व्यक्तिगत सत्याग्रह Individual Satyagraha

अगस्त प्रस्ताव के बाद की परिस्थितियों में जो प्रगति हुयी उसके पश्चात् सरकार ने अड़ियल रवैया अपना लिया तथा घोषित किया कि कांग्रेस जब तक मुस्लिम नेताओं के साथ किसी तरह के समझौते को मूर्तरूप नहीं देती, तब तक भारत में किसी प्रकार का संवैधानिक सुधार संभव नहीं है। सरकार एक के बाद एक अध्यादेश जारी करती जा रही थी तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता तथा सभा करने एवं संगठन बनाने का अधिकार जैसे अधिकार धड़ाधड़ छीन रही थी। 1940 के अंत में कांग्रेस ने एक बार पुनः गांधीजी से कमान संभालने का आग्रह किया।

इसके पश्चात् गांधीजी ने ऐसे कदम उठाने प्रारंभ कर दिए जिससे उनकी व्यापक रणनीति के अंतर्गत जनसंघर्ष की भूमिका का निर्माण होता। उन्होंने व्यक्तिगत आधार पर सीमित सत्याग्रह प्रारम्भ करने का निश्चय किया। इस रणनीति के तहत उन्होंने तय किया कि हर इलाके में कुछ चुने हुये लोग व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारम्भ करेंगे।

गांधीजी द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारम्भ करने के मुख्य लक्ष्य थे-

  1. यह प्रदर्शित करना कि राष्ट्रवादियों के धैर्य का अर्थ उनकी दुर्बलता नहीं लगाया जाना चाहिये।
  2. यह व्यक्त करना कि भारत के लोग युद्ध के पक्षधर नहीं हैं तथा न ही वे नाजीवाद एवं भारत के साम्राज्यवादी शासन में कोई फर्क समझते हैं।
  3. कांग्रेस की मांगों को शांतिपूर्वक स्वीकार करने के लिए सरकार को एक और मौका देना।

सत्याग्रहियों की मांग यह होगी कि युद्ध एवं युद्ध में भाग लेने के खिलाफ प्रचार करने के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिये। यदि सत्याग्रहियों को गिरफ्तार नहीं किया गया तो वे युद्ध- विरोधी भाषण को दुहरायेंगे तथा गांवों की ओर प्रस्थान करेंगे। तत्पश्चात् गांवों में ये अपना संदेश फैलाते हुये दिल्ली की ओर मार्च करने का प्रयास करेंगे। इसी नीति के कारण ही इस आंदोलन का नाम “दिल्ली चलो आंदोलन” पड़ गया।

17 अक्टूबर 1940 को विनोबा भावे पहले सत्याग्रही बने और इसके बाद जवाहरलाल नेहरू दूसरे। मई 1941 तक लगभग 25 हजार सत्याग्रहियों को सविनय अवज्ञा के लिये सरकार द्वारा दडित किया जा चुका था।

दिसम्बर 1941 में कांग्रेस के नेताओं को रिहा कर दिया गया। ये नेता भारतीय सीमाओं की रक्षा करने तथा मित्र राष्ट्रों की सहायता करने की आतुर थे। कांग्रेस कार्यसमिति ने महात्मा गांधी तथा नेहरूजी की आपत्तियों को दरकिनार करते हुये एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें भारत की रक्षा के लिये सरकार को इस शर्त पर सहयोग देने की पेशकश की गई कि यदि-

  1. युद्ध के पश्चात् भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जायेगी तथा
  2. ब्रिटेन, तुरंत ठोस रूप में सत्ता के हस्तांतरण पर राजी हो जाये।

यह यही वक्त था, जब गांधीजी ने जवाहरलाल नेहरू को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था


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