विद्युत: ताप विद्युत, जल-विद्युत और परमाणु ऊर्जा Electricity: Thermal, Hydro-Electric and Nuclear Power
विद्युत
विद्युत ऊर्जा का स्रोत है और यह प्राकृतिक खनिज, पानी और जीवाश्म ईंधन से उत्पादित की जा सकती है। इसके अतिरिक्त ऊर्जा के गैर-परंपरागत, वैकल्पिक, नए और फिर से उपयोग में लाए जा सकने वाले स्रोतों, जैसे-सौर, पवन और जैव ऊर्जा, आदि के विकास और संवर्द्धन पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है।
भारत में बिजली का विकास 19वीं सदी के अंत में शुरू हुआ। सन् 1897 में दार्जिलिंग में बिजली आपूर्ति शुरू हुई। 1899 में एक थर्मल केन्द्र कोलकाता में लगाया गया। तब उसके बाद 1899 में तमिलनाडु में मेथुर में और 1902 में कर्नाटक में शिवसमुद्रम में जल-विद्युत केंद्र काम करने लगा। स्वतंत्रता से पहले बिजली की आपूर्ति मुख्य तौर पर निजी क्षेत्र करता था और यह सुविधा भी कुछ शहरों तक ही सीमित थी। 1948 में जारी विद्युत आपूर्ति अधिनियम और पंचवर्षीय योजनाओं के विभिन्न चरणों में राज्य बिजली बोडॉ का गठन, देशभर में बिजली आपूर्ति उद्योग के सुव्यवस्थित विकास की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम केन्द्रीय क्षेत्र की विद्युत उत्पादन कम्पनी, राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एन.टी.पी.सी.) की स्थापना 1975 में नई दिल्ली में विद्युत के रख-रखाव हेतु की गई थी। राष्ट्रीय जल-विद्युत निगम (एन.एच.पी.सी.) की स्थापना 1975 में जल-विद्युत का सर्वांगीण विकास करने के उद्देश्य से की गई। एनएचपीसी के मुख्य उद्देश्यों में योजना बनाना, भारत और विदेश में परंपरागत व गैर-परंपरागत संसाधनों के माध्यम से इसके सभी पहलुओं में बिजली के एक एकीकृत एवं कुशल विकास को बढ़ावा देना एवं आयोजित करना और स्टेशनों में उत्पादित बिजली के ट्रांसमिशन, वितरण, कारोबार और बिक्री को बढ़ावा देना शामिल है। भारतीय बिजली ग्रिड निगम लिमिटेड (पावर ग्रिड) को 23 अक्टूबर, 1989 को विश्वसनीयता, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था और ठोस व्यावसायिक सिद्धांतों के साथ विभिन्न क्षेत्रों के भीतर तथा उनके बीच बिजली के हस्तांतरण के लिए क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय बिजली ग्रिड की स्थापना एवं उसका संचालन करने हेतु सरकारी प्रतिष्ठान के रूप में गठित किया गया था। पावर ग्रिड को 1998 में देश के केंद्रीय ट्रांसमिशन संगठन के रूप में अधिसूचित किया गया था। 1 मई, 2008 को भारत सरकार द्वारा पावर ग्रिड को नवरत्न का दर्जा प्रदान किया गया।
ताप विद्युत
तापीय ऊर्जा संयंत्र भारत में विद्युत के सबसे बड़े ऊर्जा स्रोत हैं। तापीय ऊर्जा संयंत्र में, जीवाश्म ईंधन (कोयला, ईंधन तेल एवं प्राकृतिक गैस) में स्थित रासायनिक ऊर्जा को क्रमशः तापीय ऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा एवं अंततः विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
भारत में ऊर्जा (शक्ति) विकास के शुरुआती चरणों में, तापीय ऊर्जा स्टेशन बेहद छोटे नेटवर्क कनेक्शन के साथ कई छोटे और व्यापक रूप से छितरी हुई इकाइयों में थे। दामोदर घाटी निगम परियोजना के तहत् बोकारो (झारखण्ड) में 60 मेगावाट के चार ऊर्जा स्टेशनों की स्थापना भारत में बड़े पैमाने पर तापीय ऊर्जा के विकास की दिशा में प्रथम कदम था। यह पॉवर स्टेशन बाद में विकसित किए गए तापीय ऊर्जा स्टेशनों की वृहद श्रृंखला का अगुवा रहा।
मुख्य ताप विद्युत केंद्र निम्नलिखित हैं-
मुख्य ताप विद्युत केंद्र | |
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हरियाणा | पानीपत और फरीदाबाद |
दिल्ली | दिल्ली |
उत्तर-प्रदेश | हरदुआगंज, परीछा, रिहंद, पनकी, दादरी, औरैया और ओबरा |
राजस्थान | कोटा, अन्ता |
गुजरात | गांधीनगर, साबरमती, धुवरण, अहमदाबाद, वनखाड़ी, उकई और कवास |
केरल | कायमकुलम |
मध्य प्रदेश | सिंगरौली और सतपुड़ा |
बिहार | बरौनी, कहलगांव |
झारखण्ड | बोकारो, चंद्रपुर और सुवर्णरेखा |
छत्तीसगढ़ | कोरबा, विन्ध्याचल और अमरकंटक |
पश्चिम बंगाल | दुर्गापुर, संतालदिह, बुंदेल, फरक्का, रालाघाट, टीटागढ़ और कोलकाता |
असम | बोंगाईगांव और नामरूप |
मणिपुर | लोकटक |
ओडीशा | तलचर और बालीमेला |
महाराष्ट्र | मुसवल, कोरडी, चंद्रपुर, नासिक, ट्राम्बे, उरन, बल्लारशाह और पुरली |
आन्ध्र-प्रदेश | रामागुंडम, भद्राचलम, मनुगुरु, कोठगुदम और विजयवाड़ा |
तमिलनाडु | ऐन्नोर, नेवेली और तूतीकोरिन |
थर्मल पावर का वितरण अपरिवर्तनीय है। पश्चिमी क्षेत्र तापीय ऊर्जा की निगरानी रखता है। विशेष तौर पर बड़े पावर प्लांट्स की स्थापना द्वारा, राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड की तापीय विद्युत उत्पादन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, इनमें से कुछ इस प्रकार हैं: सिंगरौली (उत्तर प्रदेश), कोरबा (छत्तीसगढ़), रामागुंडम (आंध्र प्रदेश) और फरक्का (पश्चिम बंगाल)। एन.टी.पी.सी. लिमिटेड हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत परियोजना के लिए भी उत्तरदायी है।
तापीय उर्जा स्टेशनों को अक्सर कोयले की दयनीय एवं अनिय्मीय आपूर्ति, उर्जा संयंत्र की निरंतर अक्षमता, इत्यादि गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा। तापीय ऊर्जा स्टेशनों के लिए आपूर्ति होने वाले कोयले में प्रायः राख की मात्रा अधिक होती है। अंततः, निम्न दर्जे के उपकरणों की आपूर्ति और बिक्री पश्चात् सेवा का अभाव भी स्थिति को बदतर बनाते हैं।
जल-विद्युत
आज भी पहाड़ी क्षेत्रों के दुर्गम स्थानों से लकड़ी के लठ्ठों के परिवहन में बहते हुए पानी की ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। पनचक्की का प्रयोग अनाज पीसने में होता रहा है। जल चक्र में वाष्पन के समय सौर ऊर्जा का एक भाग पानी के अणुओं की स्थितिज ऊर्जा में बदल जाता है। ये अणु वायुमंडल में ऊपर उठकर बादल बनाते हैं जिससे वर्षा व हिमपात के समय पानी के अणुओं की ये स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। बहते हुए पानी की गतिज उर्जा का उपयोग जल विद्युत् संयंत्रों द्वारा वृहत पैमाने पर विद्युत् उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। नदियों का बहाव बांध बनाकर रोका जाता है। जहां बांध के ऊपरी भाग से जल पाइप लाइनों द्वारा बांध के आधार के पास बने टरबाइनों के ब्लेडों के ऊपर गिराया जाता है। घूर्णन करता हुआ यह टरबाइन विद्युत् जनित्र के आर्मेचर को घुमाता है, जिससे विद्युत् उत्पन्न होती है। नदियों पर बांध बनाने से बाढ़ के प्रकोप को तो रोका जा सकता है परंतु इसके निर्माण में कई समस्याएं भी आती हैं, जैसे- निर्माण का कुछ सीमित स्थानों पर होना, बहुत-सी भूमि का पानी में डूबना, प्राकृतिक वास स्थान का नष्ट होना इत्यादि।
मुख्य जल-विद्युत केंद्र | |
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जम्मू-कश्मीर | झेलम, सलाल, बघलिहार |
हिमाचल प्रदेश | पोंग और भाखड़ा |
पंजाब | भटिंडा और भाखड़ा नांगल |
उत्तराखंड | यमुना और रामगंगा और टनकपुर |
राजस्थान | राणा प्रताप सागर और गांधी सागर |
