सूचना प्रदाता (व्हिसल ब्लोअर) संरक्षण अधिनियम- 2011 Whistle-Blowers Protection Act – 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ व्हिसल ब्लोअर विधेयक की राज्यसभा ने 21 फरवरी, 2014 को पारित कर दिया। गौरतलब है कि यह विधेयक दो साल से भी अधिक समय से राज्यसभा में लंबित था। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे कार्यकर्ताओं को इस बिल के जरिए कानूनी सुरक्षा दी जाएगी। यह विधेयक सिर्फ सरकारी कर्मियों के लिए है। इस विधेयक का उद्देश्य एक ऐसी नियमित प्रणाली प्रदान करना है जिससे लोक सेवकों और मंत्रियों द्वारा भ्रष्टाचार या सत्ता का जानबूझकर दुरुपयोग करने के बारे में जानकारी देने वाले व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जा सके।

राज्यसभा में संक्षिप्त चर्चा के बाद सूचना प्रदाता संरक्षण विधेयक-2011 को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इस विधेयक को 2011 में ही लोकसभा पारित कर चुकी है।

इस विधेयक की लोकसभा ने 2011 में पारित कर दिया था और राज्यसभा को विचार करने के लिए 2012 में भेजा था। राज्यसभा ने इस विधेयक में दो नए प्रस्ताव जोड़े।

पहला, प्रकटीकरण की परिभाषा को संशोधित कर उसमें सत्ता का जानबूझकर दुरुपयोग या अधिकारों का जानबूझकर दुरुपयोग जिसकी वजह से सरकार या लोक सेवकों या किसी तीसरे पक्ष की प्रत्यक्ष नुकसान होता है, को शामिल किया गया है।

दूसरा, जिस अधिकारी के पास शिकायत करनी है उसकी परिभाषा में भी विस्तार किया गया है। विधेयक के मुख्य बिन्दु हैं-

  • भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले कर्मियों की पहचान गुप्त रहेगी।
  • जरूरत पड़ने पर ऐसे लोगों की सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
  • भ्रष्टाचार की झूठी शिकायत करने वाले के खिलाफ होगी कार्रवाई, और सजा का भी प्रावधान।
  • न्यायपालिका, एसपीजी को छोड़कर सेना एवं खुफिया एजेंसियां और पुलिस भी दायरे में।
  • पद के दुरुपयोग को भी भ्रष्टाचार के दायरे में लाया गया।
  • पांच साल तक पुराने मामलों में ही दर्ज होगी शिकायत।

इस बिल की अहमियत यह है कि यह सरकारी महकमों में भ्रष्ट लोगों के खिलाफ शिकायतें सामने लाएगा। इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए बनाई गई स्वतंत्र इकाई सीवीसी को मजबूती मिलेगी। साथ ही कई कर्मचारी जो डर के कारण चुप रहते थे वो ज्यादा सूचनाएं सरकार से साझा करेंगे।

नए कानून के मुख्य प्रावधान यहां प्रस्तुत किए गए हैं:


लोकहित प्रकटन: अधिनियम के तहत् प्रकटन का तात्पर्य ऐसी शिकायत से है, जिसमें:

  1. भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम, 1988 के तहत् ऐसा कृत्य या उसका प्रयास अपराध हो;
  2. सत्ता एवं अधिकारों का जानबूझकर दुरुपयोग जिसके कारण सरकार या लोक सेवकों या किसी तीसरे पक्ष की प्रत्यक्ष नुकसान होता है; और
  3. एक लोक सेवक द्वारा आपराधिक कृत्य करने या करने का प्रयास किया गया हो, शामिल हो।

अधिनियम प्रावधान करता है कि कोई लोक सेवक या कोई अन्य व्यक्ति जिसमें गैर-सरकारी संगठन भी शामिल हैं, समर्थ प्राधिकारी को, जो कि वर्तमान में केंद्र या राज्य सतर्कता आयोग के सम्मुख लोकहित प्रकटीकरण कर सकता है।

प्रत्येक प्रकटीकरण सद्इच्छा में किया जाएगा और लोक हित प्रकटीकरण करने वाले व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से घोषणा करनी होगी कि वह औचित्यपूर्ण तरीके से विश्वास करता है कि उसके द्वारा प्रकट की गई सूचना और आरोप तात्विक रूप से सत्यता रखते हैं। साथ ही प्रत्येक खुलासे को लिखित में या ई-मेल या इलेक्ट्रॉनिक मेल मैसेज द्वारा किया जाएगा।

