प्रकाशीय यंत्र Optical Device

कैमरा Camera

इस यंत्र के द्वारा मनुष्यों, वस्तुओं तथा प्राकृतिक दृश्यों का स्थायी प्रतिबिम्ब फोटोग्राफिक प्लेट अथवा फिल्म पर लिया जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं- बॉक्स कैमरा (Box camera) तथा फोल्डिंग कैमरा (Folding camera)। इनके मुख्य भाग निम्न हैं-

1. प्रकाशरोधी बॉक्स: बॉक्स कैमरे में यह लकड़ी अथवा धातु की बनी होती है, जिसकी लम्बाई स्थिर रहती है। फोल्डिंग कैमरे में यह बॉक्स काले चमड़े या धौंकनी के ढंग का बना होता है, जिससे इसकी लम्बाई में परिवर्तन किया जा सकता है। बॉक्स चारों ओर से अच्छी तरह बन्द होता है, जिससे कि इसमें बाहर का प्रकाश प्रवेश नहीं कर पाता। बॉक्स के अन्दर का भाग काला पुता होता है, जिससे इसकी दीवारों पर प्रकाश का परावर्तन नहीं होता।

2. लेंस (Lens): प्रकाशरोधी बॉक्स के आगे के भाग में एक उत्तल लेंस लगा रहता है, जिसे अभिदृश्यक लेंस (objective Lens) कहते हैं। अच्छे कैमरों में अभिदृश्यक लेंस कई लेंसों से मिलकर बना होता है। इससे प्रतिबिम्ब के दोषों का निवारण हो जाता है।

3. डायफ्राम (Diaphragm): अभिदृश्यक लेंस के ठीक सामने धातु का एक गोल पर्दा लगा होता है, जिसके बीच में एक छिद्र होता है, इसे डायफ्राम कहते हैं। डायफ्राम के छिद्र से होकर ही प्रकाश कैमरे में प्रवेश करता है। छिद्र का आकार आवश्यकतानुसार बढ़ाया-घटाया जा सकता है।

4. शटर (Shutter): लेंस के पीछे एक स्वत: चालित कपाट होता है, जिसे शटर कहते हैं। जब यह बन्द रहता है, तब कैमरे में प्रकाश प्रवेश नहीं करता। चित्र लेते समय इसे खोलकर प्लेट या फिल्म पर एक निश्चित समयान्तराल, जैसे-1/10, 1/50, 1/100, … सेकण्ड के लिए प्रकाश डाला जा सकता है। इस समयान्तराल को उद्भासन काल (exposure time) कहते हैं। इसका मान लेंस के द्वारक (aperture), फिल्म की स्पीड तथा प्रकाश की तीव्रता के अनुसार निश्चित किया जाता है।

5. घिसे काँच का पर्दा (Ground glass screen): यह एक घिसे काँच की प्लेट होती है, जो कैमरे के पिछले भाग में लगी रहती है। इसकी लेंस से दूरी इस प्रकार समायोजित करते हैं कि इस पर फोटो खींचने वाली वस्तुओं का स्पष्ट प्रतिबिम्ब देखा जा सके। इसके बाद इसके स्थान पर फोटोग्राफिक फिल्म अथवा प्लेट लगा दी जाती है।


6. फोटोग्राफिक फिल्म (Photographic film) यह सेल्युलॉइड की फिल्म होती है, जिस पर जिलेटिन में सिल्वर ब्रोमाइड की पतली तह जमी रहती है। जब इस पर प्रकाश गिरता है, तो रासायनिक क्रिया होती है। फिल्म के स्थान पर प्लेटों का भी प्रयोग किया जा सकता है।


कैमरा लेंस संबंधी कुछ शब्द

द्वारक (Aperture): किसी लेंस या दर्पण के प्रभावी व्यास को उसका द्धारक कहते हैं।

आपेक्षिक द्धारक (Relative aperture): यह लेंस के प्रभावी व्यास तथा फोकस-दूरी का अनुपात होता है।

आपेक्षिक द्धारक = लेंस की प्रभावी / व्यास लेंस की फोकस-दूरी

फोकसीय अनुपात (Focal ratio)– आपेक्षिक द्वारक के व्युत्क्रम (reciprocal) को फोकसीय अनुपात कहते हैं।

f- संख्या (f-number): फोकसीय अनुपात के संख्यात्मक मान को लेंस की f- संख्या कहते हैं।


