राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 National Green Tribunal Act, 2010 – NGT

राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ने इस अधिनियम का अनुमोदन 2 जून, 2010 को किया। इस अधिनियम के तहत् पर्यावरण, वनों के संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों सम्बन्धी मामलों की सुनवाई के लिए अलग से एक राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का गठन केंद्र सरकार ने 19 अक्टूबर, 2010 को किया। न्यायाधिकरण का मुख्यालय दिल्ली में स्थापित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश लोकेश्वर सिंह पांटा को इस 20 सदस्यीय राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इस न्यायाधिकरण की उच्च न्यायालय का दर्जा दिया गया है तथा इसकी 4 पीठे (बेंच) देश के विभिन्न शहरों में स्थापित की जाएंगी।

कानून के अधिनियमन में, (i)जून 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन; (ii) जून 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, जिसमें भारत भी शामिल था; और (iii) भारत में न्यायिक उद्घोषणाओं के अंतर्गत स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को संविधान में अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उल्लिखित जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है। जिसके अंतर्गत हरित न्यायाधिकरण का गठन किया गया और इसे पर्यावरण से संबद्ध बहु-अनुशासनात्मक मुद्दों पर निर्णय की न्यायिक अधिकारिता प्रदान की गई।

अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत, अधिकरण को सभी दीवानी मामलों में, जहां पर्यावरण संबंधी तात्विक प्रश्न निहित हो, न्यायिक अधिकारिता प्रदान की गई है। अधिनियम की धारा, 15 के तहत् प्राधिकरण को, प्रदुषण एवं अन्य पर्यावरणीय क्षति के कारण पीड़ित को राहत एवं मुआवजा प्रदान करने की शक्ति, संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति (पर्यावरण संबंधी) तथा पर्यावरण नुकसान की क्षतिपूर्ति की शक्ति दी गई है। इस न्यायाधिकरण को पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों पर तीन वर्ष तक के कारावास व 10 करोड़ रुपए (निगम मामलों में 25 करोड़ रुपए) तक की सजा देने का अधिकार होगा।

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न्यायाधिकरण को बाधारहित कार्य करने की अवस्था प्रदान करने के लिए अधिनियम की धारा 19 के अंतर्गत प्रावधान है कि, नागरिक प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत तकनीकी पहलु होने के बावजूद यह प्रक्रिया संहिता न्यायाधिकरण के कार्य को बाधित नहीं कर सकती क्योंकि न्यायाधिकरण का कार्य तुलनात्मक रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से निर्देशित होता है। साथ ही धारा 22 प्रावधान करती है कि न्यायाधिकरण के निर्णयों के विरुद्ध अपील सीधे भारत के सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है। न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मामलों पर सिविल न्यायालयों को न्यायिक अधिकारिता नहीं होगी।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के अस्तित्व में आने से पूर्व में कार्यरत राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण अधिनियम, 1995 और राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण की अब समाप्त कर दिया जाएगा तथा इसके अधीन विचाराधीन मामले अब नवगठित प्राधिकरण में स्थानांतरित हो जाएंगे।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में 20 सदस्य होंगे जिसमें 10 न्यायिक क्षेत्र से और बाकी गैर-न्यायिक क्षेत्र से होंगे। ये सभी पर्यावरण एवं संबंधित विज्ञानों में विशेषज्ञ होंगे। न्यायाधिकरण के गठन से भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाता है जहां यह व्यवस्था है। उल्लेखनीय है कि आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड में ही पर्यावरण मुद्दों के निपटारे हेतु विशेष अदालते हैं।


न्यायाधिकरण सम्बन्धी महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं-

  • पर्यावरण से क्षति होने पर आम आदमी पर भी वाद दायर कर सकेगा।
  • न्यायाधिकरण को विश्वविद्यालय आयोग की सिफारिशों पर स्थापित किया गया है।
  • इसमें विभिन्न एजेंसियों के मध्य पर्यावरण संबंधी वादों का भी निपटारा किया जाएगा।
  • इसमें अदालतों में मुकदमों के लंबित होने से मुक्ति मिलेगी।
  • सर्किट बेंच को अपने अधिकारक्षेत्र के अंतर्गत मामले सुनने की अनुमति होगी।
  • ट्रिब्यूनल के विरूद्ध अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकेगी।

किसी व्यक्ति के निहित स्वार्थ या फिर राजनीतिक रूप से प्रेरित या किसी प्रकार के प्रचार को हासिल करने के मंतव्य से दाखिल की गई जनहित याचिकाओं पर गौर नहीं किया जाएगा।

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