विश्व बैंक समूह World Bank Group – WBG

विश्व बैंक समूह के अंतर्गत पुनर्निर्माण एवं विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय बैंक (आईबीआरडी) अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (आईडीए), अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी), बहुपक्षीय निवेश गांरटी एजेंसी (एमआईजीए) तथा निवेश संबंधी विवादों के निपटान हेतु अंतरराष्ट्रीय केंद्र (आईसीएसआईडी) शामिल हैं। इन पांच संस्थाओं में से प्रथम तीन को संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट अभिकरणों का दर्जा प्राप्त है।

विश्व बैंक समूह का सामान्य उद्देश्य विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर वित्तीय संसाधनों के प्रवाह द्वारा विकास की समग्र तकनीकी एवं वित्तीय अनिवार्यताओं को पूरा करना है।

अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक International Bank for Reconstruction and Development – IBRD

इसकी स्थापना जुलाई 1949 में आयोजित ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के परिणामस्वरूप हुई। बैंक को विश्व उत्पादन व व्यापार हेतु एक केंद्र के रूप में स्वीकार किया गया। आईबीआरडी एवं आईएमएफ की स्थापना से जुड़े समझौता अनुच्छेद अपेक्षित 28 राज्यों के अनुमोदनोपरांत 27 दिसंबर, 1947 से प्रभावी हो गये। बैंक द्वारा जून 1946 से अपना कार्य आंरभ कर दिया गया। बैंक का मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है।

जनवरी 2014 की स्थिति के अनुसार इसकी सदस्य संख्या 188 थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की भांति इसके भी दो प्रकार के सदस्य हैं- मौलिक सदस्य एवं सामान्य सदस्य। इसके भी 30 मौलिक सदस्य हैं, जिन्होंने 31 दिसंबर, 1945 तक विश्व बैंक की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की भांति विश्व बैंक के भी संस्थापक देशों में से एक है। 31 दिसंबर, 1945 के पश्चात् सदस्यता ग्रहण करने वाले राष्ट्रों को सामान्य सदस्य कहा जाता है। बैंक की पूंजी में सदस्य राष्ट्रों के अंश के अनुरूप ही बैंक के सदस्यों के मताधिकार का निर्धारण किया जाता है। प्रत्येक एक अंश पर एक अतिरिक्त मताधिकार सदस्य राष्ट्र की आवंटित किया जाता है। विश्व बैंक के अंशों की राशि का भुगतान सदस्य राष्ट्रों द्वारा विभिन्न प्रकार से किया जाता है-

  1. अंशदान का 2 प्रतिशत भुगतान स्वर्ण, अमेरिकी डॉलर या एसडीआर में किया जाता है;
  2. प्रत्येक सदस्य देश अपनी अंश पूंजी का 18 प्रतिशत अपने देश की मुद्रा में भुगतान करने के लिए स्वतंत्र है;
  3. 80 प्रतिशत अंशदान विश्व बैंक द्वारा याचना किए जाने पर ही सदस्य देश द्वारा बैंक में जमा कराया जाता है। मात्र आईएमएफ के सदस्य राष्ट्र ही आईबीआरडी की सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं, जबकि आईएफसी एवं एमआईजीए की सदस्यता पाने के लिए आईबीआरडी का सदस्य होना जरूरी है।

आईबीआरडी का मूल उद्देश्य गरीबी घटाने तथा उत्पादक क्षमता को बढ़ाने वाली परियोजनाओं को अपनाने के लिए तत्पर विकासशील सदस्य देशों की उचित शताँ पर कर्ज उपलब्ध कराना है। बैंक द्वारा गारंटी या भागीदारी के माध्यम से निजी निवेश ऋणों को प्रोत्साहित किया जाता है तथा विशिष्ट निवेश परियोजनाओं एवं समग्र विकास योजनाओं के क्षेत्र में तकनीकी सहायता उपलब्ध करायी जाती है। आईबीआरडी की गतिविधियां मुख्यतः उधार व ऋण, सहायता सहयोग, तकनीकी सहायता तथा अन्य सम्बद्ध सेवाओं पर केन्द्रित होती हैं। बैंक के संसाधनों में सदस्यों से प्राप्त पूंजी संचय, प्रतिधारित आय तथा पूंजी बाजार से प्राप्त उधार शामिल हैं। बकाया कजों के अंशों की बिक्री (मुख्यतः बैंक गारंटी के बिना) तथा पुनर्भुगतानों के प्रवाह द्वारा बैंक का कोष समृद्ध होता रहता है। कर्ज दिया जाने वाला अधिकांश कोष विश्व पूंजी बाजारों में से प्रत्यक्ष उधार के रूप में इकट्ठा किया जाता है। बैंक के कार्यचालन हेतु आवश्यक कोष की प्राप्ति सार्वजनिक व निजी निवेशकों के लिए ब्याजधारी बॉण्ड या प्रपत्र जारी करके की जाती है।

बैंक युक्तिसंगत शर्तों पर कर्ज प्रदान करता है और साथ ही कमीशन शुल्क एवं ब्याज के रूप में लाभार्जन भी सुनिश्चित कर लेता है। ऋण सामान्यतः दीर्घावधिक होते हैं, जो 5 वर्ष की रियायती अवधि के साथ 20 वर्षों के भतीर मुद्राओं के रूप में चुकाये जाने होते हैं। कर्जदारी या उधारी सदस्य देशों तक सीमित होती है। बकाया ऋणों की मात्रा अंशदान पूंजी भंडार की विशुद्ध मात्रा से अधिक नहीं हो सकती। प्रत्येक ऋण पर सम्बद्ध देश की सरकार गारंटी प्रदान करती है। यह प्रावधान निजी उद्यम हेतु ऋण प्राप्त करने का निषेध करता है। ऋण पोषित परियोजनाओं का लाभकारी एवं उपयोगी होना आवश्यक है। सिद्धांत रूप में, ऋण उन परियोजनाओं को उपलब्ध कराया जाता है, जिन्हें अन्य स्रातों से उचित शर्तों पर वित्त प्राप्त नहीं हो सकता। बैंक द्वारा प्रत्येक ऋण पोषित परियोजना की सघन निगरानी एवं लेखा परीक्षण किया जाता है।


सहायता सहयोग के क्षेत्र में बैंक द्वारा कुछ विशेष देशों की विकास संबंधी समस्याओं की सुलझाने के लिए एक बहुपक्षीय उपागम को प्रोत्साहित किया जाता है। इस उपागम के तहत सहायता के लिए व्यापक योजनाएं लागू करने हेतु सक्षम दानकर्ताओं के समूहों को संगठित किया जाता है। इसके अलावा बैंक अनेक बहुपक्षीय वित्तीय अभिकरणों (आईडीबी, एडीबी, यूरोपीय विकास कोष, अरब आर्थिक व सामाजिक विकास कोष इत्यादि) के साथ परियोजनाओं पर कार्य करता है।

बैंक विकासात्मक कार्यक्रमों में अन्य संयुक्त राष्ट्र अभिकरणों के साथ सहयोग करता है। उदाहरणार्थ, यूएनडीपी द्वारा वित्त पोषित कई परियोजनाओं में आईबीआरडी कार्यकारी एजेंसी के रूप में कार्य करता है। यह यूएनडीपी एवं यूएनईपी के साथ मिलकर भूमंडलीय पर्यावरण सुविधा (जीईएफ) का प्रबंधन करती है। आपदा तैयारी एवं शहरी प्रबंधन में सुधार के लिए बैंक द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानव अधिवासन केन्द्र के साथ सहयोग किया जाता है। एफएओ, यूएनडीपी तथा आईबीआरडी द्वारा संयुक्त रूप से अंतरराष्ट्रीय कृषि शोध परामर्श समूह (सीजीआईएआर) की प्रायोजित किया जाता है। आधार संरचनात्मक व विकास परियोजनाएं बैंक की वरीयता सूची में सबसे ऊपर आती हैं।

1980 के दशक में बैंक द्वारा संरचनात्मक व्यवस्थापन उधारी कार्यक्रम विकसित किया गया, जो विकासशील देशों में संस्थात्मक सुधारों व विशिष्ट नीतिगत बदलावों की अपेक्षा करता था ताकि संसाधनों का अधिक संगत उपयोग किया जा सके। बैंक द्वारा अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की रूपरेखा बनायी गयी। बैंक अत्यधिक ऋणग्रस्त मध्यम आय वाले देशों की सहायता पर भी विशेष जोर देता है।

