परमाणु संरचना Atomic Structure

जॉन डॉल्टन ने 1803 ई० में परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार परमाणु अविभाज्य होता है। लगभग पूरी 19वीं शताब्दी तक यह माना जाता रहा कि परमाणु अविभाज्य है। परन्तु 19वीं शताब्दी के आखिरी दशक में वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया कि परमाणु विभाज्य है तथा परमाणु की एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है। आधुनिक अनुसंधानों ने प्रमाणित

सामान्य तत्व और उनके परमाणु द्रव्यमान
तत्व संकेत परमाणु संख्या परमाणु द्रव्यमान
हाइड्रोजन H 1 1.008
हीलियम He 2 4.003
लिथियम Li 3 6.940
बेरीलियम Be 4 9.013
बोरोन B 5 10.82
कार्बन C 6 12.011
नाइट्रोजन N 7 14.006
ऑक्सीजन O 8 15.999
फ्लुओरीन F 9 19.00
नियॉन Ne 10 20.183
सोडियम Na 11 22.989
मैग्नीशियम Mg 12 24.32
एल्युमिनियम Al 13 26.97
सिलिकन Si 14 28.09
फॉस्फोरस P 15 30.98
सल्फर S 16 32.064
क्लोरीन Cl 17 35.453
आर्गन Ar 18 39.944
पोटैशियम K 19 39.09
कैल्सियम Ca 20 40.08
मैंगनीज Mn 25 54.94
लोहा Fe 26 55.847
ताँबा Cu 29 63.546
जस्ता Zn 30 65.38
ब्रोमीन Br 35 79.916
चाँदी Ag 47 107.880
टिन Sn 50 118.70
सोना Au 79 196.9665
सीसा Pb 82 207.21

कर दिया है कि परमाणु कई प्रकार के अति सूक्ष्म कणों से बना होता है, जिनमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन प्रमुख हैं। सभी तत्वों के परमाणु को निर्मित करने वाले इन कणों को मौलिक कण (Fundamental Particles) कहा जाता है।

परमाणु और अणु

परमाणु (Atom): परमाणु किसी तत्व का वह छोटा-से-छोटा कण है, जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है, परन्तु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है।

अणु (Molecule): किसी तत्व या यौगिक का वह छोटा-से-छोटा कण जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है, अणु कहलाता है।

परमाणु के मौलिक कण

(i) इलेक्ट्रॉन (Electron): इलेक्ट्रॉन की खोज का श्रेय जे० जे० टॉम्सन को है। इलेक्ट्रॉन एक ऐसा कण है, जिसका द्रव्यमान लगभग शून्य होता है तथा जिस पर इकाई ऋण आवेश रहता है।


(ii) प्रोटॉन (Proton): परमाणु के अंदर प्रोटॉन एक ऐसा सूक्ष्म कण है, जिसका सापेक्ष द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है और इस पर इकाई धन आवेश रहता है। परमाणु में धन आवेश युक्त इस कण की खोज का श्रेय गोल्डस्टीन को है।

(iii) न्यूट्रॉन (Neutron): परमाणु के अंदर न्यूट्रॉन एक ऐसा सूक्ष्म कण है, जिसका द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है, लेकिन इस पर कोई आवेश नहीं होता है। अर्थात् न्यूट्रॉन एक उदासीन कण है। न्यूट्रॉन की खोज 1932 ई० में चैडविक ने बेरीलियम धातु पर α-कणों से आघात कराकर की।

रदरफोर्ड का नाभिकीय सिद्धांत (Rutherford’s Nuclear Theory): 1911 ई. में लार्ड रदरफोर्ड (Lord Rutherford) ने एक अति महत्वपूर्ण प्रयोग करके परमाणु की आंतरिक व्यवस्था से संबंधित एक आश्चर्यजनक तथ्य का पता लगाया। रदरफोर्ड द्वारा किये गए इस प्रयोग को रदरफोर्ड का प्रकीर्णन प्रयोग (Rutherford’s Scattiring Experiment) कहा जाता है।

