बाल अधिकारों पर अभिसमय Convention on the Rights of the Child
बाल अधिकारों पर अभिसमय के लिये सर्वप्रथम पहल पोलैण्ड की सरकार ने की, जिसने अंतर्राष्ट्रीय बल वर्ष के दौरान बल अधिकार घोषणा (Declaration on the Rights of the Child) की बीसवीं वर्षगांठ (1979) के समारोह से पूर्व 1978 में मानवाधिकार आयोग के समक्ष अभिसमय का प्रारूप प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् छोटे-छोटे गैर-सरकारी संगठनों, जिनमें स्वीडन के रड्डा बर्मेन (Radda Burmen), अंतरराष्ट्रीय बाल कैथोलिक ब्यूरो और बच्चों हेतु अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा संगठन भी सम्मिलित थे तथा संयुक्त राष्ट्र संघ विशेषज्ञों के मध्य लगभग एक दशक तक सहयोग वार्ताएं चलीं। इन वार्ताओं की समाप्ति के बाद वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अभिसमय को अपनाया। यह अभिसमय सितम्बर 1990 में प्रभाव में आया।
अभिसमय में 54 अनुच्छेद हैं। इसमें अनेक प्रकार के प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है, जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-जीवन का अधिकार, राष्ट्रीयता और नाम पाने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार; विवेक और धर्म का अधिकार; गोपनीयता; परिवार, घर या पत्राचार में गैर-कानूनी और निरंकुश हस्तक्षेप से सुरक्षा पाने का अधिकार, तथा; उच्चतम स्वास्थ्य स्तर का उपभोग करने का अधिकार।
इस अभिसमय के अंतर्गत सदस्य देशों को बच्चों की सभी प्रकार की शारीरिक और मानसिक यातनाओं तथा आर्थिक शोषण और माद्रक द्रव्यों के अवैध उपयोग से रक्षा करने के लिये सभी उपयुक्त कदम उठाने पड़ते हैं। सदस्य देशों से सशस्त्र विद्रोहों में बच्चों से संबंधित सभी अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानूनों का आदर करने की भी अपेक्षा की जाती है। शरणार्थी और विकलांग बच्चों के संबंध में विशिष्ट प्रावधानों की भी व्यवस्था की गई है।
अभिसमय में दस स्वतंत्र सदस्यों वाली एक बाल अधिकार समिति के गठन का प्रावधान है। इस समिति का चुनाव 1991 में हुआ। यह अभिसमय में निर्दिष्ट बाल अधिकारों को प्रभावशाली बनाने की दिशा में उठाये गये कदमों और उन अधिकारों का उपभोग करने की दिशा में हुई प्रगति के संबंध में सदस्य देशों द्वारा जारी की गयी रिपोर्टों की समीक्षा करने के लिये अधिकृत है। समिति ने सदस्य देशों की रिपोर्टों के संबंध में अनेक दिशा-निर्देश बनाए हैं। समिति का पूर्व-सत्र (presession) कार्यकारी दल इन रिपोर्टों पर विचार करता है तधा स्पष्टीकरण की आवश्यकता वाले विषयों की सूची सम्बद्ध देश को प्रेषित करता है। समिति स्वयं ईसीओएसओसी के माध्यम से प्रत्येक दो वर्ष में अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्तुत करती है। समिति महासभा से यह अनुशंसा कर सकती है कि बाल अधिकारों से संबंधित किन्हीं विशिष्ट विषयों का अध्ययन उसकी (समिति) ओर से महासचिव के द्वारा कराया जाए।
12 जनवरी, 2002 का बाल अधिकार और सशस्त्र युद्ध में बच्चों के उलझाव अभिसमय पर वैकल्पिक प्रोटोकॉल प्रभाव में आया। यह प्रोटोकॉल सदस्य देशों तथा विद्रोही आन्दोलनों पर बच्चों को युद्ध में सम्मिलित न करने के लिये दबाव डालने में महत्वपूर्ण यंत्र प्रमाणित होगा।
बाल सैनिकों की समस्याएं अनेक हैं तथा इनमें क्रमशः वृद्धि ही होती जा रही है-आज विश्व में ऐसे बच्चों (18 वर्ष से कम आयु के) की संख्या 3 लाख से भी अधिक है, जिन्हें सैनिकों, शिविर श्रमिकों, यौन गुलामों (sexslaves) तथा तस्करों (runners) के रूप में कार्य करना पड़ रहा है। बच्चों का सैनिकों के रूप में उपयोग करना क्रूरतम कृत्यों में से एक है तथा विश्व का कोई भी भाग इस बर्बरतापूर्ण कार्य से अछूता नहीं है।
18 जनवरी, 2002 को एक प्रोटोकॉल प्रभाव में आया, जो बाल वेश्यावृत्ति, अश्लील साहित्य तथा दासता की प्रतिबंधित करता है। यूनिसेफ के आकलन के अनुसार, विश्व में प्रत्येक वर्ष लगभग दस लाख बच्चे, जिनमें अधिकांश लड़कियां हैं, बहु-बिलियन डॉलर के व्यावसायिक यौन व्यापार में सम्मिलित होते हैं। इन बच्चों को प्रायः शिक्षा और नौकरी के प्रलोभन दिये जाते हैं।