एशिया-प्रशान्त आर्थिक सहयोग Asia-Pacific Economic Cooperation – APEC

एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में मुक्त व्यापार तथा व्यावहारिक सहयोग को प्रोत्साहन देने के लिए यह एक महत्वपूर्ण अन्तर्सरकारी मंच है। मुख्यालय: सिंगापुर

सदस्य; आस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, कनाडा, चिली, चीन, हांगकांग, इण्डोनेशिया, जापान, कोरिया गणतंत्र, मलेशिया, मैक्सिको, न्यूजीलैण्ड, पापुआ न्यु गिनी, पेरू, फिलीपीन्स, रूस, सिंगापुर, ताइवान, थाइलैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम।

पर्यवेक्षक सदस्य: आसियान, पैसिफिक आइलैण्ड फोरम, पैसिफिक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन कॉसिल।

आधिकारिक भाषा: अंग्रेजी।

उत्पति एवं विकास

जनवरी 1989 में आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट हॉक ने पहली बार एक ऐसे स्थायी निकाय के गठन पर जोर दिया, जो प्रशान्त क्षेत्र के बाजारोन्मुखी देशों के मध्य आर्थिक संबंधों में समन्वय स्थापित करने में सक्षम हो। प्रशान्त आर्थिक सहयोग परिषद (पीईसीसी), जो व्यापारियों, शिक्षाविदों और सरकारी प्रतिनिधियों के एक संगठन के रूप में 1980 से अनौपचारिक चर्चाएं आयोजित करता था, ने रॉबर्ट हॉक के इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया और इस प्रकार एशिया-प्रशान्त आर्थिक सहयोग (एपेक) का गठन किया गया। आस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में 6-7 नवम्बर, 1989 को एपेक की पहली बैठक हुई। पांच प्रशान्त औद्योगिक देशों (आस्ट्रेलिया, (इण्डोनेशिया, मलेशिया, थाइलैण्ड, सिंगापुर, कोरिया गणतंत्र एवं ब्रुनेई) तथा दक्षिण कोरिया ने इस बैठक में भाग लिया।

आरम्भ में, इस मंच ने केवल एक ऐसी अनौपचारिक और असंगठित व्यवस्था के रूप में कार्य किया, जो सहयोगी देशों के मध्य संवाद स्थापित करती थी। इसका प्रमुख कारण यह था कि, आसियान देशों को यह चिन्ता थी कि ऐसे क्षेत्रीय संगठन में वे कनाडा, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे सम्पन्न देशों की उपस्थिति के कारण महत्वहीन हो जायेंगे। लेकिन जब विश्वभर में क्षेत्रीय आर्थिक संगठन की अवधारणा को बल मिला, तब यह निर्णय लिया गया कि एपेक को संस्थागत रूप दिया जाए। 1991 में सिओल (द. कोरिया) में आयोजित एपेक की मंत्रिस्तरीय बैठक ने एक घोषणा-पत्र पारित किया, जिसमें एपेक की संगठनात्मक संरचना और उद्देश्यों की रूपरेखा प्रस्तुत की गयी थी। साथ ही इस बैठक में चीन, हांगकांग (हांगकांग उस समय भी इंग्लैण्ड के पट्टे के अधीन था) और ताइवान की सदस्यता को स्वीकृति दी गयी। एपेक की संस्थापना 1992 में पूर्ण हुई, जब बैंकाक में हुई मंत्रिस्तरीय बैठक में सिंगापुर में स्थायी सचिवालय की स्थापना का निर्णय लिया गया।


1998 तक एपेक संगठन में 21 सदस्य थे, जिन्हें देश कम आर्थिक शक्ति अधिक समझा जाता है। 1998 में अगले दस वर्षों के लिए एपेक की नई सदस्यता पर विराम लगा दिया गया।

हिमालय से एन्डीज तक व न्यूजीलैंड से कनाडा तक विस्तृत क्षेत्र में फैले विश्व की बड़ी व विस्तारोन्मुख अर्थव्यवस्थाओं वाले प्रमुख राष्ट्र इसके सदस्य हैं। इन देशों का संयुक्त व्यापार विश्व के कुल व्यापार का 40 प्रतिशत से भी अधिक है। ईईसी तथा नाफ्टा की भांति एपेक भी एक स्वतंत्र व्यापार क्षेत्र (फ्री ट्रेड जोन) के रूप में विकसित करने हेतु सदस्य राष्ट्र प्रयत्नशील हैं।

