भारत का संविधान – भाग 16 कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध

भाग 16

कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध

330. लोक सभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए  स्थानों का आरक्षण–(1) लोक सभा में– (क) अनुसूचित जातियों के लिए ,

[1][(ख) असम के स्वशासी जिलों की अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर अन्य अनुसूचित जनजातियों के लिए, और (ग) असम के स्वशासी जिलों की अनुसूचित जनजातियों के लिए, स्थान आरक्षित रहेंगे ।

(2) खंड (1) के अधीन किसी राज्य [2][या संघ राज्यक्षेत्र] में अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, लोक सभा में उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] को आबंटित स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा जो, यथास्थिति, से राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] की अनुसूचित जातियों की अथवा उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] की या उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] के भाग की अनुसूचित जनजातियों की, जिनके संबंध में स्थान इस प्रकार आरक्षित हैं, जनसंख्या का अनुपात उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] की कुल जनसंख्या से है ।

[3][(3) खंड (2) में किसी बात के होते हुए भी, लोक सभा में असम के स्वशासी जिलों की अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, उस राज्य को आबंटित स्थानों की कुल संख्या के उस अनुपात  से कम नहीं होगा जो उक्त स्वशासी जिलों की अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है।]

[4][स्पष्टीकरण–इस अनुच्छेद में और अनुच्छेद 332 में, “जनसंख्या”पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं :


परन्तु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन् [5][2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह [6][5[2001] की जनगणना के प्रति निर्देश है ।]

331. लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व–अनुच्छेद 81 में किसी बात के होते हुए भी, यदि राष्ट्रपति  की यह राय है कि लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह लोक सभा में उस समुदाय के दो से अनधिक सदस्य नाम निर्देशित कर सकेगा ।

332. राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए  स्थानों का आरक्षण–(1) [7]*** प्रत्येक राज्य की विधान सभा में अनुसूचित जातियों के लिए और [8][असम के स्वशासी जिलों की अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर] अन्य अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे ।

(2) असम राज्य की विधान सभा में स्वशासी जिलों के लिए भी स्थान आरक्षित रहेंगे।

(3) खंड (1) के अधीन किसी राज्य की विधान सभा में अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए  आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात , उस विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य  वही होगा जो, यथास्थिति, उस राज्य की अनुसूचित जातियों की अथवा उस राज्य की या उस राज्य के भाग की अनुसूचित जनजातियों की, जिनके संबंध में स्थान इस प्रकार आरक्षित हैं, जनसंख्या का अनुपात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है।

[9][(3क) खंड (3) में किसी बात के होते हुए  भी, सन् [10][2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के आधार पर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड राज्यों की विधान सभाओं में स्थानों की संख्या के, अनुच्छेद 170 के अधीन, पुनः समायोजन के प्रभावी होने तक, जो स्थान ऐसे किसी राज्य की विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए  जाएंगे, वे–

(क) यदि संविधान (सत्तावनवां संशोधन) अधिनियम, 1987 के प्रवॄत्त होने की तारीख को ऐसे राज्य की विद्यमान विधान सभा में (जिसे इस खंड में इसके पश्चात् विद्यमान विधान सभा कहा गया है) सभी स्थान अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा धारित हैं तो, एक स्थान को छोड़कर सभी स्थान होंगे ; और

(ख) किसी अन्य दशा में, उतने स्थान होंगे, जिनकी संख्या का अनुपात , स्थानों की कुल संख्या के उस अनुपात  से कम नहीं  होगा जो विद्यमान विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों की (उक्त तारीख को यथा विद्यमान) संख्या का अनुपात  विद्यमान विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या से हैं ।]

