हाइड्रोजन Hydrogen

हाइड्रोजन आवर्त सारणी का प्रथम तत्व है। यह अन्य सभी तत्वों से हल्का होता है। इसका संकेत (symbol) H तथा परमाणु संख्या 1 होता है। इसका परमाणु द्रव्यमान 1.008 होता है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s1 होता है। इसे आवर्त सारणी के वर्ग 1 में रखा गया है। यह s-ब्लॉक का सदस्य है। कुछ मामले में हाइड्रोजन की समानता हैलोजन के साथ होने के कारण इसे इन तत्वों के साथ वर्ग 17 में भी रख दिया गया है। प्रथम तत्व होने के कारण हाइड्रोजन का आवर्त सारणी में स्थान कुछ विचित्र-सा है। पृथ्वी पर पाये जाने वाले तत्वों में हाइड्रोजन का 9वाँ स्थान है। सूर्य और तारों का आधा भाग हाइड्रोजन का बना है। हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन कहा जाता है। इसके नाभिक में सिर्फ एक प्रोटॉन (Proton) होता है। यह आवर्त सारणी का एकमात्र ऐसा तत्व है, जिसके नाभिक में न्यूट्रॉन नहीं पाया जाता है। इसकी खोज 1766 ई० में हेनरी कैवेंडिस ने की।

हाइड्रोजन सभी अम्लों का अनिवार्य अंग है। (DAVY का कथन)

हाइड्रोजन निर्माण की विधि

(i) लाल तप्त लोहे पर भाप प्रवाहित करने पर हाइड्रोजन गैस प्राप्त होती है।

3Fe + 4H2O → Fe3O4 + 4H2

(ii) हाइड्रोलिथ की जल से प्रतिक्रिया करने पर हाइड्रोजन गैस प्राप्त होती है।

CaCH2 + 2H2O → Ca(OH)2 + H2


(iii) सोडियम की जल के साथ प्रतिक्रिया करने पर हाइड्रोजन गैस प्राप्त होती है।

2Na + 2H2O → 2NaOH + H2

हाइड्रोजन का अधिशोषण (Occulusion of Hydrogen): पैलेडियम जैसी कुछ धातुओं के महीन चूर्ण द्वारा हाइड्रोजन गैस शीघ्रता से अवशोषित कर ली जाती है। धातु को गर्म करने पर अधिशोषित गैस पुनः बाहर निकल जाती है। हाइड्रोजन के इस प्रकार अधिशोषित होने की क्रिया को हाइड्रोजन का अधिशोषण कहते हैं।

तेलों का हाइड्रोजनीकरण (Hydrogenation of Oils): उच्च दाब पर निकैल उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजन वनस्पति तेलों (vegetable oils) से संयोग करके उन्हें वनस्पति घी (vegetable Ghee) में परिणत कर देता है, इस प्रक्रिया को तेलों का हाइड्रोजनीकरण कहते हैं।

हाइड्रोजन के उपयोग: (i) प्राय: अन्य गैसों के साथ मिश्रित कर ईंधन के रूप में (ii) हैबर विधि से अमोनिया के उत्पादन में होता है। (iii) वनस्पति घी के निर्माण में (iv) गैसोलिन (Gasolene) के उत्पादन में (v) ऑक्सीजन-हाइड्रोजन लौ (ताप 2800°C) का उपयोग धातुओं को काटने तथा जोड़ने में होता है। (vi) हल्की गैस होने के कारण बैलून में भरने में होता है, किन्तु ज्वलनशील होने के कारण आजकल इसकी जगह हीलियम या हीलियम-हाइड्रोजन मिश्रण (He 85% + H2,15%) का व्यवहार होता है। (vii) द्रव हाइड्रोजन रॉकेट ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है।

हाइड्रोजन के रूप

  1. नवजात हाइड्रोजन (Nascent Hydrogen): रासायनिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप किसी यौगिक से तुरन्त निकली हुई हाइड्रोजन गैस नवजात हाइड्रोजन कहलाती है। यह आण्विक हाइड्रोजन से अधिक क्रियाशील होता है।
  2. परमाण्विक हाइड्रोजन (Atomic Hydrogen): हाइड्रोजन अणु के विघटन से प्राप्त होने वाले हाइड्रोजन को परमाण्विक हाइड्रोजन कहते हैं।
  3. आर्थो हाइड्रोजन (Ortho Hydrogen): हाइड्रोजन का वह रूप जिसमें हाइड्रोजन अणु के परमाणुओं के नाभिक एक ही दिशा में चक्रण करते हैं, ऑर्थो हाइड्रोजन कहलाता है।
  4. पारा हाइड्रोजन (Para Hydrogen): हाइड्रोजन का वह रूप जिसमें हाइड्रोजन अणु के दोनों परमाणुओं के नाभिक एक दूसरे के विपरीत दिशा में चक्रण करते हैं, पारा हाइड्रोजन कहलाता है।