टॉम्सन द्वारा प्रस्तुत परमाणु का स्वरूप अस्वीकार करते हुए रदरफोर्ड ने अपने प्रयोग के निरीक्षणों के आधार पर एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसे रदरफोर्ड का नाभिकीय सिद्धांत कहते हैं। इस सिद्धांत की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-

  1. परमाणु में इलेक्ट्रॉनों से घिरे केन्द्र में प्रोटॉन का एक छोटा-सा किन्तु भारी नाभिक होता है।
  2. परमाणु के अंदर का अधिकांश भाग खाली होता है।
  3. परमाणु गोलीय (spherical) होता है।
  4. परमाणु के नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में अत्यन्त छोटा होता है।
  5. परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या के लिए रदरफोर्ड ने अनुमान लगाया कि परमाणु सौरमंडल की तरह होता है।

परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार पथों में ठीक उसी तरह अनवरत परिक्रमा करते रहते हैं, जिस तरह सूर्य के चारों ओर विभिन्न नक्षत्र करते हैं। इन वृत्ताकार पथों को कक्षाएँ (Orbits) कहा जाता है। ऐसा होने से नाभिक तथा इलेक्ट्रॉन के बीच कार्यरत स्थिर विद्युत आकर्षण बल इलेक्ट्रॉन के वेग से उत्पन्न केन्द्राभिसारी बल (Centrifugal force) के बराबर होता है। इस परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षाओं में अनवरत गतिशील रहते हुए परमाणु को स्थायित्व प्रदान करते हैं।

रदरफोर्ड द्वारा प्रस्तुत परमाणुके उपर्युक्त स्वरूपको रदरफोर्डका परमाणु स्वरूप (Rutherford’s Model of Atom) कहा जाता है।

रदरफोर्ड के परमाणु स्वरूप के दोष

(i) परमाणु के इस मॉडल की सबसे महत्वपूर्ण त्रुटि इसके स्थायित्व से संबंधित है।

(ii) रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल यह नहीं स्पष्ट करता है कि नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं या यत्र-तत्र।

(iii) तत्व के परमाणु से प्राप्त वर्णपट (Atomic spectra) में स्पष्ट रेखाएँ प्राप्त होती हैं, जो इस बात की पुष्टि करती है कि परमाणु से उत्सर्जित होने वाली विकिरण असतत् होती है। रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के आधार पर परमाणु वर्णपट की स्पष्ट रेखाओं के निर्माण की व्याख्या करना संभव नहीं है।

प्लांक का क्वांटम सिद्धांत (Planck’s Quantum Theory): सन 1901में प्लांक ने तप्त काली वस्तुओं से उत्सर्जित विभिन्न कम्पनावृत्तियों वाली प्रकाश ऊर्जा के अध्ययन से एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार किसी वस्तु से प्रकाश और ऊष्मा जैसी विकिरण ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण सतत नहीं होता, बल्कि असतत रूप से छोटे-छोटे संवेष्ट (Packets) में होता है।’

इन छोटे संवेष्टों को क्वांटम (Quantum) कहते हैं। एक क्वांटम की ऊर्जा को निम्नलिखित समीकरण के द्वारा व्यक्त किया जाता है-

E = hv (जहाँ h = प्लैंक स्थिरांक, v = विकिरण की कम्पनावृत्ति, E = क्वांटम की ऊर्जा)

बोर का परमाणु मॉडल (Bohr’s Atomic Model): रदरफोर्ड मॉडल की त्रुटियों की दूरं करने तथा हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम को समझाने के लिए नील्स बोर ने मैक्स प्लांक (Max Planck) के क्वांटम सिद्धांत का सहारा लेकर एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे बोर का परमाणु सिद्धान्त कहते हैं।

इस सिद्धांत की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-

(i) नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉन अनिश्चित कक्षाओं में परिभ्रमण नहीं करते बल्कि ये कुछ चुनी हुई अनुमेय कक्षाओं में ही परिभ्रमण करते हैं।

(ii) जब कोई इलेक्ट्रॉन किसी स्थिर कक्षा में रहकर नाभिक के चारों ओर परिभ्रमण करता है, तो इस क्रिया में उससे ऊर्जा का ह्रास नहीं होता है।