[11][(3ख) खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, सन् 2[2026] के पश्चात्  की गई पहली जनगणना के आधार पर, त्रिपुरा राज्य की विधान सभा में स्थानों की संख्या के, अनुच्छेद 170 के अधीन, पुनःसमायोजन के प्रभावी होने तक, जो स्थान उस विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए जाएंगे वे उतने स्थान होंगे जिनकी संख्या का अनुपात, स्थानों की कुल संख्या के उस अनुपात से कम नहीं होगा जो विद्यमान विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों की, संविधान (बहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रवॄत्त होने की तारीख को यथा विद्यमान संख्या का अनुपात उक्त तारीख को उस विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या से है ।]

(4) असम राज्य की विधान सभा में किसी स्वशासी जिले के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, उस विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या के उस अनुपात से कम नहीं होगा जो उस जिले की जनसंख्या का अनुपात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है।

(5) [12]*** असम के किसी राज्य के किसी स्वशासी जिले के लिए आरक्षित स्थानों के निर्वाचन-क्षेत्रों में उस जिले के बाहर का कोई क्षेत्र समाविष्ट नहीं  होगा।

(6) कोई व्यक्ति जो असम राज्य के किसी स्वशासी जिले की अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, उस राज्य की विधान सभा के लिए  4***  उस जिले के किसी निर्वाचन-क्षेत्र से निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा :

[13][परंतु असम राज्य की विधान सभा के निर्वाचनों के लिए, बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद् क्षेत्र जिला में साम्मिलित निर्वाचन-क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों और गैर-अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व, जो उस प्रकार अधिसूचित किया गया था और बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिला के गठन से पूर्व विद्यमान था, बनाए रखा जाएगा।]

333. राज्यों की विधान सभाओं में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व–अनुच्छेद 170 में किसी बात के होते हुए भी, यदि किसी राज्य के राज्यपाल  [14]*** की यह राय है कि उस राज्य की विधान सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व आवश्यक है और उसमें उसका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह उस विधान सभा में [15][उस समुदाय का एक सदस्य नामनिर्देशित कर सकेगा।]

334. स्थानों के आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्व का [16][साठ वर्ष] के पश्चात् रहनाइस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी,–

(क) लोक सभा में और राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण संबंधी, और

(ख) लोक सभा में और राज्यों की विधान सभाओं में नामनिर्देशन द्वारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रतिनिधित्व संबंधी, इस संविधान के उपबंध  इस संविधान के प्रारंभ से 1[साठ वर्ष] की अवधि की समाप्ति  पर प्रभावी नहीं  रहेंगे :

परन्तु इस अनुच्छेद की किसी बात से लोक सभा में या किसी राज्य की विधान सभा में किसी प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं  पड़ेगा जब तक, यथास्थिति , उस समय विद्यमान लोक सभा या विधान सभा का विघटन नहीं  हो जाता है ।

335. सेवाओं और पदों  के लिए  अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावेसंघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों  के लिए  नियुक्ति यां करने में, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाए  रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा  :

[17][परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के पक्ष  में, संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं के किसी वर्ग या वर्गों में या पदों  पर प्रोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिए , किसी परीक्षा में अर्हक अंकों में छूट देने या मूल्यांकन के मानकों को घटाने के लिए  उपबंध  करने से निवारित नहीं  करेगी ।]

336. कुछ सेवाओं में आंग्लभारतीय समुदाय के लिए  विशेष उपबंध (1) इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् , प्रथम दो वर्ष के दौरान, संघ की रेल, सीमाशुल्क, डाक और तार संबंधी सेवाओं में पदों  के लिए  आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों की नियुक्तियां उसी आधार पर की जाएंगी जिस आधार पर 15 अगस्त, 1947 से ठीक पहले  की जाती थीं।

प्रत्येक उत्तरवर्ती दो वर्ष की अवधि के दौरान उक्त समुदाय के सदस्यों के लिए, उक्त सेवाओं में आरक्षित पदों  की संख्या ठीक पूर्ववर्ती दो वर्ष की अवधि के दौरान इस प्रकार आरक्षित संख्या से यथासंभव निकटतम दस प्रतिशत कम होगी :

परन्तु इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष के अंत में ऐसे  सभी आरक्षण समाप्त हो जाएंगे ।

