परमाणु, अणु तथा उसकी संरचना Atom, Molecule and its Structure
प्राचीन भारतीय एवं ग्रीक दार्शनिक द्रव्य के अज्ञात एवं अदृश्य रूपों में सदैव चकित होते रहे। पदार्थ की विभाज्यता के मत के बारे में भारत में बहुत पहले, लगभग 500 ईसा पूर्व विचार व्यक्त किया गया था।
भारतीय दार्शनिक, महर्षि कणाद ने प्रतिपादित किया था कि यदि हम द्रव्य (पदार्थ) को विभाजित करते जाएँ तो हमें छोटे-छोटे कणों से प्राप्त कण को पुन: विभाजित नहीं किया जा सकेगा अर्थात् वह सूक्ष्मतम कण अविभाज्य रहेगा। इस अविभाज्य सूक्ष्मजात कण को उन्होंने परमाणु कहा। एक अन्य भारतीय दार्शनिक पकुध कात्यायन ने इस मत को विस्तृत रूप से समझाया तथा कहा कि ये कण सामान्यत: संयुक्त रूप में पाए जाते हैं, जो हमें द्रव्यों के भिन्न-भिन्न रूपों को प्रदान करते हैं। लगभग इसी समय ग्रीक दार्शनिक, डेमोक्रिटस एवं लियुसीपस ने सुझाव दिया था कि यदि हम द्रव्य को विभाजित करते जाएँ, तो एक ऐसी स्थिति आएगी जब प्राप्त कण को पुनः विभाजित नहीं किया जा सकेगा। उन्होंने इन अविभाज्य कण को परमाणु (अर्थात् अविभाज्य) कहा था। ये सभी सुझाव दार्शनिक विचारों पर आधारित थे। इन विचारों की वैधता सिद्ध करने के लिए 18वीं शताब्दी तक कोई अधिक प्रयोगात्मक कार्य नहीं हुए थे।
18वीं शताब्दी के अंत तक वैज्ञानिकों ने तत्वों एवं यौगिकों के बीच भेद को समझा तथा स्वाभाविक रूप से यह पता करने के इच्छुक हुए कि तत्व कैसे तथा क्यों संयोग करते हैं? जब तत्व परस्पर संयोग करते हैं, तब क्या होता है? वैज्ञानिक, आंतवां एल. लवाइजिए ने रासायनिक संयोजन के दो महत्वपूर्ण नियमों को स्थापित किया जिसने रसायन विज्ञान को महत्वपूर्ण आधार प्रदान किया।
रासायनिक संयोजन के नियम
लवाइजिए एवं जोजफ एल. प्राउस्ट ने बहुत अधिक प्रायोगिक कायों के पश्चात् रासायनिक संयोजन के निम्नलिखित दो नियम प्रतिपादित किए।
द्रव्यमान संरक्षणं का नियम
जब रासायनिक परिवर्तन (रासायनिक अभिक्रिया) संपन्न होता है, तब क्या द्रव्यमान में कोई परिवर्तन होता है? द्रव्यमान संरक्षण के नियम के अनुसार किसी रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्यमान का न तो सृजन किया जा सकता है न ही विनाश।
स्थिर अनुपात का नियम
लवाइजिए एवं अन्य वैज्ञानिकों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कोई भी यौगिक दो या दो से अधिक तत्वों से निर्मित होता है। इस प्रकार प्राप्त यौगिकों में, इन तत्वों का अनुपात स्थिर होता है, चाहे इसे किसी स्थान से प्राप्त किया गया हो अथवा किसी ने भी इसे बनाया हो।
यौगिक जल में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के द्रव्यमानों का अनुपात सदैव 1:8 होता है चाहे जल का स्त्रोत कोई भी हो। इसी प्रकार यदि 9g जल का अपघटन करें तो सदैव 1g हाइड्रोजन तथा 8g ऑक्सीजन ही प्राप्त होगी। इसी प्रकार अमोनिया (NH3) में, नाइट्रोजन एवं हाइड्रोजन द्रव्यमानों के अनुसार सदैव 14:3 के अनुपात में विद्यमान रहते हैं, चाहे अमोनिया किसी भी प्रकार से निर्मित हुई हो अथवा किसी भी स्रोत से ली गई हो।
उपरोक्त उदाहरणों से स्थिर अनुपात के नियम की व्याख्या होती है जिसे निश्चित अनुपात का नियम भी कहते हैं। प्राउस्ट ने इस नियम को इस प्रकार से व्यक्त किया था ‘‘किसी भी यौगिक में तत्व सदैव एक निश्चित द्रव्यमानों के अनुपात में विद्यमान होते हैं”।
वैज्ञानिकों की अगली समस्या इन नियमों की उचित व्याख्या करने की थी। अंग्रेज रसायनज्ञ, जॉन डाल्टन ने द्रव्यों की प्रकृति के बारे में एक आधारभूत सिद्धांत प्रस्तुत किया। डाल्टन ने द्रव्यों की विभाज्यता का विचार प्रदान किया जिसे उस समय तक दार्शनिकता माना जाता था। ग्रीक दार्शनिकों के द्वारा द्रव्यों के सूक्ष्मतम अविभाज्य कण, जिसे परमाणु नाम दिया था, उसे डाल्टन ने भी परमाणु नाम दिया। डाल्टन का यह सिद्धांत रासायनिक संयोजन के नियमों पर आधारित था। डाल्टन के परमाणु सिद्धांत ने द्रव्यमान के संरक्षण के नियम एवं निश्चित अनुपात के नियम की युक्तिसंगत व्याख्या की।
डाल्टन के परमाणु सिद्धांत के अनुसार सभी द्रव्य चाहे तत्व, यौगिक या मिश्रण हो, सूक्ष्म कणों से बने होते हैं जिन्हें परमाणु कहते हैं। डाल्टन के सिद्धांत की विवेचना निम्न प्रकार से कर सकते हैं:
- सभी द्रव्य परमाणुओं से निर्मित होते हैं।
- परमाणु अभिक्रिया में न तो सृजित होते हैं न ही उनका विनाश होता है।
- दिए गए तत्व के सभी परमाणुओं का द्रव्यमान एवं रासायनिक गुणधर्म समान होते हैं।
- भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणुओं के द्रव्यमान एवं रासायनिक गुणधर्म भिन्न-भिन्न होते हैं।
- भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु परस्पर छोटे पूर्ण संख्या के अनुपात में संयोग कर यौगिक निर्मित करते हैं।
- किसी भी यौगिक में परमाणुओं की सापेक्ष संख्या एवं प्रकार निश्चित होते हैं।
परमाणु क्या होता है?
क्या आपने कभी कोई इमारत बनते देखी है? इन दीवारों से एक कमरा एवं कई कमरों के समूह से एक इमारत निर्मित होती है। उस विशाल इमारत की रचनात्मक इकाई क्या है? किसी बाँबी की रचनात्मक इकाई क्या होती है? यह रेत का छोटा-सा कण होता है। इसी प्रकार, सभी द्रव्यों की रचनात्मक इकाई परमाणु होती है।
परमाणु कितने बड़े होते हैं?
परमाणु बहुत छोटे होते हैं। ये किसी भी वस्तु, जिसकी हम कल्पना या तुलना कर सकते हैं, से भी छोटे होते हैं। लाखों परमाणुओं को जब एक के ऊपर एक चट्टे के रूप में रखें, तो बड़ी कठिनाई से कागज की एक शीट जितनी मोटी परत बन पाएगी।
जब परमाणु का आकार इतना सूक्ष्म है कि हम इसे नगण्य मान सकते हैं, तो हम इसके बारे में क्यों सोचे? हम इसके बारे में इसलिए सोचते हैं क्योंकि हमारा पूरा विश्व ही परमाणुओं से बना है। चाहे हम उन्हें देख नहीं सक, फिर भी वे यहाँ विद्यमान हैं तथा हमारे प्रत्येक क्रियाकलापों पर उनका प्रभाव पड़ता रहता है। अब हम आधुनिक तकनीकों की सहायता से तत्वों की सतहों के आवर्धित प्रतिबिंबों को दिखा सकते हैं, जिनमें उपस्थित परमाणु स्पष्ट दिखाई देते हैं।
सापेक्ष आकार | |
त्रिज्या (मीटर में) | उदाहरण |
10-70 | हाइड्रोजन परमाणु |
10-9 | जल अणु |
10-8 | हीमोग्लोबिन अणु |
10-4 | रेत कण |
10-2 | चींटी |
10-1 | तरबूत |
विभिन्न तत्वों के परमाणुओं के आधुनिक प्रतीक क्या हैं?
डाल्टन ऐसे प्रथम वैज्ञानिक थे, जिन्होंने तत्वों के प्रतीकों का प्रयोग अत्यंत विशिष्ट अर्थ में किया। जब उन्होंने किसी तत्व के प्रतीकों का प्रयोग किया, तो यह प्रतीक उस तत्व की एक निश्चित मात्रा की ओर इंगित करता था अर्थात् यह प्रतीक तत्व के एक परमाणु को प्रदर्शित करता था। बर्जिलियस ने तत्वों के ऐसे प्रतीकों का सुझाव दिया, जो उन तत्वों के नामों के एक या दो अक्षरों से प्रदर्शित होता था।
प्रारंभ में तत्वों के नामों की व्युत्पत्ति उन स्थानों के नामों से की गई, जहाँ वे सर्वप्रथम पाए गए थे। उदाहरणस्वरूप, कॉपर का नाम साइप्रस से व्युत्पन्न हुआ। कुछ तत्वों के नामों को विशिष्ट रंगों से लिया गया। उदाहरणस्वरूप, स्वर्ण का नाम अंग्रेजी के उस शब्द से लिया गया, जिसका अर्थ होता है पीला।
आजकल IUPAC इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एण्ड एप्लाइड केमिस्ट्री तत्वों के नामों को स्वीकृति प्रदान करती है। अधिकतर तत्वों के प्रतीक, उन तत्वों के अंग्रेजी नामों के एक या दो अक्षरों से बने होते हैं। किसी प्रतीक के पहले अक्षर को सदैव बड़े अक्षर में तथा दूसरे अक्षर को छोटे अक्षर में लिखा जाता है।
उदाहरणार्थ
- हाइड्रोजन, H
- ऐल्युमिनियम, Al न कि AL,
- कोबाल्ट, Co न कि CO
कुछ तत्वों के प्रतीक | |||||
तत्व | प्रतीक | तत्व | प्रतीक | तत्व | प्रतीक |
ऐल्यूमिनियम | Al | कॉपर | Cu | नाइट्रोजन | N |
आर्गन | Ar | फ्लुओरीन | F | ऑक्सीजन | O |
बेरियम | Ba | स्वर्ण (गोल्ड) | Au | पोटेशियम | K |
बोरॉन | B | हाइड्रोजन | H | सिलिकॉन | SI |
ब्रोमीन | Br | आयोडीन | I | चाँदी | Ag |
कैल्सियम | Ca | आयरन | Fe | सोडियम | Na |
कार्बन | С | सीसा | Pb | सल्फर | S |
क्लोरीन | Cl | मैग्नीशियम | Mg | यूरेनियम | U |
कोबाल्ट | Co | नियॉन | Ne | जिंक | Zn |
कुछ तत्वों के प्रतीक उनके अंग्रेजी नामों के प्रथम अक्षर तथा बाद में आने वाले किसी एक अक्षर को संयुक्त करके बनाते हैं। उदाहरण: (i) क्लोरीन, CI (ii) जिंक, Zn इत्यादि।
अन्य तत्वों के प्रतीकों को लैटिन, जर्मन या ग्रीक भाषाओं में उनके नामें से बनाया गया है। उदाहरणार्थ: लौह का प्रतीक Fe है, जो उसके लैटिन नाम फेरम से व्युत्पन्न किया गया है। इसी प्रकार सोडियम का प्रतीक Na तथा पोटेशियम का प्रतीक K, क्रमशः नैट्रियम एवं कलियम से व्युत्पन्न हैं। इस प्रकार प्रत्येक तत्व का एक नाम एवं एक अद्वितीय रासायनिक प्रतीक होता है।
परमाणु द्रव्यमान
डाल्टन के परमाणु सिद्धांत की सबसे विशिष्ट संकल्पना, परमाणु द्रव्यमान की थी। उनके अनुसार प्रत्येक तत्व का एक अभिलाक्षणिक परमाणु द्रव्यमान होता है। डाल्टन का सिद्धांत, स्थिर अनुपात के नियम को इतनी भली-भाँति समझाने में समर्थ था कि वैज्ञानिक इससे प्रेरित होकर परमाणु द्रव्यमान को मापने की ओर अग्रसर हुए। चूंकि एक परमाणु के द्रव्यमान को ज्ञात करना अपेक्षाकृत कठिन कार्य था, इसलिए रासायनिक संयोजन के नियमों के उपयोग एवं उत्पन्न यौगिकों के द्वारा सापेक्ष परमाणु द्रव्यमानों को ज्ञात किया गया।
कार्बन मोनोक्साइड (CO) जो कार्बन एवं ऑक्सीजन द्वारा निर्मित होता है। प्रायोगिक तौर पर यह निरीक्षित किया गया कि 3 g कार्बन तथा 4 g ऑक्सीजन के संयोजन से कार्बन मोनोक्साइड निर्मित हुई है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि कार्बन अपने 4/3 गुणा अधिक द्रव्यमान वाले ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होती है। हम परमाणु द्रव्यमान की इकाई को एक कार्बन परमाणु द्रव्यमान को बराबर मानते हैं तो कार्बन परमाणु को 1.0 u तथा ऑक्सीजन परमाणु द्रव्यमान को 1.33 u निर्दिष्ट करेंगे। (प्रारंभ में परमाणु द्रव्यमान को amu द्वारा संक्षेप में लिखते थे, लेकिन आजकल IUPAC के नवीनतम अनुमोदन द्वारा इसको ‘u’- यूनीफाइड द्रव्यमान द्वारा प्रदर्शित करते हैं।) लेकिन द्रव्यमानों की इकाई को यथासंभव पूर्णांक या लगभग पूर्णांक में व्यक्त करना अधिक सुविधाजनक होता है। आगे चलकर वैज्ञानिकों ने परमाणु द्रव्यमानों की भिन्न-भिन्न इकाइयों के बारे में विचार व्यक्त किए। वैज्ञानिक जब विभिन्न परमाणु द्रव्यमानों की इकाइयों के बारे में शोधरत थे तो उन्होंने प्रारंभ में प्रकृतिजन्य ऑक्सीजन परमाणु के द्रव्यमान के 1/16 भाग को इकाई के रूप में लिया। दो कारणों से इसे सुसंगत समझा गया-
- ऑक्सीजन अनेक तत्वों के साथ अभिक्रिया करके यौगिक बनाता है।
- इस परमाणु द्रव्यमान इकाई द्वारा अधिकांश तत्वों के परमाणु, द्रव्यमान पूर्णाक में प्राप्त होते हैं।
तथापि, 1961 में परमाणु द्रव्यमानों को ज्ञात करने के लिए परमाणु द्रव्यमान इकाई, कार्बन-12 समस्थानिक (आइसोटोप) को मानक संदर्भ के रूप में सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया था। कार्बन-12 समस्थानिक के एक परमाणु द्रव्यमान के 1/12 वें भाग को मानक परमाणु द्रव्यमान इकाई के रूप में लेते हैं। कार्बन-12 समस्थानिक के एक परमाणु द्रव्यमान के सापेक्ष सभी तत्वों के परमाणु द्रव्यमान प्राप्त किए गए।
किसी तत्व के सापेक्षिक परमाणु द्रव्यमान को उसके परमाणुओं के औसत द्रव्यमान का कार्बन-12 परमाणु के द्रव्यमान के 1/12वें भाग के अनुपात द्वारा परिभाषित किया जाता है।
परमाणु किस प्रकार अस्तित्व में रहते हैं?
अधिकांश तत्वों के परमाणु स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं रह पाते। परमाणु, अणु एवं आयन बनाते हैं। ये अणु अथवा आयन अत्यधिक संख्या में पुंजित होकर वह द्रव्य बनाते हैं, जिसे हम देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं अथवा छू सकते हैं।
अणु क्या है?
