मानव शरीर में जीवाणुओं द्वारा होने वाले प्रमुख रोग Major Diseases Caused By Bacteria In The Human Body

मानव शरीर में कई तरह के संक्रामक रोग पाए जाते हैं, इनमे से बैक्टीरिया द्वारा होने वाले प्रमुख रोग इस प्रकार हैं –

एन्थ्रैक्स Anthrax बेसिलस अन्थ्रासिस (Bacillus anthracis)
क्लैमाइडिया Chlamydia क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस (Chlamydia trachomatis)
सूजाक या प्रमेह Gonorrhea नेइसेरिया गोनोरी (Neisseria gonorrhoeae)
प्लेग Plague यरसिनिया पेस्टिस (Yersinia pestis)
वातज्वर या रूमेटिक ज्वर Rheumatic fever स्ट्रेप्टोकॅाकस (Streptococcus )
लाल बुखार या सिंदूर ज्वर Scarlet fever स्ट्रेप्टोकॅाकस (Streptococcus )
धनुस्तंभ या हनुस्तंभ Tetanus क्लोस्ट्रीडियम टिटैनी (Clostridium tetani)
विषाक्त आघात सिंड्रोम Toxic shock syndrome स्टाफिलोकॅाकस और स्ट्रेप्टोकॅाकस (Staphylococcus and Streptococcus)
यक्ष्मा Tuberculosis माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis)
टाइफाइड और मियादी बुखार Typhoid and paratyphoid साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi) और साल्मोनेला पैराटाइफी (Salmonella paratyphi)
कुष्ठ रोग Leprosy माइकोबैक्टीरियम लेप्री (Mycobacterium leprae)
डिफ्थीरिया Diphtheria कोर्नीबैक्टीरियम डिपथेरी (Corynebacterium diphtheria)
लाइम रोग Lyme disease बोरेलिया बर्गडोरफेरी (Borrelia burgdorferi)
निमोनिया Pneumonia कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया द्वारा
रिकेट्स संक्रमण Rickettsial infections रिकेट्सी (rickettsiae) समूह के बैक्टीरिया द्वारा
उपदंश या सिफलिस Syphilis ट्रेपोनीमा पैलीडियम (Treponema pallidum)
काली खांसी Whooping cough or Pertussis बोर्डेटेला परट्युसिस (Bordetella pertussis)

एन्थ्रैक्स Anthrax

एन्थ्रैक्स, जीवाणुओं द्वारा होने वाला एक रोग है, जी आमतौर पर शाकाहारी जानवरों में पाया जाता है| एंथ्रेक्स संक्रमित जानवरों या पशु उत्पादों के साथ संपर्क से मनुष्यों में फैल सकता है| एंथ्रेक्स बीजाणु (spore) बनाने मृदा जीवाणु (soil bacteria) बेसिलस अन्थ्रासिस (Bacillus anthracis) की वजह से होने वाला एक रोग है| इस बीमारी के 22 मामलों में 5 घातक हो सकते हैं|

एंथ्रेक्स दुनिया भर के पशुओं में, विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया, और दक्षिण अमेरिका में आम तौर पर पाया जाता है| एन्थ्रैक्स के लक्षण संक्रमण स्थल और जीवाणु द्वारा उत्पादित विषाक्त पदार्थों पर निर्भर करते हैं| जैसे त्वचीय एंथ्रेक्स (cutaneous anthrax) में संक्रमण वाली जगह पर एक सूजा हुआ, दर्द रहित, काला पपड़ीनुमा धब्बा बन जाता है और यहाँ की लसीका ग्रंथियां (lymph glands) फूल जाती हैं|

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल एंथ्रेक्स (Gastrointestinal anthrax), जीवाणु के संपर्क में आने के सात दिनों के भीतर होता है| इस प्रकार के एंथ्रेक्स के प्रमुख लक्षण हैं मतली, भूख में कमी, खूनी दस्त, बुखार  और पेट दर्द| इसमें ग्रसनीशोथ (Pharyngitis) और गर्दन में दर्द हो सकता है| यह 20 से 60 प्रतिशत मामलों में घातक होता है|

फेफड़ों का एंथ्रेक्स (pulmonary anthrax) सबसे घातक प्रकार का एंथ्रेक्स होता है| यह श्वास द्वारा फैलने वाले जीवाणुओं द्वारा होता है| संक्रमण के 1-42 दिन के भीतर इसमें सर्दी और फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं| सीने में दर्द के साथ साँस लेने में तकलीफ और व्यक्ति साँस लेने में पूरी तरह अक्षम हो सकता है| फेफड़ों का एंथ्रेक्स (pulmonary anthrax) में 45-90 प्रतिशत मामलों में व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है|

एंथ्रेक्स की जाँच में बेसिलस अन्थ्रासिस (Bacillus anthracis) जीवाणु की पहचान रक्त, त्वचा के घावों, या श्वसन स्राव में कर के की जाती है| रक्त की जाँच में विशेष एंटीबाडी की पहचान की जाती है जो इस जीवाणुओं के कारण रक्त में बनते हैं| पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (polymerase chain reaction, PCR) तकनीक का उपयोग भी एंथ्रेक्स बीजाणुओं की पहचान करने के लिए किया जाता है|


क्लैमाइडिया Chlamydia

क्लैमाइडिया बैक्टीरिया की वजह से होने वाले संक्रमण दुनिया भर में सबसे आम बीमारियों में से एक हैं| क्लैमाइडिया की तीन मुख्य प्रजातियां मनुष्यों में बीमारियों का कारण हैं| क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस (Chlamydia trachomatis) यौन संचारित रोग (sexually transmitted disease) का कारण बनता है, जिसे सामान्यतः क्लैमाइडिया के रूप में जाना जाता है| इस प्रजाति से आंखों का रोग ट्रेकोमा (trachoma) भी होता है| क्लैमाइडिया न्यूमोनी (Chlamydia pneumonia) सांस की बीमारियों ब्रोंकाइटिस और निमोनिया का कारण भी बनता है| क्लैमाइडिया सिटैसी (Chlamydia psittaci) से इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी सिटैसोसिस (psittacosis) भी होती है|

इन तीनो प्रकार की प्रजाति से होने वाली बीमारिओं में क्लैमाइडिया न्यूमोनी (Chlamydia pneumonia) से होना वाला निमोनिया, प्रमुख रूप से छोटे बच्चों में, सबसे आम है| क्लैमाइडिया सिटैसी (Chlamydia psittaci) मुख्य रूप से पक्षियों द्वारा मनुष्यों में उनके संपर्क में आने से फैलता है, जिससे बीमारी सिटैसोसिस (psittacosis) नाम की बीमारी होती है| क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस (Chlamydia trachomatis) से होने वाला आंखों का रोग ट्रेकोमा (trachoma) से व्यक्ति सही उपचार न मिलने पर अँधा भी हो सकता है| परन्तु क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस मुख्य रूप से यौन संचारित रोगों के लिए जाना जाता है| यह विश्व भर में पाया जाने वाला सबसे आम प्रकार का यौन संचारित रोग है, जिनके रोगियों की संख्या HIV से पीड़ित रोगियों से भी कहीं ज्यादा है|

ये बैक्टीरिया वायरस की तरह अधिक व्यवहार करते हैं, जो लक्ष्य कोशिकाओं पर हमला करके उनके अन्दर अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं| इस बैक्टीरिया के कारण संभोग के दौरान जननांग मार्ग, मुंह  और मलाशय की श्लेष्मा झिल्ली (mucous  membranes) संक्रमित हो जाती है| क्लैमाइडिया संक्रमण की संक्रमित व्यक्ति के शौचालय पर बैठेने, उसका तौलिया का उपयोग करने या उससे आकस्मिक संपर्क से नहीं फैलता है| ज्यादातर व्यक्तियों में इसके लक्षण संक्रमित होने के 1 से 3 हफ्ते बाद दिखायीं देते हैं| महिलाओं और पुरुषों दोनों में इसके लक्षणों में जननांग क्षेत्र में खुजली और जलन या दर्द पाए जाते हैं| महिलाओं में इसका संक्रमण ज्यादा गंभीर हो सकता है, जिसमे पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार और मासिक धर्म के समय योनि से खून आने लगता है| इसके संक्रमित महिलाओं के नवजात बच्चों के आँखों में संक्रमण और निमोनिया भी हो सकता है|

इस रोग की पहचान करने के लिए जननांग क्षेत्र या मूत्र का नमूना लेकर क्लैमाइडिया बैक्टीरिया की पहचान की जाती है| इन नमूनों में क्लैमाइडिया डीएनए की उपस्थिति का पता लगाकर भी इनकी जाँच की जाती है| इनके उपचार में प्रमुख रूप से एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लिया जाता है और इनका उपचार संभव है| असुरक्षित यौन संबंधों से बचाव और कंडोम का प्रयोग इसको फैलने से बचा सकता है|

सूजाक या प्रमेह Gonorrhea

सूजाक एक यौन संचारित रोग है जो जीवाणु नेइसेरिया गोनोरी (Neisseria gonorrhoeae) द्वारा फैलता है| यह जीवाणु शरीर के नम और गर्म क्षेत्रों जैसे महिलाओं में गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब में पुरुषों में मूत्रमार्ग (मूत्र ट्यूब) अदि में विकसित होता है| गोनोरिया, क्लैमाइडिया के बाद सबसे ज्यादा पाया जाने वाला यौन संचारित रोग (sexually transmitted disease) है| यह ज्यादातर 30 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों में पाया जाता है| इसकी उच्चतम दर यौन सक्रिय किशोर और युवा वयस्कों में पाई जाती है| एक से ज्यादा यौन साथी होने से इसका खतरा बढ़ता जाता है|

पुरुषो में गोनोरिया से एपिडीडाईमिटिस (epididymitis) या अंडकोष की सूजन हो सकती है और लिंग से एक मोटे तरल पदार्थ का स्राव हो सकता है| महिलाओं में योनि स्राव, पेशाब में जलन और मासिक धर्म के समय खून आ सकता है| कभी कभी इस रोग के लक्षण अस्पष्ट होते हैं| संक्रमित महिलाओं के नवजात बच्चों में भी यह रोग फ़ैल सकता है|

इस रोग की जाँच संक्रमित क्षेत्र के नमूनों और मूत्र के नमूनों में इसके बैक्टीरिया की पहचान करके हो सकती है| एंटीबायोटिक दवाओं से इसका उपचार संभव है| कई मामलों में क्लैमाइडिया और सूजाक एक साथ पाया जाता है, तब इन दोनों रोगों के लिए दवाये दी जाती हैं| असुरक्षित यौन संबंधों से बचाव से इस रोग को फैलने से रोका जा सकता है| कंडोम का प्रयोग इसके संक्रमण के खतरे को कम कर सकता है|

प्लेग Plague

प्लेग  एक प्राचीन रोग है, जिससे लाखों लोगो की मौत हो चुकी है| यह मानव सभ्यता की सबसे घातक बीमारिओं में से एक है| यह बीमारी कभी भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई और दुनिया ने कई बार इसके प्रकोप का अनुभव किया है| अभी भी इसके 1000 से 3000 मामले हर वर्ष पाए जाते हैं| एंटीबायोटिक दवाओं से मनुष्य इस रोग को रोक पाने में सफल रहा है|

प्लेग स्वाभाविक रूप से पशुओं में पाया जाने वाला रोग है, जो मनुष्यों में फ़ैल गया|

प्लेग एक बैक्टीरिया यरसिनिया पेस्टिस (Yersinia pestis) के संक्रमण के कारण होता है| यह बैक्टीरिया चूहों, प्रैरी कुत्तों, मरमोट, और अन्य कृन्तक (rodents) जानवरों में पाए जाते हैं| पिस्सुओं (Fleas) के इन जानवरों के काटने पर ये इन जानवरों में फ़ैल जाते है| बाद में ये पिस्सु मनुष्यों को संक्रमित कर देते हैं| प्लेग दो मुख्य रूप हैं| पहला बूबोनिक प्लेग (bubonic plague) है जो पिस्सुओं (Fleas) के काटने से फैलता है| इस रोग में लिम्फ नोड्स सूज कर बड़े हो जाते हैं, जिन्हें ब्युबोस (buboes) कहते हैं| जिनके कारण इनका नाम बूबोनिक प्लेग पड़ा| ये सूजे हुए लिम्फ नोड्स बाहों के नीचे या पैरों के शीर्ष पर और गर्दन में आमतौर पर पाए जाते हैं| दूसरा फेफड़ो में होने वाला प्लेग (pneumonic plague) है, जिसमे फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं|

इस रोग के फैलने की सम्भावना उन क्षेत्रों में अधिक रहती है जहाँ गन्दगी एक समस्या के रूप में पाई जाती है और छोटे-मोटे रोग फैलते रहते हैं| विकसित देशों में इसकी समस्या कम पाई जाती है| प्लेग जंगली कृन्तकों (rodents) में में भी व्यापक रूप से पाया जाता है, इसलिए शायद इसका पूरी तरह से नाश कभी संभव नहीं होगा| प्लेग एक व्यक्ति से दूसरे में आसानी से फ़ैल जाता है| यह छींक से भी फैलता है|

प्लेग की पहचान आसानी से हो सकती है| जिसके लिए रक्त और अन्य नमूनों की जाँच की जाती है| इसके जीवाणु रक्त में काफी मात्र में एंटीबाडी बनाते हैं जिससे इस रोग की पहचान हो सकती है| एक संक्रमित व्यक्ति एंटीबायोटिक दवाओं के उपचार से ठीक हो सकता है| वैक्सीन से भी प्लेग को रोका जा सकता है|

प्लेग का प्रयोग विभिन्न देशों द्वारा समय समय पर जैविक हथियार के रूप में भी किया गया है|

लाल बुखार या सिंदूर ज्वर Scarlet fever

लाल बुखार स्ट्रेप्टोकॅाकस (Streptococcus ) बैक्टीरिया की वजह से होने वाला एक संक्रामक रोग है| जब यह संक्रमण गले में होता है, तो इसे ग्रसनीशोथ (pharyngitis) कहा जाता है, जब यह संक्रमण त्वचा में होता है तो इसे सपूयचर्मस्फोट (impetigo) कहते हैं| इसके लक्षणों में बुखार और शरीर पर दाने निकल आते हैं| स्कार्लेट ज्वर युवा व्यक्तियों, मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करने वाली बीमारी है| यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने, छींकने और खांसने से भी फैलती है| गले में खराश, बुखार, और एक चमकदार लाल, पतले दाने उभर आना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं| त्वचा पर गहरी लाइने दिखाई दे सकती हैं, जिसे पास्तिया की लाइन (Pastia’s lines) कहते हैं, और मुंह के आसपास के क्षेत्र पीला हो जाता हैं|

त्वचा अदि के नमूनों से इस रोग की जाँच हो जाती है| एंटीबायोटिक दवाओं से रोगी एक हफ्ते में स्वस्थ हो जाते हैं| साफ सफाई और संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाकर इस रोग को रोका जा सकता है|

वातज्वर या रूमेटिक ज्वर Rheumatic fever

रूमेटिक बुखार जोड़ों और दिल की बीमारी है| यह स्ट्रेप्टोकॅाकस (Streptococcus ) बैक्टीरिया के विशिष्ट प्रकार के संक्रमण के बाद एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (immune reaction) के एक परिणाम के रूप में होता है| इससे प्रभावित लोगों में बुखार, जोड़ों की दर्दनाक सूजन, (जैसे घुटने, कोहनी और कूल्हे में) जैसे लक्षण पाए जाते हैं| कुछ लोगों को सीने में दर्द और सांस की तकलीफ भी हो सकती है| यह बीमारी 3 महीने से ज्यादा तक रह सकती है और अच्छी तरह से उपचार न होने पर घातक भी हो सकती है, और गंभीर ह्रदय रोग भी हो सकते हैं|

इस बैक्टीरिया से रक्त में बनने वाले एंटीबाडी की जाँच कर के इस रोग की पहचान की जा सकती है| इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों का लम्बे समय तक इलाज चल सकता है| इस रोग के इलाज के लिए स्टेरॉयड, एस्पिरिन और एंटीबायोटिक दवाओं का रोग के लक्षणों के अनुसार, सहारा लिया जाता है| यह बुखार मध्य पूर्व, भारत में बड़े पैमाने पर, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ भागों, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की आदिवासी आबादी में ज्यादातर पाया जाता है|