(2) यदि आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्य अन्य समुदायों के सदस्यों की तुलना में गुणागुण के आधार पर नियुक्ति  के लिए  अर्हित पाएं जाएं  तो खंड (1) के अधीन उस समुदाय के लिए  आरक्षित पदों  से भिन्न या उनके अतिरिक्त पदों पर आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों की नियुक्ति को उस खंड की कोई बात वार्जित नहीं करेगी ।

337. आंग्ल-भारतीय समुदाय के फायदे के लिए शैक्षिक अनुदान के लिए विशेष उपबंध —इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात्, प्रथम तीन वित्तीय वर्षों के दौरान आंग्ल-भारतीय समुदाय के फायदे के लिए शिक्षा के संबंध में संघ और [18]*** प्रत्येक राज्य द्वारा वही अनुदान, यदि कोई हों, दिए जाएंगे जो 31 मार्च, 1948 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में दिए गए थे।

प्रत्येक उत्तरवर्ती तीन वर्ष की अवधि के दौरान अनुदान ठीक पूर्व वर्ती तीन वर्ष की अवधि की अपेक्षा दस प्रतिशत कम हो सकेंगे :

परन्तु इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष के अंत में ऐसे अनुदान, जिस मात्रा तक वे आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए  विशेष रियायत है उस मात्रा तक, समाप्त हो जाएंगे :

परन्तु यह और कि कोई शिक्षा संस्था इस अनुच्छेद के अधीन अनुदान प्राप्त करने की तब तक हकदार नहीं होगी जब तक उसके वार्षिक  प्रवेशों में कम से कम चालीस प्रतिशत प्रवेश आंग्ल-भारतीय समुदाय से भिन्न समुदायों के सदस्यों के लिए उपलब्ध नहीं  किए जाते हैं ।

338. [19][राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग]–[20][(1) अनुसूचित जातियों के लिए एक आयोग होगा जो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के नाम से ज्ञात होगा ।

(2) संसद् द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, आयोग एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा और इस प्रकार नियुक्त किए गए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होंगी जो राष्ट्रपति, नियम द्वारा, अवधारित करे।]

(3) राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को नियुक्त करेगा।

(4) आयोग को अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करने की शक्ति होगी।

(5) आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह,–

(क) अनुसूचित जातियों [21]***के लिए  इस संविधान या तत्समय प्रवॄत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन पर निगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के कार्यकरण का मूल्यांकन करे ;

(ख) अनुसूचित जातियों 3***को उनके अधिकारों औररक्षोपायों से वंचित करने की बाबत विनिर्दिष्ट शिकायतों की जांच करें ;

(ग) अनुसूचित जातियों 3***के सामाजिक-आार्थिक विकास की योजना प्रक्रिया  में भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और किसी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करे ;

(घ) उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रतिवर्ष, और ऐसे अन्य समयों पर,जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति  को प्रतिवेदन दे ;

(ङ) ऐसे  प्रतिवेदनों में उन उपायों के बारे में जो उन रक्षोपायों के प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा किए  जाने चाहिऋ, तथा अनुसूचित जातियों 3*** के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आार्थिक विकास के लिए अन्य उपायों के बारे में सिफारिश करे ;

(च) अनुसूचित जातियों [22]***के संरक्षण, कल्याण, विकास तथा उन्नयन के संबंध में ऐसे अन्य कॄत्यों का निर्वहन करे जो राष्ट्रपति, संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, नियम द्वारा विनिर्दिष्ट करे ।

(6) राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और उसके साथ संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रतिस्थापित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकॄत की गई है तो अस्वीकॄति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा ।

(7) जहां कोई ऐसा प्रतिवेदन, या उसका कोई भाग किसी ऐसे विषय से संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है तो ऐसे प्रतिवेदन की एक प्रति उस राज्य के राज्यपाल  को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रतिस्थापित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकॄत की गई है तो अस्वीकॄति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।

