व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि Comprehensive Test Ban Treaty – CTBT

व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि (Comprehensive Test Ban Treaty–CTBT), जो परमाणु परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करती है, संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के द्वारा 10 सितंबर, 1996 को पारित हुई। 24 सितंबर, 1996 से इस संधि पर हस्ताक्षर शुरू हुए तथा संयुक्त राज्य अमेरिका इस पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश बना, यद्यपि इसने अभी तक इसे अनुमोदित नहीं किया है।

सीटीबीटी को प्रभाव में लाने के लिये उन सभी 44 देशों की संधि पर हस्ताक्षर करना तथा उसे अनुमोदित करना आवश्यक है, जिनके पास नाभिकीय रिएक्टर हैं (अनुच्छेद IV)। इन 44 देशों में भारत, पाकिस्तान और इजरायल भी सम्मिलित हैं। संधि के अनुसार अगर हस्ताक्षर कार्यक्रम प्रारंभ होने के 3 वर्षों के भीतर सभी नाभिकीय रिएक्टर संपन्न देश संधि को अनुमोदित नहीं करते हैं, तो सीटीबीटी संगठन. सदस्य देशों का सम्मेलन (सीओएसपी) आयोजित करेगा। सीओएसपी का आयोजन उन देशों के आग्रह पर होगा, जिन्होंने पहले ही अनुमोदन-प्रपत्र प्रस्तुत कर दिया है। इस सम्मेलन में आगे की कार्यवाही पर विचार किया जाएगा। लेकिन निर्धारित समय-सीमा, अर्थात् 24 सिंतबर 1999, तक इनमें से एक भी शर्त पूरी नहीं हुई, क्योंकि तब तक मात्र 26 देशों ने ही संधि पर हस्ताक्षर करके उसे अनुमोदित किया था।

जनवरी 1994 में जेनेवा में आयोजित निरस्त्रीकरण सम्मेलन (सीडी) में परमाणु परीक्षण के प्रतिबंध पर चर्चा शुरू हुई (यद्यपि सीडी संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 22 के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र महासभा का सहायक अंग नहीं है, तथापि, यह उससे घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। निरस्त्रीकरण पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रथम विशेष सत्र में लिये गये निर्णय के अनुवर्ती कदम के रूप में 1979 में स्थापित सीडी ने विशुद्ध रूप से प्रक्रिया नियमों के अनुसार कार्य किया है)। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका सीडी के मूल सह-प्रायोजकों में थे। मई 1995 में एनपीटी के स्थायी और अनिश्चित विस्तार के बाद कुछ सदस्यों, विशेषकर भारत, ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर को पूर्ण निरस्त्रीकरण की समयबद्ध योजना के साथ जोड़ दिया है। ऐसा इसलिये किया गया क्योंकि एनपीटी निरस्त्रीकरण से निपटने में सफल नहीं हुई, जो कि इसके मौलिक लक्ष्यों में से एक है। इसके दो अन्य लक्ष्य हैं-परमाणु अप्रसार और नाभिकीय ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग।

दो वर्षों तक चली सघन वार्ताओं के बाद 20 अगस्त, 1996 को सीडी सम्पन्न हुआ। चर्चा के दौरान सीटीबीटी के अनेक प्रावधानों पर विरोध व्यक्त किया गया। प्रारूप-पत्र (draft text) के प्रावधानों पर सहमति के अभाव में सीडी के पास महासभा की सिफारिश करने के लिये कोई दस्तावेज नहीं था। लेकिन सीडी में अवरुद्ध किये गये प्रारूप पर संयुक्त राष्ट्र संघ की मुहर लगाने के लिए प्रारूप को सूचना दस्तावेज (information document) के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिस पर आस्ट्रेलिया ने 120 देशों के समर्थन के साथ एक प्रस्ताव जारी किया, जिसमें महासभा से दस्तावेज के स्वीकार करने के लिये तथा महासचिव से उसे सदस्य देशों के द्वारा हस्ताक्षर के लिये खोलने का आग्रह किया गया। इस प्रकार अवरुद्ध सीटीबीटी संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यक्रम में सम्मिलित हो गया। इस प्रक्रिया में सीडी की 17 वर्ष पुरानी कार्यप्रणाली की सम्पूर्ण व्यवस्था आम सहमति से समाप्त हो गई।

सीटीबीटी के कुछ प्रावधान निम्नांकित हैं-

  1. संधि सभी प्रकार के परमाणु अस्त्र परीक्षण विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है।
  2. संधि का उल्लंघन रोकने के लिये एक अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण प्रणाली स्थापित की जाएगी।
  3. 1,000 टन क्षमता वाले परम्परागत विस्फोटों से अधिक शक्तिशाली विस्फोट (भूमिगत, वायुमंडल या अंतर्जलीय) का पता लगाने के लिये 20 स्टेशनों वाला एक नेटवर्क स्थापित किया जायेगा।
  4. अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण प्रणाली या किसी विशेष देश की निगरानी (लेकिन जासूसी नहीं) से प्राप्त सूचना के आधार पर कोई भी देश विस्फोट की सत्यता स्थापित करने के लिये निरीक्षण का आग्रह कर सकता है। निरीक्षण के आवेदन के लिये 51 सदस्यीय कार्यकारी परिषद के 30 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है।

