संवृद्धि दर और जनांकिकीय संक्रमण Growth Rates and Demographic Transition

संवृद्धि दर दो समय बिन्दुओं के बीच विशुद्ध परिवर्तन है जिसे सामान्यतः प्रतिशत के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। हाल के दशकों में जनसंख्या की वृद्धि दर में गिरावट आई है। 2001-2011 में, जनसंख्या की वृद्धि दर में अहम गिरावट थी।

भारत की दशकीय संवृद्धि दर, 1991 तक, हमेशा 24 प्रतिशत के आस-पास-अस्थिर स्तर पर रही थी। 1991-2001 दशक में देश की संवृद्धि दर में लगभग 2.3 प्रतिशत की गिरावट अहम थी। भारत में दशकीय वृद्धि (2001-2011) 17.7 प्रतिशत रही (ग्रामीण-12.3 प्रतिशत और शहरी-31.8 प्रतिशत)। 2001-2011 के दौरान मेघालय ने ग्रामीण जनसंख्या में उच्चतम दशकीय वृद्धि (27.2%) दर्ज की जबकि दमन एवं दीव ने शहरी जनसंख्या में उच्चतम दशकीय वृद्धि (218.8 प्रतिशत) दर्ज की।

भारत की जनसंख्या में 110 वर्षों में चार गुना से अधिक वृद्धि हुई जोकि 1901 में लगभग 238.4 मिलियन थी।

जबकि बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, भारत की जनसंख्या डेढ़ गुनी तक बढ़ी, और उत्तरार्द्ध में जनसंख्या तीन गुनी तक बढ़ी।

जनांकिकीय संक्रमण: यह एक अवधारणा है जो समय-समय पर जनसंख्या बदलाव का उल्लेख करती है। हालांकि जनसंख्या संक्रमण के कई मॉडल हैं, लेकिन आमतौर पर निम्न चार चरणों को स्वीकार किया गया है।

प्रथम चरण में, जन्म-दर और मृत्यु-दर दोनों ही उच्च होते हैं। इसके परिणामस्वरूप स्थायी और धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि होती है। यह स्थिति मुख्य रूप से निम्न या संयत जनसंख्या घनत्व के साथ कृषि अर्थव्यवस्था में होती है। इन समाजों में निम्न उत्पादकता, निम्न आयु प्रत्याशा, बड़े आकार के परिवार, अल्पविकसित कृषि वाली मुख्य आर्थिक गतिविधि, निम्न स्तरीय साक्षरता और प्रौद्योगिकीय विकास तथा निम्न शहरीकरण होता है। एक समय विश्व के लगभग सभी देश इस स्थिति में थे, लेकिन अब जनांकिकीय संक्रमण की इस स्थिति में किसी देश का मिलना असंगत प्रतीत होता है, क्योंकि ऐसे क्षेत्र में जन्म-दर और मृत्यु-दर पर आंकड़े अपर्याप्त या त्रुटिपूर्ण होंगे। इस बात की भी कम संभावना है कि ऐसा क्षेत्र चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार में बिल्कुल अप्रभावित रहेगा।

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दूसरी अवस्था में, उच्च जन्म-दर और निम्न मृत्यु-दर होती है। स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि और खाद्य सुरक्षा मृत्यु-दर में कमी करते हैं। लेकिन शिक्षा का अपर्याप्त स्तर प्राप्त न करने के कारण, जन्म-दर बेहद ऊची होती है।

तीसरी अवस्था में, प्रजनन दर धीरे-धीरे कम होने लगती है और मृत्यु-दर तेजी से गिरने लगती है। हालांकि जनसंख्या धीमी दर से बढ़ती है। विश्व के अधिकतर कम विकसित देश जनांकिकीय संक्रमण की इस विस्फोटक अवस्था से गुजर रहे हैं।

अंतिम अवस्था में, मृत्यु-दर और जन्म-दर दोनों में उत्साहजनक रूप से कमी आती है। इसके परिणाम के तौर पर, जनसंख्या या तो स्थायी हो जाती है या धीमी गति से बढ़ती है। इस अवस्था पर, जनसंख्या उच्च रूप से औद्योगिकीकृत और शहरीकृत हो जाती है। प्रौद्योगिकीय विकास संतोषजनक होता है और परिवार के आकार को नियंत्रित करने के इच्छा से प्रयास किए जाते हैं। उच्च साक्षरता स्तर होता है। यह अवस्था एंग्लो-अमेरिका, पश्चिम यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान इत्यादि में है। कुछ लेखक पांचवीं अवस्था के अस्तित्व में होने की बात करते हैं जिसमें जन्म-दर, मृत्यु-दर से नीची होती है, जिस कारण जनसंख्या घटने लगती है। पश्चिम यूरोप के कुछ देश इस अवस्था के मुहाने पर खड़े प्रतीत होते हैं।

1921 को जनाकिकीय विभाजन वर्ष माना जाता है: इस वर्ष के पश्चात् मृत्यु दर में कमी होना शुरू हो गई और जनसंख्या वृद्धि में तेजी आने लगी।

