ब्राह्मण धर्म एवं भागवत धर्म Brahmin Dharma and Bhagavat Dharma

  • भागवत धर्म, वैष्णव धर्म, शैव धर्म तथा शाक्त धर्म को सम्मिलित रुप से ब्राह्मण धर्म कहा जाता है।
  • ब्राह्मण धर्म के अंतर्गत प्रारंभ में भागवत धर्म का उदय हुआ, जिसके संस्थापक कृष्ण वासुदेव थे। कालांतर मेँ यही भागवत धर्म वैष्णव धर्म परिवर्तित हो गया।
  • भागवत धर्म का उद्भव मर्योत्तर काल में हुआ। इस धर्म के विषय में प्रारंभिक जानकारी उपनिषदों में मिलती है।
  • ब्राह्मण धर्म के जिटल कर्मकांड एवम् यज्ञ व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरुप उदय होने वाला पहला संप्रदाय भागवत संप्रदाय था।
  • वासुदेव कृष्ण के भक्त उपासक भागवत कहलाते थे।
  • एक मानवीय नायक के रुप मेँ वासुदेव के दैवीकरण का सबसे प्राचीन (सर्वप्रथम) उल्लेख पाणिनी की अष्टाध्यायी से प्राप्त होता है।
  • वासुदेव कृष्ण को वैदिक देव विष्णु का अवतार माना गया। बाद मेँ इनका समीकरण नारायण से किया गया। नारायण के उपासक पांचरात्रिक कहलाये।

[table id=90 /]

[table id=91 /]

 स्मरणीय तथ्य

  • भागवत धर्म संभवतः सूर्य पूजा से संबंधित है। भागवत धर्म का सिद्धांत भगवत् गीता मेँ निहित है।
  • वासुदेव कृष्ण संप्रदाय सांख्य योग से संबंधित था। इसमें वेदांत, सांख्य और योग की विचारधाराओं के दार्शनिक तत्वों को मिलाया गया है।
  • जैन धर्म उत्तराध्ययन सूत्र मेँ वासुदेव, जिन्हें केशव नाम से भी पुकारा गया है, को 22वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का समकालीन बताया गया है।
  • भागवत संप्रदाय की मुख्य तत्व भक्ति और अहिंसा हैं। भागवत गीता में प्रतिपादित ‘अवतार सिद्धांत’ भागवत धर्म की महत्वपूर्ण विशेषता थी
  • वैष्णव धर्म के अनुसार भक्ति मार्ग से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसमेँ कर्म तथा ज्ञान को आंशिक रुप से सहायक माना गया है।
  • ‘शिव’ की उत्पत्ति वैदिक देव रुद्र से जुड़ती है, जो कि बाद मेँ ‘अनार्यों’ के ‘उत्पादकता देव’ से जुड़ जाती है परंतु शैव धर्म अपने निश्चित रुप मेँ ईशा की प्रारंभिक शताब्दी से पूर्व प्रतीत नहीँ होता।
  • शिव भक्ति के विषय मेँ प्रारंभिक जानकारी सिंधु घाटी से प्राप्त होती है। ऋग्वेद में शिव से समय रखने वाले देवता रुद्र हैं।
  • वस्तुत शैव धर्म (एक संप्रदाय के रुप मेँ) का प्रारंभ शुंग-सातवाहन काल सातवाहन काल से हुआ, जो गुप्तकाल मेँ चरम परिणति पर पहुंचा।
  • लिंग पूजा का प्रथम अस्पष्ट उल्लेख मत्स्य पुराण मेँ मिलता है। महाभारत के अनुशासन पर्व मेँ भी लिंगोपासना का उल्लेख है।
  • हरिहर के रुप मेँ शिव की विष्णु के रुप मेँ सर्वप्रथम मूर्तियाँ गुप्तकाल मेँ बनाई गई थीं।
  • शिव की प्राचीनतम ‘गुडीवल्लम लिंग रेनुगुंटा’ से मिली है।
  • कौषीतकी एवम शतपथ ब्राहमण में शिव के 8 रूपों का का उल्लेख है- चास संहारक के रुप मेँ तथा 4 सौम्य रूप में।
  • वैसे मात्रृ देवी की उपासना का सूत्र पूर्व वैदिक काल मेँ भी खोजा जा सकता है परन्तु देवी शक्ति या शक्ति की उपासना का संप्रदाय वैदिक काल जितना ही प्राचीन है।
  • इस आदि शक्ति देवी की पूजा का स्पष्ट उल्लेख महाभारत से प्राप्त होता है।
  • पुराणोँ के अनुसार शक्ति की उपासना मुख्यतया काली और दुर्गा उपासना तक ही सीमित है।
  • वैदिक साहित्य मेँ उमा, पार्वती, अंबिका, हैमवती, रुद्राणी और भवानी जैसे नाम मिलते हैं।
  • ऋगवेद के ‘दशम मंडल’ मेँ एक पूरा सूक्त ही सत्य की उपासना से विवृत है, जिसे ‘तांत्रिक देवी सूक्त’ कहते है।
  • वैष्णव और शैव धर्मों के समन्वय की परंपरा कालिदास ने प्रारंभ की थी। इसका चरम रुप तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस मिलता है।
  • विष्णु के साथ उनकी पत्नी के रुप मेँ ‘लक्ष्मी’ या ‘श्री’ भी अविर्भाव गुप्त काल मेँ हुआ। ‘पृथ्वी’ को भी वैष्णवी रुप मेँ विष्णु की द्वितीय पत्नी बताया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *