धात्विक खनिज: लौह वर्ग Metallic Minerals: Iron Group

लौह अयस्क

भारत में लौह-अयस्क मुख्यतः प्राचीन धारवाड़ चट्टानों में मिलता है। लौह-अयस्क की खानें कर्नाटक की बाबाबूदन पहाड़ियों से लेकर मध्य प्रदेश और झारखंड-ओडीशा की किरीबुरू पहाड़ियों तक फैली हैं। राजस्थान के अरावली पर्वतमाला में भी लौह-अयस्क का भण्डार है। कुडप्पा और गोंडवाना आदि चट्टानों में भी लौह-अयस्क के भण्डार हैं।

भारत में 14,630 मिलियन टन हेमाटाइट के संसाधन हैं जिनमें 13916 मिलियन टन (95. प्रतिशत) संसाधन मुख्यतः ओडीशा, झारखंड, कर्नाटक एवं गोवा में वितरित हैं। उच्च श्रेणी का संसाधन अत्यंत सीमित और मुख्यतः छत्तीसगढ़ के बेलाडिला क्षेत्र में संरक्षित है और कुछ मात्रा में कर्नाटक के बेलारी होसपेट क्षेत्र और झारखंड तथा ओडीशा के बड़ा जामदा क्षेत्र में है। मेग्नेटाइट संसाधन 10,619 मिलियन टन है जिनमें से 59 मिलियन टन संरक्षित भाग मुख्यतः गोवा, राजस्थान एवं झारखंड में स्थित है, शेष 10,560 मिलियन टन (99 प्रतिशत) मेग्नेटाइट संसाधन शेष संसाधन वर्ग में है जो मुख्यतः कर्नाटक (74 प्रतिशत) एवं आंध्र प्रदेश (14 प्रतिशत) में है।

ओडीशा भारत का प्रमुख लौह अयस्क राज्य है। इस राज्य में क्योंझर, बोनाई और मयूरभंज जिले प्रमुख लौह-अयस्क उत्पादक क्षेत्र हैं। मयूरभंज से देश का लगभग 20 प्रतिशत लोहा प्राप्त होता है। गुरुमहासिनी, बादाम पहाड़ और सुलेपत मयूरभंज-स्थित प्रमुख उत्पादन केंद्र हैं।

बोनाई-स्थित किरीबुरू तथा समीपवर्ती बरसुआ भी महत्वपूर्ण लौह-अयस्क उत्पादक केंद्र हैं।

झारखंड से अब 18 प्रतिशत लौह अयस्क प्राप्त किया जाता है। झारखंड से प्राप्त होने वाला अधिकांश लोहा हेमेटाइट प्रकार का है। झारखंड का सिंहभूम जिला लौह-अयस्क के उत्पादन के लिए विश्व-विख्यात है। नोआमुंडो, गुआ और जामदा इसके प्रमुख लौह-अयस्क उत्पादक केंद्र हैं।

छत्तीसगढ़ में दुर्ग और बस्तर जिले प्रमुख लौह-अयस्क उत्पादक क्षेत्र हैं। बिलासपुर (छत्तीसगढ़) व बालाघाट (मध्य प्रदेश) आदि जिलों में भी लौह-अयस्क का उत्पादन होता है। धल्ली-रजहरा और बैलाडिला प्रमुख उत्पादन केंद्र हैं। बैलाडिला क्षेत्र में 30000 लाख टन लौह-अयस्क के भण्डार का अनुमान है, जिसमें लौह-अंश की मात्रा 66 प्रतिशत से भी अधिक है। बैलाडिला में स्थापित कूटने-पीसने वाला संयंत्र सबसे बड़ा है।


कर्नाटक में चिकमंगलूर जिला प्रमुख लौह-अयस्क उत्पादक केंद्र है। यहां बाबाबूदन की पहाड़ियों से लौह-अयस्क प्राप्त किया जाता है। इस क्षेत्र में हेमेटाइट और मेग्नेटाइट दोनों प्रकार के उन्नत किस्म के लौह-अयस्क मिलते हैं। कर्नाटक में कुद्रेमुख क्षेत्र का विकास लौह-अयस्क उत्पादन से ही सम्बद्ध है।

गोआ, दमन और दीव से पृथक् कर बनाए गए गोआ राज्य में लौह-अयस्क का उत्पादन तीव्र गति से बढ़ रहा है। वर्तमान में देश में सर्वाधिक लोहा इसी राज्य से प्राप्त किया जाता है।