साधारणतया अणु ऐसे दो या दो से अधिक परमाणुओं का समूह होता है जो आपस में रासायनिक बंध द्वारा जुड़े होते हैं अथवा वे परस्पर आकर्षण बल के द्वारा कसकर जुड़े होते हैं। अणु को किसी तत्व अथवा यौगिक के उस सूक्ष्मतम कण के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जो स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रह सकता है तथा जो उस यौगिक के सभी गुणधर्म को प्रदर्शित करता है। एक ही तत्व के परमाणु अथवा भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु परस्पर संयोग कर अणु निर्मित करते हैं।
कुछ तत्वों के परमाणु द्रव्यमान | |
तत्व | परमाणु द्रव्यमान (u) |
हाइड्रोजन | 1 |
कार्बन | 12 |
नाइट्रोजन | 14 |
ऑक्सीजन | 16 |
सोडियम | 23 |
मैग्नीशियम | 24 |
सल्फर | 32 |
क्लोरीन | 35.5 |
कैल्सियम | 40 |
कुछ तत्वों की परमाणुकता | ||
तत्वों के प्रकार | नाम | परमाणुकता |
अधातु | आर्गन | एक परमाणुक |
हीलियम | एक परमाणुक | |
ऑक्सीजन | द्विपरमाणुक | |
हाइड्रोजन | द्विपरमाणुक | |
नाइट्रोजन | द्विपरमाणुक | |
क्लोरीन | द्विपरमाणुक | |
सल्फर | बहुपरमाणुक |
तत्वों के अणु
किसी तत्व के अणु एक ही प्रकार के परमाणुओं द्वारा संरचित होते हैं। आर्गन, हीलियम इत्यादि जैसे अनेक तत्वों के अणु उसी तत्व के केवल एक परमाणु द्वारा निर्मित होते हैं। लेकिन अधिकांश अधातुओं में ऐसा नहीं होता है। उदाहरणार्थ, ऑक्सीजन अणु दो ऑक्सीजन परमाणुओं से बनता है, इसलिए इसे द्वि-परमाणुक अणु, O2 कहते हैं। यदि सामान्यतः 2 के स्थान पर 3 ऑक्सीजन परमाणु परस्पर संयोग करते हैं तो हमें ओजोन प्राप्त होता है। किसी अणु की संरचना में प्रयुक्त होने वाले परमाणुओं की संख्या को उस अणु की परमाणुकता कहते हैं। धातु एवं कुछ अन्य तत्व, जैसे कि कार्बन की सरल संरचना नहीं होती है, किन्तु उनके अणुओं में असीमित परमाणु परस्पर बँधे होते हैं।
आयन क्या होता है?
धातु एवं अधातु युक्त यौगिक, आवेशित कणों से बने होते हैं। इन हैं तथा इन पर ऋण अथवा धन आवेश होता है। ऋण आवेशित कण को ऋणायन तथा धन आवेशित कण को धनायन कहते हैं। उदाहरण के लिए सोडियम क्लोराइड को लीजिए। इसमें धनात्मक सोडियम आयन तथा ऋणात्मक क्लोराइड आयन संघटक कण के रूप में विद्यमान होते हैं। आयन एक आवेशित परमाणु अथवा परमाणुओं का एक ऐसा समूह होता है, जिस पर नेट आवेश विद्यमान होता है। परमाणुओं के समूह, जिन पर नेट आवेश विद्यमान हों, उसे बहु परमाणुक आयन कहते हैं।
किसी पदार्थ के एक मोल में कणों (परमाणु, अणु अथवा आयन) की संख्या निश्चित होती है जिसका मान 6.022 × 1023 होता है। यह मान प्रायोगिक विधि से प्राप्त किया गया है। इसको आवोगाद्रो स्थिरांक अथवा आवोगाद्रो संख्या कहते हैं तथा No से निरुपित करते हैं। यह नाम इतालवी वैज्ञानिक, ऐमीडीओ आवोगाद्रो के सम्मान में रखा गया है।
1 मोल (किसी पदार्थ का) = 6.022 × 1023 संख्या में, जैसे
1 दर्जन = 12
1 ग्रुस = 144
यद्यपि मोल एक संख्या से संबंधित है, परंतु दर्जन या ग्रुस की तुलना में इसका एक और लाभ है। वह यह है कि किसी विशिष्ट पदार्थ के एक मोल में द्रव्यमान निश्चित होता है।
किसी पदार्थ के एक मोल का द्रव्यमान उसके सापेक्ष परमाणु एवं अणु द्रव्यमान (ग्राम में) के बराबर होता है। किसी तत्व का परमाणु द्रव्यमान, उस तत्व के द्रव्यमान को परमाणु द्रव्यमान इकाई में प्रदान करता है। किसी तत्व के परमाणुओं के एक मोल का द्रव्यमान, जिसको मोलर द्रव्यमान कहते हैं, हमें उसी संख्यात्मक मान को लेना पड़ेगा, परंतु इकाई को u से g में परिवर्तित करना होगा। परमाणुओं के मोलर द्रव्यमान को ग्राम परमाणु द्रव्यमान भी कहते हैं। उदाहरणार्थ-हाइड्रोजन परमाणु का द्रव्यमान = 1u होता है। अत: हाइड्रोजन का ग्राम परमाणु द्रव्यमान = 1g होगा।
1u हाइड्रोजन में केवल 1 हाइड्रोजन परमाणु होता है तथा 1g हाइड्रोजन में उसके 1 मोल परमाणु होते हैं। अर्थात् उसमें 6.022 × 1023 ऑक्सीजन के परमाणु होंगे।
किसी अणु के ग्राम अणु द्रव्यमान अथवा मोलर द्रव्यमान को प्राप्त करने के लिए हम उसके संख्यात्मक मान, जो उसके अणु द्रव्यमान के बराबर होता है, को उपरोक्त की तरह रखते हैं। परंतु हमें इकाई को u से g में परिवर्तित करना होगा।
उदाहरणार्थ: जैसा कि हम पहले ही जल (H2O) के अणु द्रव्यमान का परिकलन कर चुके हैं, जिसका मान 18u होता है। यहाँ से हमें यह प्राप्त होता है कि 18u जल में जल का केवल एक अणु होता है। 18g जल में जल का एक मोल अणु होता हैं। अर्थात् उसमें 6.022 × 1023 जल के अणु होते हैं।
कुछ आयनिक यौगिक | ||
आयनिक यौगिक | संघटक तत्व | द्रव्यमान अनुपात |
कैल्सियम ऑक्साइड | कैल्सियम एवं ऑक्सीजन | 5:2 |
मैग्नीशियम सल्फाइड | मैग्नीशियम एवं सल्फर | 3:4 |
सोडियम क्लोराइड | सोडियम एवं क्लोरीन | 23:35.5 |
रसायनज्ञों को अभिक्रियाओं को संपन्न कराने के लिए परमाणुओं एवं अणुओं की संख्याओं की आवश्यकता होती है, इसके लिए उन्हें द्रव्यमानों को ग्रामों में संख्याओं के साथ संबंधित करना पड़ता है। इसको निम्न प्रकार से करते हैं:
1 मोल = 6.022 × 1023
= ग्राम सापेक्ष द्रव्यमान
अतः रसायनज्ञों के परिकलन की इकाई मोल हुई।
सन् 1896 में विल्हेल्म ओस्टवाल्ड ने मोल शब्द प्रस्तावित किया था जो एक लैटिन शब्द मोल्स से व्युत्पन्न होता है जिसका अर्थ होता है ढेर। किसी पदार्थ को परमाणुओं अथवा अणुओं के ढेर के रूप में विचार किया जा सकता है। सन् 1967 में मोल इकाई स्वीकार कर ली गई, जो परमाणुओं एवं अणुओं की वृहद संख्या को निरूपित करने का सरलतम उपाय है।
परमाणु की संरचना
पदार्थ, परमाणुओं और अणुओं से मिलकर बने होते हैं। विभिन्न प्रकार के पदार्थों का अस्तित्व उन परमाणुओं के कारण होता है, जिनसे वे बने हैं। अब प्रश्न उठता है कि :
(i) किसी एक तत्व का परमाणु, दूसरे तत्व के परमाणुओं से भिन्न क्यों होता है? और (ii) क्या परमाणु वास्तव में अविभाज्य होते हैं, जैसा कि डाल्टन ने प्रतिपादित किया था या परमाणुओं के भीतर छोटे अन्य घटक भी विद्यमान होते हैं?
19वीं शताब्दी के अंत में वैज्ञानिकों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी, परमाणु की संरचना और उसके गुणों के बारे में पता लगाना। परमाणुओं की संरचना को अनेक प्रयोगों के आधार पर समझाया गया है। परमाणुओं के अविभाज्य न होने के संकेतों में से एक संकेत स्थिर-विद्युत तथा विभिन्न पदार्थों द्वारा विद्युत चालन की परिस्थितियों के अध्ययन से मिला।
19वीं शताब्दी तक यह जान लिया गया था कि परमाणु साधारण और अविभाज्य कण नहीं है, बल्कि इसमें कम-से-कम एक अवपरमाणुक कण इलेक्ट्रॉन विद्यमान होता है, जिसका पता जे.जे. टॉमसन ने लगाया था। इलेक्ट्रॉन के संबंध में जानकारी प्राप्त होने के पहले, ई.गोल्डनस्टीन ने 1886 में एक नए विकिरण की खोज की, जिसे उन्होंने कैनाल रे का नाम दिया। ये किरणे धनावेशित विकिरण थीं, जिसके द्वारा अंततः दूसरे अवपरमाणुक कणों की खोज हुई। इन कणों का आवेश इलेक्ट्रॉन के आवेश के बराबर, किंतु विपरीत था। इनका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा लगभग 2000 गुणा अधिक होता है। उनको प्रोटॉन नाम दिया गया। सामान्यत: इलेक्ट्रॉन को e के द्वारा और प्रोटॉन को p के द्वारा दर्शाया जाता है। प्रोटॉन का द्रव्यमान 1 इकाई और इसका आवेश +1 लिया जाता है। इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान नगण्य और आवेश -1 माना जाता है।
ऐसा माना गया कि परमाणु प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन से बने हैं, जो परस्पर आवेशों को संतुलित करते हैं। यह भी प्रतीत हुआ कि प्रोटॉन परमाणु के सबसे भीतरी भाग में होते हैं इलेक्ट्रॉनों को आसानी से निकाला जा सकता है लेकिन प्रोटॉनों को नहीं। अब सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि ये कण परमाणु की संरचना किस प्रकार करते हैं?
डाल्टन के परमाणु सिद्धांतों के अनुसार परमाणु अविभाज्य और अविनाशी था। लेकिन परमाणु के भीतर दो मूल कणों, इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की खोज ने डाल्टन के परमाणु सिद्धांत की इस धारणा को गलत साबित कर दिया। अब यह जानना आवश्यक था कि इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन परमाणु के भीतर किस तरह व्यवस्थित हैं। इसको समझाने के लिए बहुत से वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के मॉडलों को प्रस्तुत किया। जे.जे. थॉमसन पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने परमाणुओं की संरचना से संबंधित पहला मॉडल प्रस्तुत किया।
थॉमसन का परमाणु मॉडल थॉमसन ने परमाणुओं की संरचना से संबंधित एक मॉडल प्रस्तुत किया, जो क्रिसमस केक की तरह था। इनके अनुसार परमाणु एक धनावेशित गोला था, जिसमें इलेक्ट्रॉन क्रिसमस केक में लगे सूखे मेवों की तरह थे। तरबूज का उदाहरण भी ले सकते हैं, जिसके अनुसार परमाणु में धन आवेश तरबूज के खाने वाले लाल भाग की तरह बिखरा है, जबकि इलेक्ट्रॉन धनावेशित गोले में तरबूज के बीज की भाँति धंसे हैं।
कुल मूलकणों के संकेत, आवेश, भार एवं स्पिन | |||||
कण | संकेत | आवेश | भार | स्पिन | जीवन अवधि (सैकेंड) |
इलेक्ट्रॉन | E,β | – | 1 | 1/2 | – |
प्रोटॉन | р | + | 1836 | 1/2 | – |
प्रति-प्रोटॉन | φ | – | 1836 | 1/2 | – |
पाजिट्रॉन | e+β+ | + | 1 | 1/2 | – |
न्यूट्रिनो | γ | 0 | <0.04 | 1/2 | – |
फोटॉन | γ | 0 | 0 | 1 | – |
ग्रोविटान | G | 0 | 0 | 2 | – |
मेसान | r | – | 273.2 | – | 2.5 × 108 |
ब्रिटिश भौतिकशास्त्री, जे. जे. थॉमसन (1856-1940), का जन्म 18 दिसम्बर, 1856 में मैनचेस्टर के कीचम हिल क्षेत्र में हुआ था। इलेक्ट्रॉन की खोज के कारण 1906 में उनको भौतिकशास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला।। 35 वर्ष तक वे कैम्ब्रिज से कैवेन्डिश प्रयोगशाला के निदेशक थे और उनके शोध के सात सहयोगियों को भी आगे चलकर नोबेल पुरस्कार मिला।
थॉमसन ने प्रस्तावित किया कि:
- परमाणु धन आवेशित गोले का बना होता है और
- ऋणात्मक और धनात्मक आवेश परिमाण में समान होते हैं। इसलिए परमाणु, वैद्युतीय रूप से उदासीन होते हैं।
यद्यपि थॉमसन के मॉडल से परमाणु के उदासीन होने की व्याख्या हो गई, किंतु दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों के परिणामों को इस मॉडल के द्वारा समझाया नहीं जा सका।
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल
अरनेस्ट रदरफोर्ड यह जानने के इच्छुक थे कि इलेक्ट्रॉन परमाणु के भीतर कैसे व्यवस्थित हैं। उन्होंने एक प्रयोग किया। इस प्रयोग में, तेज गति से चल रहे अल्फा कणों को सोने की पन्नी पर टकराया गया।
