राष्ट्रीय आन्दोलन 1905-1919 ई. National Movement 1905-1919 AD.
उग्र राष्ट्रवाद के उदय के कारण
- अंग्रेजी राज्य के सही स्वरूप की पहचान- भारतीयों द्वारा यह महसूस किया जाना कि ब्रिटिश शासन का स्वरूप शोषणात्मक है तथा वह भारत की आर्थिक प्रगति के स्थान पर उपलब्ध संसाधनों का शोषण करने में लगी हुई है।
- भारतीयों के आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान में वृद्धि।
- शिक्षा में विकास का प्रभाव- इसके फलस्वरूप भारतीयों में जागृति आयी तथा बेरोजगारी बढ़ी। बेरोजगारी में वृद्धि के लिये भारतीयों ने अंग्रेजों को उत्तरदायी ठहराया।
- अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव- तत्कालीन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय घटनाओं ने यूरोपीय अजेयता के मिथक को तोड़ दिया। इन घटनाओं में प्रमुख हैं-
- एक छोटे से देश जापान का आर्थिक महाशक्ति के रूप में अभ्युदय
- इथियोपिआ (अबीसीनिया) की इटली पर विजय
- ब्रिटेन की सेनाओं को गंभीर क्षति पहुंचाने वाला बोअर का युद्ध (1899-1902)
- जापान की रूस पर विजय (1905)
- विश्व के अनेक देशों के राष्ट्रवादी क्रांतिकारी आंदोलन
- बढ़ते हुये पश्चिमीकरण के विरुद्ध प्रतिक्रिया।
- उदारवादियों की उपलब्धियों से असंतोष
- लार्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियां, जैसे- कलकत्ता कार्पोरेशन अधिनियम (1899), कार्यालय गोपनीयता अधिनियम (1904), भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम (1904) एवं बंगाल का विभाजन (1905)।
- जुझारू राष्ट्रवादी विचारधारा।
- एक प्रशिक्षित नेतृत्व।
उग्रवादियों के सिद्धांत
- ब्रिटिश शासन से घृणा।
- जनसमूह की शक्ति एवं ऊर्जा में विश्वास
- स्वराज्य मुख्य लक्ष्य
- प्रत्यक्ष राजनीतिक भागीदारी एवं आत्म-त्याग की भावना में विश्वास
- भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों में विश्वास
- भारतीय समारोहों के आयोजन के पक्षधर
- प्रेस तथा शिक्षा में विकास के पक्षधर
स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन
बंगाल विभाजन, (जो कि 1903 में सार्वजनिक हुआ तथा 1905 में लागू किया गया) के विरोध में प्रारम्भ हुआ। बंगाल विभाजन के पीछे सरकार की वास्तविक मंशा बंगाल को दुर्बल करना था क्योंकि उस समय बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का प्रमुख केंद्र था। बंगाल विभाजन के लिये सरकार ने तर्क दिया कि बंगाल की विशाल आबादी के कारण प्रशासन का सुचारु रुप से संचालन कठिन हो गया है। यद्यपि कुछ सीमा तक सरकार का यह तर्क सही था किन्तु उसकी वास्तविक मंशा कुछ और ही थी। विभाजन के फलस्वरूप सरकार ने बंगाल को दो भागों में विभक्त कर दिया। पहले भाग में पूर्वी बंगाल तथा असम और दूसरे भाग में शेष बंगाल को रखा गया।
उदारवादियों का बंगाल विभाजन विरोधी अभियान (1903-1905)
उदारवादी, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, के.के. मिश्रा एवं पृथ्वीशचन्द्र राय प्रमुख थे। उदारवादियों ने विरोध स्वरूप जो तरीके अपनाये वे थे-जनसभाओं का आयोजन, याचिकायें, संशोधन प्रस्ताव तथा पम्फलेट्स एवं समाचार पत्रों के माध्यम से विरोध।
बंगाल विभाजन के संबंध में उग्रराष्ट्रवादियों की गतिविधियां
बंगाल विभाजन के विरोध में सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रमुख उग्रवादी नेता थे- बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्रपाल, लाला लाजपत राय एवं अरविन्द घोष।