(iii) कुछ ऊर्जा का अवशोषण करके इलेक्ट्रॉन नाभिक के किसी निकट वाली कक्षा से दूर वाली कक्षा पर कूदता है। जब वह दूर वाली कक्षा से किसी भीतर स्थित कक्षा पर कूदता है, तो इस क्रिया में कुछ ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। ऊर्जा का उत्सर्जन होने पर विद्युत्-चुम्बकीय किरणें निकलती हैं और ऊर्जा का अवशोषण होने पर इन किरणों का अवशोषण होता है।

(iv) अनुमेय कक्षाएँ (Permissible Orbits) वे हैं, जिनके लिए कोणीय संवेग का मान [latex]\frac { h }{ 2\pi  }[/latex]  का पूर्णाक अपवर्त्य होता है।

अर्थात् [latex]mvr=\frac { nh }{ 2\pi  }[/latex] (जहाँ m-इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान, r-अनुमेय कक्षा की त्रिज्या, v = इलेक्ट्रॉन का वेग, h = प्लैंक स्थिरांक, n = शेलों की संख्या)

परमाणु संख्या (Atomic Number): किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित इकाई धन आवेशों की कुल संख्या या उस तत्व के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की कुल संख्या को उस तत्व की परमाणु संख्या कहते हैं। इसे Z से सूचित किया जाता है। किसी तत्व की परमाणु संख्या उस तत्व का मौलिक गुण होता है।

अतः परमाणु संख्या (Z)     = नाभिक में इकाई धन आवेश की कुल संख्या

                  = नाभिकीय आवेश

                  = नाभिक में प्रोटॉन की कुल संख्या (p)

                  = कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या (e)

या, Z = p = e

उदाहरण-

(i) हाइड्रोजन (H) परमाणु के नाभिक में सिर्फ 1 प्रोटॉन रहता है। अतः हाइड्रोजन की परमाणु संख्या 1 होती है।

(ii) कार्बन (C) परमाणु के नाभिक में 6 प्रोटॉन रहते हैं। अतः कार्बन की परमाणु संख्या 6 होती है।

द्रव्यमान संख्या (Mass Number): किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की संख्याओं के योगफल को उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या कहते हैं। नाभिक में प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों के योग को न्यूक्लिऑन (Nucleon) कहा जाता है।

अतः द्रव्यमान संख्या (A)    = प्रोटॉन की संख्या (p) + न्यूट्रॉन की संख्या (n)

                        = न्यूक्लिऑनों की कुल संख्या या

A = n + p

द्रव्यमान संख्या पूर्णाक होती है।

परमाण्विक प्रतीक का निरूपण (Representation of Atomic symbol): एक उदासीन परमाणु में नाभिक के बाहर इलेक्ट्रॉनों की संख्या नाभिक में उपस्थित धन आवेशों के इकाइयों की संख्या के बराबर होती है। किसी उदासीन परमाणु X के प्रतीक का निरूपण इस प्रकार से किया जाता है-

ZXA

A = द्रव्यमान संख्या (Mass Number)

Z = परमाणु संख्या (Atomic Number)

बोर-ब्यूरी योजना (Bohr-Burry scheme): किसी तत्व के परमाणु की विभिन्न कक्षाओं में चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉनों की व्यवस्था बतलाने के लिए बोर एवं ब्यूरी ने 1921 ई० में अलग अलग योजनाएँ प्रस्तुत कीं। चूंकि दोनों वैज्ञानिकों की प्रस्तावित योजना में काफी समानता थी। इसलिए इसे बोर-ब्यूरी योजना (Bohr-Burry scheme) कहा गया।

इसके अनुसार-

(i) किसी परमाणु की विभिन्न कक्षाओं में चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 2n2 होती है, जहाँ n कक्षा-संख्या है।

(ii) किसी परमाणु की सबसे बाहरी कक्षा (Outermost Orbit) में 8 से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं रह सकते हैं।

(iii) किसी परमाणु की बाह्यतम कक्षा से पहले वाली कक्षा (Penultimate Orbit) में 18 से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं रह सकते हैं, चाहे उसकी कक्षा-संख्या कुछ भी क्यों न हो।

