बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण Insurance Regulatory and Development Authority – IRDA

वर्ष 1999 में, बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण (इरडा) का बीमा उद्योग के विकास एवं विनियमन हेतु एक स्वायत्त निकाय के रूप में गठन किया गया। इरडा अधिनियम 1999 के तहत् अप्रैल, 2000 में इरडा को एक संविधिक निकाय के तौर पर शामिल किया गया। इरडा के मुख्य उद्देश्यों में प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना ताकि उपभोक्ता की पसंद में बढ़ोतरी और प्रीमियम में कमी द्वारा उपभोक्ता की संतुष्टि में वृद्धि की जा सके, जबकि बीमा बाजार की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

प्राधिकरण में दस सदस्यों का एक समूह होता है, इन सभी को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है, जिसमें-

  1. एक अध्यक्ष
  2. पांच पूर्णकालिक सदस्य
  3. चार अंशकालिक सदस्य होते हैं।

पॉलिसी धारकों के हितों की रक्षा करना प्राधिकरण का मिशन है। साथ ही बीमा क्षेत्र में तीव्र एवं संयमित वृद्धि लाना, आम आदमी के लाभ हित में बढ़ोतरी करना, और अर्थव्यवस्था की संवृद्धि में वृद्धि हेतु दीर्घावधिक वित्त मुहैया कराना; बीमा क्षेत्र को नियमित करने वाले नियामकों की समन्वय  की उच्च मानकों, वित्तीय सुघटता स्वच्छ व्यवहार एवं सक्षमता को प्रोत्साहित, निर्धारित, निगरानी एवं लागू करना; वास्तविक दावों के तीव्र निपटान को सुनिश्चित करना, बीमा घोटालों और अन्य कुप्रथाओं को रोकना और प्रभावी शिकायत निपटान तंत्र को सुपुर्द करना; वित्तीय बाजार में बीमा संव्यवहारों में ईमानदारी, पारदर्शिता एवं व्यवस्थित व्यवहार को बढ़ावा देना और बाज़ार निर्धारकों के बीच वित्तीय सुघटता के के उच्च मानदंड लागु करने के लिए एक विश्वसनीय प्रबंधन सुचना तंत्र निर्मित करना; जहां ऐसे मानक अपर्याप्त या अप्रभावी हैं, वहां उचित कार्रवाई करना।

इरडा के कृत्य एवं दायित्व

इरडा अधिनियम 1993, इरडा के कृत्यों, शक्तियों एवंदायित्वों का निर्धारण करता है। प्राधिकरण का दायित्व बीमा व्यवसाय एवं पुनर्बीमा व्यवसाय की सुव्यवस्थित वृद्धि की सुनिश्चितता, प्रोत्साहन एवं विनियमन करना है। प्राधिकरण के कृत्यों एवं दायित्वों में शामिल हैं-

  • आवेदक को पंजीकरण के पुनर्नवीकरण, संशोधन, हटाने, निलम्बित या रद्द करने का दस्तावेज जारी करना;
  • बीमा कंपनियों की लेखा परीक्षक रिपोर्ट और वित्तीय विवरण तैयार करना;
  • बीमा मध्यवर्तियों को विनियमित करना
  • पुनर्बीमा संबंधी दिशा-निर्देश जारी करना
  • पॉलिसी धारकों के हितों का संवर्द्धन करना
  • ऋणशोधन क्षमता की सीमा के प्रबंधन का विनियमन करना
  • बीमाकर्ता और मध्यवर्तियों या बीमा मध्यवर्तियों के बीच विवादों का अधिनिर्णयन करना
  • ग्रामीण या सामाजिक क्षेत्र में बीमाधारकों का संज्ञान लेकर जीवन बीमा व्यवसाय और सामान्य बीमा व्यवसाय के प्रतिशत को निर्धारित करना

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