(8) आयोग को खंड (5) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी विषय का अन्वेषण करते संमय या उपखंड (ख) में निर्दिष्ट किसी परिवाद के बारे में जांच करते समय, विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के संबंध में, वे सभी शक्तियां होंगी जो वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय को हैं, अर्थात्,:–

(क) भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;

(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा  करना ;

(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना ;

(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा  करना ;

(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना ;

(च) कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति, नियम द्वारा, अवधारित करे।

(9) संघ और प्रत्येक राज्यसरकार अनुसूचित जातियों 1***को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।]

[23][(10)] इस अनुच्छेद में, अनुसूचित जातियों 1***के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि इसके अंतर्गत ऐसे अन्य पिछड़े वर्गों के प्रति निर्देश, जिनकों राष्ट्रपति अनुच्छेद 340 के खंड (1) के अधीन नियुक्त आयोग के प्रतिवेदन की प्राप्ति पर आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, और आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रति निर्देश भी है ।

[24][338क. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग–(1) अनुसूचित जनजातियों के लिए  एक आयोग होगा जो राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के नाम से ज्ञात होगा।

(2) संसद् द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबधों के अधीन रहते हुए, आयोग एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा और इस प्रकार नियुक्त किए गए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होंगी जो राष्ट्रपति, नियम द्वारा अवधारित करे ।

(3) राष्ट्रपति, अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को नियुक्त करेगा।

(4) आयोग को अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करने की शक्ति होगी।

(5) आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह,–

(क) अनुसूचित जनजातियों के लिए इस संविधान या तत्समय प्रवॄत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन पर निगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के कार्यकरण का मूल्यांकन करे ;

(ख) अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और रक्षोपायों से वंचित करने के सम्बन्ध में विनिर्दिष्ट शिकायतों की जांच करे ;

(ग) अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आार्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग ले और उनपर सलाह दे तथा संघ और किसी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करे ;

(घ) उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रतिवर्ष और ऐसे अन्य समयों पर, जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करे ;

(ङ) ऐसी  रिपोर्टों में उन उपायों के बारे में, जो उन रक्षोपायों के प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा किए  जाने चाहिएं, तथा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आार्थिक विकास के लिए अन्य उपायों के बारे में सिफारिश करे ;और

(च) अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और विकास तथा उन्नयन के संबंध में ऐसे अन्य कॄत्यों का निर्वहन करे जो राष्ट्रपति , संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, नियम द्वारा विनिर्दिष्ट करे।

(6) राष्ट्रपति ऐसी सभी रिपोर्टों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और उनके साथ संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रतिस्थापित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकॄत की गई है तो अस्वीकॄति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा ।

(7) जहां कोई ऐसी रिपोर्ट या उसका कोई भाग, किसी ऐसे  विषय से संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है तो ऐसी  रिपोर्ट की एक प्रति उस राज्यके राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए  जाने के लिए प्रतिस्थापित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी  सिफारिश अस्वीकॄत की गई है तो अस्वीकॄति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।

(8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी विषय का अन्वेषण करते समय या उपखंड (ख) में निर्दिष्ट किसी परिवाद के बारे में जांच करते समय, विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के संबंध में, वे सभी शक्तियां होंगी, जो वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय को हैं, अर्थात् :–

(क) भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;

(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा  करना ;

(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना ;

(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अध्यपेक्षा करना ;

(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना ;

(च) कोई अन्य विषय, जो राष्ट्रपति , नियम द्वारा अवधारित करे।

(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी ।]

339. अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में संघ का नियंत्रण–(1) राष्ट्रपति [25]*** राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में प्रतिवेदन देने के लिए आयोग की नियुक्ति, आदेश द्वारा, किसी भी समय कर सकेगा और इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की समाप्ति पर करेगा ।

आदेश में आयोग की संरचना, शक्तियां और प्रक्रिया परिनिाश्चित की जा सकेंगी और उसमें ऐसे आनुषांगिक या सहायक उपबंध समाविष्ट हो सकेंगे जिन्हें राष्ट्रपति आवश्यक या वांछनीय समझे ।

(2) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार [26][किसी राज्य] को ऐसे निदेश देने तक होगा जो उस राज्य की अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए निदेश में आवश्यक बताई गई स्कीमों के बनाने और निष्पादन के बारे में है।

340. पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति —(1) राष्ट्रपति भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं के और जिन कठिनाइयों को वे झेल रहे हैं उनके अन्वेषण के लिए और उन कठिनाइयों को दूर करने और उनकी दशा को सुधारने के लिए  संघ या किसी राज्य द्वारा जो उपाय किए जाने चाहिएं उनके बारे में और उस प्रयोजन के लिए  संघ या किसी राज्य द्वारा जो अनुदान किए जाने चाहिएं और जिन शर्तों के अधीन वे अनुदान किए जाने चाहिएं उनके बारे में सिफारिश करने के लिए, आदेश द्वारा, एक आयोग नियुक्त कर सकेगा जो ऐसे  व्यक्तियों से मिलकर बनेगा जो वह ठीक समझे और ऐसे आयोग को नियुक्त करने वाले आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिाश्चित की जाएगी।

(2) इस प्रकार नियुक्त आयोग अपने को निर्देशित विषयों का अन्वेषण करेगा और राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा, जिसमें उसके द्वारा पात्र गए तथ्य उपवार्णित किए जाएंगे और जिसमें ऐसी सिफारिशें की जाएंगी जिन्हें आयोग उचित समझे।

(3) राष्ट्रपति, इस प्रकार दिए गए प्रतिवेदन की एक प्रति, उस पर की गई कार्रवाई को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।

341. अनुसूचित जातियां–(1) राष्ट्रपति , [27][किसी राज्य [28][या संघ राज्यक्षेत्रट के संबंध में और जहां [29]*** राज्य है वहां उसके राज्यपाल  [30]*** से परामर्श करने के पश्चात्] लोक अधिसूचना[31] द्वारा, उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों, अथवा जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भागों या उनमें के यूथों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए 2[यथास्थिति] उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] के संबंध में अनुसूचित जातियां समझा जाएगा।

(2) संसद, विधि द्वारा, किसी जाति, मूलवंश या जनजाति को अथवा जाति, मूलवंश या जनजाति के भाग या उसमें के यूथ को खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में साम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित कर सकेगी, किन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय उक्त खंड के अधीन निकाली गई अधिसूचना में किसी पश्चात् वर्ती अधिसूचना द्वारा परिवर्तन नहीं किया जाएगा  ।

342. अनुसूचित जनजातियां–(1) राष्ट्रपति, [32][किसी राज्यट [33][या संघ राज्यक्षेत्र] के संबंध में और जहां वह [34]*** राज्य है वहां उसके राज्यपाल  से [35]*** परामर्श  करने के पश्चात्] [36]लोक अधिसूचना द्वारा, उन जनजातियों या जनजाति समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के भागों या उनमें के यूथों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए, 2[यथास्थिति] उस राज्य 2[या संघ राज्यक्षेत्र] के संबंध में अनुसूचित जनजातियां समझा जाएगा।

(2) संसद्, विधि द्वारा, किसी जनजाति या जनजाति समुदाय को अथवा किसी जनजाति या जनजातिसमुदाय के भाग या उसमें के यूथ को खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची में साम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित कर सकेगी, किन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय उक्त खंड के अधीन निकाली गई अधिसूचना में किसी पश्चात्वर्ती अधिसूचना द्वारा परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

 


[1] संविधान (इकक़्यावनवां संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 2 द्वारा (16-6-1986 से) उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[2] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।

[3] संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित।

[4] संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।

[5] संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 6 द्वारा प्रतिस्थापित।

[6] संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।

[7] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों का लोप किया गया।

[8] संविधान (इकक़्यावनवां संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 3 द्वारा (16-6-1986 से) प्रतिस्थापित।

