शोध व प्रशिक्षण हेतु संयुक्त राष्ट्र संस्थान United Nations Institute for Training and Research – UNITAR
इसकी स्थापना महासभा के एक प्रस्ताव द्वारा 11 दिसंबर, 1968 को हुई। इसका लक्ष्य शांति व सुरक्षा को कायम रखने तथा सामाजार्थिक विकास के संवर्द्धन में संयुक्त राष्ट्र की प्रभाविता को शोध व प्रशिक्षण के माध्यम से बढ़ाना है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है।
यूनिटार अल्पविकसित देशों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देते हुए उन्हें प्रायोगिक सहायता उपलब्ध कराता है। यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली एवं सम्बद्ध मामलों से जुड़े राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों और राजनयिकों को व्यावसायिक एवं तकनीकी प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है। बहुपक्षीय राजनय, आर्थिक विकास, अंतरराष्ट्रीय विधि तथा संयुक्त राष्ट्र अभिलेखीरकण से जुड़े विषयों पर यूनिटार द्वारा कई संगोष्ठियों, कार्यशालाओं व पाठ्यक्रमों का आयोजन किया गया है। यूनिटार के बहु-उपयोगी प्रयासों एवं गतिविधियों के बावजूद इसको प्राप्त होने वाला वित्तीय अंशदान अपेक्षा से बहुत ही कम है।
सामाजिक विकास हेतु संयुक्त राष्ट्र शोध संस्थान United Nations Research Institute for Social Development—UNRISD
इस संस्थान की स्थापना (दिसंबर 1968 में महासभा द्वारा तय किये गये समाजिक लक्ष्यों व योजनाओं के लिए) नीदरलैंड द्वारा दिये गये आरंभिक अनुदान के माध्यम से 1964 में की गयी। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। यह संस्थान सामाजिक विकास की नीतियों व समस्याओं तथा आर्थिक वृद्धि के विभिन्न चरणों के दौरान सामाजर्थिक विकास के अलग-अलग प्रकारों के साथ उनके सम्बंधों, से जुड़े शोध पर ध्यान केन्द्रित करता है।
यह निकाय चार अनुसंधान क्षेत्रों में कार्य करता है—
- खाद्य प्रणाली एवं समाज, जिसके अंतर्गत दस देशों में उत्पादकों से उपभोक्ताओं की ओर खाद्य के प्रवाह का विश्लेषण किया जाता है ताकि भुखमरी एवं कुपोषण को घटाया जा सके।
- जन-भागीदारी, जिसके तहत अल्प सुविधा प्राप्त सामाजिक वर्गों का नियामक संस्थाओं व् संसाधनों पर नियंत्रण बढ़ने वाले संगठित प्रयासों का अध्ययन किया जाता है।
- विकास आंकड़ों व विश्लेषण पद्धतियों में सुधार।
- शरणार्थियों की सामाजिक दशा।
वर्तमान में यूएनआरआईएसडी द्वारा संकट, व्यवस्थापन एवं सामाजिक परिवर्तन; मादक द्रव्य व्यापार के राजनीतिक व सामाजर्थिक परिणाम, पर्यावरण संवहनीय विकास; विकास नीति के साथ लिंग एकीकरण; साम्यवादी एवं उत्तर-साम्यवादी समाजों में सम्पति सम्बंधों के परिवर्तन तथा राजनीतिक हिंसा व सामाजिक आंदोलन जैसे क्षेत्रों में ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। 1998 में एक नयी अनुसंधान परियोजना का प्रस्ताव रखा गया, जो इस बात की जांच करेगी कि नवीनतम सूचना-प्रौद्योगिकी को किस प्रकार सें विकासशील देशों की जरूरतों के अनुरूप अपनाया जा सकता है ताकि सम्पन्न एवं वंचितों का अंतर कम किया जा सके।