ब्रह्माण्ड और मंदाकिनियाँ Universe & Galaxies

ब्रह्माण्ड The Universe

ब्रह्माण्ड आकार में इतना बड़ा है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। ब्रह्माण्ड में सूक्ष्म कणों से लेकर विशाल मंदाकिनिया सम्मिलित हैं। खगोलविद आज तक इसके आकार की पता नहीं लगा पाए है, परन्तु उनके अनुमान के अनुसार ब्रह्माण्ड में 100 अरब (100 billion) मंदाकिनियाँ हैं और हर मन्दाकिनी में लगभग 100 अरब सितारे हैं। ब्रह्माण्ड  में ज्यादातर खाली जगह पाई जाती है। हमारा ज्यादातर ब्रह्माण्ड अदृश्य डार्क मैटर (dark matter) से बना है, जिसके बारे में हमें ज्यादा जानकारी नहीं है।

प्रसरणशील ब्रह्माण्ड Expanding Universe

विकासवादी सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्माण्ड में मंदाकिनियो का वितरण लगभग सामान दूरी पर है। इसी कारण किसी पर्यवेक्षक को मन्दाकिनी से ब्रह्माण्ड की रचना समरूप दिखाई देती है।

डार्क मैटर क्या है

खगोलविदों के अनुसार हमारे ब्रह्माण्ड का 90% हिस्सा डार्क मैटर से बना हुआ है। हम यह जानते हैं की हमारे ब्रह्माण्ड में सारे पिण्ड एक दुसरे से गुरुत्वाकर्षण बलों द्वारा एक दुसरे से बंधें हुए हैं। वैज्ञानिकों ने जब दृश्य ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण द्रव्यमान की गणना, और उनके गुरुत्वाकर्षण बल की गणना कर उनकी तुलना की तो उन्होंने यह पाया की यह द्रव्यमान इतना अधिक नहीं था जो गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा ब्रह्माण्ड को आपस में बांधे रख सकता। तब डार्क मैटर की खोज की गयी, जो अपने गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा ग्रहों आदि को आपस में बांधे रखता है। यह तारों और आकाशगंगाओं की गति को भी प्रभावित करता है। कुछ आकाशगंगाए अपनी सामान्य गति से ज्यादा गति से घुमती हैं, और गुरुत्वाकर्षण के आइंस्टीन के सिद्धांत के अनुसार उन्हें बिखर जाना चाहिए, परन्तु कोई चीज उन्हें बांधे रखती है। डार्क मैटर प्रकाश के पथ को भी प्रभावित करता है।हमारी आकाशगंगा में पाया जाने वाला डार्क मैटर जिस चीज से बना है उसे Massive Astrophysical Compact Halo Objects या MACHOs कहते हैं।

मंदाकिनी Galaxies


एक आकाशगंगा या मन्दाकिनी गुरुत्वाकर्षण से बंधे सौर प्रणाली, सितारों, नीहारिका, धूल, ग्रहों और गैस का एक संग्रह है । आकाशगंगा, अंतरिक्ष के विशाल हिस्सों में एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। सबसे छोटी मंदाकिनी में भी लगभग 1 लाख सितारे होते है, और सबसे बड़ी मन्दाकिनी में लगभग 1 खरब सितारे हो सकते हैं। ब्रह्माण्ड की रचना मंदाकिनियों से होती है। Galaxy शब्द की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक शब्द ‘galaxias’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘milky circle’। यूनानी पौराणिक कथाओं के अनुसार रात के समय आकाश में हमारी मन्दाकिनी मिल्की-वे (Milky Way) के सितारों की धूल इस तरह फैली लगती थी जैसे ज़ीउस (Zeus) की पत्नी के स्तनपान कराते समय आकाश में एक दुधिया स्प्रे हो गया हो।

मंदाकिनियों अपने आकार के अनुसार कई प्रकार की हो सकती है, इनमे से कुछ इस प्रकार हैं –

