जी को लिबरल पार्टी ने बैरो इन फर्नेस (Barrow-in-Furness) सीट से हाउस आफ कॉमन्स के लिये अपना उम्मीदवार बनाया, परन्तु बैनर्जी अपने प्रतिद्वंदी चार्ल्स सेज़र (Charles Cayzer) से हार गए| इसी चुनाव में दादाभाई नैरोजी ने फिन्सबरी (Finsbury) सीट से अपने प्रतिद्वंदी को 5 वोटों से हरा दिया| इस प्रकार 1893 में नौरोजी ब्रिटिश संसद के पहले भारतीय सदस्य बने। दादाभाई नैरोजी, व्योमेश चंद्र बनर्जी बदरुद्दीन तैय्यबजी (Naoriji, Bonnerjee and Badrubdin Tyabji ) ने मिलकर इंग्लैण्ड में इंग्लैंड में भारतीय संसदीय समिति (Indian Parliamentary Committee) की स्थापना भी की|

1885 में व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने स्वयंसेवकों को एकजुट कर उनमें राष्ट्रभक्ति की भावना का संचार करने के लिए मोहल्लों में दुर्गा पूजा का शुभारम्भ कराया, जिसे उन्होंने ‘श्री श्री दुर्गा पूजा एवं शारदीय उत्सव’ नाम दिया। उस दौरान दिन में पूजा और शाम को शारदीय उत्सव के नाम पर देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाने लगे। धीरे-धीरे पूरे उत्तर भारत में दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया जाने लगा।

1901 में कलकत्ता बार से सेवानिवृत्त होने के बाद वह लंदन चले गए, यहाँ उन्होंने प्रिवी कौंसिल से अपनी वकालत जारी रखी, परन्तु 1904 में उनकी आँखों की रौशनी जाती रही| व्योमेश चन्द्र बैनर्जी की अपने प्रिय मित्र गोपाल कृष्ण गोखले, जिन्होंने बनारस कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थी, की मृत्यु के 6 महीने बाद, जुलाई 1906 में उनकी भी मृत्यु हो गयी। व्योमेश चंद्र बैनर्जी और महात्मा गाँधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले, जैसे राजनीतिक व्यक्तित्वों ने नए भारत के निर्माण की नींव डाल दी थी|


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