होमरूल लीग आंदोलन Home Rule League Movement

प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों की एक अन्य कम नाटकीय लेकिन अधिक प्रभावशाली प्रतिक्रिया हुई- ऐनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक का होमरूल लीग। होमरूल लीग आंदोलन, प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् उत्पन्न हुयी परिस्थितियों में भारतीयों की कम प्रभावशाली प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया, किन्तु स्वतंत्रता आंदोलन की प्रक्रिया में इसने अपनी महत्वपूर्ण छाप छोड़ी। यद्यपि यह आंदोलन स्थिरता के साथ प्रारम्भ हुआ था लेकिन आगे चलकर इसने तत्कालीन सभी आंदोलनों को पीछे छोड़ दिया।

भारतीय होमरूल लीग का गठन आयरलैंड के होमरूल लीग के नमूने पर किया गया था, जो तत्कालीन परिस्थितियों में तेजी से उभरती हुयी प्रतिक्रियात्मक राजनीति के नये स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता था। ऐनी बेसेंट और तिलक इस नये स्वरुप के अगुवा थे।

होमरूल आंदोलन प्रारम्भ होने के उत्तरदायी कारक

  1. राष्ट्रवादियों के एक वर्ग का मानना था कि सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए उस पर दबाव डालना आवश्यक है।
  2. मार्ले-मिंटो सुधारों का वास्तविक स्वरुप सामने आने पर नरमपंथियों का भ्रम सरकार की निष्ठा से टूट गया।
  3. प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन द्वारा भारतीय संसाधनों का खुल कर प्रयोग किया गया। इस क्षतिपूर्ति के लिये युद्ध के उपरांत भारतीयों पर भारी कर आरोपित किये गये तथा आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगीं। इन कारणों से भारतीय त्रस्त हो गये तथा वे ऐसे किसी भी सरकार विरोधी आंदोलन में भाग लेने हेतु तत्पर थे।
  4. यह विश्वयुद्ध तत्कालीन विश्व की प्रमुख महाशक्तियों के बीच अपने-अपने हितों को लेकर लड़ा गया था तथा इससे अन्य ताकतों के साथ ब्रिटेन का वास्तविक चेहरा भी उजागर हो गया था। युद्ध के पश्चात् श्वेतों की अजेयता का भ्रम भी टूट गया।
  5. जून 1914 में बाल गंगाधर तिलक जेल से रिहा हो गये। भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु वे पुनः किसी सुअवसर की तलाश में थे। उन्होंने सरकार को अपना सहयोगात्मक रुख समझाने का प्रयत्न किया।

आयरलैण्ड के होमरूल लीग के तर्ज पर उन्होंने प्रशासकीय सुधारों की मांग की। तिलक ने कहा हिंसा के प्रयोग से भारतीय स्वतंत्रता की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है। फलतः उन्होंने आयरिस होमरूल जैसे आदोलन के द्वारा भारतीयों की दशा में सुधार लाने की वकालत शुरू कर दी। उन्होंने यहां तक कहा कि संकट के इन क्षणों में हमें ब्रिटेन का सहयोग करना चाहिये।

1896 में आयरलैण्ड की थियोसोफिस्ट महिला ऐनी बेसेंट भारत आयीं थीं। प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत उन्होंने भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन देने हेतु आयरिस होमरूल लीग के नमूने पर भारत में आंदोलन प्रारम्भ करने का निर्णय किया। इस लीग के माध्यम से वे अपने विचारों को जनता में प्रसारित कर अपना कार्य क्षेत्र बढ़ाना चाहती थीं।

बालगंगाधर तिलक तथा एनी बेसेंट दोनों की होमरूल लीग ने यह महसूस किया कि आन्दोलन की सफलता के लिए उदारवादियों के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ ही अतिवादी राष्ट्रवादियों का भी समर्थन आवश्यक है। 1914 में नरमपंथियेां एवं अतिवादियों के मध्य समझौता प्रयासों के असफल हो जाने के पश्चात् बालगंगाधर तिलक एवं ऐनी बेसेंट दोनों ने स्वयं के प्रयासों से राजनीतिक गतिविधियों को जीवंत करने का निश्चय किया।