बैंक की देश सहायता रणनीतियों के संदर्भ में, आईबीआरडी द्वारा आईएफसी एवं एमआईजीए (मीगा) के सहयोग से निजी पूंजी बाजारों तक उधारकर्ताओं की पहुंच बढ़ाने के लिए समर्थन प्रदान किया जाता है।

बैंक के संगठनात्मक ढांचे के अंतर्गत बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स, कार्यकारी निदेशक तथा अध्यक्ष शामिल हैं। सभी सदस्य देशों का एक गवर्नर एवं वैकल्पिक प्रतिनिधि गवर्नर्स ऑफ बोर्ड में शामिल होता है। गवर्नर प्रायः सम्बद्ध देशों के वित्त मंत्री या वित्त सचिव स्तर के प्रशासक होते हैं, जो साथ-ही-साथ आईएमएफ, आईएफसी एवं मीगा के गवर्नरों के रूप में भी कार्य करते हैं। गवर्नर्स बोर्ड की बैठक वार्षिक रूप से होती है जिसमें इन सभी संस्थाओं के कामकाज की समीक्षा की जाती है। इस बोर्ड में प्रत्येक सदस्य को 250 मत तथा एक अतिरिक्त वोट (प्रत्येक अंश धारक के हिसाब से) प्राप्त होता है। इस प्रकार बैंक भारित मतदान प्रणाली पर आधारित होकर कार्य करता है, जो देशों के निजी अंशदान की मात्रा (जो अपने आप में आईएमएफ कोटे द्वारा निर्धारित है) पर टिकी हुई है। गरीब देशों की मतशक्ति आनुपातिक रूप से काफी कम है। बोर्ड की तीन में से एक बैठक वाशिंगटन से दूर स्थल पर की जाती है।

गवर्नर्स बोर्ड की अधिकांश शक्तियां 24 कार्यकारी निदेशकों को हस्तांतरित कर दी गयी हैं, जो बैंक मुख्यालय पर महीने में कम-से-कम एक बार अपनी बैठक करते हैं। ये निदेशक बैंक के सामान्य कामकाज के संचालन हेतु उत्तरदायी होते हैं। नये सदस्यों के प्रवेश, पूंजी स्टॉक में परिवर्तन तथा बैंक की शुद्ध आय के वितरण से सम्बंधित बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की शक्तियों को हस्तांतरित नहीं किया गया है। पूंजी स्टॉक में अधिकतम अंश रखने वाले पांच देशों (फ्रांस, जर्मनी, जापान, अमेरिका व ब्रिटेन) द्वारा पृथक् रूप से पांच कार्यकारी निदेशकों की नियुक्ति की जाती है। शेष, 19 निदेशकों का निर्वाचन दो वर्षीय कार्यकाल हेतु शेष सदस्य राष्ट्रों द्वारा किया जाता है, जो 19 भौगोलिक समूहों में विभाजित हैं। सऊदी अरब, चीन एवं रूस को पृथक् भौगोलिक समूहों का दर्जा प्राप्त है। प्रत्येक निदेशक स्वयं को निर्वाचित करने वाले भौगोलिक समूह में शामिल देशों को प्राप्त कुल मतों की इकाई के रूप में अपने मत का प्रयोग कर सकता है।

आईबीआरडी का अध्यक्ष कार्यकारी निदेशकों का प्रधान होता है, जिसे 5 वर्षीय कार्यकाल हेतु चुना जाता है। अध्यक्ष आईबीआरडी के साथ-साथ आईडीए व आईएफसी के कामकाज का संचालन भी करता है। एक संधि समझौते के अनुसार बैंक का अध्यक्ष संयुक्त राज्य अमेरिका का नागरिक ही बन सकता है

पुनर्निर्माण एवं विकास हेतु ऋण सुविधा प्रदान करने के अतिरिक्त विश्व बैंक द्वारा सदस्य राष्ट्रों को विभिन्न प्रकार की तकनीकी सेवाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बैंक ने वाशिंगटन में द इकोनॉमिक डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट तथा एक स्टाफ कॉलेज की भी स्थापना की है।