विरोध के तरीके
विदेशी वस्तुओं एवं विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, जनसभाओं या आत्म-शक्ति की भावना पर बल, स्वदेशी या राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम, स्वदेशी या भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन, भारतीय संगीत एवं भारतीय चित्रकला को नया आयाम, विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहन, शिक्षा संस्थाओं, स्थानीय निकायों, सरकारी सेवाओं इत्यादि का बहिष्कार।
विरोध आन्दोलन की बागडोर उग्रवादियों द्वारा अपने हाथ में लेने का कारण
- उदारवादियों के नेतृत्व में आन्दोलन का विशेष परिणाम न निकलना।
- उदारवादियों के संवैधानिक तरीकों से उग्रवादी असहमत थे।
- विरोध अभियान को असफल बनाने हेतु सरकार की दमनकारी नीतियां।
आंदोलन का सामाजिक आधार
छात्र, महिलायें, जमींदारों का एक वर्ग तथा शहरी निम्न वर्ग एवं साधारण वर्ग। शहरों एवं कस्बों के मध्य वर्ग ने पहली बार किसी राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी, जबकि मुसलमान सामान्यतया आंदोलन से पृथक रहे।
बंगाल विभाजन का रद्द होना
क्रांतिकारी आतंकवाद के उभरने के भय से 1911 में सरकार ने बंगाल विभाजन रद्द कर दिया।
स्वदेशी आन्दोलन की असफलता के कारण
- सरकार की कठोर दमनात्मक कार्यवाइयां।
- प्रभावी संगठन का अभाव एवं अनुशासनात्मक दिशाहीनता।
- सभी प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी से आंदोलन का नेतृत्वविहीन होना।
- राष्ट्रवादी नेताओं की आपसी कलह।
- संकुचित सामाजिक जनाधार।
आंदोलन की मुख्य उपलब्धियां
‘व्यापक सामाजिक प्रभाव’ क्योंकि समाज के अब तक के निष्क्रिय वर्ग ने बड़ी सक्रियता के साथ आंदोलन में भाग लिया, आगे के आंदोलनों को इस आंदोलन ने प्रभावी दिशा एवं उत्साह दिया, सांस्कृतिक समृद्धि में बढ़ोत्तरी, विज्ञान एवं साहित्य को बढ़ावा, भारतीय साहसिक राजनीतिक भागीदारी एवं राजनैतिक एकता की महत्ता से परिचित हुये। भारतीयों के समक्ष उपनिवेशवादी विचारों और संस्थाओं की वास्तविक मंशा उजागर हो गयी।
कांग्रेस का सूरत विभाजन (1907): प्रमुख कारण
उदारवारीः स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को केवल बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे तथा वे केवल विदेशी कपड़ों और शराब का बहिष्कार किये जाने के पक्षधर थे।
उग्रवादीः स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को न केवल पूरे बंगाल अपितु देश के अन्य भागों में भी चलाये जाने तथा इसमें विदेशी कपड़ों एवं शराब के साथ सभी सरकारी नगर निकायों इत्यादि के बहिष्कार का मुद्दा भी सम्मिलित किये जाने की मांग कर रहे थे।
स्वदेशी आंदोलन के दमन हेतु सरकार द्वारा किये गये प्रयास
- राजद्रोही सभा अधिनियम, 1907
- फौजदारी कानून (संशोधित) अधिनियम, 1908
- भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1908
- विध्वंसक पदार्थ अधिनियम, 1908
- भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910
क्रांतिकारी आतंकवाद
उदय के कारण
उदारवादियों की असफलता के पश्चात् युवा राष्ट्रवादियों का मोह भंग होना तथा आंदोलन के नेताओं का युवा शक्ति एवं ऊर्जा के सही प्रयोग में असफल रहना। सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण शांतिपूर्ण आंदोलन की संभावना का समाप्त हो जाना। युवा राष्ट्रवादियों में अतिशीघ्र परिणाम प्राप्त करने की अभिलाषा तथा युवा राष्ट्रवादियों का प्रभावी संगठन बनाने में राष्ट्रवादी नेताओं की असफलता।
