संविधान से ऊपर नहीं संसद: सर्वोच्च न्यायालय Parliament is not above the Constitution: Supreme Court

मुख्य न्यायाधीश एस.एस. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ ने भूमि अधिग्रहण कानून को चुनौती देने वाली केटी प्लांटेशन प्राइवेट लिमिटेड की याचिकाएं निरस्त करते हुए 15 अगस्त, 2011 को निर्णय दिया कि वैसे तो कानून के शासन अर्थात् रूल ऑफ लॉ की अवधारणा हमारे संविधान में कहीं देखने को नहीं मिलती, फिर भी यह हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। इसे संसद भी नष्ट या समाप्त नहीं कर सकती, अपितु यह संसद पर बाध्यकारी है। इस प्रकार रूल ऑफ लॉ भूमि अधिग्रहण के उन मामलों पर भी लागू होता है, जहां कानून को न्यायालय में चुनौती देने से संवैधानिक छूट मिली हुई है। केशवानंद भारती के मामले में दिए गए निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने रूल ऑफ लॉ की को संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना। संविधानपीठ ने कहा कि एक ओर तो रूल ऑफ लॉ संसद की संर्वोच्चता निर्धारित करता है, दूसरी ओर संविधान के ऊपर संसद की संप्रभुता को नकारता है। अर्थात् संसद संविधान से ऊपर नहीं।

न्यायालय के अनुसार, वैसे तो सैद्धांतिक रूप से कानून के शासन के कोई विशिष्ट चिन्ह या भाग नहीं है, लेकिन यह अनेक रूपों में नजर आता है। जैसे प्राकृत न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन कानून के शासन (रूल ऑफ लॉ) को कम करके आंकता है। इसी प्रकार मनमानापन या तर्कसंगत न होना रूल ऑफ लॉ का उल्लंघन हो सकता है। किंतु ये उल्लंघन किसी कानून को अवैध ठहराने का आधार नहीं हो सकते इसके लिए रुल ऑफ़ लॉ का उल्लंघन इतना गंभीर होना चाहिए की वह संविधान के मूल ढांचे और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करता हो। लोकतांत्रिक समाज में संविधान के प्रत्येक प्रावधान में एक मूल सिद्धांत शामिल रहता है कि किसी के शांतिपूर्ण कब्जे में केवल कानूनी प्रक्रिया द्वारा ही दखल दिया जा सकता है। न्यायालय ने संपत्ति अधिग्रहण से विदेशी निवेश प्रभावित होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, विदेशी निवेशकों के पास मौलिक अधिकार नहीं, फिर भी उन्हें मालूम होना चाहिए कि यहां कानून का राज चलता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *