यूरोपीय परिषद Council of Europe – CoE
यूरोपीय परिषद यूरोप का सबसे विस्तृत राजनितिक संगठन है, जिसमे यूरोप के सभी प्रजातंत्रों को एक मंच पर लाया जाता है।
औपचारिक नाम: काउंसिल डी आई’ यूरोप (Conseil de I’Europe)।
मुख्यालयः स्ट्रासबर्ग (फ्रांस)।
अल्बानिया, अंडोरा, आर्मेनिया, ऑस्ट्रिया, अज़रबैजान, बेल्जियम, बोस्निया और हर्जेगोविना, बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस, चेक रिपब्लिक, डेनमार्क, एस्तोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जॉर्जिया, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आइसलैंड, आयरलैंड, इटली, लातविया, लिकटेंस्टीन, लिथुआनिया, लक्समबर्ग, माल्टा, मोल्दोवा के गणराज्य, मोनाको, मोंटेनेग्रो, नीदरलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, रूसी संघ, सैन मारिनो, सर्बिया, स्लोवाक गणराज्य, स्लोवेनिया, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, “मैकेडोनिया का भूतपूर्व युगोस्लाव गणतंत्र”, तुर्की, यूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम।
संसदीय सभा के विशेष अतिथि: अर्मीनिया, अजरबैजान और बोस्निया-हर्जेगोविना (यूगोस्लाविया को प्रदत्त विशेष अतिथि के दर्जे को नवंबर 1991 में निलंबित कर दिया गया और 1992 में रद्द घोषित कर दिया गया। उसी प्रकार, बेलारूस के विशेष अतिथि के दर्जे को 1997 में निलबित कर दिया गया)।
मंत्रिस्तरीय समिति को पर्यवेक्षक सदस्य: कनाडा, इजरायल, इटली, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका।
संसदीय सभा के पर्यावक्षक सदस्य: कनाडा और इजरायल।
आधिकारिक भाषाएं: अंग्रेजी और फ्रेंच। डच, जर्मन, इटालियन, पुर्तगाली, रूसी, स्पेनिश और तुर्की भी संसदीय सभा की कार्यकारी भाषाएं हैं।
उद्भव एवं विकास
1940 के दशक के मध्य तक राजनीतिक रूप से एक एकीकृत यूरोप का विचार अपनी जड़ जमा चुका था। अंतर्राष्ट्रीय यूरोपीय एकता आन्दोलन समिति ने 1948 में हेग में एक यूरोपीय कांग्रेस का आयोजन किया, जिसमें 26 यूरोपीय देशों के लगभग 1,000 प्रभावशाली यूरोपवासियों ने भाग लिया। इस कांग्रेस का एक प्रस्ताव यह भी था कि यूरोपीय एसेम्बली के साथ-साथ एक संयुक्त यूरोप का भी गठन हो। इस प्रस्ताव पर पहले ब्रुसेल्स संधि संगठन (बेल्जियम, फ्रांस, लक्जमबर्ग, नीदरलैण्ड और युनाइटेड किंगडम द्वारा गठित एक संस्था) की मंत्रिस्तरीय परिषद ने और फिर डेनमार्क, आयरलैंड, इटली, नार्वे, स्वीडन, और ब्रुसेल्स संधि, के पांच राष्ट्रों के राजदूतों के सम्मलेन में विचार किया गया। दस यूरोपीय देशों के द्वारा 5 मई, 1994 को लंदन में एक संविधि (statute) पर हस्ताक्षर के साथ यूरोपीय परिषद अस्तित्व में आई। तब से इस संविधि में कई संशोधन हुए हैं। सदस्यों की संख्या भी 10 से बढ़कर लगभग 40 हो गई है। रूस 1996 में इस परिषद का सदस्य बना।
उद्देश्य
परिषद निम्नांकित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कार्यरत है- मानवाधिकारों की रक्षा और बहुलवादी प्रजातंत्र (pluralist democracy) के सुदृढ़ीकरण के साथ यूरोपीय एकता के लिये प्रयास करना; स्थापित करने के लिये सदस्य देशों के नागरिकों को जागरूक बनाना। सभी सदस्यों सें बहुलवादी प्रजातंत्र, मानवाधिकारों की अविभाज्यता (indivisibility) और सार्वभौमिकता (universality) तथा विधि के शासन के प्रति समर्पित रहने की अपेक्षा की जाती है।
संरचना
मंत्रिस्तरीय समिति, संसदीय सभा तथा सचिवालय यूरोपीय परिषद के प्रमुख अंग हैं।
मंत्रिस्तरीय समिति में सभी सदस्य देशों के विदेश मंत्री सम्मिलित होते हैं तथा वर्ष में इसकी दो बैठकें होती हैं। प्रत्येक सदस्य को एक मत प्राप्त रहता है। यह समिति आन्तरिक संगठन से जुड़े सभी विषयों के लिये उत्तरदायी होती है। यह परिषद के लक्ष्यों का निर्धारण करती है और उन्हें आगे बढ़ाती है; अभिसमयों और समझौतों का मसौदा तैयार करती है, और; सरकारों के समक्ष सिफारिशें प्रस्तुत करती है।