धनुस्तंभ या हनुस्तंभ Tetanus

टेटनस तंत्रिका तंत्र का एक विकार है, जो जीवाणु क्लोस्ट्रीडियम टिटैनी (Clostridium tetani)  द्वारा होता है| यह आमतौर पर तब होता है दर्दनाक चोटों और घावों को इस बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न विषैले पदार्थ दूषित कर देते हैं| इस बीमारी में  मांसपेशियों में तीव्र ऐंठन होती है| टीकाकरण से इसके रोगियों की संख्या में काफी कमी आई है, हालाँकि यह अभी भी विकासशील देशों में काफी पाया जाता है| क्लोस्ट्रीडियम टिटैनी (Clostridium tetani)  सामान्य रूप से मिट्टी में पाया जाने वाला बैक्टीरिया है| इस बैक्टीरिया के बीजाणु (spore) किसी अघात या घाव से मरीज के शरीर में जाकर विकसित होते है और विषैला (toxins) पदार्थ बनाते हैं| जब इससे जबड़े की मांसपेशियां ऐंठ जाती है ती इसे लॉकजॉ (lockjaw) भी कहते हैं| मांसपेशियों में ऐंठन के अलावा, रोगियों को पसीना, बुखार, चिड़चिड़ापन, और बेचैनी का अनुभव हो सकता है|

इसका निदान आमतौर पर रोगी के लक्षणों के आधार पर किया जाता है| प्रयोगशालाओं में यह बैक्टीरिया विकसित नहीं होता है, अतः इस रोग की पहचान कठिन होती है| इसके प्रभाव को निष्क्रिय करने के लिए टिटनेस प्रतिरक्षा ग्लोब्युलिन (tetanus immune globulin, TIG) का इंजेक्शन दिया जाता है|  इस बैक्टीरिया से उत्पन्न होने वाला विषैला पदार्थ जिसे टिटैनोस्पैस्मिन (tetanospasmin) कहते हैं, न्यूरॉन्स के माध्यम से रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क में पहुँच जाता है| यह विषैला पदार्थ तंत्रिकीय गतिविधियों से प्रतिक्रिया करके मांसपेशियों में ऐंठन और अन्य लक्षण पैदा करता है| टीकाकरण से इस रोग का इलाज संभव है|

विषाक्त आघात सिंड्रोम Toxic shock syndrome

टॉक्सिक शॅाक सिंड्रोम स्टाफिलोकॅाकस ऑरियस और स्ट्रेप्टोकॅाकस प्योजींस (Staphylococcus aureus  and Streptococcus pyogenes) नमक बैक्टीरिया द्वारा हो सकता है| स्टाफिलोकॅाकस ऑरियस (Staphylococcus aureus ) लगभग 50 प्रतिशत लोगों के नाक में पाया जाता है| जिसमे से कुछ बैक्टीरिया में यह रोग पैदा करने की क्षमता होती है| ये दोनों बैक्टीरिया एक प्रकार का विषैला पदार्थ पैदा करते है जिसे सुपर एंटीजन (super antigens) कहते हैं| इनके संक्रमण का खतरा सर्जरी के बाद, नशीली दवाओं के प्रयोग, इन्फ्लूएंजा या चेचक वायरस के साथ संक्रमण द्वारा अधिक रहता है| इस रोग के प्रमुख लक्षण फ्लू जैसे, रक्तचाप कम होना, दस्त और उल्टी आदि हैं|

इस रोग के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लिया जाता है| इम्युनोग्लोबुलिन (immunoglobulin, IVIG) का इंजेक्शन भी, बैक्टीरिया द्वारा पैदा किये गए सुपर एंटीजन (super antigens) के प्रभाव को निष्क्रिय करने के लिए दिया जाता है|

यक्ष्मा Tuberculosis

क्षय रोग (टीबी) एक घातक रोग है, जिसके कारण दुनिया भर में प्रति वर्ष लगभग 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है| दुनिया भर में सर सेकंड टीबी का एक नया संक्रमण हो जाता है| जीवाणु माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) इस रोग का प्रमुख कारण है| यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है लेकिन कभी कभी इसके कारण पूरे शरीर में घाव बन जाते हैं|

टीबी को सदियों से जाना जाता है, परन्तु सबसे पहले एक फारसी चिकित्सक इब्न सिना (Ibn Sina) द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में इसे एक संक्रामक रोग के रूप में मान्यता दी थी| टीबी की 1820 तक एक बीमारी के रूप में पहचान नहीं हो सकी थी| एक जर्मन डाक्टर रॉबर्ट कॉख (Robert Koch ,1843-1910) जिन्हें सूक्ष्म जीव विज्ञान का पिता (father of microbiology) भी माना जाता है, ने यह पता लगया की जीवाणु माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) इस रोग का प्रमुख कारण है| उन्हें 1905 में इस खोज के लिए शरीर विज्ञान या चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिला| टीबी हवा द्वारा, छींक, खांसी और कफ द्वारा फैलता है| टीबी मनुष्यों को छोडकर किसी भी अन्य जानवरों में नहीं पाया जाता है| जब टीबी का बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करता है तब यह तीन प्रकार से विकसित हो सकता है|

संक्रमण के साथ ही बैक्टीरिया विकसित होने लगता है, इसे प्राथमिक टीबी या सक्रिय टीबी (primary tuberculosis या active TB) कहते हैं|

