गुरुत्वाकर्षण Gravitation

चार मौलिक बलों में गुरुत्वाकर्षण एक कमजोर अथवा क्षीण मौलिक बल है, जो ब्रह्मांड में प्रत्येक कण या पिण्ड के बीच उनके द्रव्यमान के कारण लगता है। इसे न्यूटन ने अपनी पुस्तक प्रिंसीपिया (Principia) में प्रकाशित किया था।

न्यूटन का गुरुय्वाकर्षण का नियम Newton’s Law of Gravitation

ब्रह्माण्ड में किन्हीं दो पिंडों के मध्य कार्य करने वाला आकर्षण बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती (directly proportional) तथा उनके मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होता है।

माना कि m1 एवं m2 द्रव्यमान के दो पिण्ड एक-दूसरे से r दूरी पर स्थित हैं, तो न्यूटन के नियमानुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण बल F होगा-

[latex]F\quad \propto \quad { m }_{ 1 }{ m }_{ 2 }[/latex] और [latex] F\quad \propto \quad \frac { 1 }{ { r }^{ 2 } }[/latex]

या,

[latex]F\quad =\quad G\quad \frac { { m }_{ 1 }{ m }_{ 2 } }{ { r }^{ 2 } }[/latex]


जहाँ G एक नियतांक है।

G  को सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (Universal Gravitational Constant) कहते हैं, जिसका मान 6.67 × 10-11 Nm2/kg2 होता है।


गुरुत्व Gravity

न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम में गुरुत्वाकर्षण वह आकर्षण बल है, जो किन्हीं दो वस्तुओं के बीच कार्य करता है। यदि इन वस्तुओं में एक वस्तु पृथ्वी हो, तो गुरुत्वाकर्षण को गुरुत्व कहते हैं। अतः गुरुत्व वह आकर्षण बल है जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। अतः गुरुत्व गुरुत्वाकर्षण का एक उदाहरण है। गुरुत्व बल के कारण ही पृथ्वी की सतह से मुक्त रूप से फेंकी गयी वस्तु वापस पृथ्वी की सतह पर आकर गिरती है।


गुरुत्वीय त्वरण Acceleration Due to Gravity

जब कोई वस्तु ऊपर से मुक्त रूप से छोड़ी जाती है, तो वह गुरुत्व बल के कारण पृथ्वी की ओर गिरने लगती है और जैसे-जैसे वस्तु पृथ्वी के सतह के निकट आती जाती है, उसका वेग बढ़ता जाता है। अतः उसके वेग में त्वरण उत्पन्न हो जाता है। इसी त्वरण को गुरुत्वीय त्वरण कहते है। यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो इस पर कार्य करने वाला गुरुत्वीय बल mg (वस्तु का भार) के बराबर होगा। अतः गुरुत्वीय त्वरण उस बल के बराबर होता है, जिस बल से पृथ्वी एकांक द्रव्यमान वाली वस्तु को अपने केन्द्र की ओर आकर्षित करती हैं। यह वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान इत्यादि पर निर्भर नहीं करता। इसे g से प्रदर्शित करते हैं। इसका मात्रक मीटर/सेकेंड अथवा न्यूटन/किग्रा है।


गुरुत्वीय त्वरण g एवं गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक G में संबंध

माना कि पृथ्वी का द्रव्यमान M तथा त्रिज्या Re है, तथा पृथ्वी का कुल द्रव्यमान उसके केन्द्र पर संकेन्द्रित है। माना कोई वस्तु, जिसका द्रव्यमान m है, पृथ्वी तल अथवा उससे कुछ ऊँचाई पर स्थित है। पृथ्वी की त्रिज्या के सापेक्ष पृथ्वी तल से वस्तु की दूरी उपेक्षणीय है। अतः वस्तु की पृथ्वी के केन्द्र से दूरी Re के ही बराबर मानी जा सकती है। अतः गुरुत्वाकर्षण के नियमानुसार, पृथ्वी द्वारा वस्तु पर लगाया गया आकर्षण बल

[latex] F\quad =\quad G\quad \frac { M_{ e }{ m } }{ { R }_{ e }^{ 2 } }[/latex]                  …(i)

अब न्यूटन की गति के दूसरे नियम के अनुसार, बल F के कारण वस्तु में गुरुत्वीय त्वरण g उत्पन्न होता है। इसीलिए बल F= mg [बल = द्रव्यमान × त्वरण]                                                    … (ii)

