वैदिक सभ्यता Vedic civilization

ऋग्वैदिक काल (1500 ई.पू. से 1000 ई.पू.)

वैदिक सभ्यता के निर्माता

  • वैदिक सभ्यता के संस्थापक आर्य थे। आर्यों का आरंभिक जीवन मुख्यतः पशुचारण था। वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी।
  • वैदिक सभ्यता की जानकारी के स्रोत वेद हैं। इसलिए इसे वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
  • आर्यों ने ऋग्वेद की रचना की, जिसे मानव जाती का प्रथम ग्रन्थ माना जाता है। ऋग्वेद द्वारा जिस काल का विवरण प्राप्त होता है उसे ऋग्वैदिक काल कहा जाता है।
  • ऋग्वेद भारत-यूरोपीय भाषाओँ का सबसे पुराना निदर्श है। इसमें अग्नि, इंद्र, मित्र, वरुण, आदि देवताओं की स्तुतियाँ संगृहित हैं।
  • वैदिक सभ्यता के संस्थापक आर्यों का भारत आगमन लगभग 1500 ई.पू. के आस-पास हुआ। हालाँकि उनके आगमन का कोई ठोस और स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
  • आर्यों के मूल निवास के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किये हैं।
  • ‘अस्तों मा सद्गमय’ वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।
विद्वान आर्यों का मूल निवास स्थान
प्रो. मैक्समूलर मध्य एशिया
पं. गंगानाथ झा ब्रह्मर्षि देश
गार्डन चाइल्ड दक्षिणी रूस
बाल गंगाधर तिलक उत्तरी ध्रुव
गाइल्स हंगर एवं डेन्यूब नदी की घाटी
दयानंद सरस्वती तिब्बत
डॉ. अविनाश चन्द्र सप्त सैन्धव प्रदेश
प्रो. पेंक जर्मनी के मैदानी भाग
  •  अधिकांश विद्वान् प्रो. मैक्समूलर के विचारों से सहमत हैं कि आर्य मूल रूप से मध्य एशिया के निवासी थे।

भौगोलिक विस्तार

  • ऋग्वेद में नदियों का उल्लेख मिलता है। नदियों से आर्यों के भौगोलिक विस्तार का पता चलता है।
  • भारत में आर्य सर्वप्रथम सप्तसैंधव प्रदेश में आकर बसे इस प्रदेश में प्रवाहित होने वाली सैट नदियों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
  • ऋग्वैदिक काल की सबसे महत्वपूर्ण नदी सिन्धु का वर्णन कई बार आया है। ऋग्वेद में गंगा का एक बार और यमुना का तीन बार उल्लेख मिलता है।
  • ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थी। इसे नदीतमा (नदियों की प्रमुख) कहा गया है।
  • सप्तसैंधव प्रदेश के बाद आर्यों ने कुरुक्षेत्र के निकट के प्रदेशों पर भी कब्ज़ा कर लिया, उस क्षेत्र को ‘ब्रह्मवर्त’ कहा जाने लगा। यह क्षेत्र सरस्वती व दृशद्वती नदियों के बीच पड़ता है।
ऋग्वैदिक नदियाँ
प्राचीन नाम आधुनिक नाम
शुतुद्रि सतलज
अस्किनी चिनाब
विपाशा व्यास
कुभा काबुल
सदानीरा गंडक
सुवस्तु स्वात
पुरुष्णी रावी
वितस्ता झेलम
गोमती गोमल
दृशद्वती घग्घर
कृमु कुर्रम
  •  गंगा एवं यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके सीमावर्ती क्षेत्रो पर भी आर्यों ने कब्ज़ा कर लिया, जिसे ‘ब्रह्मर्षि देश’ कहा गया।
  • आर्यों ने हिमालय और विन्ध्याचल पर्वतों के बीच के क्षेत्र पर कब्ज़ा करके उस क्षेत्र का नाम ‘मध्य देश’ रखा।
  • कालांतर में आर्यों ने सम्पूर्ण उत्तर भारत में अपने विस्तार कर लिया, जिसे ‘आर्यावर्त’ कहा जाता था।