बैक्टीरिया निष्क्रिय बना रह सकता है, और व्यक्ति बीमार नहीं होता है एवं वह रोग का प्रसार भी नहीं करता है| इसे सुप्त टीबी (latent TB) कहा जाता है, क्योंकि परीक्षणों में इस बैक्टीरिया की उपस्थिति पता चलती है| टीबी से संक्रमित लोगों में 90 प्रतिशत इस प्रकार की टीबी पाई जाती है|

शरीर में प्रवेश करने के बाद बैक्टीरिया कुछ समय तक निष्क्रिय रहता है, उसके बाद विकसित होने लगता है| इसे पुनः सक्रियन टीबी (reactivation TB) कहा जाता है। सुप्त टीबी (latent TB) से संक्रमित 10 प्रतिशत लोगों में इस प्रकार की टीबी पाई जाती है|

टीबी के प्रमुख लक्षण हैं, लम्बे समय तक खांसी के साथ कफ या बलगम के साथ खून आना, साँस लेने में तकलीफ, बुखार के साथ रात में पसीना आना, अनायास वजन घटना| फेफड़ों के अलावा, तपेदिक रक्त के माध्यम से रीढ़ की हड्डी, हड्डियों और अस्थि मज्जा, जोड़ों, गुर्दे, मांसपेशियों और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित कर सकता है| इसके कारण गंभीर पीठ दर्द, पेशाब में खून, पेट में दर्द, लिम्फ नोड्स में सूजन  या त्वचा के अल्सर हो सकता हैं|

दवा प्रतिरोधी तपेदिक जीवाणु (Drug-Resistant Tuberculosis Bacteria) – 1980 के दशक की शुरुआत में, डॉक्टरों ने पाया की लोग सक्रिय टीबी के लिए दवा का असर पाने में विफल हो रहे है, और टीबी के बैक्टीरिया टीबी बेसिलस (TB bacillus) नाम के प्रतिरोधी बैक्टीरिया में विकसित हो गए हैं| टीबी के उपचार में सबसे प्रभावी दो दवाओं आइसोनियाज़िड (isoniazid, INH) और रिफम्पिन (rifampin) को मन जाता है। जिन रोगियों में इन दवाओं के प्रति बैक्टीरिया प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न कर लेते हैं और इसे एकाधिक दवा प्रतिरोधी तपेदिक (multiple drug-resistant tuberculosis or MDR-TB)  कहते हैं| इस प्रकार के टीबी में दवा बहुत असर नहीं करती है, और इसके इलाज के लिए डॉट विधि (DOT, directly observed therapy) का सहारा लिया जाता है| इस प्रकार की टीबी में दवाओं को इंजेक्शन के द्वारा दिया जाता है|दवा प्रतिरोधी टीबी का एक और भी अधिक गंभीर रूप अत्यंत दवा प्रतिरोधी टीबी (extremely drug-resistant TB or XDR-TB) के रूप में जाना जाता है| इसमें कफ या थूक के परीक्षणों में बैक्टीरिया आइसोनियाज़िड (isoniazid, INH) और रिफम्पिन (rifampin) के आलावा लिवोफ़्लॉक्सासिन (levofloxacin) के भी प्रतिरोधी हो जाते हैं| इस प्रकार की टीबी का आज उपलब्ध दवाओं से उपचार करना बहुत मुश्किल है| इसमें सर्जरी का सहारा भी लिया जाता है| जिसमे संक्रमित भाग को काट कर निकाल दिया जाता है|

टीबी की पहचान आसानी से नहीं होती है, क्योंकि संक्रमण के बाद इसका कोई विशेष लक्षण नहीं दिखाई देता है| इसकी जाँच के लिए त्वचा का एक परीक्षण जिसे मैन्टोक्स परिक्षण (Mantoux test or PPD test) कहते हैं, किया जाता है| इसमें डाक्टर एक द्रव्य जिसे टीबी के बैक्टीरिया से प्राप्त किया जाता है शरीर में इंजेक्ट किया जाता है| यदि व्यक्ति टीबी से पीड़ित है तो यह हिस्सा 48 से 72 घंटे के अन्दर चपटा और कठोर हो जाता है| एक नया परीक्षण जिसे QuantiFERON-TB Gold (QFT) परीक्षण कहा जाता है, यह रोगी के रक्त में टीबी बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता लगाता है और एक दिन इसका परिणाम मिल जाता  है।

इसके बाद सामान्य टीबी में एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लिया जाता है, जिसके ठीक होने में 9 महीने लग सकते हैं| इसके अलावा अन्य टीबी में अलग-अलग उपचार का सहारा लिया जाता है, जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है|

टीबी को साफ सफाई, मजबूत प्रतिरोधी तंत्र (immune system) और संक्रमित व्यक्ति से बचाव करके फैलने से रोका जा सकता है| टीबी से बचाव के लिए BCG का टीका भी लगाया जाता है, परन्तु यह मैन्टोक्स परिक्षण (Mantoux test) में भी सकारात्मक परिणाम देता है|

1980 से पहले यह समझा जाता था की टीबी को पूरी तरह से ख़त्म किया जा सकता है, परन्तु MDR और XDR टीबी के विकसित हो जाने से मानव के प्रयासों को झटका लगा| 1993 में एक वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थिति के रूप में टीबी के पुनरुत्थान की घोषणा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने की|

टाइफाइड और मियादी बुखार Typhoid and paratyphoid

टाइफाइड जीवाणु साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi) की वजह से होने वाला एक गंभीर रोग है| जिसमे यह बैक्टीरिया पाचन तंत्र को प्रभावित करता है| मियादी बुखार साल्मोनेला पैराटाइफी (Salmonella paratyphi) की वजह से होने वाला एक कम गंभीर रोग है। यह रोग ज्यादातर विकासशील देशों में पाए जाते हैं जहाँ साफ-सफाई की कमी पाई जाती है|

साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi) केवल मनुष्यों में पाया जाता है| इस बैक्टीरिया में मानव प्रतिरक्षा प्रणाली से बचाव के लिए एक सुरक्षात्मक आवरण पाया जाता है|

टाइफाइड का संक्रमण दो चरणों में होता है| पहले चरण में बैक्टीरिया आंत में दूषित पानी या भोजन के द्वारा पहुँचता है और आंत की दीवार या म्यूकोसा (mucosa) को भेदकर निचे उतकों तक पहुँच जाता है| इसके बाद यह बैक्टीरिया रक्त प्रवाह में पहुँच जाता है और टाइफाइड के लक्षण प्रकट होने लगते हैं| इसमें तेज बुखार (105°F  or 40.6°C) के साथ पसीना और दस्त के लक्षण दिखाई देने लगते हैं| इसके बाद यह बैक्टीरिया अस्थि मज्जा को भेदकर  जिगर और पित्त नलिकाओं में पहुँच जाता है| दुसरे चरण में जब यह बैक्टीरिया छोटी आंत में पहुँचता है तो लंबे समय तक दस्त बना रहता है| संक्रमण के दो से तीन हफ्ते के भीतर रोगी को निरंतर खांसी, गंभीर पेट दर्द, तेज सरदर्द और धीमी ह्रदय गति जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं|

1839 में एक अंग्रेज विलियम बड ने बताया की टाइफाइड गंदगी से पैदा नहीं होता बल्कि यह एक संक्रामक रोग है। टाइफाइड के 76 प्रतिशत मामले छह देशों – भारत, पाकिस्तान, मैक्सिको, बांग्लादेश, फिलीपींस, और हैती में पाए जाते हैं| नए शोधों ने इस बैक्टीरिया के दवा प्रतिरोधी होने की भी पुष्टि की है|  अब तक कुल 107 प्रकार के टाइफाइड बैक्टीरिया की जातियों की पहचान की जा चुकी है|

टाइफाइड का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है| सही प्रकार से इलाज होने पर जल्द ही अच्छे परिणाम मिल जाते हैं| बेहतर साफ-सफाई से इसको फैलने से रोका जा सकता है|

कुष्ठ रोग Leprosy

कुष्ठ रोग माइकोबैक्टीरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) बैक्टीरिया द्वारा होने वाला एक खतरनाक रोग है| इसे हैनसेन रोग (Hansen’s disease) भी कहा जाता है| कुष्ठ रोग में त्वचा में घाव बन जाते हैं और यह मुख्य रूप से चेहरे और हाथ-पैरों की तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचता है| यह बैक्टीरिया सामान्य तापमान 27°C to 33°C (80.6°F–91.4°F) पर बहुत अच्छी तरह से पनपता है| कुष्ठ रोग से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहने से यह तेजी से फैलता है| यह बैक्टीरिया बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है, इसकी ऊष्मायन अवधि (incubation period) कुछ महीनो से लेकर कई साल तक हो सकती है|

इस संक्रमण के सबसे पहले लक्षणों में त्वचा का रंग बिगड़ने लगता है और बाद में त्वचा में घाव बनने लगते है| नाक और गले की म्यूकोसा पर संक्रमण से यहाँ की उपस्थियों में कटाव और छेद होने लगता है| यह बैक्टीरिया त्वचा के पास वाली तंत्रिकाओं को भी संक्रमित कर देता है| जिससे ये फूल जाती हैं| गंभीर परिस्थितियों में यह आँखों की तंत्रिकाओं को संक्रमित करके अंधापन भी ला सकता है|

इस बैक्टीरिया का रक्त परीक्षणों द्वारा पता नहीं चलता है| इसके इलाज के लिए कई प्रकार के एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन का सहारा लिया जाता है जिसे बहुऔषध थेरेपी (multidrug therapy, MDT) कहा जाता है, और यह इलाज 6 से 12 महीनो तक चल सकता है| इसके फैलने के निश्चित कारणों का पता नहीं है, परन्तु यह संक्रमित व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में हवा द्वारा फैलता है|

कुछ समाजों में कुष्ठ रोग को एक कलंक के रूप में भी देखा जाता है, परन्तु सही इलाज ले रहे व्यक्ति को अलग रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है| कुछ देशों में इसके लिए BCG  का टीका भी लगाया जाता है| कुष्ठ सबसे आम तौर पर उष्णकटिबंधीय और गर्म समशीतोष्ण क्षेत्रों में जैसे अफ्रीका, एशिया, और मध्य अमेरिका अधिक पाया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रयासों से इसके रोगयों में काफी कमी आयी है, और इसके पूर्ण रूप से उन्मूलन के लक्ष्य को हम शायद निकट भविष्य में पा लेंगे|

डिफ्थीरिया Diphtheria

डिप्थीरिया जीवाणु कोर्नीबैक्टीरियम डिपथेरी (Corynebacterium diphtheria) की वजह से गले, नाक और त्वचा में होने वाला संक्रमण है| कई सालो पहले याक घातक रोग था, परन्तु बेहतर प्रतिरक्षण कार्यक्रमों (immunization program) से इसके संक्रमण में कमी आयी है| डिप्थीरिया एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में हवा द्वारा या संक्रमित व्यक्ति के घावों के स्राव द्वारा फैलता है| 5 वर्ष से छोटे और 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में इसके संक्रमण का खतरा अधिक रहता है| इसके संक्रमण के बाद गले की लिम्फ ग्रंथियां सूज जाती है, जिससे गर्दन बहुत मोटी हो जाती है| डिप्थीरिया के गंभीर मामलों में हृदय, तंत्रिका तंत्र और गुर्दे जीवाणु द्वारा निर्मित विष (toxin) से प्रभावित हो जाते हैं|