(iv) किसी परमाणु की बाह्यतम कक्षा में 2 से अधिक और उससे पहले वाली कक्षा में 9 से अधिक इलेक्ट्रॉन तब तक उपस्थित नहीं रह सकते हैं, जबतक कि अंतिम (यानी बाह्यतम) से तीसरी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की संख्या नियम (i) के अनुसार पूर्ण न हो जाए।

कक्षा या शेल (SheII): जब कोई इलेक्ट्रॉन किसी निश्चित कक्षा में परिभ्रमण करता है, तो उसके साथ ऊर्जा की एक निश्चित मात्रा रहती है। इसलिए इन कक्षाओं को ऊर्जा स्तर (Energy Levels) भी कहते हैं। इन ऊर्जा स्तरों को स्पेक्ट्रोस्कोपी में प्रयुक्त होने वाले K, L, M, N, O, P, Q अक्षरों द्वारा सूचित किया जाता है। इन ऊर्जा स्तरों को शेल भी कहते हैं। नाभिक के सबसे निकट वाले शेल (n = 1) को K द्वारा, उसके बाद वाले शेल (n = 2) को L द्वारा सूचित किया जाता है। इसी प्रकार बाद वाले शेल क्रमश: M, N, O, P और Q द्वारा निरूपित किये जाते हैं। नाभिक के सबसे निकट वाले शेल की ऊर्जा सबसे कम तथा परमाणु के बाह्यतम शेल की ऊर्जा सबसे अधिक होती है।

उपकक्षा या सबशेल (subshell): परमाणु की आंतरिक संरचना संबंधी आधुनिक जानकारी के अनुसार प्रत्येक कक्षा या शेल में कई उपकक्षाएँ या सबशेल होते हैं। इन उपकक्षाओं को s, p, a एवं f अक्षरों से निरूपित किया जाता है। जिस तरह प्रत्येक कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या निश्चित होती है, उसी तरह प्रत्येक उपकक्षा में भी इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या निश्चित होती है। अत: s, p, d एवं f उपकक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या क्रमशः 2, 6, 10 एवं 14 हो सकती है। एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के अनुसार K कक्षा (n = 1) में केवल s उपकक्षा, L कक्षा (n=2) में s एवं p उपकक्षाएँ, M कक्षा (n=3) में s, p एवं d उपकक्षाएँ तथा N कक्षा (n = 4) में s, p, d एवं f उपकक्षाएँ उपस्थित रह सकती हैं।

इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration): कक्षाओं (शेलों) एवं उपकक्षाओं (सबशेल) में इलेक्ट्रॉनों के वितरण को परमाणु का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कहा जाता है।

उदाहरण-

(i) सोडियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास

Na (11) 2, 8, 1    1ട2, 2s2 2p2, 3s1

(ii) मैग्नीशियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास

Mg (12) 2, 8, 2   1ട2, 2s2 2p6, 3ട2

(iii) कैल्सियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास

Ca (20) 2, 8, 8, 2       1ട2, 2s2 2p6, 3ട2 3p6, 4ട2

संयोजी इलेक्ट्रॉन (valence Electron): किसी भी परमाणु की बाह्यतम कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉन संयोजी इलेक्ट्रॉन कहलाता है ।

कोर इलेक्ट्रॉन (Core electron): किसी भी परमाणु के भीतरी कक्षाओं में उपस्थित इलेक्ट्रॉन को कोर इलेक्टॉन कहते हैं।

उदाहरण-

Mg (12)- 2,8 (कोर इलेक्ट्रॉन) , 2 (संयोजी इलेक्ट्रॉन)

Ca (20)— 2,8,8 (कोर इलेक्ट्रॉन) , 2 (संयोजी इलेक्ट्रॉन)

तत्वों के संयोजी इलेक्ट्रॉन और रासायनिक गुणों में सम्बन्ध

(i) संयोजी इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा परमाणु में उपस्थित अन्य इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा अधिक होती है।

(ii) किसी तत्व के परमाणु के संयोजी इलेक्ट्रॉन द्वारा उस तत्व की संयोजकता निर्धारित होती है।

(iii) विभिन्न तत्वों के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान हो, तो उनके रासायनिक गुणों में समानता पायी जाती है। (iv) विभिन्न तत्वों के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न हो, तो उनके रासायनिक गुणों में भिन्नता होती है।

