संघीय कार्यपालिका Union Executive

भारत मेँ ब्रिटेन की भांति संसदीय शासन व्यवस्था अपनाई गई है। इस व्यवस्था मेँ कार्यपालिका व्यवस्थापिका का एक हिस्सा होती है। भारत का राष्ट्रपति ब्रिटेन की राजा की तरह संवैधानिक शासक है। वास्तविक शक्तियां मंत्रिपरिषद, जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होता है, में निहित होती हैं। भारत मेँ कार्यपालिका के अंतर्गत राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद आते हैं।

राष्ट्रपति

  • अनुच्छेद 52 मेँ कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा।
  • अनुच्छेद 53 मेँ कहा गया है कि संघ की सभी कार्यपालिका संबंधी शक्ति राष्ट्रपति मेँ निहित होगी।
  • इस प्रकार भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति मेँ निहित है।
  • पर भारत मेँ संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। अतःराष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है। तथा प्रधान मंत्री और उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।
  • भारत के राष्ट्रपति, भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है।
  • भारत के राष्ट्रपति पद पर कोई भी भारत का नागरिक, जोकि निर्धारित योग्यताएं पूरी करता है, पदासीन हो सकता है।
  • भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए व्यक्ति की आयु कम से कम 35 वर्ष की होनी चाहिए।
  • राष्ट्रपति बनने वाला व्यक्ति लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यताएं पूरी करता हो।
  • राष्ट्रपति किसी भी सदन (व्यवस्थापिका या संसद) का सदस्य नहीँ होता है।
  • राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रुप से एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है।
  • निर्वाचक मंडल मेँ राज्यसभा, लोकसभा और राज्यों की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य होते हैं। नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पुदुचेरी तथा दिल्ली विभानसभा के निर्वाचित सदस्योँ को भी इस निर्वाचक मंडल मेँ सम्मिलित किया गया है।
  • राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए 50 सदस्य प्रस्तावक तथा 50 सदस्य अनुमोदक होंगे।
  • राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के अनुसार होता है।
  • राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। वह पुनर्निर्वाचन का पात्र भी है तथा 5 वर्ष से पूर्व महाभियोग लगाकर ही उसे पद से हटाया जा सकता है। वह अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को देकर स्वयं पद से हट सकता है।
  • राष्ट्रपति को पद की शपथ भारत का मुख्य न्यायधीश दिलाता है और उसकी अनुपस्थिति मेँ सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम् न्यायाधीश।
  • महाभियोग संसद के किसी भी सदन द्वारा लाया जा सकता है। यह एक सदन द्वारा लगाया जाता है तथा दूसरा सदन उसका अन्वेषण करता है।
  • महाभियोग संविधान के उल्लंघन के सम्बन्ध में लगाया जाता है तथा इसके लिए 14 दिन पूर्व लिखित सूचना देकर इस आशय का संकल्प पारित कराया जाता है।
  • राष्ट्रपति को महाभियोग के अन्वेषण के समय अव्यं उपस्थित होने तथा अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार है।
  • महाभियोग की प्रक्रिया अर्द्ध न्यायिक होती है।
  • अन्य किसी कारण से, यथा-राष्ट्रपति की मृत्यु आदि से स्थायी रुप से राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है, तो उपराष्ट्रपति तुरंत राष्ट्रपति पद पर कार्य करना प्रारंभ कर देगा, तथा नए राष्ट्रपति द्वारा पद धारण करने पक कार्य करता रहेगा।
  • यदि किसी कारणवश चुनाव मेँ विलंब हो जाए तो पदासीन राष्ट्रपति पद पर बना रहता है जब तक की नया राष्ट्रपति पद ग्रहण ना कर ले, उल्लेखनीय है कि इस समय उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य नहीँ करता। राष्ट्रपति का निर्वाचन पद रिक्त होने की अवधि के भीतर हो जाना चाहिए।
  • राष्ट्रपति का बीमारी या अन्य किसी कारण से राष्ट्रपति पद पर हुई अस्थाई रिक्ति के समय उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करता है।
  • डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वह लगातार दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
  • डॉ. एस. राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपति तथा एक बार राष्ट्रपति रहे।
  • केवल वी. वी. गिरी के निर्वाचन के समय दूसरे चक्र की मतगणना करनी पड़ी। अभी तक दूसरे चक्र की गणना से गिरी ही राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।
  • श्री वी.वी. गिरी ही ऐसे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए जिन्होंने ने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप मेँ चुनाव मेँ सफलता प्राप्त की।
  • केवल नीलम संजीव रेड्डी ऐसे राष्ट्रपति हुए जो एक बार चुनाव मेँ पराजित हुआ तथा बाद मेँ निर्विरोध निर्वाचित हुए।
  • डॉ. राजेंद्र प्रसाद, फखरुद्दीन अली अहमद, नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी को छोड़कर अन्य सभी राष्ट्रपति पूर्व मेँ उपराष्ट्रपति के पद पर रहे हैं।

