समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय UN Convention on the Law of the Sea – UNCLOS

अंकलोस (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) को 1982 में आयोजित समुद्री कानून पर तृतीय संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में अपनाया गया (अंकलोस-III) तथा यह नवंबर 1994 में प्रभाव में आया। इस अभिसमय में 1958 में पारित प्रथम संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (अंकलोस-I) के प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है। 1958 के अभिसमय में चार जेनेवा अभिसमयों को अपनाया गया-क्षेत्रीय समुद्र और सन्निहित क्षेत्र पर अभिसमय (Convention on the TerritorialSea and the Contiguous Zone); खुले सागरों पर अभिसमय (Convention on the High Seas); महाद्वीपीय कगार पर अभिसमय (Conservation on the Continental Shelf), तथा; खुले सागरों में मत्स्यपालन और जैविक संसाधनों के संरक्षण पर अभिसमय (Convention on the Fishing and Conservation of the Living Resources of the High Seas)। 1960 के द्वितीय अभिसमय में कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया गया। तृतीय अभिसमय ने ईईजेड और गहरे समुद्रतल (seabed) के संबंध में कुछ नई कानूनी व्यवस्थाओं का गठन किया है।

अंकलोस के कुछ प्रमुख प्रावधान हैं- क्षेत्रीय समुद्र के लिये 12 नॉटिकल मील सीमा का निर्धारण; अंतरराष्ट्रीय जलडमरूमध्य (straits) से होकर पारगमन की सुविधा; द्वीप समूह (archipelogic) और स्थलरुद्ध (landlocked) देशों के अधिकारों में वृद्धि; तटवर्ती देशों के लिये 200 नॉटिकल मील ईईजेड का निर्धारण, और, राष्ट्रीय अधिकार-क्षेत्र से बाहर गहरे समुद्र में स्थित खनिज संसाधनों के दोहन की व्यवस्था। अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण की स्थापना समुद्रतल के संसाधनों के प्रशासन के लिये की गयी है। समुद्री संसाधन के दोहन का आधार समान साझेदारी और सामूहिक मानव धरोहर के सिद्धांत होगे। अभिसमय में एक अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान है। हेम्बर्ग (जर्मनी) में अवस्थित यह न्यायाधिकरण अभिसयम में निर्दिष्ट प्रावधानों के संबंध में उभरे विवादों को सुलझाता है। इन विवादों के संबंध में न्यायाधिकरण का निर्णय बाध्यकारी होता है। कोई भी विवादित पक्ष विवाद को न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है।

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