मुख्य कार्यक्रम
अलोकप्रिय सरकारी अधिकारियों की हत्या करना, हिंसात्मक गतिविधियों द्वारा शासकों को आतंकित करना तथा भारतीयों के मनोमस्तिष्क से अंग्रेजों के शक्तिशाली एवं अजेय होने का भय दूर करना, रूसी निहिलिस्टों एवं आयरलैंड के आतंकवादियों की तरह व्यक्तिगत रूप से विध्वंसक गतिविधियां संपन्न करना, सरकार विरोधी लोगों के सहयोह से सैन्य षड्तंत्र करना एवं डकैती एवं लूटपाट करके धन एकत्रित करना।
प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व क्रांतिकारी गतिविधियां
बंगाल
- 1902- मिदनापुर एवं कलकत्ता में प्रथम क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना (अनुशीलन समिति)।
- 1906- युगांतर नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ।
- 1905-1906- तक क्रांतिकारी आतंकवाद का समर्थन एवं प्रचार करने वाले अनेक समाचार-पत्रों का प्रकाशन प्रारम्भ, जिनमें संध्या सबसे प्रमुख है।
- 1907- युगांतर समूह के सदस्यों द्वारा बंगाल के अलोकप्रिय लेफ्टिनेंट गवर्नर फुलर की हत्या का असफल प्रयास।
- 1908-खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी द्वारा बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के न्यायाधीश श्री किंग्जफोर्ड की हत्या का प्रयास।
- अरविंद घोष, बरीन्द्र कुमार घोष एवं अन्य पर ‘अलीपुर षड़यंत्र कांड का अभियोग चलाया गया।
- 1908- पुलिन दास के नेतृत्व में ढाका अनुशीलन समिति के सदस्यों द्वारा बारा में डकैती।
- 1909- अलीपुर षड़यंत्र केस से संबंधित सरकारी प्रासीक्यूटर की कलकत्ता में हत्या।
- 1912- रासविहारी बोस तथा सचिन सान्याल ने भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग के काफिले पर दिल्ली के चांदनी चौक में बम फेंका। तेरह लोग गिरफ्तार, ‘दिल्ली षड़यंत्र केस’ के तहत मुकदमा चलाया गया। संध्या तथा युगांतर नामक समाचार पत्रों द्वारा क्रांतिकारी आतंकवादियों की उक्त गतिविधियों को पूर्ण समर्थन प्रदान किया गया।
महाराष्ट्र
- 1879- वासुदेव बलवंत फड़के के रामोसी कृषक दल द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों का शुभारम्भ।
- 1890 से- बालगंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र के लोगों में स्वराज्य के प्रति आस्था जगाने तथा क्रांतिकारी आतंकवादियों को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने हेतु शिवाजी महोत्सव एवं गणेश महोत्सव प्रारंभ किए, उन्होंने अपने पत्रों मराठा तथा केसरी के द्वारा भी क्रांतिकारी आतंकवाद को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।
- 1897- पूना में प्लेग समिति के प्रधान श्री रैण्ड एवं लैफ्टिनेंट एयसर्ट की चापकर बंधुओं द्वारा हत्या।
- 1899- विनायक दामोदर सावरकर एवं उनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर द्वारा एक गुप्त सभा ‘मित्र मेला’ की स्थापना। 1904- मित्र मेला का ‘अभिनव भारत’ में विलय।
- 1909- अभिनव भारत के एक सदस्य अनन्त कान्हेर द्वारा नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या।
पंजाब
पंजाब में क्रांतिकारी आतंकवाद को प्रोत्साहित करने में लाला लाजपत राय, अजीत अम्बा प्रसाद की मुख्य भूमिका रही।
विदेशों में क्रांतिकारी आतंकवाद
इंग्लैंड
- श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, मदनलाल धींगरा एवं लाला हरदयाल की मुख्य भूमिका।
- 1905- श्यामाजी कृष्ण वर्मा द्वारा ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना।
