खगोलीय विज्ञान Astronomy
अंतरिक्ष
अंतरिक्ष एक वायु रहित खाली विस्तृत क्षेत्र है, जिसकी सीमाएं सभी दिशाओं में अनन्त तक फैली हुई है। सौर मंडल, असंख्या तारे, तारकीय धूल और मंदाकिनियां सभी अंतरिक्ष के अवयव हैं। इसमें किसी प्रकार की हवा नहीं है, और न ही बादल है। दिन हो या रात, अंतरिक्ष सदा काला ही रहता है। अंतरिक्ष में कोई प्राणी नहीं रहता। निर्वात होने के कारण वहां कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता है।
अंतरिक्ष कहां से शुरू होता है, इस तथ्य की कोई जानकारी नहीं है। अंतरिक्ष हमें चारों ओर से घेरे हुए है। समझाने के लिए हम इतना ही कह सकते हैं कि अंतरिक्ष वहां से शुरू होता है जहां पृथ्वी का वायुमंडल समाप्त होता है।
आज का मानव शक्तिशाली रेडियो दूरबीनों, रॉकेटो, उपग्रहों, अंतरिक्ष यानों और प्रोबों द्वारा अंतरिक्ष पिंडों के विषय में जानकारी प्राप्त करने में लगा हुआ है। नए अविष्कारों में अंतरिक्ष संबंधी नए तथ्य हमारे सामने आए हैं।
ब्रह्माण्ड
- ब्रह्माण्ड के अंतर्गत उन सभी आकाशीय पिण्डों एवं उल्काओं तथा समस्त और परिवार, जिसमें सूर्य, चन्द्र पृथ्वी आदि भी शामिल हैं, का अध्ययन किया जाता है।
- ब्रह्माण्ड को नियमित अध्ययन का प्रारम्भ क्लाडियस टालेमी द्वारा (140 ई. में) हुआ।
- टालेमी के अनुसार पृथ्वी, ब्रह्मण्ड के केन्द्र में है तथा सूर्य और अन्य गृह इसकी परिक्रमा करते हैं।
- 1573 ई. में कॉपरनिकस ने पृथ्वी के बदले सूर्य को केन्द्र में स्वीकार किया।
- पृथ्वी व चन्द्रमा के बीच का अन्तरिक्ष भाग सिसलूनर कहलाता है।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की वैज्ञानिक परिकल्पनाएं
- बिग बैंग सिद्वान्त– जार्ज लेमेण्टर
- निरंतर उत्पत्ति का सिद्धान्त– थामॅस गोल्ड और हमैन बॉण्डी
- संकुचन विमोचन का सिद्धान्त– डा. एलेन सैण्डिज
- ब्रह्माण्ड की जानकारी की सबसे आधुनिक स्रोत प्रो. ज्योकरांय बुरबिज द्वारा, जिन्होंने प्रतिपादित किया कि प्रत्येक गैलेक्सी ताप नाभिकीय अभिक्रिया के फलस्वरूप काफी मात्रा में हिलियम उत्सर्जित करते हैं।
- प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जिसे प्रकाश शून्य में 29,7925 किमी. प्रति से. या लगभग 186282 मील प्रति से. की गति से तय करता है।
- ब्रह्माण्ड ईकाई से तात्पर्य सूर्य और पृथ्वी के बीच की औसत दूरी जो 149597870 किमी. (लगभग 149600,000 किमी.) या 15 किमी. है।
- सूर्य और उसके पड़ोसी तारे सामान्य तौर से एक गोलाकार कक्षा में 150 किमी. प्रति सें. की औसत गति से मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इस गति से केन्द्र के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में सूर्य को 25 करोड; वर्ष लगते हैं। यह अवधि ब्रह्माण्ड वर्ष कहलाती है।
तारे
शाम होते ही, अंधेरा घिरने लगता है और धीरे धीरे आसमान पर तारे दिखने लगते हैं। तारे चमकीले बिंदुओं की तरह नजर आते हैं, क्योंकि ये बहुत दूर है। सूर्य भी एक तारा है लेकिन यह दूसरे तारों जैसा नहीं लगता क्योंकि यह दूसरे तारों की तुलना में हमारे बहुत निकट है। यदि हम तारों के कुछ नजदीक पहुंच जाएं तो वे भी सूर्य की भांति दिखाई देंगे। तारे चमकती हुए गैस के विशाल पिंड है। इनमें से कुछ सूर्य से बहुत बड़े और चमकीले हैं, तथा दूसरे कुछ छोटे और धुंधले हैं। रीगल, नीले सफेद दानव का व्यास नीले सफेद दानव का व्यास सूर्य से 80 गुना अधिक है, इसकी चमक सूर्य की अपेक्षा 60,000 गुना अधिक है।
- तारों का निर्माण आकाश गंगा में गैस के बादलों से होता है। तारों से निरन्तर ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
- गैलेक्सी का 98 प्रतिशत भाग तारों से निर्मित है। ये गैसीय द्रव्य के उष्णा एवं दीप्तिमान ब्रह्माण्ड में स्थित खलोलीय पिण्ड हैं।
- सूर्य भी तारा है जो पृथ्वी के सबसे निकटतम है।
- साइरस पृथ्वी से देखा जाने वाला सर्वाधिक चमकीला तारा है।
- वामन तारा वे तारे हैं, जिनकी ज्योत्सना सूर्य से कम है।
- विशाल तारों की ज्योत्सना सूर्य से अधिक है जैसे-बेटेलगीज, सिरियस, अंतारिस।
- नोवा वह तारा जिनकी चमक गैसों के निष्कासित होने से 10 से 20 तक बढ़ जाती है।
- सुपरनोवा तारा 20 से अधिक चमकने वाला तारा है। पृथ्वी से देखा जाने वाला सबसे अधिक चमकीला तारा क्रेस डांग तारा है।
- ब्लैक होल बनने का कारण है- तारों की ऊर्जा समाप्त हो जाना। प्रत्येक तारा लगातार ऊर्जा की बड़ी मात्रा में उत्सर्जन करता रहता है और निरंतर सुकड़ता जाता है जिसके कारण गुरुत्वाकर्षण बढ़ता जाता है। इस ऊर्जा उत्सर्जन के कारण अंत एक समय आता है, जब ऊर्जा समाप्त हो जाती है और तारों का बहना रुक जाता है।
- तारों या गैलेक्सी की गति से उसके प्रकाश में परिवर्तन दिखाई देता है। यदि तारा प्रेक्षक की तरफ रहा है तो उसका प्रकाश स्पेक्ट्रम के नीले किनारे की ओर चलेगा। किंतु यदि तारा प्रेक्षक से दूर जा रहा है तो उसका प्रकाश स्पेक्ट्रम के बाल किनारे की तरफ खिसक जायेगा। इसे डाप्लर प्रभाव कहते हैं।
- यदि तारे का भार सूर्य के लगभग बराबर होता है तो यह धीरे-धीरे ठण्डा होकर पहले गोले में बदलता है फिर और ठण्डा होकर अंत में एक श्वेत छोटे पिण्ड में परिवर्तित हो। जाता है। कुछ समय पश्चात् यह छोटा पिण्ड अपने ऊपर गिरने वाले प्रकाश को अवशोषित करने लगता है। तब यह आंखों से न दिखने वाले ब्लैक होल में बदल जाता है।
तारे सफेद दिखाई देते हैं, लेकिन सभी तारे सफेद नहीं होते, कुछ नारंगी, लाल या नीले रंग के भी होते हैं। अत्यधिक तप्त तारों का रंग नीला होता है और ठंडे तारों का लाल। सूर्य पीला तारा है। नीले तारों का तापमान 27,750°C तथा सूर्य का 6000°C से होता है। इसलिए कोई भी अंतरिक्ष यात्री कभी भी किसी भी तारे पर नहीं उतर सकता।
अंतरिक्ष यान को चंद्रमा तक पहुंचने में तीन दिन का समय लगता है। सूर्य तक जाने में कई महीने चाहिए। अंतरिक्ष यान को सबसे नजदीकी तारे तक पहुंचने में हजारों वर्ष लग सकते है। इतनी लंबी दूरी को कि.मी. में मापना एक कठिन समस्या है। इसलिए वैज्ञानिक तारों की दूरी मापने के लिए प्रकाश वर्ष और पारसेक इकाइयों का इस्तेमाल करते हैं। प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जिसे प्रकाश तीन लाख कि.मी. प्रति सेकण्ड की रफ्तार से चलकर एक वर्ष में तय करता है- यानी 30.857×1012 किमी.।
चन्द्रमा से आने वाले प्रकाश को हम तक पहुंचने में 1.3 सेंकड का समय लगता है। सूर्य से चलने वाला प्रकाश हम तक 8 मिनट 18 सेंकड में पहुंचता है। लेकिन सूर्य के बाद सबसे नजदीकी तारे प्रोक्सिमा सेंटोरी से आने वाले प्रकाश को हम तक पहुंचने में 4.2 प्रकाश वर्षों का समय चाहिए। हमारी मंदाकिनी में सबसे दूर के तारे की दूरी लगभग 63000 प्रकाश वर्ष (19.325Pc) है। सभी तारों का जन्म गैस और धूल के बादलों में हुआ है। सभी तारों में संगलन क्रियाओं से प्रकाश और गर्मी पैदा होती है।
पल्सर, ब्लैक होल तथा क्वासर
पल्सर
पल्सर, घूर्णन करते हुए ऐसे तारे हैं, जिनसे नियमबद्ध रूप से विकिरण स्पंद आते रहते हैं। पल्सर शब्द पल्सेटिंग रेडियो स्टार के लिए प्रयुक्त होता है।
जब किसी बड़े तारे में विस्फोट होता है तो उसका बाहरी भाग छिटककर नेबुला का रूप धारण कर लेता है और क्रोड घटकर छोटा सघन तारा बन जाता है जिसे न्यूट्रान तारा कहते है। इनमें न्यूट्रॉन बहुत ही पास पास होते हैं तथा इनका घनत्व भी बहुत अधिक होता है। ये बहुत छोटे और धुंधले होते है। एक न्यूट्रॉन तारे का औसत व्यास 10 किमी. होता है। न्यूट्रॉन तारे ही पल्सर कहलाते हैं।
रेडियों दूरबीन पर पल्सर से आता किरणपुंज टिक जैसी आवाज पैदा करता है। तेजी से घूमते हुए ये न्यूट्रॉन तारे अंतरिक्ष में लाइट हाउसों की तरह है। साधारण पल्सरों की फ्लेश के बीच का अंतराल 1 या 1/2 सेकण्ड होता है। अति तीव्रता से स्पंदन करने वाला पल्सर एनपी 0532 है, जो क्रेब नेबुला में स्थित है। यह 1 सेकंड में 30 बार स्पंदन करता है। सबसे पुराना और मंद गति से घूर्णन करने वाला पल्सर एनपी 0527 है। जिनके स्पंदनों के बीच का अंतराल 3.7 सेकंड है। सभी पल्सर 0.03 सेकंड में 4 सेकंड की अवधिा में एक स्पंद पैदा करते हैं।
सामान्यतः पल्सरों को प्रकाशीय दूरबीन से नहीं देखा जा सकता। इन्हें खोजने के लिए रेडियो दूरबीनों की आवश्यकता होती है। केवल दो पल्सर ऐसे हैं जिन्हें प्रकाशीय दूरबीनों से देखा जा सकता है। पहला एनपी 0532 क्रेब नेबुला में है और दूसरा पीएसआर 0833-45 गम नेबुला में है। अब तक वैज्ञानिक 100 से अधिक पल्सरों का पता लगा चुके हैं।
ब्लैक होल
सूर्य से भी तीन गुने विशाल तारों के समाप्त होने पर अंतरिक्ष के कुछ काले क्षेत्र बच जाते हैं जिन्हें ब्लैक होल कहते है। इनका गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक होता है कि कोई भी वस्तु जो ब्लैक होल में चली जाती है, बाहर नहीं आ सकती। यहां तक कि प्रकाश भी गुरूत्वाकर्षण के कारण बाहर नहीं आ पाता।
सन् 1972 में सबसे पले ब्लैक होल की पहचान की गई थी। यह सिग्नल एक्स-1 के दुहरे तारे में था। यह दुहरा तारा एक्स किरणों का स्रोत है। यह उसका एक छोटा साथी है जो बिल्कुल काला है। यह न्यूट्रॉन तारा नहीं है, इसलिए इनको ब्लैक होल कहते हैं। सामान्यतः ब्लैक होल से एक्स किरणे और अवरक्त विकिरण निकलते हैं। इन्हीं विकिरणों के आधार पर अंतरिक्ष में ब्लैक होलों का पता लगाया जाता है। ब्लैक होलों का द्रव्यमान 10 करोड़ सूर्यो के बराबर तक हो सकता है।
क्वासर
क्वासर शब्द क्वासी स्टैलर रेडियो सोर्सेज का संक्षिप्त रूप है। क्वासर एक तारे की तरह दिखाई देते हैं। प्रकाशीय दूरबीन से ये साधारण धुंधले तारों जैसे लगते हैं, लेकिन रेडियों दूरबीन परीक्षणों से पता चला है कि ये रेडियों तरंगों के स्रोत हैं। मार्टेन श्मिट ने सन् 1962 में 3C-273 क्वासर का पता लगाया। इसमें अवरक्त विस्थापन Z का मान 0.158 था। यह तरंग गति का एक प्रभाव है, जो गतिशील वस्तुओं के साथ देखने को मिलता है। इसके पास आने वाले प्रकाश के स्रोत के स्पेक्ट्रम का विस्थापन बैंगनी रंग की तरफ और दूर जाने वाले प्रकाश स्रोत के स्पेक्ट्रम का विस्थापन लाल रंग की ओर होता है। अवरक्त विस्थापन, प्रकाश स्रोत के दूर जाने को दर्शाता है।
क्वासर से हमें प्रकाश के साथ रेडियों तरंगे और एक्स किरणे भी मिलती हैं। एक क्वासर का आकार हमारी मंदाकिनी का 1/100,000वां हिस्सा होता है, लेकिन इसकी चमक 100-200 गुना अधिक होती है। अभी तक 1500 क्वासरों की खोज की जा चुकी है।
रात को आकाश में प्रकाश की एक दूधिया नदी-सी दिखाई देती है जिसे मिल्की वे या आकाशगंगा कहते हैं। इटली के खगोलवेत्ता गैलीलियों ने सबसे पहले अपनी दूरबीन द्वारा इसको देखकर बताया था कि यह वास्तव में करोड़ों टिमटिमाते तारों का विशाल पुंज है। यह एक मंदाकिनी है। हमारा सौर परिवार इसी का एक सदस्य है। न जाने इसमें और कितने सौर मंडल हैं।
सभी मंदाकिनी तारों के विशाल पुंज है। ये पुंज इतने विशाल हैं कि कुछ लोग हन्हें ब्रह्मांड के प्राद्वीप कहते हैं। समस्त ब्रह्मांड में मंदाकिनी फैली होती है। शक्तिशाली दूरबीनों से 100 करोड़ मंदाकिनी देखी जा सकती हैं, जिनकी दूरी 1000 प्रकाश वर्ष से एक करोड़ प्रकाश वर्ष तक है। अधिकांश मंदाकिनियां आकाश में बिखरी हुई दिखाई देती हैं। मंदाकिनी करोड़ों तारों, धूल और गैसों के समूह हैं। ऐसा अनुमान है कि जब पहली बार बह्मांड में विस्फोट हुआ तो पदार्थों के फैलने से गैस के विशाल समूह या प्रोटो गैलेक्सी अपनी ही गति विशेष से घूमने लगे। मंद और तेज गति से घूमने के कारण विभिन्न आकारों और रूपों में मंदाकिनी का निर्माण हुआ। अब तक की ज्ञात मंदाकिनियों के प्रमुख तीन रूप हैं- सर्पिल, दीर्घवृत्तीय और अनियमित।
हमारी मंदाकिनी सर्पिल मंदाकिनी है। इसकी सर्पिल भुजाएं दूर-दूर तक फैली है, और इन्हीं भुजाओं में से एक में हमारा सौर मंडल स्थित है। मंदाकिनी व्यास में लगभग 100,000 प्रकाश वर्ष (30,600 PC) है। इसका केन्द्र तारकीय धूल कणों से ढका हुआ है। सूर्य से लगभग 32,000 प्रकाश वर्ष (9800PC) दूर हमारी मंदाकिनी का केन्द्र है। ऐसा अनुमान है कि यह 1200 करोड़ 1400 करोड़ वर्ष पुरानी है और इसमें लगभग 1500 हजार करोड़ तारे है।
मंदाकिनी अपने अक्ष (axis) पर घूम रही है। किनारों की अपेक्षा यह अपने केन्द्र पर अधिक तेजी से घूमती है। मध्य क्षेत्र अपने अक्ष पर एक चक्कर लगभग 50,000 वर्षों में पूरा करता है। सूर्य और उसके पड़ोसी तारे एक गोलाकार कक्षा में 250 किमी. प्रति सेकंड की औसत गति से मंदाकिनी के केन्द्र के चारों और परिक्रमा करते हैं। एक चक्कर पूरा करने में सूर्य को लगभग 22.5 करोड़ वर्ष लगते हैं। यह अवधि ब्रह्मांड वर्ष कहलाती है।
आकाश गंगा के अतिरिक्त ब्रह्मांड में हजारों लाखों मंदाकिनियां हैं। इन मंदाकिनियों का विस्तार हो रहा है। एक समय ऐसा भी आएगा जब ये फैलने के बजाए सिकुड़ने लगेंगी।
यदि हम आकाश गंगा को गौर से देखें तो हमें चमकीले भाग में काले धब्बे भी दिखाई देते हैं। ये वे क्षेत्र हैं जिनमें तारे कम है।
सूर्य
सूर्य, आकाशगंगा का एक तारा है जो हमें अन्य तारों से बहुत बड़ा दिखाई देता है, क्योंकि यह पृथ्वी से अधिक निकट है। कुछ तारों की तुलना में यह बहुत छोटा है। बीटेल जूज तारा सूर्य से 800 गुना बड़ा है।
पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किमी. है। इसका व्यास लगभग 1,400,000 किमी. है, यानी पृथ्वी के व्यास का 109 गुना। इसका गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण की तुलना में 28 गुना अधिक है।
आकाशगंगा के केन्द्र से सूर्य की दूरी आधुनिक अनुमान के आधार पर 32,000 प्रकाश वर्ष है। 250 किमी. प्रति सेकंड की औसत गति से केंद्र के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में सूर्य को 22.5 करोड़ वर्ष लगते हैं। यह अवधि ब्रह्मांड वर्ष कहलाती है। सूर्य पृथ्वी की तरह अपने अक्ष पर भी घूमता है। सूर्य गैसों का बना है इसलिए विभिन्न अक्षांशों पर विभिन्न गति से घूम सकता है। ध्रुवों पर उसके घूमने की अवधि लगभग 24-26 दिन है और भूमध्य रेखा पर 34-37 दिन है। यह पृथ्वी से 300,000 गुना अधिक भारी है।
सूर्य चमकती हुई गैसों का एक महापिंड है। इसको एक विशाल हाइड्रोजन बम कह सकते हैं, क्योंकि इसमें नाभिकीय संलयन द्वारा अत्यधिक ऊष्मा और प्रकाश पैदा होते हैं। इससे आने वाले प्रकाश और गर्मी से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। इसके प्रकाश को धरती तक पहुंचने में 8 मिनट 20 सेकंड का समय लगता है।
सूर्य की दिखाई देने वाली बाहरी सतह को फोटोस्फियर कहते हैं, जिसका तापमान लगभग 6000°C सेल्सियस है, लेकिन केन्द्र का तापमान 15,000,000°C सेल्सियस है।
सूर्य की सतह या फोटोस्फियर से चमकती हुई लपटें उठती रहती हैं, जिन्हें सौर ज्वालाएं कहते हैं। ये लगभग 1000,000 किमी. ऊँचाई तक पहुंचती हैं।
- सूर्य के रासायनिक संगठन में हाइड्रोजन 71 प्रतिशत हीलियम 5 प्रतिशत तथा अन्य तत्व 2.5 प्रतिशत शामिल हैं।
- सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक आने से 8 मी. 6.6 से. लगते हैं।
सूर्य की संरचना
- प्रकाश मण्डल सूर्य की दिखाई देने वाली दिप्तिमान सतह है।
- प्रकाश मण्डल के किनारे वाला थाम जो दिप्तिमान नहीं होता है इसका रंग लाल होता है, वर्णमण्डल कहलाता है।
- प्रभामण्डल सूर्य का बाह्तम भाग (जो केवल ग्रहण के समय दिखता है)।
- Corona से x-किरणे उत्सर्जित करती हैं और पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय पृथ्वी इसी कोरोना से प्रकाशित होता है।
- जब सूर्य के किसी भाग का ताप अन्य भागों की तुलना में कम हो जाता है तो धब्बे के रूप में दिखता है, जिसे सौर कलंक कहते हैं। इस धब्बे का जीवनकाल कुछ घण्टों से लेकर कुछ सप्ताह तक होता है। कई दिनों तक सौर कलंक बने रहने के पश्चात् रेडियो संचार में बाधा आती है।
सूर्य की सतह पर काले धब्बे भी दिखाई देते हैं। ये सूर्य की सतह के तापमान (6000°C सेल्सियस) से अपेक्षाकृत लगभग 1500°C सेल्सियस ठंडे होते हैं। इन धब्बों का जीवन काल कुछ घंटों से लेकर कई सप्ताह तक होता है। एक बड़े धब्बे का तापमान 4000-5000° सेल्सियस तक हो सकता है। धब्बे तो हमारी पृथ्वी से भी कई गुना बड़े होते हैं।
सूर्य के धब्बे जब अधिक समय तक रहते हैं तो सौर-विस्फोट और सौर ज्वालाएं अधिक उठने लगती हैं। इसका नतीजा यह होता है कि आयनमंडल में उथल-पुथल हो जाती है और पृथ्वी पर रेडियो संचारों में बाधाएं पड़ती हैं।
सौर मंडल
