सल्फर Sulphur

शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द शुल्वारि से हुई है, जिसका अर्थ होता है- तांबे का शत्रु इसका संकेत ‘S’, परमाणु संख्या 16 तथा परमाणु भार 32.1 होता है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-1s2, 2s2p6, 3s23p6 होता है। गंधक (सल्फर) के परमाणु की बाह्यतम कक्षा में 6 इलेक्ट्रॉन रहते हैं। यह परिवर्तनशील संयोजकता (2, 4 और 6) प्रदर्शित करता है। यह आवर्त सारणी के वर्ग 16 का एक तत्व है।

प्राप्ति (Occurrence): प्रकृति में सल्फर मुक्त और संयुक्त दोनों ही अवस्थाओं में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। भूपटल पर सल्फर की प्रतिशतता 0.05% है। संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के लुसियाना एवं टेक्सास राज्यों में पृथ्वी की सतह से लगभग 800 फुट नीचे सल्फर प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। संसार में सल्फर के कुल उत्पादन का 80% भाग लुसियाना और टेक्सास से (USA) प्राप्त होता है। मुक्त अवस्था में सल्फर ज्वालामुखी क्षेत्रों मुख्यतः इटली के सिसली द्वीप तथा जापान में पायी जाती है। संयुक्त अवस्था में सल्फर मुख्यतः धातुओं के सल्फाइड और सल्फेट के रूप में पायी जाती है। प्याज, लहसुन, अंडा, सरसों तेल आदि पदार्थों में भी सल्फर पायी जाती है। प्याज में कड़वाहट का कारण सल्फर के यौगिक की उपस्थिति है। सल्फर की प्राप्ति फॉश विधि (Frasch Process) तथा सिसली विधि (Sicilian Process) द्वारा की जाती है।

सल्फर के अणु में सल्फर के 8 परमाणु परस्पर जुड़कर वलय (Ring) जैसी संरचना बनाते हैं। सल्फर ठोस होता है, क्योंकि इसके 8 अणु परस्पर जटिल रूप से जुड़े रहते हैं। साधारण सल्फर हल्का पीला, भंगुर एवं रवेदार होता है। यह जल में अविलेय किन्तु कार्बन डाइसल्फाइड में विलेय होता है। यह ऊष्मा और विद्युत् का कुचालक होता है। धातुओं के साथ सल्फर संयोग कर धातुओं के सल्फाइड का निर्माण करती है। लोहे के बुरादे और गंधक के चूर्ण के मिश्रण को गर्म करने पर काले रंग का फेरस सल्फाइड (FeS) बनता है। सल्फर के उर्ध्वपातन के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले बारीक चूर्ण को गंधक का फूल कहा जाता है।

सल्फर के अपरूप

  1. रवेदार अपरूप: (i) विषमलम्बाक्ष या अष्टफलकीय सल्फर या α-सल्फर, (Rhombic or Octahedral or α-Sulphur) (ii) प्रिज्मीय या एकनताक्ष सल्फर या β-सल्फर (Prismatic or Monoclinic or β-Sulphur)
  2. बेरवादार अपरूप: (1) प्लास्टिक सल्फर, (ii) श्वेत सल्फर, (iii) दुधिया सल्फर

नोट:

  • विषमलम्बाक्ष या अष्टफलकीय या α-सल्फर सल्फर का सबसे स्थायी अपरूप है।
  • उबलते हुए सल्फर को जल में डाल देने पर प्लास्टिक सल्फर (Plastic Sulphur) प्राप्त होता है।

वल्कनीकरण (Vulcanisation): प्राकृतिक रबड़ में सल्फर मिश्रित करने की प्रक्रिया वल्कनीकरण कहलाती है। रबड़ के वल्कनीकरण में सल्फर का प्रयोग किया जाता है।

सल्फर के उपयोग: (1) आजकल ब्यूटी पालरों में बालों को विशिष्ट आकार में सेट करने के लिए भी सल्फर का उपयोग किया जाता है। (ii) सल्फर का उपयोग सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4), कार्बन डाइसल्फाइड (CS2), दियासलाई, बारूद आदि के निर्माण में होता है। (iii) चर्म रोगों में सल्फर के मलहम का उपयोग औषधि के रूप में होता है। (iv) सल्फा ड्रग (Sulpha Drug) की गोलियाँ (Tablets) घावों को सुखाने के लिए तथा दस्त रोकने में प्रयुक्त की जाती है। (v) कैल्सियम बाइसल्फाइट एवं मैग्नीशियम बाइसल्फाइट का उपयोग विरंजक (Bleaching Agent) के रूप में किया जाता है। (vi) सल्फर का उपयोग रंग उद्योग में तथा जीवाणुओं एवं कीटाणुओं को नष्ट करने में भी किया जाता है। यह फफूंदी नाशी (Fungicide) के रूप में प्रयुक्त होता है।


