गोरी: मुहम्मद गोरी Ghori: Muhammad Ghori

गजनी का साम्राज्य सुल्तान महमूद के परवर्ती उत्तराधिकारियों के समय में टुकड़ों में बँटने लगा, क्योंकि ये हेरात के दक्षिण-पूर्व, अफ़गानिस्तान के पहाड़ी इलाके के गोर नामक एक छोटे एवं अप्रसिद्ध स्थान के शासकों की बढ़ती शक्ति के समक्ष गजूनी तथा उत्तर-पश्चिम भारत में अपनी स्थिति कायम रखने में बिलकुल असमर्थ थे। गोर के ये साधारण सरदार, जो पूर्वीय फारसी वंश के थे, मूलरूप में गजनी के जागीरदार थे। परन्तु अपने अधिपतियों की दुर्बलता से लाभ उठाकर वे धीरे-धीरे शक्तिशाली बन बैठे और प्रभुत्व के लिए उनसे संघर्ष करने लगे। इस संघर्ष के दौरान में गोर के कुतुबुद्दीन मुहम्मद एवं उसका भाई सैफुद्दीन गजनी के बहराम शाह के द्वारा निर्दयतापूर्वक फाँसी पर चढ़ा दिये गये। इन हुतात्माओं के एक भाई अलाउद्दीन हुसैन ने गजनी नगर को लूटकर और इसे सात दिनों एवं रातों तक जलाकर इसका बदला लिया। इस कार्य से अलाउद्दीन को जहाँसूज (विश्वदाहक) की उपाधि मिली। बहराम का पुत्र और दुर्बल उत्तराधिकारी खुसरू शाह तुर्कमानों की गज जाति के एक दल द्वारा गजनी से भगा दिया गया। वह भागकर पंजाब चला आया जो उस समय उसके पूर्वजों के विस्तीर्ण साम्राज्य का एकमात्र अवशेष थ। गजनी लगभग दस वर्षों तक गुज तुर्कमानों के अधिकार में रही। इसके बाद यह गोर के शासकों द्वारा अधिकृत कर ली गयी। जहाँसूज (विश्वदाहक) का पुत्र और उत्तराधिकारी सैफुद्दीन मुहम्मद गुजू तुर्कमानों के विरुद्ध लड़ता हुआ मारा गया; पर उसके चचेरे भाई एवं उत्तराधिकारी ग्यासुद्दीन मुहम्मद ने 1173 ई. में गुजू तुर्कमानों को गजनी से खदेड़ दिया और अपने अनुज शहाबुद्दीन को, जो मुइजद्दीन मुहम्मद विनसाम के नाम से भी पुकारा जाता है और सामान्यतः मुहम्मद गोरी के नाम से प्रसिद्ध है, इस प्रान्त का सूबेदार बना दिया। दोनों भाइयों में अत्यन्त प्रेमपूर्ण संबंध थे और जब वह अपने भाई के सहायक के रूप में ही था, तभी उसके भारतीय आक्रमण आरम्भ हो गये। मुहम्मद गोरी का प्रथम भारतीय आक्रमण (1175 ई.), जो मुलतान के उसके अपने सहधर्मी इस्माइली नास्तिकों के विरुद्ध हुआ था, सफलीभूत हुआ। शीघ्र ही उसने छलप्रपंच से उच्च के मजबूत किले पर अधिकार जमा लिया। परन्तु उसका 1178 ई. में गुजरात का आक्रमण असफल सिद्ध हुआ; गुजरात के राजा भीम द्वितीय ने उसे बुरी तरह परास्त कर दिया। फिर भी अगले साल उसने पेशावर पर अधिकार कर लिया और 1181 ई. में स्यालकोट में एक किला स्थापित किया। जम्मू के राजा विजय देव के साथ मिलकर उसने खुसरोशाह के पुत्र एवं उत्तराधिकारी तथा सुबुक्तगीन एवं सुल्तान महमूद के वंश के अन्तिम प्रतिनिधि गजनी के शासक खुसरो मलिक को, जिसके अधिकार में उस समय केवल लाहौर रह गया था, पकड़ लिया और उसे बन्दी बना कर गजनी ले गया। इस तरह पंजाब में गजनवियों के शासन का अन्त हो गया। मुहम्मद गोरी द्वारा इस पर अधिकार हो जाने से उसकी भारत की आगे की विजय का द्वार खुल गया। मगर इससे राजपूतों के साथ-विशेषत: अपने पड़ोसी अजमेर एवं दिल्ली के शक्तिशाली चौहान राजा पृथ्वीराज के साथ-उसका संघर्ष अनिवार्य हो गया।