आकाशगंगा के केंद्र से लगभग 30,000 से लेकर 33,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर एक कोने में हमारा सौर मंडल स्थित है। सौर मंडल का केन्द्र सूर्य में स्थित है। सूर्य आकाश गंगा की परिक्रमा करता है। यह 2250 लाख वर्ष में एक परिक्रमा करता है। सूर्य अन्य तारों की तरह ही एक तारा है, अंतर केवल इतना है कि दूसरे तारों की तुलना मे यह हमारे अधिक निकट है। सूर्य का अपना परिवार है। सूर्य और इसके परिवार को सौर मंडल कहते हैं। सूर्य के परिवार में सूर्य नौ ग्रह, उनके उपग्रह, धूमकेतु, उल्काएं तथा क्षुद्रग्रह या एस्टिरॉयड आते हैं।
ग्रह ऐसे खगोल पिंड है जो हमारी पृथ्वी की भांति ही सूर्य के इर्दगिर्द चक्कर लगाते हैं, अर्थात् उसकी परिक्रमा करते हैं। सूर्य का प्रकाश ग्रहों पर पड़ता है, जिसके कारण वे चमकदार दिखते हैं। सौर परिवार का 99 प्रतिशत द्रव्यमान सूर्य के कारण ही है। सौर मंडल के सभी सदस्य सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
नौ ग्रह इस प्रकार हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्च्यून तथा प्लूटो।
बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, तथा शनि को पृथ्वी से बिना दूरबीन के देखा जा सकता है। खगोलशास्त्री हजारों वर्ष पूर्व भी इनको जानते थे। अन्य तीन ग्रह यूरेनस, नेप्च्यून तथा प्लूटों की खोज दूरबीन के आविष्कार के बाद हुई। यूरेनस की खोज सन् 1781 में हुई, नेप्च्यून की सन् 1846 में और प्लूटों की सन् 1930 में।
- सूर्य के परिवार, अर्थात ग्रहों, उपग्रहों, धूमकेतु, उल्काएं, एस्टेरॉयड आदि को संयुक्त रूप से सौर मण्डल कहते हैं।
- सौर मण्डल की उत्पत्ति नेब्यूला से हुई है।
- सौरमण्डल में कुल 8 ग्रह है।
- सूर्य में बढ़ते हुए दूरी के क्रम में ग्रह, बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, ब्रहस्पति, शनि, अरूण तथा वरूण है।
- यम को ग्रहों की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
पिछले कुछ वर्षों में खगोलशास्त्रियों ने अनेक परीक्षणों से दसवें ग्रह के अस्तित्व का अनुमान लगाया है। लेकिन अभी तक इसकी खोज नहीं हो पाई है। निकट भविष्य में खगोलविद् इसका पता लगा लेंगे।
बुध
सूर्य के सबसे पास का एक छोटा सा ग्रह है। यह इतना छोटा है कि कुछ ग्रहों के उपग्रह भी इससे बड़े हैं। बुध आकाश में बहुत नीचे है, इसलिए इसको देख पाना आसान नहीं है। इस ग्रह को सूर्यास्त के तुरंत बाद या सूर्योदय से पहले देखा जा सकता है।
बुध अपनी धुरी पर 58.7 दिन में एक चक्कर लगाता है। सूर्य के चारों और चक्कर लगाने में इसे 88 दिन लगते हैं। यह सबसे तीव्र वेग से घूमने वाला ग्रह है।
- सूर्य से सबसे निकटतम ग्रह।
- सूर्य की परिक्रमा 87 दिन 23 घंटे में।
- बुध का एक दिन पृथ्वी के 90 दिनों के बराबर।
- परिणाम में पृथ्वी का 18वां भाग।
- बुध पर वायु मण्डल का अभाव है।
- बुध के सबसे पास गुजरने वाला ग्रह – मैरिनर।
यह एक ऐसा ग्रह है, जिसकी सूर्य से दूरी हमेशा समान नहीं रहती, क्योंकि इसका लंबा, पतला परिक्रमा पथ नीबू के आकार जैसा है। बुध बहुत धीरे घूमता है। वहां का एक दिन हमारी पृथ्वी के 59 दिनों के बराबर होता है। इस ग्रह का एक हिस्सा सूर्य के निकट काफी लंबे समय तक रहता है, इसलिए सूर्य की भीषण गर्मी के कारण वहां दिन का तापमान 350° सेल्सियस से भी अधिक हो जाता है। इस तापमान पर टिन और लैड पिघल जाते हैं। ग्रह का दूसरा हिस्सा जिस पर रात होती है, अपेक्षाकृत बहुत ठंडा होता है। वहां का तापमान -170° सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
सन् 1974 में स्पेस प्रोब मैरिनर 10 से प्राप्त चित्रों से पता चला कि यह ग्रह चंद्रमा जैसा है, जिस पर चट्टानें और खड्डें हैं। वहा जल का नामो-निशान नहीं है। बुध का कोई उपग्रह नहीं है और न वहां कोई वायुमंडलीय गैस है।
बुध सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य से औसत दूरी | 0.39 au |
पृथ्वी से निकटतम दूरी | 0.54 au |
ग्रह का एक दिन | पृथ्वी के 58 दिन 15 घंटे |
ग्रह का एक वर्ष | पृथ्वी के 88 दिन |
व्यास | 4,880 किमी. |
द्रव्यमान | पृथ्वी के द्रव्यमान से 0.06 गुना |
सतह का तापमान | दिन में 350° सेल्सियस, रात में 170° सेल्सियस |
गुरूत्वाकर्षण | 0.38 |
पानी के आधार पर घनत्व | 5.5 |
शुक्र
संध्या के समय आपने आकाश में एक बहुत चमकीला तारा देखा होगा। यह तारा सुबह भी नजर आता है। इसे भोर का तारा कहते हैं। लेकिन यह तारा नहीं, बल्कि पृथ्वी का निकटतम ग्रह शुक्र है। दूरबीन से देखने पर शुक्र हमारे चंद्रमा की तरह लगता है। यह सबसे चमकीला ग्रह है।
- सूर्य से दूसरा ग्रह तथा पृथ्वी से सर्वाधिक नजदीक ग्रह है।
- सबसे अधिक चमकीला ग्रह कहा जाता है। क्योंकि प्रात: यह पूर्व में और सायं यह पश्चिम में दिखाई देता है।
- सर्वाधिक लम्बे दिन व रात होते हैं।
- आकार और द्रव्यमान में पृथ्वी के बराबर और स्वरूप में समान होने के कारण पृथ्वी को जुड़वां बहन कहा जाता है।
- वायु मण्डल का घनत्व पृथ्वी के वायुमण्डल की अपेक्षा 15 गुना है।
स्पेस प्रोब्स द्वारा शुक्र के संबंध में अनेक नए तथ्य सामने आए हैं। शुक्र सबसे अधिक गर्म ग्रह है। भूमध्य रेखा पर इसका तापमान 480° सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस तापमान पर लैड, टिन और जिंक, सभी पिघल जाते हैं। हमारी पृथ्वी पर बादल अधिक-से-अधिक 15 किमी. ऊपर जाते हैं, लेकिन शुक्र के बादल 55 किमी. ऊचाई तक पहुंचते हैं। ऊपरी सतह पर शुक्र के बादलों का तापमान 35° सेल्सियस तक घट जाता है। यह लाल तपता हुआ ग्रह, बर्फ के बादलों से लिपटा हुआ है।
शुक्र के वायुमंडल में 90-95 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड है। कुछ हाइड्रोजन और जल वाष्प भी है। इसका दाब पृथ्वी के वायुमंडल के दाब से 100 गुना अधिक है। अंतरिक्ष यात्री शुक्र की हवा में सांस लेकर जीवित नहीं रह सकता और न ही वहां की गर्मी को सहन कर सकता है।
रेडियों तरंगों द्वारा ज्ञात हुआ है कि शुक्र पर पर्वत और घाटियां भी हैं। इसका कोई उपग्रह नहीं है। इस ग्रह पर सूर्य पश्चिम में उगता है तथा पूर्व में डूबता है।
शुक्र सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य से औसत दूरी | 0.72 au |
पृथ्वी से निकटतम दूरी | 0.27 au |
ग्रह का एक दिन | पृथ्वी के 243 दिन |
ग्रह का एक वर्ष | पृथ्वी के 224.7 दिन |
व्यास | 12,104 किमी. |
द्रव्यमान | पृथ्वी के द्रव्यमान से 0.82 गुना |
सतह का तापमान | 480° सेल्सियस |
गुरूत्वाकर्षण | पृथ्वी की तुलना में 0.88 |
पानी के आधार पर घनत्व | 5.25 |
वायुमंडल की प्रमुख गैस | कार्बन-डाइ-आक्साइड |
पृथ्वी
पृथ्वी, जिस पर हम रहते हैं, सूर्य के परिवार का तीसरा ग्रह है। सौर मंडल का यही एक मात्र ग्रह है जिस पर जीवन का अस्तित्व है। अन्य ग्रहों की भांति यह भी सूर्य का चक्कर लगा रही है। पृथ्वी अपनी धुरी पर भी धूम रही है। इस धुरी का एक सिरा उत्तरी ध्रुव कहलाता है और दूसरा दक्षिणी ध्रुव। पृथ्वी के आधे हिस्से पर जहां सूर्य का प्रकाश पड़ता है, वहां गर्मियों का मौसम रहता है और दूसरे हिस्से में इन दिनों सर्दी होती है। इस प्रकार पृथ्वी पर मौसम बदलते रहते हैं।
पृथ्वी (नीला ग्रह)
- आकार में पृथ्वी का स्थान पांचवां है।
- आकार और बनावट में पृथ्वी, शुक्र ग्रह के समान है।
- अन्तरिक्ष से देखने पर पृथ्वी का रंग पानी व वायुमण्डल के कारण नीला दिखता है।
- पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चन्द्रमा है।
सन् 1961 में सेवियत अंतरिक्ष यात्री, यूरी गगारिन ने अंतरिक्ष यान, वोस्तोव पर सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा की और अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखा। अंतरिक्ष या चंद्रमा से पृथ्वी को देखने पर हरा-भरा थल और महासागरों का नीला जल दिखता है, वैसे ही जैसे ग्लोब पर दिखाया जाता है। पृथ्वी के बहुत से भाग सफेद बादलों के नीचे छिपे होने के कारण अंतरिक्ष से दिखाई नहीं देते।
पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चंद्रमा है, जो पृथ्वी की परिक्रमा करता है। वास्तव में सभी उपग्रह अपने अपने ग्रह की परिक्रमा करते हैं।
पृथ्वी सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य से और दूरी | 100 |
ग्रह का एक दिन | 23 घंटे 56 मिनट 4.09 सेकंड |
ग्रह का एक वर्ष | 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 45.51 सेकंड |
व्यास | 12,756 किमी. |
सतह का क्षेत्रफल | 510,065,600 वर्ग किमी. |
द्रव्यमान | 5.96 × 1012 किग्रा. |
सतह का तापमान | 22° सेल्सियस |