राष्ट्रपति की प्रशासनिक शक्तियां

  • भारत सरकार की सभी कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति के नाम से किया जाता है।
  • राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका नहीँ है, अपितु वह संवैधानिक प्रधान है।
  • 42वेँ संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य कर दिया है।
  • 44वें संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह को केवल एक बार पुनर्विचार के लिए प्रेषित करने का अधिकार दिया गया है। यदि मंत्रिपरिषद अपने विचार पर टिकी रहती है, तो राष्ट्रपति उसकी सलाह मानने के लिए बाध्य होगा।
  • राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियोँ की भी नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत उत्तरदायी होता है।
  • इसके अलावा राष्ट्रपति, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, राज्योँ के राज्यपाल, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्योँ के संयुक्त लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग, निर्वाचन आयोग के सदस्य तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त, विभिन्न अन्य आयोग-राजभाषा आयोग, अल्पसंख्यक तथा पिछड़ा वर्ग आयोग और अनुसूचित क्षेत्रोँ के लिए आयोग आदि।
  • राष्ट्रपति संघीय प्रशासन से संबंधित किसी भी प्रकार की सूचना प्रधानमंत्री से प्राप्त कर सकता है।
  • इसके अलावा राष्ट्रपति प्रत्यक्ष रुप से संघीय राज्योँ का प्रशासन उप-राज्यपाल अथवा आयुक्त के माध्यम से देखता है।

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां

  • राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है (अनुच्छेद 79)।
  • राष्ट्रपति संसद के दोनो सदनों को आहूत करने, सत्रावसान करने और लोकसभा का विघटन करने की शक्ति रखता है।
  • राष्ट्रपति लोकसभा के प्रति एक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के प्रारंभ मेँ तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ मेँ एक साथ संसद के दोनो सदनोँ मेँ प्रारंभिक अभिभाषण करता है।
  • राष्ट्रपति को संसद मेँ विधायी-विषयों के संबंध मेँ संदेश भेजने का अधिकार है।
  • लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के पद खाली होने की स्थिति मेँ राष्ट्रपति उस पद के लिए लोकसभा के किसी भी सदस्य को नियुक्त कर सकता है और यही कार्य राज्यसभा मेँ सभापति तथा उपसभापति की अनुपस्थिति मेँ भी करता है।
  • राष्ट्रपति को लोकसभा मेँ एंग्लो इंडियन समुदाय के दो व्यक्ति तथा राज्य सभा मेँ 12 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है।
  • संसद द्वारा वांछित कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है, जब उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं।
  • राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय वितरण, नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन, वित्त आयोग की सिफारिश तथा अन्य आयोग की रिपोर्ट संसद मेँ प्रस्तुत करवाता है।
  • कुछ विषयों से संबंधित विधेयक संसद मेँ प्रस्तुत करवाने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है, जैसे-राज्योँ की सीमा परिवर्तन और धन विधेयक।
  • राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को अनुमति दे सकता है। उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है, तथा उस पर अपनी अनुमति रोक सकता है। लेकिन धन विधेयक पर राष्ट्रपति को अनिवार्य रुप से अनुमति देनी होती है तथा उसे पुनर्विचार के लिए वापस नहीँ भेज सकता है। संविधान संशोधन विधेयक के लिए भी इसी प्रकार का प्रावधान है।
  • यदि राष्ट्रपति द्वारा संसद को पुनर्विचार के लिए वापस किया गया विधेयक पुनः विचार करने के पश्चात राष्ट्रपति की अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो इस पर वह अनिवार्य रुप से अनुमति देगा।
  • संविधान मेँ राष्ट्रपति को किसी विधायक को अनुमति देने या अनुमति न देने के संबंध मेँ कोई समय सीमा निर्धारित नहीँ की गई है।
  • राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की समय सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति वीटो का प्रयोग कर सकता है।
  • राष्ट्रपति जब संसद का सत्र न चल रहा हो तथा किसी विषय पर तुरंत विधान बनाने की आवश्यकता हो तो वह अध्यादेश द्वारा विधान बना सकता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा बनाये गए अध्यादेश संसद के विधान की तरह होते हैं, लेकिन अध्यादेश अस्थायी होते हैं।
  • राष्ट्रपति अध्यादेश अपनी मंत्रिपरिषद की सलाह से जारी करता है।
  • संसद का अधिवेशन होने पर अध्यादेश संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए, यदि संसद उस अध्यादेश को अधिवेशन प्रारंभ होने की तिथि से 6 सप्ताह के भीतर पारित नहीँ कर देती तो वह स्वयं ही निष्प्रभावी हो जाएगा।
  • 44वेँ संविधान संशोधन, 1978 द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, राष्ट्रपति के अध्यादेश निकालने की परिस्थितियोँ को असदभावनापूर्ण होने का संदेह होने पर न्यायालय मेँ चुनौती दी जा सकती है।

राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां

  • राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्व के विषय पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है। लेकिन वह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीँ है।
  • राष्ट्रपति किसी सैनिक न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को को, तथा अपराधी को मृत्युदंड दिए जाने की स्थिति मेँ क्षमादान दे सकता है। दंड को कम कर सकता है। दंड की प्रकृति को परिवर्तित कर सकता है। दंड को निलंबित कर सकता है।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां

  • राष्ट्रपति तीनो सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है, वह तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्षों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति को युद्ध या शांति की घोषणा करने तथा रक्षा बलों को अभिनियोजित करने का अधिकार है। लेकिन राष्ट्रपति के अधिकार संसद द्वारा नियंत्रित हैं।
  • राष्ट्रपति 3 परिस्थितियो में आपात लागू कर सकता है:
  1. युद्ध वाह्य आक्रमण या विद्रोह से यदि भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट मेँ हो (अनुच्छेद 352)।
  2. किसी राज्य मेँ संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने, केंद्र की आज्ञा का अनुपालन न करने, अथवा संविधान के अनुबंधों का पालन न करने की स्थिति मेँ (अनुच्छेद 356) आपातकाल की घोषणा कर सकता है। विधानमंडल की शक्तियां संसद को सौंप दी जाती हैं।
  3. भारत मेँ वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति वित्तीय आपात की उद्घोषणा (अनुच्छेद 360) कर सकता है। जिसके अंतर्गत राज्योँ के व्यय को नियंत्रित करके और लोक सेवकों के वेतन घटाकर तथा अन्य उपाय करके वित्तीय स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करता है।

भारत के महान्यायवादी


  • अनुच्छेद 76 के कथानुसार, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने की योग्यता रखने वाले किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा।
  • वह भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होगा।
  • यह परंपरा है कि सरकार परिवर्तित होने पर महान्यायवादी त्यागपत्र दे देता है तथा नई सरकार अपनी रुचि के अनुसार किसी व्यक्ति को महान्यायवादी नियुक्त करती है।
  • वह विधि संबंधी किसी भी विषय पर भारत सरकार को परामर्श देता है। वह भारत के राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए किसी भी विधि संबंधी कार्य को पूरा करता है। वह संविधान या राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किए गए किसी भी कार्य को संपन्न न करता है।
  • अपने कर्तव्यों के निर्वाह में वह भारतीय क्षेत्र के सभी न्यायालयों मेँ श्रोता होने का अधिकारी होगा।
  • जिन वादों मेँ भारत सरकार को परामर्श देने के लिए उसे बुलाया जाता है, उसमेँ वह भारत सरकार के विरुद्ध न तो कोई परामर्श देगा और न ही कोई विवरण देगा। न ही वह भारत सरकार की अनुमति के बिना अपराधिक मामलोँ के किसी अभियुक्त का बचाव करेगा।
  • वह किसी कंपनी के निदेशक के रुप मेँ नियुक्त नहीँ हो सकता।
  • महान्यायवादी न्यायालय के समक्ष केंद्र व राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। परंतु उसे निजी तौर पर (कानून संबंधी) पेशा करने का अधिकार है, बशर्ते कि किसी वाद का एक पक्ष स्वयं राज्य न हो।
  • भारत के महान्यायवादी नियुक्त होने के लिए एक व्यक्ति के पास वही अहर्ताएं होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के रुप मेँ नियुक्ति के लिए अपेक्षित होती हैं। चूँकि यह एक राजनीतिक नियुक्ति है, अतः प्रजा द्वारा सरकार बदलने पर महान्यायवादी का पद त्याग करना बाध्य है।
  • महान्यायवादी को उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के बराबर प्रतिधारण शुल्क दिया जाता है और वह विधि व्यवसाय के लिए स्वतंत्र है, बशर्ते की वह राज्य के विरुद्ध न खड़ा हो।
  • अपने कार्योँ का पालन करने के लिए उसे देश के किसी भी न्यायालय मेँ सुनवाई का अधिकार है।
  • संसद के किसी भी सदन मेँ या उसकी समिति की बैठक मेँ भाग लेने का अधिकार है।
  • दो सॉलिसिटर जनरल और 4 एडिशनल सॉलिसिटर जनरल प्रदान किए जाते हैं।