भारत और जनांकिकीय संक्रमण

भारत में जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न चरणों का वर्णन किया जा सकता है।

1901-1921 यह स्थायी जनसंख्या का काल था, जिसमें जन्म और मृत्यु-दर दोनों उच्च थीं। यह जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम चरण के अनुसार था। चेचक, प्लेग, इफ्लुएंजा और कॉलरा जैसी महामारियों के कारण इस काल में मृत्यु दर बेहद ऊंची थी। अकाल के कारण खाद्यान्न की कमी के कारण कई लोगों की जान गई। शायद, 1911 और 1921 के बीच जनसंख्या संवृद्धि में घटने की प्रवृति थी।

1921-51 यह धीमी गति से वृद्धि का काल था, जिसमें उच्च जन्म-दर थी, लेकिन मृत्यु-दर में, रोगों के नियंत्रण और खाद्य आपूर्ति के बेहतर प्रबंधन के कारण कमी आई।

1951-81 इसे जनसंख्या में तीव्र एवं उच्च संवृद्धि का काल कहा जा सकता है। इसमें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और त्वरित विकासपरक गतिविधियों के कारण मृत्यु-दर में बेहद कमी आई। जैसा कि जीवनस्तर और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार आया, मृत्यु-दर में कमी आई। हालांकि जन्म-दर भी उच्च बनी रही। इसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई, जिसे जनसंख्या विस्फोट का नाम दिया गया।

भारत की दशा औद्योगीकृत देशों से थोड़ा भिन्न विचलन प्रदर्शित करती है। भारत में, मृत्यु-दर में कमी आधारभूत आर्थिक ढांचे या जीवन स्तर में निरंतर उठान में अत्यधिक परिवर्तन होने से पूर्व आई।

1981-2011 को संवृद्धि की घटती हुई प्रवृत्ति के साथ उच्च जनसंख्या वृद्धि का काल कहा जा सकता है। हालांकि जनसंख्या में वृद्धि निरंतर जारी रहती है, वृद्धि दर में घटने की प्रवृति दिखाई देती है। शिक्षा प्रसार, छोटे परिवार के लाभों के प्रति जागरूकता, यहां तक की सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार जैसे सभी कारकों ने 1981-91 से आगे के दशक में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि में घटने की प्रवृति में योगदान किया।

2001-2011 के दशक में दशकीय वृद्धि का प्रतिशत स्वतंत्रता के समय से बेहद कमी के साथ 3.90 प्रतिशत दर्ज किया गया।

2001-2011 पहला दशक भी है,1911-1921 को छोड़कर, जिसने विगत् दशकों के मुकाबले कम जनसंख्या को जोड़ा।

भारत की जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था में होना कहा जा सकता है। स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, निम्न शिशु मृत्यु-दर, महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन, शिक्षा प्रसार, परिवार नियोजन, और जीवन स्तर में बढ़ोतरी जैसे कारकों ने इस बदलाव में योगदान किया।

संवृद्धि दर में परिवर्तन

2001-2011 के दौरान, लगभग सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की वृद्धिदर पिछले दशक 1991-2001 की तुलना में कम आंकड़े पंजीकृत हैं। सबसे अधिक जनसंख्या वाले 6 राज्यों अर्थात उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में 1991-2001 की तुलना में 2001-2011 के दौरान सभी में गिरावट आई है, आंध्र प्रदेश में सबसे कम गिरावट और महाराष्ट्र में सबसे अधिक गिरावट है।

केरल में 1961-71 के दौरान 26.29 प्रतिशत उच्च वृद्धि दर से 1991-2001 के दौरान 9.43 प्रतिशत अर्थात् 10 प्रतिशत से कम जनसंख्या दशकीय वृद्धि हासिल की। 2001-11 के दौरान यह वृद्धि दर लगभग 4.9 प्रतिशत दर्ज की गयी। हालांकि, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दशकीय वृद्धिदर अभी भी 20 प्रतिशत है जहां केरल और तमिलनाडु में 40 वर्ष पहले थी।

जनसांख्यिकीय संक्रमण के संदर्भ में भी देश के अंदर क्षेत्रीय भिन्नता है। एक देश के रूप में भारत तीसरे चरण में प्रवेश कर चुका है कुछ राज्यों के संदर्भ में ऐसा संभव है कि इसने चौथे चरण में प्रवेश कर लिया है। नागालैंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, गोवा, असम और ओडीशा में उदाहरणार्थ प्रदर्शित किया कि अशोधित जन्म-दर प्रजननता के प्रतिस्थापित स्तर से नीचे जा सकती है। जैसा कि प्रजननता में ग्रामीण शहरी अंतर कम होता जाता है, नागालैंड,केरल, तमिलनाडु, गोआ और आंध्र प्रदेश ग्रामीण-शहरी अंतराल में इस कमी को दर्शाते हैं।

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