हाइड्रोजन के समस्थानिक: हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक होते हैं, ये है-

(i) प्रोटियम (1H1) (ii) ड्यूटेरियम (1H2 या D) (iii) ट्राइटियम (1H3 या T)

प्रोटियम (Protium): प्रोटियम की परमाणु संख्या एक तथा द्रव्यमान संख्या भी एक होता है।

ड्यूटेरियम (Deuterium): ड्यूटेरियम को भारी हाइड्रोजन कहा जाता है। इसकी परमाणु संख्या 1 तथा द्रव्यमान संख्या 2 होती है। ड्यूटेरियम की खोज यूरे (Urey) ब्रिकवेड (Brickwedde) और मर्फी (Murphy) ने 1931 में की। ड्यूटेरियम का उपयोग कार्बनिक प्रतिक्रियाओं की क्रियाविधि (Mechanism) समझाने में तथा नाभिकीय प्रतिक्रियाओं (Nuclear Reactions) में बमबारी के लिए होता है।

ट्राइटियम (Tritium): यह हाइड्रोजन का एक दुर्लभ समस्थानिक है। यह एक बीटा उत्सर्जक (Beta Emitter) है। इसकी परमाणु संख्या 1 तथा द्रव्यमान संख्या 3 होती है। इसकी अर्द्ध आयु (Half Life) 12.4 वर्ष होती है।

भारी जल (Heavy water): ड्यूटेरियम के ऑक्साइड को भारी जल कहा जाता है, क्योंकि इसमें ड्यूटेरियम (D) होता है, जो हाइड्रोजन का एक भारी समस्थानिक है। इसकी खोज 1932 में यूरे तथा वाशबर्न ने की थी। इसका अणुभार 20 होता है। साधारण जल के 5000 भाग में 1 भाग भारी जल होता है। भारी जल को भारी कहा जाता है, क्योंकि इसका घनत्व साधारण जल से अधिक होता है। भारी जल का उपयोग ड्यूटेरियम के अनेक यौगिकों के निर्माण में तथा यूरेनियम के नाभिकीय विखण्डन में तीव्रगामी न्यूट्रॉनों को मंद करने के लिए न्यूट्रॉन मंदक (Neutron Moderator) क्र रूप में होता है।

हाइड्रोजन परऑक्साइड (Hydrogen Peroxide): हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की खोज सन् 1818 में थीनार्ड ने की थीनार्ड ने बेरियम पेरॉक्साइड पर तनु सल्फ्यूरिक अम्ल की प्रतिक्रिया द्वारा हाइड्रोजन पेरॉक्साइड प्राप्त किया और उसका नाम ऑक्सीजिनेटेड वाटर रखा तथा यह बताया कि इसका अणुसूत्र H2O2 होता है। यह फीका, नीला, गन्धहीन और गाढ़ा द्रव है। यह हाइड्रोजन बंध की उपस्थिति के कारण जल के सदृश एक संगुणित द्रव (Associated Liquid) है। हाइड्रोजन परऑक्साइड (H2O2) प्रकृति में अत्यंत अल्प मात्रा में वायुमंडल, वर्षा जल, बर्फ आदि में पाया जाता है। यह संभवतः जलवाष्प की उपस्थिति में ऑक्सीजन पर पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet Rays) के प्रभाव से बनता है। यह ऑक्सीकारक एवं अवकारक दोनों की तरह व्यवहार करता है। यह अपने ऑक्सीकारक गुणों के कारण विरंजक का कार्य करता है। यह रेशम, ऊन, बाल, तिनके, हाथी दांत आदि कोमल वस्तुओं का विरंजन करने में प्रयुक्त होता है। इसका उपयोग बालों के ब्लीचिंग (Bleeching) में होता है। इसका उपयोग पुराने तैल चित्रों (Oil Paintings) को चमकदार बनाने तथा उसके रंग को पुनः उभारने के लिए किया जाता है। यह जर्मनाशी और प्रतिरोधी के रूप में घाव धोने, गरारे करने, दांत और कान साफ करने के काम आता है। यह दूध, शराब आदि का परिरक्षण करने में प्रयुक्त होता है। यह रॉकेट, पनडुब्बियों और टॉरपीडों में ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है, क्योंकि इससे ऑक्सीजन प्राप्त होता है।