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उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन

  • लोकसभा तथा राज्यसभा के सभी सदस्योँ (मनोनीत सदस्य सहित) वाले निर्वाचक मंडल द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा उपराष्ट्रपति का निर्वाचन होता है।

पदच्युति

  • राज्यसभा के ‘वास्तविक बहुमत’ द्वारा पारित तथा लोकसभा की सहमति द्वारा प्राप्त संकल्प द्वारा उपराष्ट्रपति को पदच्युत किया जा सकता है।

वास्तविक बहुमत

  • यह सदन के सदस्योँ की वास्तविक संख्या के 50 % से अधिक होता है (रिक्तियों की गणना नहीँ की जाती है), दूसरे शब्दोँ मेँ, सदन के सदस्यों की कुल संख्या मेँ से रिक्तियोँ की संख्या को घटाकर सदन के सदस्यों की वास्तविक संख्या प्राप्त की जाति है।
  • राज्यसभा जहाँ सदस्योँ की कुल संख्या 245 है, के परिप्रेक्ष्य मेँ यदि 15 स्थान रिक्त हैं, तो वास्तविक सदस्य संख्या 230 होगी तथा उसके 50 % से अधिक अर्थात 116 या उससे ऊपर की संख्या को वास्तविक बहुमत कहा जाएगा।
  • भारत के उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए इस आशय के संकल्प को वास्तविक बहुमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है।

विशेष परिस्थितियोँ मेँ उपराष्ट्रपति के कर्तव्य

  • अनुच्छेद 65 के अनुसार राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पदच्युति या अन्य किसी कारण से उसका पद रिक्त हो जाने की स्थिति मेँ न राष्ट्रपति के निर्वाचन होने की तिथि तक उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करेगा।
  • अपनी अनुपस्थिति, रुग्णता या अन्य किसी कारण से जब राष्ट्रपति अपने कृत्योँ का निर्वाह करने मेँ समर्थ नहीँ होता है, तब उपराष्ट्रपति उसके कृत्योँ को संपन्न करेगा जब तक की राष्ट्रपति पुनः अपना कार्य प्रारंभ नहीँ कर देता।
  • जब तक उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करता या या राष्ट्रपति के कृत्योँ का निर्वाह करता है, तब वह राष्ट्रपति की समस्त शक्तियोँ का प्रयोग करेंगा और राष्ट्रपति के वेतन व भत्तों को प्राप्त करेगा।

उपराष्ट्रपति होने की अर्हता

  • भारत का नागरिक हो।
  • उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
  • वह राज्य सभा के सदस्य के रुप मेँ निर्वाचित होने के योग्य हो।
  • सरकार के तहत किसी लाभ के पद को धारण करने वाला व्यक्ति उपराष्ट्रपति के रुप मेँ निर्वाचित होने के योग्य नहीँ होगा।
  • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या केंद्र अथवा किसी राज्य के मंत्री का पद लाभ का पद नहीँ माना जाएगा।

उपराष्ट्रपति पद की कार्यविधि (अनुच्छेद 67)