व्यवस्थित मंदाकिनियाँ Regular Galaxies

अव्यवस्थित मंदाकिनियों Irregular Galaxies

व्यवस्थित मंदाकिनियाँ डिस्क (Disc) अथवा दीर्घवृत्तिय (Elliptical) होती हैं, और इनमे नए सितारे पाए जाते है। इसके विपरीत अव्यवस्थित मंदाकिनियों में पुराने सितारे पाए जाते हैं। व्यवस्थित मंदाकिनियों का आकार आकार सर्पिल (Spiral) या दीर्घवृत्तिय (Elliptical) हो सकता है।

सर्पिल मंदाकिनियाँ Spiral Galaxies

सर्पिल मंदाकिनियों के केंद्र में ज्यादा सितारे पाए जाते हैं और इनकी भुजाये वक्राकार होती हैं। ये अपनी भुजाओं की दिशा में घूमती हैं। ब्रह्माण्ड में लगभग 25% मंदाकिनियों में वक्राकार भुजाये पाई जाती हैं। सर्पिल मंदाकिनियों में तारे के बीच ज्यादा गैसें पाई जाती हैं, जिससे इन मंदाकिनियों की भुजाओं में नए तारों का निर्माण होता रहता है। हमारी अपनी आकाशगंगा, मिल्की वे (Milky Way) और एंड्रोमेडा (Andromeda)  एक सर्पिल आकाशगंगा है। इसमें पुराने सितारे मध्य भाग में और नए सितारे भुजाओं में पाए जाते हैं।

मन जाता है कि सबसे बड़ी सर्पिल आकाशगंगा मालिन -1 (Malin-1) है, जो हमारी मिल्की वे आकाशगंगा की तुलना में 10 गुना बड़ी है।

दीर्घवृत्तिय मंदाकिनियाँ Elliptical Galaxies

ब्रह्माण्ड में पाई जाने वाली ज्यादातर मंदाकिनियाँ दीर्घवृत्ताकार होती है, ये कई आकारों की हो सकती हैं, जैसे सममित (Symmetrical), गोलाकार (Spheroid) या चपटा (Flattened) । एक अण्डाकार आकाशगंगा में सितारे आकाशगंगा के केंद्र से समान रूप से बाहर फैले होते हैं। ब्रह्मांड में सबसे बड़ी दीर्घवृत्तिय आकाशगंगाओं से अधिक 1 खरब तारे हो सकते हैं। कुछ दीर्घवृत्तिय मंदाकिनियाँ मिल्की वे से 20 गुना तक ज्यादा बड़ी हो सकती हैं। दीर्घवृत्तिय मंदाकिनियाँ हलके लाल रंग की दिखती हैं, क्योंकि उनके सितारे हमारे सूर्य की तुलना में काफी पुराने और ठन्डे होते हैं। दीर्घवृत्तिय आकाशगंगाओं में तारे काफी पास-पास होते है, जिसके कारण इनका केंद्र एक बड़े तारे की तरह दिखता है। इसक कारण ये ज्यादा चमकीली भी होती हैं। लगभग दो तिहाई या 66% मंदाकिनियाँ दीर्घवृत्तिय (Elliptical) होती हैं।

अव्यवस्थित मंदाकिनियाँ Irregular Galaxies

सर्पिल और दीर्घवृत्तिय मंदाकिनियो की तरह अव्यवस्थित मंदाकिनियों का कोई निश्चित आकार नहीं होता है। ये आकार में दोनों प्रकार की आकाशगंगाओं से छोटी होती हैं। इनमे 10 लाख तक सितारे हो सकते हैं। कुछ खगोलविदों का मानना है की ये मंदाकिनियाँ आपस में मिलकर सर्पिल और दीर्घवृत्तिय मंदाकिनियां बनाती हैं। कुल मंदाकिनियों का लगभग 10% अव्यवस्थित मंदाकिनियों का होता है।

मसूराकार आकाशगंगाओं (Lenticular galaxies) में अण्डाकार और सर्पिल आकाशगंगाओं दोनों लक्षण पाए जाते हैं, इनमे धूमिल भुजायें और सितारों का एक अण्डाकार प्रभामंडल भी हो सकता है।

