जन्तु-जगत् के वर्गीकरण का संक्षिप्त इतिहास Brief History of the Classification of Animal Kingdom

पहले लोग जन्तुओं को अपने हिसाब से वर्गों में बाँटते थे, जैसे- घातक-अघातक, उड़ने वाले, न उड़ने वाले, भक्ष्य (Edible) अभक्ष्य, लाभकारी या हानिकारक जन्तु आदि। सुप्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक अरस्तू (Aristotle, 384 ई. पूर्व) ने, जिन्हें प्राणिविज्ञान का जनक (Father of Zoology) कहते हैं, सबसे पहले उस समय ज्ञात जंतुओं का मौलिक अर्थात प्राकृतिक समानताओं तथा विषमताओं के आधार पर वर्गीकरण किया। अरस्तू के लगभग 2000 वर्ष बाद, सत्रहवीं सदी से जॉन रे (1693) ने पहले-पहल प्राणि जाति (Species) की परिभाषा आधार पर, वर्गीकरण किया।

कैरोलस लिनियस (1735) ने अपनी पुस्तक सिस्टेमा नेचुरी (Systema Naturae) में 4236 ज्ञात जातियों का वर्गीकरण किया। पुस्तक के दसवें संस्करण (1758) में वर्गीकरण की जो प्रणाली अपनाई गई उसी से आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी। उन्होंने ही प्राणी-जातियों के नामकरण हेतु एक द्विनाम पद्धति (Binomial nomenclature) का विकास किया। उन्हें इसीलिए आधुनिक वर्गीकरण का पिता (Father of Modern Taxonomy) कहते हैं।

19वीं सदी में अनेक वैज्ञानिकों ने वर्गीकरण-विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन् 1901 में, अन्तर्राष्ट्रीय प्राणि-जातियों के नामकरण हेतु, लिनियस की द्विनाम-पद्धति के ही अनुसार, कुछ अन्तर्राष्ट्रीय नियमों को मान्यता दी गयी, ताकि प्रत्येक जाति का विश्व भर में एक ही वैज्ञानिक नाम हो और कोई एक नाम कई जातियों के लिए न निर्धारित कर लिया जाये। ये नियम सन् 1961 में संशोधित भी हुए, इनके अनुसार, प्रत्येक जाति के नाम में वंश (Genus) का नाम बड़े अक्षर (Capital letter) से तथा जाति का छोटे (Small letter) से, परन्तु पूरा नाम तिरछे अक्षरों (Italics) में लिखा जाना चाहिये। यदि एक जाति के लिए संसार के विभिन्न वैज्ञानिक विभिन्न नाम रख देते हैं तो सबसे पहले प्रयुक्त नाम को ही मान्यता दी जाती है।

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