भारत और यूरोपीय संघ India and the European Union

वर्ष 2004 भारत और यूरोपीय संघ दोनों के लिए एक लाभकारी वर्ष रहा (यूरोपीय संघ की सदस्यता 15 से 25 सदस्य देशों तक बढ़ गई है)। यूरोपीय संघने अनुकूल भागीदारी के लिए भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों का दर्जा बढ़ाया। भारत अब उन पांच अन्य देशों में शामिल हो गया है, जिनके साथ यूरोपीय संघ के इस प्रकार के विशेष संबंध हैं। 5वां भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन, यूरोपीय संघ की डच प्रेसीडेंसी के अधीन 8 नवम्बर, 2004 को हेग में आयोजित किया गया। प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने सम्मेलन में भाग लेने के लिए गए भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया। प्रतिनिधिमण्डल में विदेश मंत्री श्री नटवर सिंह, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री कमलनाथ और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री जे.एन.दीक्षित प्रमुख थे। शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ और भारत के बीच एक अनुकूल साझीदारी की शुरूआत की गई। इसमें ऐसा कार्यक्रम बनाया गया जिसमें अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई, बहुपक्षता की भूमिका, पारस्परिक हित की क्षेत्रीय घटनाओं और आर्थिक एवं व्यापारिक मामलों के संबंध में दोनों पक्षों के बीच सहयोग की समीक्षा जैसे सार्वभौमिक मुद्दों सहित भारत-यूरोपीय संघ के संबंधों का सम्पूर्ण प्रतिबिम्ब सम्मिलित हो। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मोर्चे पर संबंधों को बढ़ाने की सम्भावना, विशेषकर गेलीलियो परियोजना में भारत की भागीदारी और आईटीईआर परियोजना में भारत की अभिरुचि के बारे में दोनों पक्षों के बीच संरचना करार पर प्रस्तावित हस्ताक्षर किए जाने के परिप्रेक्ष्य में बल दिया गया। भारत और यूरोपीय संघ ने एक एनर्जी पैनल तथा एक पर्यावरण मंच स्थापित करने का भी निर्णय लिया और भारत-यूरोपीय संघ संबंधों के सम्पूर्ण क्षेत्र को सम्मिलित करते हुए संयुक्त कार्रवाई योजना बनाने के लिए सहमत हुए। दोनों पक्षों ने सांस्कृतिक संबंधों पर एक संयुक्त घोषणा और एक संयुक्त प्रेस वक्तव्य भी जारी किया।

वर्ष के दौरान यूरोपीय संसद के साथ अन्योन्य क्रिया जारी रहीं। दक्षिण एशिया का एक प्रतिनिधिमण्डल और अध्यक्ष नीना गिल के नेतृत्व में ईपी का एक सार्क प्रतिनिधिमण्डल 1-6 नवम्बर, 2004 को भारत की यात्रा पर आया। इस प्रतिनिधि मण्डल ने विदेशी मामलों संबंधी लोकसभा स्थायी समिति, राज्यसभा सदस्यों, पूर्व गृहमंत्री श्री एल.के.आडवाणी, श्री एन.एन. बोरा, भारत-यूरोपीय संघ गोलमेज के सह-अध्यक्ष, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों, एफआईसीसीआई और सीआईआई के साथ बैठकों में भाग लेने के अलावा विदेश मंत्री, सूचना एवं प्रसारण मंत्री तथा पर्यावरण मंत्री से भी मुलाकात की। चार भारतीय सांसदों का एक दल विश्व व्यापार संगठन के मुद्दों संबंधी आईपीयू सम्मेलन में भाग लेने के लिए नवम्बर 2004 के अन्त में ब्रुसेल्स की यात्रा पर गया। भारत और यूरोपीय संघ के बीच आर्थिक एवं व्यापारिक अभिरुचि के पर्याप्त मामले हैं। यूरोपीय संघ (25 राष्ट्रों के एक समूह के रूप में) भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है और भारत के कुल निर्यात में उसका हिस्सा 24 प्रतिशत से भी अधिक है। यूरोपीय संघ भारत के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का एक सबसे बड़ा स्रोत है। यूरोपीय संघ से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के अति महत्वपूर्ण स्रोतों में इंग्लैण्ड, जर्मनी तथा नीदरलैण्ड हैं और उनके बाद फ्रांस, इटली और बेल्जियम आते हैं। भारत-यूरोपीय संघ के बीच विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग संबंधी संरचना करार ने दोनों पक्षों के आर्थिक प्रतियोगियों एवं अन्वेषकों का ध्यान आकर्षित करने में वृद्धि को है। मार्च 2004 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव श्री वी.एस. राममूर्ति ने इण्डिया-ईसी स्टीयरिंग कमेटी की पहली बैठक में भाग लेने के लिए बुसेल्स की यात्रा पर गए एक प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया जिसके दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारत-ईसी सहयोग कार्यक्रम 2004-2006तथा एक संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों पक्ष नैनो-प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य तथा खाद्य के गुणसूत्र, भूतल परिवहन (वाहनक्षेत्र) तथा स्थायी विकास (प्राकृतिक आपदा शमन) के क्षेत्रों में वर्ष 2004-05 के दौरान 4 कार्यशालाएं संयुक्त रूप से आयोजित करने के लिए सहमत हुए। संयुक्त गतिविधियों तथा परियोजनाओं को, यूरोपीय संघ के वर्ष 2002-2006 के लिए अन्वेषण तथा प्रौद्योगिकी विकास (आरटीडी) की छठी संरचना में सहायता दी गयी। भारत-यूरोपीय संघ संयुक्त आयोग की 14वीं बैठक 10 सितम्बर, 2004 को ब्रुसेल्स में आयोजित की गई।