सुल्तान महमूद के समय से उत्तरी भारत की राजनैतिक अवस्था में यथेष्ट परिवर्तन हो चुका था। यद्यपि बिहार का एक भाग बौद्ध मतावलम्बी पालो के अधीन था, तथापि बंगाल सेनो के हिन्दू राजवंश के अधिकार में आ चुका था। बुन्देलखंड चन्देलों के शासन के अधीन ही बना रहा। किन्तु गहड्वालों ने कन्नौज से प्रतिहारों को हटा दिया। दिल्ली और अजमेर चौहानों के अधीन थे। कन्नौज का गहड़वाल राजा जयचंद या जयच्चंद्र, जो अधिकतर बनारस में रहा करता था, मुस्लिम लेखकों द्वारा तत्कालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ राजा समझा जाता था और यदि टॉड पर विश्वास किया जाय, तो वह पृथ्वीराज की गौरवपूर्ण स्थिति से द्वेष रखता था। ऐसा बताया जाता है कि उसकी सुन्दर लड़की को चौहान वीर लेकर भाग गया था। यह प्रेम कहानी तत्कालीन कई चारणगीतों का विषय बन गयी। जो भी हो, ऐसा विश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखता कि जयचंद ने मुहम्मद गोरी को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया था। इस देश पर किया गया आक्रमण पंजाब के गजनवियों पर मुहम्मद की पूर्ण विजय का प्राय: एक अनिवार्य परिणाम था।

1190-1191 ई. के जाड़े में मुहम्मद गोरी जब पंजाब से आगे बढ़ा, तब राजपूतों का, जो किसी भी तरह वीरता एवं साहस में आक्रमणकारियों से कम नहीं थे, साहसी और शूरवीर योद्धा पृथ्वीराज एक बड़ी सेना लेकर उससे भिड़ने के लिये आगे आया, जिसमें फरिश्ता के लेखानुसार दो लाख घोडे और तीन हजार हाथी थे। पृथ्वीराज को बहुतेरे राजपूत राजाओं का सहयोग प्राप्त हुआ, पर जयचंद अलग रहा। गोरी आक्रमणकारी अपने दोनों ओर दो रक्षादलों को लेकर अपनी सेना के मध्य खड़ा हो गया और 1191 ई. में थानेश्वर के निकट तराइन में राजपूतों से उसकी मुठभेड़ हुई। अपनी स्वाभाविक शक्ति से लड़ते हुए राजपूतों ने मुस्लिम सैनिकों को बुरी तरह आक्रान्त कर दिया, जो शीघ्र ही पराजित हो गये और उनका नेता बुरी तरह गायल होकर गजनी लौट गया। पर इस प्रारम्भिक असफलता से मुहम्मद हतोत्साह नहीं हुआ। उसने अपनी पराजय का प्रतिशोध लेने के विचार से शीघ्र एवं दृढ़ सेना इकट्ठी की और पर्याप्त तैयारियों के साथ 1192 ई. में भारत पर पुन: आक्रमण कर दिया तथा अपने राजपूत शत्रु से उसी रणक्षेत्र में आ भिड़ा। आक्रमणकारी सेना ने उच्चतर युद्ध कौशल एवं सेनापतित्व से राजपूतों को बुरी तरह परास्त कर दिया। पृथ्वीराज पकड़कर मार डाला गया और उसके भाई की भी हत्या कर दी गयी। मुहम्मद की यह विजय निर्णायक थी। इसने उत्तरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य की नींव डाल दी और पृथ्वीराज के सम्बन्धियों द्वारा अपनी खोयी शक्ति पुनः प्राप्त करने के सभी उत्तरवर्ती प्रयास विफल सिद्ध हुए। मुहम्मद के सबसे विश्वासपात्र तुर्की पदाधिकारी कुतुबुद्दीन ऐबक तथा इख्तियारुद्दीन मुहम्मद द्वारा कुछ ही वर्षों में उत्तरी भारत के विभिन्न भाग जीत लिये गये।

कुतुबुद्दीन सभी सराहनीय गुणो एवं प्रशंसनीय प्रभावों से सम्पन्न था, यद्यपि उसमें बाहरी सुन्दरता न थी। उसके गुणों ने उसे मुहम्मद गोरी का विश्वास-पात्र बना दिया, जिसने शीघ्र ही उसे अमीर-ए-आखुर (अश्वशालाध्यक्ष) के पद पर नियुक्त कर लिया। अपने स्वामी के भारतीय आक्रमणों के समय उसने उसकी बड़ी अमूल्य सेवाएँ कीं, जिनके पुरस्कार के रूप में 1192 ई. की तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद, उस पर भारत के विजित प्रदेशों का भार दे दिया गया। वह नव-विजित प्रदेशों के शासन ही नहीं, बल्कि उनके विस्तार के सम्बन्ध में भी स्वतंत्र छोड़ दिया गया।

अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए कुतुबुद्दीन ने शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी सरदारों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये; उसने स्वयं ताजुद्दीन यन्दौज की पुत्री से विवाह किया, उसकी बहन नासिरुद्दीन कबाचा के साथ ब्याही गयी तथा उसकी पुत्री इन्लुत्मिश के साथ। कुतुबुद्दीन का स्वामी जो उसमें विश्वास रखता था, इसका औचित्य उसने सिद्ध कर दिखाया। 1192 ई. में उसने हाँसी, मेरठ, दिल्ली, रणथम्भोर एवं कोइल पर अधिकार कर लिया। 1194 ई. में इटावा जिले में यमुना के तट पर चंदावर नामक स्थान पर बनारस और कन्नौज के राजा जयचंद को पराजित करने एवं मारने में उसने अपने स्वामी की सहायता की। 1197 ई. में उसने गुजरात के भीमदेव द्वितीय को कुछ गोलमाल करने के अपराध में प्रताड़ित किया, उसकी राजधानी को लूट लिया और हाँसी की से दिल्ली लौट आया। 1202 ई. में उसने बुंदेलखंड में कालिंजर के दुर्ग पर डालकर उसके प्रतिरक्षकों को पराजित किया और उनसे काफी लूट का इकट्ठा किया। पुरुष एवं स्त्री मिलाकर पचास हज़ार बन्दी बनाये गये। इसके बाद वह महोबा नगर की ओर बढ़ा, उस पर अधिकार कर लिया और बदायूं जीतता हुआ, जो हिन्दुस्तान (उत्तर भारत) के सबसे समृद्ध नगरों में से था, दिल्ली लौट आया।

इसी बीच बख्तियार खिलजी के पुत्र इख्तियारुद्दीन मुहम्मद द्वारा बिहार एवं पश्चिमी बंगाल का एक भाग गोरी साम्राज्य में मिला लिये गये। इख्तियारुद्दीन मुहम्मद ने लक्ष्मणसेन को नदिया से सम्भवत: पूर्व बंगाल में ढाका के निकट एक ऐसे स्थान की ओर खदेड़ दिया, जहाँ सेनों की शक्ति आधी शताब्दी से अधिक समय तक बनी रही। उसने आधुनिक मालदह जिले में गौड़ अथवा लखनौती में अपनी राजधानी बनायी।

इस प्रकार तेरहवीं सदी के आरम्भ तक, पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में गंगा नदी तक के बीच के हिन्दुस्तान (उत्तर भारत) के काफी भागों को मुसलमानों ने जीत लिया। परन्तु मुस्लिम शासन के संगठन के लिए कुछ और वर्षों की आवश्यकता थी।


फरवरी, 1203 ई. में अपने बड़े भाई ग्यासुद्दीन मुहम्मद की मृत्यु हो जाने के बाद सुमुइजुद्दीन मुहम्मद गोरी गोर तथा दिल्ली का शासक नाम में भी बन गया, जो वह अब तक असलियत में था। परन्तु शीघ्र ही कुछ दुर्घटनाओं के कारण उसकी स्थिति संकट में पड़ गयी। 1205 ई. में मध्य एशिया में अंदखुई के निकट ख्वारज़्म के शाह अलाउद्दीन मुहम्मद के हाथों वह पराजित हुआ, जिससे भारत में उसकी सैनिक प्रतिष्ठा पर कठोर आघात पहुँचा तथा उसके राज्य के विभिन्न भागों में विद्रोह एवं षड्यंत्र होने लगे। गजनी में उसका प्रवेश अस्वीकृत हो गया। गृजूनी के एक पदाधिकारी ने मुलतान छीन लिया तथा उसके पुराने बैरी खोकर पंजाब में उत्पात मचाने लगे। परन्तु बड़े उत्साह एवं तत्परता से सुमुइजुद्दीन मुहम्मद भारत की ओर बढ़ा, सर्वत्र विद्रोहों का दमन किया तथा

नवम्बर, 1205 ई. में खोकरों को बुरी तरह परास्त किया। फिर भी वह चंद दिनों का मेहमान था। लाहौर से गजनी आने के रस्ते में 19 मार्च 1206 ई. को दम्यक में ह्गात्यारों के एक दल ने उसे छुरा भोंककर मार डाला। उसके कुछ सिक्के भी मिले हैं जिसके एक तरफ शिव के बैल की आकृति और पृथ्वीराज देवनागरी में लिखा है तथा दूसरी ओर घोड़े की आकृति है और मुहम्मद बिन साम लिखा है। उसके कुछ सिक्कों पर लक्ष्मी की आकृति भी है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *