आरवीडु-वंश Aravidu Dynasty

लगभग 1570 ई. में अपने राज्यकाल के अन्त में तिरुमल ने नाममात्र के शासक सदाशिव को हटा दिया तथा आरवीडु वंश के लिए, जिस वंश का वह स्वयं था, गद्दी हड़प ली। उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी रंग द्वितीय ने साम्राज्य की कार्यक्षमता बढ़ाने की नीति को जारी रखा। 1568 ई. के लगभग रंग द्वितीय का उत्तराधिकारी उसका भाई वेंकट द्वितीय हुआ। उसका मुख्यालय चन्द्रगिरि में था। एक गौरवपूर्ण शासनकाल के बाद 1614 ई. में उसकी मृत्यु हुई। उसे विजयनगर का अन्तिम महान् शासक माना जा सकता है, जिसने साम्राज्य को अक्षुण्ण रखा। इस बात का एकमात्र अपवाद यह था कि 1612 ई. में राजा ओएडयार ने उसकी अनुमति लेकर, श्रीरंगपट्टम की सूबेदारी के नष्ट होने पर, मैसूर राज्य की स्थापना की। उसकी मृत्यु साम्राज्य के पतन का संकेत थी। इसके बाद उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुआ तथा फलस्वरूप अनेकीकरण की शक्तियाँ उत्पन्न हुई। इन्हें विजयनगर का अन्तिम महत्वपूर्ण राजा रंग तृतीय अपने भरसक प्रयत्नों के बावजूद साम्राज्य के विद्रोही सामंतों की स्वार्थी प्रवृत्ति एवं बीजापुर तथा गोलकुंडा के मुस्लिम राज्यों की महत्त्वाकांक्षा के कारण नहीं रोक सका। इस प्रकार विजयनगर साम्राज्य के हिन्दू जागीरदार अन्त में उसके शत्रु सिद्ध हुए। उनके अविवेकी अहंकार, अन्ध स्वार्थ, राजद्रोह एवं आपसी कलह से बीजापुर एवं गोलकुडा के मुस्लिम राज्यों को हिन्दू दक्कन को जीतने में बड़ी सुगमता हुई, और भी सेरिंगापटम (श्री रंगापट्टम्) एवं बेदनूर (केलदी, इक्केरी) के सरदारों तथा मदुरा एवं तंजोर के नायकों के समान अधीन राजप्रतिनिधियों ने अपने स्वतंत्र राज्य बना लिये।

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