महाराष्ट्र में रत्नगिरि; आंध्र प्रदेश में नेल्लौर, कडप्पा, कर्नूल और वारंगल; तमिलनाडु में सलेम और तिरुचिरापल्ली; राजस्थान में अलवर; हरियाणा में महेन्द्रगढ़ आदि जिलों से भी लौह-अयस्क की प्राप्ति होती है।

लौहांश की मात्रा के आधार पर लौह अयस्क को चार वर्गों में बांटा जा सकता है-

हैमेटाइट में लगभग 70 प्रतिशत लोहे का अंश पाया जाता है। यह लाल एवं भूरे रंग का लोहे का ऑक्साइड होता है। जलज चट्टानों में पाया जाने वाला यह अच्छे किस्म का लोहा होता है। भारत में यह कुडप्पा और धारवाड़ क्रम की चट्टानों में पाया जाता है। झारखण्ड (सिंहभूम), ओडीशा (मयूरभंज, क्योंझर, तलचर), छत्तीसगढ़ बैलाडीला, (राजघाट), कर्नाटक (बेल्लारी, चिकमंगलूर, शिमोगा), गोआ, आंध्र प्रदेश, राजस्थान (भीलवाड़ा), असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर में भी इसके भंडार पाये जाते हैं।

झारखड-ओडीशा पेटी: ओडीशा में क्योंझर एवं सुंदरगढ़ जिलों में तथा मयूरभंज जिले की गुरुमहिसानी व बादाम पहाड़ खानों में लौह-अयस्क पाया जाता है। झारखंड राज्य के सिंहभूम जिले की बरजामदा खानों में लौह-अयस्कों के भंडार हैं।

छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र: इस क्षेत्र में दालीराझरा (दुर्ग) तथा बोलाडिला (बस्तर) खानों एवं पूर्वी महाराष्ट्र के लोहरा-पीपल गांव-सूरजगढ़ क्षेत्र में लौह-अयस्क के भंडार मौजूद हैं।

मैग्नेटाइट इसमें सर्वोत्तम प्रकार का अयस्क है। यह काले रंग का चुंबकीय लोहे का ऑक्साइड होता है। इसमें लोहे का अंश 70 प्रतिशत तक पाया जाता है। भारत में धारवाड़ व कुडप्पा आग्नेय चट्टानों में इसके भण्डार मिलते हैं। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, झारखण्ड के दक्षिण-पूर्वी भाग और हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले में इस प्रकार की चट्टानें मिलती हैं।

कर्नाटक: यहां बेल्लारी-चित्रदुर्ग-चिकमंगलूर-तुमकुर पेटी में लौह-अयस्क पाया जाता है। कुद्रेमुख की धारवाड़ एवं कुडप्पा चट्टानों से मैग्नेटाइट प्राप्त किया जाता है।

तमिलनाडु: यहां सलेम-तिरुचिरापल्ली-उत्तरी अरकॉट पेटी में लौह-अयस्क पाया जाता है।

आंध्र प्रदेश: यहां चितयाल, दस्तूराबाद, सिंगनेरी और गोपालपुर में लौह अयस्क पाया जाता है।

कोरल: कोझीकोड जिले में चेरूपा, इलीयेतीमाला, नानमिंडा, नदूवलूर, आलमवादा आदि स्थानों पर लौह अयस्क पाया जाता है।

लिमोनाइट में शुद्ध लौहांश लगभग 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक होता है। यह भूरे रंग का होता है। भारत में परतदार चट्टानों में इस किस्म के लौहांश पाये जाते हैं। पश्चिमी बंगाल में रानीगंज कोयला क्षेत्र में स्थित निम्न गोंडवाना क्रम में लौह स्तर की चट्टानें मिलती हैं। इसके अलावा भारत में उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले तथा हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में भी इसके भंडार हैं।

सिडेराइट का रंग भूरा और पीला होता है। इसमें लोहांश 20 से 30 प्रतिशत तक पाया जाता है। इसमें लोहा कार्बोनेट भी कहा जाता है, क्योंकि यह लोहे और कार्बन का मिश्रण होता है। भारत में उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में पाया जाता है।


मैंगनीज

मैंगनीज एक महत्वपूर्ण धात्विक खनिज है, जिसका उपयोग लोहे से इस्पात बनाने, रसायन उद्योगों, शीशे और मिट्टी के बर्तनों पर रंग चढ़ाने में किया जाता है। यह लोहे के समान प्रस्तर होता है, जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक मैगनीज लौहांश होता है। इसके मुख्य अयस्क साइलोमैलीन, ब्रोनाइट, पाइरोलुसाइट और क्रिप्टोमेलीन आदि हैं। मैंगनीज में कई प्रकार की अशुद्धियां मिली रहती हैं, यथा-सिलिका, चूना, एलुमिना, मैग्नीशिया और फॉस्फोरस।