(v) किसी तत्व के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या आवर्त सारणी में उस तत्व की वर्ग संख्या के बराबर होती है।

संयोजी इलेक्ट्रॉन का महत्व

(i) रासायनिक अभिक्रिया में परमाणु के संयोजी इलेक्ट्रॉन ही भाग लेते हैं।

(ii) किसी परमाणु के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या द्वारा उस तत्व की संयोजकता निर्धारित होती है।

(iii) किसी तत्व के परमाणु में विद्यमान संयोजी इलेक्ट्रॉन की संख्या आवर्त सारणी में उस तत्व की वर्ग संख्या के बराबर होती है।

(iv) किसी तत्व के परमाणु के संयोजी शेल की संख्या आवर्त सारणी में उस तत्व का आवर्त निधारित करती है।

(v) किसी तत्व की रासायनिक प्रकृति उसके परमाणु में विद्यमान संयोजी इलेक्ट्रॉन की संख्या पर निर्भर करती है।

ऑफबाऊ सिद्धांत (Aufbau Principle): सबशेलों (subshells) में इलेक्ट्रॉनों का क्रमिक प्रवेश ऑफबाऊ सिद्धांत कहलाता है। इसकी उत्पत्ति एक जर्मन मुहावरा Aufbau Prinzip से हुई है, जिसका अर्थ है एक-एक करके जोड़ने का सिद्धांत (Building up Principle)।

ऑफबाऊ सिद्धांत निम्नलिखित नियमों पर आधारित है

(i) जिस सबशेल के लिए (n + l) का मान न्यूनतम होता है, इलेक्ट्रॉन पहले उसी में प्रवेश करते हैं।

(ii) जब दो सबशेल के लिए (n + l) का मान एक ही रहता है, तब इलेक्ट्रॉन उस सबशेल में प्रवेश करता है, जिसके लिए n का मान कम हो। (यहाँ n और l क्रमशः मुख्य क्वांटम संख्या तथा दिगंशी क्वांटम संख्या हैं l)

ऑफबाऊ सिद्धांत के आधार पर सबशेलों के उर्जा स्तर का क्रम

1s<2s<2p<3s<3p<4s<3d<4p<5s<4d<5p<6s<4f<5d<6p<7s<5f

क्रोमियम (Cr), ताँबा (Cu), सिल्वर (Ag) और सोना (Au) का वास्तविक इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ऑफबाऊ नियम के आधार पर लिखे गये इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से थोड़ा भिन्न होता है।

क्वांटम संख्याएँ (Quantum Numbers): क्वांटम संख्याएँ वे संख्याएँ हैं, जो किसी इलेक्ट्रॉन की स्थिति तथा उसकी ऊर्जा की जानकारी देता है।

किसी इलेक्ट्रॉन की स्थिति और उसकी ऊर्जा जानने के लिए निम्नलिखित चार तथ्यों का ज्ञान अनिवार्य है-

(i) इलेक्ट्रॉन का कोश (ii) उस कोश में वह किस सबकोश में है। (iii) उस सबकोश में वह किस कक्षक में है। (iv) उस कक्षक में उसका चक्रण किस प्रकार है।

क्वांटम संख्या चार प्रकार की होती हैं-

  1. मुख्य क्वांटम संख्या: नाभिक से इलेक्ट्रॉन ऑर्बिटल की औसत दूरी (Average Distance) और इलेक्ट्रॉन की औसत ऊर्जा को सूचित करती है। इसे n द्वारा सूचित किया जाता है, जिसका मान 1, 2, 3, …… इत्यादि कोई भी पूर्णाक हो सकता है, किन्तु शून्य नहीं। n का मान 1, इलेक्ट्रॉन की सामान्य अवस्था (Normal state) को बताता है।
  2. दिगंशी क्वांटम संख्या: नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन के कोणीय संवेग को प्रकट करता है। इसे l से सूचित किया जाता है। n के किसी मान के लिए l का मान 0 से लेकर (n-1) तक कुछ भी हो सकता है।

n = 1 l = 0

n = 2 l = 0, 1

n = 3 l = 0,1,2

n = 4 l = 0, 1, 2, 3

  1. चुम्बकीय क्वांटम संख्या: अन्तराकाश में इलेक्ट्रॉन के कक्षा तल के अभिविन्यास की जानकारी देता है। इसे m द्वारा सूचित किया जाता है। इसका मान l के प्रत्येक मान के लिए -l से लेकर + l तक हो सकता है। इसका मान शून्य भी होता है।