बैंक ने अब तक वितरित अपने कुल ऋण का 75 प्रतिशत भाग अफ्रीका, एशिया और लेटिन अमेरिका के विकासशील राष्ट्रों को प्रदान किया है, जबकि यूरोप के विकसित राष्ट्रों को कुल ऋण का 25 प्रतिशत ही दिया गया है। बैंक ने ऋणदाता राष्ट्रों में समन्वय स्थापित करने का भी प्रयास किया है, ताकि सदस्य विशेष की वित्तीय आवश्यकताओं की और अधिक कारगर तरीके से पूर्ति की जा सके। विकासशील राष्ट्रों में विकास परियोजनाएं बनाने में सहायता देने के उद्देश्य से बैंक ने अनेक विकासशील राष्ट्रों में अपने मिशन स्थापित किए हैं। बैंक खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन (यूनिडो), यूनेस्को आदि के विशेषज्ञों की मदद से कृषि, शिक्षा एवं जलापूर्ति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में परियोजनाओं की पहचान करने तथा उनकी तैयारी करने में सदस्य राष्ट्रों की सहायता करता है।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट 3 सितंबर, 2003 को वाशिंगटन में जारी की गई। ग्लोबल इकोनॉमिक प्रास्पेक्ट्स 2004: रिअलाइजिंग द प्रॉमिस ऑफ दोहा एजेंडा शीर्षक वाली इस रिपोर्ट को डब्ल्यूटीओ के कैनकुन सम्मेलन के परिप्रेक्ष्य में विशेषतौर पर तैयार किया गया था। रिपोर्ट में इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था कि विकसित राष्ट्रों की व्यापारिक नीतियां विकासशील राष्ट्रों के प्रतिकूल बनी हुई हैं। इसमें कहा गया है कि औद्योगिक राष्ट्रों के उत्पादों की तुलना में विकासशील राष्ट्रों के उत्पादों पर ऊंचे प्रशुल्क विकसित राष्ट्रों ने आरोपित किए हैं। इसके साथ ही विकसित राष्ट्रों पर यह आरोप भी रिपोर्ट में लगाया गया है कि पेशेवरों की आवाजाही पर से प्रतिबंध हटाने की दिशा में कोई विशेष कदम विकसित राष्ट्रों ने नहीं उठाए हैं।

भारत के आर्थिक विकास की गति की त्वरित करने में विश्व बैंक ने देश की विभिन्न विकास परियोजनाओं में दीर्घकालीन पूंजी निवेश करके अभूतपूर्व योगदान दिया है। विभिन्न विकास परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए विश्व बैंक द्वारा दीर्घकालीन ऋण प्रदान किए गए हैं। विशेषतः देश की परिवहन एवं संचार, सिंचाई, शिक्षा, जलापूर्ति, विद्युत शक्ति, जनसंख्या नियंत्रण, गरीबी उन्मूलन, बुनियादी ढांचा, ग्रामीण विकास, सड़क निर्माण आदि दीर्घकालीन परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए बैंक द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी गई है। विद्युत् एवं सिंचाई के क्षेत्रों की आधारिक संरचना परियोजनाओं तथा सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों के पूंजीकरण के लिए विश्व बैंक ने भारत सरकार के लिए 4.3 अरब डॉलर (लगभग 2200 करोड़) के चार ऋण 24 सितम्बर, 2009 को स्वीकृत किए थे। जुलाई 2009 से जून 2010 के दौरान विश्व बैंक ने भारत के लिए 9.3 अरब डॉलर के ऋण स्वीकृत किए हैं। इसमें से 6.7 अरब डॉलर का ऋण आईबीआरडी द्वारा व शेष 2. 6 अरब डॉलर का ऋण विश्व बैंक की रियायती ऋण देने वाली खिड़की आईडीए द्वारा मंजूर की गई है।

2009-10 के दौरान आईबीआरडी से ऋण प्राप्त करने वाले देशों में भारत के बाद क्रमशः मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील तथा तुर्की का स्थान है। जबकि आईडीए से रियायती ऋण प्राप्त करने वालों में भारत के बाद अगले स्थान पर क्रमशः वियतनाम, तंजानिया, इथियोपिया व नाईजीरिया हैं।

अंतरराष्ट्रीय विकास संघ International Development Association – IDA

आईबीआरडी की एक सहायक संस्था के रूप में आईडीए की रूपरेखा कार्यकारी निदेशकों द्वारा जनवरी 1960 में खींची गयी। इसकी स्थापना से सम्बंधित समझौता अनुच्छेद पर फरवरी 1960 में हस्ताक्षर हुए तथा 24 सितम्बर, 1960 में आईडीए अस्तित्व में आ गया। 27 मार्च, 1961 को इसे विशिष्ट अभिकरण का दर्जा प्राप्त हुआ। आईसीएसआईडी के संयुक्त हो जाने पर विश्व बैंक समूह का रूप ले लेती है। आईडीए के सदस्यों की संख्या 172 (2013 के अनुसार) है तथा इसका मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है।

आईडीए का मुख्य उद्देश्य अल्पविकसित देशों को अधिक आसान शर्तों पर विकास साख (वित्त के लिए आईडीए द्वारा प्रयुक्त शब्द) उपलब्ध कराकर उनके वित्तीय व आर्थिक विकास में सहायता प्रदान करना है। इसीलिए यह आईबीआरडी के उद्देश्यों व क्रिया-कलापों को प्रोत्साहित एवं अनुपूरित करता है। संघ के संसाधनों में अंश भागीदारी, सामान्य पुनर्भरण (औद्योगिक व विकसित सदस्य देशों से), समृद्ध सदस्यों से प्राप्त विशेष योगदान तथा आईबीआरडी की शुद्ध आय के स्थानांतरण से प्राप्त पूंजी शामिल है। सदस्य देशों के दो वर्ग हैं। प्रथम वर्ग में विकसित देश शामिल हैं, जो परिवर्तनीय मुद्रा में पूरा अंशदान व अनुपूरक संसाधन अदा करते हैं। दूसरे वर्ग में अधिकतर विकासशील देश (लगभग 30) आते हैं, जो अपने आरंभिक अंशभाग का 10 प्रतिशत मुक्त परिवर्तनीय मुद्रा में तथा अंशभाग का शेष 90 प्रतिशत, अतिरिक्त अंशभाग एवं अनुपूरक संसाधन अपनी राष्ट्रीय मुद्रा में चुकाते हैं। आईडीए के साथ हुए किसी समझौते के बिना, द्वितीय वर्ग के सदस्यों की मुद्रा को उनके भू-प्रदेश से बाहर स्थित परियोजनाओं के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता।

आईडीए द्वारा उधार देने की शर्ते व सीमाएं आईबीआरडी के समान ही हैं।

आईडीए निम्न आय वाले देशों के लिए रियायती सहायता का एकमात्र सबसे बड़ा बहुपक्षीय स्रोत है। आईडीए की अधिकांश सहायता 785 डॉलर से कम की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय वाले देशों को प्राप्त होती है। आईडीए की साख 40 वर्ष (अत्यल्प विकसित देशों के लिए) तथा 35 वर्ष (अन्य देशों के लिए) की अवधि के लिए उपलब्ध करायी जाती है। इस पर कोई ब्याज देय नहीं होता किंतु 0.75 प्रतिशत का वार्षिक सेवा शुल्क आरोपित होता है। सभी साखों पर 10 वर्ष की रियायती अवधि उपलब्ध होती है, जो ऋण को शेष 30 अथवा 25 वर्ष की अवधि पर प्रमुख बकाये के पूर्ण पुनर्भुगतान से सम्बद्ध होती है।

आईडीए की साख का अधिकांश सड़क व रेल, विद्युत उत्पादन व संचरण सुविधा, दूरभाष केन्द्र व संप्रेषण तार, शिक्षा सुविधा, सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण उपस्कर तथा औद्योगिक योजना जैसी भौतिक आधार संरचना में सुधार लाने वाली परियोजनाओं को उपलब्ध कराया गया है। ग्रामीण गरीबों की उत्पादकता में वृद्धि लाने के लिए विशेष रूप से तैयार किये गये ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की भी साख का विस्तार किया गया है।

आईडीए द्वारा आईबीआरडी के निदेशकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों के माध्यम से अपना कार्य संचालित किया जाता है।

