रसायन विज्ञान के महत्वपूर्ण तथ्य Important Facts Of Chemistry

पीने के जल का कीटाणुनाशन Sterilization of Drinking Water

बड़े शहरोंमें पीने के पानी को नदियों या झीलों से बड़े-बड़े पक्के बने हुए तालाबों में इकट्ठा किया जाता है। पिने योग्य बनाने के लिए उस जल का कीटाणुनाशन किया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित विधियां प्रयोग में लायी जाती हैं।

क्लोरीनीकरण Chlorination

क्लोरीन एक कीटाणु नाशक पदार्थ है। जल में कीटाणुओं का नाश करने के लिए द्रव क्लोरीन या विरंजक चूर्ण (Bleaching Powder) की उचित मात्रा प्रयोग में लायी जाती है।

ओजोनीकरण Ozonization

ओजोन भी कीटाणुनाशक है। जल में भी ओज़ोनीय ऑक्सीजन प्रवाहित की जाती है, जिससे कीटाणुओं का नाश हो जाता है\ जल को एक टंकी में ऊपर से डाला जाता है टंकी में कोक के टुकड़े भरे होते हैं। नीचे से ओज़ोनीय ऑक्सीजन प्रवाहित की जाती है। जल की धारा ओज़ोनीय ऑक्सीजन में मिलती है। जिससे जल के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

अल्ट्रा वायलेट किरणों से By Ultra-violet Rays


अल्ट्रा वायलेट किरणें भी कीटाणु नाश करने का अच्छा साधन हैं। इस किरणों को मरकरी लैम्प (Mercury Lamp) से प्राप्त करके जल की धारा पर प्रवाहित किया जाता है। इससे बहुत ही कम समय में कीटाणुओं का नाश हो जाता है और जल में कोई अनुचित गंध या स्वाद भी उत्पन्न नहीं होता है।

खानों में हानिकारक गैस का पता लगाना

खानों में हानिकारक गैस का पता लगाने वाले उपकरण में दो समान प्रकार की नलिकाएं ली जाती हैं एक नलिका में शुद्ध वायु तथा दूसरी में खाने की वायु प्रवाहित करते हैं। यदि खाने की वायु शुद्ध है तो दोनों नालियों में एक ही आवृत्ति (Frequency) का स्वर निकलेगा तथा कोई विस्पंद (Beat) सुनाई नहीं देगा। यदि खाने की वायु मीथेन गैस की उपस्थिति के कारण अशुद्ध हो जाती है। तो उसका घनत्व कम हो जाने से ध्वनि का वेग बढ़ जायेगा। ध्वनि का वेग बढ़ जाने से उत्पन्न स्वर की आवृत्ति बदल जाएगी तथा विस्पंद सुनाई देने लगेंगे। विस्पंद सुनाई देने से यह निश्चित हो जाता है कि खाने में कोई हानिकारक गैस आ गयी है। इस प्रकार हानिकारक गैस की उपस्थिति की पूर्व सूचना मिल जाती है, जिससे दुर्घटना से बचा  जा सकता है।

गैल्वेनीकरण तथा टिन पर पत्तर चढ़ाना

लोहे की चादरों पर जिंक की परत चढ़ाने को गैल्वेनीकरण कहते हैं\ इस प्रकार प्राप्त चादरों पर जंग नहीं लगता है और उनकी आयु भी बढ़ जाती है। गैल्वेनीकरण करने के लिए पहले लोहे की चादरों को पुर्णतः साफ कर लेते हैं। और फिर पानी से से धोकर द्रावक मिले पिघले हुए जस्ते में डाल देते हैं। जस्ते का पतला स्तर लोहे पर जम जाता है। इस स्तर को एकसमान करने के लिए इन चादरों को गर्म बेलनों में से गुजारा जाता है। इस प्रकार प्राप्त चादरें गैल्वेनीकृत चादरें कहलाती हैं।

टिन का पत्तर चढ़ाना Tinplating

लोहे या इस्पात की चादरों को वायु के प्रभाव से सुरक्षित रखने के लिए टिन की पॉलिश की जाती है। इस विधि में पहले लोहे की चादरों को तनु अम्ल तथा जल से साफ किया जाता है और फिर पिघले हुए टिन में डुबोकर गर्म बेलनों में से होकर गुजारा जाता है, जिससे चादरों पर एक ही मोटाई की परत चढ़ जाती है। टिन की पॉलिश विद्युत् विधि द्वार भी की जाती है। इस विधि में साफ चादरें ऋणोद तथा साफ़ चादरें धनोद का कम करती हैं। SnCl3 का HCL में विलयन विद्युत् अपघट्य (Electrolyte) का काम करता है। विद्युत् धारा प्रवाहित करने से चादरों पर टिन की एक सार परत चढ़ जाती है।


पोर्टलैंड सीमेंट Portland Cement

इमारतों को बनाने के लिए इस सीमेंट का प्रयोग होता है। पोर्टलैंड इंग्लैण्ड में पाए जाने वाले पत्थरों से लिया गया है। इसका प्रयोग सर्वप्रथम 1824 में इंग्लैंड में जोसेफ एस्पडीन (Joseph Aspdin) ने किया था। यह मुख्यतः कैल्सियम एल्यूमिनेट तथा कैल्शियम सिलिकेट का मिश्रण है, जो जल की उपस्थिति में पठार के समान कठोर हो जाता है।

रचना Composition

साधारण सीमेंट की रचना इस प्रकार हो सकती है-

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चांदी के सिक्के से चांदी धातु प्राप्त करना

चांदी का सिक्का चांदी तथा तांबा की मिश्र धातु (Alloy) है, अतः सिक्के को नाइट्रिक अम्ल में घोल देते हैं। फलस्वरूप, सिल्वर नाइट्रेट बनते हैं। विलयन का वाष्पन करने पर प्राप्त क्रिस्टलों में दोनों नाइट्रेट मिश्रित रहते हैं। क्रिस्टलों को 250°C पर गर्म करने से कॉपर नाइट्रेट, कॉपर ऑक्साइड में बदल जाता है तथा सिल्वर नाइट्रेट अपरिवर्तनीय रहता है। इसे जल में घोलने पर सिल्वर नाइट्रेट घुल जाता है और CuO अविलेय रहता है। इस विलयन का क्रिस्टल करने पर सिल्वर नाइट्रेट के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं। यह गर्म करने पर चांदी धातु में अपघटित हो जाता है।

2AgNO3      2Ag+2NO2+O2

निकोटिनिक एसिड

यह तंत्रिका तंत्र को पूर्ण स्वस्थ्य तथा क्रियाशील रखने में शक्ति प्रदान करता है। शारीरिक वृद्धि में सहायता देता है तथा अमाशय एवं आँतों को शक्ति प्रदान कर उन्हें निरोग रखता है। इस विटामिन के आभाव में त्वचा शोथ (Dermatitis) हो जाती है। इसी के आभाव में पेलाग्रा (Palagra) नामक रोग भी उत्पन्न हो जाता है, जिसमे जीभ, आंतों, तालू और मसूढ़ों पर सूजन आ जाती है। भूख कम लगती है तथा शरीर दुर्बल हो जाता है। यह विटामिन, मांस, अनाजों और दालों में अधिक मात्र में पाया जाता है। हरी पत्तेदार सब्जियां, टमाटर, आलू एवं सूखे मेवों में यह अपेक्षाकृत कम मात्र में पाया जाता है।

गालक Fluxes

गालक वे पदार्थ हैं, जो उपस्थित अगलनीय अपद्रव्यों से संयोग करके गलनीय (fusible) धातुमल (Slag) बनाते हैं, गालक कहलाते हैं। गलित धातुमल पिघली हुई धातु से हल्का तथा अमिश्रणीय होता है। इसलिए वह पिघली हुई धातु के ऊपर तैरता है जिसे सरलता से अलग कर लिया जाता है। प्रमुख गालक CaO तथा FeO आदि हैं। । गालक का चुनाव अशुद्धि की प्रकृति पर निर्भर करता है।

यदि अपद्रव्य SiO2 (अम्लीय अपद्रव्य) है, तो इसे दूर करने के लिए क्षारकीय गालक CaO (कली चूना) प्रयोग में लाते हैं।

CaO (गालक) + SiO2 (अशुद्धि)= CaSiO2 (धातुमल)

रसायन विज्ञान की शाखाएं

रसायनशास्त्र के विकास के साथ-साथ इसके विशाल क्षेत्र को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से कई शाखाओं में विभाजित कर दिया गया है-

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द्रव्य का संगठन Composition of Matter

द्रव्य अत्यंत सूक्ष्म कानों से मिलकर बना है, इन कणों को अणु (Molecules) कहते हैं। अतः अणु द्रव्य का वह छोटे से छोटा कण है, जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है तथा जिसमे द्रव्य के सभी गुण विद्यमान रहते हैं\ द्रव्य के सभी अणुओं से मिलकर बने होते हैं।

पदार्थ के अणुओं के मध्य रिक्त स्थान होता है\ इस रिक्त स्थान को अंतराअणुक (Intermolecular) स्थान कहते हैं। इन अंतराअणुक स्थानों में अणु निरंतर कम्पन करते रहते हैं। पदार्थ के अणुओं के बीच के आकर्षण को अंतराअणुक आकर्षण (Intermolecular Attraction) कहते हैं। द्रव्य की तीनों अवस्थाएं (ठोस, द्रव, गैस) अणुओं के बीच अंतराअणुक रिक्त स्थान और अंतराअणुक आकर्षण की भिन्नता के कारण ही होती है।

ठोस अवस्था Solid State

ठोस अवस्था में द्रव के अणु बहुत पास-पास होते हैं तथा उनके बीच अंतराअणुक आकर्षण भी बहुत अधिक होता है। अतः ये अणु एक स्थान से दूसरे स्थान तक चलने के लिए स्वतंत्र नहीं होते, अपितु वे लगभग अपनी स्थिर स्थिति में ही कम्पन करते रहते हैं। यही कारण है कि ठोस अवस्था में द्रव्य का अपना निश्चित आयतन व आकार होता है।

द्रव अवस्था Liquid State

द्रव अवस्था में ठोस की अपेक्षा अंतराअणुक स्थान अधिक होता है, जिससे अणुओं पर लगने वाला अंतराअणुक स्थान अधिक होता है, जिससे अणुओं पर लगने वाला आकर्षण बल भी कम होता है। इस कारण अणुओं में एक निश्चित गति पाई जाती है\ अतः वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक आ जा सकते हैं। इसी से द्रव का अपना आयतन तो होता है, किन्तु निश्चित आकार नहीं होता है।

गैस अवस्था Gaseous State

गैस अवस्था में द्रव्य के अणु इतने दूर दूर होते है तथा उनके बीच में लगने वाला अन्तरा अणुक आकर्षण बल नहीं के बराबर होता है। अतः गैस के अणु, गति के लिए पूर्ण स्वतंत्र होते हैं\ बर्तन की दीवार ही उनकी सीमा होती है। किसी बर्तन में गैस भरने पर वह सारे बर्तन में फ़ैल जाती है, अतः गैस का न कोई निश्चित आयतन होता है न ही कोई निश्चित आकार होता है।

गैस के अणुओं के मध्य अंतरा अणुक स्थान बहुत ही अधिक और अंतराआणविक आकर्षण लगभग नहीं के बराबर होता है। अतः गैसों पर दाब डालने पर ये दबकर बहुत अधिक सिकुड़ जाती हैं और आयतन कम हो जाता है। जब किसी द्रव को गर्म करते हैं, तो उसके अणुओं का वेग बढ़ने लगता है तथा साथ ही उनकी गतिज उर्जा (kinetic energy) बढ़ने लगती है। गतिज उर्जा में वृद्धि के कारण अणुओं के मध्य आकर्षण बल कम होने लगता है। जब आकर्षण बल शून्य होता है, तो जो अणु पानी की सतह पर होते हैं वे सतह को छोड़ने लगते हैं और इस प्रकार द्रव वाष्प व गैस में बदलने लगता है।

इसी प्रकार ठोस पदार्थ पाने गलनांक पर द्रव में परिवर्तित होने लगते हैं और उस समय जो भी ऊष्मा दी जाती है, वह अणुओं के बीच संसजन बल (cohesive force) के विरुद्ध अणुओं को दूर करने के काम में आती है और अणुओं की गतिज उर्जा में वृद्धि नहीं होने पाती, जिससे ठोस पदार्थ के गलन के समय ताप स्थिर रहता है।

