मुगल सेना Mughal Army

राज्य के द्वारा कोई विशाल सेना स्थायी रूप से नहीं रखी जाती थी परन्तु सिद्धान्त रूप में साम्राज्य के सभी बल नागरिक शाही सेना के हो सकने वाले सिपाही थे। मुगल सेना का इतिहास अधिकतर मनसबदारी प्रणाली का इतिहास है। मनसबदारों के अतिरिक्त दाखिली और अहदी हेाते थे। दाखिली पूरक सिपाही थे, जो मनसबदारों के कमान में रखे जाते थे तथा उनका खर्च राज्य से मिलता था। अहदी प्रतिष्ठा वाले सिपाही थे। वे एक विशेष प्रकार के अश्वारोही थे, जो साधारणत: बादशाह के शरीर के आसपास रहते थे तथा किसी और के अधीन नहीं थे। मनसबदारी प्रथा भ्रष्टाचार से मुक्त न थी। आधुनिक शब्दों में मुगल सेना के ये भाग थे- (1) घुड़सवार, (2) पैदल, (3) गोलंदाज और (4) जलसेना। इन सब विभागों में घुड़सवार सबसे अधिक महत्वपूर्ण था। पैदल सेना में अधिकतर साधारण नगरवासी तथा किसान थे। सेना की सामरिक शक्ति के अंग के रूप में यह विभाग महत्वहीन था। बाबर, हुमायूँ तथा अकबर ने युद्धों में देश के भीतर बनी बंदूकों का और बाहर से मंगायी गयी बन्दूकों का भी, व्यवहार किया। किन्तु तोपें आलमगीर के राज्यकाल में पहले की अपेक्षा अत्याधिक पूर्ण तथा बहुसंख्यक थीं। गोलंदाज फौज का पूरा खर्च राज्य देता था। आधुनिक अर्थ में कोई प्रबल जलसेना नहीं थी। किन्तु अबुल फजल एक जलसेना-विभाग का वर्णन करता है, जिसके कर्त्तव्य थे (1) नदी में आवागमन के लिए हर प्रकार की नावें बनाना, (2) लड़ाई के हाथियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए मजबूत नावों को तैयार करना, (3) कुशल नाविकों की भर्ती करना, (4) नदियों की देखभाल करना तथा (5) नदी सम्बन्धी चुगियाँ और कर लगाना, वसूल करना तथा माफ करना। बंगाल के तट की मूगों तथा अराकानी समुद्री लुटेरों से रक्षा करने के लिए सात सौ अडसठ सशस्त्र जहाजों तथा नावों का एक बेडा ढाके में रहता था। परन्तु मुगलों की समुद्र-सेना की व्यवस्था काफी मजबूत नहीं मालूम पड़ती।

यद्यपि मुगल सेना अयोग्य नहीं थी, फिर भी वह दोष रहित नहीं थी प्रथमत: वह राष्ट्रीय सेना नहीं थी, बल्कि विभिन्न तत्वों का सम्मिश्रण थी, जिसमें प्रत्येक तत्व अपने विचित्र तरीकों तथा युद्धकौशल का अनुसरण करने की चेष्टा करता था। इस प्रकार यद्यपि समय बीतने के साथ इसकी संख्या में वृद्धि होती गयी, किन्तु यह कष्टकर हो गयी तथा इस पर नियंत्रण रखना अथवा इसका प्रबन्ध करना कठिन हो गया। दूसरे, सिपाही सीधे बादशाह के प्रति वफादारी नहीं रखते थे, बल्कि अपने निकटस्थ भतीं करने वालों तथा उच्च अधिकारियों से उनका अधिक घनिष्ट सम्बन्ध था। इन अधिकारियों के भीषण द्वेष एवं घोर प्रतिद्वंद्विता के कारण प्राय: आक्रमण में सफलता की सम्भावना नष्ट हो जाती थी। अन्ततः पड़ाव में तथा आक्रमण के समय मुगल सेना के वैभव तथा प्रदर्शन के कारण अधिकतर इसकी कार्यक्षमता नष्ट हो जाती थी। कभी-कभी अकबर इस प्रचलन को छोड़ सका था। परन्तु सामान्यतः शाही सेना एक भारी चलायमान शहर के समान दिखाई पड़ती थी तथा शाही दरबार के सभी अति व्ययी साजसामानों के बोझ से दब जाती थी। इसमें हाथियों तथा ऊँटों पर सवार अन्त:पुर का एक भाग तथा इसके सेवक रहते थे; भ्रमणशील दरबार रहता था, गायकों की वीथी, दफ्तर, कारखाने तथा बाजार रहते थे। हाथियों तथा ऊँटों पर कोष रहता था। सैकड़ों बैलगाड़ियों पर फौजी भंडार रहता था। खच्चरों की एक फैाज शाही साज-सामान और अन्य सामग्री का परिवहन होती थी। मनसबदारों के अतिरिक्त सैनिकों का एक अन्य प्रकार था जो दखिली कहा जाता था। ये सैनिक भी मनसबदारों के अंतर्गत ही नियुक्त किये जाते थे।

अहदी सैनिक- वैसे सैनिक जो राजा की व्यक्तिगत सेवा में थे। मुगल घुड़सवार एशिया में प्रसिद्ध माना जाता था। औरंगजेब के समय तोपखाने सबसे सशक्त थे। आइन-ए-अकबरी से ज्ञात होता है कि बंगाल की खाड़ी में पुर्तगीजों के दमन के लिए नाविक बेडे भी रखे जाते थे। पियादगानों पैदल सैनिकों को कहा जाता था। इन्हें विशेष कार्यों के लिए नियुक्त किया जाता था।

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