भारत का संविधान – भाग 21 अस्थायी, संक्रमण कालीन और विशेष उपबंध

भाग 21

[1][अस्थायी, संक्रमण कालीन और विशेष उपबंध]

369. राज्य सूची के कुछ विषयों के संबंध में विधि बनाने की संसद् की इस प्रकार अस्थायी शक्ति मानो वे समवर्ती सूची के विषय हों–इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद् को इस संविधान के प्रारंभ से पांच वर्ष की अवधि के दौरान निम्नलिखित विषयों के बारे में विधि बनाने की इस प्रकार शक्ति होगी मानो वे विषय समवर्ती सूची में प्रगणित हों, अर्थात् :–

(क) सूती और ऊनी वस्त्रों, कच्ची कपास (जिसके अंतर्गत ओटी हुई रुई और बिना ओटी रुई या कपास है), बिनौले, कागज (जिसके अंतर्गत अखबारी कागज है), खाद्य फदार्थ (जिसके अंतर्गत खाद्य तिलहन और तेल हैं), पशुओं के चारे (जिसके अंतर्गत खली और अन्य सारकॄत चारे हैं), कोयले (जिसके अंतर्गत कोक और कोयले के व्युत्पाद हैं), लोहे, इस्पात और अभ्रक का किसी राज्य के भीतर व्यापार और वाणिज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और वितरण;

(ख) खंड (क) में वार्णित विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराध, उन विषयों में से किसी के संबंध में उच्चतम न्यायालय से भिन्न सभी न्यायालयों की अधिकारिता और शक्तियां, तथा उन विषयों में से किसी के संबंध में फीस किंतु  इसके अंतर्गत किसी न्यायालय में ली जाने वाली फीस नहीं है, किंतु  संसद् द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद् इस अनुच्छेद के उपबंधों के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, उक्त अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं  रहेगी जिन्हें उस अवधि की समाप्ति के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है।

[2][370. जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध–(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–

(क) अनुच्छेद 238 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू नहीं होंगे;


(ख) उक्त राज्य के लिए विधि बनाने की संसद् की शक्ति,–

(त्) संघ सूची और समवर्ती सूची के उन विषयों तक सीमित होगी जिनको राष्ट्रपति, उस राज्य

की सरकार से परामर्श करके, उन विषयों के तत्स्थानी विषय घोषित कर दे जो भारत डोमिनियन में उस राज्य के अधिमिलन को शासित करने वाले अधिमिलन पत्र में ऐसे विषयों के रूप में विनिर्दिष्ट हैं जिनके संबंध में डोमिनियन विधान-मंडल उस राज्य के लिए विधि बना सकता है; और

(त्त्) उक्त सूचियों के उन अन्य विषयों तक सीमित होगी जो राष्ट्रपति, उस राज्य की सरकार की सहमति से, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।

स्पष्टीकरण–इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, उस राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे राष्ट्रपति से, जम्मू-कश्मीर के महाराजा की 5 मार्च, 1948 की उद्घोषणाके अधीन तत्समय पदस्थ मंत्रि-परिषद् की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा के रूप में तत्समय मान्यता प्राप्त थी;

(ग) अनुच्छेद 1 और इस अनुच्छेद के उपबंध  उस राज्य के संबंध में लागू होंगे ;

(घ) इस संविधान के ऐसे  अन्य उपबंध  ऐसे  अपवादों  और उपन्तारणों  के अधीन रहते हुए, जो राष्ट्रपति

आदेश द्वारा[3] विनिर्दिष्ट  करे, उस राज्य के संबंध में लागू होंगे:

परंतु  ऐसा  कोई आदेश जो उपखंड (ख) के पैरा (त्) में निर्दिष्ट राज्य के अधिमिलन पत्र में विनिर्दिष्ट विषयों से संबंधित है, उस राज्य की सरकार से परामर्श  करके ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं:

परंतु यह और कि ऐसा कोई आदेश जो अंतिम पूर्ववर्ती परंतुक में निर्दिष्ट विषयों से भिन्न विषयों से संबंधित है, उस सरकार की सहमति से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

(2) यदि खंड (1) के उपखंड (ख) के पैरा (त्त्) में या उस खंड के उपखंड (घ) के दूसरे परंतुक में निर्दिष्ट उस राज्य की सरकार की सहमति, उस राज्य का संविधान बनाने के प्रयोजन के लिए  संविधान सभा के बुलाऋ जाने से पहले दी जाए तो उसे ऐसी  संविधान सभा के समक्ष ऐसे विनिश्चय के लिए रखा जाएगा जो वह उस पर करे।

(3) इस अनुच्छेद के पूर्व गामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपन्तारणों  सहित ही और ऐसी तारीख से, प्रवर्तन में रहेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे:

परंतु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले खंड (2) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी।

[4][371. [5]***महाराष्ट्रऔर गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष उपबंध— [6]****

(2) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, [7][महाराष्ट्र या गुजरात राज्य] के संबंध में किए गए आदेश द्वारा:–

(क) यथास्थिति, विदर्भ, मराठवाड़ा [8][और शेष महाराष्ट्रया] सौराष्ट्र, कच्छ और शेष गुजरात के लिए पृथक् विकास बोर्डों की स्थापना  के लिए, इस उपबंध सहित कि इन बोर्डों में से प्रत्येक के कार्यकरण पर एक प्रतिवेदन राज्य विधान सभा के समक्ष प्रतिवर्ष रखा जाएगा,

(ख) समस्त राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए , उक्त क्षेत्रों के विकास व्यय  के लिए निधियों के साम्यापूर्ण आबंटन के लिए, और

(ग) समस्त राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उक्त सभी क्षेत्रों के संबंध में, तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त सुविधाओं की और राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन सेवाओं में नियोजन के लिए पर्याप्त अवसरों की व्यवस्था करने वाली साम्यापूर्ण व्यवस्था करने के लिए,

राज्यपाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिए  उपबंध कर सकेगा।

[9][371क. नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध–(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–

(क) निम्नलिखित के संबंध में संसद् का कोई अधिनियम नागालैंड राज्य को तब तक लागू नहीं  होगा जब तक नागालैंड की विधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा विनिश्चय नहीं करती है, अर्थात् :–

(त्) नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएं;

(त्त्) नागा रुढि़जन्य विधि और प्रक्रिया  ;

(त्त्त्) सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय नागा रुढि़जन्य विधि के अनुसार होने हैं;

(त्ध्) भूमि और उसके संपत्ति स्रोतों का स्वामित्व और अंतरण;

(ख) नागालैंड के राज्यपाल का नागालैंड राज्य में विधि और व्यवस्था के संबध में तब तक विशेष उत्तरदायित्व रहेगा जब तक उस राज्य के निर्माण के ठीक पहले नागा पहाड़ी त्युएनसांग क्षेत्र में विद्यमान आंतरिक अशांति, उसकी राय में, उसमें या उसके किसी भाग में बनी रहती है और राज्यपाल, उस संबंध में अपने कॄत्यों का निर्वहन करने में की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग, मंत्रि-परिषद् से परामर्श करने के पश्चात् करेगा:

परंतु यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई मामला ऐसा मामला है या नहीं जिसके संबंध में राज्यपाल से इस उपखंड के अधीन अपेक्षा  की गई है कि वह अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेक से किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने  व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करना चाहिए था या नहीं:

परंतु यह और कि यदि राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि अब यह आवश्यक नहीं है कि नागालैंड राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व रहे तो वह, आदेश द्वारा, निदेश दे सकेगा कि राज्यपाल का ऐसा उत्तरदायित्व उस तारीख से नहीं रहेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए;

(ग) अनुदान की किसी मांग के संबंध में अपनी सिफारिश करने में, नागालैंड का राज्यपाल यह सुनिाश्चित करेगा कि किसी विनिर्दिष्ट सेवा या प्रयोजन के लिए भारत की संचित निधि में से भारत सरकार द्वारा दिया गया कोई धन उस सेवा या प्रयोजन से संबंधित अनुदान की मांग में, न कि किसी अन्य मांग में, साम्मिलित किया जाए;

(घ) उस तारीख से जिसे नागालैंड का राज्यपाल इस निमित्त लोक अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, त्युएनसांग जिले के लिए  एक प्रादेशिक परिषद् स्थापित की जाएगी जो पैंतीस सदस्यों से मिलकर बनेगी और राज्यपाल निम्नलिखित बातों का उपबंध  करने के लिए नियम अपने विवेक से बनाएगा, अर्थात्:–

(त्) प्रादेशिक परिषद् की संरचना और वह रीति जिससे प्रादेशिक परिषद् के सदस्य चुने जाएंगे:

परंतु त्युएनसांग जिले का उपायुकक़्त प्रादेशिक परिषद् का पदेन अध्यक्ष होगा और प्रादेशिक परिषद् का उपाध्यक्ष उसके सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित किया जाएगा ;

(त्त्) प्रादेशिक परिषद्  के सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए  अर्हताएं;

(त्त्त्) प्रादेशिक परिषद् के सदस्यों की पदावधि  और उनको दिए जाने वाले वेतन और भत्ते, यदि कोई हों;

(त्ध्) प्रादेशिक परिषद् की प्रक्रिया और कार्य संचालन;

(ध्) प्रादेशिक परिषद् के अधिकारियों और कर्मचारिवॄंद की नियुक्ति और उनकी सेवा की शर्तें; और

(ध्त्) कोई अन्य विषय जिसके संबंध में प्रादेशिक परिषद् के गठन और उसके उचित कार्यकरण के लिए नियम बनाने आवश्यक हैं।

(2) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, नागालैंड राज्य के निर्माण की तारीख से दस वर्ष की अवधि तक या ऐसी  अतिरिक्त अवधि के लिए जिसे राज्यपाल, प्रादेशिक परिषद् की सिफारिश पर, लोक अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट  करे,–

(क) त्युएनसांग जिले का प्रशासन राज्यपाल द्वारा चलाया जाएगा ;

(ख) जहां भारत सरकार द्वारा नागालैंड सरकार को, संपूर्ण नागालैंड राज्यकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई धन दिया जाता है वहां, राज्यपाल अपने विवेक से त्युएनसांग जिले और शेष राज्य के बीच उस धन के साम्यापूर्ण आबंटन के लिए प्रबंध करेगा;

(ग) नागालैंड विधान-मंडल का कोई अधिनियम त्युएनसांग जिले को तब तक लागू नहीं होगा जब तक राज्यपाल, प्रादेशिक परिषद्  की सिफारिश पर, लोक अधिसूचना द्वारा, इस प्रकार निदेश नहीं देता है और ऐसे किसी अधिनियम के संबंध में ऐसा  निदेश देते हुए राज्यपाल यह निदिष्ट कर सकेगा कि वह अधिनियम त्युएनसांग जिले या उसके किसी भाग को लागू होने में ऐसे अपवादों या उपन्तारणों के अधीन रहते हुए, प्रभावी होगा जिन्हें राज्यपाल प्रादेशिक परिषद् की सिफारिश पर विनिर्दिष्ट करे:

परंतु इस उपखंड के अधीन दिया गया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकेगा कि उसका भूतलक्षी प्रभाव हो;

(घ) राज्यपाल त्युएनसांग जिले की शांति, उन्नति औरसुशासन के लिए विनियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए  गए  विनियम उस जिले को तत्समय लागू संसद् के किसी अधिनियम या किसी अन्य विधि का, यदि आवश्यक हो तो भूतलक्षी प्रभाव से निरसन या संशोधन कर सकेंगे;

(ङ) (त्) नागालैंड विधान सभा में त्युएनसांग जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों में से एक सदस्य को राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर त्युएनसांग कार्य मंत्री नियुक्त करेगा और मुख्यमंत्री अपनी सलाह देने में पूर्वोक्त[10] सदस्यों की बहुसंख्या की सिफारिश पर कार्य करेगा;

(त्त्) त्युएनसांग कार्य मंत्री त्युएनसांग जिले से संबंधित सभी विषयों की बाबत कार्य करेगा और उनके संबंध में राज्यपाल  के पास  उसकी सीधी पहुंच होगी किंतु वह उनके संबंध में मुख्यमंत्री को जानकारी देता रहेगा;

(च) इस खंड के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, त्युएनसांग जिले से संबंधित सभी विषयों पर अंतिम विनिश्चय राज्यपाल अपने विवेक से करेगा;

(छ) अनुच्छेद 54 और अनुच्छेद 55 में तथा अनुच्छेद 80 के खंड (4) में राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों के या ऐसे  प्रत्येक सदस्य के प्रति निर्देशों के अंतर्गत इस अनुच्छेद के अधीन स्थापित प्रादेशिक परिषद् द्वारा निर्वाचित नागालैंड विधान सभा के सदस्यों या सदस्य के प्रति निर्देश होंगे;

(ज) अनुच्छेद 170 में–

(त्) खंड (1) नागालैंड विधान सभा के संबंध में इस प्रकार प्रभावी होगा मानो “साठ” शब्द के स्थान पर “छियालीस” शब्द रख दिया गया हो;