त्वचा के परीक्षणों द्वारा इस रोग का पता लग जाता है| इसके बाद एंटीबायोटिक दवाओं से इसका इलाज किया जाता है| इसके रोक के लिए टीकाकरण भी किया जाता है| बच्चों में यह टीका डिप्थीरिया-टिटनेस-अकोशिकीय काली खांसी (diphtheria-tetanus-acellular pertussis, DTaP) के एक संयोजन के रूप में दिया जाता है; वयस्कों में यह टिटनेस और डिप्थीरिया (Td) के संयोजन में दिया जा सकता है|

लाइम रोग Lyme disease

लाइम रोग बैक्टीरिया बोरेलिया बर्गडोरफेरी (Borrelia burgdorferi) से होने वाला रोग है, जिसमे एक छल्ले के रूप में लाल दाने और सूजन हो जाती है| इसके साथ फ्लू जैसे  लक्षणों के साथ सिर दर्द, गले में खराश, बुखार, मांसपेशियों में दर्द, गर्दन में अकड़न,

थकान, और सामान्य अस्वस्थता जैसे लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं| यह जीवाणु एक टिक (tick) इक्सोडस (Ixodes) के काटने से फैलता है| घास, झाड़ियों में चलने और पालतू जानवरों द्वारा यह रोग फ़ैल सकता है|

इस रोग की पहचान मुश्किल होती है, क्योंकि इस रोग के लक्षण अन्य रोगों से मिलते हैं| रक्त परिक्षणों द्वारा इसकी जाँच संभव है| एंटीबायोटिक दवाओं से व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है|

निमोनिया Pneumonia

निमोनिया श्वसन तंत्र का एक रोग है, जिससे हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं| निमोनिया हल्का से गंभीर और घातक भी हो सकता है| निमोनिया रोग ज्यादातर बैक्टीरिया के कारण ही होता है, परन्तु यह वायरस (virus), कवक (fungi) और परजीविओं (parasite) के कारण भी होता है| निमोनिया में ये सूक्ष्म जीव फेफड़ो के कूपिका या अल्वियोली (alveoli) को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र प्रतिक्रिया करता है और फेफड़ो में गैसों के आदान-प्रदान में रूकावट आती है और इनमे सूजन हो सकती है| लोबार निमोनिया (Lobar pneumonia) फेफड़ो के किसी एक हिस्से को प्रभावित करता है और बहुलोबार निमोनिया (multilobar pneumonia) फेफड़ो के कई हिस्सों को प्रभावित करता है|

बैक्टीरिया द्वारा होने वाला निमोनिया Bacterial Pneumonia

इसे असामान्य निमोनिया (atypical pneumonia) भी कहा जाता है| यह कई तरह के बैक्टीरिया जैसे लीजोनेला निमोफिला (Legionella pneumophila), माइकोप्लाज्मा निमोनिया (Mycoplasma pneumonia), और क्लेमईडोफिला निमोनी (Chlamydophila Pneumonia) द्वारा हो सकता है| इसे असामान्य निमोनिया इसलिए कहा जाता है क्योंकि इससे ज्यादातर स्वस्थ लोग प्रभावित होते हैं यह ज्यादा गंभीर नहीं होता और एंटीबायोटिक दवाओं से आसानी से ठीक हो जाता है| स्ट्रैपटोकोकस निमोनिया (Streptococcus pneumonia or pneumococcus) नवजात शिशुओं को छोड़कर सभी आयु समूहों में निमोनिया या लोबार निमोनिया का सबसे सामान्य कारण है|

विषाणुओं द्वारा होने वाला निमोनिया Viral Pneumonia

यह निमोनिया फेफड़ो के अलावा अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है| रेस्पिरेटरी सिन्साइटियल वायरस (respiratory syncytial virus, RSV) है वायरल निमोनिया का प्रमुख रोगज़नक़ है| यह निमोनिया अन्य वायरसों जैसे  इन्फ्यूएंज़ा (influenza) वायरस, एडीनोवायरस (adenovirus), हरपीस सिम्प्लेक्स वायरस (herpes simplex virus), साइटोमोगालोवायरस (cytomegalovirus, CMV) और पैराइन्फ्युएन्ज़ा (parainfluenza) वायरस से भी फैलता है| वायरल निमोनिया मुख्यतः पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में पाया जाता है|

खांसी, सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ और बुखार सभी प्रकार के निमोनिया के प्रमुख लक्षण है| निमोनिया के संक्रमण के बाद शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र प्रतिक्रिया करता है जिससे अलग-अलग तरह के लक्षण दिखाई देते है| निमोनिया की जाँच के लिए सामान्य रूप से छाती का एक्स-रे किया जाता है| निमोनिया के इलाज के लिए अलग-अलग तरह की एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लिया जाता है, जो की निमोनिया के प्रकार पर निर्भर करता है|

