सर्वोच्च न्यायालय द्वारा टू-फिंगर टेस्ट अमान्य घोषित Two-finger test declared invalid by the Supreme Court

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति फ़क़ीर कलीफुल्ला की खण्डपीठ ने 17 अप्रैल, 2013 को हरियाणा की एक नाबालिग पर किए गए टू-फिंगर टेस्ट के बाद उसे यौन-संसर्ग की आदी वालों को मिली सात वर्ष की कड़ी सजा पर अपनी मुहर लगा दी। खण्डपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि टू- फिंगर टेस्ट रेप-पीड़िता की निजता, शारीरिक-मानसिक अखंडता के अधिकारों और उसके व्यक्तिगत सम्मान का घोर उल्लंघन है। इसलिए यदि यह सकारात्मक आता है, तो भी इसके आधार यह नहीं माना जा सकता कि पीड़िता की सेक्स के लिए सहमति थी। रेप-पीड़िता पर यह टेस्ट यह जानने के लिए किया जाता है कि पीड़िता कुंवारी है या नहीं।

न्यायालय की खण्डपीठ ने कहा कि आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय संधि, 1966 तथा संयुक्त राष्ट्र की अपराध के पीड़ित तथा शक्ति के दुरुपयोग की 1985 की संधियों के अनुसार, रेप-पीड़िताओं पर केवल वही मेडिकल प्रक्रिया अपनायी जाएगी, जो उनके शारीरिक गौरव को भंग न करे।

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