यदि,

l = 0   m = 0

1 = 1  m = -1, 0, + 1

l = 2   m = -2, –1, 0, +1, + 2 आदि

m के पूर्ण मान की संख्या = 2l + 1

n के किसी मान के लिए rn के कुल मानों की संख्या = n2

  1. चक्रण क्वांटम संख्या: परमाणु में इलेक्ट्रॉन के चक्रण को बताता है। इसे s से सूचित किया जाता है। इसके दो मान होते हैं – +1/2 तथा -1/2

पाउली का अपवर्जन सिद्धांत (Pauli’s Exclusion Principle): पाउली का अपवर्जन सिद्धांत यह बतलाता है कि एक ही परमाणु में उपस्थित दो इलेक्ट्रॉनों की चारों क्वांटम संख्याएँ सदृश नहीं हो सकती हैं। अतः यदि दो इलेक्ट्रॉनों के n, I और m के मान एक ही हों, तो उनमें से एक के लिए s का मान +1/2 तथा दूसरे के लिए -1/2 होगा।

क्वांटम संख्या प्रतीक तथ्य ज्ञान
मुख्य क्वांटम संख्या n इलेक्ट्रान का उर्जा स्तर
दिगंशी क्वांटम संख्या l इलेक्ट्रान का उपकोष
चुम्बकीय क्वांटम संख्या m इलेक्ट्रान का कक्षक
चक्रण क्वांटम संख्या s इलेक्ट्रान का चक्रण

हुण्ड का नियम (Hund’s Rule): हुण्ड के नियम को उच्चतम गुणन का नियम (Law of Maximum Multiplicity) भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार समान ऊर्जा वाले ऑर्बिटलों में पहले एक-एक इलेक्ट्रॉन प्रवेश करते हैं। इसके बाद इसमें से किसी में जब दूसरा इलेक्ट्रॉन प्रवेश करता है, तब उस ऑर्बिटल के ये दोनों इलेक्ट्रॉन विपरीत चक्रण (spin) वाले होते हैं। दूसरे शब्दों में, ऋण आवेश से आवेशित इलेक्ट्रॉनों में एक-दूसरे से यथासंभव दूर रहने की प्रवृत्ति होती है। किसी कक्षक में इलेक्ट्रॉन तभी युग्मित होते हैं, जब किसी उपकोश की सभी कक्षकों में एक इलेक्ट्रॉन हो जाता है।

आर्बिटल (Orbitals): नाभिक के चतुर्विद त्रिविम का वह क्षेत्र जिसमें इलेक्ट्रॉन के पाये जाने की प्रायिकता सबसे अधिक होती है, आर्बिटल कहलाता है। किसी आर्बिटल के तरंग फलन से संबंधित इलेक्ट्रॉन के नाभिक से विभिन्न दूरियों पर और विभिन्न दिशाओं में पाये जाने की प्रायिकता का आकलन किया जा सकता है।

समस्थानिक (Isotopes): एक ही तत्व के वे परमाणु जिनकी परमाणु संख्याएँ समान, किन्तु द्रव्यमान संख्याएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, समस्थानिक कहलाते हैं। किसी तत्व के विभिन्न समस्थानिकों की परमाणु संख्या समान होने का कारण यह है कि उनके नाभिक में प्रोटॉन की संख्या समान होती है, किन्तु उनके नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होने के कारण उनकी द्रव्यमान संख्याएँ भिन्न-भिन्न होती हैं।

उदाहरण- (i) हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक होते हैं, जिसकी परमाणु संख्या 1 किन्तु उनकी द्रव्यमान संख्याएँ क्रमशः 1, 2 और 3 होती हैं।

1H1 (प्रोटियम)  1H2 (ड्यूटेरियम)  1H3 (ट्राइटियम)