(त्त्) उक्त खंड में, उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन के प्रति निर्देश के अंतर्गत इस अनुच्छेद के अधीन स्थापित प्रादेशिक परिषद् के सदस्यों द्वारा निर्वाचन होगा;

(त्त्त्) खंड (2) और खंड (3) में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के प्रति निर्देश से कोहिमा और मोकोकचुंग जिलों में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के प्रति निर्देश अभिप्रेत होंगे।

(3) यदि इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी उपबंध  को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, कोई ऐसी बात (जिसके अंतर्गत किसी अन्य अनुच्छेद का कोई अनुकूलन या उपांतरण है)

कर सकेगा जो उस कठिनाई को दूर करने के प्रयोजन के लिए उसे आवश्यक प्रतीत होती है:

परंतु ऐसा  कोई आदेश नागालैंड राज्यके निर्माण की तारीख से तीन वर्ष की समाप्ति  के पश्चात्  नहीं  किया जाएगा।

स्पष्टीकरण– इस अनुच्छेद में, कोहिमा, मोकोकचुंग और त्युएनसांग जिलों का वही अर्थ है जो नागालैंड राज्य अधिनियम, 1962 में है।]

[11][371ख. असम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध– इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, असम राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा, उस राज्य की विधान सभा की एक समिति के गठन और कॄत्यों के लिए, जो समिति छठी अनुसूची के पैरा 20 से संलग्न सारणी के [12][भाग 1]में विनिर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों से निर्वाचित उस विधान सभा के सदस्यों से और उस विधान सभा के उतने अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगी जितने आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं तथा ऐसी समिति के गठन और उसके उचित कार्यकरण के लिए उस विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों में किए जाने वाले उपन्तारणों  के लिए  उपबंध कर सकेगा।]

[13][371ग. मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष उपबंध– (1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, मणिपुर राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा, उस राज्य की विधान सभा की एक समिति के गठन और कॄत्यों के लिए, जो समिति उस राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित उस विधान सभा के सदस्यों से मिलकर बनेगी, राज्य की सरकार के कामकाज के नियमों में और राज्य की विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों में किए जाने वाले उपन्तारणों के लिए और ऐसी समिति का उचित कार्यकरण सुनिाश्चित करने के उद्देश्य से राज्यपाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिए उपबंध कर सकेगा।

(2) राज्यपाल प्रतिवर्ष या जब कभी राष्ट्रपति ऐसी अपेक्षा करे, मणिपुर राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति  को प्रतिवेदन देगा और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में राज्य को निदेश देने तक होगा।]

स्पष्टीकरण– इस अनुच्छेद में, “पहाड़ी क्षेत्रों” से ऐसे क्षेत्र अभिप्रेत हैं जिन्हें राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, पहाड़ी क्षेत्र घोषित करे।

[14][371घ. आंध्र प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध– (1) राष्ट्रपति, आंध्र प्रदेश राज्य के संबंध में किए गए आदेश द्वारा, संपूर्ण  आंध्र प्रदेश राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उस राज्य के विभिन्न भागों के लोगों के लिए लोक नियोजन के विषय में और शिक्षा के विषय में साम्यापूर्ण अवसरों और सुविधाओं का उपबंध कर सकेगा और राज्य के विभिन्न भागों के लिए  भिन्न-भिन्न उपबंध किए जा सकेंगे।

(2) खंड (1) के अधीन किया गया आदेश विशिष्टतया —

(क) राज्य सरकार से यह अपेक्षा  कर सकेगा कि वह राज्य की सिविल सेवा में पदों के किसी वर्ग या वर्गों का अथवा राज्य के अधीन सिविल पदों  के किसी वर्ग या वर्गों का राज्य के भिन्न भागों के लिए भिन्न स्थानीय काडरों में गठन करे और ऐसे  सिद्धांतों और प्रक्रिया के अनुसार जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे पदों को धारण करने वाले व्यक्तियों का इस प्रकार गठित स्थानीय काडरों में आबंटन करे;

(ख) राज्य के ऐसे भाग या भागों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा जो–

(त्) राज्य सरकार के अधीन किसी स्थानीय काडर में (चाहे उसका गठन इस अनुच्छेद के अधीन आदेश के अनुसरण में या अन्यथा किया गया है) पदों के लिए सीधी भर्ती के लिए,

(त्त्) राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन किसी काडर में पदों के लिए सीधी भर्ती के लिए, और

(त्त्त्) राज्य के भीतर किसी विश्वविद्यालय में या राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी अन्य शिक्षा संस्था में प्रवेश के प्रयोजन के लिए,

स्थानीय क्षेत्र समझे जाएंगे;

(ग) वह विस्तार विनिर्दिष्ट  कर सकेगा जिस तक, वह रीति विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिससे और वे शर्तें विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिनके अधीन, यथास्थिति, ऐसे काडर, विश्वविद्यालय या अन्य शिक्षा संस्था के संबंध में ऐसे अभ्यार्थियों को, जिन्होंने आदेश में विनिर्दिष्ट किसी अवधि के लिए स्थानीय क्षेत्र में निवास या अध्ययन किया है–

(त्) उपखंड (ख) में निर्दिष्ट ऐसे काडर में जो इस निमित्त आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए, पदों  के लिए सीधी भर्ती के विषय में;

(त्त्) उपखंड (ख) में निर्दिष्ट ऐसे विश्वविद्यालय या अन्य शिक्षा संस्था में जो इस निमित्त आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, प्रवेश के विषय में, अधिमान दिया जाएगा या उनके लिए आरक्षण किया जाएगा।

(3)राष्ट्रपति,  आदेश द्वारा, आंध्र प्रदेश राज्य के लिए एक प्रशासनिक अधिकरण के गठन के लिए उपबंध कर सकेगा जो अधिकरण निम्नलिखित विषयों की बाबत ऐसी  अधिकारिता, शक्ति और प्राधिकार का जिसके अंतर्गत वह अधिकारिता, शक्ति  या प्राधिकार है जो संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 के प्रारंभ से ठीक पहले (उच्चतम न्यायालय से भिन्न) किसी न्यायालय द्वारा अथवा किसी अधिकरण या अन्य प्राधिकारी द्वारा प्रयोक्तव्य था प्रयोग करेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट  किया जाए, अर्थात् :–

(क) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे  वर्ग या वर्गों के पदों  पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर जो आदेश में विनिर्दिष्ट  किए जाएं, नियुक्ति, आबंटन या प्रोन्नति;