राजनीतिक व्यवस्था

  • भौगोलिक विस्तार के दौरान आर्यों को भारत के मूल निवासियों, जिन्हें अनार्य कहा गया है से संघर्ष करना पड़ा।
  • दशराज्ञ युद्ध में प्रत्येक पक्ष में आर्य एवं अनार्य थे। इसका उल्लेख ऋग्वेद के 10वें मंडल में मिलता है।
  • यह युद्ध रावी (पुरुष्णी) नदी के किनारे लड़ा गया, जिसमे भारत के प्रमुख काबिले के राजा सुदास ने अपने प्रतिद्वंदियों को पराजित कर भारत कुल की श्रेष्ठता स्थापित की।
  • ऋग्वेद में आर्यों के पांच कबीलों का उल्लेख मिलता है- पुरु, युद्ध, तुर्वसु, अजु, प्रह्यु। इन्हें ‘पंचजन’ कहा जाता था।
  • ऋग्वैदिक कालीन राजनीतिक व्यवस्था, कबीलाई प्रकार की थी। ऋग्वैदिक लोग जनों या कबीलों में विभाजित थे। प्रत्येक कबीले का एक राजा होता था, जिसे ‘गोप’ कहा जाता था।
  • ऋग्वेद में राजा को कबीले का संरक्षक (गोप्ता जनस्य) तथा पुरन भेत्ता (नगरों पर विजय प्राप्त करने वाला) कहा गया है।
  • राजा के कुछ सहयोगी दैनिक प्रशासन में उसकी सहायता कटे थे। ऋग्वेद में सेनापति, पुरोहित, ग्रामजी, पुरुष, स्पर्श, दूत आदि शासकीय पदाधिकारियों का उल्लेख मिलता है।
  • शासकीय पदाधिकारी राजा के प्रति उत्तरदायी थे। इनकी नियुक्ति तथा निलंबन का अधिकार राजा के हाथों में था।
  • ऋग्वेद में सभा, समिति, विदथ जैसी अनेक परिषदों का उल्लेख मिलता है।
  • ऋग्वैदिक काल में महिलाएं भी राजनीती में भाग लेती थीं। सभा एवं विदथ परिषदों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी थी।
  • सभा श्रेष्ठ एवं अभिजात्य लोगों की संस्था थी। समिति केन्द्रीय राजनितिक संस्था थी। समिति राजा की नियुक्ति, पदच्युत करने व उस पर नियंत्रण रखती थी। संभवतः यह समस्त प्रजा की संस्था थी।
  • ऋग्वेद में तत्कालीन न्याय वयवस्था के विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है की राजा तथा पुरोहित न्याय व्यवस्था के प्रमुख पदाधिकारी थे।
  • वैदिक कालीन न्यायधीशों को ‘प्रश्नविनाक’ कहा जाता था।
  • न्याय वयवस्था वर्ग पर आधारित थी। हत्या के लिए 100 ग्रंथों का दान अनिवार्य था।
  • राजा भूमि का स्वामी नहीं होता था, जबकि भूमि का स्वामित्व जनता में निहित था।
  • ग्राम, विश, और जन शासन की इकाई थे। ग्राम संभवतः कई परिवारों का समूह होता था।
  • विश कई गावों का समूह था। अनेक विशों का समूह ‘जन’ होता था।
  • विदथ आर्यों की प्राचीन संस्था थी।
वैदिक कालीन शासन के पदाधिकारी
पुरोहित राजा का मुख्य परामर्शदाता
कुलपति परिवार का प्रधान
व्राजपति चारागाह का अधिकारी
स्पर्श गुप्तचर
पुरुष दुर्ग का अधिकारी
सेनानी सेनापति
विश्वपति विश का प्रधान
ग्रामणी ग्राम का प्रधान
दूत सुचना प्रेषित करना
उग्र पुलिस

सामाजिक व्यवस्था

  • ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था। पिता सम्पूर्ण परिवार, भूमि संपत्ति का अधिकारी होता था।
  • पितृ-सत्तात्मक समाज के होते हुए इस काल में महिलाओं का यथोचित सम्मान प्राप्त था। महिलाएं भी शिक्षित होती थीं।
  • प्रारंभ में ऋग्वैदिक समाज दो वर्गों आर्यों एवं अनार्यों में विभाजित था। किन्तु कालांतर में जैसा की हम ऋग्वेद के दशक मंडल के पुरुष सूक्त में पाए जाते हैं की समाज चार वर्गों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र; मे विभाजित हो गया।
  • संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलन में थी।
  • विवाह व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन का प्रमुख अंग था। अंतरजातीय विवाह होता था, लेकिन बाल विवाह का निषेध था। विधवा विवाह की प्रथा प्रचलन में थी।
  • पुत्र प्राप्ति के लिए नियोग की प्रथा स्वीकार की गयी थी। जीवन भर अविवाहित रहने वाली लड़कियों को ‘अमाजू कहा जाता था।
  • सती प्रथा और पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।
  • ऋग्वैदिक काल में दास प्रथा का प्रचलन था, परन्तु यह प्राचीन यूनान और रोम की भांति नहीं थी।
  • आर्य मांसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे।
  • आर्यों के वस्त्र सूत, ऊन तथा मृग-चर्म के बने होते थे।
  • ऋग्वैदिक काल के लोगों में नशीले पेय पदार्थों में सोम और सुरा प्रचलित थे।
  •  मृतकों को प्रायः अग्नि में जलाया जाता था, लेकिन कभी-कभी दफनाया भी जाता था।