नोट: हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की संरचना एक खुली हुई पुस्तक की तरह होती है, जिसके खुले हुए दोनों पृष्ठों के मध्य 94° का कोण होता है और अक्ष पर दो ऑक्सीजन परमाणु तथा दोनों पृष्ठों पर एक-एक हाइड्रोजन परमाणु होते हैं तथा 97° का कोण होता है।

जल (water): जल एक यौगिक है। इसका अणुसूत्र H2O होता है। इसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का अनुपात भार के अनुपात में 1:8 तथा आयतन के अनुपात में 2:1 होता है। शुद्ध जल उदासीन होता है, अर्थात् इसका pH मान 7 होता है। शुद्ध जल विद्युत् का कुचालक होता है जबकि अम्लीय जल विद्युत् का सुचालक होता है। 4°C पर जल का घनत्व अधिकतम तथा आयतन न्यूनतम होता है। जल शून्य डिग्री (0°) सेण्टीग्रेड पर सफेद बर्फ में परिवर्तित हो जाता है। शुद्ध जल का क्वथनांक 100°C तथा द्रवणांक 0°C होता है। वर्षा जल (Rainy water) सर्वाधिक शुद्ध जल होता है। सम्पूर्ण जल का 97% भाग समुद्री वातावरण में पाया जाता है, शेष बचा हुआ 3% भाग ही स्वच्छ जल के रूप में जाना जाता है। जल का बर्फ में परिणत होना तथा वाष्प में परिवर्तित होना भौतिक परिवर्तन का उदाहरण है।

जल के प्रकार: जल दो प्रकार का होता है-

(i) कठोर जल (Hard water): कठोर जल साबुन के साथ फेन उत्पन्न नहीं करता है। इसमें कैल्सियम एवं मैग्नीशियम के क्लोराइड, सल्फेट व बाइकार्बोनेट घुले रहते हैं। कठोर जल पीने के लिए उपयुक्त नहीं होता है, क्योंकि इसमें घुले लवण स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होते हैं।

(ii) मृदु जल (soft water): मृदु जल साबुन के साथ आसानी से फेन उत्पन्न करता है। यह जल पीने की दृष्टि से उपयुक्त होता है।

जल की कठोरता (Hardness of water): जल की कठोरता दो प्रकार की होती है-

(1) स्थायी कठोरता: जल की स्थायी कठोरता उसमें कैल्सियम (Ca) व मैग्नीशियम (Mg) के क्लोराइड तथा सल्फेट लवण घुले रहने के कारण होती है। जल की स्थायी कठोरता उसमें सोडियम कार्बोनट मिलाकर गर्म करने से दूर हो जाती है। जल की स्थायी कठोरता उसे उबालकर आसवन करने से भी दूर हो जाती है। जल की स्थायी कठोरता दूर करने की मुख्य विधि परम्यूटिट विधि है।

(ii) अस्थायी कठोरता: जल की अस्थायी कठोरता उसमें कैल्सियम (Ca) व मैग्नीशियम (Mg) के बाइकार्बोनेट्स लवण घुले रहने के कारण होती है। जल की अस्थायी कठोरता उसे उबालकर दूर कर ली जाती है। जल में सोडियम कार्बोनेट डालकर उबालने से स्थायी तथा अस्थायी दोनों प्रकार की कठोरता दूर हो जाती है।

जल को सार्वत्रिक विलायक (Universal solvent) कहा जाता है, क्योंकि इसमें कई पदार्थों को घुलाने की क्षमता होती है। जल का डाइइलेक्ट्रिक नियतांक अधिक होने के कारण ही इसे उत्तम विलायक माना जाता है। (अपवाद- कार्बनिक पदार्थ)

नोट:

  • ऐसा शुद्ध बर्फ जिसमें रोगाणु नहीं होते हैं और जो लगभग 2000-3000 वर्ष पुरानी होती है, ब्लू आइस (Blue ice) कहलाती है। यह ग्रीनलैंड में पायी जाती है, जहाँ से इसका निर्यात विकसित देशों को किया जाता है। ब्लू आइस का उपयोग व्हिस्की (whisky) बनाने में किया जाता है।
  • केतली में जल उबालने पर उसकी आंतरिक परत में सफेद रंग की परत जम जाती है, जो कैल्सियम व मैग्नीशियम के काबॉनेट्स होते हैं।
  • जल हाइड्रोजन बन्ध (Hydrogen Bond) के कारण द्रव अवस्था में पाया जाता है।
  • जल का शुद्धीकरण पोटाशियम परमैगनेट क्लोरीन गैस, पोटाश एलम आदि द्वारा किया जाता है।
  • पॉली वाटर (Poly water): पॉली वाटर सामान्य जल को बाल की आकर की नलिका से गुजाकर बनाया जाता है। यह पृथ्वी पर एक खतरनाक वस्तु मानी जाती है।

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