भारत एवं पड़ोसी देश India and Neighbouring Countries
भारत-चीन भारत और चीन एशिया महाद्वीप की बड़ी शक्तियों के साथ-साथ विश्व की सर्वाधिक आबादी वाले राष्ट्र भी हैं। हालांकि 1949 में चीन में साम्यवादी व्यवस्था स्थापित होने के उपरांत वैचारिक मतभेद उत्पन्न हुआ किंतु मैत्री संबंध बने रहे। भारतीय राजनीतिज्ञों की अदूरदर्शिता के कारण दोनों देशों के मध्य कड़वाहट बनी रही। चीन हमेशा आशंकित रहा कि भारत कहीं एशिया महाद्वीप की शक्ति न बन जाए तदनुरूप वह भारत को शक की निगाह से देखता रहा। परमाणु परीक्षणों के उपरांत जन्मी कटुता को अप्रभावी बनाने के क्रम में भारत एवं चीन द्वारा 1 अप्रैल, 2000 को अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की अर्द्ध-शताब्दी मनायी गयी तथा आगामी शती में दोनों देशों द्वारा निभायी जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका को परस्पर मान्यता दी गयी। दोनों देशों ने सीमा संबंधी विवाद को एक संयुक्त कार्यकारी दल एवं विशेषज्ञ दल के प्रभावी तंत्र द्वारा निबटने पर सहमति जाहिर की। मई-जून 2000 में राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा चीन की यात्रा की गयी, जिसके दौरान सम्पूर्ण एशिया में स्थिरता कायम रखने तथा सभी आपसी विवादों को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा हल करने की बात स्वीकार की गयी। जुलाई 2000 में चीनी विदेश मंत्री तथा जनवरी 2001 में चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति के अध्यक्ष ली पेंग ने भारत की यात्रा की सीमा प्रश्न से सम्बद्ध संयुक्त कार्यकारी दल की बारहवीं बैठक में दोनों पक्षमानचित्रों के परस्पर आदान-प्रदान पर सहमत हुए। दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं के बीच आदान-प्रदान भी प्रारंभ हो गया। पिछले एक दशक से भारत चीन संबंधों में मजबूती आई है। इस प्रगति को इससे भी आंका जा सकता है कि वर्ष 2003 में भारत-चीन के मध्य व्यापार जहाँ पांच मिलियन डॉलर था, जो अब तकरीबन 34 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। गौरतलब है कि अमेरिकी खुफिया विभाग ने आशंका व्यक्त की है कि भारत-चीन 2050 तक वैश्विक महाशक्ति बन जाएंगे। द्विपक्षीय संबंधों को उस समय एक नया आयाम मिला जब 9 अप्रैल, 2005 को चीन के प्रधानमंत्री बेन जियाबाओ भारत की चार दिवसीय यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों राष्ट्रों के मध्य 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये। चीनी प्रधानमंत्री द्वारा भारतको महान पड़ोसी देश, प्राचीन सभ्यता का देश तथा विश्व अर्थव्यवस्था में सक्रिय भागीदारी करने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्र का विशेषण प्रदान किया गया।
चीन-बदलते वैश्विक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भारत की अपरिहार्यता को समझते हुए भारत के साथ राजनीतिक एवं आर्थिक संबंध सुदृढ़ करने की भरसक कोशिश कर रहा है। उल्लेखनीय है कि इस समय भारत के विभिन्न राज्यों में चीन की 45 कपनियां कार्यरत हैं जबकि भारत की लगभग 200 कपनियां चीन में कार्य कर रही हैं। वर्ष 2006 में चीन के राष्ट्रपति हू-जिन्ताओ ने भारत यात्रा की जिसमें दस-सूत्रीय संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया गया। इसके अंतर्गत आर्थिक-व्यापारिक क्षेत्र, ऊर्जा, तकनीकी एवं सामारिक क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग शामिल है। 13 से 15 जनवरी, 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने के उद्देश्य से चीन की यात्रा की। इसके अंतर्गत दोनों देशों के प्रधानमंत्री ने 21वीं सदी के लिए साझा लक्ष्य तय करने संबंधी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर अपनी सहमति जाहिर की। इसमें रक्षा सहयोग आतंकवादी विरोधी प्रयास, संस्कृति, विज्ञान, रेलवे, पारस्परिक, चिकित्सा, आवास, पुनर्वास, जलवायु परिवर्तन आदि सहयोग के क्षेत्र शामिल हैं। दोनों देशों के मध्य असैनिक परमाणु सहयोग पर सहमति बनी। दूसरे, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता पर चीन ने पहली बार सकारात्मक रुख अपनाया है। तीसरे, सीमा-विवाद को शांतिपूर्वक हल करने के लिए बातचीत जारी रखने की इच्छा प्रकट की है।
वर्ष 2010 में भारत गणराज्य तथा चीन के बीच कूटनीतिक संबंधों की स्थापना के 60 वर्ष पूरे हुए। वर्ष 2011 को भारत-चीन आदान-प्रदान वर्ष के रूप में मनाया गया तथा इस दौरान विशेषकर राज्य/प्रांत स्तर पर दोनों राष्ट्रों के बीच बढ़े हुए आदान-प्रदान देखे गए। दोनों देशों के मध्य नियमित उच्च स्तरीय राजनीतिक संपर्क की गति देखी गई।
बीआरआईसीएस सम्मेलन के दौरान 2011 में सान्या, चीन में भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन के राष्ट्रपति श्री हू जिन्ताओं से मुलाकात की। पूर्वी एशिया सम्मेलन के दौरान बाली, इंडोनेशिया में नवंबर, 2011 में उन्होंने चीनी प्रमुख श्री वेन जिआबाओ से मुलाकात की। सघन वार्ता ढांचे के अंतर्गत महत्वपूर्ण द्विपक्षीय, क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दोनों पक्षों ने परस्पर आदान-प्रदान किया। दोनों देशों के मध्य व्यापार तया आर्थिक सम्बंध में व्यापार विस्तार हुआ तथा एक सामरिक आर्थिक संवाद (एसईडी) का प्रारम्भ कर इस संबंध को और गहरा किया गया। एसईडी की पहली बैठक चीन में सितंबर, 2011 में हुई। दोनों पक्ष सभी लबित मुद्दों जिसमें भारत-चीन सीमा प्रश्न भी शामिल है को एक शांतिपूर्ण बातचीत से हल करने की प्रतिबद्धता जताई। नई दिल्ली में जनवरी, 2012 में भारत-चीन सीमा प्रश्न पर विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता का 15वां चक्र सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर भारत-चीन सीमा मामले पर सलाह एवं समन्वय हेतु एक कार्यकारी तंत्र की स्थापना पर समझौता हुआ। एसईडी की दूसरी बैठक 26 नवंबर, 2012 को नई दिल्ली में संपन्न हुई। जिसमें चीन और भारत ने आर्थिक ब व्यापारिक सम्बंधों को मजबूत बनाने के लिए चार सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद एसईडी की तीसरी बैठक 2013 में बीजिंग में संपन्न हुई। चीन जहां एक ओर भारत के साथ अपने व्यापारिक सम्बंधों को बढ़ाना चाहता है, ताकि चीन की विनिर्माता कंपनियों की भारत का विशाल उपभोक्ता बाजार मिलता रहे, वहीं चीन सामरिक मोर्चे पर भारत को घेरने की रणनीति पर चलता रहता है।
अंततः कहा जा सकता है कि 1962 के युद्ध की कड़वी यादों को भुलाकर भारत एवं चीन द्विपक्षीय संबंधों को सरल बनाने हेतु हर संभव प्रयास कर रहे हैं।