गुरूत्वाकर्षण | 6.67 × 10-11 न्यूट्रान मी.2/किग्रा. |
घनत्व | 5.5 × 103 किग्रा./m3 सर्वाधिक घनत्व |
वायुमंडल की प्रमुख | गैसें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन उपग्रह। |
चन्द्रमा
चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। खगोलशास्त्रियों, के अनुसार पृथ्वी और चन्द्रमा, दोनों का निर्माण अलग-अलग हुआ, लेकिन एक ही समय में हुआ, जो बाद में ठंडे होकर ग्रह और उपग्रह बने। चंद्रमा से अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा लगाए गए चट्टानों और मिट्टी के नमूनों से ज्ञात हुआ कि चंद्रमा भी उतना ही पुराना है जितनी पृथ्वी और यह लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व बना था।
पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी 384,400 किमी. है। इसकी सतह का क्षेत्रफल 37940,000 वर्ग किमी. है। चंद्रमा की सतह पर छोटे-बड़े असंख्य गड्ढे हैं। ये गडढे उल्कापिंडों के गिरने के कारण बने हैं। चंद्रमा के पहाड़ ऊँचे हैं, लेकिन उनकी चढ़ाइयां ढलवां है। वहां चोटियां नहीं है, न ही सीधी खड़ी ढलानें हैं। चंद्रमा पर न तो पानी है, न ही हवा, इसलिए वहां जीवन भी नहीं है। वहां दिन एकाएक निकलता है और इसी प्रकार रात भी एकाएक होती है। हवा न होने के कारण वहां कोई ध्वनि भी नहीं है। चंद्रमा का गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण का 1/6 है। यदि आप पृथ्वी पर एक मीटर उछलते हैं, तो चंद्रमा की सतह पर 6.05 मीटर उछलेंगे। इसी प्रकार वजन पर भी प्रभाव पड़ता है। चंद्रमा की सतह पर किसी भी वस्तु का भार छठा हिस्सा हो जाता है। वहां का तापमान दिन में 120° सेल्सियस और रात में घटकर –160° सेल्सियस हो जाता है। 20 जुलाई, 1969 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने चंद्रमा पर पहुंचकर अनेक अध्ययन किए।
- व्यास- पृथ्वी के व्यास का लगभग एक चौथाई (3776 किमी.)।
- गुरूत्वाकर्षण बल– पृथ्वी का 1/6 भाग।
- चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों और घूमने की अवधि 27 दिन, 7 घण्टे, 43 मिनट।
- चन्द्रमा के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में लगाने वाला समय 3 सेकण्ड।
सूर्य, चंद्रमा की एक ही सतह को चमकता है, इसकी दूसरी सतह अंधेरे में रहती है। यह 27.3 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। चंद्रमा का अपना प्रकाश नहीं है। उस पर सूर्य की किरणे पड़ती हैं, इसलिए हम उसे देख पाते हैं, चन्द्रमा सदा एक जैसा नहीं दिखता। महीने भर के दौरान उसका आकार बदलता जाता है तब हमें बिलकुल नहीं दिखता। जब सूर्य पृथ्वी की दूसरी ओर होता है तब हमे पूरा चांद दिखता है।
जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो चंद्रग्रहण होता है। ऐसी स्थिति केवल पूर्णिमा के दिन ही होती है। अर्थात चंद्र ग्रहण केवल किसी पूर्णिमा को होता है।
समुद्रों में ज्वार चंद्रमा में खिंचाव के कारण आते हैं। यद्यपि सूर्य भी इसके लिए उत्तरदायी है, लेकिन चंद्रमा सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी के निकट होने के कारण ज्वारों पर अधिक प्रभाव डालता है।
लेसर किरणों की सहायता से चंद्रमा की दूरी 3,84,00 किमी. मापी गई जिसमें केवल 15 सेमी. की त्रुटि है।
चन्द्रमा पर सबसे बड़े गडढ़े का व्यास 232 किमी. है जिसकी गहराई 365.7 मीटर है। इससे एकत्रित की गई चट्टानों में एल्युमिनियम, लोहा, मैग्नीशियम आदि है। यहां सिलीकेट्स भी है।
चंद्रमा का व्यास 3476 किमी. है। चंद्रमा, पृथ्वी की तुना में 81.3 गुना भारी है और चंद्रमा से 49 गुना आयतन में बड़ा है।
मंगल
सूर्य से दूरी के अनुसार मंगल चौथा ग्रह है। आकार में यह हमारी पृथ्वी से लगभग आधा है। अनुकूल अवस्था में यह चमकीला लाल नजर आता है, इसलिए इसे लाल ग्रह भी कहते हैं। मंगल अपनी धुरी पर पृथ्वी के समान ही झुका हुआ है। इसके ध्रुवीय क्षेत्र बारी-बारी से सूर्य के सामने आते हैं जिनसे प्रत्येक गोलार्द्ध में गर्मी और सर्दी के मौसम आते हैं। यहां के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड में बादल है।
मंगल ग्रह (लाल ग्रह)
- सूर्य से चौथा ग्रह सूर्य की परिक्रमा- 1 वर्ष, 321 दिन, तथा आकार में अण्डाकार।
- रासायनिक संघटक– कार्बन डाइआक्साइड (95 प्रतिशत), 2-3 प्रतिशत नाइट्रोजन, लगभग 2 प्रतिश आर्गन कुछ मात्रा में बर्फ जलवायु, अमोनिया तथा मीथेन।
- मंगल का सबसे ऊँचा पर्वत ज्वालामुखी-निक्स ओलम्पिया।
- मंगल को दो उपग्रह– फोबोस तथा डिमोरन।
- मेरिनर 9 मंगल ग्रह का अंतरिक्ष अभियान।
- Asteriod Belt मंगल व ब्रहस्पति क बीच।
- Asteroid (क्षुद्र ग्रह) मिलते हैं।
मंगल और वहां के लोगों के बारे में अनेक कहानियां लिखी गई हैं और फिल्में भी बनी हैं, लेकिन अंतरिक्ष खोजों से पता चला कि वहां किसी किस्म का जीवन नहीं है।
स्पेस प्रोब मैनियर 9 से प्राप्त चित्रों से ज्ञात हुआ है कि मंगल पर गहरे खड्डें धूल भरी घाटियां और ऊँचे उठे हुए भाग हैं। पृथ्वी की तुलना में वहां ज्वालामुखी पर्वत अधिक है। मंगल पर एवरेस्ट की चोटी से लगभग तीन गुना ऊँचा एक ज्वालामुखी पर्वत निक्स ओलम्पिया है। यह मंगल की सतह से 24 किमी. ऊँचा उठा हुआ है, उसमें 65 किमी. लंबी विशाल बर्फ की गुफाएं हैं।
सन् 1976 में वाइकिंग स्पेस प्रोब्स (वाइकिंग-1 और वाइकिंग-2) मंगल पर भेजे गए, जिनका उद्देश्य मंगल पर जीवन की संभावनाओं का पता लगना था। लेकिन इनकी खोजों से ज्ञात हुआ कि मंगल पर किसी प्रकार का जीवन नहीं है। मंगल पर किसी जीव का न होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि वहां का तापमान, पानी के हिमांक से ऊंचा नहीं उठता। मंगल पर पानी नहीं है। मंगल के दो छोटे उपग्रह हैं- फोबोस और डेसीमोस।
मंगल सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य और औसत दूरी | 1.52 au |
पृथ्वी से निकटतम दूरी | 0.38 au |
ग्रह का एक दिन | पृथ्वी के 24 घंटे और 37 मिनट |
ग्रह का एक वर्ष | पृथ्वी के 687 दिन |
व्यास | 6,795 किमी, |
द्रव्यमान | पृथ्वी के द्रव्यमान से 0.11 गुना |
सतह का तापमान | -23° सेल्सियल |
गुरूत्वाकर्षण | पृथ्वी से 8.38 गुना |
पृथ्वी की तुलना में घनत्व | 3.94 |
वायुमंडल की प्रमुख गैस | कार्बन डाइऑक्साइड |
उपग्रह | 2 |
बृहस्पति
बृहस्पति सौर परिवार का सबसे बड़ा ग्रह है। हमारी 318 पृथ्वियां बृहस्पति में समा सकती हैं। बृहस्पति, गैसों से बना एक गृह है। इसमें तारा और ग्रह, दोनों की विशेषताएं पाई जाती हैं। सभी ग्रह सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करते हैं, लेकिन बृहस्पति लंबी वेब लेंथों में अपनी रेडियो ऊर्जा को विस्फोट के द्वारा फैलाता रहता है। सूर्य के बाद सौर मंडल में सबसे अधिक शक्तिशाली रेडियो तरंगें इसी की हैं।
इसके वायु मंडल में अधिकांशत: हाइड्रोजन और हीलियम है। मीथेन और अमोनिया भी वहां मौजूद है। बृहस्पति का वायुमंडल हमारी आदिकालीन पृथ्वी जैसा है। हाइड्रोजन, मीथेन, अमोनिया और पानी, जिनसे पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ हुआ था, संभव है कि बृहस्पति में भी जीवन की ऐसी ही प्रक्रिया की शुरूआत हो। चुकी है।
- सूर्य से पांचवाँ ग्रह, सूर्य की परिक्रमा 11 साल 315 दिन, 1 घंटा।
- सौरमण्डल का सबसे बड़ा ग्रह।
- बृहस्पति गृह के 28 उपग्रह है। जिनमें गैनिमीड, कैलिस्टो, आयो, यूरोपा प्रमुख हैं। गैनिमीड, सौरमण्डल का सबसे बड़ा उपग्रह है।
- बृहस्पति को समान लाल धब्बे की खोज पायनियर अंतरिक्ष अभियान द्वारा हुयी थी।
- सबसे भारी ग्रह एवं इसका पलायन वेग सर्वाधिक (59-64 किमी/सें-) है।
सन् 1973 के अंत में पहला स्पेस प्रोब पॉयनियर 10 बृहस्पति तक पहुंचा। इनके अनुसंधानों से पता चला कि बृहस्पति पर चुंबकीय क्षेत्र है। वैज्ञानिकों के लिए इस चुंबकीय क्षेत्र से आती हुई तरंगें अभी तक रहस्य बनी हुई हैं। वैज्ञानिकों को ऐसा विश्वास है कि बृहस्पति पर कहीं जीवन मौजूद है।
सन् 1979 में वॉयेजर-1 और वॉयेजर-2 बृहस्पति के पास से गुजरे। बृहस्पति का सबसे नजदीकी चित्र उस ग्रह से 18 लाख किमी. की दूरी से खींचा गया। ग्रह के इर्द-गिर्द 30 किमी. मोटे छल्ले का भी पता चला। उसे एक उपग्रह आयो पर ज्वालामुखियों तथा गंधक और ऑक्सीजन जैसे तत्वों की मौजूदगी का ज्ञान हुआ। बृहस्पति का एक अन्य उपग्रह यूरोपा जो हमारे चंद्रमा के आकार का है, बर्फ से ढका हुआ है। कुछ स्थानों पर तो बर्फ की सतह 100 किमी. तक मोटी है।