सक्षम प्राघिकारी की शक्तियां एवं कृत्य: सर्वप्रथम सक्षम प्राधिकारी, जो कि वर्तमान में सतर्कता आयोग है, की शिकायतकर्ता की पहचान सुनिश्चितकरनी चाहिए और ऐसी पहचान को गुप्त रखना पड़ेगा जब तक कि स्वयं शिकायतकर्ता किसी अन्य प्राधिकारी को इसे प्रकट नहीं करता। तत्पश्चात् वह इस बात का निर्धारण करेगा कि प्रकटन पर आधारित मामले की जांच करने की आवश्यकता है या स्वविवेकी जांच के पश्चात् ऐसा करना है। अन्वेषण करने के निर्णय करने पर, यह सम्बद्ध विभाग, कार्यालय या जैसी भी स्थिति हो, के प्रमुख से स्पष्टीकरण प्राप्त करेगा। प्राधिकरण को संगठन या विभाग के प्रमुख से शिकायतकर्ता की पहचान को गुप्त रखना होगा जब तक कि ऐसा करना आवश्यक रूप से जरूरी न हो। यहां तक कि सम्बद्ध संगठन या विभाग का प्रमुख शिकायतकर्ता की पहचान प्रकट नहीं कर सकता। जांच शुरू करने के पश्चात्, यदि आयोग को लगता है कि मामले में कोई ठोस बात एवं तथ्य नहीं है, तो वह मामले को बंद कर देगा या यदि जांच में भ्रष्टाचार या शक्तियों के दुरुपयोग के आरोप सही जान पड़ते हैं, तो वह अपने अनुशंसा करेगा। अधिनियम यह उपबंध भी करता है कि ऐसे उपाय किए जा सकते हैं जिससे सम्बद्ध लोक सेवक के विरुद्ध कार्यवाही शुरू की जा सके। आयोग अधिकारी के विरुद्ध आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने की अनुशंसा भी कर सकता है या आवश्यक सही कदम उठाने के लिए कह सकता है। इनके अतिरिक्त, यह अन्य कोई कार्रवाई कर सकता है, जो इस अधिनियम के उद्देश्य हेतु आवश्यक हो।

प्रकटन से उन्मुक्ति प्राप्त विषय: अधिनियम ऐसे विषयों को सक्षम प्राधिकारी की जांच से उन्मुक्ति प्रदान करता है जिससे भारत की संप्रभुता एवं अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मित्रवत् संबंधों, लोक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता को क्षति पहुंचने की संभावना हो या न्यायालय के अपमान, गरिमा हनन या अपराध के लिए उत्तेजित करने से सम्बद्ध हो।

प्रकटन करने वाले व्यक्ति को संरक्षण: इस अधिनियम का नाम ही साफ तौर पर स्पष्ट करता है कि इस अधिनियम का उद्देश्य लोक हित प्रकटन करने वाले व्यक्ति को संभव पीड़ा एवं शोषण से सुरक्षा प्रदान करना है और केंद्र सरकार को सुनिश्चित करना है की कोई भी व्यक्ति या लोक सेवक, जिसने खुलासा किया है, इस अधिनियम के तहत् इसलिए शिकार न हो कि उसने किसी प्रकार की कार्यवाही शुरू की है। यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत् इस आधार पर शिकार या शोषित होता है कि उसने शिकायत की है या प्रकटन किया है या जांच में मदद की है, तो वह सक्षम अधिकारी के समक्ष इस मामले में राहत प्राप्त करने का आवेदन कर सकता है, और वह प्राधिकारी ऐसे व्यक्ति के शिकार होने या उसके शोषण की संभावनाओं की खत्म करने के लिए सम्बद्ध लोक सेवक या लोक अधिकारी को उचित निर्देश दे सकता है, जैसा वह ठीक समझे।

अपराध एवं दण्ड: यदि सम्बद्ध संगठन या अधिकारी, बिना किसी युक्तिसंगत कारण के, कथित समय-सीमा के भीतर प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं करता है या रिपोर्ट प्रस्तुत करने से मना कर देता है, तो उस पर जुर्माना अधिरोपित किया जा सकता है, जो 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ाई जा सकती है जब तक रिपोर्ट सौंपी नहीं जाती, हालांकि, इस जुर्माने को 50,000 रुपए से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकेगा।

सम्बद्ध संगठन या अधिकारी, जानबूझकर अधूरी, असत्य या भ्रमित करने वाली या गलत रिपोर्ट देता है या अभिलेखों या सूचना की नष्ट करता है, जो प्रकटन के विषय से सम्बद्ध है या रिपोर्ट पूरी होने के मार्ग में किसी भी तरह रुकावट पैदा करता है, तो ऐसी स्थिति में जुर्माना अधिरोपित किया जा सकता है जो अधिकतम 50,000 रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।

कोई व्यक्ति, जो उपेक्षणीय रूप से या जानबूझकर शिकायतकर्ता की पहचान प्रकट करता है, उसे अधिकतम तीन वर्ष का कारावास और अधिकतम 50,000 रुपए जुर्माने का दण्ड दिया जाएगा।

अधिनियम यह भी व्यवस्था करके, कि कोई व्यक्ति जो जानबूझकर एवं दुर्भावना के तहत् झूठी या गलत या भ्रमित करने वाले खुलासे करता है, अधिकतम दो वर्ष का कारावास और अधिकतम 50,000 रुपए तक के जुर्माने का भागी होगा, निरोध की भी व्यवस्था की है।