संसदीय सभा परिषद का विमर्शी (deliberative) अंग होता है। राष्ट्रीय संसदों द्वारा चुने या नियुक्त 286 सांसद इसके सदस्य होते हें। प्रत्येक देश के प्रतिनिधियों की संख्या का निर्धारण उस देश की जनसंख्या के आधार पर होता है। प्रत्येक राष्ट्रीय शिष्टमंडल में विभिन्न राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व उनकी अपनी-अपनी संसदों में प्रतिनिधित्व के अनुपात में होता है। प्रतिनिधि अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार मतदान करते हैं। संसदीय सभा की वर्ष में आमतौर पर तीन बैठकें होती हैं। यह परिषद के शक्ति केन्द्र के रूप में कार्य करती है तथा समसामयिक मुद्दों पर मंत्रिस्तरीय परिषद की सिफारिशों के माध्यम से अपने विचारों से अवगत कराती है। संसदीय सभा के पास कोई विधायी शक्ति नहीं होती है तथा इसके कार्यों की रूपरेखा संसदीय समितियों के द्वारा तय की जाती है। संसद के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्येक वर्ष होता है। उसकी पुनर्नियुक्ति संभव है लेकिन यह अधिकतम तीन वर्षों तक ही अध्यक्ष बना रह सकता है।
सचिवालय का प्रधान अधिकारी महासचिव होता है, जो संस्दित सभा के द्वारा पंच वर्षों के लिए लिये चुना जाता है। उसकी सहायता के लिये एक उप-महासचिव और संसदीय सभा के एक लिपिक की व्यवस्था की गई है।
गतिविधियां
परिषद की प्रमुख गतिविधियां इन क्षेत्रों से संबंधित होती हैं- मानवाधिकार, मीडिया, सामाजिक और समाजार्थिक क्षेत्रों, शिक्षा, संस्कृति और खेलकूद, युवा मामले, लोक स्वास्थ्य, परम्परागत वस्तुएं तथा पर्यावरण, स्थानीय और क्षेत्रीय प्रशासन तथा कानूनी सहयोग। यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय, यूरोपीय युवा संस्था, विश्व अंतर्निर्भरता और एकजुटता उत्तर-दक्षिण केन्द्र तथा सामाजिक विकास कोष जैसी विशिष्ट संस्थाओं के माध्यम से भी परिषद के कार्य सम्पन्न होते हैं।
1950 में रोम में हस्ताक्षरित यूरोपीय मानवाधिकार रक्षा तथा मौलिक स्वतंत्रता अभिसमय का प्रारूप तैयार करना और उसे क्रियान्वित करना परिषद की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है। यह अभिसमय 1953 में प्रभाव में आया। उसी वर्ष यूरोपीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया, क्योंकि यूरोपीय परिषद 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित वैश्विक मानवाधिकार घोषणा से संतुष्ट नहीं थी। 1959 में एक यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय का गठन किया गया। 1994 से यह न्यायालय यूरोपीय मानवाधिकार रक्षा अभिसमय के कथित उल्लंघनों से संबंधित शिकायतों की जांच-पड़ताल कर रहा है। ऐसी शिकायतें सदस्य देशों या कुछ मामलों में, व्यक्ति विशेष के द्वारा दर्ज की जाती हैं (1994 से पूर्व ऐसे मामलों की जांच यूरोपीय मानवाधिकार आयोग करता था)।
मानवाधिकार संचालन समिति मानवाधिकार और मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अन्तर-सरकारी सहयोग को प्रोत्साहन देती है। इसने यूरोपीय यातना निषेध अभिसमय का प्रारूप तैयार किया, जो फरवरी 1989 में प्रभाव में आया।
1994 में यूरोपीय नस्लवाद और असहिष्णुता आयोग का गठन किया गया। वर्ष 1999 तक यूरोपीय परिषद के द्वारा सामाजिक सुरक्षा, संस्कृति, यूरोपीय वन्यजीवन और डिंप्लोमा में समानता, टेलीविजन प्रसारण की रक्षा, बच्चों के दत्तक-ग्रहण (adoption), जन्तुओं के परिवहन, आदि विषयों पर कुल 167 अभिसमय तथा समझौते पारित किये गये।
यूरोपीय सामाजिक घोषणा-पत्र में, जो 1965 में प्रभाव में आया तथा जिसमें उन सिद्धान्तों और अधिकारों को परिभाषित किया गया है जिन पर परिषद की सामाजिक नीति आधारित है, 1996 में संशोधन हुआ और फिर 13 सदस्यों ने इस संशोधित चार्टर पर हस्ताक्षर किए। संशोधित चार्टर में कई नये अधिकारों को जोड़ा गया, जैसे- बेरोजगारों को सुरक्षा का अधिकार।
परिषद श्रम कल्याण एवं कानून पर विशेष बल देती है। यूरोपीय प्रवासी मजदूर विधिक दर्जा अभिसमय 1988 से प्रभाव में है। स्वास्थ्य, औषधि दुरुपयोग, जनसंख्या, आवास, क्षेत्रीय योजना, संस्कृति, युवा, गतिविधियां, कानून एवं पर्यावरण के क्षेत्रों में भी परियोजनाएं शुरू की की गयी हैं।
मध्य एवं पूर्वी यूरोपीय देशों के प्रजातांत्रिकरण के कानूनी पक्षों पर विचार करने के लिये 1990 में यूरोपीय कानून-आधारित प्रजातंत्र आयोग-वेनिस आयोग (The European Commission for Democracy through Law-Venice Commission) का गठन किया गया।