ठोस पदार्थ को किसी द्रव में डालने पर वह उसमे घुल जाता है। द्रव के कानों के मध्य अतिसूक्ष्म स्थान होते हैं, जिन्हें अंतराअणुक स्थान होते हैं। इन रिक्त स्थानों में ठोस के कण समाकर विलीन हो जाते हैं। यदि द्रव में अंतराअणुक स्थान, ठोस के अणुओं के स्थान से कम हों, तो वह ठोस घुलता नहीं है।

द्रव्य का परमाणु सिद्धांत Atomic Theory of Matter

प्राचीन काल से ही वैज्ञानिक और दार्शनिक द्रव्य की रचना के विषय में कल्पना करते रहे हैं। भारतीय दार्शनिक महर्षि कणाद (800 ई.पू.) ने बाते था की द्रव्य अति सूक्ष्म अविभाज्य कानों से मिलकर बना है। इस कणों के गुणों की दार्शनिक व्याख्या वैशेषिक दर्शन में संकलित है। ग्रीस के दार्शनिक लूसीपस (475 ई.पू.) तथा डिमोक्राइट्स ने इन अनुमानों को विस्तार देते हुए बताया की ये सुक्षम्तम कण उतने ही प्रकार के हैं, जितने प्रकार के संसार में पदार्थ होते हैं।

दीर्घकाल तक इन अनुमानों की सत्यता की जाँच प्रयोगों द्वारा की जाति रही\ 17वीं शताब्दी में न्यूटन और बॅायल ने उपर्युक्त अनुमानों के सहारे कई प्राकृतिक घटनाओं को समझाने का प्रयास किया। बाद में वैज्ञानिकों ने बताया कि ये सूक्ष्म कण, परमाणु (Atoms) हैं, जिनके संयोग अथवा प्रतिस्थापन से नये पदार्थ बनते हैं। द्रव्य की संरचना के इस अनुमान को परमाणु सिद्धांत कहा जाता है। 18वीं शताब्दी के अंत तक इन सूक्ष्म कणों के सम्बन्ध में कोई भी वैज्ञानिक स्पष्ट विचार नहीं दे सका। सर्वप्रथम जॉन डाल्टन (1808 ई.) ने द्रव्य (Matter) की संरचना और परमाणु सम्बन्धी एक सुव्यवस्थित विचार अपनी परिकल्पनाओं में प्रस्तुत किया, जिसे डाल्टन का परमाणु वाद कहा जाता है। इस प्रकार परमाणु वह छोटे से छोटा कण है जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है, परन्तु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है।

द्रव्य परमाणुओं के सूक्ष्म कणों के संयुक्त होने से बना है। इटली के अवगाद्रो ने परमाणु-अणु के भेद को स्पष्ट करते हुए बताया कि अणु एक या एक से अधिक समान प्रकार के अथवा भिन्न प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना है। अतः अणु, तत्व अथवा यौगिक का वह छोटे से छोटा कण है जो स्वतंत्र रुप से रह सकता है।

आधुनिक खोजों के अधार पर जे. जे. टामसन, लार्ड रदरफोर्ड, मैरी क्युरी आदि वैज्ञानिकों ने डाल्टन की धारणा, परमाणु अभाज्य है, को संशोधित करते हुए बताया कि परमाणु अभाज्य न्यूनतम कण नहीं है। यह अत्यंत सूक्ष्म मूलकणों (fundamental particle) से मिलकर बना होता है। इनमे इलेक्ट्रान, प्रोटान तथा न्यूट्रान प्रमुख हैं। परमाणु की एक निश्चित संरचना होती है तथा तत्वों के गुणों में भिन्नता उनके परमाणु में इन मूल कणों की संख्या की भिन्नता के कारण होती है।

रासायनिक संयोग के नियम Laws of Chemical Combination

पदार्थों के बीच होने वाली रासायनिक अभिक्रियाएं कुछ नियमों पर आधारित हैं। इस नियमों को रासायनिक संयोग के नियम कहते हैं। ये निम्नलिखित हैं-

द्रव्यमान संरक्षण या द्रव्य की अविनाशिता के नियम Law of Conservation or Indestructibility of Matter

इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम रुसी वैज्ञानिक लोमोनोसोफ (Lomonosoff) ने सन 1756 ईं में किया। इस नियम के अनुसार – द्रव्य अविनाशी है, द्रव्य को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही इसका विनाश किया जा सकता है। अतः किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में परिवर्तन के उपरांत भी द्रव्य का कुल द्रव्यमान उतना ही रहता है जितना अभिक्रिया से पूर्व।

स्थिर अनुपात का नियम Law of Constant Proportion

इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम प्राउस्ट ने सन 1799 में किया था। इसके अनुसार – प्रत्येक रासायनिक यौगिक में चाहे वह किसी भी विधि से बनाया या प्राप्त किया गया हो, तत्वों के द्रव्यमान एक निश्चित अनुपात में संयुक्त रहते हैं।

गुणित अनुपात का नियम Law of Multiple Proportion

इस नियम का प्रतिपादन जॉन डाल्टन ने सन 1803 में किया। इसके अनुसार- जब दो तत्व परस्पर रासायनिक संयोग करके एक या एक से अधिक यौगिक बनाते हैं, तब एक तत्व के समान द्रव्यमान से संयोग करने वाले दूसरे तत्व के द्रव्यमानों में एक सरल गुणित अनुपात होता है।

व्युत्क्रम अनुपात का नियम Law of Reciprocal Proportion 

इस नियम का प्रतिपादन (Richer) ने सन 1792 ई. में किया। इसके अनुसार – जब दो तत्वों के भिन्न-भिन्न द्रव्यमान अलग-अलग किसी तीसरे तत्व के निश्चित द्रव्यमान से संयोग करते हैं और यदि इन दोनों तत्वों में कभी संयोग हो सके, तो वे इसी अनुपात में अथवा इसके एक सरल गुणित अनुपात में संयोग करेंगे, जिसमे वे तीसरे तत्व के एक निश्चित द्रव्यमान में संयोग करता है।

गे-लुसैक का गैसीय आयतन का नियम Gay-Lussac Law of Gaseous Volumes

इस नियम का प्रतिपादन गे-लुसैक ने सन 1808 ईं में किया था। इसके अनुसार – एक ही ताप और दाब पर जब गैसे परस्पर संयोग करती हैं, तो उनके अभिकारक आयतन में सरल अनुपात होता है। यदि उत्पाद भी गैसें हों, तो उनका आयतन नही अभिकारी गैसों के आयतन के सरल अनुपाती होते हैं।


परमाणु संख्या Atomic Number

मोसले ने सन 1913 में बताया की सभी तत्वों के परमाणुओं कर नाभिकों पर धनात्मक आवेश बराबर नहीं होता है। किसी परमाणु के नाभिक की धनात्मक आवेश संख्या को परमाणु संख्या कहते हैं। तत्व के परमाणु का यह मूल गुण है। यह कक्षा (Orbit) में उपस्थित इलेक्ट्रानों की संख्या के बराबर होता है। परमाणु संख्या ही विशिष्ट रूप से यह बताता है कि कोई परमाणु किस तत्व का है। इसी के अधार पर तत्वों का आवर्ती वर्गीकरण किया गया है। परमाणु संख्या को परमाणु क्रमांक भी कहते हैं तथा इसे अंग्रेजी के अक्षर जेड (Z) से निरुपित करते हैं। इसलिए परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटान तथा न्यूट्रान की संख्याओं का योग उसके परमाणु भार (Atomic Weight) उसके नाभिक में उपस्थित प्रोटान और न्यूट्रान के भार का योगफल होता है, क्योंकि परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रानों का भार नगण्य होता है।

समस्थानिक Isotopes

सर जे. जे. टॉमसन, विलियम ऑस्टन, फैड्रिक साडी आसी वैज्ञानिकों ने ज्ञात किया कि एक ही तत्व के परमाणु भिन्न-भिन्न द्रव्यमान वाले हो सकता हैं। इन्हें समस्थानिक (Isotopes) कहते हैं। समस्थानिक परमाणुओं के नाभिक में प्रोटानों की संख्या समान होती है, परन्तु न्यूट्रानों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है। अतः किसी तत्व के वे परमाणु जिनकी परमाणु संख्या समान हो, किन्तु परमाणु भर भिन्न भिन्न हो, तो समस्थानिक कहलाते हैं। परमाणु संख्या की समानता के कारण समस्थानिकों के रासायनिक गुण समान होते हैं। अधिकांश तत्व दो या अधिक समस्थानिकों के मिश्रण होते हैं। हाइड्रोजन के 3 समस्थानिक ज्ञात हैं। तीनों की परमाणु संख्या एक है, परन्तु नाभिक में न्यूट्रान की संख्या में विभिन्नता के कारण इनका परमाणु भार 1, 2, 3 होता है। इन्हें क्रमशः प्रोटियम (हाइड्रोजन, 1H1), ड्यूटीरियम (1H2) तथा ट्राइटियम (1H3) कहते हैं।

यूरेनियम सहित बहुत से तत्वों के समस्थानिक प्रकृति में प्राप्त होते हैं। परमाणु रिएक्टर द्वारा बहुत से तत्वों के समस्थानिक कृत्रिम ढंग से बनाये जाते हैं। इन्हें रेडियो आइसोटोप (समस्थानिक) कहते हैं। ये रेडियोएक्टिव होते हैं तथा कुछ समय तक विकिरण उत्सर्जित करते रहते हैं।

समभारी Isobars

कुछ तत्वों का परमाणु भार एक ही होता है, परन्तु इनकी परमाणु संख्या में विभिन्नता होती है। ऐसे तत्व समभारी कहे जाते हैं। इनके नाभिक में प्रोटानों और न्यूट्रानों दोनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है तथा इनके रासायनिक गुण धर्म असमान होते हैं और इनके नाभिक का कुल द्रव्यमान समान होता है। अतः विभिन्न तत्वों के परमाणु जिनका परमाणु भार तो होता है, परन्तु उनकी परमाणु संख्या में अंतर होता है, समभारी कहलाते हैं।

समन्यूट्रानिक Isotones

ऐसे नाभिक जिसमे केवल न्यूट्रानों की संख्या समान होती है, समन्यूट्रानिक कहलाते हैं।


परमाण्विक या सक्रिय हाइड्रोजन Atomic or Active Hydrogen

कम दाब पर साधारण हाइड्रोजन गैस में, टंगस्टन या प्लेटिनम का तार उच्च तापमान पर गर्म करने या पारे के आधे मिमी. से भी कम दाब पर हाइड्रोजन में विद्युत् विसर्जन प्रवाहित करने पर हाइड्रोजन के अणु एच (H) परमाणुओं में टूटते हैं। इस अवस्था वाली हाइड्रोजन गैस को सक्रिय या परमाण्विक हाइड्रोजन कहा जाता है। यह बहतु क्रियाशील होती है और ऑक्सीजन, फास्फोरस आदि के साथ सामान्य तापमान पर सीधे संयोग कर सकती है।

नवजात हाइड्रोजन Nascent Hydrogen

रासायनिक प्रतिक्रिया के फलस्वरुप किसी यौगिक से तुरंत निकली हुई हाइड्रोजन गैस को नवजात हाइड्रोजन कहा जाता है। इस नवजात अवस्था में इसमें उर्जा बहुत अधिक होती है, क्योंकि यह गैस उच्च दाब से निकलती है, अतः यह अत्यंत क्रियाशील होती है। हाइड्रोजन की इस अवस्था को परमाण्विक अवस्था भी कहा जाता है। यह गैस तुरंत आणविक अवस्था (Molecular state) में परिणित हो जाती है। नवजात हाइड्रोजन, आणविक हाइड्रोजन से अधिक क्रियाशील होता है।

पैरा हाइड्रोजन और आर्थो हाइड्रोजन Para Hydrogen and Artho Hydrogen

प्रत्येक हाइड्रोजन परमाणु के नाभिक में एक प्रोटान होता है जिसके चारों ओर एक इलेक्ट्रान चक्कर लगता रहता है। प्रोटान और इलेक्ट्रान दोनों एक ही अक्ष पर घूमते रहते हैं। जब दो हाइड्रोजन परमाणु संयोग करके एक अणु बनाते हैं, तो उन दोनों पर इलेक्ट्रानों का चक्रण (Spin) परस्पर एक ही दिशा में या विपरीत दिशाओं में होता है। इस प्रकार हाइड्रोजन के दो अपरूप होते हैं। जब इलेक्ट्रानों का चक्रण एक ही दिशा में होता है, तो उसे आर्थो हाइड्रोजन कहते हैं। यदि दोनों इलेक्ट्रानों का चक्रण विपरीत दिशाओं में होता है, तो उसे पैरा हाइड्रोजन कहा जाता है।