आकाशगंगायें अकेली. समूहों में या बहुत बड़े समूहों में हो सकती है। दो आकाशगंगायें आपस में मिलती रहती है और जब ये मिलती हैं तो बहुत तेजी से नए सितारों का निर्माण होता है।

हमारी ब्रह्माण्ड में अरबों आकाशगंगायें पाई जाती है, इनमें से अधिकांश छोटे समूहों में एक साथ जुडी रहती हैं। हमारी अपनी आकाशगंगा मिल्की वे, आकाशगंगाओं के एक समूह के भीतर निहित है, जिसे हम स्थानीय समूह (The Local Group) कहते हैं । स्थानीय समूह 30 आकाशगंगाओं का समूह हैं, इसमें सबसे बड़ी तीन आकाशगंगायें एंड्रोमेडा (Andromeda) आकाशगंगा, मिल्की वे (The Milky Way) आकाशगंगा और त्रिकोणीय (Triangulum ) आकाशगंगा है।

स्थानीय समूह में एंड्रोमेडा सबसे बड़ी आकाशगंगा है, परन्तु यह सबसे घनी नहीं है। मिल्की वे में ज्यादा ‘डार्क मैटर’ पाए जाने के कारण यह ज्यादा घनी है। मिल्की वे का घनत्व हमारे सूर्य की तुलना में 1000 अरब गुना ज्यादा है।

खगोलविदों के अनुसार हमारी अपनी मिल्की वे आकाशगंगा का एंड्रोमेडा आकाशगंगा के साथ विलय हो जायेगा, जो केवल 2 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है। एंड्रोमेडा आकाशगंगा लगभग 100-140 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से मिल्की वे आकाशगंगा के पास आ रही है। लगभग 4.5 अरब साल में एंड्रोमेडा और मिल्की वे आकाशगंगा का आपस में विलय हो जायेगा।

हमारा सौर मंडल मिल्की वे आकाशगंगा की जिस भुजा में पाया जाता है उसे ओरियन शाखा (Orion Arm) कहते हैं। मिल्की वे हर 250 मिलियन वर्ष में अपना एक चक्र पूरा करती है। इसी प्रकार हमारा सूर्य भी 250 करोड़ वर्ष में, हमारी आकाशगंगा का एक चक्कर लगता है।

मिल्की वे आकाशगंगा का व्यास 100,000 प्रकाश वर्ष माना जाता है। माना जाता है कि मिल्की वे आकाशगंगा में 12 अरब साल पुरानी है।

हमने जिन अधिकांश आकाशगंगाओं का अध्ययन किया है, वे अरबों साल पुरानी हैं।  सबसे कम उम्र की आकाशगंगा 1 Zwicky 18 आकाशगंगा है, जो केवल 500 मिलियन वर्ष पुरानी है।

हमारा सौरमंडल हमारी आकाशगंगा मिल्की वे के केंद्र से 27,000 प्रकाश वर्ष दूर है।

ऐसा विश्वास किया जाता है की, आकाशगंगाओं के केंद्र में विशालकाय ब्लैक होल पाए जाते है।

सर्पिल आकाशगंगाओं की सर्पिल बाहों में हाइड्रोजन गैस और धूल के घने आणविक बादलों तेजी से सितारों के गठन के क्षेत्र होते हैं। स्टारबर्स्ट (Starburst) आकाशगंगा, दो आकाशगंगाओं के विलय से बनी है, जिसमे बहुत ज्यादा आणविक बादल पाए जाते हैं। स्टारबर्स्ट आकाशगंगा तेजी से नए सितारों को जन्म देने के लिए जानी जाती है।

हबल स्पेस टेलीस्कोप ने हमें आकाशगंगाओं के विभिन्न प्रकारों के बारे में, दूरस्थ आकाशगंगाओं का अध्ययन करने और समझने में सक्षम होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

