चुम्बकत्व Magnetism

ईसा से 600 वर्ष पूर्व एशिया माइनर के मैग्नीशिया नामक स्थान में ऐसे पत्थर पाए गए जिनमे आकर्षण (Attraction) और दैशिक (Directional) गुण थे। चूँकि ये पत्थर मैग्नीशिया नमक स्थान में पाए गए थे, इसलिए ये मैगनेट कहलाये जाने लगे। इन्हें हिन्दी में चुम्बक कहते हैं। ये पत्थर वास्तव में लोहे मैगनेटाइट नाम के एक ऑक्साइड (Fe2O4) हैं, जो पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर पाए जाते हैं। सामान्यतः चुम्बक के उपर्युक्त गुणों (आकर्षण औए दैशिक) को चुम्बकत्व कहते हैं। चुम्बक दो प्रकार के होते हैं-

1. प्राकृतिक चुम्बक Natural Magnets- प्रकृति में स्वतंत्र रूप से पाए जाने वाले चुम्बक, प्राकृतिक चुम्बक कहलाते हैं, जैसे मैगनेशिया नमक स्थान पर पाए जाने वाले मैगनेटाइट पत्थर।

2. कृत्रिम चुम्बक Artificial Magnets – कुछ वस्तुओं को कृत्रिम विधियों द्वारा चुम्बक बनाया जा सकता है\ ऐसे चुम्बकों को कृत्रिम चुम्बक कहते हैं। ये सामान्यतः लोहे या इस्पात से बनाये जाते हैं। ये विभिन्न आकृतियों के होते हैं। इन्हीं आकृतियों के आधार पर इनके नाम हैं।

चुम्बक का परमाणवीय माडल Atomic Model Of Magnetism- सन 1846 में फैराडे ने देखा की प्रायः सभी पदार्थों में चुम्ब्कतव के कुछ न कुछ गुण पाए जाते हैं। उन्होंने अनेक पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर, उनके चुम्बकीय व्यवहारों का अध्ययन किया तथा इस आधार पर पदार्थों को 3 वर्गों में विभाजित किया-

1. प्रति चुम्बकीय Dia-Magnetic Substance

2. अनु चुम्बकीय Para-Magnetic Substance

3. लौह चुम्बकीय Ferro Magnetic  Substance



प्रति चुम्बकीय Dia-Magnetic Substance

कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की विपरीत दिशा में  मामूली से चुम्बकित हो जाते हैं। ये पदार्थ किसी शक्तिशाली चुम्बक के सिरे के समीप लाये जाने पर प्रतिकर्षित होते हैं। इन्हें प्रति चुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इसके गुण को प्रति चुम्बकत्व (Diamagnetism) कहते हैं। बिस्मिथ (Bi), जस्ता (Zn), तांबा (Cu), चांदी (Ag), सोना (Au), हीरा (C), नमक (NaCl), जल (H2O), पारा (Hg), नाइट्रोजन (N2), हाइड्रोजन (H2)| इत्यादि प्रति चुम्बकीय पदार्थ हैं। प्रति चुम्बकीय पदार्थ हैं। प्रति-चुम्बकीय पदार्थ हैं। प्रति-चुम्बकत्व का गुण प्रायः उन पदार्थों में पाया जाता है, जिनके परमाणुओं अथवा अणुओं में इलेक्ट्रानों की संख्या सम (Even) होती है तथा दो-दो इलेक्ट्रान मिलकर युग्म (pair) बना लेते हैं। प्रत्येक युग्म में एक इलेक्ट्रान का चक्रण दुसरे इलेक्ट्रान के चक्रण से विपरीत दिशा में होता है। अतः युग्म के इलेक्ट्रान एक दुसरे के चुम्बकीय आघूर्ण को पुर्णतः निरस्त (Cancel) कर देते हैं। इस प्रकार प्रति चुम्बकीय पदार्थ के परमाणु का शुद्ध परमाणु चुम्बकीय आघूर्ण शून्य होता है।

अनु चुम्बकीय पदार्थ Para-Magnetic Substance

कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की ही दिशा में मामूली से चुम्बकित हो जाते हैं तथा किसी शक्तिशाली चुम्बक के सिरे के समीप लाने पर सिरे की और आकर्षित होते हैं। इन्हें अनु चुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। एल्युमिनियम (Al), सोडियम (Na), प्लेटिनम (Pt), मैंगनीज (Mn), कॉपर क्लोराइड (CuCl2), ऑक्सीजन आदि अनु-चुम्बकीय पदार्थ हैं। अणु चुम्बकत्व का गुण उन पदार्थों में पाया जाता है, जिनके परमाणुओं अथवा अणुओं में कुछ ऐसे अधिक्य (excess) इलेक्ट्रान होते हैं, जिनका चक्रण एक ही दिशा में होता है, अतः अनु चुम्बकीय पदार्थ के परमाणु में स्थायी चुम्बकीय आघूर्ण होता है।

लौह चुम्बकीय पदार्थ Ferromagnetic Substances

कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखें जाने पर क्षेत्र की ही दिशा में प्रबल रूप से चुम्बकित हो जाते हैं तथा किसी चुम्बक के सिरे के समीप लाने पर तेजी से आकर्षित होते हैं। इन्हें लौह चुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। लोहा (Fe), निकिल (Ni), कोबाल्ट (Co), मैगनेटाइट (Fe3O4) इत्यादि लौह चुम्बकीय पदार्थ हैं। लौह चुम्बकीय पदार्थों का प्रत्येक परमाणु एक चुम्बक होता है, जिसमे कुछ स्थायी चुम्बकीय आघूर्ण होता है, परन्तु लौह चुम्बकीय पदार्थों में परमाणुओं के अत्यंत अतिसूक्षम आकार के प्रभावी क्षेत्र बं जाते हैं, जिन्हें डोमेन (Domain) कहते हैं। प्रत्येक डोमेन बिना किसी वाह्य क्षेत्र के ही, चुम्बकीय संतृप्ति की अवस्था (Magnetic saturation) में रहता है अर्थात एक तीव्र चुम्बक होता है, परन्तु पदार्थ की सामान्य अवस्था में विभिन्न डोमेन अनियमित ढंग से इस प्रकार बिखरे रहते है की उनका किसी भी दिशा में परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है। यही कारण है की प्रत्येक लोहे का टुकड़ा चुम्बक नहीं होता है।

भू-चुम्बकत्व Earth’s Magnetism

हमारी पृथ्वी इस प्रकार व्यवहार करती है, जैसे इसके गर्भ में एक बहुत बड़ा चुम्बक रखा हो, यदि किसी छोटे स्थान में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाएं खींचे, तो वे समान्तर तथा समदूरस्थ (Equidistant) होती हैं तथा सदैव उत्तर की ओर दिष्ट होती हैं। इसका अर्थ है की उस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का मान तथा दिशा एक ही है। ऐसे क्षेत्र को एक समान चुम्बकीय क्षेत्र (Uniform Magnetic Field) कहते हैं। पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र उर्ध्वाधर दिशा में (पृथ्वी तल के लम्बवत) तथा चुम्बकीय निरक्ष पर क्षैतिज दिशा में (पृथ्वी तल के समान्तर) होता है।

भू-चुम्बकत्व के कारण

यह विचार कि पृथ्वी के गर्भ में एक बहुत बड़ा चुम्बक है, सर्वप्रथम सन 1600 ईं में सर विलियम गिल्बर्ट ने दिया था, परन्तु वास्तव में पृथ्वी के भीतर इस प्रकार के किसी चुम्बक का होना संभव नहीं है। सन 1849 में ग्रोवर ने यह मत रखा की पृथ्वी का चुम्बकत्व पृथ्वी के बहरी पृष्ट के निकट पृथ्वी के चारो ओर बहने वाली विद्युत् धाराओं (surface electric current) के कारण है। ये धाराएँ सूर्य के कारण उत्पन्न होती हैं। निरक्ष के समीप के क्षेत्रों में गर्म वायु ऊपर उठकर उत्तरी व दक्षिणी गोलार्ध की ओर जाती हुई विद्युन्मय हो जाति हैं। ये धाराएँ पृथ्वी के बाहरी तल के सन्निकट उपस्थित कुछ चुम्बकीय पदार्थों को चुम्बकित कर देती हैं।

पृथ्वी के चुम्बकत्व के सम्बन्ध में मत है कि पृथ्वी के भीतर उसके केन्द्रीय कोर में अनेक चालक पदार्थ पिघली हुई अवस्था में उपस्थित हैं। इनमे पिघला हुआ लोहा तथा निकिल भी पर्याप्त मात्रा में है। पृथ्वी के अपने अक्ष के परितः घूमने से उसकी अर्द्ध-द्रव कोर में धीमी संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे पृथ्वी के भीतर एक स्व-उत्तेजित (self exciting) डायनमो की क्रिया होने लगती है। अतः पृथ्वी के भीतर विद्युत् धारा तथा इस कारण चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। भू-चुम्बकीय का मुख्य अंश इसी कारण से उत्पन्न माना जाता है।

पृथ्वी के चुम्बकत्व के सम्बन्ध में एक अन्य मत यह है कि वायुमंडल में गैसे आयनित अवस्था में रहती हैं। सूर्य से आने वाली उच्च उर्जा की किरणें वायुमंडल की उपरी सतहों में परमाणुओं से टकराकर उन्हें आयनित कर देती हैं। वायुमंडल की रेडियो-एक्टिवता तथा कास्मिक किरणें भी गैसों का आयनीकरण करती रहती हैं। अतः पृथ्वी के अपने अक्ष के परितः घूमने के कारण प्रबल विद्युत् धरायें चलती हैं। इन्हीं धाराओं के प्रभाव से पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

वास्तव में भू-चुम्बकीय क्षेत्र की घटनाये इतनी जटिल व अनियमित हैं की वैज्ञानिक इस सम्बन्ध में अभी कोई मत नहीं बना पाए हैं।

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