रिकेट्स संक्रमण Rickettsial infections

रिकेट्सी (rickettsiae) शब्द सूक्ष्मजीवों का एक व्यापक समूह है जो कई तरह की महामारियों का कारण बनता है| डॉ हावर्ड रिकेट्स  (Dr. Howard Ricketts) जिनके नाम के ऊपर इस बैक्टीरिया का नाम रखा गया है, इस बैक्टीरिया के ऊपर शोध करते समय उनकी मृत्यु हो गयी थी| रिकेट्सी (rickettsiae) छोटे बैक्टीरिया होते हैं, जो अर्थोपॅाड (arthropods) से सम्बंधित होते हैं| रिकेट्स संक्रमण गंभीरता में अलग अलग होता है लेकिन इससे जीवन को खतरा पैदा हो सकता है। इस रोग के प्रमुख करक जीवाणु हैं अर्लिया कैफिन्सिस (Ehrlichia chaffeensis), एनाप्लाज्मा फैगोसाईटोफिलम (Anaplasma phagocytophilum), काक्सीएला बरनेटाई (Coxiella burnetti), रिकेटसिआ प्रोवाज़ेकाई(Rickettsia prowazekii), और रिकेटसिआ अकारी (Rickettsia  Akari)|

रिकेट्स संक्रमण शरीर के परजीविओं जैसे पिस्सुओं, जुओं, खटमल आदि के काटने से फैलता है| यह संक्रमण उन जगहों में अधिक फैलता है जहाँ साफ-सफाई की कमी होती है| इसके लक्षणों में तेज बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, और लिम्फाडेनोपैथी (lymphadenopathy) अक्सर देखा जाता है। इस रोग के करक बैक्टीरिया के द्वारा पैदा की गयी एंटीबाडी की रक्त में जाँच करके इस रोग की पहचान की जा सकती है| एंटीबायोटिक दवाओं से इस रोग का इलाज संभव है|

उपदंश या सिफलिस Syphilis

सिफलिस एक यौन संचारित रोग (sexually transmitted disease, STD) है, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्यायें पैदा कर सकता है| यह गर्भवती महिलाओं के नवजात बच्चों में भी फ़ैल सकता है| विश्व के उन भागों जहाँ साफ-सफाई की कमी पाई जाती है यह बिना यौन संबंधों के भी फ़ैल सकता है|

सिफलिस के बारे में सैकड़ो वर्षों से जानकारी है और यह अभी भी एक प्रमुख यौन संचारित रोग है| सिफलिस ट्रेपोनीमा पैलीडियम (Treponema pallidum) बैक्टीरिया से होने वाला एक रोग है| एक संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संपर्क (मौखिक, गुदा, या योनि) के बाद ट्रेपोनीमा पैलिडम प्रजनन नली या मुँह की त्वचा या श्लेष्मा झिल्ली के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है|

सिफलिस के प्रमुख लक्षण हैं पीड़ादायक घाव, त्वचा पर लाल चकत्ते, सामान्य फ्लू जैसे लक्षण, मुँह के घावों, ग्रंथियों में सूजन,

सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, वजन घटना, बालों का झड़ने आदि। इस रोग के अंतिम चरण में न्यूरोलॉजिकल, हृदय, और मांसपेशियों को क्षति पहुँच सकती है| इस संक्रमण से प्रभावित रोगियों में HIV के संक्रमण की भी ज्यादा सम्भावना रहती है|

रक्त परीक्षणों द्वारा इस रोग का पता चल सकता है| इस रोग की पहचान के लिए सामान्य तौर पर दो तरह के परिक्षण किये जाते हैं| पहला यौन रोग अनुसंधान प्रयोगशाला परीक्षण (Venereal Disease Research laboratory Test, VDRL) और दूसरा रैपिड प्लाज्मा रीगेन टेस्ट (rapid plasma reagin test,  RPR)|

एंटीबायोटिक दवाओं से यह ठीक हो सकता है परन्तु पुराना रोग हो जाने पर इस रोग के कारण हुई शरीर की क्षतियों को दूर नहीं किया जा सकता है|

असुरक्षित यौन संबंधों से दूरी बनाकर और कंडोम के प्रयोग से इस रोग को फैलने से रोका जा सकता है|

काली खांसी Whooping cough or Pertussis

काली खांसी ऊपरी श्वसन प्रणाली के अस्तर (lining of the upper respiratory system ) का एक बेहद संक्रामक और घातक संक्रमण है| यह बोर्डेटेला परट्युसिस (Bordetella pertussis) नामक बैक्टीरिया द्वारा होता है| यह छोटे बच्चों और उष्ण कटिबंध के कम विकसित देशों में आम तौर पर पाया जाता है|  इसके शुरुआती लक्षण सामान्य सर्दी जुखाम जैसे ही होते हैं| संक्रमण के दो हफ्ते बाद ही इसके लक्षण दिखाई देते हैं जिसमे खांसी की एक विशेष आवाज होती है जिसे ‘वूफिंग साउंड’ कहते हैं| इसमें

रोगी को रोगी तीव्र खाँसी देर तक आती है| जिससे साँस लेने में तकलीफ होती है| कभी-कभी रोगी को निमोनिया भी हो जाता है|

प्रयोगशाला में श्वसन नली के नमूनों या बैक्टीरिया द्वारा पैदा की गयी एंटीबाडी की जाँच से इस रोग का पता चल सकता है| यह रोग संक्रमित एक व्यक्ति से दूसरे में हवा द्वारा भी फ़ैल सकता है| यह बैक्टीरिया केवल मनुष्यों में पाया जाता है|

एंटीबायोटिक दवाओं से इसका इलाज संभव है| टीकाकरण द्वारा इस रोग को रोका जा सकता है| बच्चों में यह टीका डिप्थीरिया-टिटनेस-अकोशिकीय काली खांसी (diphtheria-tetanus-acellular pertussis, DTaP) के एक संयोजन के रूप में दिया जाता है| संक्रमित व्यक्तियों से बचाव करके इस रोग को फैलने से रोका जा सकता है|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *