मौर्यकालीन धार्मिक व्यवस्था Mauryan Religious System

कौटिल्य ने भारत के प्राचीन धर्म को त्रयी धर्म कहा है। इस काल में ऐसे धार्मिक  सम्प्रदायों की सत्ता थी जो पुराने वैदिक या त्रयी धर्म से भिन्न थे। इस सम्प्रदायों के लिए कौटिल्य ने वृषल और पाखंड शब्दों का प्रयोग किया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में शाक्य एवं आविजक परिव्राजकों का उल्लेख है, परन्तु बौद्ध साहित्य से सूचित होता है की अन्य भी बहुत  से पाखंड मॉय युग में मौजूद थे। वैदिक धर्म मौर्य युग में प्रधान था, परन्तु इसका स्वरूप बदल चूका था। प्राचीन वैदिक धर्म में मंदिर एवं मूर्ति पूजा के लिए कोई स्थान नहीं था। परन्तु इस युग में वैदिक धर्म में मूर्ति पूजा का महत्वपूर्ण स्थान हो गया। मूर्तियाँ मंदिरों में स्थापित होने लगीं। जिन विविध देवी-देवताओं की मूर्तियाँ मंदिरों में प्रतिस्थापित कौटिल्य ने उनके नाम भी दिए हैं। अर्थशास्त्र में लिखा है कि के में अपराजित, अप्रतिहत, जयन्त, वैजयन्त, शिव, वैश्रवण, अश्विन, और मदिरा के गृह स्थापित जाते थे। संभवत: अपराजित, अप्रतिहत, जयंत और वैजयंत देवराज इंद्र के विविध नाम हैं। वैश्रवण कुबेर को कहते थे। अश्विन वैदिक देवताओं में एक था। ‘श्री’ लक्ष्मी का पयार्यवाची है। संभवत: मदिरा भी दुर्गा और काली की तरह एक देवी थी। ब्रह्म, इंद्र, यम और स्कद (सेनापति) की मूर्तियाँ बनवाकर नगर के चारों द्वारों पर स्थापित की जाती थीं। वरूण, नागराज और संकर्षण देवताओं का भी अर्थशास्त्र में उल्लेख है। पतञ्जलि का यह मानना है कि धन के लिए देवताओं की प्रतिमाओं को बनाकर बेचा जाता था। अशोक के काल में धार्मिक समूहों का निम्नलिखित विभाजन था- ब्राह्मण, श्रमण, बौद्ध आजीवक एवं अन्य। अशोक ने गया के पास बाराबर की पहाड़ी में कुछ गुफाएँ आजीवक संप्रदाय को प्रदान कीं। उसके पौत्र दशरथ ने नागार्जुनी पहाड़ी में कुछ गुफाएँ आजीवकों को दी। तृतीय बौद्ध संगीति-अधिवेशन के अन्त में धर्मप्रचार के लिए दूत भेजे गए। लंका की एक प्राचीन अनुश्रुति के अनुसार बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजे गए धर्म प्रचारकों के नाम इस प्रकार हैं-

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अशोक का धम्म (धर्म)

अशोक के व्यक्तित्व, विचार और योगदान के विवेचन के प्रसंग में उसकी धम्म की परिकल्पना पर विचार करना आवश्यक है। अशोक वस्तुतः किस धर्म का अनुयायी था। इस प्रश्न पर विद्वानों में मतभेद रहा है। अधिकांश विद्वान् उसे बौद्ध धर्म का अनुयायी मानते हैं। उनके अनुसार अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। दूसरी ओर कुछ विद्वान् इस मत से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि अशोक द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार करने के लिए अपेक्षित प्रामाणिक साध्यों का अभाव है। जैसा कि सेनार्ट महोदय ने लिखा है- अशोक के धर्म में कोई ऐसी बात नहीं है जिसके आधार पर हम यह कह सके कि अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। इसी प्रकार कर्न महोदय ने लिखा है कि- अशोक के कुछ शिला-लेखों के अतिरिक्त उनमें कोई ऐसी बात नहीं मिलती है जो विशेषतया बौद्धों की हो।

निम्नलिखित साक्ष्यों के अधर पर अशोक के धम्म को बौद्ध धर्म का पर्याय मन जा सकता है-

  1. अशोक के बौद्ध धर्म के अनुगामी होने के सबसे प्रबल साक्ष्य अशोक के प्रस्तरों पर उत्कीर्ण कराए गए विविध प्रकार के अभिलेख हैं- उदाहरण के लिए (क) भाबू शिला-लेख में अशेाक ने त्रिरत्नों (बुद्ध, संघ तथा धम्म) के प्रति श्रद्धा का उल्लेख किया है। (ख) सारनाथ के लघु स्तम्भ लेख से यह ज्ञात होता है कि अशोक ने अपने को बौद्ध धर्म के संरक्षक के स्थान में रखते हुए संघ भेद के विरुद्ध कुछ दंड-विधान घोषित किए हैं। (ग) आठवें शिला-लेख से यह ज्ञात होता है कि अशेाक ने बौध गया की यात्रा की। (घ) इसी प्रकार चार लघु स्तम्भ लेख, दो तराई स्तम्भ लेख, बाराबर दरी गृह के तीन अभिलेख तथा चौदहवां शिला-लेख अशोक के बौद्ध धर्म के अनुयामी होने का समर्थन करते हैं।
  2. अशोक के प्रथम लघु शिला-लेख संघ उपयीत का क्या तात्पर्य है, यह कहना कठिन है। विद्वानों ने इसके विभिन्न अर्थ लगाए हैं। अनेक विद्वानों के अनुसार वह अशोक के बौद्ध संघ का सदस्यता की द्योतक है अर्थात् इसका अर्थ यह है कि अशोक बौद्ध भिक्षु हो गया था। इसका समर्थन इत्सिंग के उस कथन से भी हो जाता है जिसमें यह कहा गया है कि उसने भिक्षु के वेश में अशोक की सहभूति देखी थी।
  3. ह्वेनसांग के अनुसार अशोक ने एक विशाल सेना के साथ बौद्ध तीर्थ स्थलों यथा चुम्बिनी, बन, कथित वस्तु, बोध गया, ऋषिपत्तन (सारनाथ), श्रावस्ती तथा कुशीनगर आदि की यात्रा की थी।
  4. अनेक साहित्यिक साक्ष्य अशेाक के बौद्ध मतावलम्बी होने का समर्थन करते हैं। उदाहरण के लिए दीपवंश, महावंश, सभत्तपासादिका, दिय्यावक्ष न सुमंलपकासिनी आदि से अशोक के बौद्ध धर्मानुयायी होने का सन्देश मिलता है।
  5. अशेाक ने लगभग 80 हजार स्तूपों का निर्माण कराया था। बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार अपने अर्गायत स्तूपों में अशोक ने आठ स्तूपों में गौतम बुद्ध के भस्मावशेष को रखवाया था।
  6. अशोक के बौद्ध होने का एक अन्य प्रमाण यह है कि उसने मोग्गलि पुत्र तिष्य की अध्यक्षता में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया था जिसका उद्देश्य महात्मा बुद्ध के उपदेशों के पाठों को शुद्ध करना था।
  7. बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ उसने बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियों को देश-विदेश भेजा।
  8. उसने ब्राह्मण यज्ञों तथा अनुष्ठानों का निषेध किया।

इन सब तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अशोक ने बौद्ध धर्म को अंगीकार कर लिया था। जैसा कि डॉ. हेमचन्द राय चौधरी ने लिखा है- इसमें सन्देह के लिए कोई स्थान नहीं है कि अशोक बौद्ध बन गया था।


इसके विपक्ष में तर्क- अशोक चार आर्य सत्य एवं आष्टांगिक मार्ग में विश्वास नहीं प्रकट करता है। साथ ही वह निर्वाण के बदले स्वर्ग की बात करता है। अत: बौद्ध धर्म अशोक का व्यक्तिगत धर्म हो सकता थां किन्तु अशोक के द्वारा प्रतिपादित धर्म आवश्यक रूप से बौद्ध धर्म नहीं था।

  1. अशोक के धम्म के स्वरूप- अशोक ने अपने दूसरे और सातवे शिलालेख में धम्म का स्वरूप स्पष्ट किया है। अशोक का धम्म वस्तुतः विभिन्न धमों का समन्वय है। वह नैतिक आचरणों का संग्रह है एवं जिओ एवं जीने दो की मूल पद्धति पर आधारित था। रोमिला थापर के शब्दों में- अशोक की दृष्टि में धम्म औपचारिक धार्मिक विश्वासों पर आधारित सद्कायों से प्रसूत नैतिक पवित्रता नहीं थी प्रत्युत वह सामाजिक दायित्व बोध के प्रति एक प्रवृत्ति थी।
  2. युगीन आवश्यकताओं के अनुकूल- जैसाकि रॉमिला थापर का मानना है कि- यह युगीन आवश्यकताओं के अनुकूल था। उन्होंने कहा है कि एक विशाल साम्राज्य में विविध भाषा-भाषी एवं संप्रदाय को एक प्लेटफोर्म पर लेन के लिए समन्वित कार्यक्रम की आवश्यकता थी और अशोक का धम्म उसी कार्यक्रम के रूप में लाया गया है। उन्होंने अशोक के धम्म की तुलना अकबर के दीन-ए-इलाही से की है। अशोक बौद्ध धर्म ग्रहण करने से पहले शैव था। बाद में वह बौद्ध धर्म की ओर आकृष्ट हुआ। अशोक अपने भाई सुमन के पुत्र निग्रोध के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म की ओर आकर्षिक हुआ और उपगुप्त ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। अशोक ने बुद्ध के लिए भगवान शब्द का प्रयोग किया है।

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