हाइड्रोजन के इन तीनों समस्थानिकों के परमाणु में 1 प्रोटॉन और 1 इलेक्ट्रॉन रहते हैं, किन्तु इसमें न्यूट्रॉनों की संख्या क्रमशः 0, 1 और 2 होती हैं।

(ii) कार्बन के दो समस्थानिक होते हैं, जिनकी परमाणु संख्या 6 तथा द्रव्यमान संख्याएँ 12 और 14 होती हैं। 6C12 तथा 6C14

समस्थानिकों के गुण: समस्थानिकों के निम्नलिखित गुण होते हैं-

(i) किसी तत्व के सभी समस्थानिकों के भौतिक गुण प्रायः भिन्न-भिन्न होते हैं।

(ii) किसी तत्व के सभी समस्थानिकों के रासायनिक गुण एक जैसे होते हैं।

(iii) किसी तत्व के सभी समस्थानिक आवर्त सारणी में एक ही स्थान ग्रहण करते हैं।

(iv) किसी तत्व के सभी समस्थानिकों के परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है।

नोट:

(i) समस्थानिक (Isotopes) एक ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है एक समान स्थान (आइसो= समान तथा टोपस = स्थान)

(ii) हाइड्रोजन ही एकमात्र ऐसा तत्व है, जिसक सभी समस्थानिकों को अलग-अलग नाम हैं।

(iii) पोलोनियम सर्वाधिक समस्थानिकों वाला तत्व है।

(iv) हाइड्रोजन का समस्थानिक ट्राइटियम (1HP3) रेडियोसक्रियता का गुणप्रदर्शित करता है।

समभारिक (Isobars): वे तत्व जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ एक ही, किन्तु परमाणु संख्याएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, समभारिक कहलाते हैं। समभारिकों की परमाणु संख्या में भिन्नता का कारण है, उन तत्वों के नाभिकों में प्रोटॉनों की संख्या का भिन्न-भिन्न होना। समभारिक एक ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, समान भारी (Iso = समान, Bars = भारी)

उदाहरण- (i) ऑर्गन (18Ar40), पोटैशियम (19K40) तथा कैल्सियम (20Ca40) समभारिक हैं, क्योंकि इन तीनों की द्रव्यमान संख्याएँ समान हैं।

(ii) नाइट्रोजन (7N14) तथा कार्बन (6C14) समभारिक हैं, क्योंकि इन दोनों की द्रव्यमान संख्याएँ समान हैं।

(iii) सोडियम (11Na24) तथा मैग्नीशियम (12Mg24) समभारिक हैं, क्योंकि इनकी द्रव्यमान संख्याएँ समान हैं।

समभारिक के गुण: समभारिक के निम्नलिखित गुण होते हैं-

(i) समभारिकों के अधिकांश भौतिक गुण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।

(ii) समभारिकों के रासायनिक गुण एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न होते हैं।

(iii) समभारिकों के वे भौतिक गुण एक समान होते हैं, जो परमाणु द्रव्यमान पर निर्भर करते हैं।

नोट: रेडियोसक्रिय तत्वों के β कणों के उत्सर्जन से समभारिक बनते हैं।

समन्यूट्रॉनिक (Isotones): वे तत्व जिनकी परमाणु संख्या एवं द्रव्यमान संख्या दोनों भिन्नभिन्न हों, किन्तु जिनके नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या समान हो, समन्यूट्रॉनिक कहलाते हैं।

उदाहरण-

(i) फॉस्फोरस (15P31) तथा सल्फर (14S30) समन्यूट्रॉनिक हैं, क्योंकि इनमें से प्रत्येक के नाभिक में 16 न्यूट्रॉन हैं।

(ii) वेनेडियम (23V51) तथा क्रोमियम (24Cr52) भी समन्यूट्रॉनिक हैं, क्योंकि इन दोनों के नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या 28 है।

समइलेक्ट्रॉनिक (Isoelectronic): वे आयन जिनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है, समइलेक्ट्रॉनिक आयन कहलाते हैं । उदाहरण- Na+, Mg++, F आदि समइलेक्ट्रॉनिक आयन हैं, क्योंकि इनमें से प्रत्येक में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 10 है।

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