निहारिका Nebula

शब्द “निहारिका” एक लैटिन शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “बादल”। एक निहारिका अंतरिक्ष में तैर रही गैस और धूल के ब्रह्मांडीय बादल है। नीहारिका ब्रह्मांड के बुनियादी तत्व है, जिनसे ब्रह्माण्ड का निर्माण होता है। इनमे वे तत्व पाए जाते है जिनसे सितारे और सौर मंडल का निर्माण होता है। ये ब्रह्माण्ड में कई रंगों में बहुत ही खुबसूरत दिखते है। गैस के इन बादलों के अंदर सितारे सुंदर लाल, नीले, और हरे रंग के चमकते हैं। ये रंग नेबुला के भीतर विभिन्न तत्वों का परिणाम है। अधिकांश नीहारिकाओं में 90% हाइड्रोजन, 10% हीलियम, और 0.1% भारी तत्वों से, जैसे कार्बन, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम, पोटेशियम, कैल्शियम, लोहा से बने होते हैं। ये आकाशगंगाओं में पाए जाने वाली सबसे बड़े पदार्थ होते है। नीहारिकाओं को पांच प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

उत्सर्जन निहारिका Emission Nebula – एक उत्सर्जन निहारिका उच्च तापमान के गैस का एक बादल है। इसमें एक सितारा पराबैंगनी विकिरण के साथ बादल में परमाणुओं को उत्तेजित करता है, और जब इन परमाणुओं की उर्जा कम होती है तो वे विकिरण उत्पन्न करते हैं, जिस कारण निहारिका चमकने लगती है। उत्सर्जन नीहारिका हाइड्रोजन की बहुतायत के कारण रंग में लाल हो जाते हैं। ओरियन नेबुला (Orion Nebula, M42) इसका एक उत्तम उदाहरण है।

परावर्तन निहारिका Reflection Nebula – एक परावर्तन नीहारिका अपने स्वयं के विकिरण का उत्सर्जन नहीं करता है। यह धूल और गैस का बादल सितारों के समूह से चमकता है। परावर्तन नीहारिकाओं में तेज़ी से तारों का निर्माण होता है। ये सामान्यतया नीले रंग की दिखती हैं। क्योंकि नीला रंग अधिक कुशलता से बिखर जाता है। धनु नक्षत्र (sagittarius constellation) में पाया जाने वाला ट्रिफ़िड नेबुला (Trifid Nebula, M20) इसका उदाहरण है।

डार्क निहारिका Dark Nebula – एक डार्क नेबुला धुल और गैस का वः बदल है जिसका प्रकाश उसमे पाए जाने वाले पदार्थ के के पीछे रुक जाता है। या अपने प्रकाश स्रोत की नियुक्ति के कारण अलग दिखते हैं। डार्क नीहारिकाएं को आम तौर पर उत्सर्जन और परावर्तन नीहारिका के साथ-साथ देखा जाता है। ओरियन में घोड़े की नाल के आकार वाली नेबुला शायद एक डार्क निहारिका का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है। इसमें धूल के एक अंधेरे क्षेत्र  इसके पीछे प्रकाश का एक बहुत बड़ा उत्सर्जन रोक देते हैं।

ग्रहीय निहारिका Planetary Nebula – एक ग्रहीय नेबुला एक सितारे के जीवन काल एक अंत के बाद बना धूल और गैस का क्षेत्र होता है। इनका ग्रहों से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। आकार में गोल होने के कारण इन्हें ग्रहीय नेबुला कहते हैं। लायरा नक्षत्र (Lyra constellation) में रिंग नेबुला (Ring Nebula ,M57) एक ग्रहीय निहारिका का सबसे अच्छा उदाहरण है।

सुपरनोवा अवशेष Supernova Remnant – जब एक सितारे का जीवन समाप्त हो जाता है, तो इसमें एक  सुपरनोवा विस्फोट से इस प्रकार की निहारिका का निर्माण होता है। विस्फोट से अंतरिक्ष में सितारे के पदार्थ फ़ैल जाते हैं। इससे बने धुल और गैस के बदल सितारे के अवशेष के साथ चमकते हैं। वृष नक्षत्र में, क्रैब नेबुला (crab Nebula , M1) इसक एक उदाहरण है। यह सुपरनोवा द्वारा बने एक पल्सर द्वारा चमकता है।