यूनाइटेड नेशनल फ्रेमवर्क क्लासीफिकेशन (यू.एन.एफ.सी.) के अनुसार, 1 अप्रैल, 2005 तक देश में मैंगनीज अयस्क का कुल भंडार 379 मिलियन टन है जिनमें से 138 मिलियन टन संरक्षित एवं शेष 241 मिलियन टन शेष भंडार के रूप में वर्गीकृत हैं।

मैंगनीज अयस्क लोहे एवं इस्पात के निर्माण में प्रयुक्त महत्वपूर्ण मिश्रण तत्व है। यह लौह-मैंगनीज मिश्र धातु के निर्माण के लिए आधारभूत कच्चा माल है। मैंगनीज-डाइ-ऑक्साइड का प्रयेाग शुष्क बैटरियों के निर्माण में किया जाता है। मैंगनीज सल्फाइड से मैंगनीज लवणों का निर्माण होता है, जो फोटोग्राफी, चमड़ा एवं माचिस उद्योग में प्रयुक्त किया जाता है। मैंगनीज क्लोराइड का उपयोग सूती कपड़ा उद्योग में कांस्य विरंजक के रूप में होता है। पाइरोल्यूसाइट का प्रयोग चमकीले बर्तन एवं रंगीन टाइलें बनाने में किया जाता है।

भारत का अधिकांश मैंगनीज धारवाड़ शैलों से प्राप्त होता है। मैंगनीजयुक्त प्राचीन आग्नेय शैलों (खोंडालाइट, गारनेट, सिलेमैनाइट और नीस प्रभूति शैलें) में कहीं-कहीं इस धातु की खनिज स्थित हैं। इस प्रकार का खनिज आध्र प्रदेश और ओडीशा में पाया जाता है। कायान्तरित जलज शैलों की तहों में मैंगनीज प्राप्त होता है। इन शैलों में ताप और दबाव से मैंगनीज का खनिज कहीं-कहीं स्थित हैं। इस प्रकार का खनिज मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पाया जाता है। कायांतरित शैलों के ऊपर और उनसे उत्पन्न जहाँ-कहीं लेटराइट शिलाएं मिलती हैं उनमें मैंगनीज पाया जाता है। यह खनिज कर्नाटक, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडीशा, महाराष्ट्र तथा गोआ में पाया जाता है।

वितरण: ओडीशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, झारखंड और गोवा भारत के प्रमुख मैंगनीज उत्पादक राज्य हैं।

ओडीशा भारत का सबसे बड़ा मैंगनीज उत्पादक राज्य है। इस राज्य में क्योंझर, सुन्दरगढ़, कोरापुट, कालाहांडी और गंजाम प्रमुख मैंगनीज उत्पादक जिले हैं। महाराष्ट्र में मैंगनीज का उत्पादन नागपुर, भण्डारा और रत्नागिरि जिले में होता है।

मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा, जबलपुर और झाबुआ जिले में मैंगनीज के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। यहां मेंगनीज की एक 200 किलोमीटर लम्बी और 25 किलोमीटर चौड़ी पट्टी है, जो महाराष्ट्र से नागपुर और भंडारा जिले तक विस्तृत है। ब्रोनाइट, पाइरोलुसाइट और साइलोमैलीन महत्वपूर्ण खनिज हैं। यह प्रकृति में कठोर, ढेलेदार और घनीकृत अयस्क है। इस राज्य से देश का लगभग 46 प्रतिशत मेंगनीज प्राप्त होता है।

आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में खोंडलाइट चट्टानों से मैंगनीज प्राप्त होता है। विशाखापट्टनम में भी कम मात्रा में पाया जाता है।

झारखंड में मैंगनीज सिंहभूमि, हजारीबाग और धनबाद जिले में पाया जाता है। बिहार में गया और मुंगेर जिलों में यह खनिज मिलती है। गुजरात में मैंगनीज खनिज 45 प्रतिशत तक है। यह बड़ोदरा और पंचमहल जिलों से प्राप्त होती है। हल्के किस्म का मैंगनीज बनासकथा और साबरकथा में भी मिलता है।

कर्नाटक में घटिया किस्म का मैंगनीज मिलता है। यहां यह चित्रदुर्ग, सन्दूर, उत्तरी कनारा, तुमकुर और शिमोगा जिलों में धारवाड़ शैलों से प्राप्त होता है। धातु में मैंगनीज का प्रतिशत 30 से 50 प्रतिशत तक अनुमानित किया गया है।

अन्य क्षेत्र, जहां पर कम मात्रा में मैंगनीज पायी जाती है वे हैं- गोवा और राजस्थान।