यदि अपराध सरकार के विभाग द्वारा किया गया है, विभागाध्यक्ष को इस अपराध का दोषी ठहराया जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई, की जाएगी और अधिनियम के अनुरूप सजा प्रदान की जाएगी जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि यह अपराध उसके संज्ञान में नहीं किया गया या उसने यह सब उस अपराध को रोकने के लिए किया।

उच्च न्यायालय में अपील: यदि कोई व्यक्ति सक्षम प्राधिकारी के सजा दिये जाने के संबंध में आदेश से असंतुष्ट है तो वह अपील किए जाने वाले आदेश की तिथि से 60 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

अधिनियम का मूल्यांकन: निःसंदेह, इस अधिनियम का आना स्वागत योग्य कदम है भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में और उनकी सुरक्षा में, जो लोक हित प्रकटन करते हैं लेकिन विभिन्न प्रकार की मुसीबतों में फंस जाते हैं। अधिनियम उपबंध करता है कि सक्षम अधिकारी जांच नहीं करेगा-

  1. उस खुलासे को लेकर जिसमें घटित घटना को 1 वर्ष (बारह माह) का समय हो गया हो और शिकायतकर्ता यह जानता हो; और
  2. कोई प्रकटन जिसमें आरोप निहित हो, यदि सम्बद्ध घटना की पांच साल का समय होने के बाद शिकायत की जाती है। यह प्रावधान अनावश्यक नहीं है लेकिन इसका प्रयोग अधिकारी तकनीकी आधार पर करके जांच की बाधित करेगा।

यह बेहद चिंता का विषय है कि सशस्त्र बलों एवं आसूचना एजेंसियों के लिए अपवादों का सृजन बिना किसी ठोस कारण के किया गया है। यह बेहद महत्वपूर्ण एवं गौरतलब है कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 सशस्त्र बलों के पक्ष में किसी अपवाद का सृजन नहीं करता और यहां तक कि आसूचना एजेंसियां भी पूरी तरह से इसकी समीक्षा से बाहर नहीं हैं और मानव अधिकारों के उल्लंघन और भ्रष्टाचार के संबंध में इन संगठनों से समग्र सूचना हासिल की जा सकती है। इस अधिनियम का उद्देश्य भ्रष्टाचार पर नकेल कसना है और इस प्रकार, ऐसे अत्यधिक उन्मुक्ति के लिए कोई युक्तिसंगत बहाना नहीं बनता। हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अन्य से संबंधित खास मामलों में उन्मुक्ति स्वाभाविक हो सकती है।

एक अन्य पहलू सीवीसी/एसवीसी की क्षमता के बारे में है जो प्रकटन स्वीकार करने की एकमात्र एजेंसी है। यह इस देश की विशाल भू-भाग के चलते बेतुका जान पड़ता है। इस प्रकार, यह आवश्यक है कि मात्र राष्ट्रीय या राज्य राजधानी के स्तर पर विभिन्न शिकायतों की स्वीकार करने के स्थान पर सरल एवं सुग्राही व्यवस्था स्थापित की जाए।

अधिनियम इलेक्ट्रॉनिक पद्धति के माध्यम से भी शिकायत स्वीकार करता है जो आधुनिक समय में बेहद जरूरी है। हालांकि सूचना प्रदाता के लिए इलेक्ट्रॉनिक पद्धति बेहद सुरक्षित नहीं है और इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि इस संबंध में कठोर नियम एवं विनियम बनाए जाएं ताकि सूचना प्रदाता की पहचान को किसी भी कीमत पर गुप्त रखा जा सके। इस संबंध में ठोस व्यवस्था के अभाव से शिकार या शोषित होने के डर से संभावित शिकायतकर्ता हतोत्साहित होंगे जो इस कानून के उद्देश्य को निष्फल करेगा। एक अन्य सुझाव है कि अनजान शिकायत को मात्र पहचान न होने के आधार पर निरस्त कर दिया जाए जहां पर मामले को साबित करने के किए बेहद महत्वपूर्ण साक्ष्य या दस्तावेज प्रदान किए गए है।

इस अधिनियम में, सूचना प्रदाता की सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डाली गयी है। हालांकि यह भारत जैसे संघीय व्यवस्था के लिए गंभीर समस्या उत्पन्न करता है, क्योंकि राज्य सरकार के कर्मचारी को मात्र केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान करना अकेले संभव नहीं है और ऐसे मामलों में राज्य सरकारों को भी सुरक्षा मुहैया करानी होगी। शिकायतकर्ता के लिए एक अन्य रुकावट शिकायत का आधारहीन पाया जाना है जो दण्डनीय है।जबकि यह जरूरी है कि इस प्रकार की शिकायतों पर दण्ड दिया जाए, लेकिन इस उपबंध की आड़ में निर्दोष सूचना प्रदाताओं के शोषण से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे मामलों में जहां अभियुक्त बेहद शक्तिशाली है, यह उपबंध आम लोगों पर बंधनकारी प्रभाव डालेगा। इस प्रकार, यह बेहद आवश्यक है कि सजा की मात्रा को थोड़ा कम किया जाना चाहिए।

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