पल्सर और न्यूट्रॉन तारे Pulsars & Neutron Stars

पल्सर ब्रह्मांड के सबसे अजीब पदरथोन में से एक है। जब 1967 में कैम्ब्रिज वेधशाला के जोसलिन बेल (Jocelyn Bell) और एंथोनी हेविश (Anthony Hewish)  सितारों का अध्ययन कर रहे थे, तब वे किसि असाधारण चीज को देखकर रुक गये। तारों कि तरह का ये पदार्थ तेजी से रेडियो तरंगों का उत्सर्जन कर रहा था। हालाँकि अंतरिक्ष में काफी पहले से रेडियो तरंगो के स्रोतों के बारें में पता था, पर यह पहली बार था जब कोई पदार्थ इतनी तेजी से इन तरंगों का उत्सर्जन कर रहा था। यह एक घडी की तरह काम करते हुए हर सेकंड रेडियो तरंगों का उत्सर्जन कता है। तेजी से तरंगो (pulse) का उत्सर्जन करने के कारण इन्हें पल्सर (Pulsar) कहा गया। पल्सर के विपरीत क्वासर (Quasars) बहुत बड़ी मात्र में उर्जा का उत्पादन करते हैं, जो किसी युवा आकाशगंगा के केंद्र में स्थित एक विशाल ब्लैक होल का परिणाम हो सकता है।

एक पल्सर मूल रूप से तेजी से घूमता हुआ एक न्यूट्रॉन स्टार है, एक न्यूट्रॉन तारा सुपरनोवा विस्फोट के बाद एक मृत तारे का अत्यधिक ठोस कोर होता है। इस न्यूट्रॉन स्टार में एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र पाया जाता है, वास्तव में, यह चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से लगभग एक खरब गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है।

यह शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र ही न्यूट्रॉन तारे से रेडियो तरंगो और रेडियोधर्मी कणों के उत्सर्जन का कारण बनता है। ये उत्सर्जन मुख्यतः न्यूट्रॉन तारे के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव से होता है। शक्तिशाली गामा किरणों का उत्सर्जन करने वाले पल्सर को गामा किरण पल्सर के रूप में जाना जाता है। सबसे तेज  पल्सर  एक सेकंड में एक सौ से अधिक बार पल्स या उत्सर्जन कर सकते हैं।

एक विशाल तारा पल्सर तब बनता है जब उसका ईंधन ख़त्म हो जाता है, फिर इसमें एक विशाल सुपरनोवा विस्फोट होता है। यह अपने ही गुरुत्वाकर्षण के कारण सघन होता चला जाता है और यह तब तक होता है जब तक यह न्यूट्रॉन से बना एक सघन पदार्थ न बन जाये। भारतीय मूल के वैज्ञानिक चंद्रशेखर सुब्रमन्यन (Chandrasekhar Subrahmanyan) ने यह बताया की यदि लोप होते हुए तारे के कोर का द्रव्यमान, तारे के द्रव्यमान का 1.4 गुना हो जाये तो इलेक्ट्रान और प्रोटॅान मलकर न्यूट्रॅान बना लेंगे, और ये न्यूट्रॅान घने होकर न्यूट्रॅान तारा बना लेंगे। यह संख्या चंद्रशेखर सीमा (Chandrasekhar limit) के रूप में आज भी जानी जाती है। यदि लोप होते हुए तारे द्वारा इस सीमा को प्राप्त नहीं किया जाता है, तो वह न्यूट्रॅान तारे के बजाय, सफ़ेद वामन तारे (White Dwarf) का रूप ले लेगा। यदि यह सीमा कई गुना बढ़ जाती है, तो एक ब्लैक होल (Black Hole) का निर्माण होता है। जब सितारे का लोप होने लगता है, तो वह बहुत तेजी से घूमने लगता है, जिसे कोणीय गति के संरक्षण (conservation of angular momentum) के रूप में जाना जाता है। अंत में लोहे की कोर में न्युट्रानों से बना एक घना गोला रह जाता है। गुरुत्वाकर्षण के चरम बल के कारण इसकी खोल बेहद चिकनी और चमकदार दिखती है।