  • उपराष्ट्रपति 5 वर्षोँ की कार्यविधि के लिए निर्वाचित होता है, अथवा अपने उत्तराधिकारी के पद धारण करने तक पदासीन रहता है।
  • उपराष्ट्रपति स्व-हस्तलिखित तथा राष्ट्रपति को संबोधित त्यागपत्र द्वारा अपना पद छोड़ सकता है।
कैबिनेट मंत्री ऐसे मंत्री को मंत्रिमंडल की प्रत्येक बैठक मेँ उपस्थित होने तथा भाग लेने का अधिकार है (अनुच्छेद 352) के अधीन आपात की उद्घोषणा लिए सलाह प्रधानमंत्री और अन्य कैबिनेट मंत्री मिल कर देंगे।
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) यह किसी कैबिनेट मंत्री के अधीन काम नहीँ करता।
राज्य मंत्री इसके पास किसी विभाग का स्वतंत्र प्रभार नहीँ होता और यह मंत्री के अधीन कार्य करता है। ऐसे मंत्री को उसका कैबिनेट मंत्री कार्य आवंटित करता है।
उपमंत्री ऐसा मंत्री कैबिनेट मंत्री या स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री के अधीन कार्य करता है। जिस मंत्री के अधीन वह कार्य करता है वही उसे कार्य आवंटित करता है। प्रधानमंत्री कैबिनेट मंत्रियोँ को और स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री को विभाग आवंटित करता है। अन्य मंत्रियोँ को कार्य का आवंटन उनके कैबिनेट मंत्री करते हैं।

  • राज्यसभा के तत्कालीन सभी सदस्योँ के बहुमत द्वारा पारित तथा लोक सभा द्वारा सहमत संकल्प (resolution) द्वारा उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाया जा सकता है। किसी औपचारिक महाभियोग की आवश्यकता नहीँ है। परन्तु इस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की सूचना कम से कम 14 दिन पहले देनी होगी।
  • यदि उपराष्ट्रपति भी राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करने मेँ असमर्थ हो तो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायधीश और यदि वह भी अनुपस्थित हो तो उच्चतम न्यायालय का अन्य वरिष्ठ न्यायधीश राष्ट्रपति के पद पर कार्य करता है।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक होना आवश्यक नहीँ है।
  • उपराष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार राज्यसभा के सदस्य के रुप मेँ निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
  • उपराष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीँ होता है।
  • उपराष्ट्रपति पद पर कोई भी व्यक्ति कितनी बार निर्वाचित हो सकता है, इसकी कोई सीमा नहीँ है।
  • उपराष्ट्रपति 5 वर्ष से पूर्व स्वयं त्यागपत्र राष्ट्रपति को देकर पद से हट सकता है।
  • उपराष्ट्रपति को 5 वर्ष पूर्व संविधान के उल्लंघन के आरोप मेँ हटाया जा सकता है।
  • उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। उसकी अनुपस्थिति मेँ राज्यसभा का उपसभापति सभापति के रुप मेँ कार्य करता है।
  • उपराष्ट्रपति जब राज्यसभा के सभापति के रुप मेँ कार्य करता है। तो उसे राज्य सभा के सभापति का वेतन तथा जब वह राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य करता है तो राष्ट्रपति को मिलने वाले वेतन एवं अन्य उपलब्धियो को प्राप्त करता है।
  • उपराष्ट्रपति एक समय मेँ एक ही कार्य कर सकता है अर्थात यदि वह राष्ट्रपति के रुप मेँ कार्य कर रहा है तो राज्य सभा के सभापति के रुप मेँ कार्य नहीँ कर सकता, तब राज्य सभा का उपसभापति सभापति के रुप मेँ कार्य करेगा।
  • राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित संदेह और विवाद का निर्धारण उच्चतम न्यायालय करेगा।
  • राष्ट्रपति के त्यागपत्र की सूचना उपराष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष को देगा।
  • संसद मेँ संशोधन विधेयक पारित कर के उपराष्ट्रपति का राज्य सभा के सभापति के रुप मेँ मिलने वाला वेतन 1,50,000 रुपए कर दिया है।