ऋग्वैदिक धर्म

  • ऋग्वैदिक धर्म की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका व्यवसायिक एवं उपयोगितावादी स्वरुप था।
  • ऋग्वैदिक लोग एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।
  • आर्यों का धर्म बहुदेववादी था। वे प्राकृतिक भक्तियों-वायु, जल, वर्षा, बादल, अग्नि और सूर्य आदि की उपासना किया करते थे।
  • ऋग्वैदिक लोग अपनी भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए यज्ञ और अनुष्ठान के माध्यम से प्रकृति का आह्वान करते थे।
  • ऋग्वेद में देवताओं की संख्या 33 करोड़ बताई गयी है। आर्यों के प्रमुख देवताओं में इंद्र, अग्नि, रूद्र, मरुत, सोम और सूर्य शामिल थे।
  • ऋग्वैदिक काल का सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र है। इसे युद्ध और वर्षा दोनों का देवता माना गया है। ऋग्वेद में इंद्र का 250 सूक्तों में वर्णन मिलता है।
  • इंद्र के बाद दूसरा स्थान अग्नि का था। अग्नि का कार्य मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ स्थापित करने का था। 200 सूक्तों में अग्नि का उल्लेख मिलता है।
  • ऋग्वैदिक काल में मूर्तिपूजा का उल्लेख नहीं मिलता है।
  • देवताओं में तीसरा स्थान वरुण का था। इसे जाल का देवता माना जाता है। शिव को त्रयम्बक कहा गया है।

ऋग्वैदिक देवता


  • आकाश के देवता- सूर्य, घौस, मिस्र, पूषण, विष्णु, ऊषा और सविष्ह।
  • अंतरिक्ष के देवता- इन्द्र, मरुत, रूद्र और वायु।
  • पृथ्वी के देवता- अग्नि, सोम, पृथ्वी, वृहस्पति और सरस्वती।
  • पूषण ऋग्वैदिक काल में पशुओं के देवता थे, जो उत्तर वैदिक काल में शूद्रों के देवता बन गए।
  • ऋग्वैदिक काल में जंगल की देवी को ‘अरण्यानी’ कहा जाता था।
  • ऋग्वेद में ऊषा, अदिति, सूर्या आदि देवियों का उल्लेख मिलता है।
  • प्रसिद्द गायत्री मन्त्र, जो सूर्य से सम्बंधित देवी सावित्री को संबोधित है, सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है।

ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था

1. कृषि एवं पशुपालन

  • ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था का आधार कृषि और पशुपालन था।
  • गेंहू की खेती की जाती थी।
  • इस काल के लोगों की मुख्य संपत्ति गोधन या गाय थी।
  • ऋग्वेद में हल के लिए लांगल अथवा ‘सीर’ शब्द का प्रयोग मिलता है।
  • सिंचाई का कार्य नहरों से लिए जाता था। ऋग्वेद में नाहर शब्द के लिए ‘कुल्या’ शब्द का प्रयोग मिलता है।
  • उपजाऊ भूमि को ‘उर्वरा’ कहा जाता था।
  • ऋग्वेद के चौथे मंडल में सम्पूर्ण मन्त्र कृषि कार्यों से सम्बद्ध है।
  • ऋग्वेद के ‘गव्य’ एवं ‘गव्यपति’ शब्द चारागाह के लिए प्रयुक्त हैं।
  • भूमि निजी संपत्ति नहीं होती थी उस पर सामूहिक अधिकार था।
  • घोडा आर्यों का अति उपयोगी पशु था।
  • आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। वे गाय, बैल, भैंस घोड़े और बकरी आदि पालते थे।

2.  वाणिज्य- व्यापार

  • वाणिज्य-व्यापार पर पणियों का एकाधिकार था। व्यापार स्थल और जल मार्ग दोनों से होता था।
  • सूदखोर को ‘वेकनाट’ कहा जाता था। क्रय विक्रय के लिए विनिमय प्रणाली का अविर्भाव हो चुका था। गाय और निष्क विनिमय के साधन थे।
  • ऋग्वेद में नगरों का उल्लेख नहीं मिलता है। इस काल में सोना तांबा और कांसा धातुओं का प्रयोग होता था।
  • ऋण लेने व बलि देने की प्रथा प्रचलित थी, जिसे ‘कुसीद’ कहा जाता था।