(ख) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे वर्ग या वर्गों के पदों पर जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, नियुक्त, आबंटितया प्रोन्नत व्यक्तियों की ज्येष्ठता;

(ग) राज्य की सिविल सेवा में ऐसे  वर्ग या वर्गों के पदों  पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे  वर्ग या वर्गों के सिविल पदों पर अथवा राज्य के भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन ऐसे  वर्ग या वर्गों के पदों पर नियुक्त, आबंटित या प्रोन्नत व्यक्तियों की सेवा की ऐसी अन्य शर्तें जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं।

(4) खंड (3) के अधीन किया गया आदेश–

(क) प्रशासनिक अधिकरण को उसकी अधिकारिता के भीतर किसी विषय से संबंधित व्यथाओं के निवारण के लिए ऐसे अभ्यावेदन प्राप्त करने के लिए, जो राष्ट्रपति आदेश में विनिर्दिष्ट करे और उस पर ऐसे आदेश करने के लिए जो वह प्रशासनिक अधिकरण ठीक समझता है, प्राधिकॄत कर सकेगा;

(ख) प्रशासनिक अधिकरण की शक्तियों और प्राधिकारों और प्रक्रिया के संबंध में ऐसे उपबंध (जिनके अंतर्गत प्रशासनिक अधिकरण की अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति के संबंध में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रपति आवश्यक समझे;

(ग) प्रशासनिक अधिकरण को उसकी अधिकारिता के भीतर आने वाले विषयों से संबंधित और उस आदेश के प्रारंभ से ठीक पहले  (उच्चतम न्यायालय से भिन्न) किसी न्यायालय अथवा किसी अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के ऐसे  वर्गों के, जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, अंतरण के लिए उपबंध कर सकेगा;

(घ) ऐसे अनुपूरक, आनुषांगिक और पारिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में और परिसीमा, साक्ष्य के बारे में या तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि को किन्हीं अपवादों या उपन्तारणों  के अधीन रहते हुए लागू करने के लिए उपबंध  हैं, अंतर्विष्ट  कर सकेगा जो राष्ट्रपति आवश्यक समझे।

[15](5) प्रशासनिक अधिकरण का किसी मामले को अंतिम रूप  से निपटाने वाला आदेश, राज्य सरकार द्वारा उसकी पुष्टि किए  जाने पर या आदेश किए जाने की तारीख से तीन मास की समाप्ति पर, इनमें से जो भी पहले हो, प्रभावी हो जाएगा:

परंतु राज्य सरकार, विशेष आदेश द्वारा, जो लिखित रूप में किया जाएगा  और जिसमें उसके कारण विनिर्दिष्ट किए जाएंगे, प्रशासनिक अधिकरण के किसी आदेश को उसके प्रभावी होने के पहले उपांतरित या रद्द कर सकेगी और ऐसे मामले में प्रशासनिक अधिकरणका आदेश, यथास्थिति, ऐसे उपांतरित रूप में ही प्रभावी होगा या वह निष्प्रभाव हो जाएगा।

(6) राज्य सरकार द्वारा खंड (5) के परंतुक के अधीन किया गया प्रत्येक विशेष आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, राज्य विधान-मंडल के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा।

(7) राज्य के उच्च न्यायालय को प्रशासनिक अधिकरण पर अधीक्षण की शक्ति नहीं होगी और (उच्चतम न्यायालय से भिन्न) कोई न्यायालय अथवा कोई अधिकरण, प्रशासनिक अधिकरण की या उसके संबंध में अधिकारिता, शक्ति या प्राधिकार के अधीन किसी विषय की बाबत किसी अधिकारिता, शक्ति या प्राधिकार का प्रयोग नहीं करेगा।

(8) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि प्रशासनिक अधिकरण का निरंतर बने रहना आवश्यक नहीं है तो राष्ट्रपति  आदेश द्वारा प्रशासनिक अधिकरण का उत्सादन कर सकेगा और ऐसे उत्सादन से ठीक पहले अधिकरण के समक्ष लंबित मामलों के अंतरण और निपटारे के लिए ऐसे आदेश में ऐसे उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

(9) किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के होते हुए भी,–

(क) किसी व्यक्ति  की कोई नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण की बाबत जो–

(त्) 1 नवंबर, 1956 से पहले यथा विद्यमान हैदराबाद राज्य की सरकारके या उसके भीतर किसी स्थानीय प्राधिकारी के अधीन उस तारीख से पहले किसी पद पर किया गया था, या

(त्त्) संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 के प्रारंभ से पहले  आंध्र प्रदेश राज्य की सरकार के अधीन या उस राज्य के भीतर किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन किसी पद पर किया गया था, और (ख) उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा या उसके समक्ष की गई किसी कार्रवाई या बात की बाबत,

केवल इस आधार पर कि ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण, ऐसी नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण की बाबत, यथास्थिति, हैदराबाद राज्य के भीतर या आंध्र प्रदेश राज्य के किसी भाग के भीतर निवास के बारे में किसी अपेक्षा का उपबंध करने वाली तत्समय प्रवॄत्त विधि के अनुसार नहीं किया गया था, यह नहीं समझा जाएगा कि वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शून्य रहा था।

(10) इस अनुच्छेद के और राष्ट्रपति  द्वारा इसके अधीन किए गए किसी आदेश के उपबंध इस संविधान के किसी अन्य उपबंध  में या तत्समय प्रवॄत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।

371ङ. आंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना– संसद् विधि द्वारा, आंध्र प्रदेश राज्य में एक विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उपबंध कर सकेगी।]

[16][371च. सिाकिक़्म राज्य के संबंध में विशेष उपबंध– इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–

(क) सिक्किम राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी;

(ख) संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 के प्रारंभ की तारीख से (जिसे इस अनुच्छेद में इसके पश्चात् नियत दिन कहा गया है)–

(त्) सिक्किम की विधान सभा, जो अप्रैल, 1974 में सिक्किम में हुए निर्वाचनों के परिणामस्वरूप उक्त निर्वाचनों में निर्वाचित बत्तीस सदस्यों से (जिन्हें इसमें इसके पश्चात् आसीन सदस्य कहा गया है) मिलकर बनी है,  इस संविधान के अधीन सम्यक् रूप से गठित सिक्किम राज्य की विधान सभा समझी जाएगी;

(त्त्) आसीन सदस्य इस संविधान के अधीन सम्यक् रूप से निर्वाचित सिक्किम राज्य की विधान सभा के सदस्य समझे जाएंगे; और