बृहस्पति हमेशा बादलों में घिरा रहता है। ग्रह के चारों ओर 5 चमकीली पट्टियां और चार गाढ़ी भूरी पट्टियां दिखाई देती हैं। ग्रह पर एक अंडाकार रहस्यमय लाल धब्बा नजर आता है। यह आकार में पृथ्वी से तीन गुना बड़ा है। यह एक अंतहीन तूफान है, जो इस ग्रह का स्थाई अंग लगता है। यह बृहस्पति के 40,000 किमी. लंबे और 4000 किमी. चौड़े क्षेत्र को ढके हुए हैं।
बृहस्पति के 16 उपग्रह हैं।
वृहस्पति सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य से औसत दूरी | 5.20 au |
पृथ्वी से निकटतम दूरी | 3.95 au |
ग्रह का एक दिन | पृथ्वी के 9 घंटे 50 मिनट |
ग्रह का एक वर्ष | पृथ्वी के 11.86 वर्ष |
व्यास | 1,42,800 किमी. |
द्रव्यमान | पृथ्वी के द्रव्यमान से 317.9 गुना |
सतह का तापमान | -150° सेल्सियस |
पृथ्वी की तुलना में गुरूत्वाकर्षण | 2.64 |
पानी के आधार पर घनत्व | 1.33 |
छल्लों की संख्या | 1 |
उपग्रह | 16 |
सूर्य से दूरी के अनुसार शनि छठा ग्रह है। यह ग्रहों में सबसे अधिक सुन्दर है। अपने पड़ोसी बृहस्पति की भांति यह भी गैस के गोले के समान है, लेकिन आकार में कुछ छोटा है। हमारी 95 पृथ्वियां इसमें समा सकती हैं। हाइड्रोजन और हीलियम के इस विशाल ग्रह के छल्लों ने इसे और भी रहस्यात्मक बना दिया है। ये छल्ले लगभग 275,000 किमी. तक फैले हैं और ग्रह के चारों और घूम रहे हैं। सन् 1980 में वॉयेजर-1 और वॉयेजर-2 अंतरिक्ष यानों द्वारा पता चला कि ये घूमते हुए छल्ले असंख्य कणों में बने हैं। वॉयेजरों ने इन कणों को मापने में हमारी मदद की है। इन कणों के व्यास कुछ सेंटीमीटर से 8 मीटर तक पाए गए हैं। छल्लों की संख्या 1000 से भी अधिक हैं।
- आकाश में सौरमण्डल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह।
- टाइटन- कैसिनी ह्यूजेन्स मिशन – टाइटन उपग्रह से संबंधित खोज।
- शनि की सबसे बड़ी विशेषता है : इसके चतुर्दिक वलय जिनकी संख्या-10 है।
- रासायनिक संगठन मुख्यत: हाइड्रोजन और हिलियम गैस, कुछ मात्रा में मीथेन और अमोनिया।
- शनि के उपग्रह – 31 हैं।
- टाइटन शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है, जो बुध के बराबर है। टाइटन पर नाइट्रोजनीय वातावरण और हाइड्रोकार्बन मिले हैं।
- शनि के अन्य मुख्य उपग्रहों के नाम – मीमास, एनसीलग्डू, टेथिस, रीया, फोवे आदि।
- सबसे कम घनत्व वाला ग्रह (7) है।
नोट:
- फोवे, शनि की कक्षा में घूमने के विपरीत परिक्रमा करता है।
- शनि आंखों से देखा जाने वाला अन्तिम ग्रह है।
बृहस्पति की तरह शनि में भी एक लाल धब्बा है, लेकिन यह अपेक्षाकृत बहुत छोटा है। इसमें सफेद अंडाकार और पट्टीनुमा हल्क और घने बादल हैं। शनि पर बहुत तेज हवाएं चलती हैं, जिनका वेग लगभग 1760 किमी. प्रति घंटा होता है। इसकी सतह का तापमान –180° सेल्सियस है।
अभी तक शनि के 21 उपग्रह ज्ञात हैं, ये बर्फ से बने लगते हैं। इसके सबसे बड़े उपग्रह टाइटन में वायुमंडल के होने का अनुमान है। यह उपग्रह, बुध ग्रह से भी बड़ा है।
शनि सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य से औसत दूरी | Au |
पृथ्वी से निकटतम दूरी | Au |
ग्रह का एक दिन | पृथ्वी के 10 घंटे 14 मिनट |
ग्रह का एक वर्ष | पृथ्वी के 29.46 वर्ष |
व्यास | 120,000 किमी. |
द्रव्यमान | पृथ्वी की तुलना में 95.2 गुना |
सतह का तापमान | -180° सेल्सियस |
गुरूत्वाकर्षण | 1.15 |
पानी के आधार पर घनत्व | 0.71 सबसे कम घनत्व |
वायुमंडल की प्रमुख गैसें | हाइड्रोजन, हीलियम |
छल्लों की संख्या | 1000 से अधिक |
उपग्रह | 21 |
यूरेनस
सर विलियम हर्शल ने मार्च, 1781 में यूरेनस की खोज की थी। बृहस्पति और शनि से यूरेनस काफी छोटा है, लेकिन पृथ्वी से काफी बड़ा। इसमें हमारी 15 पृथ्वियां समा सकती हैं। दूरबीन से देखने पर यूरेनस हरे रंग का दिखाई देता है। इस ग्रह का अधिकांश भाग मीथेन गैस से बना है। यह एक ठंडा ग्रह है, जिसकी सतह का तापमान –210° सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
सन् 1977 में खगोलशास्त्रियों को पता चला के यूरेनस के चारों ओर धुंधले छल्ले हैं। ये सभी छल्ले 64000 किमी. की सीमा के अंदर हैं। यह वह सीमा है, जिसके अंदर अपने ज्वारीय बलों से एक विशाल उपग्रह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा।
यूरेनस, पृथ्वी के 84 वर्षों से सूर्य का एक चक्कर लगाता है और वहां का एक दिन पृथ्वी के 10 घंटे 49 मिनट के बराबर होता है।
यूरेनस के पांच उपग्रह हैं। मिरांडा, एरियल, अम्ब्रायल, टिटेनिया और ओबेरान।
यूरेनस सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य से औसत दूरी | 91.18 au |
पृथ्वी से निकटतम दूरी | 17.28 au |
ग्रह का एक दिन | पृथ्वी के 10 घंटे 49 मिनट |
ग्रह का एक वर्ष | पृथ्वी के 84.01 वर्ष |
व्यास | 50,800 किमी. |
द्रव्यमान | पृथ्वी की तुलना में 14.6 गुना |
सतह का तापमान | -210° सेल्सियस |
गुरूत्वाकर्षण | 1.17 |
पानी के आधार पर घनत्व | 1.7 |
वायुमंडल की प्रमुख गैसें | हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन |
छल्लों की संख्या | 9 |
उपग्रह | 5 |
नेप्च्यून
सन् 1849 में खगोलशास्त्रियों, एडम्स और लवेरियर ने नेप्च्यून ग्रह का पता लगाया था। यह हरे रंग का ठंडा ग्रह है, जिसकी सतह का तापमान लगभग –220° सेल्सियस रहता है। नेप्च्यून में हमारी 17 पृथ्वियां समा सकती हैं। ऐसा अनुमान है कि यूरेनस की तरह नेप्च्यून के चारों ओर भी छल्ले हैं, लेकिन अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिल सका। नेप्च्यून का एक दिन पृथ्वी के 18 घंटे 26 मिनट के बराबर है तथा वहां का एक वर्ष पृथ्वी के 164.8 वर्षों के बराबर होता है।
- सूर्य से आठवां ग्रह।
- आकाश में सौरमण्डल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह।
- इस ग्रह के चारों तरफ 5 वलय है।
- कुल उपग्रह 11 हैं।
- पहला उपग्रह ट्रिटोन हैं, दूसरा नेरिड है, अन्य उपग्रह हैं N1, N-2, N-1, N-3, N-4 आदि।
नेप्च्यून के दो उपग्रह हैं ट्रिटेन और नेरीड। ट्रिटेन अपेक्षाकृत प्लूटो से बड़ा है। इसका व्यास 3700 किमी. है।
नेप्च्यून सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य से औसत दूरी | 30.06 au |
पृथ्वी से निकटतम दूरी | 28.80 au |
ग्रह का एक दिन | पृथ्वी के 18 घंटे 26 मिनट |
ग्रह का एक वर्ष | पृथ्वी के 164.8 वर्ष |
व्यास | 48,500 किमी. |
द्रव्यमान | पृथ्वी की तुलना में 17.2 गुना |
सतह का तापमान | -220° सेल्सियस |
गुरूत्वाकर्षण | 1.2 |
पानी के आधार पर घनत्व | 1.77 |
वायुमंडल की प्रमुख गैसें | हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन |
उपग्रह | 2 |
प्लूटो
नेप्च्यून की खोज के बाद खलोगशास्त्री ने सोचा कि अभी एक और ग्रह भी है जो इससे काफी दूर है। आखिर सन् 1930 में प्लूटो का पता चल ही गया। इसे खोजने का श्रेय क्लायडे विलियम टौमबॉध को जाता है। यह ग्रह बुध से थोड़ा छोटा है। यहां सूर्य लगभग [latex]6\frac { 1 }{ 2 }[/latex] घंटे ही चमकता है। यह बहुत ठंडा ग्रह है। यहां का तापमान -230° सेल्सियस है। ग्रह से सूर्य किसी चमकीले तारे की भांति दिखता है, क्योंकि यह सूर्य से 59000 लाख किलोमीटर दूर है।
प्लूटो पर हवा नहीं है। यह एक चट्टानी गोला है। अंतरिक्ष यात्री यहां उतर सकता है, लेकिन सर्द से बचने के लिए उसे स्पेस सूट पहनना पड़ेगा और सांस लेने के लिए हवा की भी व्यवस्था करनी होगी।
प्लूटों का एक उपग्रह है। इसका कक्ष नेप्च्यून की कक्षा को अंतर्विभाजित करता है, इसलिए ऐसा सोचा जाता है कि ये नेप्च्यून से निकला हुआ उपग्रह है।
ग्रहों से संबंधित मुख्य विशेषताएं
- सर्वाधिक बड़ा – बृहस्पति
- सर्वाधिक छोटा – बुध
- सर्वाधिक गर्म तथा सूर्य के सबसे नजदीक – बुध
- सर्वाधिक ठंडा तथा सर्वाधिक दूर – यम
- सर्वाधिक चमकीला – शुक्र
- ग्रहों में सर्वाधिक उपग्रह – शनि
- सौर मण्डल का सबसे बड़ा उपग्रह – गैनिमीड
- वे ग्रह, जिनके उपग्रहों की संख्या शून्य है – बुध व शुक्र
- वह ग्रह, जिसके उपग्रहों की संख्या एक है – पृथ्वी
- शुक्र और यूरेनस को छोड़कर सभी ग्रहों के घूर्णन और परिक्रमा की दिशा एक ही रहती है। शुक्र और यूरेनस अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की ओर घूर्णन करते हैं।
- बुध, शुक्र हीन या क्षुद्र ग्रह हैं।
- बुध, शुक्र पृथ्वी व मंगल – आन्तरिक ग्रह हैं।
- बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्चून व प्लूटो – बाह्य ग्रह हैं
प्लूटो सम्बन्धी आंकड़े | |
सूर्य से औसत दूरी | 39.44 au |
पृथ्वी से निकटतम दूरी | 28.72 au |
ग्रह का एक दिन | पृथ्वी के 6 दिन 9 घंटे |
ग्रह का एक वर्ष | पृथ्वी के 247.7 वर्ष |
व्यास | 3,000 किमी. |
द्रव्यमान | पृथ्वी की तुलना में 0.002-0.003 गुना |
सतह का तापमान | -230°C |
वायुमंडल की प्रमुख गैसें | मीथेन |
उपग्रह | 1 |
छुद्र ग्रह
ग्रह और उनके चंद्रमा और परिवार के बड़े सदस्य हैं। इनके अलावा कुछ नन्हें सदस्य भी हैं, जिन्हें छुद्र ग्रह कहते हैं। मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच की पट्टी से सबसे अधिक छुद्र ग्रह है। सूर्य से इनकी दूरी 2.2-3.3 au है। ये भी सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि इस पट्टी में 40,000 से 50,000 तक छुद्र ग्रह हैं। इनमें से अधिकांश इतने छोटे हैं कि प्रचलित तरीकों से उनका व्यास भी नहीं मापा जा सकता। इनमें सबसे बड़ा सेरेज है, जिसका व्यास 1003 से 1040 किमी. है। इसकी खोज सन् 1801 में हुई थी। केवल एक ही छुद्र ग्रह ऐसा है, जो बिना दूरबीन के दिखाई पड़ता है, वह है 4 वेस्ता, जिसका व्यास 555 किमी. है। जिस छुद्र ग्रह की दूरी पृथ्वी के सबसे निकट आने पर नापी गई, वह है हमीज। पृथ्वी से इसकी दूरी 780,000 किमी. या 0.006 au थी। यह अब लुप्त हो गया है।
कोई नहीं जानता कि छुद्र ग्रह कैसे बने। कुछ लोगों का अनुमान है कि ये किसी ग्रह के टुकड़े हैं जो कभी मंगल और बृहस्पति के बीच में स्थित रहा होगा। ऐसा भी कहा जाता है कि ये मंगल और बृहस्पति ग्रह के ही टूटे हुए हिस्से हैं। कुछ छुद्र ग्रह धूमकेतु के भी टुकड़े हो सकते हैं।
उल्का और उल्कापिंड
कभी-कभी रात के समय आकाश में कोई चमकता बिंदु, चमकीली रेखा खींचता हुआ गायब हो जाता है। इसे सामान्यतः तारा टूटना कहते है। लेकिन तारे तो कभी टूटते नहीं टूटकर गिरने वाले ये पिंड तारे नहीं बल्कि उल्काएं होती हैं। ये बड़ी तेज गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और हवा में रगड़ खाकर जल उठते हैं। उनका यह जलना ही हमें टूटते तारा जैसा नजर आता है। उल्काएं नहीं सौर परिवार की सदस्य हैं। जब कोई खगोलीय पिंड गति करता हुआ पृथ्वी के पास आता है तो धरती की आकर्षण शक्ति से खिंचकर पृथ्वी की ओर आता है और पृथ्वी पर गिर पड़ता है।
आसमान के गिरी हुई सभी उल्काएं धरती तक नहीं पहुंचती। उनमें से अधिकांश रास्ते में ही हवा की रगड़ से जलकर नष्ट हो जाती हैं या भाप और राख बन जाती हैं, लेकिन जब कोई उल्का पूरी तरह नहीं जल पाती और धरती पर गिर जाती है तब उसके अवशेष को उल्कापिंड कहते हैं।
चंद्रमा, मंगल और बुध ग्रहों पर उल्कापिंडों के गिरने से ही गड्ढ़े बन गए हैं। पृथ्वी पर सबसे बड़ा गढ्डा जो उत्तरी ऐरिजोना में है, शायद उल्कापिंड के टकराने से बना। 1265 मीटर व्यास के इस क्रेटर की गहराई 175 मीटर है। यह गड्ढ़ा लगभग 25,000 वर्ष पहले बना था।
ऐसा अनुमान है कि प्रतिदिन साढ़े सात करोड़ उल्काएं पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं। इनकी गति 35-95 किमी. प्रति सेकण्ड होती है। एक साधारण उल्का को भाप बनने में लगभग एक सेकंड का समय लगता है। हर साल लगभग 500 उल्कापिंड पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं। सबसे बड़ा उल्का पिंड जो धरती पर गिरा उसका भार 37 टन था। उल्का पिंड तीन प्रकार के होते है। धूमकेतु जैसे, पत्थर जैसे और आग की गेंदनुमा जैसे। अधिकांश उल्कापिंड पत्थर, लोहा, निकल और दूसरे तत्वों से मिलकर बने हैं।
आकाशीय पिंड |
|
सबसे बड़ा उल्कापिंड दक्षिण पश्चिम अफ्रीका में ग्रुटफॉण्टीन के पास होबा वेस्ट में सन् 1920 में पाया गया था। इसका वजन 60,000 किग्रा. है। यह प्रागौतिहासिक काल में कभी गिरा था।
कोलकाता के अजायबघर में कुछ उल्कापिंड दर्शकों के लिए रखे हुए हैं। अमेरिका के विभिन्न अजायबघरों में 672 उल्कापिंड रखे हुए हैं।
धूमकेतु
धूमकेतु ऐसे खगोलीय पिंड हैं, जिनकी धुएं जैसी लंबी चमकदार पूंछ होती है। इनको पुच्छल तारा भी कहते है। पहले लोग इनको देखकर भयभीत हो जाया करते थे। वे इनको विनाश का सूचक समझते थे। लेकिन अब लोगों को इनके रहस्य का पता चल गया है और अब वे ऐसा नहीं समझते।
धूमकेतु सौर परिवार के अनेक आकाशीय पिंडों की तरह है। पृथ्वी की भांति इनका भी एक निश्चित पथ है, लेकिन इनका आकार भिन्न होता है। ऐसा अनुमान है कि 100 वर्ष में लगभग 1000 धूमकेतु होते हैं, जिनको बगैर दूरबीन के देखा जा सकता है। हेली धूमकेतु इनमें सबसे प्रसिद्ध है, जो 76 वर्ष बाद सूर्य के पास से गुजरता है। इसको सबसे पहले इंग्लैण्ड के खगोलविद् एडमंड हेली ने सन् 1682 में देखा था। उन्हीं के नाम पर इसे हेली धूमकेतु कहते हैं। अभी कुछ वर्ष पहले सन् 1986 में इसे देखा गया था। उस समय गिओटी स्पेस प्रोब ने इसके फोटो लिए। अब इसे सन् 2061 में देखा जाएगा। अब तक खोजे गए सभी धूमकेतुओं में हेली सबसे बड़ा है।
धूमकेतु के तीन भाग होते है। नाभि, सिर, तथा पूंछ। नाभि धूमकेतु के सिर का सबसे चकीला भाग है। नाभि का व्यास 100-10,000 मीटर तक हो सकता है। हेली धूमकेतु की नाभि का व्यास लगभग 5,000 मीटर है। अमोनिया, धूल, गैस जैसे अनेक तत्वों से बनी बर्फ की यह दूषित धूल, गैस जैसे अनेक तत्वों से बनी बर्फ की यह दूषित गेंद जो नाभि कहलाती है। प्रकाश को प्रतिबिंबित करती हुए सिर के केंद्र से चमकती हुई दिखाई देती है। नाभि के चारों ओर के भाग को सिर कहते हैं। यह गैस और धूल से बना होता है, जिसका व्यास 2000,000 लाख किमी. से भी अधिक हो सकता है। सिर हाइड्रोजन गैस के बादलों से घिरा रहता है। पूंछ धूमकेतु का खास भाग है। धूमकेतु की पूंछ दो प्रकार की होती है। डस्टटेल जो दस लाख से एक करोड् किमी. लंबी होती है तथा प्लाज्मा टेल यानी अत्यंत गर्म आयोनाइज्ड गैस की पूंछ जो दस करोड़ किमी. लंबी होती है।
धूमकेतु की पूंछ तभी बनती है, जब वह सूर्य के नजदीक आ जाता है। सूर्य का प्रकाश उनके सिर की कुछ गैस को परे ढकेलता है और यही गैस, पूंछ की तरह चमकने लगती है। जैसे ही यह सूर्य के पास आता है, बड़ी तेजी से चक्कर काटते हुए अपनी पूंछ को आगे करते हुए सूर्य से दूर चला जाता है। धूमकेतु की पूंछ हमेशा सूर्य की विपरीत दिशा में होती है।
अंतरिक्ष अन्वेषण
4 अक्टूबर, 1957 को रूस ने पहला उपग्रह स्पूतनिक–1 अंतरिक्ष में भेजा था। इसी दिन को अंतरिक्ष युग की शुरूआत कहा जा सकता है। इसकी सफलता के बाद 3 नवंबर, 1957 को दूसरा उपग्रह स्पूतनिक-2 छोड़ा गया है, जिसमें एक कुतिया लाइका को भेजा गया था। इसक अध्ययन से पता लगा कि मानव भी अंतरिक्ष में जीवित रह सकता है।
1 फरवरी, 1958 को अमेरिका ने अपना पहला उपग्रह एक्सप्लोरर-1 छोड़ा है। इस प्रकार रूस के स्पूतनिक और अमेरिका के एस्सप्लोरर से अंतरिक्ष अभियान का दौर शुरू हो गया।
रूस को मानव युक्त प्रथम उपग्रह वोस्तोक-1 ने 12 अप्रैल, 1961 को पृथ्वी की एक परिक्रमा करने के लिए उड़ान भरी। इसी यान में कर्नल यूरी गगारिन ने सबसे पहले विश्व की परिक्रमा की और अंतरिक्ष से पृथ्वी और आकाश को देखा। ये अंतरिक्ष में जाने वाले पहले व्यक्ति बने।
रूस की लेफ्टिनेंट वेलन्तिना तेरेशकोवा अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने 16 जून, 1973 में वोस्तोक-6 में 2 दिन 22 घंटे 42 मिनट में पृथ्वी की 48 परिक्रमाएं की।
3 जून, 1965 को अमेरिका के जेमिनी-4 के अंतरिक्ष यात्री एडवर्ड व्हाइट बाहर निकलकर 21 मिनट तक अंतरिक्ष में तैरते रहे। अंतरिक्ष में चलने वाले यह पहले व्यक्ति थे।
सन् 1965 में दो व्यक्तियों वाले जेमिनी की उड़ान से एक श्रृंखला की शुरूआत हुई। इस कार्यक्रम के अंतरिक्ष यात्रियों के दल ने चंद्रमा पर भेजे जाने वाले अपोलो अभियान के लिए जोखिम से पूर्ण कलाबाजियों, डाकिंग प्रक्रियाओं और अंतरिक्ष में चलने का अभ्यास किया। इनके बाद चंद्र अभियान में सफलता प्राप्त की गई। कुल मिलाकर चंद्रमा पर 12 लोग गए।
चंद्रमा की यात्रा
तीन व्यक्तियों वाला अपोलो-2 जिसमें चालकों के घूमने-फिरने और यहां तक कि सीधे खड़े होने के लिए काफी जगह थी, 16 जुलाई, 1969 को चंद्रमा के लिए रवाना हुआ। अपोलों के चंद्रमा पर उतरने के संबंध में खास बात यह थी कि उसके चार पैरों वाले लूनर माड्यूल ईगल द्वारा दो व्यक्ति चंद्रमा की धरती को छू सकते थे।