भारत-यूरोपीय संघ गोलमेज की सातवीं और आठवीं बैठकें क्रमशः श्रीनगर में जून 2004 में और लन्दन में दिसम्बर 2004 में आयोजित की गई। पर्यटन को बढ़ावा देने तथा व्यापार एवं स्थायी विकास को प्रोत्साहित करने के लिए द्विपक्षीय सहयोग तथा सिविल सोसायटी इण्टरनेशनल फोरम पर सातवें दौर में चर्चा की गई। गोलमेज की आठवीं बैठक की सह-अध्यक्षता यूरोपीय संघ की ओर से यूरोपीय आर्थिक तथा सामाजिक समिति (ईईएससी) की अध्यक्ष सुश्री ए.एम.सिगमुन्द द्वारा तथा भारत की ओर से श्री एन.एन. बोरा द्वारा की गई। अन्य मुद्दों के साथ-साथ इसमें यूरोपीय संघ तथा भारत में श्रम संबंधों और शिक्षा तथा प्रशिक्षण में सहयोग के बारे में चर्चा की गई।

भारत को दी जाने वाली यूरोपीय संघ विकास सहयोग सहायता के केंद्र बिन्दु आमतौर पर पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा के क्षेत्र रहे हैं। इस कार्यक्रम के दूसरे चरण में यूरोपीय आयोग ने 42 जिलों को सम्मिलित करते हुए प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिएव परिकलित सर्वशिक्षा अभियान कार्यक्रम के लिए 200 मिलियन यूरो की वचन बद्धता की। यूरोपीय आयोग ने कन्टरी सट्रेटर्जी पेपर फॉर इण्डिया 2002-2006, जिसके अधीन उसने इस अवधि के लिए 225 मिलियन यूरो की वचनबद्धता की, में स्पष्ट रूप से भारत के साथ अपने संबंधों के लिए एक नई विकास सहयोग नीति का मसौदा तैयार किया। क्षेत्रीय संकल्पना के स्थान पर अब एक राष्ट्र-भागीदारी संकल्पना शुरू की गई है। इस कार्यक्रम के तहत यूरोपीय आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ और राजस्थान का चयन किया गया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दोनों पक्षों ने वर्ष के दौरान राज्य भागीदारी कार्यक्रम संबंधी एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। यूरोपीय आयोग ने दो नए कार्यक्रम आरम्भ किए हैं-14 मिलियन यूरो की लागत के साथ व्यापार एवं निवेश विकास कार्यक्रम तथा 33 मिलियन यूरो की लागत के साथ छात्रवृति कार्यक्रम। भारत-यूरोपीय आयोग छात्रवृति कार्यक्रम के संबंध में हस्ताक्षर किए गए।

वर्ष 2008-09 में भारत और यूरोप के बीच उच्च स्तरीय यात्राओं का आदान-प्रदान जारी रहा और शिखर वार्ताएं हुई। भारत एवं यूरोपीय संघ के संबंधों में रक्षा एवं सुरक्षा,परमाणु एवं अंतरिक्ष, व्यापार एवं निवेश, ऊर्जा,खाय सुरक्षा,जलवायु परिवर्तन, विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं संस्कृति, शिक्षा जैसे क्षेत्रों में विविधता और गहनता आयी। अमेरिका के साथ असैनिक परमाणु सहयोग के लिए एनएसजी में छूट हासिल करने में समर्थन जुटाने के लिए यूरोपीय संघ के सभी देशों में विशेष राजनयिक भेजे गए। 30 सितंबर, 2009 में पेरिस में आयोजित किए गए भारत-यूरोपीय संघ व्यापार सम्मेलन भागीदारी के लिए नई समाभिरूपताएं में भारत के प्रधानमंत्री ने शिरकत की। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। दोनों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार 55 अरब यूरो को अगले पांच वर्षों में 100 अरब यूरो तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

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