 

 


  1. इस प्रकार संशोधित बल में प्रवेश [(Entry into Force) अनुच्छेद 14] प्रावधान के अनुसार-
  • इस संधि के परिशिष्ट (Annex.)2 में अधिसूचित सभी देशों द्वारा अनुमोदन-प्रपत्र जमा करने के 180 दिनों के बाद, लेकिन किसी भी परिस्थिति में संधि पर हस्ताक्षर प्रारम्भ होने के दो वर्ष से पहले नहीं, संधि प्रभावी होगी।
  • यदि हस्ताक्षर प्रारंभ होने की तिथि के तीन वर्षों के अन्दर यह संधि प्रभाव में नहीं आती है तो अनुमोदन प्रपत्र जमाकर्ता (Depository) उन देशों के आग्रह पर, जिन्होंने पहले ही अपना अनुमोदन-प्रपत्र जमा कर दिया है, सदस्य देशों का एक सम्मेलन आयोजित करेगा। सम्मेलन इस तथ्य की जांच करेगा कि अनुच्छेद 1 में अधिसूचित प्रावधानों का किस सीमा तक पालन हुआ है और आम सहमति से यह निर्णय लेगा कि संधि को यथाशीघ्र प्रभाव में लाने के लिये कौन-से ऐसे कदम उठाये जाएं, जो अंतरराष्ट्रीय विधि से तारतम्य रखते हों।
  • जब तक अनुच्छेद 2 में निर्दिष्ट सम्मेलन या ऐसा कोई अन्य सम्मेलन कोई अन्यथा निर्णय नहीं लेता है, तब तक यह प्रक्रिया हस्ताक्षर अभियान शुरू होने की प्रत्येक वर्षगांठ पर दुहरायी जायेगी और तब तक जारी रहेगी जब तक यह संधि प्रभावी नहीं हो जाती है।
  • अनुच्छेद 2 तथा 3 में निर्दिष्ट सम्मेलन में सभी सदस्य देशों को पर्यवेक्षक के रूप में सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित किया जायेगा।

सीटीबीटी संगठन ने 27 अक्टूबर, 1999 को विएना में सीओएसपी का आयोजन किया। इसने विएना घोषणा को अपनाया, जो संधि को अनुमोदित करने वाले 26 देशों के द्वारा शीर्षतम राजनीतिक स्तर पर प्रगतिशील सहयोग प्रपत्र की आशा करता है। अधिकांश सदस्यों ने विश्वास व्यक्त किया कि संधि को प्रभाव में लाने के लिये सीओएसपी की पुनः आवश्यकता नहीं होगी। सर्वसम्मति से अपनाई गई विएना घोषणा का श्रेय जापान और इंग्लैण्ड के एक वर्ष के अथक प्रयास को जाता है। घोषणा ने संधि को अनुमोदित करने वाले 26 देशों की ओर से अन्य 18 देशों से आग्रह किया कि वे शीघ्रातिशीघ्र संधि पर हस्ताक्षर करें तथा उसका अनुमोदन करें। इसने पाकिस्तान और भारत को भी प्रेरित किया कि वे संधि को प्रभाव में लाने में बाधक न होने का अपना वचन पूरा करें। तीन परमाणु सम्पन्न देशों, जिन्होंने संधि की अनुमोदित नहीं किया था, से भी अनुमोदन की प्रक्रिया में गति लाने के लिये कहा गया।

सीटीबीटी की कुछ प्रमुख त्रुटियां है- पांच परमाणु हथियार-सम्पन्न देशों द्वारा सभी परमाणु अस्त्रों को नष्ट करने के संबंध में कोई निश्चित समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है (भारत ने दस वर्षीय समय-सीमा का सुझाव दिया); ईआईएफ धारा अस्वीकार्य है; पांच परमाणु हथियार-सम्पन्न देशों को स्पष्ट रूप से लाभ की स्थिति में रखा गया है क्योंकि संधि से अलग होने की स्थिति में वे अपने हथियारों का आध्रुनिकीकरण कर सकते हैं; संधि के अंतर्गत कोई भी सदस्य देश अन्य सदस्यों के समर्थन के बिना भी संधि से अलग हो सकता है तथा पांच परमाणु-सम्पन्न देश अपने डिजाइन दल और प्रयोगशालाओं को जारी रख सकते हैं; संधि व्यापक नहीं है, यह मात्र नाभिकीय अस्त्र परीक्षण पर प्रतिबंध लगाती है; सदस्य देश कम्प्यूटर-अनुरूपित परीक्षणों के माध्यम से अपनी शस्त्र प्रणाली को और सम्पन्न बना सकते हैं; अध:विवेचनात्मक परीक्षणों (subcritical tests) को बहुत अस्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है, तथा; संधि के प्रभावी होने के बाद उसका उल्लंघन करने वाले सदस्यों को दण्डित करने की प्रक्रिया भी दोषपूर्ण है।

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