- इन्होने सोने की पन्नी इसलिए चुनी क्योंकि वे बहुत पतले द्विआवेशित हिलीयम कण होते हैं, अत: ये धनावेशित होते हैं। चूंकि इनका द्रव्यमान 4 न होता है, इसलिए तीव्र गति से चल रहे इन अल्फा कणों में पर्याप्त ऊर्जा होती है।
- यह अनुमान था कि अल्फा कण, सोने के परमाणुओं में विद्यमान अवपरमाणुक कणों के द्वारा विक्षेपित होंगे। चूंकि अल्फा कण प्रोटॉन से बहुत अधिक भारी थे, इसलिए उन्होंने इसके अधिक विक्षेपण की आशा नहीं की थी।
लेकिन अल्फा कण-प्रकीर्णन प्रयोग ने आशा के बिल्कुल विपरीत परिणाम दिया। इससे निम्नलिखित परिणाम मिले–
- तेज गति से चल रहे अधिकतर अल्फा कण, सोने की पन्नी से सीधे निकल गए।
- कुछ अल्फा कण, पन्नी के द्वारा बहुत छोटे कण से विक्षेपित हुए।
- आश्चर्यजनक रूप से प्रत्येक 12000 कणों में से एक कण वापस आ गया।
इस प्रयोग के निष्कर्ष को समझने के लिए खुले मैदान में एक क्रियाकलाप करते हैं। मान लें कि एक बच्चा अपनी आँखों को बंद किए हुए एक दीवार के सामने खड़ा है। उसे दीवार पर कुछ दूरी से पत्थर फेंकने को कहें। प्रत्येक पत्थर के दीवार से टकराने के साथ ही वह एक आवाज सुनेगा। अगर वह इसे दस बार दोहराएगा तो वह दस बार आवाज सुनेगा। लेकिन जब आँख बंद किया हुआ बच्चा तार से घिरी हुई चारदिवारी पर पत्थर फेंकेगा तो अधिकतर पत्थर उस घेरे पर नहीं टकराएँगे और कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ेगी। क्योंकि घेरे के बीच में बहुत सारे खाली स्थान हैं, जिनके बीच से पत्थर निकल जाता है।
इसी तक के अनुसार, अल्फा कण-प्रकीर्णन प्रयोग के आधार पर रदरफोर्ड ने निम्न परिणाम निकाले–
- परमाणु के भीतर का अधिकतर भाग खाली है क्योंकि अधिकतर अल्फा कण बिना विक्षेपित हुए सोने की पन्नी से बाहर निकल जाते हैं।
- बहुत कम कण अपने मार्ग से विक्षेपित होते हैं, जिससे यह ज्ञात होता है कि परमाणु में धनोवेशित भाग बहुत कम है।
- बहुत कम अल्फा कण 180° पर विक्षेपित हुए थे, जिससे यह संकेत मिलता है कि सोने के परमाणु का पूर्ण धनावेशित भाग और द्रव्यमान, परमाणु के भीतर बहुत कम आयतन में सीमित है।
प्राप्त आँकड़ों के आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि नाभिकी की त्रिज्या, परमाणु की त्रिज्या से 105 गुना छोटी है।
अपने प्रयोगों के आधार पर रदरफोर्ड ने परमाणु का नाभिकीय-मॉडल प्रस्तुत किया, जिसके निम्नलिखित लक्षण थे:
- परमाणु का केन्द्र धनावेशित होता है जिसे नाभिक कहा जाता है। एक परमाणु का लगभग संपूर्ण द्रव्यमान नाभिक में होता है।
- इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं।
- नाभिक का आकार, परमाणु के आकार की तुलना में काफी कम होता है।
बोर का परमाण्विक मॉडल
रदरफोर्ड के मॉडल पर उठी आपत्तियों को दूर करने के लिए, नील्स बोर ने परमाणु की संरचना के बारे में निम्नलिखित अवधारणाएँ प्रस्तुत कीं-
- इलेक्ट्रॉन केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही चक्कर लगा सकते हैं, जिन्हें इलेक्ट्रॉन की विविक्त कक्षा कहते हैं।
- जब इलेक्ट्रॉन इस विविक्त कक्षा में चक्कर लगाते हैं, तो उनकी ऊर्जा का विकिरण नहीं होता है।
नील्स बोर (1885-1962) का जन्म 7 अक्टूबर, 1885 में कोपेनहेगन में हुआ था। 1916 में कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में उनको भौतिकशास्त्र का प्रोफेसर नियुक्त किया गया। 1922 में उनको परमाणु की सरंचना पर अपने योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। प्रोफेसर बोर के विविध लेखों पर आधारित तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई-
(i) दि थ्योरी ऑफ स्पेक्ट्र एण्ड एटॉमिक कॉन्स्टीटूयूशन, (ii) एटॉमिक थ्योरी, और (iii)दि डिस्क्रिप्शन ऑफ नेचर।
इन कक्षाओं (या कोषों) को ऊर्जा-स्तर कहते हैं। ये कक्षाएँ (या कोष) K,L,M,N या संख्याओं, 1,2,3,4 के द्वारा दिखाई जाती है।
न्यूट्रॉन
1932 में जे. चैडविक ने एक और अवपरमाणुक कण को खोज निकाला, जो अनावेशित और द्रव्यमान में प्रोटॉन के बराबर था। अंतत: इनका नाम न्यूट्रॉन पड़ा। हाइड्रोजन को छोड़कर ये सभी परमाणुओं के नाभिक में होते हैं। सामान्यतः न्यूट्रॉन ‘n’ से दर्शाया जाता है। परमाणु का द्रव्यमान, नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के द्रव्यमान के योग के द्वारा प्रकट किया जाता है।
विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन कैसे वितरित होते हैं?
परमाणुओं की विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों के वितरण के लिए बोर और बरी ने कुछ नियम प्रस्तुत किए।
- इन नियमों के अनुसार किसी कक्षा में उपस्थित अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या को सूत्र 2n2 से दर्शाया जाता है, जहाँ ‘n’ कक्षा की संख्या या ऊर्जा स्तर है। इसलिए इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या पहले कक्ष या K कोष में होगी = 2 × 12 =2, दूसरे कक्ष या L कोष में होगी =2 × 22=8, तीसरे कक्ष या M कोष में होगी = 2 × 32 = 18 , चौथे कक्ष या N कोष में होगी = 2 × 42 = 32।
- सबसे बाहरी कोष में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 8 हो सकती है।
- किसी परमाणु के दिए गए कोष में इलेक्ट्रॉन तब तक स्थान नहीं लेते हैं, जब तक कि उससे पहले वाले भीतरी कक्ष पूर्ण रूप से भर नहीं जाते। इससे स्पष्ट होता है कि कक्षाएँ क्रमानुसार भरती हैं।
संयोजकता
परमाणुओं की विभिन्न कक्षाओं (या कोषों) में इलेक्ट्रॉन किस प्रकार व्यवस्थित होते हैं। किसी परमाणु की सबसे बाहरी कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को संयोजकता-इलेक्ट्रॉन कहा जाता है।
बोर-बरी स्कीम से हम जानते हैं कि किसी परमाणु का बाह्यतम कक्ष अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉन रख सकता है। यह देखा गया था कि जिन तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कक्ष पूर्ण रूप से भरे होते हैं, वे रासायनिक रूप से सक्रिय नहीं होते हैं। दूसरे शब्दों में, उनकी संयोजन-शक्ति या संयोजकता शून्य होती है। इन अक्रिय तत्वों में से हीलियम-परमाणु के बाह्यतम कक्ष में दो (2) इलेक्ट्रॉन होते हैं और अन्य आठ (8) होते हैं। सक्रिय तत्वों के परमाणुओं की संयोजन-शक्ति अर्थात् अपने समान या अन्य किसी तत्व के परमाणुओं से मिलकर अणु बनाने की प्रवृत्ति, अपने बाह्यतम कक्ष को पूर्ण रूप से भरने का प्रयास माना जाता है। आठ इलेक्ट्रॉन वाले सबसे बाहरी (बाह्यतम) कक्ष को अष्टक माना जाता है। परमाणु अपने अंतिम कक्ष में अष्टक प्राप्त करने के लिए क्रिया करते हैं। यह आपस में इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी करने, उनको ग्रहण करने या उनका त्याग करने से होता है। परमाणु के बाह्यतम कक्ष में इलेक्ट्रॉनों के अष्टक बनाने के लिए जितनी संख्या में इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी या स्थानांतरण होता है, वही उस तत्व की संयोजकता-शक्ति अर्थात् संयोजकता होती है। उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन, लीथियम या सोडियम, प्रत्येक के परमाणुओं के बाह्यतम कक्ष में एक-एक इलेक्ट्रॉन होता है। अत: यह एक इलेक्ट्रॉन का त्याग कर सकते हैं। इसलिए उनकी संयोजकता एक (1) कही जाती है। मैग्नीशियम और एल्युमिनियम की संयोजकता क्रमश: 2 और 3 है, क्योंकि मैग्नीशियम के बाह्यतम कक्ष में 2 तथा एलुमिनियम के 3 इलेक्ट्रॉन होते हैं।
यदि किसी परमाणु के बाह्यतम कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या उसकी क्षमता के अनुसार लगभग पूरी है तो संयोजकता एक अन्य प्रकार से प्राप्त की जाती है। उदाहरण के लिए, फ्लोरीन परमाणु के बाह्यतम कक्ष में सात (7) इलेक्ट्रॉन होते हैं और इसकी संयोजकता सात (7) हो सकती है किन्तु बाह्यतम कक्ष में अष्टक बनाने के लिए फ्लोरीन के लिए 7 इलेक्ट्रॉनों का त्याग करने की अपेक्षा एक (1) इलेक्ट्रॉन प्राप्त करना अधिक आसान है। अत: इसकी संयोजकता, अष्टक (8) में से सात (7) घटाकर प्राप्त की जाती है और इस तरह फ्लोरीन की संयोजकता एक (1) है। ऑक्सीजन की संयोजकता का परिकलन भी इसी प्रकार किया जा सकता है। इस परिकलन से ऑक्सीजन की संयोजकता कितनी होगी?
अतः प्रत्येक तत्व के परमाणु की एक निश्चित संयोजन-शक्ति होती है, जिसे संयोजकता कहते हैं।
परमाणु संख्या
परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन विद्यमान होते हैं। एक परमाणु में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या, उसकी परमाणु संख्या को बताती है। इसे Z के द्वारा दर्शाया जाता है। किसी तत्व के सभी अणुओं की परमाणु संख्या (z) समान होती है। वास्तव में तत्वों को उनके परमाणु में विद्यमान प्रोटॉनों की संख्या से परिभाषित किया जाता है। इलेक्ट्रॉनों के लिए Z= 1, क्योंकि हाइड्रोजन परमाणु के नाभिक में केवल एक प्रोटॉन होता है। इसी प्रकार, कार्बन के लिए Z = 6. इस प्रकार, एक परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की कुल संख्या को परमाणु संख्या कहते हैं।
द्रव्यमान संख्या
एक परमाणु के अवपरमाणुक कणों के अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि व्यवहारिक रूप में परमाणु का द्रव्यमान, उसमें विद्यमान प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों के द्रव्यमान के कारण होता है। ये परमाणु के नाभिक में विद्यमान होते हैं, इसलिए इन्हें न्यूक्लियॉन भी कहते हैं। परमाणु का लगभग संपूर्ण द्रव्यमान उसके नाभिक में होता है। उदाहरण के लिए, कार्बन का द्रव्यमान 12u है क्योंकि इसमें 6 प्रोटॉन और 6 न्यूट्रॉन होते हैं, 6u+6u = 12। इसी प्रकार, ऐल्यूमिनियम का द्रव्यमान 27u है (13 प्रोटॉन + 14 न्यूट्रॉन)। एक परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या के योग को द्रव्यमान संख्या कहा जाता है।
किसी परमाणु को दर्शाने को लिए परमाणुक संख्या, द्रव्यमान-संख्या और तत्व का प्रतीक इस प्रकार से लिखा जाता है।
द्रव्यमान संख्या | |
तत्व का प्रतीक | |
परमाणु संख्या |
उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन को इस प्रकार लिखा जाता है, [latex]_{ 7 }^{ 14 }{ N }[/latex]
समस्थानिक
प्रकृति में, कुछ तत्वों के परमाणुओं की पहचान की गई है, जिनकी परमाणु संख्या समान, लेकिन द्रव्यमान संख्या अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन परमाणु को लें। इसके तीन परमाण्विक स्पीशीज होते हैं: प्रोटियम 1H1, ड्यूटीरियम (1H2 या D), ट्राइटियम (1H3 या T), प्रत्येक की परमाणु संख्या समान है। लेकिन द्रव्यमान संख्या क्रमश: 1, 2 और 3 है। इस तरह के अन्य उदाहरण हैं: (1) कार्बन, 6C12 और 6C14; (2) क्लोरीन, 7C।351 और 17C।37।
इन उदाहरणों के आधार पर समस्थानिकों को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, “एक ही तत्व के परमाणु, जिनकी परमाणु संख्या समान लेकिन द्रव्यमान संख्या भिन्न होती है।’ इस तरह हम यह कह सकते हैं कि हाइड्रोजन परमाणु के तीन समस्थानिक प्रोटियम, ड्यूटीरियम और ट्राइटियम होते हैं।
बहुत से तत्वों में समस्थानिक का मिश्रण भी होता है। किसी तत्व का प्रत्येक समस्थानिक शुद्ध पदार्थ होता है। समस्थानिकों के रासायनिक गुण समान लेकिन भौतिक गुण अलग-अलग होते हैं।
प्रकृति में क्लोरीन दो समस्थानिक रूपों में पाया जाता है, जिसका द्रव्यमान 35u और 37u , जो 3 : 1 के अनुपात में होते हैं। अब यह प्रश्न उठता है कि किस द्रव्यमान को क्लोरीन परमाणु का द्रव्यमान मानना चाहिए?
किसी प्राकृतिक तत्व के एक परमाणु का द्रव्यमान उस तत्व में विद्यमान सभी प्राकृतिक रूप में पाए जाने वाले परमाणुओं के औसत द्रव्यमान के बराबर होता है। अगर किसी एक तत्व का कोई समस्थानिक नहीं है तो परमाणु का द्रव्यमान, उसमें उपस्थित प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉनों के द्रव्यमान का योग होता है। लेकिन अगर एक तत्व समस्थानिक रूप का प्रतिशत जानना होगा और औसत द्रव्यमान की गणना करनी होगी।
क्लोरीन का औसत परमाणु द्रव्यमान होगा,
[latex]\left( 35\times \frac { 75 }{ 100 } +37\times \frac { 25 }{ 100 }\right)[/latex]
[latex]\left( \frac { 105 }{ 41 } +\frac { 37 }{ 4 } \right) =142=35.5u[/latex]
इसका मतलब यह नहीं है कि क्लोरीन के परमाणु का द्रव्यमान एक भिन्नात्मक संख्या 35.5u है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अगर आप क्लोरीन की कुछ मात्रा लेते हैं तो इसमें क्लोरीन के समस्थानिक होंगे और औसत द्रव्यमान 35.5u होगा।
समस्थानिकों के अनुप्रयोग
कुछ समस्थानिकों के विशेष गुण होते हैं, जिनका उपयोग इन विभिन्न क्षेत्रों में करते हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
- यूरेनियम के एक समस्थानिक का उपयोग परमाणु भट्टी में ईधन के रूप में होता है।
- कैंसर के उपचार में कोबाल्ट के समस्थानिक का उपयोग होता है।
- घेघा रोग के इलाज में आयोडीन के समस्थानिक का उपयोग होता है।
समभारिक
दो तत्वों-कौल्शियम, परमाणु संख्या 20 और आर्गन परमाणु संख्या 18 के बारे में विचार कीजिए। परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न है, दोनों तत्वों की द्रव्यमान संख्या 40 है। यानी, तत्वों के इस जोड़े के अणुओं में कुछ न्यूक्लियॉनों की संख्या समान है। अलग-अलग परमाणु संख्या वाले तत्वों को जिनकी द्रव्यमान संख्या समान होती है, समभारिक कहा जाता है।