परिणामस्वरूप न्यूट्रॉन तारे का व्यास केवल लगभग 20 मील तक हो सकता है, परन्तु इसमें मूल तारे का सम्पूर्ण द्रव्यमान शामिल हो सकता है। इस तारे का द्रव्य इतना घना हो सकता है कि एक इंच के एक घन (Qube) का वज़न 100 पृथ्वी पर 100 करोड़ टन हो सकता है।

रेडियो दूरबीन का उपयोग करके आज भी नए पल्सर की खोज जारी है, दुनिया में सबसे बड़ी रेडियो दूरबीन प्यूर्टो रिको में अरेसिबो पर स्थित है। प्रसिद्ध क्रैब नेबुला (एम 1) में के अंदर एक पल्सर है, जो प्रति सेकंड 33 बार की दर से विकिरण उत्सर्जित करता है। पल्सर के उत्सर्जन का समय एकदम सटीक होता है, इनके द्वारा उत्सर्जन के समय की गणना, पृथ्वी की परमाण्विक घड़ियों (atomic clocks) से भी परिशुद्ध होती है। सबसे तेज़ गति से पल्स करने वाला पल्सर PSR1937 + 21 है, जिसकी पल्स अवधि 1.56 से अधिक मि.से. प्रति सेकंड 640 बार है।

क्वासर Quasars

क्वासर ब्रह्माण्ड में सबसे दूरस्थ और सबसे चमकीले तारे हैं। 1960 तक क्वासर को रेडियो तारे कहा जाता था,क्योंकि ये रेडियो तरंगों के एक शक्तिशाली स्रोत थे। क्वासर शब्द “quasi-stellar radio source” के संक्षेप से बना है। जैसे जैसे हमारे रेडियो और ऑप्टिकल दूरबीन बेहतर होते गए, हमें पता चला ये वास्तव में तारे नहीं, बल्कि तारे जसे ही कोई पदार्थ हैं। ये हमारी आकाशगंगा से बहार स्थित हैं। हमें अभी भी नहीं पता है की ये वास्तव में क्या हैं। हमें सिर्फ इस बात की जानकारी है की ये बहुत बड़ी मात्रा में उर्जा का उत्सर्जन करते हैं।  इनकी उर्जा एक खरब सूर्य के बराबर होती है। कुछ क्वासर की उर्जा हमारी सम्पूर्ण आकाशगंगा की उर्जा से भी 10 से 100 गुना ज्यादा हो सकती है, जबकि इनका आकार हमारे सौरमंडल के आकार के बराबर होता है।

क्वासर ब्रह्माण्ड में अब तक खोजे गए सबसे दूरस्थ पिण्ड हैं। खगोलविद इनकी दूरी का पता उनके प्रकाश के वर्णक्रम (spectrum of  light) से लगाते हैं। यदि इस स्पेक्ट्रम का रंग लाल रंग की ओर स्थानांतरित हो रहा है तो इसका मतलब वह वस्तु हमसे दूर जा रही है। रेड शिफ्ट जितनी अधिक होगी, वह वस्तु उतनी तेजी से हमसे दूर जा रही होगी। क्वासर की रेड शिफ्ट बहुत उच्च पाई जाती है, जिसका अर्थ है वह बहुत तेजी से हमसे दूर जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि कुछ क्वासर 240,000 किमी. प्रति सेकंड की गति से हमसे दूर जा रहे हैं, यानि प्रकाश 80% की गति से। क्वासर हमसे इतनी दूर हैं कि उनका प्रकाश हम तक पहुँचने में अरबों साल लगते हैं। हमारे  सबसे नजदीक का क्वासर भी हमसे 10 अरब प्रकाश वर्ष दूर है, इसका अर्थ यह हुआ की हम उसके उस प्रकाश को देखते हैं जो उसने 10 अरब वर्ष पूर्व उत्पन्न किया था। यह भी संभव है की वह क्वासर अब अस्तित्व में ही न हो। क्वासर वास्तव में क्या हैं यह हमें अभी तक पता नहीं है।