1915 के प्रारम्भ से एनी बेसेंट ने भारत एवं अन्य उपनिवेशों में स्वशासन की स्थापना हेतु अभियान प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने जनसभायें आयोजित कीं तथा न्यू इण्डिया एवं कामनवील नामक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इन पत्रों के माध्यम से उन्होंने अंग्रेज सरकार के सम्मुख भारत में स्वशासन की स्थापना की मांग को दृढ़ता के साथ उठाया। 1915 के कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में तिलक एवं ऐनी बेसेंट को अपने प्रयासों में थोड़ा सफलता मिली। इस अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि उग्रवादियों को पुनः कांग्रेस में सम्मिलित किया जायेगा। यद्यपि ऐनी बेसेंट प्रारंभ में अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो सकी थीं। अधिवेशन में एनी बेसेंट अपनी होमरूल लीग योजना के लिये कांग्रेस का समर्थन प्राप्त करने में असफल रहीं किन्तु कांग्रेस, शिक्षा के माध्यम से राजनीतिक मांगों का प्रचार-प्रसार करने तथा स्थानीय कांग्रेस कमेटियों को पुनः सक्रिय करने पर अवश्य सहमत हो गयी। इसके पश्चात् ऐनी बेसेंट ने कांग्रेस की स्वीकृति प्राप्त होने का इंतजार न करते हुये स्वयं के प्रयासों से होमरूल लीग के कार्यों को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। उन्होंने घोषित किया कि चूंकि कांग्रेस ने उनकी लीग को स्वीकृति प्रदान करने में अनिवार्य कदम नहीं उठाये हैं फलतः लीग के माध्यम से वे अपने उद्देश्यों को स्वयं प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र हैं।


बालगंगाधर तिलक तथा एनी बेसेंट ने किसी प्रकार के आपसी टकरावकी संभावनाओं को दूर करने के लिए पृथक-पृथक लीग स्थापित करने का निर्णय लिया।

तिलक की होमरूल लीग

बाल गंगाधर तिलक ने होमरूल लीग की स्थापना अप्रैल 1916 में की। इसकी शाखायें महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रांत एवं बरार में खोली गयीं। इसे 6 शाखाओं में संगठित किया गया। स्वराज्य की मांग, भाषायी प्रांतों की स्थापना तथा शिक्षा के प्रचार-प्रसार को लीग ने अपना मुख्य लक्ष्य घोषित किया।

बेसेट की होमरुल लीग

ऐनी बेसेंट ने सितम्बर 1916 में मद्रास में होमरूल लीग की स्थापना की घोषणा की। मद्रास के अतिरिक्त लगभग पूरे भारत में इसकी शाखायें खोली गयीं। इसकी लगभग 200 शाखायें थीं। जार्ज अरूंडेल को लीग का संगठन सचिव नियुक्त किया गया। यद्यपि बेसेंट की लीग का संगठन तिलक की होमरूल लीग की तुलना में कमजोर था किन्तु इसके सदस्यों की काफी बड़ी संख्या थी। बेसेंट की लीग में अरूंडेल के अलावा बी.एम. वाडिया एवं सी.पी. रामास्वामी अय्यर ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

धीरे-धीरे होमरूल लीग आंदोलन लोकप्रिय होने लगा तथा इसके समर्थकों की संख्या बढ़ने लगी। अनेक प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं ने लीग की सदस्यता ग्रहण की, जिनमे मोतीलाल नेहरु, जवाहर लाल नेहरु, भूलाभाई देसाई, चितरंजन दास, मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, तेज बहादुर सप्रू एवं लाला लाजपत राय प्रमुख थे। इनमें से कुछ नेताओं को स्थानीय शाखाओं का प्रमुख नियुक्त किया गया। अनेक अतिवादी राष्ट्रवादी, जिनका कांग्रेस की कार्यप्रणाली से मोहभंग हो चुका था, होमरूल लीग आंदोलन में शामिल हो गये। गोपाल कृष्ण गोखले की सर्वेट आफ इंडिया सोसायटी के अनेक सदस्यों ने भी आंदोलन की सदस्यता ग्रहण कर ली। फिर भी एंग्लो-इण्डियन्स (आंग्ल-भारतीय), बहुसंख्यक मुसलमान तथा दक्षिण भारत की गैर-ब्राह्मण जातियां इस आंदोलन से दूर रहीं क्योंकि उनका विश्वास था कि होमरूल का तात्पर्य हिन्दुओं मुख्यतया उच्च जातियों के शासन से है।

होमरूल लीग आंदोलन के कार्यक्रम

होमरूल लीग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनमानस को होमरूल अर्थात् स्वशासन के वास्तविक अर्थ से परिचित कराना था। इसने भारतीयों को राजनैतिक रूप से जागृत करने के पिछले सभी आन्दोलनों को पीछे छोड़ दिया तथा भारत के राजनितिक दृष्टिकोण से पिछड़े क्षेत्रों जैसे- गुजरात एवं सिंध तक अपनी पैठ बनायी। आंदोलन का उद्देश्य पुस्तकालयों एवं अध्ययन कक्षों (जिनमें राष्ट्रीय राजनीति से संबंधित पुस्तकों का संग्रह हो) तथा जनसभाओं एवं सम्मेलनों का आयोजन कर भारतीयों में राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना था। इसके लिये लीग ने समाचार- पत्रों, राजनीतिक विषयों पर विद्यार्थियों की कक्षाओं का आयोजन, पैम्फलेट्स, पोस्टर, पोस्टकार्ड, नाटकों एवं धार्मिक गीतों जैसे माध्यमों को भी अपने प्रयासों में सम्मिलित किया।

लीग ने अपने उद्देश्यों की सफलता के लिये कोष बनाया तथा धन एकत्रित किया, सामाजिक कार्यों का आयोजन किया तथा स्थानीय प्रशासन के कार्यों में भागेदारी निभायी। लीग ने स्थानीय कार्यों के माध्यम से बहुसंख्यक भारतीयों से जुड़ने का प्रयास किया। 1917 की रूसी क्रांति से भी लीग के कार्यों में सहायता मिली।

लीग के प्रति सरकार का रुख

सरकार ने लीग के समर्थकों पर कड़ी कार्यवाही की तथा लीग के कार्यक्रमों को रोकने के लिये दमन का सहारा लिया। मद्रास में सरकार ने छात्रों पर कठोर कार्यवाई की तथा राजनीतिक सभाओं में उनके भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बाल गंगाधर तिलक के विरुद्ध न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया। उनके पंजाब एवं दिल्ली में प्रवेश करने पर रोक लगा दी गयी। जून 1917 में ऐनी बेसेंट एवं उनके सहयोगियों बी.पी. वाडिया एवं जार्ज अरुंडेल को गिरफ्तार कर लिया गया। इन गिरफ्तारियों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी प्रतिक्रिया हुयी। अत्यन्त नाटकीय ढंग से सर एस. सुब्रह्मण्यम अय्यर ने अपनी ‘सर’ की उपाधि त्याग दी तथा तिलक ने सरकारी दमन के विरोध में अहिंसात्मक प्रतिरोध कार्यक्रम प्रारम्भ करने की वकालत की।

सरकार को विश्वास था कि इन कार्यवाइयों से होमरूल आंदोलन स्वतः समाप्त हो जायेगा किन्तु इसका उल्टा प्रभाव पड़ा। सरकारी कुचक्र के विरोध में आंदोलनकारी और संगठित हो गये तथा कई अन्य राष्ट्रवादी इसमें शामिल हो गये। तिलक ने घोषणा की कि यदि ऐनी बेसेंट को रिहा नहीं किया गया तो भारतीय जनता सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह करेगी। 20 अगस्त 1917 को भारत सचिव ई.एस. मांग्टेग्यू के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि युद्ध के बाद भारत में स्वायत्त संस्थाओं के क्रमिक विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ की जायेगी। सरकार ने भी सितम्बर 1917 में ऐनी बेसेंट को जेल से रिहा कर दिया। इसके पश्चात् होमरूल लीग आंदोलन स्थगित कर दिया गया।

क्या कारण था कि 1919 तक आते-आते आंदोलन धीमा पड़ गया?