(त्त्त्) सिक्किम राज्य की उक्त विधान सभा इस संविधान के अधीन राज्यकी विधान सभा की शक्तियों का प्रयोग और कॄत्यों का पालन करेगी;

(ग) खंड (ख) के अधीन सिक्किम राज्य की विधान सभा समझी गईविधान सभा की दशा में, अनुच्छेद 172 के खंड (1) में

[17][पांच वर्ष] की अवधि के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे [18][चार वर्षटकी अवधि के प्रति निर्देश हैं और 2[चार वर्ष] की उक्त अवधि नियत दिन से प्रारंभ हुई समझी जाएगी;

(घ) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्य उपबंध नहीं करती है जब तक सिक्किम राज्य को लोक सभा में एक स्थान आबंटित किया जाएगा और सिक्किम राज्य एक संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र होगा जिसका नाम सिक्किम संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र होगा;

(ङ) नियत दिन को विद्यमान लोक सभा में सिक्किम राज्य का प्रतिनिधि सिक्किम राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा;

(च) संसद्, सिक्किम की जनता के विभिन्न अनुभागों के अधिकारों और हितों की संरक्षा करने के प्रयोजन के लिए सिक्किम राज्य की विधान सभा में उन स्थानों की संख्या के लिए जो ऐसे अनुभागों के अभ्यार्थियों द्वारा भरे जा सकेंगे और ऐसे सभा निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन के लिए, जिनसे केवल ऐसे अनुभागों के अभ्यर्थी ही सिक्किम राज्य की विधान सभा के निर्वाचन के लिए खड़े हो सकेंगे, उपबंध कर सकेगी;

(छ) सिक्किम के राज्यपाल का, शांति के लिए और सिक्किम की जनता के विभिन्न अनुभागों की सामाजिक और आार्थिक उन्नति सुनिाश्चित करने के लिए साम्यापूर्ण व्यवस्था करने के लिए विशेष उत्तरदायित्व होगा और इस खंड के अधीन अपने  विशेष उत्तरदायित्व का निर्वहन करने में सिक्किम का राज्यपाल ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए जो राष्ट्रपति समय-समय पर देना ठीक समझे, अपने विवेक से कार्य करेगा;

(ज) सभी संपत्ति और आस्तियां (चाहे वे सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्रों के भीतर हों या बाहर) जो नियत दिन से ठीक पहले सिक्किम सरकार में या सिक्किम सरकार के प्रयोजनों के लिए किसी अन्य प्राधिकारी या व्यक्ति में निहित थीं, नियत दिन से सिक्किम राज्य की सरकार में निहित हो जाएंगी;

(झ) सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्रों में नियत दिन से ठीक पहले उच्च न्यायालय के रूप में कार्यरत उच्च न्यायालय नियत दिन को और से सिक्किम राज्य का उच्च न्यायालय समझा जाएगा;

(ञ) सिक्किम राज्य के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र सिविल, दांडिक और राजस्व अधिकारिता वाले सभी न्यायालय तथा सभी न्यायिक, कार्यपालक और अनुसचिवीय प्राधिकारी और अधिकारी नियत दिन को और से अपने-अपने कॄत्यों को इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, करते रहेंगे;

(ट) सिक्किम राज्य में समाविष्ट राज्यक्षेत्र में या उसके किसी भाग में नियत दिन से ठीक पहले प्रवॄत्त सभी विधियां वहां तब तक प्रवॄत्त बनी रहेंगी जब तक किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उनका संशोधन या निरसन नहीं कर दिया जाता है;

(ठ) सिक्किम राज्य के प्रशासन के संबंध में किसी ऐसी  विधि को, जो खंड (ट) में निर्दिष्ट है, लागू किए जाने को सुकर बनाने के प्रयोजन के लिए  और किसी ऐसी  विधि के उपबंधों को इस संविधानके उपबंधों के अनुरूप बनाने के प्रयोजन के लिए  राष्ट्रपति, नियत दिन से दो वर्ष के भीतर, आदेश द्वारा, ऐसी विधि में निरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनुकूलन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और तब प्रत्येक ऐसी विधि इस प्रकार किए गए अनुकूलनों और उपान्तारणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और किसी ऐसे अनुकूलन या उपांतरण को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा;

(ड) उच्चतम न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय को, सिक्किम के संबंध में किसी ऐसी संधि, करार, वचनबंध या वैसी ही अन्य लिखत से, जो नियत दिन से पहले की गई थी या निष्पादित की गई थी और जिसमें भारत सरकार या उसकी पूर्ववर्ती कोई सरकार पक्षकार थी, उत्पन्न किसी विवाद या अन्य विषय के संबंध में अधिकारिता नहीं होगी, किंतु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं  लगाया जाएगा कि वह अनुच्छेद 143 के उपबंधों का अल्फीकरण करती है;

(ढ) राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, किसी ऐसी अधिनियमिति का विस्तार, जो उस अधिसूचना की तारीख को भारत के किसी राज्य में प्रवॄत्त है, ऐसे निर्बन्धनों या उपन्तारणों सहित, जो वह ठीक समझता है, सिक्किम राज्य पर कर सकेगा;

(ण) यदि इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी उपबंध को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रपति , आदेश[19] द्वारा, कोई ऐसी बात (जिसके अंतर्गत किसी अन्य अनुच्छेद का कोई अनुकूलन या उपांतरण है) कर सकेगा जो उस कठिनाई को दूर करने के प्रयोजन के लिए उसे आवश्यक प्रतीत होती है:

परंतु ऐसा कोई आदेश नियत दिन से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा;

(त) सिक्किम राज्य या उसमें समाविष्ट राज्यक्षेत्रों में या उनके संबंध में, नियत दिन को प्रारंभ होने वाली और उस तारीख से जिसको संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त करता है, ठीक पहले समाप्त होने वाली अवधि के दौरान की गई सभी बातें और कार्रवाइयां, जहां तक वे संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 द्वारा यथासंशोधित इस संविधान के उपबंधों के अनुरूप हैं, सभी प्रयोजनों के लिए इस प्रकार यथासंशोधित इस संविधान के अधीन विधिमान्यतः की गई समझी जाएंगी ।

[20][371छ. मिजोरम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध —इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–

(क) निम्नलिखित के संबंध में संसद् का कोई अधिनियम मिजोरम राज्य को तब तक लागू नहीं होगा जब तक मिजोरम राज्य की विधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा विनिश्चय नहीं करती है, अर्थात् :–

(त्) मिजो लोगों की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएं;

(त्त्) मिजो रुढि़जन्य विधि और प्रक्रिया;

