सामाजिक विकास के लिये विश्व सम्मेलन World Summit for Social Development

मार्च 1995 में कोपेनहेगेन (डेनमार्क) में पहली बार विश्व सामाजिक विकास शिखर सम्मेलन (World Summit for Social Development Copenhagen, 1995 ) का आयोजन हुआ। गरीबी सम्मलेन नाम से भी ज्ञात इस सम्मेलन का आयोजन मूलतः संयुक्त राष्ट्र नीति समन्वय और संस्थिर विकास विभाग (UN Department for Policy Coordination and Sustainable Development) के द्वारा हुआ तथा इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा का आदेश (mandate) प्राप्त था। सम्मेलन का लक्ष्य गरीबी निवारण, रोजगार सृजन और सामाजिक एकीकरण पर आधारित सामाजिक विकास को विश्व समुदाय के लिये एक प्रमुख प्राथमिकता बनाना था।

सम्मेलन में सम्मिलित देशों के बीच हुई वार्ताओं के आधार पर एक दो-भाग वाले समझौते पर सहमति बनी, जिसे 180 से भी अधिक देशों ने एकमत से अपनाया। समझौते के दो भाग थे-कोपेनहेगेन घोषणा तथा कार्य योजना। कोपेनहेगन घोषणा में उन दस विशेष प्रतिबद्धताओं को सम्मिलित किया गया, जिनके लिये सरकारें सहमत थीं। कोपेनहेगेन घोषणा बाध्यकारी नहीं हैं। घोषणा के प्रमुख आकर्षण निम्नांकित हैं-

  1. विश्व के धनी देशों से उनके सकल राष्ट्रीय उत्पादों का 0.7 प्रतिशत विदेशों की सहायता पर व्यय करने का आग्रह किया गया। घोषणा के समय विश्व के मात्र चार देश- नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क और हॉलैण्ड (नीदरलैण्ड), इस लक्ष्य को पूरा कर रहे थे।
  2. एक 20-20 समझौते (20-20 compact) को अनुमोदित किया गया। इसके अंतर्गत दाता देश विदेशों की सहायता हेतु कुल निर्धारित राशि का 20 प्रतिशत मौलिक सामाजिक कार्यक्रमों के लिये आवंटित करने के लिये सहमत हुये तथा ग्राही देश अपने राष्ट्रीय बजट का 20 प्रतिशत इन कार्यक्रमों के लिये व्यतीत करने के लिये सहमत हुये। समझौते का लक्ष्य प्रत्येक व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अनिवार्य 30 से 40 बिलियन डॉलर अतिरिक्त व्यय राशि को संघटित करना था। समझौते को एक द्वि-पक्षीय विकल्प घोषित किया गया न कि अंतरराष्ट्रीय आवश्यकता। 20-20 अवधारणा को मानव विकास संसाधनों के प्रणेता महबुल-उल-हक, ने विकसित किया।
  3. जन्म दर को कम करने के लिये स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता, खाद्य उत्पादन और साक्षरता (विशेषकर महिलाओं में) में सुधार लाने का आग्रह किया गया।

विश्व सम्मेलन में विकास के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये एक पांच अध्यायों वाली कार्य योजना को भी अपनाया गया। इसमें गरीबी निवारण, सामाजिक एकीकरण और बेरोजगारी उन्मूलन की सिफारिशें की गई थीं। लेकिन इन सिफारिशों में किसी स्पष्ट योजना पर विचार नहीं किया गया था। समस्या के निदान के लिये विकसित देशों की ओर से विशेष पहल की आवश्यकता थी, जिसका कि बिल्कुल अभाव था। अतः सम्मेलन की सफलता मात्र औसत रही।

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