आवर्धन काँच या सरल सूक्ष्मदर्शी Magnifying Glass or Simple Microscope

यह एक कम फोकासान्तर का उत्तल लेंस होता है। इसके मुख्य फोकस के अन्दर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब सीधा, काल्पनिक तथा वस्तु से बड़ा होता है। यह एक आवर्धक शीशे की तरह व्यवहार करता है, क्योंकि प्रतिबिम्ब द्वारा आँख पर बनाया गया कोण खुली ऑख पर वस्तु द्वारा बनाए गए कोण से बड़ा होता है। उत्तल लेंस जितना वक्रीय होगा, उसके द्वारा आवर्धन उतना अधिक होगा, क्योंकि उसका फोकस कम होने से वस्तु का प्रतिबिम्ब ऑख के और नजदीक बनेगा और फलतः आँख पर बनाया गया कोण भी बड़ा होगा और वस्तु बड़ी दिखाई पड़ेगी।

आवर्धन क्षमता Magnifying Power

किसी लेंस की आवर्धन क्षमता एक अनुपात है, जो प्रतिबिम्ब द्वारा आँख पर बनाए गए दर्शन कोण (β) और स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर रखी गई वस्तु द्वारा आँख पर बनाए गए दर्शन कोण (α) के बीच होता है। अर्थात्

आवर्धन क्षमता (m) = β/α

लेस के आवर्धन और आवर्धन क्षमता में अन्तर: आवर्धन और आवर्धन क्षमता दोनों पदों का व्यवहार प्रायः समान अर्थ के रूप में किया जाता है। लेकिन दोनों में निम्न अन्तर है-

आवर्धन आवर्धन क्षमता
1. यह रेखीय आवर्धन है। यह प्रतिबिम्ब और बिम्ब (वस्तु) के आकार का अनुपात है। 1. यह स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर स्थित वस्तु के सापेक्ष कोणीय आवर्धन है। यह प्रतिबिम्ब द्वारा आँख पर बनाए गए कोण तथा वस्तु द्वारा आँख पर बनाए गए कोण (जब वस्तु स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर रहती है) का अनुपात होता है।
2. प्रतिबिम्ब की दूरी बढ़ने पर इसका मान बढ़ता है। 2. प्रतिबिम्ब की दूरी बढ़ने पर इसका मान घटता है।
3. फोकस दूरी (f) के मान के सापेक्ष इसका मान – ∞ और +∞ के बीच कुछ भी हो सकता है। 3. इसका मान केवल D/f और 1 + D/f के बीच हो सकता है, जहाँ D=25 सेमी०, f= फोकस दूरी
4. प्रेक्षक से स्वतंत्र यह वस्तु की अपेक्षा प्रतिबिम्ब के वास्तविक आकार पर निर्भर करता है। 4. यह प्रेक्षक की स्थिति पर निर्भर करती है। यह प्रेक्षक की स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी (D) पर भी निर्भर करती है।
5. एक निश्चित शर्त के अधीन आवर्धन, आवर्धन क्षमता के बराबर होता है। 5. यह आवर्धन की एक विशेष शर्त (v = D) है। जहाँ v = प्रतिबिम्ब की दूरी, D=25 सेमी०।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी Compound Microscope

ऐसे सूक्ष्मदर्शी को जिनमें आवर्धन दो भागों में होता है, संयुक्त सूक्ष्मदर्शी कहते हैं। इसमें दो उत्तल लेंस होते हैं, जो एक नली में समाक्षीय (coaxilly) लगे रहते हैं। वस्तु के समीप रहने वाला लेंस को अभिदृश्यक लेंस (Objective Lens) और आँख के समीप रहने वाला लेंस को नेत्रिका लेंस (Eye Lens) कहते हैं।

अभिदृश्यक लेंस का द्वारक (aperture) एवं फोकस दूरी दोनों नेत्रिका लेंस की अपेक्षा छोटा होता है। इन दोनों लेंसों की फोकस दूरियाँ कम होती हैं। दोनों लेंसों को नली के अन्दर इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि अभिदृश्यक से बना हुआ प्रतिबिम्ब नेत्रिका लेंस के लिए वस्तु का कार्य करता है, जिसका प्रतिबिम्ब अधिक आवर्धित स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता Magnifying Power of Compound Microscope

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता अधिक होने के लिए अभिदृश्यक एवं नेत्रिका लेंस का फोकसान्तर कम होना चाहिए। यंत्र की आवर्धन क्षमता यंत्र की नली की लम्बाई पर निर्भर करती है और लम्बाई बढ़ने से आवर्धन क्षमता बढ़ती है।