20 जुलाई, 1969 की रात को 10 बजकर 56 मिनट पर लूनर माड्यूल चंद्रमा पर उतरा और नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा की सतह पर अपना पहला कदम रखा। चंद्रमा की धरती पर मानव का यह पहला छोटा-सा कदम था।
नील आर्मस्ट्रांग ने धरती की ओर भेजे गये अपने रेडियो संदेश में कहा आदमी का यह नन्हा-सा कदम संपूर्ण मानवता के लिए एक बहुत बड़ी छलांग है। इसके बाद एडविन एल्ड्रिन भी चंद्रमा की धरती पर उतर आए। माइकल कोलिस के आदेशानुसार यान के अंदर चंद्रमा की सतह पर गुजारे। आर्मस्ट्रांग चांद की धरती पर सवा दो घंटे तक घूमते रहे, एल्ड्रिन इनसे कुछ कम समय तक घूमे। इस दौरान इन्होंने 20 किग्रा. से ज्यादा चट्टानें और मिट्टी एकत्र की। इसी अवधि से चंद्रमा की सतह पर एक से रूबी लेसर किरणे भेजी गई जो रिट्रोपरावर्तक से वापस धरती पर प्राप्त की गई। इनसे धरती से चंद्रमा की दूरी मापी गई। मानव के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
इस सफलता के बाद अपोलो कार्यक्रम के दौरान निम्नलिखित व्यक्तियों ने चंद्रमा की यात्रा की। वे 3800 किग्रा. भार की चट्टानें और मिट्टी वहां से ले आए।
अपोलो – 12 कॉनराड, गॉर्डन, बीन 14 नवम्बर, 1969
अपोलो – 14 शेपर्ड, मिचेल. रूजा 31 जनवरी, 1971
अपोलो – 15 स्कॉट, इर्विन, वडॅन 26 जुलाई, 1971
अपोला – 16 यंग, ड्यूक, मैटिंगले 16 अप्रैल, 1972
अपोलो – 17 सर्नन, श्मिट्, इवांस, 7 दिसंबर, 1972
अंतरिक्ष में मानव को भेजने के अमेरिका के कार्यक्रम पर अपोलो-17 के चंद्र अभियान तक कुल अनुमानित खर्च 255.41 करोड़ डॉलर आया था। खर्च को कम करने के लिए अमेरिका ने स्पेस शटल का आविष्कार किया। यह ऐसा अंतरिक्ष यान है जिसका इस्तेमाल वायुयान की तरह बार-बार किया जा सकता है। इसकी गति लगभग 28000 किमी. प्रतिघंटा होती है। 12 अप्रैल, 1981 को पहला स्पेस शटल कोलम्बिया छोड़ा गया। रूस ने इसकी प्रकार का बुरान नामक अंतरिक्ष यान का सितंबर, 1988 में प्रक्षेपण किया जो अपना लक्ष्य पूरा करके सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आया। आज भी स्पेस शटल के अभियान चल रहे यद्यपि दो स्पेस शटल दुर्घटना ग्रस्त हो गए हैं, और उनमें जाने वाले यात्री जान गवां बैठे हैं।
- रासायनिक संगठन- मुख्यतः सिलिकन, लोहा और मैग्निशियम।
- चन्द्रमा पर धवनि नहीं सुनाई देती क्योंकि वहां माध्यम का अभाव है।
- चन्द्रमा का उच्चतम पर्वत लिबनिज पर्वत (35000 फीट)
- पूरे सौरमण्डल में सामान्य उपग्रह से बहुत बड़ा। यह पृथ्वी के आकार का 1/4 है (सामान्य उपग्रह अपने मूल ग्रह के आकाश का 8वां भाग होते हैं।)
- चंद्रमा की पृथ्वी से अधिकतम दूरी 404336 किमी., न्यूनतम दूरी 8 किमी.
- चन्द्रमा की आयु 460 करोड़ वर्ष
सैलेनोग्राफी
- चन्द्रमा को भौतिक भूगोल का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।
- चन्द्रमा का 54 प्रतिशत भाग ही पृथ्वी पर से देखा जा सकता है।
- चन्द्रमा का वह भाग जो पृथ्वी से नहीं दिखता है, सी ऑफ ट्रैन्क्विलिटी कहलाता है।
- चन्द्रमा पर करीब 30,000 क्रेटर हैं क्लैवियस (सबसे बड़ा), टायको, कॉपरनिक्स ये क्रेटर उल्कापातीय तथा ज्वालामुखीय हैं।
- चन्द्रमा, सूर्य की भांति भूमध्य रेखा के संदर्भ में उत्तरायण से दक्षिणायन होता है। चंद्रमा 29°n से 28°s बीच भ्रमण करता है 5 दिनों में, जिसे संयुति मास कहते हैं।
ग्रह और उनके उपग्रह | |
ग्रह | उपग्रह |
मंगल | फोबोस, डेमोस |
पृथ्वी | चंद्रमा |
वृहस्पति | गैनिमीड, यूरोप, इयो, कैलिस्टो, मेटिस, थेबे |
अरूण | मिरांडा, जूलियट |
नेपच्यून | ट्राइटन |
शनि | टाइटन, टेथिस एटलस, पण्डोरा |
घूर्णन
- पृथ्वी एक कल्पित धुरी पर सदैव पश्चिम से पूर्व को घूमती रहती है। पृथ्वी की इसी गति को घूर्णन अथवा आवर्तन गति कहा जाता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर जब एक पूरा चक्कर लगा लेती है तो एक दिन होता है। इसी से इस गति को दैनिक गति भी कहते हैं।
- पृथ्वी जिस धुरी अथवा अक्ष पर घूमती है वह काल्पनिक रेखा है जो पृथ्वी के केन्द्र से होकर उसके उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती है। पृथ्वी का यह अक्ष अपने कक्ष तल के साथ 66 डिग्री अंश का कोण बनाता है। पृथ्वी का यह अक्ष सदैव एक ही ओर झुका रहता है।
- एक मध्यान्ह रेखा के ऊपर किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की पृथ्वी का अक्ष सदैव एक ही ओर झुका रहता है। एक नक्षत्र दिवस की लम्बाई 23 घण्टे 56 मिनट ओर 09 सेकण्ड होती है।
- एक दिन की अवधि की गणना जब किसी निश्चित मध्यान्ह रेखा के ऊपर, मध्यान्ह सूर्य के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच लगने वाले समय के आहार पर की जाती है तो वह सौर दिवस होता है। सौर दिवस की औसत लम्बाई पूरे 24 घण्टे होती है सौर दिवस, नक्षत्र दिवस से 3 मिनट और 56 सेकेण्ड अधिक बड़ा होता है।
- इनका द्रव्यमान इतना हो कि वे बाहरी ग्रहों के प्रभाव से बचने हेतु अपने गुरूत्वाकर्षण के कारण लगभग गोल आकार के हों।
- वे अन्य ग्रहों की कक्षा का अतिक्रमण नहीं करते हैं। (प्लूटों की कक्षा अन्य ग्रहों की तुलना में झुकी हुई है तथा अरूण की कक्षा का अतिक्रमण करती है)
पृथ्वी और सौरमण्डल (कुछ पारिभाषिक शब्द)
- दैनिक गति: पृथ्वी द्वारा अपनी धुरी पर लगाया गया एक चक्कर जो एक दिन होता है।
- वार्षिक गति: पृथ्वी द्वारा अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर लगाया गया एक चक्कर जिसमें उसे 365(1/4) दिन लगते हैं।
- नक्षत्र दिवस: एक मध्यान्ह रेखा के ऊपर किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की अवधि।
- सौर दिवस: किसी निश्चित मध्यान्ह रेखा के ऊपर मध्यान्ह सूर्य के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की अवधि।
- उपसौर: पृथ्वी द्वारा अपनी अण्डाकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा अवधि के क्रम में सूर्य से सबसे अधिक दूरी की स्थिति जो 4 जुलाई को होती है।
- कर्क संक्रांति: पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के क्रम में 22 दिसंबर की स्थिति जब सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् चमकता है।
- विषुव: 21 मार्च और 23 सितंबर की स्थितियां जब सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है, जिसके कारण दोनों गोलार्द्धों में सर्वत्र दिन-रात बराबर होते हैं। 21 मार्च की स्थिति को बसत विषुव और 23 सितंबर वाली स्थिति को शरद विषुव की अवस्था कहा जाता है।
- सिजिगी: सूर्य, चन्द्रमा, और पृथ्वी की एक रेखीय स्थिति।
- वियुति: सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी की स्थिति, जिसके कारण चंद्र ग्रहण होता है।
- युति: सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा की स्थिति, जिसके कारण सूर्य ग्रहण होता है।
- पृथ्वी के धूर्णन के कारण पृथ्वी का प्रत्येक भाग बारी-बारी से सूर्य के सम्मुख आता रहता है, अतः सूर्य के सम्मुख वाले भाग में दिन और पीछे वाले भाग में रात्रि होती है। इस प्रकार दिन-रात का क्रम पृथ्वी की घूर्णन गति का परिणाम है।
- 24 घण्टे की अवधि वाला दिन अस्तित्व में आता है।
- घूर्णन के अक्ष के आधार पर ही अक्षांश एवं देशांतर का निर्धारण किया जाता है।
- पृथ्वी पर भौतिक एवं जैविक प्रक्रियायें प्रभावित होती हैं।
- कोरिआलिस बल की उत्पत्ति होती है जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में जल एवं पवनें अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायी ओर मुड़ जाते हैं।
- महासागरों में ज्वार-भाटा आता है।
परिक्रमा
- पृथ्वी की परिक्रमा का मार्ग अण्डाकार हैं। अत: पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी वर्ष भर एक सी नहीं रहती। जनवरी में यह सूर्य के सबसे निकट होती है। इस समय पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी 470 लाख किमी. होती है। पृथ्वी की इस स्थिति को उपसौर कहते हैं। जुलाई में पृथ्वी सूर्य से अपेक्षा तथा अधिक दूर होती है। इस समय सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 470 लाख किमी. रहती है। अत: पृथ्वी की यह स्थिति अपसौर कहलाती है। अपसौर की स्थिति 4 जुलाई की होती है। पृथ्वी की परिक्रमण गति के निम्न प्रभाव देखे जा सकते हैं-
