योजना आयोग के कृषि-जलवायविक क्षेत्र Agro-Climatic Zones of Planning Commission

योजना आयोग ने भारत की 15 कृषि जलवायविक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया है जिसके अंतर्गत प्रदेशों में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक दशाओं और भौतिक विशेषताओं को ध्यान में रखा गया है।

1. पश्चिमी हिमालय क्षेत्र  Western Himalayan Region

पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड के पहाड़ी प्रदेश आते हैं। स्थलाकृति और तापमान में व्यापक बदलाव नजर आते हैं। जुलाई में औसत तापमान 5°C और 30°C के बीच होता है, जबकि जनवरी में यह 5°C और -5°C के बीच होता है। वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से 150 सेमी. के बीच होती है, लद्दाख में, हालांकि, यह 30 सेमी. से भी कम होती है। कश्मीर, कुल्लू और दून घाटियों में कछारी मिट्टी होती है और पहाड़ों पर भूरी मिट्टी होती है।

खरीफ मौसम में घाटी में चावल की उपज होती है, जबकि पहाड़ी पर मक्का की पैदावार होती है। शीत ऋतु में जौ, जई और गेहूं की फसल होती है। यह क्षेत्र बागानी फसलों के अनुकूल है, विशेष रूप से सेब एवं अन्य शीतोष्ण फल जैसे- नाशपाती, अखरोट, चेरी, बादाम, लीची इत्यादि के इस क्षेत्र में केसर की पैदावार की जाती है।

यहां उच्च ऊंचाई पर स्थित अल्पाइन चरागाह या मैदान हैं जिन्हें स्थानीय रूप में धोक्स या मार्ग के नाम से जाना जाता है, तथा इनका इस्तेमाल गुज्जर, बक्करवाल तथा गद्दिस द्वारा उनके भेड़ों, बकरियों, पशुओं तथा घोड़ों के लिए चरागाह के तौर पर किया जाता है। यहां की अर्थव्यवस्था प्रधान रूप से कृषि आधारित है। इस क्षेत्र की मुख्य समस्याएं दुर्गम पहुंच, मृदा अपर्याप्तता हैं। यहां की अधिकतर जनसंख्या ग्रामीण तथा निर्धन है।

बेहतर बीजों हेतु अनुसन्धान एवं कृषि विकास के लिए सेवाओं का विस्तार किए जाने की आवश्यकता है।


2. पूर्वी हिमालय प्रदेश Eastern Himalayan Region


पूर्वी हिमालय क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश, असम का पहाड़ी भाग, सिक्किम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला आते हैं। यहां की स्थलाकृति ऊबड़-खाबड़ है। तापमान में विभिन्नता जुलाई में 25°C और 30°C के बीच रहती है, और जनवरी में यह 10°C और 20°C के मध्य रहती है। औसत वर्षा 200 सेमी. से 400 सेमी. के बीच होती है। लाल-भूरी मिट्टी बेहद उर्वर या उत्पादक नहीं होती है। पहाड़ी क्षेत्रों में झूम कृषि (शिपिंटग कल्टीवेशन) होती है।

यहां की मुख्य फसलें चावल, मक्का, आलू एवं चाय है। यहाँ अन्नानास, लीची, संतरा एवं नीबू के बागान हैं।

इस क्षेत्र में अवसंरचनात्मक सुविधाओं को सुधारे जाने की आवश्यकता है, और खेती योग्य जगह विकसित करके झूम कृषि को नियंत्रित किया जाना चाहिए।


3. गंगा का निचला मैदान क्षेत्र Lower Gangetic Plain Region

इस क्षेत्र में पश्चिम बंगाल (पहाड़ी क्षेत्र को छोड़कर), पूर्वी बिहार और ब्रह्मपुत्र घाटी आते हैं। यहां 100 सेमी. एवं 200 सेमी., के बीच औसत वार्षिक वर्षा होती है। जुलाई में तापमान में 26°C से 41°C और जनवरी में 9°C से 24°C के बीच विभिन्नता रहती है। इस क्षेत्र में पर्याप्त भूमिगत जल का भंडार है। चावल यहां की मुख्य फसल है। पटसन, मक्का, आलू एवं दालें अन्य महत्वपूर्ण उपजें हैं। चावल की खेती, बागवानी (केला, आम एवं खट्टे फल), कृत्रिम मछलीपालन, कुक्कुट पालन, पशुपालन, चारा उत्पादन और बीज आपूर्ति में सुधार एवं योजनाबद्ध रणनीतियों की आवश्यकता है।


4. गंगा का मध्य मैदान क्षेत्र  Middle Gangetic Plain Region

इसमें उत्तर प्रदेश एवं बिहार का बड़ा हिस्सा आता है। यहां के औसत तापमान में जुलाई में 26°C से 41°C तथा जनवरी में 9°C से 24°C के बीच विभिन्नता रहती है।

औसत वार्षिक वर्षा 100 सेमी. और 200 सेमी. के बीच होती है। यह एक उर्वर कछारी मैदान है जिसमें गंगा और इसकी सहायक नदियां बहती हैं। खरीफ में चावल, मक्का और बाजरा, तथा रबी में गेहूं, चना, जौ, मटर, सरसों तथा आलू मुख्य फसल है।

वैकल्पिक कृषि तंत्र और मछली पालन के लिए चौउर भूमि का इस्तेमाल कृषि उत्पादन को बढ़ने के कुछ उपाय हैं। उपयोग की गयी भूमि का  पुनर्प्रापण और पार्टी भूमि का कृषि एवं सम्बद्ध गतिविधियों (कृषि-वानिकी, वानिकी, फूलों की खेती इत्यादि) को किया जाना चाहिए।


5. गंगा का ऊपरी मैदान क्षेत्र  Upper Gangetic Plains Region

इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के मध्य और पश्चिमी भाग तथा उत्तराखण्ड के हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर जिले आते हैं।

यहां जुलाई में तापमान 26°C और 41°C के बीच तथा जनवरी में 7°C और 23°C के बीच होता है तथा जलवायु उप-आर्द्र महाद्वीपीय है। 75 सेमी. और 150 सेमी. के बीच औसत वार्षिक वर्षा होती है। यहां पर बलुई चिकनी मिट्टी होती है। नहरें, ट्यूब वैल एवं कुएं सिंचाई के मुख्य माध्यम हैं। यह गहन कृषि क्षेत्र हैं, जिसमें गेहूं, चावल, गणना, बाजरा, मक्का, चना, जौ, तैलीय, बीज, दालें और कपास जैसी मुख्य उपज होती हैं।

परम्परागत कृषि के आधुनिकीकरण के अतिरिक्त इस क्षेत्र में डेरी विकास और बागवानी पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। विविध मिश्रित फसल प्रतिरूप के विकास को रणनीति में शामिल किया जाना चाहिए।


6. ट्रांस-गंगा मैदान क्षेत्र Trans-Ganga Plains Region

इसे सतलज-यमुना मैदान भी कहा जाता है। यह पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली और राजस्थान के गंगानगर जिले तक फैला हुआ है। जुलाई में तापमान 25°C और 40°C तथा जनवरी में 10°C और 20°C के साथ यहां अर्द्ध-शुष्क विशेषताएं व्याप्त हैं। 65 सेमी. और 125 सेमी. के बीच औसत वार्षिक वर्षा होती है। यहां की मिट्टी कछारी है और बेहद उत्पादक या उपजाऊ है। नहर, ट्यूब वैल और पम्पिंग सेट कृषकों और सरकार द्वारा लगाए गए है। यहां पर देश की सर्वाधिक कृषि गहनता है। महत्वपूर्ण उपज में गेहूं, गन्ना, कपास, चावल, चना, भक्का, बाजरा, दालें, तेलीय बीज इत्यादि शामिल हैं। देश में हरित क्रांति की शुरुआत करने का श्रेय इसी क्षेत्र को जाता है तथा यहां पर उच्च मात्रा में कृषि यंत्रों के इस्तेमाल के साथ खेती की आधुनिक पद्धति को अपनाया गया। यह क्षेत्र जल एकत्रीकरण, लवणीयता, क्षारीयता, मृदा अपरदन और भूमिगत जल स्तर में घटाव की समस्या का सामना कर रहा है।

इस क्षेत्र में कृषि को अधिक धारणीय और उत्पादक बनाने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं-