उद्देश्य

मोटे तौर पर एपेक के उद्देश्य हैं- विस्तृत आर्थिक मुद्दों पर चर्चा के लिए एक मंच प्रस्तुत करना तथा क्षेत्र की बाजारोन्मुखी आर्थिक शक्तियों के बीच बहुपक्षीय सहयोग को प्रोत्साहन देना। एपेक विशेष रूप से इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्यरत है-

  1. वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और तकनीक के आवागमन को प्रेरित करके सदस्य देशों के मध्य आर्थिक और तकनीकी सहयोग को प्रोत्साहित करना;
  2. एक उदार व्यापार और निवेश व्यवस्था विकसित करना, तथा;
  3. उन्मुक्त क्षेत्रवाद को समर्थन देना।

संरचना

एपेक के प्रमुख संरचनात्मक घटक हैं- वार्षिक मंत्रिस्तरीय बैठक, वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक, कार्यदल और सचिवालय।

सभी सदस्य देशों के विदेश एवं व्यापार मंत्रियों की वार्षिक मंत्रिस्तरीय बैठक एपेक का शासी निकाय होता है। बैठक की अध्यक्षता सभी सदस्यों को प्रत्येक वर्ष बारी-बारी से प्राप्त होती है। वरिष्ठ अधिकारी बैठक, जिसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं, मंत्रिस्तरीय बैठक में निर्धारित नीतियों के क्रियान्वन के लिए उत्तरदायी होती है। यह बैठक प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाती है। एपेक में दस कार्यदलों का गठन किया गया है, जो अग्रलिखित विषयों से संबंधित होते हैं- दूरसंचार; व्यापार एवं निवेश; आंकड़े; पर्यटन; परिवहन; व्यापार प्रोन्नति; निवेश एवं तकनीक; मानव संसाधन विकास, क्षेत्रीय ऊर्जा सहयोग, तथा; समुद्री संसाधन संरक्षण। इनके अतिरिक्त, दो अस्थायी कार्यदलों का भी गठन किया गया है, जो क्षेत्रीय व्यापार उदारीकरण तथा आर्थिक नीति से जुड़े होते हैं। सचिवालय का प्रधान कार्यकारी निदेशक होता है, जिसकी नियुक्ति एक वर्ष के लिए होती है।

गतिविधियां

1992 में एपेक मंत्रियों ने क्षेत्र में एक इलेक्ट्रॉनिक शुल्क आंकड़ा आधार स्थापित करने का निर्णय लिया। इस डाटा बेस का कार्य सीमा शुल्क और कार्य विधि में तारतम्य स्थापित करने तथा सदस्यों के बाजार में प्रवेश में व्याप्त बाधाओं को कम करने के लिए विभिन्न तरीकों का अध्ययन करना है। वर्तमान प्रस्तावों और क्षेत्रों के अन्दर व्यापार प्रवृत्तियों के मूल्यांकन के उद्देश्य से एक गैर-सरकारी विशिष्ट व्यक्ति दल का गठन किया गया। 1993 में एपेक ने दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए-

  1. सदस्य देशों के मध्य व्यापार और निवेश को विस्तृत करने के लिए एक ढांचा तैयार करना, और;
  2. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक व्यापार और निवेश समिति का गठन करना।

1994 के बोगोर (इण्डोनेशिया) सम्मेलन में बोगोर सामूहिक संकल्प घोषणा (Bogor Declaration of Common Resolve) को स्वीकार किया गया। इस घोषणा के तहत एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के विकसित देशों में 2010 तक और विकासशील देशों में 2020 तक मुक्त व्यापार और निवेश व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय लिया गया।