सल्फर के यौगिक

  1. सल्फर डाइऑक्साइड (Sulphur Dioxide): ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में मुख्यतया SO2 होता है। यह एक रंगहीन, दम घोंटने वाली गंधयुक्त, हवा से भारी तथा विषैली गैस होती है। इसका जलीय घोल सल्फ्यूरस अम्ल (H2SO4) कहलाता है। अमोनिया तथा कार्बन डाइऑक्साइड की तरह आसानी से द्रवीभूत होने के कारण सल्फर डाइऑक्साइड का उपयोग रेफ्रिजरेशन (Refrigeration) में होता है। इस गैस का उपयोग प्रतिक्लोर (Antichlor) के रूप में होता है। यह विरंजन गुण प्रदर्शित करता है, परन्तु इसकी विरंजन क्रिया अस्थायी होती है। सल्फर डाइऑक्साइड का अणु कोणीय (Angular) होता है।
  2. सल्फर ट्राइऑक्साइड (Sulphur Trioxide): सल्फर ट्राइऑक्साइड (SO3) जल में शीघ्रता से घुलकर सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) बनाता है। इसी कारण इसे सल्फ्यूरिक अम्ल का ऐन्हाइड्राइड कहते हैं। सल्फर ट्राइऑक्साइड (ടO3) के अणु असममिति (Asymmetrical) होते है।
  3. सल्फ्यूरस अम्ल (Sulphurous Acid): सल्फ्यूरस अम्ल (H2SO3) ऑक्सीकारक एवं अवकारक दोनों तरह के गुण प्रदर्शित करता है। सल्फ्यूरस अम्ल विरंजक गुण भी प्रदर्शित करता है। इसकी विरंजन क्रिया अवकारक गुण के कारण होती है।
  4. सल्फ्यूरिक अम्ल (Sulphuric Acid): सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4)को रसायनों का सम्राट (Chemical King) कहा जाता है। इसे कसीस का तेल (oil of vitriol) भी कहा जाता है। औद्योगिक पैमाने पर सल्फ्यूरिक अम्ल बनाने की दो विधियाँ हैं- (i) सम्पर्क विधि (Contact Process) (ii) लेड-कक्ष विधि (Lead Chamber Process) संपर्क विधि द्वारा सल्फ्यूरिक बनाने में प्लेटिनम (Pt), वेनेडियम पेन्टाक्साइड (V2O5), Fe2O3 आदि का उपयोग उत्प्रेरक के रूप में होता है, जबकि लेड-कक्ष विधि में नाइट्रोजन के ऑक्साइड का उपयोग उत्प्रेरक के रूप में होता है। सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग स्टोरेज बैटरी (storage Cells), पेट्रोलियम के शुद्धीकरण आदि में होता है। सल्फ्यूरिक अम्ल एक प्रबल निर्जलीकारक है। चीनी पर सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल डालने पर वह झुलस जाती है। इस प्रतिक्रिया में चीनी का निर्जलीकरण (Dehydration of sugar) हो जाता है। यदि शुद्ध सल्फ्यूरिक अम्ल का विद्युत् अपघटन किया जाए, तो एनोड पर मार्शल एसिड (Marshal’s Acid) प्राप्त होता है।
  5. ओलियम (Oleum): H2S2O7 को सधूम सल्फ्यूरिक अम्ल, पाइरो सल्फ्यूरिक अम्ल तथा ओलियम के नाम से जाना जाता है। सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) सल्फर ट्राइऑक्साइड गैस को घुलाकर पाइरोसल्फ्यूरिक अम्ल (ओलियम) बनाता है।
  6. हाइड्रोजन सल्फाइड (Hydrogen Sulphide): ज्वालामुखी से निकलनेवाली गैसों में हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) गैस उपस्थित रहता है। हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) एक रंगहीन गैस है, जिसमें सड़े अंडे (Rotten Eggs) की तरह तीव्र गंध होती है। यह एक विषैली गैस है।

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