  • गेहूं- चावल के कुछ क्षेत्र को अन्य फसलों जैसे-मक्का, दालें, तैलीय बीज एवं चारा इत्यादि के साथ विविधीकरण किया जाए;
  • चावल, मक्का और गेहूं की खरपतवारों एवं रोगों की प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया जाए;
  • तुअर और मटर जैसी दालों के प्रोत्साहन के अतिरिक्त बागवानी को बढ़ावा दिया जाए;
  • औद्योगिक संकुल के समीप सब्जियों की खेती की जाए
  • सब्जियों गुणवत्तापरक बीजों की आपूर्ति तथा बागवानी उपज के लिए रोपण पदार्थों की निर्बाध आपूर्ति की जाए
  • प्रेषण भंडारण अवसंरचना का विकास और अतिरिक्त फल एवं सब्जी उत्पादन का बेहतर संसाधन
  • दुग्ध एवं ऊन की उत्पादकता बढ़ाने के कार्यक्रमों एवं नीति का कार्यान्वयन
  • चारा उत्पादन के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में पशु खाद्यान्न और उच्च गुणवत्ता वाली चारा किस्मों का विकास

 

7. पूर्वी पठार और पहाड़ियां Eastern Plateau and Hills

यह क्षेत्र छोटानागपुर पठार, झारखण्ड, ओडीशा, छत्तीसगढ़ और दण्डकारण्य तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में जुलाई में 26°C से 34°C तक, और जनवरी में 10°C से 27°C तक तापमान होता है। 80 सेमी.-150 सेमी. तक औसत वार्षिक वर्षा होती है। यहां लाल और पीली मिट्टी होती है। इस प्रदेश में पठारी स्थलाकृति और मौसमी जलधाराएं और आलू जैसी वर्षाधीन उपज उगाई जाती हैं।

कृषि उत्पादकता और आय में वृद्धि करने वाले कदम उठाये जाने चाहिए जिसमें उच्च कीमत वाली उपज (तूर, मूंगफली, सोयाबीन इत्यादि) की कृषि भी शामिल है। इसके अतिरिक्त, खरीफ में मूंगफली की पैदावार, सिंचाईकृत क्षेत्रों में सरसों एवं सब्जियों की पैदावार, पशु एवं भैस की स्वदेशी नस्ल में सुधार, फल रोपण का विस्तार, नवीनीकरण जिसमें मौजूद टैंक से सिल्ट हटाना और नए टैंक स्थापित करना, 95.32 लाख हेक्टेयर अम्लीय भूमि का नींबू से उपचार करना, स्थायी जल निकायों में कृत्रिम मछली पालन का विकास करना, और मृदा तथा वर्षा जल संरक्षण के लिए समन्वित जलसंभर विकास विधि को अपनाना।


8. मध्य (केन्द्रीय) पठार और पहाड़ियां Central Plateau and Hills 

यह क्षेत्र बुंदेलखंड, बघेलखंड, भंडेर पठार, मालवा पठार तथा विंध्याचल पहाड़ियों तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में अर्द्ध-शुष्क जलवायविक दशाएं हैं। यहां जुलाई में, तापमान 26°C से 40°C और जनवरी में, 7°C से 24°C तक रहता है। औसत वार्षिक वर्षा 50 सेमी. से 100 सेमी. तक होती है। यहां की मृदा लाल, पीली और काली मिट्टियों का मिश्रण है।

यहाँ पानी की कमी है। बाजरा, गेंहूं, चना, तिलहन, कपास और सूरजमुखी उगाई जाने वाली फसलें हैं। कृषि प्रतिफलों में सुधार के क्रम में ड्रिप सिंचाई और छिड़काव जैसी जल बचाने वाली पद्धतियों द्वारा जल संरक्षण, डेयरी विकास, फसल विविधीकरण, भूमिगत जल विकास, और ऊसर भूमि का पुनर्प्रापण जैसे उपाय अपनाए जाने चाहिए।


9. पश्चिमी पठार और पहाड़ियां Western Plateau and Hills 

इसमें मालवा और दक्कन पठार (महाराष्ट्र) का दक्षिणी भाग आता है। यहां रेगड़ (काली) मिट्टी पाई जाती है। यहां पर जुलाई में तापमान, 24°C और 41°C, तथा जनवरी में, 6°C और 23°C के बीच होता है। 25-75 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा होती है। वर्षाधीन क्षेत्र में गेहूं, चना, बाजरा, कपास, दालें, मूंगफली और तिलहन मुख्य पैदावार हैं, जबकि सिंचाईकृत क्षेत्र में गन्ना, चावल और गेहूं की फसल की जाती है। संतरा, केला और अंगूर भी उगाए जाते हैं।

छिड़काव और ड्रिप जैसे जल बचाने वाले उपकरणों को लोकप्रिय बनाकर जल क्षमता बढ़ाए जाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। निम्न कीमत की फसलों (ज्वार, बाजरा और वर्षाधीन गेहूं) के स्थान पर तिलहन जैसी उच्च कीमत वाली फसलें उगानी चाहिए। वर्षाधीन कपास और ज्वार फसलों के अधीन आने वाले 5 प्रतिशत क्षेत्र को बेर, अनार, आम और अमरूद जैसे फलों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। कुक्कुट पालन के विकास के साथ-साथ पशु एवं भैसों के संकरण द्वारा दुग्ध उत्पादन में सुधार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।


10. दक्षिणी पठार एवं पहाड़ियां Southern Plateau and Hills 

इस क्षेत्र में दक्कन का आंतरिक क्षेत्र आता है जिसमें दक्षिणी महाराष्ट्र का हिस्सा, कर्नाटक का अधिकतर भाग, आंध्र प्रदेश, उत्तर में अदिलाबाद जिले से दक्षिण में मदुरई जिले तक तमिलनाडु की उच्चभूमियां शामिल हैं। जुलाई का मासिक तापमान का माध्य 25°C और 40°C के बीच विभिन्नता रखता है, और जनवरी माह का माध्य 10°C और 20°C के बीच विभिन्नता रखता है। औसत वार्षिक वर्षा 50 सेमी. और 100 सेमी. के बीच होती है।

यह शुष्क पहाड़ी का क्षेत्र है जहाँ बाजरा, तिलहन और दालें उगाई जाती हैं। कर्नाटक पठार के पहाड़ी ढालों के साथ कॉफी, चाय, इलायची और मसालों की खेती की जाती है।

मोटे अनाज के अंतर्गत आने वाले कुछ क्षेत्र को दलों और तिलहन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बागानी, डेयरी विकास और पॉल्ट्री फार्मिग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।


11. पूर्वी तटीय मैदान एवं पहाड़ियां Eastern Coastal Plains and Hills 

यह क्षेत्र आध्र प्रदेश और ओडीशा के कोरोमण्डल तथा उत्तरी सरकार तट तक फैला हुआ है। इसका जुलाई का तापमान माध्य 25°C और 35°C के बीच और जनवरी माह का तापमान माध्य 20°C और 30°C के बीच परिवर्तित होता है। वार्षिक वर्षा का माध्य 75 सेमी. और 150 सेमी. के बीच विभिन्नता रखता है।

यहां की मृदा कछारी, चिकनी और बलुआ है तथा क्षारीयता से ग्रस्त है। इसकी मुख्य फसलें चावल, पटसन, तम्बाकू, गणना, मक्का, बाजरा, मूंगफली और तिलहन हैं। मुख्य कृषि रणनीतियों में मसालों (काली मिर्च और इलायची) की खेती में सुधार तथा मत्स्य पालन का विकास शामिल है। इनमें सीमांत भूमि पर चावल की खेती को हतोत्साहित करना और ऐसी एकल फसल प्रतिरूप से बचना; और उच्च भूमि क्षेत्र में बागवानी, सामुदायिक वानिकी और डेयरी फार्मिग को विकसित करना भी शामिल है।


12. पश्चिमी तटीय मैदान एवं घाट  Western Coastal Plains and Ghats

यह क्षेत्र मालाबार और कोंकण तटीय मेदानों तथा सह्याद्रि तक फैला हुआ है। यहां आर्द्र जलवायु है तथा जुलाई माह का तापमान माध्य 25°C और 30°C के बीच तथा जनवरी माह का तापमान माध्य 18°C और 30°C के बीच रहता है। वार्षिक वर्षा 200 सेमी. से अधिक होती है।