साधारण हाइड्रोजन में सामान्य ताप पर 75% आर्थो और 25% पैरा हाइड्रोजन का मिश्रण होता है। पैरा हाइड्रोजन परमाण्विक हाइड्रोजन से टकराकर आर्थो हाइड्रोजन में बदल जाति है\ पैरा हाइड्रोजन की अपेक्षा आर्थो हाइड्रोजन अधिक स्थाई होता है।

पॅाली वाटर Poly Water

यह केश की आकृति की नली में तैयार किया जाता है\ इसकी रासायनिक बनावट वही होती है जो साधारण जल की होती है। परन्तु यह 0°C पर नहीं जमता है। इसका हिमांक (Freezing point) -40°C और क्वथनांक (Boiling Point) 500°C होता है। यह बहुत खतरनाक माना जाता है।


रासायनिक पदार्थ और उनके उपयोग

कांच Glass

कांच की परिभाषा थोर्प (Thorpe) ने इस प्रकार दी है – कांच धात्विक सिलिकेटों का, जिसमें क्षारीय धातु का सिलिकेट आवश्यक है, अमिश्रणीय पारदर्शक या अल्पपारदर्शक मिश्रण है।

कांच का कोई निश्चित अणुसूत्र नहीं है, क्योंकि इसका संगठन अनिश्चित सा रहता है, परन्तु इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं-

xR2O, yMO, 6SiO2

यहां R क्षारीय धातु, M कैल्सियम, लेड आदि द्विसंयोजनीय धातु और x,y अणुओं की संख्या है।

साधारण कांच का सूत्र- Na2OCa6SiO2है।

बनाने की विधि – साधारण कांच को बनाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों की आवश्यकता होती है-

⇨ सिलिका-बालू-रेत, क्वार्टज़ आदि से

⇨ क्षारीय धातु ऑक्साइड- Na2CO3, K2CO3 आदि से।

⇨ कैल्सियम आदि से- CaCO3 से।

⇨ लेड ऑक्साइड- लिथार्ज, रेड लेड आदि से।

⇨ विरंजक- MNO2, NaNO3 आदि से।

⇨ कलट- टूटे हुए कांच के टुकड़ों से।

रंग लाने वाले पदार्थ- विभिन्न धात्विक ऑक्साइड भिन्न-भिन्न रंग लाने के काम में आते हैं।

ऊपर दी हुई वस्तुओं का मिश्रण उचित अनुपात में मिलाकर चूर्ण कर लेते हैं। मिश्रण को भट्टी में पिघलाते हैं। भट्टी में पुनरोत्पादक विधान (Regenerative System) द्वारा ताप का पूर्ण उपयोग करते हैं। भट्टी में प्रोड्यूसर गैस ईंधन के रूप में काम में लायी जाति है। 1400°C पर पदार्थ पूर्ण रूप से पिघल  जाता है और तब CO2 गैस के बुलबुले नहीं निकलते हैं। इस समय कांच द्रव के रूप में प्राप्त होता है। द्रव को 800°C तापक्रम तक ठंडा कर लेते हैं। अब फूंककर इससे भिन्न भिन्न वस्तुएं बनायीं जा सकती हैं। आजकल फुंकाई के स्थान पर सांचे काम में लाये जाते हैं।

कांच निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

⇨ मृदु कांच अथवा सोडा कांच Soft Glass or Soda Glass- इसका अणुसूत्र है – Na2O, CaO, 6SiO2 – इसका उपयोग ट्यूब, प्रयोगशाला के उपकरण, बोतलें, खिड़की के शीशे एवं बर्तन बनाने में होता है।

⇨ कठोर कांच या पोटाश कांच Hard Glass or Potash Glass – इसका अणुसूत्र है- K2O, CaO, 6SiO2 – अधिक तापक्रम तक गर्म किए जाने वाले उपकरण इसी कांच से बनाये जाते हैं।

⇨ फ्लिंट कांच Flint Glass – इस कांच का अणुसूत्र है- K2O, PbO, 6SiO2 – इसका उपयोग कैमरा, दूरबीन आदि के लेंस बनाने में, कृत्रिम मणि तथा बल्ब बनाने में होता है।

⇨ जेना कांच Jena Glass – इससे प्रयोगशाला के अच्छे उपकरण बनाये जाते हैं।

⇨ पाइरेक्स कांच Pyrex Glass – यह भी प्रयोगशाला के श्रेठ उपकरण बनाने के काम में आता है।

⇨ सिलिका कांच Silica Glass – यह वस्तुतः सिलिका डाई ऑक्साइड है\ इससे प्यालियां और उपकरण बनाये जाते हैं।

⇨ ग्राउंड कांच Ground Glass- यह अपारदर्शक होता है। 


ज्वाला परीक्षण का सिद्धांत Theory of Flame Test

कुछ धातुओं के लवण अप्रकाशमान ज्वाला में वाष्पीभूत होकर ज्वाला को विशिष्ट रंग देते हैं। साधारणतः अन्य यौगिकों से धातुओं के क्लोराइडअधिक वाष्पशील होते हैं और ये सरलता पूर्वक HCl की प्रतिक्रिया द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं, अतः पहले से धातु का क्लोराइड बना लिया जाता है और इसकी वाष्प द्वारा प्राप्त ज्वाला के रंग का निरीक्षण किया जाता है। प्रत्येक धातु के लिए यह रंग विशिष्ट होता है। ज्वाला परीक्षण में इसी सिद्धांत का प्रयोग होता है।


ऐस्बेस्टॅास Asbestos – रेशेदार संरचना वाला एक सिलिकेट खनिज होता है। अग्निरोधी, उष्मारोधी, विद्युत रोधन वस्तुएं बनाने और ऐस्बेस्टॅास सीमेंट की वस्तुएं जैसे पाइप आदि बनाने में काम आता है।

बॉक्साइट Bauxite – यह एल्युमिनियम का खनिज है, जिससे यह धातु प्राप्त की जाती है, बॉक्साइट से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाई जाती हैं।

बोन चारकोल Bone Charcoal – यह अस्थियों के भंजक आसवन (Destructive Distillation) से प्राप्त  द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग अधिकांशतः कार्बनिक पदार्थों और चीनी (sugar) के विरंजीकरण (Bleaching) के लिए किया जाता है।

सीमेंट Cement – सीमेंट, चूना पत्थर और जिप्समसे बनाया जाता है। इसमें पानी मिलाने पर यह पत्थर जैसा सख्त हो जाता है। इस कारण यह दीवारों, पुलों, बांधों आदि के निर्माण के काम में आता है।

चाइना क्ले China Clay- शुद्ध व प्राकृतिक जलनियोजित सिलिकेट है। यह बर्तन, विद्युतरोधी व तापरोधी वस्तुएं बनाने और रिक्त स्थान भरने के लिए होता है।

कोरंडम Corundum- इसका शुद्ध रूप एल्युमिना ऑक्साइड है। कठोरता में यह हीरे (Diamond) के बाद दूसरे नंबर पर आता है। इसका उपयोग पिसने वाले पत्थर के रूप में किया जाता है। अशुद्ध रूप में इसे एमरी कहा जाता है।

कांच Glass – साधारणतः कांच में सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम और लेड के सिलिकेट होते हैं। जब इन सिलिकेटों के फ्यूज्ड मिश्रण को ठंडा करते हैं, तो एक समांगी ठोस पदार्थ (कांच) बं जाता है। अतः कांच को फ्यूज किये गए सिलिकेटों का अत्यधिक ठंडा किया गया द्रव्य कहा जा सकता है।

फ्लिंट कांच Flint Glass – यह बहुत ही साफ और उच्च वर्ग का कांच होता है। फ्लिंट कांच पोटैशियम तथा लेड सिलिकेट का मिश्रण होता है। इसकी अपवर्तन शक्ति (Refracting Power) बहुत अधिक होती है। इसका उपयोग कैमरा, दूरबीन आदि के लेंस, प्रिज्म कृत्रिम हीरे आदि बनाने में करते हैं।

प्रकाशीय कांच Optical Glass- इस कांच में सिलिका के स्थान पर बोरोन ट्राइऑक्साइड  और फास्फोरस पेंटाऑक्साइड तथा चूने के स्थान पर बेरियम ऑक्साइड या जिंक ऑक्साइड का प्रयोग करते हैं।

जब इसमें बेरियम ऑक्साइड होता है, तो यह क्राउन कांच (Crown Glass) कहलाता है। इसका अपवर्तनांक (Refractive Index) उच्च होता है। यह कांच प्रकाशीय यंत्र तथा बिजली के बल्ब बनाने में प्रयुक्त किया जाता है।

यदि प्रकाशीय बनाने में दुर्लभ मृदा (rare earth) के ऑक्साइड (विशेष रूप से सीरियम) का प्रयोग किया जाए, तो यह क्रुक्स कांच (Crooks Glass) कहलाता है। यह कांच पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) को जो आँखों के लिए हानिकारक है, रोक देता है। इसका चश्मों के लेंस बनाने में प्रयोग करते हैं।

बोरोसिलिकेट कांच Borosilicate Glass- इस प्रकार के कांच में सिलिका के साथ-साथ बोरिक ऑक्साइड भी कम में लाते हैं। इसमें एल्युमिना और जिंक ऑक्साइड को भी थोड़ी मात्र में डाल दिया जाता है। एल्युमिना से कांच में मजबूती भी आ जाती है और जिंक ऑक्साइड से ताप व रासायनिक अभिकारकों का प्रभाव कम हो जाता है। इस प्रकार के कांच पाइरेक्स (Pyrex) और जेना (Jena) के नाम से प्रसिद्द हैं। इनका उपयोग अच्छे प्रकार के उपकरण, तापमापी आदि में होता है।

रंगीन कांच Coloured Glass- रंगीन कांच बनाने के लिए कांच बनाते समय उसमे कुछ विशिष्ट धातुओं के ऑक्साइड या अन्य यौगिक डाल दिए जाते हैं। भिन्न-भिन्न रंग के कांच बनाने के लिए भिन्न-भिन्न ऑक्साइड मिलाए जाते हैं। अग्रलिखित पदार्थ मुख्य रूप से कांच में रंग लाने के लिए कम में लाए जाते हैं-

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फोटोक्रोमिक कांच अथवा स्वतः रंग बदलने वाला कांच Photocromic Glass

यदि साधारण कांच बनाते समय उसमे सिल्वर क्लोराइड डाल दिया जाए, तो वह कांच फोटोक्रोमिक हो जाता है। इस कांच पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तो इसमें उपस्थित चांदी और क्लोराइड के अणु अलग-अलग हो जाते हैं। इस कारण से कांच गहरे रंग का हो जाता है। पर जब इस पर सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणें गिरना बंद हो जाती हैं, तो ये दोनों अणु पुनः मिल जाते हैं, जिसमे कांच फिर से हलके रंग का या पारदर्शी हो जाता है\ इस फोटोक्रोमिक कांच के कई उपयोग हैं। इसे चश्मे विमान की खिडकियों व घरों में लगाते हैं।


एलिन्वार स्टील Elinvar Steel- एलिन्वार एक ट्रेडमार्क है। यह निकिल और क्रोमियम मिश्रित स्टील होता है। तापक्रम के प्रभाव से इसकी प्रत्यास्थता (Elasticity) में अंतर नहीं पड़ता है। इसका उपयोग घड़ी की कमानी (spring) बनाने में किया जाता है।

नैप्थलीन Naphthalene यह सुगन्धित (Aromatic) हाइड्रोकार्बन होता है। यह कोलतार से प्राप्त होता है। इसकी गोलिया कीटनाशी और दुर्गन्धनाशी पदार्थ के रूप में प्रयुक्त होती हैं।

प्लास्टर ऑफ़ पेरिस Plaster of Paris यह कैल्सियम सल्फेट (calcium sulfate hemihydrate) होता है तथा जिप्सम को गर्म करने पर बनता है। इसका उपयोग खिलौने, मूर्तियाँ, सांचे आदि बनाने में अस्पतालों में हड्डी आदि को जोड़ने के लिए बंधे गए प्लास्टर में और ऐसे ही अनेक उपयोग में किया जाता है।

पॉलिथीन Polythene- यह एक थर्मोप्लास्टिक है, जो एथिलीन के बहुलकीकारण (Polymerization) से प्राप्त किया जाता है। यह गर्म करने पर मुलायम हो जाता है, अतः इसे विभिन्न सांचों में ढाला जा सकता है। इससे पाइप, तार के ऊपर का आवरण, पैकिंग थैलियाँ आदि सामग्री का निर्माण किया जाता है।

पाली वाइनिल क्लोराइड Polyvinyl chloride PVC- यह वाइनिल क्लोराइड के बहुलकीकरण से प्राप्त होता है। इसका प्रमुख उपयोग पतली चादरों, फिल्म, बरसाती, सीट कवर आदि में किया जाता है। इस प्रकार पाली स्टाइरीन प्लास्टिक भी बहुमूल्य प्लास्टिक है। इसका उप्युग बोतलों की टोपियों तथा संचायक सेलों के आवरण बनाने में किया जाता है। केसीन प्लास्टिक का उपयोग  बटन बनाने में तथा लाख प्लास्टिक का उपयोग ग्रामोफोन के रिकॉर्ड तथा चूड़ियाँ बनाने में होता है। लाख एक प्राकृतिक प्लास्टिक रेजिन है।

बेकेलाइट Bakelite इसे फीनॅाल तथा फार्मेल्डीहाइड को सोडियम हाइड्राक्साइड की उपस्थिति में गर्म करके प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग रेडियो, टेलीविजन आदि के केस, बाल्टी आदि बनाने में किया जाता है।

सैकेरिन Saccharin यह कार्बनिक यौगिक, टालूईन (Toluene) से प्राप्त एक मीठा यौगिक होता है। यह शर्करा (sugar) से लगभग 500 गुना मीठा होता है, पर इससे उर्जा उत्पन्न नहीं होती है। मधुमेह के रोगी भी इसका प्रयोग शक्कर के स्थान पर करते हैं।

मोम Waxes- तेल और वसा के समान मोम भी प्रकृति में पाए जाने वाले एस्टर हैं, परन्तु यह एस्टर ग्लिसरॅाइड से भिन्न हैं। इसमें उच्च वासिय अम्लों के अणु ग्लिसरॅाल के स्थान पर उच्च मोनो-हाइड्रिक एल्कोहल से संयुक्त होकर एस्टर बनाते हैं। अतः मोम उच्च वसीय अम्लों और उच्च मोनो–हाइड्रिक एल्कोहल के एस्टर हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित प्रकार के मोम मुख्य हैं-

⇨ शहद की मक्खी का मोम Bee Wax- इसमें मुख्य रूप से मिरिसिल पामीटेट रहता है तथा यह एल्कोहल और पामिटिक एसिड का एस्टर है।

⇨ कार्नोबा मोम Carnauba Wax- यह ताड़ के पत्तों से प्राप्त किया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से मिरीसिल सेराटेट रहता है। यह मिरीसिल एल्कोहल और सीरोटिक एसिड का एस्टर है।

⇨ स्पर्मेसेटी मोम Spermaceti Wax- यह स्पर्म व्हेल से प्राप्त होता है। इसमें मुख्य रूप से सेटिल पामिटेट रहता है। यह सेटिल एल्कोहल और पामिटिक एसिड का एस्टर है।

बाजार में बिकने वाली मोमबत्तियों में मोम, ठोस वसीय अम्लों का मिश्रण होता है और मुख्य रूप से उसमे स्टिएरिक और पामिटिक एसिड मिश्रित होते हैं। ये वसीय अम्ल वासों के जल अपघटन द्वारा प्राप्त किए जाते हैं।

मोम का बहुत अधिक उपयोग, जुटे की पॉलिश, लकड़ी की पॉलिश और वार्निश बनाने में होता है। इसका उपयोग लेड पेंसिल बनाने में भी होता है।

ये मोम, पैराफिन मोम (paraffin wax) से भिन्न होता है। पैराफिन मोम उच्च हाइड्रोकार्बनों के मिश्रण होते हैं, परन्तु प्राकृतिक मोम एस्टरों के मिश्रण हैं। पैराफिन मोम पेट्रोलियम से प्राप्त होता है।


कृत्रिम रबर Artificial Rubber- कृत्रिम रबर एक बहुलक (polymer) है, जो प्राकृतिक रबर से अधिक कठोर, मजबूत तथा कम घिसने वाला होता है, इससे विमानों, ट्रकों एवं अन्य वाहनों के टायर बनाये जाते हैं।

कृत्रिम रेशे Synthetic Fibers- आजकल वस्त्र उद्योग में भी रसायनों से विभिन्न प्रकार के कृत्रिम रेशों का निर्माण किया जाता है। औद्योगिक स्तर पर कृत्रिम रेशे बनाने के लिए सर्वप्रथम सन 1885 मेंफ़्रांस में सेल्यूलोस नाइट्रेट का प्रयोग किया था। परन्तु इस प्रकार से तैयार किए गए कपड़े तुरंत आग पकड़ने लगते थे। इनकी ज्वलनशीलता कम करने के लिए इनका विनाइट्रीकरण करके इन्हें पुनः सेल्यूलोस में परिवर्तित किया गया। यह रेशे सिल्क (silk) के समान थे। आजकल सेल्यूलोस एसीटेट एवं विस्कोस रेशों से बने मिश्रित वस्त्र तैयार किए जाते हैं।  सेल्यूलोस से प्राप्त कृत्रिम रेशों में रेयान (Rayon) या कृत्रिम सिल्क अधिक उल्लेखनीय है।

अत्याधुनिक रेशों में बहुलीकृत रेजिन है। रेयान असली रेशम के सूतों की अपेक्षा अधिक मजबूत एवं टिकाऊ होता है। विभिन्न रेशे, टेरीलीन, नॉयलान, रेयान, एक्रोलिक, स्ट्रेचलान इत्यादि अपनी अधिक मजबूती के कारण प्रसिद्द है।

रेक्सीन Rexin- यह कृत्रिम चमड़ा है। रेक्सीन का निर्माण सेल्यूलोस अर्थात वनस्पति से किया जाता है। अच्छी किस्म का रेक्सीन मोटे कैनवास पर पाइरोक्सिलिन का लेप देकर बनाया जाता है। इस प्रकार बनी सामग्री उतनी ही टिकाऊ होती है, जितना चमड़ा।