[9]संविधान (सत्तावनवां संशोधन) अधिनियम, 1987 की धारा 2 द्वारा (21-9-1987 से) अंतःस्थापित।

[10] संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 7 द्वारा प्रतिस्थापित ।

[11] संविधान (बहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 2 द्वारा (5-12-1992 से) अंतःस्थापित ।

[12] फूर्वोत्तर क्षेत्र (फुनर्गठन) अधिनियम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) कुछ शब्दों का लोप किया गया ।

[13] संविधान (नब्बेवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित ।

[14] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्दों का लोप किया गया ।

[15] संविधान (तेईसवां संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 4 द्वारा “उस विधान सभा में उस समुदाय के जितने सदस्य वह समुचित समझे नाम निर्देशित कर सकेगा”के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

[16] संविधान (उनासीवां संशोधन) अधिनियम, 1999 की धारा 2 द्वारा (25-1-2000 से) “पचास वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

[17] संविधान (बयासीवां संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित ।

[18] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया ।

[19] संविधान (नवासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) पार्श्व शरीर के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[20] संविधान (पैंसठवां संशोधन) अधिनियम,1990 की धारा 2 और तत्पश्चात संविधान (नवासीवां संशोधन) अधिनियम ए 2003 की धारा 2 द्वारा खंड (1) और (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[21] संविधान (नवासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसूचित जनजातियों”शब्दों का लोप किया गया।

[22] संविधान (नवासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसूचित जनजातियों” शब्दों का लोप किया गया ।

[23] संविधान (पैंसठवां संशोधन) अधिनियम,1990 की धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (3) को खंड (10) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया ।

[24] संविधान (नवासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 द्वारा (19-2-2004 से) अंतःस्थापित ।

[25] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया ।

[26] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “किसी ऐसे राज्य” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

[27] संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 10 द्वारा “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामर्श करने के पश्चात्” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

[28]  संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।

[29] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया ।

[30] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” का लोप किया गया ।

[31] संविधान (अऩुसूचित जातियां) आदेश, 1950 (सं.आ. 19), संविधान (अनुसूचित जातियां) (संघ राज्यक्षेत्र) आदेश, 1951 (सं.आ. 32), संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जातियां आदेश, 1956 (सं.आ. 52), संविधान (दादरा और नागर हवेली) अनुसूचित जातियां आदेश, 1962 (सं.आ. 64). संविधान (फांडिचेरी) अनुसूचित जातियां आदेश, 1964 (सं.आ. 68), संविधान (गोवा, दमण और दीव) अनुसूचित जातियां आदेश, 1968 (सं.आ. 81) और संविधान (सिक्किम) अनुसूचित जातियां आदेश, 1978 (सं.आ. 110) देखिऋ ।

[32] संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 11 द्वारा “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामर्श करने के पश्चात्” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[33] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।

[34] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।

[35]  संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्दों का लोप किया गया ।

[36]  संविधान (अऩुसूचित जनजातियां) आदेश, 1950 (सं.आ. 22), संविधान (अनुसूचित जनजातियां) (संघ राज्यक्षेत्र) आदेश, 1951 (सं.आ. 33), संविधान (अंडमान और निकोबार द्वीप) अनुसूचित जनजातियां आदेश, 1959 (सं.आ. 58). संविधान (दादरा और नागर हवेली) अनुसूचित जनजातियां आदेश, 1962 (सं.आ. 65), संविधान (अनुसूचित जनजातियां) (उत्तर प्रदेश) आदेश, 1967 (सं.आ. 78). संविधान (गोवा, दमण और दीव) अनुसूचित जनजातियां आदेश, 1968 (सं.आ. 82), संविधान (नागालैंड) अनुसूचित जनजातियां आदेश, 1970 (सं.आ. 88) और संविधान (सिक्किम) अनुसूचित जनजातियां आदेश, 1978 (सं.आ. 111) देखिए।

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