1919 तक आते-आते होमरूल लीग आंदोलन का उन्माद ठंडा पड़ने लगा। इसके पीछे कई कारण थे, जो इस प्रकार हैं-

  1. आंदोलन में प्रभावी संगठन का अभाव था।
  2. 1917-1918 में हुये साम्प्रदायिक दंगों का आंदोलन पर नकारात्मक प्रभाव पडा।
  3. एनी बेसेंट की गिरफ़्तारी के पश्चात् कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने वाले उदारवादी सरकार, द्वारा सुधारों का आश्वासन देने तथा बेसेंट को जेल से रिहा करने पर संतुष्ट हो गये।
  4. आंदोलन में अतिवादियों द्वारा सितम्बर 1918 में अहिंसात्मक प्रतिरोध का सिद्धांत अपनाये जाने की बात से नरमपंथी आंदोलन से पृथक होने लगे। 1918 के पश्चात् तो उनकी भागीदारी बिल्कुल नाममात्र की रह गयी।
  5. जुलाई 1918 में मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के सार्वजनिक होने से राष्ट्रवादियों में आपसी मतभेद पेदा हो गये तथा सैद्धांतिक आधार पर वे विभाजित होने लगे।
  6. सितम्बर 1918 में एक मुकदमें के सिलसिले में तिलक विदेश चले गये जबकि सुधारों के संबंध में व्यक्तिगत प्रतिक्रिया एवं अहिंसात्मक प्रतिरोध के मुद्दे पर एनी बेसेंट विचलित हो गयीं तथा बल गंगाधर तिलक के विदेश में होने के कारण आन्दोलन नेतृत्वहीन हो गया।

आंदोलन की उपलब्धियां

होमरूल लीग आंदोलन की अनेक उपलब्धियां भी रहीं। जो इस प्रकार हैं-

  1. आंदोलन ने केवल शिक्षित वर्ग के स्थान पर जनसामन्य की महत्ता की प्रतिपादित किया तथा सुधारवादियों द्वारा तय किये गये स्वतंत्रता आंदोलन की मानचित्रावली को स्थायी तौर पर परिवर्तित कर दिया।
  2. इसने देश एवं शहरों के मध्य सांगठनिक सम्पर्क स्थापित किया। आदोलन की यह उपलब्धि बाद के वर्षों में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुयी। विशेषकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के चरमोत्कर्ष में देश के हर शहर ने सक्रिय भूमिका निभायी। जो इस आंदोलन के सांगठनिक स्वरूप की देन ही थी।
  3. आंदोलन ने जुझारू राष्ट्रवादियों की एक नयी पीढ़ी को जन्म दिया।
  4. उसने भारतीय जनसमुदाय की राजनीति के गांधीवादी आदशों के प्रयोग हेतु प्रशिक्षित किया।
  5. अगस्त 1917 में मांटेग्यू की घोषणायें तथा मोन्टफोर्ड सुधार काफी हद तक होमरूल लीग आांदोलन से प्रभावित थे।
  6. तिलक एवं ऐनी बेसेंट के प्रयासों से कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (1916) में नरमदल एवं गरमदल के राष्ट्रवादियों के मध्य समझौता होने में अत्यन्त सहायता मिली। लीग के नेताओं का यह योगदान राष्ट्रीय आंदोलन की प्रक्रिया में मील का पत्थर था।
  7. होमरूल लीग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नयी दिशा व नया आयाम प्रदान किया।

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