- सूर्य की किरणों का सीधा और तिरछा चमकना, वर्ष की अवधि का निर्धारण, कर्क और मकर रेखाओं का निर्धारण, ध्रुवों पर 6-6 माह के रात-दिन का होना, धरातल पर ताप-वितरण में भिन्नता, जलवायु कटिबंधों का निर्धारण, दिन रात का छोटा-बड़ा होना।
ऋतु परिवर्तन
- भूमध्य रेखा पर ही सदैव दिन-रात बराबर होते हैं, क्योंकि भूमध्य रेखा को प्रकाश-वृत्त हमेशा दो बराकर भागों में बांटता हैं। परन्तु चूंकि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23(1/2)° झुकी होती है, और सदा एक ही ओर झुकी रहती है, इसलिए भूमध्य रेखा के अतिरिक्त उत्तरी व दक्षिणी गोलाई की सभी अक्षांश रेखाओं को प्रकाश वृत्त दो भागों में न बांटकर भिन्न-भिन्न ऋतुओं में असमान रूप से विभक्त करता है। परिणामस्वरूप भूमध्य रेखा के अतिरिक्त शेष भागों में दिन-रात की अवधि समान नहीं होती है।
- उपर्युक्त विवरण के आधार पर दिन-रात के छोटे-बड़े होने के संक्षेप में निम्न कारण हैं-
- पृथ्वी की वार्षिक गति का होना
- पृथ्वी का अक्ष का कक्ष तल सदा 66(1/2)° झुके होना
- पृथ्वी के अक्ष का सदा एक ही ओर झुके रहना
- पृथ्वी के परिक्रमण में चार मुख्य अवस्थाएं आती हैं तथा इन चारों अवस्थाओं में ऋतु परिवर्तन होता है।
नोट: पृथ्वी का अक्ष इसके कक्षा-तल पर बने लम्ब से 23(1/2)° का कोण बनाता है।
- जब सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस समय उत्तरी गोलाई में सूर्य की सबसे अधिक ऊंचाई होती है जिससे यहां दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। इसलिए उत्तरी गोलाई में ग्रीष्म ऋतु होती है यह स्थिति 21 जून को घटित होती है तथा इन स्थिति को मकर संक्रान्ति या ग्रीष्म अयनान्त कहते हैं।
- 22 दिसम्बर की स्थिति में दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सम्मुख होता है और सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् चमकता है जिससे यहां ग्रीष्म ऋतु होती है। इस स्थिति में मकर संक्रान्ति या शीत अयनान्त कहा जाता है। इस समय सूर्य तिरछा चमकता है, जिससे दिन छोटे व रातें बड़ी होती हैं और गर्मी कम होने से जाड़े की ऋतु होती है।
- 21 मार्च और 23 सितम्बर की स्थितियों में सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है। इस समय समस्त अक्षांश रेखाओं का आधा भाग प्रकाश में रहता है। जिससे सर्वत्र दिन-रात बराबर होते हैं, दोनों गोलार्द्धों में दिन रात और ऋतु की समानता रहने से इन दोनों स्थितियों को विषुव अथवा समरात दिन कहा जाता है। 21 मार्च वाली स्थिति बसंत स्थिति को शरद विषुव अवस्था कहा जाता है।
- इस प्रकार ऋतु परिवर्तन के भिन्न कारण हैं–
– पृथ्वी के अक्ष का झुकाव।
– पृथ्वी के अक्ष का सदैव एक ही ओर झुके रहना।
– पृथ्वी की परिक्रमण या वार्षिक गति का होना।
– इन तीनों के परिणाम स्वरूप दिन-रात का छोटा बड़ा होते रहना।
चन्द्र कलाएं
- बढ़ता हुआ चांद – शुक्लपक्ष
- घटता हुआ चांद – कृष्ण पक्ष
- सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी की एक रेखीय स्थिति सिजिगी कहलाती है, जो दो तरह से होती है।
- सूर्य – चन्द्रमा – पृथ्वी – युति
- सूर्य – पृथ्वी – चंद्रमा – वियुति
अक्षांश, देशान्तर अंतराष्ट्रीय तिथि व समय निर्धारण
- अक्षः उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा जिस पर पृथ्वी घूमती है।
अक्षांश
- किसी दिये गये बिंदु को विषुवत वृत्त से उत्तर या दक्षिण की कोणीय दूरी की माप को अक्षांश कहते हैं। अर्थात ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खीची गई काल्पनिक रेखा अक्षांश है। जिसे अंश में प्रदर्शित किया जाता है।
- सभी अक्षांश रेखाएं समान्तर होती हैं। इनकी संख्या 180 है तथा अंश में प्रदर्शित की जाती है। दो अक्षांशों के मध्य की दूरी 111 किमी. होती है। विषुवत वृत 0 डिग्री अक्षांश को प्रदर्शित करता है। विषुवत वृत्त के उत्तर के सभी अक्षांश उत्तरी अक्षांश तथा दक्षिण के सभी अक्षांश कहलाते हैं।
- पृथ्वी पर खीचे गये अक्षांशों वृतों में विषुवत वृत्त सबसे बड़ा है। इसकी लम्बाई 40069 किमी. है।
कुछ महत्वपूर्ण अक्षांश
- कर्क वृत्त धरातल पर उत्तरी गोलार्द्ध में विषुवत वृत्त से 23(1/2)° की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।
- मकर वृत्त धरातल पर दक्षिणी गोलार्द्ध में विषुवत रेखा से 23(1/2)° की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।
- आर्कटिक वृत्त धरातल पर उत्तरी गोलार्द्ध में विषुवत रेखा से 66(1/2)° की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।
देशान्तर
- किसी स्थान को कोणीय को प्रधान यामोत्तर (0° ग्रीनविच) के पूर्ण व पश्चिम में होती है। देशान्तर कहलाती है। इग्लैण्ड के ग्रीनविच स्थान से गुजरने वाली रेखा को 0° देशान्तर या ग्रीनविच रेखा कहते हैं। इसके पूर्व में 180° तक सभी देशान्तर, पूर्वी देशान्तर और ग्रीनविच देशान्तर से पश्चिम की ओर सभी देशान्तर, पश्चिमी देशान्तर कहलाती है।
- पृथ्वी 24 घण्टे में 360° अंश देशान्तर घूम जाती है। इसलिए पृथ्वी की घूर्णन गति 15 अंश देशान्तर प्रति घंटा या प्रति चार मिनट में एक देशान्तर है।
कुछ महत्वपूर्ण देशान्तर
- 1884 में वाशिंग्टन में हुये एक समझौते के अनुसार 180° देशान्तर को अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं। यह रेखा प्रशान्त महासागर में उत्तर से दक्षिण तक फैली है।
- अनेक द्वीपों को काटने के कारण इस रेखा को 180° देशान्तर से कहीं-कहीं खिसका दिया गया है जैसे-
- 66(1/2)° उत्तर में पूर्व की ओर झुकाव बेरिंग जलसंधि तथा पूर्वी साइबेरिया में एक समय रखने के लिए।
- 52(1/2)° उत्तर में पश्चिम की ओर झुकाव, एल्युशियन द्वीप एवं अलास्का में एक ही समय दर्शन के लिए।
- 52(1/2)° दक्षिण में पूर्व की ओर झुकाव, एलिस, वालिस, फिजी, टोंगा, न्यूजीलैण्ड एवं आस्ट्रेलिया में एक ही समय रखने के लिए।
- यदि अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पार किया जाता है तो तिथि में एक दिन का परिवर्तन हो जाता है। कोई यात्री यदि पूर्व से पश्चिम (एशिया से उत्तर अमेरिका) दिशा में अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पार करेगा तो वह एक दिन पीछे हो जायेगा।
- इसी तरह कोई यात्री यदि पश्चिम से पूर्व (उत्तर अमेरिका से एशिया) की ओर यात्रा करता है तो वह एक दिन आगे हो जायेगा।
- अगर अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा पर मध्यरात्रि है तो यदि एशियाई भाग की तरफ शुक्रवार है तो अमेरिकी भाग की तरफ गुरूवार होगा।
- ग्रीनविच मीन टाइम- इंग्लैंड के निकट शून्य देशान्तर पर स्थित ग्रीनविच वेधशाला से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा को प्राइम मेरिडियन माना गया है।
- ग्रीन विच याम्योत्तर 0° देशान्तर पर है कि ग्रीनलैण्ड व नार्वेजियन सागर व बिट्रेन, फ्रांस, स्पेन, अल्जीरिया, माले, बुर्कींनाफासो, घाना व दक्षिण अटलांटिक समुद्र से गुजरता है।
- प्रामाणिक समय – चूंकि विभिन्न देशान्तरों पर स्थित स्थानों का स्थानीय समय भिन्न-भिन्न होता है, इसके कारण बड़े विशाल देश के कोने से दूसरे कोने के स्थानों के बीच के समय में बड़ा अंतर पड़ जाता है। फलस्वरूप तृतीयक व्यवसायों के कार्यों में बड़ी बाधा उत्पन्न हो जाती है। इस बाधा व समय की गड़बड़ी को दूर करने के लिये सभी देशों में एक देशान्तर रेखा के स्थानीय समय को सारे देश का प्रामाणिक समय मान लिया जाता है। इस प्रकार किसी देश में सभी स्थानों पर माने जाने वाले ऐसे समय को प्रामाणिक अथवा मकर समय कहते है। हमारे देश में 82°30’ पूर्वी देशान्तर रेखा को मकर मध्यान्ह रेखा माना गया है। इस मध्यान्ह रेखा स्थानीय समय सारे देश का मानक समय माना जाता है। इसी को भारतीय मानक समय (आई. एस.टी.) कहा जाता है। भारत का प्रामाणिक समय ग्रीनविच माध्य समय (जी.एम.टी.) से 5 घंटा 30 मिनट आगे है।
- स्थानीय समय, वह समय है, जो कि सूर्य के अनुसार हर देशान्तर पर निकाला जाता है। जब सूर्य उस देशान्तर पर लम्बवत् चमके तो उसे दोपहर का 12 बजे मान लेते हैं। इसे ही स्थानीय समय कहते हैं, यह प्रत्येक देशान्तर 4 मिनट के अन्तर से भिन्न होता है।
- भारत में 82(1/2)° अंश पूर्वी देशान्तर रेखा के समय को मानक समय माना गया है, जो इलाहाबाद के निकट नैनी से गुजरती है।
- भारत का मानक समय, ग्रीनविच मीन टाइम से 5(1/2)° घंटे आगे रहता है।