दक्कन की पाँच सल्तनते The Five Sultanates of Deccan

बहमनी राज्य के टूटने के बाद दक्कन में एक-के-बाद-दूसरी पाँच सल्तनतों का उदय हुआ। इनके नाम इनके संस्थापकों की उपाधियों पर थे- बरार का इमादाशाही वंश, बीजापुर का आदिल शाही वंश, अहमद नगर का निजामशाही वंश, गोलकुंडा का कुतुबुशाही वंश तथा बीदर का वरीदशाही वंश।

बरार

सबसे पहले बरार अलग हुआ। वहाँ फातुल्ला इमादशाह ने, जो हिन्दू से मुसलमान बना था, 1474 ई. में स्वतंत्रता घोषित कर इमादशाही वंश स्थापित किया। 1574 ई. में बरार को अहमदनगर ने हड़प लिया।

बीजापुर

बीजापुर के सूबेदार युसूफ आदिल खाँ ने 1489-1490 ई. में स्वतंत्रता स्थापित की। अपने प्रारम्भिक काल में वह जॉर्जिया के एक गुलाम के रूप में जाना जाता था, जिसे महमूद गावान ने खरीद लिया तथा उसने अपने गुण एवं योग्यता से प्रसिद्धि प्राप्त की। पर फरिश्ता कुछ गुप्त सूचना पर विश्वास कर लिखता है कि वह तुर्की के सुल्तान मुराद द्वितीय का, जिसकी मृत्यु 1451 ई. में हुई, पुत्र था। उसके बड़े भाई मुहम्मद द्वितीय ने, जो अपने पिता के बाद गद्दी पर बैठा, उसकी हत्या की आज्ञा दे दी। इससे बचने के लिए वह सत्रह वर्षों की उम्र में अपने देश से भागकर पहले फारस फिर भारत आया, यहाँ उसने अपने को गुलाम कह बहमनी सुल्तान के मंत्री के हाथ बेच दिया। यूसुफ आदिल शाह धर्मान्ध व्यक्ति नहीं था। उसकी सरकार में धर्म पद पाने की राह में अड़चन नहीं थी। उसे शिया धर्म के लिए तरजीह थी, जो शायद फारस में उसके प्रवास का फल था। वह अपने व्यक्तिगत जीवन में पापों से मुक्त था। वह शासक के रूप में अपने कर्तव्यों के प्रति सावधान था। फरिश्ता हम लोगों को बतलाता है कि यद्यपि यूसुफ आदिल शाह कामकाज के साथ आनंद मिला देता था, पर आनंद को कामकाज के बीच में नहीं आने देता था। वह सदैव अपने मंत्रियों को न्याय एवं ईमानदारी से काम करने की सावधान किया करता तथा स्वयं उन गुणों पर ध्यान देकर उनके सामने दृष्टान्त पेश करता था। उसने अपने दरबार में अनेक विद्वानों एवं साहसी अधिकारियों को फारस, तुर्किस्तान एवं रूस से तथा बहुत-से प्रसिद्ध कलाकारों को भी आमंत्रित किया। वे उसकी उदारता की छाया में सुखपूर्वक रहते थे। उसके राज्यकाल में बीजापुर कर दुर्ग पत्थर का बना दिया गया। यूसुफ आदिलशाह के चारों निकटतम उत्तराधिकारियों- यूसुफ का पुत्र इस्माईल आदिलशाह (1510-1534 ई.), इस्माइल का पुत्र मल्लू (1534 ई), मल्लू का भाई इब्राहिम आदिलशाह प्रथम (1534-1557 ई.) तथा इब्राहिम का पुत्र अली आदिलशाह (1557-1579 ई.) – के राज्यकाल षड्यंत्रों एवं युद्धों से भरे हुए थे। पर उस वंश ने इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय नामक एक दूसरा विलक्षण शासक उत्पन्न किया, जो अली आदिल शाह का भतीजा एवं उत्तराधिकारी था। वह बराबर सार्वभौमिक सहिष्णुता और बुद्धिमानी से अपने राज्य पर शासन करता रहा। सन् 1626 ई. में उसकी मृत्यु हुई। मेडोज टेलर की सम्मति में, जिसने बीजापुर तथा इसकी स्थानीय परम्पराओं के कुछ अनुभव के आधार पर लिखा था, वह समस्त आदिलशाही वंश में सबसे बड़ा था तथा अधिकतर विषयों में, इसके संस्थापक को छोड़कर, सबसे अधिक योग्य एवं लोकप्रिय था। बीजापुर राज्य 1686 ई. में औरंगजेब द्वारा जीते जाने तक बना रहा।