समीकरण (i) एवं (ii) से-

[latex] mg\quad =\quad G\quad \frac { M_{ e }{ m } }{ { R }_{ e }^{ 2 } } \quad \quad \quad \quad \quad g\quad =\quad G\frac { { M }_{ e } }{ { R }_{ e }^{ 2 } }[/latex]

इससे स्पष्ट है कि गुरुत्वजनित त्वरण g का मान द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता। अतः भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों की दो वस्तुएँ मुक्त रूप से (वायु की अनुपस्थिति में) ऊपर से गिराई जायें, तो उसमें समान त्वरण उत्पन्न होगा। अर्थात् समान ऊँचाई से एक साथ गिरने वाली वस्तु पृथ्वी पर एक ही साथ पहुँचेगी। वायु की उपस्थिति में वस्तु पर वायु का श्यानकर्षण (viscous Drag) तथा उत्प्लावन प्रभाव (Buoyancy Effect) का प्रभाव पड़ता है। इस दशा में भारी वस्तुओं का त्वरण हल्के वस्तुओं की अपेक्षा अधिक होता है। इसी के कारण भारी वस्तु हल्के वस्तु की तुलना में पहले पृथ्वी पर पहुँचेगी।


गुरुत्वजनित त्वरण g के मान में परिवर्तन Variation of Acceleration Due to Gravity ‘g’

45°अक्षांश तथा समुद्र तल पर g का प्रामाणिक मान 9.8 मीटर सेकण्ड-2 होता है, अन्य स्थानों पर g का मान थोड़ा-सा भिन्न होता है। g के मान में भिन्नता इस प्रकार है-

(i) पृथ्वी-तल पर g का मान न्यूनतम (Minimum) भूमध्य रेखा (Equator) पर, तथा महत्तम (Maximum) ध्रुवों (Poles) पर होता है। इसके दो कारण हैं-

(a) पृथ्वी का भूमध्यरेखीय व्यास, ध्रुवीय व्यास से अधिक होता है, इसीलिए g का मान न्यूनतम भूमध्य रेखा पर तथा महत्तम धुवों पर होता है।

(b) पृथ्वी का अपनी अक्ष के चारों ओर घूमना: यदि पृथ्वी अपनी अक्ष के परितः घूमना बन्द कर दे, तो ध्रुवों के अतिरिक्त प्रत्येक स्थान पर g के मान में वृद्धि हो जाएगी। इसी प्रकार यदि पृथ्वी अपनी अक्ष के परितः वर्तमान गति से 17 गुना अधिक गति से घूमने लगे, तो भूमध्य रेखा पर रखी वस्तु का भार भी शून्य हो जाएगा। अर्थात् पृथ्वी के घूर्णन गति घटने पर g का मान बढ़ता है और घूर्णन गति बढ़ने पर g का मान घटता है।

(ii) पृथ्वी-तल से ऊपर जाने पर g का मान घटता है।

(iii) पृथ्वी-तल के नीचे जाने पर भी g का मान घटता है।

लिफ्ट में व्यक्ति का भार Weight of a Body in a Lift

किसी लिफ्ट में व्यक्ति के भार में परिवर्तन निम्नलिखित प्रकार से होता है-

(i) जब लिफ्ट त्वरण a से ऊपर जाती है, तो लिफ्ट में स्थित व्यक्ति का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है। इस दशा में व्यक्ति का आभासी भार, w = वास्तविक भार (mg) + ma जहाँ m व्यक्ति का द्रव्यमान है।

(ii) जब लिफ्ट त्वरण a से नीचे आती है, तो इस दिशा में व्यक्ति का आभासी भार घटा हुआ प्रतीत होता है। इस दशा में व्यक्ति का आभासी भार w = mg-ma

(iii) जब लिफ्ट एकसमान वेग (त्वरण a = 0) से ऊपर या नीचे जाती है, तो इस दशा में व्यक्ति को अपने भार में कोई परिवर्तन नहीं प्रतीत होता है।

(iv) यदि नीचे आते वक्त लिफ्ट की डोरी टूट जाए, तो वह मुक्त वस्तु की भाँति नीचे गिरेगी । अत: a = g तथा

w = mg-mg = 0 अर्थात् व्यक्ति को अपना भार शून्य प्रतीत होगा।

(v) यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण से अधिक हो। (अर्थात् a > g) तो लिफ्ट में खड़ा व्यक्ति लिफ्ट की फर्श से उठकर उसकी छत पर जा लगेगा,

क्योंकि w = ma – ma < 0 अर्थात् w अब ऋणात्मक है। इसीलिए आभासी बल व्यक्ति पर ऊपर की ओर लगेगा जिससे वह उठकर छत से जा लगेगा।

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