3.  व्यवसाय एवं उद्योग धंधे

  • ऋग्वेद में बढ़ई, सथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार, आदि कारीगरों के उल्लेख से इस काल के व्यवसाय का पता चलता है।
  • तांबे या कांसे के अर्थ में ‘आपस’ का प्रयोग यह संके करता है, की धातु एक कर्म उद्योग था।
  • ऋग्वेद में वैद्य के लिए ‘भीषक’ शब्द का प्रयोग मिलता है। ‘करघा’ को ‘तसर’ कहा जाता था। बढ़ई के लिए ‘तसण’ शब्द का उल्लेख मिलता है।
  • मिटटी के बर्तन बनाने का कार्य एक व्यवसाय था।

स्मरणीय तथ्य

  • जब आर्य भारत में आये, तब वे तीन श्रेणियों में विभाजित थे- योद्धा, पुरोहित और सामान्य। जन आर्यों का प्रारंभिक विभाजन था। शुद्रो के चौथे वर्ग का उद्भव ऋग्वैदिक काल के अंतिम दौर में हुआ।
  • इस काल में राजा की कोई नियमित सेना नहीं थी। युद्ध के समय संद्थित की गयी सेना को ‘नागरिक सेना’ कहते थे।
  • ऋग्वेद में किसी परिवार का एक सदस्य कहता है- मैं कवि हूँ, मेरे पिता वैद्य हैं और माता चक्की चलने वाली है, भिन्न भिन्न व्यवसायों से जीवकोपार्जन करते हुए हम एक साथ रहते हैं।
  • ‘हिरव्य’ एवं ‘निष्क’ शब्द का प्रयोग स्वर्ण के लिए किया जाता था। इनका उपयोग द्रव्य के रूप में भी किया जाता था। ऋग्वेद में ‘अनस’ शब्द का प्रयोग बैलगाड़ी के लिए किया गया है। ऋग्वैदिक काल में दो अमूर्त देवता थे, जिन्हें श्रद्धा एवं मनु कहा जाता था।
  • वैदिक लोगों ने सर्वप्रथ तांबे की धातु का इस्तेमाल किया।
  • ऋग्वेद में सोम देवता के बारे में सर्वाधिक उल्लेख मिलता है।
  • अग्नि को अथिति कहा गया है क्योंकि मातरिश्वन उन्हें स्वर्ग से धरती पर लाया था।
  • यज्ञों का संपादन कार्य ‘ऋद्विज’ करते थे। इनके चार प्रकार थे- होता, अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्म।
  • संतान की इचुक महिलाएं नियोग प्रथा का वरण करती थीं, जिसके अंतर्गत उन्हें अपने देवर के साथ साहचर्य स्थापित करना पड़ता था।
  • ‘पणि’ व्यापार के साथ-साथ मवेशियों की भी चोरी करते थे। उन्हें आर्यों का शत्रु माना जाता था

वैदिक साहित्य

  • ऋग्वेद स्तुति मन्त्रों का संकलन है। इस मंडल में विभक्त 1017 सूक्त हैं। इन सूत्रों में 11 बालखिल्य सूत्रों को जोड़ देने पर कुल सूक्तों की संख्या 1028 हो जाती है। 
ऋग्वेद के रचयिता
मण्डल ऋषि
द्वितीय गृत्समद
तृतीय विश्वामित्र
चतुर्थ धमदेव
पंचम अत्री
षष्ट भारद्वाज
सप्तम वशिष्ठ
अष्टम कण्व तथा अंगीरम
  •  दशराज्ञ युद्ध का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। यह ऋग्वेद की सर्वधिक प्रसिद्द ऐतिहासिक घटना मानी जाती है।
  • ऋग्वेद में 2 से 7 मण्डलों की रचना हुई, जो गुल्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अभि, भारद्वाज और वशिष्ठ ऋषियों के नाम से है।
  • ऋग्वेद का नाम मंडल पूरी तरह से सोम को समर्पित है।
  • प्रथम एवं दसवें मण्डल की रचना संभवतः सबसे बाद में की गयी। इन्हें सतर्चिन कहा जाता है।
  • गायत्री मंत्र ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में हुआ है।
  • 10वें मंडल में मृत्यु सूक्त है, जिसमे विधवा के लिए विलाप का वर्णन है।
  • ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 95वें सूक्त में पुरुरवा,ऐल और उर्वशी बुह संवाद है।
  • ऋग्वेद के नदी सूक्त में व्यास (विपाशा) नदी को ‘परिगणित’ नदी कहा गया है।

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