अहमदनगर

अहमदनगर राज्य का संस्थापक निजामुलमुल्क बहरी का पुत्र मलिक अहमद था। जो गोदावरी के उत्तर पाथरी के वंशानुगत हिन्दू राजस्वी-अधिकारियों के परिवार से उत्पन्न था तथा जिसने महमूद गावान के विरुद्ध रचे गए षड्यंत्र में प्रमुख भाग लिया और उसकी मृत्यु के पश्चात् प्रधानमंत्री बना था। मलिक अहमद जुन्नर का सूबेदार नियुक्त किया गया, पर 1490 ई. में उसने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। कुछ काल बाद वह अपनी राजधानी बदलकर और अधिक सामरिक महत्व के स्थान पर ले गया तथा इस प्रकार उसने अहमदनगर शहर की स्थापना की। कई वर्षों तक प्रयास करने के बाद उसने 1499 ई. में दौलताबाद पर अधिकार कर लिया, जिससे उसे अपना राज्य संगठित करने में सहायता मिली। 1508 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद उसका पुत्र बुरहान निजामशाह आया, जिसने अपने पैंतालीस वर्षों के शासनकाल में पडोसी राज्यों से युद्ध किये तथा 1550 ई. के लगभग बीजापुर के विरुद्ध विजयनगर के राय के साथ मित्रता कर ली। उसका उत्तराधिकारी हुसैन निजाम शाह 1565 ई. में विजयनगर के विरुद्ध मुस्लिम संघ में सम्मिलित हो गया। उसी वर्ष उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुर्तज़ा निजाम शाह प्रथम गद्दी पर बैठा। वह एक विलास-प्रेमी नवयुवक था तथा अपने शत्रुओं से सफलतापूर्वक प्रतियोगिता करने के अयोग्य था। अहमदनगर के बाद के इतिहास में, 1595-1596 ई. में चाँद बीबी द्वारा अकबर के पुत्र युवराज मुराद के वीरतापूर्ण प्रतिरोध तथा मलिक अम्बर की सैनिक एवं प्रशासनिक कुशलता के अतिरिक्त, कुछ भी महत्वपूर्ण एवं रोचक नहीं है। 1600 ई. में मुगलों ने इस राज्य को रौद डाला। अंत में यह शाहजहाँ के शासनकाल में 1633 ई. में उनके साम्राज्य में मिला लिया गया।


गोलकुंडा

गोलकुंडा का मुस्लिम राज्य वारंगल के पुराने हिन्दू राज्य के खंडहरों पर कायम हुआ, जिसे बहमनियों ने 1424 ई. में जीत लिया था। कुतुबुशाही वंश का संस्थापक कुली शाह था, जो महमूद शाह बहमनी के शासनकाल में बहमनी राज्य का एक तुर्की अधिकारी था। महमूद गावान ने उसे तेलंगाना का सूबेदार नियुक्त किया। कुली शाह प्रारंभ में अपने स्वामी के प्रति राजभक्त बना रहा। पर अंत में उसने 1512 ई. अथवा 1518 ई. में वरीदों की शक्ति एवं धृष्टता के विरुद्ध प्रतिवाद के रूप में स्वतंत्रता घोषित कर दी। उसका राज्यकाल लम्बा एवं समृद्धिशील रहा। पर 1543 ई. में नब्बे वर्षों की उम्र में उसके पुत्र जमशेद ने उसकी हत्या कर दी। जमशेद ने सात वर्षों तक राज्य किया। उसके भाई तथा उत्तराधिकारी अब्राहीम ने अन्य मुस्लिम सल्तनतों के साथ मिलकर 1565 ई. में विजयनगर के विरुद्ध युद्ध किया। वह एक अच्छा शासक था तथा धड़ल्ले से राज्य में हिन्दुओं को ऊँचे पदों पर नियुक्त करता था। 1611 ई. में उसकी मृत्यु के बाद से 1678 ई. में औरंगजेब द्वारा इसके मुग़ल-साम्राज्य में मिलाये जाने तक गोलकुंडा का इतिहास अधिकांशतः मुग़ल-साम्राज्य के इतिहास से उलझा रहा।

बीदर

जब बहमनी राज्य के सुदूरवर्ती प्रान्तों ने स्वतंत्रता घोषित कर दी, तब इसका अवशिष्ट भाग बरीदों की प्रधानता में नाममात्र के लिए बचा रहा। 1526 ई. अथवा 1527 ई. में अमीर अली बरीद ने विधिवत् कठपुतले बहमनी सुल्तानों के शासन को हटा कर बीदर के बरीदशाही वंश की स्थापना की, जो 1618-1619 ई. में बीजापुर द्वारा हडपे जाने तक बना रहा।

बहमनी राज्य की पाँचों शाखाओं को- विशेषतः बीजापुर एवं गोलकुंडा को- कुछ अच्छे शासक मिले। इन सल्तनतों का इतिहास अधिकांशत: एक दूसरे के बीच तथा विजयनगर से प्राय: अनवरत कलह की कथा है। प्रत्येक ने दक्कन पर प्रभुता स्थापित करने की महत्वाकांक्षा की। इसके फलस्वरूप दक्कन (दक्षिण) आन्तरिक युद्ध का स्थल बन गया, जैसा पहले चालुक्यों एवं पल्लवों के बीच हो रहा था अथवा अठारहवीं सदी में मैसूर, मराठा एवं निजाम के बीच हुआ। बहमनी राज्य के पतन तथा इसके खंडहरों पर स्थापित हुए पाँचों सल्तनतों के बीच कलह के कारण दक्षिण में इस्लाम की राजनैतिक एवं धार्मिक प्रगति में बहुत बाधा पहुँची। वहाँ हिन्दू पुनर्जीवन की प्रवृत्ति, जो तुगलकों के समय से ही परिलक्षित हो रही थी, विजयनगर साम्राज्य के उदय एवं विकास के रूप में प्रस्फुटित हुई।

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