मृदा लेटराइट और तटीय कछारी है। चावल, नारियल, तिलहन, गन्ना, बाजरा, दालें और कपास मुख्य फसलें हैं। यह क्षेत्र रोपण फसलों और मसालों के लिए भी प्रसिद्ध है जिनकी खेती पश्चिमी घाट के पहाड़ी ढालों के साथ की जाती है।

कृषि विकास का ध्यान उच्च कीमत उपजों (दालों, मसालों और नारियल) के विकास पर दिया जाना चाहिए। अवसंरचनात्मक सुविधाओं का विकास और पश्च जल में झींगा पालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।


13. गुजरात के मैदान और पहाड़ियां Gujarat Plains and Hills

इस क्षेत्र में काठियावाड़ के मैदान एवं पहाड़ियां तथा माही और साबरमती नदियों की उर्वर घाटियां शामिल हैं। यह शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र है। यहां जुलाई माह में तापमान 30°C और जनवरी में लगभग 25°C रहता है। औसत वार्षिक वर्षा माध्य 50 सेमी. और 100 सेमी. के बीच परिवर्तित होता है।

पठारी क्षेत्र में रेगड़ मृदा, तटीय क्षेत्र में कछारी, तथा जामनगर क्षेत्र में लाल और पीली मृदा पाई जाती है। मूंगफली, कपास, चावल, बाजरा, तिलहन, गेहूं और तंबाकू मुख्य फसलें हैं। यह एक मुख्य तिलहन उत्पादक क्षेत्र है।

इस क्षेत्र में विकास की मुख्य रणनीति नहर एवं भौम जल प्रबंधन, वर्षा जल संरक्षण एवं प्रबंधन शुष्क भूमि कृषि, कृषि वानिकी, ऊसर भूमि विकास, समुद्री मछली पालन विकास और तटीय क्षेत्रों और नदी डेल्टाओं में पश्च जल कृषि का विकास होनी चाहिए।


14. पश्चिमी शुष्क प्रदेश  Western Dry Region

यह क्षेत्र राजस्थान और अरावली पर्वत श्रेणी के पश्चिम में फैला हुआ है। यहां 25 सेमी. से भी कम अनियमित वार्षिक वर्षा होती है। मरुस्थलीय जलवायु के कारण उच्च वाष्पीकरण होता है। जून में तापमान 28° C से 45° C तथा जनवरी में तापमान 5° C  से 22°C तक रहता है। ज्वार और मोठ खरीफ की और गेहूं एवं चना रबी की मुख्य फसलें हैं। मरुस्थलीय पारिस्थितिकी में पशुपालन बेहद योगदान करता है।

वर्षा जल संचय, तरबूज, अमरुद और खजूर जैसी बगनी फसलों को प्रोत्साहन, पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली जर्म-प्लाज्म अपनाना और ऊसर भूमि पर ग्रामीण जीवन संबंधी वानिकी अपनाना जैसे मुख्य क्षेत्रों में विकास की दरकार है।


15. द्वीप Island Region

इसमें अंडमाननिकोबार और लक्षद्वीप शामिल हैं। यहां पर विषुवतीय जलवायु है। वार्षिक वर्षा 300 सेमी. से कम होती है। पोर्ट ब्लेयर का जुलाई और जनवरी का तापमान माध्य क्रमशः 30°C और 25°C होता है। मिट्टी तट के साथ बलुई, घाटियों और निम्न ढालों पर चिकनी होती है।

यहां की मुख्य फसलें चावल, मक्का, बाजरा, दालें, हल्दी और कसावा हैं। फसल क्षेत्र का लगभग आधा हिस्सा नारियल की कृषि के अधीन है। इस क्षेत्र में घने वन हैं।

फसल सुधार, जल प्रबंधन और मत्स्य पालन के विकास पर मुख्य ध्यान दिया जाना चाहिए। चावल की उन्नत किस्म को लोकप्रिय किया जाना चाहिए ताकि कृषकों को चावल की एक के स्थान पर दो फसलें मिल सकें। मत्स्यिकी के विकास हेतु गहरे समुद्र में मछली शिकार करने के लिए बहुउद्देशीय पोत लाए जाने चाहिए, मछली के भंडार और प्रसंस्करण के लिए उचित अवसंरचना का निर्माण किया जाना चाहिए, और तटीय क्षेत्र में पश्च जल झींगा पालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

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