स्तनधारी वर्ग Class Mammalia

  • इस वर्ग के जन्तु उच्चतापी एवं नियततापी (stenothermal) होते हैं अर्थात् इनके शरीर का ताप बाह्य वातावरण के तापमान परिवर्तन के साथ नहीं बदलता है।
  • इनका त्वचा बाल या रोम (Hairs) से ढंका रहता है।
  • इनमें बाह्य कर्ण (Pinna) उपस्थित होता है।
  • इनकी त्वचा में स्वेद एवं तैल की ग्रन्थियाँ होती हैं।
  • मादा में स्तन या दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammary glands) होती है। ये ग्रन्थियाँ रूपांतरित त्वचीय ग्रन्थियाँ होती हैं।
  • पाद चलने, दौड़ने, तैरने, खोदने, पेड़ पर चढ़ने, डाल पकड़ने या उड़ने के लिए अनुकूलित होते हैं।
  • शरीर गुहा एक मांसल तनुपद (Diaphragm) द्वारा दो भागों में विभक्त होती है। ये हैं- वक्षीय गुहा जिसमें हृदय और फुफ्फुस होते हैं तथा 2. उदरीय गुहा जिसमें अन्य अंग होते हैं।
  • इनमें दाँत जबड़ों के गढ़ों (socket) में अवस्थित होते हैं। सामान्यतः दाँतों के दो अनुक्रम होते हैं- दूध के दांत (Milk Teeth) तथा 2. स्थायी दांत (Permanent Teeth), इस प्रकार स्तनधारी जन्तु द्विवारदंती (Diphyodont) होते हैं। दाँत चार प्रकार के होते हैं- 1.कृन्तक (Incisors) – काटने के लिए, 2. भेदक (Canines) – माँस काटने के लिए, 3. अग्रचर्वणक (Premolars) – चबाने व पीसने के लिए, 4. चर्वणक (Molars) – चबाने व पीसने के लिए। इस प्रकार स्तनधारी जन्तु विषमदंती (Heterodont) होते हैं।
  • आहारनाल एवं मूत्रजननवाहिनियों के छिद्र अलग-अलग होते हैं।
  • इनमें श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है।
  • इनके स्वरयंत्र (Larynx) में स्वररज्जु (Vocal cords) होती है।
  • इनके नेत्र (Eye) में रोमयुक्त ऊपरी और निचले नेत्र छिद्र होते हैं। कभी-कभी एक छोटी निक्टिटेटिंग मेम्ब्रेन (Nictitating membrane) भी रहती है।
  • इनके हृदय में चार कोष्ठ होते हैं, शिरा विवर (sinus venosus) नहीं पाया जाता है तथा केवल बायाँ महाधमनी चाप (Left aortic arch) पाया जाता है। लाल रुधिरकण गोलाकार केन्द्रकहीन होता है तथा वृक्क निवाहिका तंत्र (Renal portal system) नहीं पाया जाता है। प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध बड़े और व्यावृत्त (Convoluted) होते हैं।
  • कॉर्पस कैलोसम (Corpus callosum) दोनों प्रमस्तिष्क गोलाद्धों को जोड़ती हुई तंत्रिका रज्जुओं की एक अनुप्रस्थ पट्टी होती है।
  • इनमे चार द्रिक पिण्ड (corpora quadrigemina) होते हैं।
  • पोन्स वेरोलाई (Pons varolie) पश्चमस्तिष्क के अधरतल पर स्थित और अनुमस्तिष्क (Cerebellum) दोनों पार्श्वों को जोड़ने वाली तंत्रिका रज्जुओं की एक अनुप्रस्थ पट्टी होती है। फॉर्निक्स (Fornix) लम्बी रज्जुओं का एक समूह होता है।
  • इनमें 12 जोड़ी कपाल तंत्रिकाएँ (Cranial nerves) होती हैं।
  • इनमें 7 ग्रीवा कशेरुक होते हैं तथा कशेरुक मूल के दोनों सिरे चपटे होते हैं।
  • इनमें दो अनुपाल मुण्डिकाएँ होती हैं तथा प्रीमैक्सिला, मैक्सिला और पैलेटाइन हड्डियाँ मिलकर एक अस्थिल तालु (Bony plate) बनाती हैं जो मुखगुहा को नासिका मार्ग से अलग करता है।
  • अंसमेखला में एक कटक पाया जाता है। कोराकॉएड अत्यल्प विकसित होता है। उरोस्थि खण्डयुक्त होती है।
  • इनमें वृक्क (Kidney) सेम के बीज की आकृति का होता है। मूत्रवाहिनी मूत्राशय में खुलती है। नर में मूत्रमार्ग (Urethra) जनन वाहिनी (Genital duct) मिलकर जनन-मूत्र नली बनाते हैं। मादा में मूत्रमार्ग और जनन नली एक योनि प्रधान (vestibule) में खुलते हैं।
  • प्राचीन स्तनधारियों में वृषण (Testes) उदर में स्थित होते हैं जबकि अधिकांश स्तनधारियों में वृषण शरीर गुहा के बाहर वृषण कोषों (scrotal sacs) में पाये जाते हैं।
  • इनमें अंडाशय छोटे होते हैं। डिंबवाहिनी के निम्नलिखित भाग होते हैं- कीप जैसा (Funnel shaped) अंतः रंध्र, 2. फैलोपियन वाहिनी (Fallopian tube), 3. गर्भाशय (Uterus) तथा 4. योनिमार्ग (Vagina)
  • प्रोटोथीरिया (Prototheria) में दोनों डिंबवाहिनी एक अवस्कर (Cloaca) में खुलती है। घानी जन्तुओं (Marsupialia) में दो डिंबवाहिनियाँ और दो योनिमार्ग होते हैं।
  • यूथीरिया (Eutheria) में गर्भाशय कुछ अंश तक या पूर्ण रूप से संयुक्त होता है और यह पूर्ण रूप से संयुक्त योनिमार्ग में खुलता है।
  • इनमें हमेशा अंतः निषेचन (Internal fertilization) होता है। यूथीरिया में भ्रूण मादा के गर्भाशय की भित्ति से एक अपरा (Placenta) द्वारा सम्बद्ध होता है जिसके माध्यम से भ्रूण का पोषण होता है।
  • वर्ग स्तनधारी को तीन उपवर्गों में बाँटा गया है- प्रोटीथीरिया (Prototheria) 2. मेटाथीरिया (Metatheria) तथा 3. यूथीरिया (Eutheria)।

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