दक्षिण भारत की सल्तनतें: खानदेश South Indian Sultanates: Khandesh

खानदेश तपती नदी की घाटी में मुहम्मद बिन तुगलक के साम्राज्य का एक प्रांत था। फिरोजशाह ने इसकी सरकार को पाने व्यक्तिगत अनुचर मालिक राजा फारुकी के सुपर्द कर दिया था, जिसके पूर्वक अलाउद्दीन खलजी एवं मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकालों में दिल्ली दरबार के प्रतिष्ठित सरदार रहचुके थे। फिरोजशाह की मृत्यु के पश्चात् आने वाली गड़बड़ी के युग में मालिक राजा ने, अपने पड़ोसी मालवा के दिलावर खाँ के दृष्टान्त का अनुकरण कर, अपने को दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र घोषित कर दिया। गुजरात के मुजफ्फर शाह प्रथम ने उसे कई लड़ाईयों में पराजित किया। वह शान्त प्रकृति का पुरुष था। उसने अपनी मुस्लिम एवं हिन्दू प्रजाओं के साथ दयालुता एवं सहिष्णुता का बर्ताव किया। 29 अप्रैल, 1399 को वह चल बसा। उसके पुत्र मलिक नसीर ने शीघ्र ही, अपने भाई हसन को पराजित कर, अपने को खानदेश का निरंकुश स्वामी बना लिया गया। नए सुल्तान ने असीरगढ़ के दुर्ग को इसके हिन्दू नायक से चीन लिया। जब उसने नंदुरबार पर आक्रमण किया, तब गुजरात के सुल्तान अहमद शाह ने उसे हरा दिया तथा उसे अपने प्रति वफादारी की शपथ लेने को विवश किया। अपने दामाद अलाउद्दीन अहमद बहमनी के साथ उसका युद्ध भी उसके लिए अनर्थकारी हुआ। सन् 1437-1438 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। तब उसके पुत्र आदिल खाँ प्रथम (1438-1441 ई.) तथा पौत्र मुबारक खाँ प्रथम (1441-1457 ई.) के दो घटनाशून्य शासनकालों के पश्चात् खानदेश की गद्दी पर मुबारक खाँ के पुत्र आदिल खाँ द्वितीय ने अधिकार कर लिया।

वह एक योग्य एवं प्रबल शासक था। उसने अपने राज्य में शासन-सम्बन्धी व्यवस्था को पुन: स्थापित करने का कठिन प्रयत्न किया। उसने गोंडवाना पर अपने राज्य का अधिकार फैलाया। 1501 ई. में उसकी मृत्यु हुई। उसके कोई संतान न थी। अतएव गद्दी उसके भाई दाऊ को मिली। लगभग सात वर्षों के गौरवहीन शासनकाल के बाद 1508 ई. में दाऊद की मृत्यु हो गयी। उसके बाद उसका पुत्र गजनी खाँ आया। गद्दी पर बैठने के दस दिनों के अन्दर ही गजनी खाँ को विष दे दिया गया। इससे गद्दी के दो प्रतिद्वन्द्वी हकदारों के दल लड़ने लगे। फलत: खानदेश अव्यवस्था में डूब गया। एक दल का समर्थन अहमदनगर का अहमद निजाम शाह करता था तथा दूसरे का गुजरात का महमूद बेगड़ा। अंत में बेगड़ा अपने उम्मीदवार को आदिल खाँ तृतीय के नाम से गद्दी पर बैठाने में सफल हो गया। आदिल खाँ तृतीय के राज्यकाल में कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं घटी। उसकी मृत्यु 25 अगस्त, 1520 ई. को हो गयी। उसके दुर्बल उत्तराधिकारियों में राज्य को बाहरी शत्रुओं के आक्रमणों से बचाने का साहस अथवा योग्यता नहीं थी। गुजरात की तरह खानदेश को भी अकबर ने अपने साम्राज्य में 1601 ई. में मिला लिया।

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