क्रोमाइट

यह क्रोमियम धातु का एकमात्र खनिज अयस्क है। क्रोमाइट भूरे-काले रंग का खनिज है। यह एक लौह वर्गीय धात्विक खनिज है, जिसका उपयोग इस्पात के निर्माण में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में होता है।

यह धातु एवं रसायन उद्योगों में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। लौह-क्रोम मिश्र धातु का प्रयोग एक विशिष्ट गैर-अपघर्षणीय एवं गैर-सांद्रित इस्पात के निर्माण में किया जाता है। स्टेनलेस स्टील के निर्माण में निकेल एवं क्रोमियम आधारभूत सामग्री के रूप में प्रयुक्त होते हैं। सांद्रण प्रतिरोधी एवं उच्चताप सहनशील क्रोम ईंटों से ताप भट्टियों की दीवारों का निर्माण होता है। क्रोमाइट से बने क्रोमेट एवं बाई-क्रोमेट का उपयोग चर्मशोधन, अभिरंजक, वर्णक, चीनी मिट्टी के बर्तन एवं कांच जैसे उद्योगों में होता है।

यूनाइटेड नेशनल फ्रेमवर्क क्लासिफिकेशन (यू.एन.एफ.सी.) के अनुसार, 1 अप्रैल, 2005 तक क्रोमाइट के कुल संसाधन 213 मिलियन टन हैं जिसमें 66 मिलियन टन संरक्षित (31 प्रतिशत) एवं 147 मिलियन टन (69 प्रतिशत) शेष संसाधनों के हैं। भारत में 95 प्रतिशत संसाधन ओडीशा एवं शेष 5 प्रतिशत संसाधन मणिपुर, कर्नाटक एवं झारखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश राज्यों में अल्प मात्रा में वितरित हैं।

वितरण: भारत में क्रोमाइट मुख्य रूप से प्रायद्वीपीय भारत में मिलता है, जहां इसका निर्माण पूर्व कैम्ब्रियन काल से ही हो रहा है:

  1. झारखंडऔर ओडीशा में लौह-अयस्क वाली मेटामॉरफिक चट्टानों में
  2. महाराष्ट्र और कर्नाटक में धारवाड़ क्रम की चट्टानों में
  3. तमिलनाडु में कायान्तरित एवं विखंडित चट्टानों में
  4. हिमालय और अराकान पर्वत के बीच नयी पट्टी में
  5. आंध्रप्रदेश, बम्बात और ताश गांव (लद्दाख), मोरे (मणिपुर) कोकापुर और वर्धा (गुजरात) तथा चकरगांव (अंडमान में)।

भारत में सर्वाधिक मात्रा में क्रोमाइट-अयस्क ओडीशा राज्य में ही पाया जाता है। कटक और ढेकनाल जिले की सुकिंडा पट्टी में क्रोमाइट मिलता है। यह पट्टी 20 किलोमीटर लम्बी और 2 किलोमीटर चौड़ी है।

कर्नाटक स्थित हासन जिले में सबसे अच्छे किस्म के क्रोमाइट का उत्पादन होता है, जो 89 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। क्रोमाइट का मुख्य क्षेत्र नगचाली में है, जो 125 किलोमीटर में फैला है। मैसूर जिले में भी क्रोमाइट का उत्पादन होता है। चित्रदुर्ग, शिमोगा और कादुर जिले में भी कम मात्रा में क्रोमाइट मिलता है।

महाराष्ट्र में रत्नगिरि जिले में ककीली और बागड़ा में क्रोमाइट मिलता है। यहां से क्रोमाइट खनिज की मात्रा 31 से 38 प्रतिशत तक प्राप्त होती हैं।  बांद्रा हिले में टाका, बेलगाटा और पौनी में खनिज की 31 से 38 प्रतिशत मात्रा वाली क्रोमाइट मिलता है।

झारखंड में सिंहभूम जिला मुख्य क्रोमाइट उत्पादक है, जहां रोरबुरू, किरिबुरू, किताबुरू और चित्तनबुरू पहाड़ियों में क्रोमाइट मिलता है। इस क्षेत्र में अयस्क में क्रोमाइट की मात्रा औसतन 53 प्रतिशत होती है।

तमिलनाडु में सलेम जिले में सित्तमपुण्डी में क्रोमाइट मिलता है। यहां के अयस्क में खनिज की मात्रा लगभग 21 प्रतिशत होती है।

हिमालय-अराकान मेखला के अंतर्गत क्रोमाइट पूर्वी हिमालय, अराकान योमा से लेकर कश्मीर के लद्दाख जिले तक पाया जाता है।

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