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कार्य पालिका के प्रकार
संसदीय अर्द्ध-अध्यक्षात्मक अध्यक्षात्मक
सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत पर आधारित प्रणाली राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है एक व्यक्ति के नेतृत्व के सिद्धांत पर आधारित प्रणाली
सरकार के प्रमुख को आम तौर पर प्रधानमंत्री कहा जाता है राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है
वह विधायिका में बहुमत वाले दल का नेता होता है। प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। वही सरकार का भी प्रमुख होता है।
वह विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है। दोनों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान से होता है राष्ट्रपति का चुनाव आम तौर पर प्रत्यक्ष निर्वाचन से होता है।
देश का प्रमुख राजा या संवैधानिक कोई भी हो सकता है, औपचारिक शासन प्रमुख के रूप में संसद होगी। जैसे-भारत, कनाडा, इंग्लैण्ड प्रधानमंत्री और उसकी मंत्री परिषद् विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है। यह विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता है, जैसे-अमेरिका, ब्राजील।
राष्ट्रपति भी दैनिक कार्यों में संपादन करता है, जैसे- फ़्रांस, रूस, श्रीलंका

मंत्रिपरिषद

  • मंत्रिपरिषद के सभी सदस्य मंत्रिमंडल के सदस्य नहीँ होते हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद 74 मेँ उपबंध है कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों का निर्वाह करने मेँ सहायता एवं सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान प्रधान मंत्री होगा और राष्ट्रपति उसी की सलाह पर कार्य करेगा।
  • मंत्री किसी भी सदन राज्यसभा अथवा लोक सभा के सदस्योँ में से चुना जाता है।
  • मंत्री दोनो सदनो लोक सभा तथा राज्य सभा मेँ बोल सकता है तथा कार्यवाही मेँ भी भाग ले सकता है, लेकिन वह उस सदन में मतदान मेँ भाग नहीँ ले सकता है जिसका वह सदस्य नहीँ होता है, अर्थात् वह केवल उसी सदन मेँ मत दे सकता है जिसका वह सदस्य होता है।
  • मंत्रिपरिषद मेँ तीन प्रकार के मंत्री होते हैं:
  1. मंत्रिमंडल स्तर के मंत्री या मंत्रिमंडल के सदस्य
  2. राज्य मंत्री
  3. उपमंत्री
  • संविधान मेँ केवल मंत्रिपरिषद का उल्लेख किया गया है। मंत्रिमंडल शब्द 44वेँ संवैधानिक संशोधन द्वारा 1978 द्वारा अस्तित्व मेँ आया।
  • मंत्रिमंडल, मंत्रिपरिषद का एक लघु  अंश है।
  • कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है।
  • किसी ऐसे व्यक्ति को जो संसद का सदस्य नहीँ है। मंत्री नियुक्त किया जा सकता है लेकिन उसे 6 मास के अंदर संसद के किसी सदन की सदस्यता ग्रहण कर लेनी चाहिए अन्यथा वह मंत्री नहीँ रहेगा।
  • मंत्रिपरिषद, लोकसभा के प्रति सामूहिक रुप से उत्तरदायी होती है, इसका अर्थ यह है कि सभी मंत्री एक साथ केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हैं। राज्यसभा के प्रति नहीँ, उत्तरदायित्व का तात्पर्य यह है कि यदि लोकसभा मेँ किसी भी एक मंत्री के प्रति अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है तो पूरी मंत्रीपरिषद को त्याग पत्र देना पड़ता है।
  • मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करते हैं, अर्थात प्रत्येक मंत्री का राष्ट्रपति के प्रति व्यक्तिगत उत्तरदायित्व भी होता है। इसका तात्पर्य यह है कि लोकसभा मेँ मंत्री को विश्वास प्राप्त होते हुए भी उसे राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री की सलाह पर पद से हटा सकता है, यह अधिकार वास्तव मेँ प्रधानमंत्री को ही प्राप्त होता है कि किसे मंत्री रखे या किसे मंत्री पद से मुक्त करे, राष्ट्रपति मात्र संवैधानिक औपचारिकता पूरी करता है।
  • ऐसा व्यक्ति भी मंत्री नियुक्त किया जा सकता है जो किसी सदन का सदस्य नहीँ है किंतु उसे 6 माह के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य बनना होगा। मंत्रिपरिषद सामूहिक रुप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है-अनुच्छेद 75 (3)।
  • अनुच्छेद-78  के अंतर्गत प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि वह मंत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय राष्ट्रपति को संसूचित करे और जो जानकारी राष्ट्रपति मांगे, वह दे। इस प्रकार प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद को जोड़ने वाली कड़ी होता है।
  • यदि राष्ट्रपति यह चाहता है की किसी बात परर मंत्रिपरिषद विचार करे तो वह प्रधानमंत्री को सूचना देगा।
  • प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति लोकसभा भंग कर सकता है किंतु मंत्रिपरिषद को यदि लोकसभा का बहुमत प्राप्त न हो तो राष्ट्रपति लोकसभा भंग करने मेँ अपने विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकता है।
प्रधानमंत्री से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई
सबसे लंबे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु
सबसे छोटे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
एक मात्र प्रधानमंत्री, जिन्होंने लोकसभा का कभी सामना नहीँ किया चौधरी चरण सिंह
लोकसभा चुनाव मेँ पराजित होने वाली एक मात्र प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी
अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाए जाने वाले एक मात्र प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह

भारत के उप प्रधानमंत्री

  • संविधान मेँ उप-प्रधानमंत्री पद की व्यवस्था नहीँ है।
  • समय-समय पर नेताओं की वरीयता और राजनीतिक बाध्यता के कारण कुछ लोग इस पद पर आसीन हुए।
  • संविधानिक दृष्टि से उपप्रधानमंत्री और कैबिनेट की किसी अन्य सदस्य की स्थिति मेँ कोई अंतर नहीँ है।
मंत्रिमंडल उप-प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरु सरदार बल्लभ भाई पटेल (1947-50)
इंदिरा गाँधी मोरारजी देसाई (1967-69)
मोरारजी देसाई जगजीवन राम एवं चरण सिंह (1977-79)
वी.पी. सिंह चौधरी देवीलाल (1989-90)
चंद्रशेखर चौधरी देवीलाल (1990-91)
अटल बिहारी वाजपेयी लाल कृष्ण आडवाणी (2002)

संघ के मंत्रालयों / विभागों की सूची
कृषि मंत्रालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय
कृषि और सहकरीता विभाग प्रारंभिक शिक्षा और साक्षरता विभाग
कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा विभाग
पशुपालन और डेयरी विभाग, मत्स्य पालन महिला और बल विकास विभाग (इसके अधीन खाद्य और पोषक मंडल)
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय सूचना और प्रसारण मंत्रालय
रसायन और पेट्रो रसायन विभाग श्रम मंत्रालय
उर्वरक विभाग विधि और न्याय विभाग
नागर विमान मंत्रालय विधि कार्य विभाग
कोयला मंत्रालय विधायी विभाग
वाणिज्य और उद्योग न्याय विभाग
वाणिज्य विभाग खान मंत्रालय
औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग अपारंपरिक उर्जा स्रोत मंत्रालय
संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय अप्रवासी भारतीयों के मामलों का मंत्रालय
दूरसंचार विभाग संसदीय कार्य मंत्रालय
डाक विभाग कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय
सूचना प्रौद्योगिकी विभाग कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
संस्कृति मंत्रालय प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग
भारतीय पुरातत्व विभाग पेंशन और पेंशन भोगी कल्याण मंत्रालय
रक्षा मंत्रालय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय
रक्षा विभाग योजना आयोग
रक्षा उत्पाद और आपूर्ति विभाग विद्युत् मंत्रालय
रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग रेल मंत्रालय
पर्यावरण और वन मंत्रालय पोत परिवहन, सड़क और राजमार्ग मंत्रालय
विदेश मंत्रालय ग्रामीण विकास मंत्रालय
वित्त मंत्रालय ग्रामीण विकास विभाग
आर्थिक कार्य विभाग भूमि संसाधन विभाग
व्यय विभाग पेयजल पूर्ति विभाग
राजस्व विभाग विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय
आर्थिक सेवा विभाग विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग
कंपनी कार्य मंत्रालय विज्ञान और औद्योगिक विकास विभाग
उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजानिक वितरण मंत्रालय बायोटेक्नोलॉजी विभाग
उपभोक्ता मामले विभाग लघु उद्योग मंत्रालय
खाद्य और सार्वजानिक वितरण विभाग सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय
खाद्य प्रसंकरण उद्योग मंत्रालय इस्पात मंत्रालय
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय वस्त्र मंत्रालय
स्वास्थ्य विभाग पर्यटन मंत्रालय
परिवार कल्याण विभाग जनजाति कार्य मंत्रालय
आयुर्वेदिक योग चिकित्सा पद्धति, यूनानी, सिद्ध होम्योपैथी मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय जनसँख्या आयोग शहरी विकास मंत्रालय
शहरी रोजगार और गरीबी उपशमन मंत्रालय
जल संसाधन मंत्रालय
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
री उद्योग और लोक उद्यम मंत्रालय गृह मंत्रालय
भारी उद्योग विभाग आतंरिक सुरक्षा विभाग
लोक उद्यम विभाग राज्य विभाग
राजभाषा विभाग
गृह विभाग
जम्मू और कश्मीर विभाग (इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन)
सीमा प्रबंध विभाग