फिटकरी Alum- यह एक श्वेत, पारदर्शी खनिज है, जिसमे अल्युमिनियम सल्फेट और पोटैशियम सल्फेट रहते हैं। यह प्रकृति में पाया जाने वाला यौगिक है। इसका उपयोग कठोर जल को मृदु बनाने तथा औषधि निर्माण में हलके क्षारक और कठोरक (stringent) के रूप में भी किया जाता है।

विरंजक चूर्ण Bleaching Powder- यह श्वेत स्थायी यौगिक चूर्ण है, जो मखरा चूना (slaked lime) को क्लोरीन से संतृप्त कर तैयार किया जाता है। विरंजक चूर्ण कैल्सियम हाइपो-क्लोराइड व क्षारीय कैल्सियम क्लोराइड का मिश्रण होता है। इससे क्लोरीन की गंध निकलती रहती है तथा हवा में खुला छोड़ देने पर धीरे-धीरे सारी क्लोरीन गैस निकल जाती है। इसका उपयोग कपड़े तथा कागजों के विरंजन कीटाणु नाशन में किया जाता है।

सफेदा White Lead- यह क्षारीय लेड कार्बोनेट है तथा महत्वपूर्ण श्वेत रंग है, जो श्वेत पेंट के लिए प्रयोग होता है|

सिंदूर Red Lead- यह ट्राइ प्लम्बिक टेट्रा ऑक्साइड या मिनियम है तथा लाल चूर्ण होता है, जो पानी में अविलेय है। इसका उपयोग कांच उद्योग, लाल पेंट, दियासलाई निर्माण आदि में होता है।

कैलोमेल Calomel- यह मरक्यूरस क्लोराइड है। इसका उपयोग औषधियां तथा इलेक्ट्रोड बनाने में किया जाता है।

सिल्वर नाइट्रेट या लूनर कॉस्टिक Silver Nitrate or Lunar Caustic यह चांदी को तनु (dilute) नाइट्रिक अम्ल में घोलने से बनता है। इसके क्रिस्टल रंगहीन होते हैं, जो पानी में अधिक विलेय है। सिल्वर नाइट्रेट प्रबल ऑक्सीकारक है। इस कारण यह त्वचा, कपड़ा, आदि के संपर्क में आने पर काला निशान छोड़ता है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार से होता है। फोटोग्राफी में कम आने वालेसिल्वर हैलाइड बनाने में। बालों को रंगने के लिए डाई (dye) बनाने में कांच पर चांदी चढ़ाकर दर्पण बनाने में उपयोग किया जाता है।

स्टेनलेस स्टील Stainless Steel- यह एक मिश्र धातु है। जो स्टील में 12% क्रोमियम और 10.5% से 0.7% कार्बन मिलाकर्किया जाता हैइसमें जंग नहीं लगता, जिससे इसका उपयोग अधिकांशतः खाने-पिने के बर्तनों, छुरी-काँटों, सर्जरी के उपकरण आदि के निर्माण में किया जाता है। इस पर कार्बनिक अम्लों का प्रभाव भी नहीं पड़ता है।

कोयले से प्राप्त पदार्थ Coal-derived substances कोयले को वायु शून्य स्थिति में कोक भट्टी में गर्म करने पर उससे कोल गैस, अमोनियम द्रव, कोलतार तथा कोक प्राप्त होते हैं। कोल गैस ईंधन की तरह काम में आती है। कोलतार से बेंजीन, टोल्वीन, जाइलीन, नेप्थलीन तथा फिनॅाल आदि बहुमूल्य पदार्थ अलग किए जाते हैं, जिनसे अनेक प्रकार की औषधियां, रंग, विस्फोटक तथा प्लास्टिक तैयार किये जाते हैं।

द्रव ईंधन Liquid Fuel- द्रव ईंधन में मुख्यतः पेट्रोलियम से निकलने वाले खनिज पदार्थ आते हैं। पेट्रोलियम, पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त खनिज तेल को कहते हैं। पेट्रोलियम के आसवन के द्वारा पेट्रोल, डीजल, केरोसीन आदि तथा अन्य अनेक उपयोगी पदार्थ प्राप्त होते हैं।

द्रवित पेट्रोलियम LPG Liquid Petroleum Gas- घरों में इंधन के रूप में प्रयुक्त की जाने वाली द्रवित प्राकृतिक गैस को एलपीजी कगते हैं। यह ब्युतें तथा प्रोपेन गैस का मिश्रण होती है।। जिसे उच्च दाब पर द्रवित कर सिलेंडरों में भर लेते हैं। सिलेंडर से बहार निकलने दाब परिवर्तन के कारण यह पुनः गैस में बदल जाती है, जिसे गैस चूल्हों में जलाकर ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं।

गोबर गैस Bio Gas- गिले गोबर के सड़ने पर ज्वलनशील मीथेन गैस बनान्ति हैजो वायु किउपस्थिति में सुगमता से जलती है। गोबर गैस संयंत्र में गोबर से गैस बनाने के पश्चात् शेष रहे पदार्थ (स्लरी)  का उपयोग कार्बनिक खाद में किया जाता है।

प्रोडूसर गैस Producer Gas- यह गैस लाल तप्त कोक पर वायु प्रवाहित करके बनायीं जाती है। इसमें मुख्यतः कार्बन मोनो ऑक्साइड ईंधन का कम करती है। इस गैस का उपयोग कई बड़े उद्योगों में किया जाता है।

अश्रु गैस Tear Gas- इस गैस के प्रभाव से आँखों में जलन होती है तथा आंसू बहने लगते हैं। इस गैस को ग्रेनेड्स में भरकर दंगों (Riots) पर काबू पाने के लिए प्रयोग किया जाता है। अल्फ़ा-क्लोरोएसेटोफिनोन तथा एक्रोलीन, अश्रु गैस के रूप में इस्तेमाल की जाती है। इसे मेस-गैस (Mace-Gas)

वाटर गैस Water Gas- इस गैस का निर्माण पानी के वाष्प को लाल तप्त कोक पर प्रवाहित करके किया जाता है। इसमें मुख्यतः कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा हाइड्रोजन गैस होती है। इसका उपयोग व्यापारिक रूप से धातु निर्माण उद्योग में इंधन के रूप में किया जाता है।

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