महाराष्ट्र | कोयना |
कर्नाटक | कालीनदी, जोग और शरावती |
ओडीशा | हीराकुंड |
आंध्र प्रदेश | नागार्जुन सागर, सिलेरू और सरीसलम |
केरल | इदुक्की और शबरीगिरि |
तमिलनाडु | मेट्टूर, पेरियार और कोड्यार |
मध्य प्रदेश | ओमकारेश्वर |
त्रिपुरा | गोमुती |
अरुणाचल प्रदेश | रोगानदी |
परमाणु ऊर्जा
जीवाश्म ईंधन की समाप्त होने वाली प्रकृति और पनविद्युत से जुड़ी समस्याओं के संदर्भ में, भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास बेहद महत्वपूर्ण बन जाता है।
भारत में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण खनिज यूरेनियम और थोरियम हैं। वर्तमान में, परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) देश में परमाणु ऊर्जा की समस्त कार्यविधियों की कार्यकारी एजेंसी है। इसकी स्थापना 1954 में हुई थी। यह एजेंसी 1948 में स्थापित परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) के अधीन कार्य करती है। परमाणु ऊर्जा विभाग के कार्यक्रमों का संचालन प्रधानमंत्री की निगरानी में किया जाता है।
जब सन् 1940 में देश का आणविक ऊर्जा कार्यक्रम प्रारंभ किया गया था, उपलब्ध यूरेनियम और व्यापक थोरियम के संसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए एक 3 चरण वाला आणविक उर्जा कार्यक्रम लाया गया।
पहले चरण में दाबित गुरुजल रिएक्टरों (पीएचडब्ल्यूआर) और उनसे जुड़े ईंधन-चक्र के लिए विधा को स्थापित किया जाना है। ऐसे रिएक्टरों में प्राकृतिक युरेनियम को ईंधन के रूप में तथा गुरुजल को मॉडरेटर एवं कूलेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है।
दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, जिनके साथ पुनः प्रसंस्करण संयंत्र और प्लूटोनियम आधारित ईंधन संविचरण संयंत्र भी होंगे। प्लूटोनियम को यूरेनियम 238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है।
तीसरा चरण धोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित होगा। यूरेनियम-233 को थोरियम के विकिरण से हासिल किया जाता है।
प्रथम चरण में व्यावसायिक रूप में ऊर्जा उत्पादन किया गया। दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर का कलपक्कम में निर्माण किया गया।
तीसरे चरण में आधारभूत ईंधन U-233 का सफलतापूर्ण विकास के साथ महत्वपूर्ण संवृद्धि दर्ज की गई।
भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम लिमिटेड (एन.पी.सी.आई.एल.) परमाणु ऊर्जा विभाग की सार्वजानिक क्षेत्र की इकाई है जिस पर नाभिकीय रिएक्टरों के डिजायन, निर्माण और संचालन का दायित्व है।
भारत के नाभिकीय उर्जा संयंत्र इस प्रकार हैं-
भारत के प्रमुख नाभिकीय उर्जा संयंत्र | |
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उत्तर प्रदेश | नरौरा |
राजस्थान | रावतभाटा |
महाराष्ट्र | तारापुर |
गुजरात | काकरापारा |
कर्नाटक | कैगा |
रावतभाटा परमाणु ऊर्जा संयंत्र हमारे परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह अपने आप में कई मामलों में प्रथम स्थान रखता है। यह प्रथम दाबित भारी जल संयंत्र है तथा हमारे सफलतापूर्ण समग्र कूलैंट चैनल प्ररिस्थापन का प्रतिनिधित्व करता है, और अभी यह पहला बेहद अत्याधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी से बनाया गया दाबित भारी जल संयंत्र है।
Thank you yaar
Dundh-dundh ke thak gaya tha
Baki sab website pe time pass hua keval
Thanks...... Lot of thanks ji....
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