सबसे पहले जिस क्वासर की पहचान की गयी थी उसका नाम 3C 273 है, जो कन्या (virgo) नक्षत्र में स्थित था। इसकी खोज 1960 में टी.मैथ्यू और ए.सैन्दाग (T. Matthews and A. Sandage) ने की थी। आज तक 2000 से भी ज्यादा क्वासर की खोज की जा चुकी है। हबल टेलिस्कोप ने इनकी खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कृष्ण छिद्र Black holes

ब्लैक होल ब्रहमांड के सबसे रहस्यमयी और विचित्र पदार्थ है। ये अज भी भौतकी के नियमों के लिए चुनौती बने हुए हैं। ब्लैक होल एक बहुत बड़े तारे के लोप (collapse) होने के बाद उनके कोर द्वारा बनता है। इसका द्रव्यमान अत्यधिक सघन होता, जिससे इअका गुरुत्वाकर्षण इतना बढ़ जाता है की, इसके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से कोई भी चीज यहाँ तक प्रकाश भी भी बाहर नहीं आ सकता है। आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत (Einstein’s general theory of relativity) से ब्लैक होल को समझने में मदद मिलती है। उनका सिद्धांत यह भी बताता है की गुरुत्वाकर्षण, समय को प्रभावित करता है। ब्लैक होल जितना भारी और सघन होगा वह समय को उतना ही ज्यादा धीमा कर सकेगा।  ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है की यहाँ समय लगभग रुक जाता है। ब्लैक होल अपने से कुछ निश्चित दूरी पर स्थित पिंडो को ही अपने में समा सकता है। यदि हमारा सूर्य ब्लैक होल बन जाये तो भी हमारे ग्रह सूर्य की उसी प्रकार से परिक्रमा करते रहेंगे जैसा कि आज करते हैं।

ब्लैक होल उन तारों से बनते हैं जिनका द्रव्यमान हमारे सूर्य से 10 हुना ज्यादा होता है। तारे नाभिकीय संलयन (nuclear fission) के रूप में हाइड्रोजन को जलाते हैं, जिससे बहुत बड़ी मात्र में उर्जा और दबाव पैदा होते हैं। यह दबाव सितारे के केंद्र से बहार निकलता है,परन्तु सितारे का गुरुत्वाकर्षण विपरीत प्रक्रिया करके इसे अन्दर की और खींचता है। ये दोनों बल पूरी तरह से संतुलित होते हैं। जब तारे के हाइड्रोजन ख़त्म होने लगता है तो इन बालो का संतुलन बिगड़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सुपरनोवा विस्फोट होता है। इसके बाद आगे क्या होगा यह सितारे के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। ज्यादातर परिस्थितियों में इसकी कोर सफ़ेद वामन (white dwarf) तारे के रूप में बच जाती है, जो आमतौर पर गैस के एक विस्तृत खोल से घिरी रहती है। कुछ परिस्थितियों में जब तारे का द्रव्यमान बहुत ज्यादा होता है, तो इसका गुरुत्वाकर्षण इस तारे के पदार्थों को अंदर खींच कर  न्यूट्रॉन तारे के रूप में बदल जाता है। परन्तु कभी-कभी कुछ असामान्य परिस्थितियों में तारे का द्रव्यमान बहुत ज्यादा होता है, जिससे इसका गुरुत्वाकर्षण भी बहुत ज्यादा होता है, और इसके सभी पदार्थ इसके केंद्र की और खिंचने लगते हैं। इस तारे का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, परन्तु इसका द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षण बचा रहता है। इस प्रकार यह ब्लैक होल में बदल जाता है।

जब किसी तारे का लोप होकर ब्लैक होल बन जाता है, तो यह इतना छोटा होता है की इसके आकार की गणना नहीं की जा सकती। यह अनंत (infinite) रूप से छोटा और सघन होता है, परन्तु इसमें इसके मूल तारे का कुछ द्रव्यमान होता है। यह एक व्यक्तित्व (singularity) के रूप में जाना जाता है और यह ब्लैक होल का केंद्र होता है। यह वह क्षेत्र होता है, जहाँ भौतकी के सारे नियम समाप्त हो जाते हैं एवं अंतरिक्ष और समय अस्तित्व के लिए संघर्ष करने लगते हैं।  व्यक्तित्व (singularity)  एक अदृश्य सीमा से घिरा हुआ होता है, जिसे घटना क्षितिज (event horizon) कहा जाता है। घटना क्षितिज (event horizon) ब्लैक होल के चरम गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव की बाहरी सीमा होता है। यह वह बिंदु होता है जहाँ से कोई भी चीज़ यहाँ तक प्रकाश भी वापस नहीं लौट सकता। घटना क्षितिज के अन्दर से किसी भी वस्तु के बाहर निकलने के लिए उस वस्तु की प्रक्षेप गति (escape velocity) प्रकाश की गति से अधिक होनी चाहिये। परन्तु किसी भी वस्तु की गति प्रकाश की गति से अधिक नहीं हो सकती है, अतः घटना क्षितिज (event horizon) से कोई भी वस्तु बाहर नहीं आ सकती है। व्यक्तित्व और घटना क्षितिज के बीच की दूरी को स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या (Schwarzschild radius) के रूप में जाना जाता है। यदि हमारा सूर्य ब्लैक होल बन जाये तो इसकी  स्च्वार्जस्चिल्ड त्रिज्या (Schwarzschild radius) 3 किमी. होगी।

चूँकि ब्लैक होल से प्रकाश भी बाहर नहीं आ सकता इसलिए ब्लैक होल की खोज करना बहुत मुश्किल होता है। अतः उनके अस्तित्व की खोज के लिए हमें अप्रत्यक्ष सबूतों पर निर्भर रहना पड़ता है। इनकी खोज का एक तरीका यह है की खगोलविद, उस जगह की खोज करते हैं जहाँ बहुत ज्यादा द्रव्यमान बहुत थोड़ी सी अँधेरी जगह में विद्यमान हो। खगोलविदों का मानना है की ऐसी जगह हमारी आकाशगंगा के केंद्र में और उन जगहों पर हो सकती है, दोहरे सितारे तंत्र (binary star systems) पाए जाते हैं।

यदि हमारी आकाशगंगा के केंद्र में कोई ब्लैक होल है तो क्या यह हमारी सम्पूर्ण आकाशगंगा को निगल जायेगा??

नहीं, जब तक कोई वस्तु इस ब्लैक होल के घटना क्षितिज (event horizon) को पार नहीं करती तब तक हम सुरक्षित हैं।

ब्लैक होल को खोजने का दूसरा तरीके में उन पिंडों की खोज की जाती है जो बहुत ज्यादा एक्स किरणों (X-Rays) का उत्पादन करते हैं, क्योंकि खगोलविदों का मानना है की ब्लैक होल बहुत ज्यादा एक्स किरणों का उत्पादन करते हैं। हमारी आकाशगंगा में कई दोहरे सितारे तंत्र (binary star systems) पाए जाते हैं। जब इन दो तारों में से कोई एक ब्लैक होल बन जाता है तो यह ब्लैक होल दूसरे तारे के पदार्थों को अपने अन्दर खींचने की कोशिश करने लगता है। यह पदार्थ ब्लैक होल के चारों तरफ घूमने लगते हैं और एक त्वरण डिस्क (acceleration disk) का निर्माण कर लेते हैं। यहाँ से बड़ी मात्रा में एक्स किरणों का उत्सर्जन होने लगता है। यहाँ ब्लैक होल होने की प्रबल सम्भावना पाई जाती है। सिग्नस एक्स -1 (Cygnus X-1), यह सिग्नस नक्षत्र में स्थित एक तीव्र एक्स-रे रेडियो का स्रोत है, जहाँ ब्लैक होल पाए जाने की प्रबल सम्भावना है।

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