- इण्डिया हाउस से एक समाचार पत्र सोशियोलाजित्ट का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया।
- इण्डिया हाउस में ही सावरकर ने ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी।
- 1909- मदनलाल ढींगरा ने कर्नल विलियम कर्जन वाइली की गोली मारकर हत्या कर दी।
फ्रांस
- आर.एस. राणा एवं श्रीमति भीकाजी रूस्तम कामा ने पेरिस से क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखने का प्रयास किया। यहां से बंदेमातरम् नामक समाचार पत्र निकालने का प्रयास।
अमेरिका तथा कनाडा
- लाला हरदयाल प्रमुख नेतृत्वकर्ता।
- 1913 में सैन फ्रेंसिस्को ‘गदर दल’ की स्थापना।
- गदर नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन ।
जर्मनी
- लाला हरदयाल के अमेरिका से जर्मनी पहुंचने पर क्रांतिकारी गतिविधियों में तेजी।
- वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय प्रमुख नेता।
मार्ले-मिन्टो सुधार (1909)
- केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि।
- गैर-सरकारी निर्वाचित सदस्यों की संख्या अभी भी नामजद एवं बिना चुने हुये सदस्यों की संख्या से कम थी। मुसलमानों के लिये पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की व्यवस्था।
- निर्वाचित सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता था। इस प्रकार भारत में पहली बार चुनाव प्रणाली प्रारम्भ हुई।
- व्यवस्थापिका समाओं के अधिकारों में वृद्धि की गयी। सदस्यों को आर्थिक प्रस्तावों पर बहस करने, उनके विषयों में संशोधन प्रस्ताव रखने, कुछ विषयों पर मतदान करने, प्रश्न पूछने, साधारण प्रश्नों पर बहस करने तथा सार्वजनिक हित के प्रस्तावों को प्रस्तुत करने का अधिकार दिया गया।
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था।
[divide]
इन सुधारों के पीछे सरकार की मंशा थी कि राष्ट्रवादियों को आपस में विभाजित कर दिया जाये। नरमपंथियों एवं मुसलमानों को लालच देकर सरकार के पक्ष में कर लिया जाये।
विधान परिषद् के सदस्यों के उत्तरदायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित न करने के कारण अनेक भ्रांतियां उत्पन्न हो गयीं।
निर्वाचन की पद्धति बहुत ज्यादा अस्पष्ट थी।
मुसलमानों हेतु पृथक निर्वाचन प्रणाली प्रारम्भ करना कालान्तर में राष्ट्रीय एकता के लिये अत्यन्त घातक सिद्ध हुआ।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियां
उत्तरी अमेरिका में लाला हरदयाल, रामचन्द्र, भावन सिंह, करतार सिंह सराबा, बरकत उल्ला एवं भाई परमानन्द द्वारा ‘गदर दल’ का गठन।
गदर-दल के कार्यक्रम
- सरकारी अधिकारियों की हत्या।
- क्रांतिकारी साहित्य का प्रकाशन।
- विदेशों में पदस्थापित भारतीय सेना के मध्य कार्य करना तथा क्रांतिकारी गतिविधियों हेतु धन एकत्रित करना।
- ब्रिटेन के सभी उपनिवेशों (न केवल भारत) में एक-एक करके विद्रोह प्रारम्भ करना।
- प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होने तथा कामागाटा मारूप्रकरण (सितम्बर, 1914)से गदर दल की गतिविधियां और तेज हो गयीं। 21 फरवरी, 1915 को गदर दल के कार्यकर्ताओं ने फिरोजपुर, लाहौर और रावलपिंदी में सशस्त्र विद्रोह की योजना बनायी किन्तु विश्वासघात के कारण यह योजना असफल हो गयी।
[divide]
गदर दल के कार्यकर्ताओं को दण्डित करने के लिये सरकार ने 1915 में भारत रक्षा अधिनियम बनाया।
यूरोप में वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय एवं उनके सहयोगियों ने ‘बर्लिन कमेटी फॉर इंडियन इंडिपेंडेंस’ की स्थापना की।
यूरोप स्थित भारतीय क्रांतिकारी आतंकवादियों ने विश्व के कई भागों यथा-बगदाद, ईरान, तुर्की एवं काबुल में विभिन्न क्रांतिकारी मिशन भेजे।
सिंगापुर में 15 फरवरी 1915 को पंजाबी मुसलमानों की पांचवी लाईट इन्फॅट्री तथा 36वीं सिख बटालियन के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह को बेरहमी से कुचल दिया गया।
सितम्बर 1915 में उड़ीसा तट पर स्थित बालासोर नामक स्थान पर बाधा जतिन पुलिस मुठभेड़ में शहीद हो गये।
[divide]
होमरूल लीग आंदोलन
होमरूल लीग आंदोलन, प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् उत्पन्न हुई परिस्थितियों में एक प्रभावशाली प्रतिक्रिया के रूप में प्रारम्भ हुआ। आयरलैंड के होमरूल लीग की तर्ज पर इसे भारत में एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने प्रारम्भ किया।
आंदोलन के प्रारम्भ होने में सहायक कारक
- राष्ट्रवादियों के एक वर्ग का यह विश्वास कि सरकार का ध्यान आकर्षित करने हेतु उस पर दबाव डालना आवश्यक है।
- मार्ले-मिंटो सुधारों से मोहभंग होना।
- युद्धोपरांत भारतीयों पर आरोपित आर्थिक बोझ से त्रस्त भारतीय किसी भी आंदोलन में भाग लेने हेतु तत्पर थे।
- बालगंगाधर तिलक एवं एनी बेसेंट ने तत्कालीन परिस्थितियों में योग्य नेतृत्व प्रदान किया।
- प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन की साम्राज्यवादी मंशा का उजागर होना।
आंदोलन का उद्देश्य
‘होमरूल’ या ‘स्वशासन’ की अवधारणा से भारतीयों को परिचित कराना।
तिलक की होमरूल लीग
तिलक ने अप्रैल 1916 में इसकी स्थापना की। इसकी शाखायें महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रांत एवं बरार में खोली गयीं। इसे 6 शाखाओं में संगठित किया गया।
एनी बेसेंट की होमरूल लीग
एनी बेसेंट ने सितम्बर 1916 में मद्रास में इसकी स्थापना की। शेष भारत में इसकी लगभग 200 शाखायें खोली गयीं।
कालान्तर में कई अन्य नेता होमरूल लीग आंदोलन से जुड़ गये, जिनमें नरमपंथी कांग्रेसी भी थे।
आंदोलन की विधियां
जनसभाओं का आयोजन, परिचर्चा आयोजित करना, पुस्तकालय एवं अध्ययन कक्षों की स्थापना, सम्मेलनों का आयोजन, विद्यार्थियों की कक्षाएं आयोजित करना, समाचार पत्र, पैम्फलेट्स, पोस्टर, पोस्ट कार्ड एवं नाटकों के माध्यम से भारतीय जनमानस को होमरूल अर्थात् स्वशासन के वास्तविक अर्थो से परिचित कराना।
आंदोलन के प्रति सरकार वर्ग का रुख
दमनात्मक कार्यवाई, राजनीतिक सभाओं पर प्रतिबंध, तिलक एवं एनी बेसेंट पर मुकदमा, राजनैतिक गिरफ्तारियां इत्यादि।
आांदोलन की उपलब्धियां
भारतीयों में चेतना का प्रसार, देश एवं शहरों के बीच सांगठनिक सम्पर्क की स्थापना, जुझारु राष्ट्रवादियों की नयी पीढ़ी का निर्माण, उग्रवादियों एवं नरमपंथियों के मध्य पुर्नएकीकरण को प्रोत्साहन, जिसके फलस्वरूप 1916 के लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस के दोनों दलों में एकता का मार्ग प्रशस्त हुआ।
कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन 1916
- उग्रवादी पुनः कांग्रेस में सम्मिलित।
- कांगेस एवं मुस्लिम लीग के मध्य समझौता।
- कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग का संयुक्त घोषणा-पत्र।
- कांग्रेस द्वारा मुस्लिम लीग की पृथक प्रतिनिधित्व की मांगे स्वीकार की गयीं।
- इसके भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में दूरगामी परिणाम हुये।