(त्त्त्) सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय मिजो रुढि़जन्य विधि के अनुसार होने हैं;

(त्ध्) भूमि का स्वामित्व और अंतरण:

परंतु  इस खंड की कोई बात, संविधान (तिरफनवां संशोधन) अधिनियम, 1986 के प्रारंभ से ठीक पहले मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र में प्रवॄत्त किसी केंद्रीय अधिनियम को लागू नहीं  होगी;

(ख) मिजोरम राज्य की विधान सभा कम से कम चालीस सदस्यों से मिलकर बनेगी ।]

[21][371ज. अरुणाचल प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध– इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–

(क) अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल का अरुणाचल प्रदेश राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में विशेष उत्तरदायित्व रहेगा और राज्यपाल, उस संबंध में अपने कॄत्यों का निर्वहन करने में की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग मंत्रि-परिषद् से परामर्श करने के पश्चात् करेगा:

परंतु यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई मामला ऐसा  मामला है या नहीं जिसके संबंध में राज्यपाल से इस खंड के अधीन अपेक्षा  की गई है कि वह अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करे तो राज्यपाल का अपने  विवेक से किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल  द्वारा की गई किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने  व्यक्ति गत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करना चाहिए था या नहीं:

परंतु यह और कि यदि राज्यपाल  से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि अब यह आवश्यक नहीं है कि अरुणाचल प्रदेश राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व रहे तो वह, आदेश द्वारा, निदेश दे सकेगा कि राज्यपाल का ऐसा उत्तरदायित्व उस तारीख से नहीं रहेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए;

(ख) अरुणाचल प्रदेश राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी।]

[22][371झ. गोवा राज्य के संबंध में विशेष उपबंध– इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, गोवा राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी।

372. विद्यमान विधियों का प्रवॄत्त बने रहना और उनका अनुकूलन– (1) अनुच्छेद 395 में निर्दिष्ट अधिनियमितियों का इस संविधान द्वारा निरसन होने पर भी, किंतु इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में सभी प्रवॄत्त विधि वहां तब तक प्रवॄत्त बनी रहेगी जब तक किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे परिवर्तित या निरसित या संशोधित नहीं कर दिया जाता है।

(2) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी प्रवॄत्त विधि के उपबंधों को इस संविधान के उपबंधों के अनुरूप बनाने के प्रयोजन के लिए  राष्ट्रपति, आदेश[23] द्वारा, ऐसी विधि में निरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनुकूलन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और यह उपबंध कर सकेगा कि वह विधि ऐसी तारीख से जो आदेश में विनिर्दिष्ट  की जाए, इस प्रकार किए गए अनुकूलनों और उपन्तारणों  के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और किसी ऐसे अनुकूलन या उपांतरण को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।

(3) खंड (2) की कोई बात–

(क) राष्ट्रपति को इस संविधान के प्रारंभ से [24][तीन वर्ष] की समाप्ति के पश्चात् किसी विधि का कोई अनुकूलन या उपांतरण करने के लिए सशक्त करने वाली, या

(ख) किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी को, राष्ट्रपति द्वारा उक्त खंड के अधीन अनुकूलित या उपांतरित किसी विधि का निरसन या संशोधन करने से रोकने वाली, नहीं समझी जाएगी।

स्पष्टीकरण 1–इस अनुच्छेद में, “प्रवॄत्त विधि” पद के अंतर्गत ऐसी  विधि है जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित की गई है या बनाई गई है और पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, भले ही वह या उसके कोई भाग तब पूर्णतः या किन्हीं विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में न हों।

स्पष्टीकरण 2–भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित की गई या बनाई गई ऐसी  विधि का, जिसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले राज्यक्षेत्रातीत प्रभाव था और भारत के राज्यक्षेत्र में भी प्रभाव था, यथापूर्वोक्त किन्हीं  अनुकूलनों और उपन्तारणों  के अधीन रहते हुए, ऐसा राज्यक्षेत्रातीत प्रभाव बना रहेगा।

स्पष्टीकरण 3–इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी अस्थायी प्रवॄत्त विधि को, उसकी समाप्ति के लिए नियत तारीख से, या उस तारीख से जिसको, यदि वह संविधान प्रवॄत्त न हुआ होता तो, वह समाप्त हो जाती, आगे प्रवॄत्त बनाए रखती है।

स्पष्टीकरण 4–किसी प्रांत के राज्यपाल द्वारा भारत शासन अधिनियम, 1935 की धारा 88 के अधीन प्रख्याफित और इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रवॄत्त अध्यादेश, यदि तत्स्थानी राज्य के राज्यपाल द्वारा पहले ही वापस नहीं ले लिया गया है तो, ऐसे  प्रारंभ के पश्चात्  अनुच्छेद 382 के खंड (1) के अधीन कार्यरत उस राज्य की विधान सभा के प्रथम अधिवेशन से छह सप्ताह की समाप्ति  पर प्रवर्तन में नहीं  रहेगा और इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ नहीं  लगाया जाएगा कि वह ऐसे  किसी अध्यादेश को उक्त अवधि से आगे प्रवॄत्त बनाए रखती है।

[25][372क. विधियों का अनुकूलन करने की राष्ट्रपति की शक्ति–(1) संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 के प्रारंभ से ठीक पहले भारत में या उसके किसी भाग में प्रवॄत्त किसी विधि के उपबंधों को उस अधिनियम द्वारा यथासंशोधित इस संविधान के उपबंधों के अनुरूप बनाने के प्रयोजनों के लिए, राष्ट्रपति, 1 नवंबर, 1957 से पहले किए गए आदेश[26] द्वारा, ऐसी विधि में निरसन के रूप में या संशोधन के रूप में ऐसे अनुकूलन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन हों और यह उपबंध  कर सकेगा कि वह विधि ऐसी तारीख से जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, इस प्रकार किए गए अनुकूलनों और उपन्तारणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और किसी ऐसे अनुकूलन या उपांतरण को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।

(2) खंड (1) की कोई बात, किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी को, राष्ट्रपति द्वारा उक्त खंड के अधीन अनुकूलित या उपांतरित किसी विधि का निरसन या संशोधन करने से रोकने वाली नहीं  समझी जाएगी।]