दूरबीन Telescope

दूरबीन एक ऐसा प्रकाशिक यंत्र है जिसकी सहायता से आकाशीय पिंडों अथवा बहुत अधिक दूरी पर स्थित वस्तुओं को आसानी से स्पष्ट रूप से देखा जाता है।

दूरबीन दो प्रकार के होते हैं-

1. अपवर्तक दूरबीन (Refracting Telescope)

2. परावर्तक दूरबीन (Reflecting Telescope)

अपवर्तक दूरबीन (Refracting Telescope): यह तीन प्रकार के होते हैं-

  1. खगोलीय दूरबीन (Astronomical Telescope)
  2. पार्थिव दूरबीन (Terresterial Telescope)
  3. गैलीलियन दूरबीन (Galilean Telescope)

खगोलीय दूरबीन Astronomical Telescope

इसका निर्माण डेनमार्क के ज्योतिषशास्त्री केपलर के द्वारा 1911 ई० में किया गया। इसकी सहायता से अंतरिक्ष में दूर स्थित वस्तु को आसानी से देखा जा सकता है। इसमें दो उत्तल लेंस लगे होते हैं, पहला उत्तल लेंस एक चौड़ी नली में व्यवस्थित होता है, जिसका घेराव और फोकसान्तर बड़ा होता है। दूसरा उत्तल लेंस एक पतली नली के छोर पर लगा रहता है, जिसका फोकसान्तर एवं घेराव कम होता है। दोनों नलियाँ एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। बड़े फोकसान्तर वाले लेंस को वस्तु की ओर रखा जाता है, जिसे अभिदृश्यक लेंस (Objective Lens) कहते है। कम फोकासान्तर वाले लेंस के समीप आंख रखकर वस्तु के प्रतिबिंब को देखा जाता है। इसे नेत्रिका लेंस (Eye Lens) कहते हैं। दोनों नलियाँ एवं दोनों लेंस समाक्षीय होते है। इसका समायोजन दो प्रकार से किया जाता है—

(i) अनंत के लिए समायोजन, इस समायोजन में अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है, जो काफी आवर्धित होता है। इस तरह समायोजन करने की क्रिया को अनन्त के लिए फोकस (Focussing for infinity) करना कहते हैं।

(ii) स्पष्ट दर्शन की न्यूनतम दूरी के लिए समायोजन, इस समायोजन में अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि के न्यूनतम दूरी पर बनता है, जो वस्तु की अपेक्षा उल्टा, आवर्धित तथा स्पष्ट होता है। इस तरह समायोजन करने की क्रिया को सामान्य दृष्टि के लिए फोकस (Focussing for normal vision) करना कहते हैं।

पार्थिव दूरबीन Terresterial Telescope

खगोलीय दूरबीन में अन्तिम प्रतिबिम्ब वस्तु की अपेक्षा उल्टा होता है। इसीलिए यह दूरबीन पार्थिव वस्तु को देखने के लिए उपयुक्त नहीं होता है। यदि दूरबीन में प्रतिबिम्ब को वस्तुओं की अपेक्षा सीधा कर देने की समुचित व्यवस्था कर दी जाय तो वह पार्थिव दूरबीन कहलाता है। इस दूरबीन की सहायता से पृथ्वी पर स्थित दूर की वस्तुओं को आसानी से देखा जा सकता है।

इसमें प्रतिबिम्ब सीधा तथा काल्पनिक बनता है। इसका समायोजन भी दोनों प्रकार से किया है। इसमें तीन उत्तल लेंस लगे होते हैं। अभिदृश्यक तथा नेत्रिका के बीच एक अधिक फोकस-दूरी का उत्तल लेंस लगा रहता है, जिसे प्रतिबिम्ब को सीधा करने वाला लेंस कहा जाता है।

गैलीलियन दूरबीन Galilean Telescope

इसका निर्माण गैलीलियो ने सन् 1609 ई० में किया था। इसमें प्रतिबिम्ब हमेशा वस्तु के सापेक्ष सीधा बनता है। इसमें अभिदृश्यक के रूप में बड़े फोकसान्तर तथा बड़े घेरा का उत्तल लेंस तथा नेत्रिका के रूप में छोटे फोकसान्तर एवं छोटे घेरा का अवतल लेंस लगा होता है। इसका भी समायोजन दोनों ही प्रकार से किया जाता है।

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