वित्तीय वर्ष 1995-96 के दौरान आईडीए से सहायता पाने वाले देशों में भारत का पहला स्थान रहा था। दूसरे व तीसरे स्थान के लिए क्रमशः वियतनाम व चीन के लिए आईडीए ऋण स्वीकृत किए गए। इसके विपरीत विश्व बैंक से समग्र रूप से सर्वाधिक सहायता 1995-96 के दौरान चीन को स्वीकृत की गई। भारत का इस मामले में दूसरा स्थान रहा था। इसके साधनों में मुख्यतः सदस्य देशों द्वारा स्वीकृत पूंजी, विकसित राष्ट्रों द्वारा किया गया अंशदान, विशिष्ट योगदान तथा बैंक द्वारा हस्तांतरित शुद्ध आय आदि आते हैं। अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (आईडीए) ने विभिन्न वर्षों में भारत की अनेक विकास परियोजनाओं के लिए ऋण प्रदान किए हैं। वर्ष 2002-03 में आईडीए ने भारत का 1121.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण प्रदान किए। वर्ष 2003-04 में आईडीए ने भारत की 785.6 मिलियन डॉलर के ऋणों के साथ-साथ 1.0 मिलियन डॉलर के अनुदान भी दिए।

आईडीए निम्न आय वाले देशों के लिए रियायती सहायता का एकमात्र बहुपक्षीय सबसे बड़ा स्रोत है। आईडीए कुछ देशों को भी समर्थन प्रदान करता है जिसमें कई छोटे द्वीपीय अर्थव्यवस्थाएं भी शामिल हैं।

भारत, इंडोनेशिया एवं पाकिस्तान जैसे कुछ देश प्रति व्यक्ति आय स्तर के आधार पर आईडीए अर्ह हैं।

आईबीआरडी से सम्बद्ध, आईडीए का कोई पृथक संस्थान नहीं हैं; आईबीआरडी के निदेशक अधिकारी एवं स्टाफ आईडीए के भी अधिकारी होते हैं।

अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम International Finance Corporation – IFC

इसकी स्थापना 25 मई, 1955 को वाशिंगटन में हुए समझौते के द्वारा हुई, जो 20 जुलाई, 1956 से प्रभावी हुआ। 20 फरवरी, 1957 को आईएफसी संयुक्त राष्ट्र का विशिष्ट अभिकरण बन गया।

आईएफसी का मूल उद्देश्य उत्पादक निजी या आंशिक रूप से सरकारी उद्यमों की वृद्धि के प्रोत्साहन द्वारा आर्थिक विकास को आगे बढ़ाना है। निगम बहुपक्षीय विकास बैंक तथा निजी वित्तीय संस्थान, दोनों के रूप में कार्य करता है। यह निजी निवेशकों के सहयोग एवं सरकारी गारंटी के बिना विकासशील देशों में आर्थिक वरीयता वाले उत्पादक निजी उद्यमों को जोखिम पूंजी उपलब्ध कराता है। निगम द्वारा विकास कार्यों में निजी निवेश के प्रवाह हेतु प्रेरक दशाओं को प्रोत्साहित किया जाता है। यह निजी रूप से नियंत्रित विकास वित्त कंपनियों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है तथा औद्योगिक देशों में उपलब्ध तकनीकी प्रबंधकीय अनुभव और बाजार के ज्ञान व घरेलू प्रायोजन को संयुक्त करने का अवसर उपलब्ध कराने वाले साझा उद्यमों को समर्थन देता है। संक्षेप में, आईएफसी की गतिविधियां निम्नलिखित पांच क्षेत्रों में केन्द्रित हैं- निवेश, संवर्द्धन, पूंजी बाजार कार्यक्रम, तकनीकी सहायता तथा संघ-संघटन। आईएफसी के सदस्यों की संख्या 185 (दिसम्बर 2013 तक) है।

निगम के संसाधन सदस्यों के अंशदान तथा संचित आय से जुटाये जाते हैं। निगम विश्व बैंक से भी उधार लेता है। निगम द्वारा दिये जाने वाले कर्ज का अधिकांश भाग अंतरराष्ट्रीय वित्त बाजारों में बॉण्ड जारी करके इकट्ठा किया जाता है।

आई एफ सी दीर्घावधिक ऋणों के साथ में अंशों की भागीदारी द्वारा वित्त उपलब्ध कराता है।

यह एक परियोजना हेतु अपेक्षित पूंजी के महत्वपूर्ण भाग को उपलब्ध कराने हेतु अन्य निवेशकों की खोज भी करता है। आईएफसी स्वयं को विकासशील देशों में निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए प्रत्यक्ष वित्त के विशालतम स्रोत के रूप में स्थापित कर चुका है। आईबीआरडी का अनुषंगी होने के कारण आईएफसी समान संस्थात्मक संरचना रखता है। आईबीआरडी का अध्यक्ष ही आईएफसी का अध्यक्ष होता है। यद्यपि निगम का अपना कार्यचालन एवं वैधानिक स्टाफ होता है, किंतु यह प्रशासनिक व अन्य सेवाओं के लिए बैंक पर निर्भर रहता है। निगम के दैनंदिन कार्य एक कार्यकारी उपाध्यक्ष द्वारा निर्देशित होते हैं।

वर्ष 2006 में आईएफसी ने 9500 मिलियन डॉलर परियोजना वित्त के रूप में विनियोजित किए तथा लगभग 66 देशों में 284 निजी क्षेत्र की परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान की।

अंतरराष्ट्रीय निवेश विवाद निपटान केन्द्र International Centre for Settlement of Investment Disputes – ICSID

इस केन्द्र की स्थापना 1966 में की गयी थी। यह केन्द्र विश्व बैंक के मुख्यालय से ही अपना कामकाज करता है।

इसका मूल उद्देश्य सरकारों एवं विदेशी निवेशकों के मध्य विवादों के समाधान तथा पंच निर्णय हेतु जरूरी सुविधाओं के प्रबंध द्वारा अंतरराष्ट्रीय निवेश के प्रवाह को बढ़ाना है। केन्द्र किसी समाधान या पंच निर्णय में स्वयं प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं रहता है। शोधों का संचालन व प्रकाशन करना तथा विदेशी निवेश कानून पर परामर्श प्रदान करना आईसीएसआईडी की अन्य गतिविधियों में शामिल है।

बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी Multilateral Investment Guarantee Agency – MIGA

इस एजेंसी द्वारा अप्रैल 1988 से विश्व बैंक के बीमा प्रकोष्ठ के रूप में अपना कार्य आरंभ किया गया। विश्व बैंक पर आधारित मीगा का उद्देश्य गैर-वाणिज्यिक जोखिमों से पैदा हानियों के विरुद्ध निवेश की सुरक्षा करना है। इस प्रकार के जोखिम चार प्रकार के हो सकते हैं-

  1. मुद्रा परिवर्तन एवं स्थानांतरण पर मेजबान देश द्वारा आरोपित प्रतिबंधों से उपजा हस्तांतरण जोखिम;
  2. मेजबान सरकार के प्रशासनिक या वैधानिक कार्यों के परिणामस्वरूप हानि का जोखिम;
  3. ऐसे मामलों में जहां निवेशक की एक सक्षम फोरम तक पहुंच नहीं है, मेजबान सरकार द्वारा संविदाओं के अस्वीकरण का जोखिम,
  4. सशस्त्र संघर्ष या नागरिक अशांति के फलस्वरूप उत्पन्न जोखिम।

संरक्षित निवेशों में नकद अथवा अंशभागिता योगदान, ऋण तथा गैर-अंशभागी प्रत्यक्ष निवेश के कुछ निश्चित रूप शामिल हैं। निवेश 15 वर्ष या अपवादस्वरूप 20 वर्ष की अविध हेतु आवरित होते हैं। बीमा के लिए किसी प्रकार के न्यूनतम निवेश की अर्हता तय नहीं होती। मीगा राष्ट्रीय निवेश बीमा एजेंसियों तथा निजी बीमाकर्ताओं के साथ सहयोग करते हुए योग्य निवेशों के सहबीमा या पुनर्बीमा हेतु कार्य करती है।

एक 23 सदस्यीय निदेशक बोर्ड द्वारा मीगा का अधीक्षण किया जाता है। विश्व बैंक का अध्यक्ष मीगा के निदेशक बोर्ड के अध्यक्ष एवं प्रधान के रूप में कार्य करता है।

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