प्रमुख पदाधिकारियों की नियुक्ति और त्यागपत्र
पदाधिकारी किसके द्वारा निर्वाचित या नियुक्त होता है कौन शपथ ग्रहण करवाता है किसको त्यागपत्र देता है
राष्ट्रपति निर्वाचक मंडल (संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य) उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति या राज्यसभा का सभापति निर्वाचक मंडल (जो संसद के दोनों सदनों के समस्त सदस्यों से मिलकर बना होता है) राष्ट्रपति राष्ट्रपति
प्रधानमंत्री राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त (सामान्यतः राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को नियुक्त करता है, जो लोकसभा में बहुमत दल का नेता होता है। राष्ट्रपति राष्ट्रपति
लोक सभा अध्यक्ष लोक सभा के सदस्यों के सामान्य बहुमत द्वारा लोक सभा उपाध्यक्ष
लोक सभा उपाध्यक्ष लोक सभा सदस्यों के सामान्य बहुमत द्वारा लोक सभा अध्यक्ष
राज्य सभा का उपसभापति राज्य सभा के सदस्यों के सामान्य बहुमत द्वारा राज्य सभा का सभापति (उप-राष्ट्रपति)
मुख्य चुनाव आयुक्त राष्ट्रपति राष्ट्रपति
उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति (सेवानिवृत्त हो रहे मुख्य न्यायधीश की सिफारिश पर) राष्ट्रपति राष्ट्रपति
उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश राष्ट्रपति (उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश पर) राष्ट्रपति राष्ट्रपति
एटॉर्नी जनरल राष्ट्रपति राष्ट्रपति
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक राष्ट्रपति राष्ट्रपति
सोलिसिटर जनरल राष्ट्रपति राष्ट्रपति
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष राष्ट्रपति राष्ट्रपति
योजना आयोग के अध्यक्ष राष्ट्रपति राष्ट्रपति राष्ट्रपति
योजना आयोग के उपाध्यक्ष राष्ट्रपति राष्ट्रपति
योजना आयोग के सदस्य राष्ट्रपति राष्ट्रपति
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर राष्ट्रपति राष्ट्रपति
राज्यपाल राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति
मुख्यमंत्री राज्यपाल (सामान्य मतदान द्वारा विधान सभा के बहुमत दल का नेता) राज्यपाल राज्यपाल
उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति (उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा सम्बद्ध राज्य के राज्यपाल के परामर्श से) राज्यपाल राष्ट्रपति
उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश राष्ट्रपति (उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से) राज्यपाल राष्ट्रपति
महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) राज्यपाल (मंत्रिमंडल की सिफारिश पर) राज्यपाल
एकाउण्टेंट जनरल राज्यपाल (मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राज्यपाल
राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष राज्यपाल (मंत्रिमंडल की सिफारश पर) राज्यपाल
वित्त आयोग के अध्यक्ष राष्ट्रपति राष्ट्रपति
उच्चायुक्त राष्ट्रपति राष्ट्रपति
जिला न्यायाधीश राज्यपाल राज्यपाल

भारत के मुख्य पदाधिकारियों से सम्बंधित आयु सम्बंधित तथ्य
पदाधिकारी न्यूनतम आयु अधिकतम आयु
राष्ट्रपति 35 वर्ष
उपराष्ट्रपति 35 वर्ष
लोक सभा अध्यक्ष 25 वर्ष
राज्य सभा सदस्य 30 वर्ष
मुख्य न्यायाधीश (सर्वोच्च न्यायालय) 65 वर्ष
महान्यायवादी 65 वर्ष
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक 65 वर्ष
अध्यक्ष लोक सेवा आयोग 65
राज्यपाल 35 वर्ष
मुख्यमंत्री 25 वर्ष
विधानसभा सदस्य 25 वर्ष
विधान परिषद् सदस्य 30 वर्ष
मुख्य न्यायाधीश (उच्च न्यायालय) 62 वर्ष
अन्य न्यायाधीश (उच्च न्यायालय) 62 वर्ष

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