1995 में ओसाका (जापान) वार्षिक सम्मेलन में सदस्य देशों ने आयात-शुल्क कम करने और सेवाओं, लोक प्राप्ति संविदाओं तथा विदेशी निवेश को उदार बनाने का निर्णय लिया। सदस्य देशों को कहा गया कि वे उदारीकरण के लिये अपनी-अपनी पंचवर्षीय योजनाएं तैयार करें। बैठक में निर्णय लिया गया की उदारीकरण के उपायों के क्रियान्वयन में, विशेषकर कृषि जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, विकासशील सदस्यों के प्रति अधिक लचीला रुख अपनाया जाए। एपेक सदस्य इस बात पर भी तैयार हुये कि कार्यसूची संकल्पवाद और सहमति के सिद्धान्त पर आधारित होगी तथा उदारीकरण की दिशा में उठाया गया कोई भी कदम किसी दूसरे राष्ट्र के प्रति भेदभावपूर्ण नहीं होगा। एपेक नेताओं को सुझाव देने के लिये एपेक व्यापार सुझाव परिषद का गठन किया गया।

1996 के मनीला सम्मेलन में एपेक मनीला कार्य योजना को स्वीकार किया गया। यह कार्य योजना प्रत्येक सदस्य देश द्वारा बोगोर उदारीकरण लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में व्यक्तिगत स्तर पर चलाये जा रहे कार्यक्रमों की रूपरेखा का संकलन थी। सदस्य देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रस्तुत सूचना-तकनीक समझौते (आईटीए) का भी अनुमोदन कर दिया। इस समझौते के तहत एपेक सदस्य देशों के मध्य कम्प्यूटर-संबंधित सामानों के व्यापार में लगने वाले शुल्क (tariff) को पहले कम करता है और अन्ततः समाप्त करता है। 1996 में ही सिंगापुर में आयोजित एपेक मंत्रिस्तरीय बैठक में आईटीए को स्वीकार किया गया।

वैंकुवर (कनाडा) सम्मेलन, 1997 में सदस्य देशों ने अपनी-अपनी पृथक् कार्य योजना के प्रति प्रतिबद्धता दोहराई तथा प्रत्येक वर्ष अपनी इन योजनाओं को नई परिस्थितियों के अनुकूल बनाने का निश्चय किया। यह सम्मेलन प्रारम्भिक स्वैच्छिक क्षेत्रीय उदारीकरण पर केन्द्रित था। इस कार्यक्रम के तहत आरम्भ में 9 क्षेत्रों को चुना गया तथा यह निर्णय लिया गया कि इसका क्रियान्वयन 1999 में प्रारम्भ होगा। ये 9 क्षेत्र थे- पर्यावरण संबंधित सामान और सेवाएं, चिकित्सा सामान और यंत्र, दूरसंचार, पारस्परिक मान्यता व्यवस्था, उर्जा खिलौने, रत्न और आभूषण तथा रसायन। लेकिन लकड़ी और कृषि-उत्पादन के विषयों पर सदस्यों में लम्बी बहस छिड़ गई तथा गतिरोध उत्पन्न हो गया। फिर भी, आधारभूत संरचना विकास के लिए लोक-निजी सहभागिता के प्रोत्साहन हेतु वैंकुवर रुपरेखा (The Vancouver Framework for Enhanced Public-Private Partnership for Infrastructure Development) को अनुमोदित कर दिया गया l सम्मेलन में एशियाई आर्थिक संकट पर भी चर्चा हुई। एपेक के कई दक्षिण-पूर्व एशियाई सदस्यों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहायता की अपील की। इस संकट से उबरने के लिये एपेक ने अन्य स्रोतों से अतिरिक्त समर्थन धनराशि और वृहत क्षेत्रीय सहयोग का अनुमोदन किया।

कवालालाम्पुर (मलेशिया) सम्मेलन, 1998 में एशियाई वित्तीय संकट का स्थान कार्यसूची में सर्वोच्च था। सदस्यों ने समस्या के शीघ्र और स्थायी निदान के लिये सरकारी विकास रणनीति की अपनाने पर बल दिया। इस रणनीति के अन्तर्गत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली, वित्तीय व्यवस्था, व्यापार एवं निवेश प्रवाह, वैज्ञानिक और तकनीकी आधार, मानव संसाधन विकास, आर्थिक मूल ढांचा तथा व्यापार और वाणिज्य सम्पर्क को और अधिक मजबूत बनाना आवश्यक घोषित किया गया। लेकिन एपेक नेता ईवीएसएल पर जारी गतिरोध को समाप्त करने में सफल नहीं हुये और यह निर्णय लिया गया कि इस प्रश्न पर विश्व व्यापार संगठन में चर्चा की जायेगी।

1999 में न्यूजीलैण्ड में बाजार व्यवस्था को मजबूत करने और व्यापार एवं निवेश प्रवाह प्रणाली में सुधार लाने के निर्णय लिये गये। एपेक प्रतियोगिता वृद्धि और नियामक सुधार सिद्धान्त (APEC Principles to Enhance Competition and Regulatory Reform) को स्वीकार किया गया। 1999 के वार्षिक सम्मेलन में पूर्वी तिमोर में जन-विद्रोह भी चर्चा का एक मुख्य विषय था। एपेक मंत्रियों ने इस समस्या से निबटने के लिये इन दो प्रयासों को अपना समर्थन दिया-

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन एक बहुराष्ट्रीय सैन्य बल का गठन, और;
  2. पुनर्निर्माण और पुनर्वासन की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए पूर्वी तिमोर को मानवीय और तकनीक सहायता।

2000 के ब्रूनेई सम्मेलन में व्यापार से जुड़े विषयों का ही वर्चस्व रहा।

एपेक ने कई बार उन नये मुद्दों पर चर्चा की पहल की है, जिनसे सदस्य राष्ट्र जूझ रहे हों। इसने कई महत्वपूर्ण समझौतों को संपन्न किया है। यद्यपि मुक्त व्यापार और निवेश की व्यवस्था को स्थापित करने के लिए कई बार स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी प्रतिबद्धता का सहारा लिया गया है। उदारीकरण के प्रश्न ने राजनीति से हटकर कानूनी रूप ले लिया है।

फिर भी, एपेक को अपने उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। सर्वप्रथम, एपेक ऐसे देशों का संगठन है, जिनके आर्थिक विकास स्तर भिन्न हैं। विकसित देशों में प्रायः आर्थिक परिवर्तनों को विकासशील देशों पर आरोपित करने की प्रवृत्ति होती है। विकासशील देशों की घरेलू परिस्थितियां उन्हें शीघ्र परिवर्तन की अनुमति नहीं देती। सदस्य देशों की राजनीतिक और सांस्कृतिक परम्पराएं भी भिन्न होती हैं। प्रमुख देशों के मध्य नये-नये व्यापार-विवाद उभरकर सामने आते रहते हैं। इस स्थिति में, आम राय-केन्द्रित दृष्टिकोण से विकास की गति धीमी हो जाती है।

1990 के दशक के मध्य तक, जब पूर्वी एशिया अपने आर्थिक विकास के शिखर पर था, क्षेत्रीय व्यापार और निवेश उदारीकरण एपेक का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था। लेकिन 1997 के पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशियाई वित्तीय संकट के प्रभाव में यह कार्यक्रम बड़ी शीघ्रता से लड़खड़ा गया। कुछ विशेषज्ञों की राय में एपेक को मजबूत बनाने की दिशा में इसके अधिक सम्पन्न सदस्यों का योगदान बहुत सराहनीय नहीं रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि एपेक सम्मेलनों में घोषणाएं तो बहुत लम्बी-चौड़ी होती हैं, लेकिन इन घोषणाओं के क्रियान्वयन के प्रति कुछ ही सदस्य गंभीर होते हैं। साथ ही, क्षेत्रीय आर्थिक गठबंधन को मजबूती प्रदान करने की दिशा में भी एपेक का योगदान संतोषप्रद नहीं रहा है। अतः कई एपेक देश बहुपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों के स्थान पर द्वि-पक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों की ओर आकर्षित होने लगे हैं।

वर्तमान में एपेक के 21 सदस्यों में शामिल अधिकतर देश प्रशांत महासागर की तटरेखा पर हैं। हालाँकि, सदस्यता के लिए कसौटी है की वह एक राज्य की अपेक्षा एक अलग अर्थव्यवस्था होनी चाहिए। जिसके परिणामस्वरूप, एपेक अपने सदस्यों के लिए सदस्य देशों के स्थान पर सदस्य अर्थव्यवस्थाएं शब्द का प्रयोग करता है।

भारत ने एपेक में सदस्यता के लिए निवेदन किया है जिसमें उसे संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान एवं ऑस्ट्रेलिया से शुरुआती समर्थन प्राप्त हुआ है। एपेक ने विभिन्न कारणों से भारत की अनुमति न देने का निर्णय किया। हालांकि, निर्णय लिया गया कि 2010 तक किसी को भी सदस्यता प्रदान नहीं की जाएगी। इसके अतिरिक्त, भारत की प्रशांत महासागर से सीमा नहीं लगी है, जैसाकि अन्य वर्तमान सदस्यों की है। हालांकि भारत को प्रथम बार नवम्बर 2011 में पर्यवेक्षक के तौर पर आमंत्रित किया गया।

भारत के अतिरिक्त, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मकाऊ, मंगोलिया, लाओस, कम्बोडिया, कोस्टारिका, कोलम्बिया, पनामा एवं इक्वेडोर ऐसे दर्जनों देशों में से हैं जो एपेक में सदस्यता पाना चाहते हैं।

बोगोर लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, एपेक तीन मुख्य क्षेत्रों में काम करती है-

  1. व्यापार एवं निवेश उदारीकरण
  2. व्यापार सुगमता
  3. आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग

एपेक ने सर्वप्रथम औपचारिक तौर पर एशिया-पैसिफिक में मुक्त व्यापार क्षेत्र की अवधारणा पर विचार-विमर्श 2006 के हनोई बैठक में किया। एफटीएएपी के लिए प्रस्ताव का जन्म विश्व व्यापार संगठन के दोहा राउण्ड में बातचीत में प्रगति के अभाव के कारण हुआ। वर्ष 2012 में, आसियान और 6 देशों के अकेले 389 मुक्त व्यापार समझौते थे जिनमें अधिकतर द्विपक्षीय थे।

एफटीएएपी दोहा राउंड की अपेक्षा अधिक व्यापक है, जो व्यापार प्रतिबंधों को कम करने में स्वयं को सीमित करता है। एफटीएएपी एक मुक्त व्यापार क्षेत्र का सृजन करेगा जो महत्वपूर्ण रूप से क्षेत्र में वाणिज्य एवं आर्थिक संवृद्धि को व्यापक करेगा। व्यापार में आर्थिक विस्तार एवं संवृद्धि आसियान+3 (आसियान+जापान, चीन एवं दक्षिण कोरिया) जैसे अन्य क्षेत्रीय मुक्त व्यापार क्षेत्रों की आशाओं को बढ़ाएगा।

वर्ष 2001 में शंघाई में नेताओं की बैठक में, एपेक के नेताओं ने नए व्यापार समझौते के राउण्ड पर जोर दिया और व्यापार क्षमता निर्माण सहायता के कार्यक्रम को समर्थन दिया। बैठक में अमेरिका द्वारा प्रस्तावित शंघाई सहमति का पृष्ठांकन भी किया गया, जो मुक्त बाजार के क्रियान्वयन, संरचनात्मक सुधार और क्षमता निर्माण पर बल देता है।

चिली 2004 में एपेक बैठक आयोजित करने वाला पहला दक्षिण अमेरिकी राष्ट्र बना। उस वर्ष के एजेंडे का केन्द्रीय विषय आंतकवाद एवं वाणिज्य, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास व्यापार समझौतों एवं क्षेत्रीय व्यापार समझौतों को पूरा करना था।

एपेक की वर्ष 2005 में बैठक बुसान, दक्षिण कोरिया में आयोजित की गई। इस शिखर वार्ता का ध्यान विश्व व्यापार संगठन के दोहा राउण्ड की बातचीत पर था। एपेक नेताओं ने इस शिखर वार्ता में यूरोपियन यूनियन की कृषि सब्सिडी कम करने पर सहमत होने के लिए प्रवृत्त किया। बुसान में एपेक के खिलाफ शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन किया गया।

19 नवम्बर, 2006 में हनोई में आयोजित शिखर वार्ता में एपेक नेताओं ने वैश्विक मुक्त व्यापार समझौते की नवीन शुरुआत के लिए आह्वान किया जबकि आतंकवाद एवं अन्य सुरक्षा खतरों की निंदा की। एपेक ने उत्तरी कोरिया द्वारा उस वर्ष किए गए परमाणु परीक्षण एवं मिसाइल परीक्षण की निंदा की।

वर्ष 2007 में 2-9 सितंबर, 2007 में सिडनी में एपेक की शिखर वार्ता आयोजित की गई। राजनीतिक नेता आर्थिक विकास से सहसम्बद्ध ऊर्जा गहनता जैसे जरूरत में 25 प्रतिशत की कभी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर सहमत हुए। इसमें वांछित सुरक्षा कदम भी शामिल थे।

8-13 नवम्बर, 2011 को एपेक की शिखर वार्ता अमेरिका के होनेलुलू, हवाई में आयोजित की गई। इण्डोनेशिया एवं ब्रुनेई ने एपेक की शिखर वार्ता को 7-8 अक्टूबर, 2013 को आयोजित किया। इस बैठक में 1994 के बीगर लक्ष्यों को प्राप्त करने पर बातचीत केन्द्रित रही, जो सभी देशों का वर्ष 2020 तक व्यापार एवं निवेश का उदीरकण करने, अवसंरचनात्मक विकास के माध्यम से संपर्क में सुधार करना और यात्रा बाधाओं को दूर करना, और समस्त प्रदेश के लिए धारणीय एवं समान संवृद्धि बनाए रखने का आह्वान करता है। बागोर लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करने के लिए, एपेक मंत्री 2015 तक पर्यावरणीय वस्तुओं एवं सेवाओं पर टैरिफ को कम करके 5 प्रतिशत से भी कम करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं और इस क्षेत्र में गैर-टैरिफ बाधाओं से निपटने के लिए लोक-निजी भागीदारी स्थापित करते हैं।

एपेक सदस्यों ने अवसंरचना एवं निवेश पर बहुवर्षीय कार्ययोजना के माध्यम से क्षेत्रीय संपर्क के प्रति वचनबद्धता को भी दोहराया, और विश्वसनीय परियोजनाओं के प्रदायन हेतु दिशा-निर्देश स्थापित किए, जो क्षेत्रीय अवसंरचना आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करने के लिए अधिकाधिक निजी क्षेत्र वित्तीयन को प्रोत्साहित करने के दृष्टिगत तैयार किए गए। सदस्यों ने पर्यटकों के लिए वीजा प्रतिबंधों में ढील दी ताकि आर्थिक संवृद्धि तेज की जा सके। व्यक्तिगत तौर पर जापान एवं चीन जैसे देशों ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सड़क, रेलमार्ग, एवं पावरग्रिड के निर्माण में वित्तीय सहायता देकर परिवहन एवं ऊर्जा अवसंरचना की स्थिति सुधारने की वचनबद्धता भी जाहिर की।

धारणीय एवं एकसमान संवृद्धि के प्रयास में, चीन ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिए एक एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक का प्रस्ताव प्रस्तावित किया।

एपेक नेता कौशल एवं क्षमता निर्माण, रोजगार तक एकसमान पहुंच सुनिश्चितता, और वृहद् बाजार समावेश के महत्व में वृद्धि द्वारा महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों में वृद्धि पर कार्रवाई करने पर भी सहमत हुए।

वर्ष 2008 में, लीमा (पेरू) में, एपेक ने व्यापार के सामाजिक आयामों और विकसित तथा विकासशील देशों के बीच अंतर को कम करने पर जोर दिया। एपेक नेताओं ने लीमा में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर वित्तीय संकट के विषय पर भी संबोधन किया। उन्होंने स्थिरता एवं संवृद्धि को बनाए रखने के लिए सभी जरुरी एवं वित्तीय कदम उठाने की प्रतिबद्धता जाहिर की।

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