373. निवारक निरोध में रखे गए व्यक्तियों के संबंध में कुछ दशाओं में आदेश करने की राष्ट्रपति की शक्ति–जब तक अनुच्छेद 22 के खंड (7) के अधीन संसद् उपबंध नहीं करती है या जब तक इस संविधान के प्रारंभ से एक वर्ष समाप्त नहीं हो जाता है, इनमें से जो भी पहले हो, तब तक उक्त अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो उसके खंड (4) और खंड (7) में संसद् के प्रति किसी निर्देश के स्थान पर राष्ट्रपति के प्रति निर्देश और उन खंडों में संसद् द्वारा बनाई गई विधि के प्रति निर्देश के स्थान पर राष्ट्रपति द्वारा किए गए आदेश के प्रति निर्देश रख दिया गया हो।

374. फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों और फेडरल न्यायालय में या सपरिषद् हिज मजेस्टी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के बारे में उपबंध–(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले फेडरल न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो, ऐसे  प्रारंभ पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और तब ऐसे वेतनों और भत्तों तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों के हकदार होंगे जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के संबंध में अनुच्छेद 125 के अधीन उपबंधित हैं।

(2) इस संविधान के प्रारंभ पर फेडरल न्यायालय में लंबित सभी सिविल या दांडिक वाद, अपील और कार्यवाहियां, उच्चतम न्यायालय को अंतरित हो जाएं गी और उच्चतम न्यायालय को उनको सुनने और उनका अवधारण करने की अधिकारिता होगी और फेडरल न्यायालय द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले  सुनाए गए या दिए गए निर्णयों और आदेशों का वही बल और प्रभाव होगा मानो वे उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनाए गए हों या दिए गए हों।

(3) इस संविधान की कोई बात भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश की या उसके संबंध में अपीलों और याचिकाओं को निपटाने के लिए  सपरिषद हिज मजेस्टी द्वारा अधिकारिता के प्रयोग को वहां तक अविधिमान्य नहीं करेगी जहां तक ऐसी अधिकारिता का प्रयोग विधि द्वारा प्राधिकॄत है और ऐसी अपील या याचिका पर इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् किया गया सपरिषद् हिज मजेस्टी का कोई आदेश सभी प्रयोजनों के लिए ऐसे प्रभावी होगा मानो वह उच्चतम न्यायालय द्वारा उस अधिकारिता के प्रयोग में जो ऐसे न्यायालय को इस संविधान द्वारा प्रदान की गई है, किया गया कोई आदेश या डिक्री हो।

(4) इस संविधान के प्रारंभ से ही पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी राज्य में प्रिवी कौंसिल के रूप में कार्यरत प्राधिकारी की उस राज्य के भीतर किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिव्री या आदेश की या उसके संबंध में अपीलों और याचिकाओं को ग्रहण करने या निपटाने की अधिकारिता समाप्त हो जाएगी और उक्त प्राधिकारी के समक्ष ऐसे प्रारंभ पर लंबित सभी अपीलें और अन्य कार्यवाहियां उच्चतम न्यायालय को अंतरित कर दी जाएंगी और उसके द्वारा निपटाई जाएंगी।

(5) इस अनुच्छेद के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए संसद् विधि द्वारा और उपबंध कर सकेगी।

375. संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्यायालयों, प्राधिकारियों और अधिकारियों का कॄत्य करते रहना–भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र सिविल, दांडिक और राजस्व अधिकारिता वाले सभी न्यायालय और सभी न्यायिक, कार्यपालक और अनुसचिवीय प्राधिकारी और अधिकारी अपने-अपने कॄत्यों को, इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, करते रहेंगे।

376. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध–(1) अनुच्छेद 217 के खंड (2) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी प्रांत के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वालेन्यायाधीश, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो, ऐसे प्रारंभ पर तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और तब ऐसे वेतनों और भत्तों तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों के हकदर होंगे जो ऐसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संबंध में अनुच्छेद 221 के अधीन उपबंधित हैं। [27][ऐसा न्यायाधीश इस बात के होते हुए भी कि वह भारत का नागरिक नहीं है,ऐसे उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूार्ति अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूार्ति या अन्य न्यायाधीश नियुक्त होने का पात्र होगा।]

(2) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो, ऐसे प्रारंभ पर इस प्रकार विनिर्दिष्ट राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे औरअनुच्छेद 217 के खंड (1) और खंड (2) में किसी बात के होते हुए  भी, किंतु  उस अनुच्छेद के खंड (1) के परंतु क के अधीन रहते हुए, ऐसी अवधि की समाप्ति तक पद धारण करते रहेंगे जा राष्ट्रपति  आदेश द्वारा अवधारित करे।

(3) इस अनुच्छेद में, “न्यायाधीश” पद के अंतर्गत कार्यकारी न्यायाधीश या अपर न्यायाधीश नहीं  है।

377. भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध —इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले पद धारण करने वाला भारत का महालेखापरीक्षक, यदि वह अन्यथा निर्वाचन न कर चुका हो तो, ऐसे प्रारंभ पर भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक हो जाएगा  और तब ऐसे वेतनों तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का हकदार होगा जो भारतके नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के संबंध में अनुच्छेद 148 के खंड (3) के अधीन उपबंधित है और अपनी उस पदावधि की समाप्ति तक पद धारण करने का हकदार होगा जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले उसे लागू होने वाले उपबंधों के अधीन अवधारित की जाए।

378. लोक सेवा आयोगों के बारे में उपबंध–(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन के लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो ऐसे प्रारंभ पर संघ के लोक सेवा आयोग के सदस्य हो जाएंगे और अनुच्छेद 316 के खंड (1) औरखंड (2) में किसी बात के होते हुए भी, किंतु उस अनुच्छेद के खंड (2) के परंतु क के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदावधि की समाप्ति तक पद धारण करते रहेंगे जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसे सदस्यों को लागू नियमों के अधीन अवधारित है।

(2) इस सविधान के प्रारंभ से ठीक पहले  किसी प्रांत के लोक सेवा आयोग के या प्रांतों के समूह की आवश्यकताओं की पूर्ति  करने वाले किसी लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, यदि वे अन्यथा निर्वाचन न कर चुके हों तो, ऐसे प्रारंभ पर, यथास्थिति, तत्स्थानी राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्य या तत्स्थानी राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य हो जाएंगे और अनुच्छेद 316 के खंड

(1) और खंड (2) में किसी बात के होते हुए  भी, किंतु  उस अनुच्छेद के खंड (2) के परंतु क के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदावधि की समाप्ति तक पद धारण करते रहेंगे जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसे सदस्यों को लागू नियमों के अधीन अवधारित है।

[28][378क.आंध्र प्रदेश विधान सभा की अवधि के बारे में विशेष उपबंध–अनुच्छेद 172 में किसी बात के होते हुए भी, राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 28 और धारा 29 के उपबंधों के अधीन गठित आंध्र प्रदेश राज्य की विधान सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, उक्त धारा 29 में निर्दिष्ट तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं  और उक्त अवधि की समाप्ति  का फरिणाम उस विधान सभा का विघटन होगा।]

379-391. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरसित।

392. कठिनाइयों को दूर करने की राष्ट्रपति की शक्ति–(1) राष्ट्रपति किन्हीं ऐसी कठिनाइयों को, जो विशिष्टतया भारत शासन अधिनियम, 1935 के उपबंधों से इस संविधान के उपबंधों को संक्रमण के संबंध में हों, दूर करने के प्रयोजन के लिए आदेश द्वारा निदेश दे सकेगा कि यह संविधान उस आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान उपांतरण, परिवर्धन या लोप के रूप में ऐसे अनुकूलनों के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह आवश्यक या समीचीन समझे:

परंतु ऐसा कोई आदेश भाग 5 के अध्याय 2 के अधीन सम्यक् रूप से गठित संसद् के प्रथम अधिवेशन के पश्चात् नहीं किया जाएगा।

(2) खंड (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश संसद् के समक्ष रखा जाएगा।

(3) इस अनुच्छेद, अनुच्छेद 324, अनुच्छेद 367 के खंड (3) और अनुच्छेद 391 द्वारा राष्ट्रपति को प्रदत्त शक्तियां, इस संविधान के प्रारंभ से पहले, भारत डोमिनियन के गवर्नर जनरल द्वारा प्रयोक्तव्य होंगी।

 


[1] संविधान (तेरहवां संशोधन) अधिनियम, 1962 की धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) “अस्थायी तथा अंतःकालीन उपबंध”  के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[2] इस अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त शाकिक़्तयों का प्रयोग करते हुऋ राष्ट्रपति ने जम्मू और कश्मीर राज्य की संविधान सभा की सिफारिश पर यह घोषणा की कि 17 नवंबर, 1952 से उक्त अनुच्छेद 370 इस उपांतरण के साथ प्रवर्तनीय होगा कि उसके खंड (1) में स्पष्टीकरण के स्थान पर

निम्नलिखित स्पष्टीकरण रख दिया गया है, अर्थात् —

स्पष्टीकरण– इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे राज्य की विधान सभा की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने राज्य की तत्समय पदारूढ़ मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू-कश्मीर के सदरे रियासत* के रूप में मान्यता प्रदान की हो ।”

*अब “राज्यपाल”  (विधि मंत्रालय आदेश सं. आ. 44, दिनांक 15 नवंबर, 1952)।

[3] समय-समय पर यथासंशोधित संविधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदेश, 1954 (सं. आ. 48) परिशिष्ट 1 में देखिए।

[4] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 22 द्वारा अनुच्छेद 371 के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[5] संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) “आंध्र प्रदेश,” शब्दों का लोप किया गया।

[6] संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) खंड (1) का लोप किया गया।

[7] मुंबई पुनर्गठन अधिनियम, 1960 (1960 का 11) की धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई राज्य” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[8] मुंबई पुनर्गठन अधिनियम, 1960 (1960 का 11) की धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “शेष महाराष्ट्र” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[9] संविधान (तेरहवां संशोधन) अधिनियम, 1962 की धारा द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्थापित।

[10] संविधान (कठिनाइयों का निराकरण) आदेश सं. 10 के फैरा 2 में यह उपबंध है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 371क इस प्रकार प्रभावी होगा मानो उसके खंड (2) के उफखंड (ङ) के फैरा (त्)  में निम्नलिखित परन्तुक (1-12-1963) से जोड़ दिया गया हो, अर्थात्:–

“परन्तु राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर, किसी व्यक्ति को त्युएनसांग कार्य मंत्री के रूप में ऐसे समय तक के लिए नियुक्त कर सकेगा, जब तक कि नागालैंड की विधान सभा में त्युएनसांग जिले के लिए, आबंटित स्थानों को भरने के लिए विधि के अनुसार व्यक्तियों को चुन नहीं लिया जाता है”।

[11] संविधान (बाईसवां संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 4 द्वारा अंतःस्थापित।

[12] पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[13] संविधान (सत्ताईसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 5 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्थापित।

[14] संविधान (बत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 3 द्वारा (1-7-1974 से) अंतःस्थापित।

[15] उच्चतम न्यायालय ने पी. सांबमूार्ति और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और ऋक अन्य 1987 (1) एस.सी.सी.पृ. 362 में अनुच्छेद 371घ के खंड (5) और उसके परन्तुक को असंवैधानिक और शून्य घोषित किया।

[16] संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 3 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्थापित ।

[17] संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) “छह वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वर्ष” मूल शब्दों के स्थान पर “छह वर्ष” शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।

[18]  संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) “पांच वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “चार वर्ष” मूल शब्दों के स्थान पर “पांच वर्ष” शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।

[19] संविधान (कठिनाइयों का निराकरण) आदेश सं0 11 (सं0 आ0 99) देखिए।

[20] संविधान (तिरपनवां संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्थापित।

[21] संविधान (पचफनवां संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्थापित।

[22] संविधान (छप्पनवां संशोधन) अधिनियम, 1987 की धारा 2 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्थापित।

[23] देखिए, अधिसूचना सं0 का0नि0आ0 15, तारीख 5 जून 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग ।।, अनुभाग 3, पृ0 51 ; सं0

का0नि0आ0 870, तारीख 4 नवंबर, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग ।।, अनुभाग 3, पृ0 903; अधिसूचना सं0 का0नि0आ0

508, तारीख 4 अप्रैल, 1951, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग ।।, अनुभाग 3, पृ0 287; अधिसूचना सं0 का0नि0आ0 1140-ख,

तारीख 2 जुलाई, 1952, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग ।।, अनुभाग 3, पृ0 616/I; और त्रावणकोर-कोचीन भूमि अर्जन विधि

अनुकूलन आदेश, 1952, तारीख 20 नवंबर, 1952, भारत का राजफत्र, असाधारण, भाग ।।, अनुभाग 3, पृ0 923 द्वारा यथासंशोधित विधि

अनुकूलन आदेश, 1950, तारीख 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृ0 449।

[24] संविधान (फहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 12 द्वारा “दो वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[25] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 23 द्वारा अंतःस्थापित।

[26] देखिए 1956 और 1957 के विधि अनुकूलन आदेश।

[27] संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 13 द्वारा जोडा गया।

[28] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 24 द्वारा अंतःस्थापित।

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