भारत का संविधान – भाग 13 भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार , वाणिज्य और समागम

भाग 13

भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार , वाणिज्य और समागम

301. व्यापार , वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता–इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए , भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र व्यापार , वाणिज्य और समागम अबाध होगा ।

302. व्यापार , वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन अधिरोपित  करने की संसद् की शक्ति–संसद् विधि द्वारा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग के भीतर व्यापार , वाणिज्य या समागम की स्वतंत्रता पर ऐसे  निर्बंधन अधिरोपित  कर सकेगी जो लोक हित में अपेक्षित  हों ।

303. व्यापार  और वाणिज्य के संबंध में संघ और राज्यों की विधायी शक्तियों  पर निर्बंधन–(1) अनुच्छेद 302 में किसी बात के होते हुए  भी, सातवीं  अनुसूची की सूचियों में से किसी में व्यापार  और वाणिज्य संबंधी किसी प्रविष्टि के आधार पर, संसद् को या राज्य के विधान-मंडल को, कोई ऐसी  विधि बनाने की शक्ति  नहीं  होगी जो एक राज्य को दूसरे राज्य से अधिमान देती है या दिया जाना प्राधिकॄत करती है अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच कोई विभेद करती है या किया जाना प्राधिकॄत करती है ।

(2) खंड (1) की कोई बात संसद् को कोई ऐसी  विधि बनाने से नहीं  रोकेगी जो कोई ऐसा  अधिमान देती है या दिया जाना प्राधिकॄत करती है अथवा कोई ऐसा  विभेद करती है या किया जाना प्राधिकॄत करती है, यदि ऐसी  विधि द्वारा यह घोषित किया जाता है कि भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में माल की कमी से उत्पन्न  किसी स्थिति से निफटने के प्रयोजन के लिए ऐसा करना आवश्यक है ।

304. राज्यों के बीच व्यापार , वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन–अनुच्छेद 301 या अनुच्छेद303 में किसी बात के होते हुए  भी, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,–


(क) अन्य राज्यों [1][या संघ राज्यक्षेत्रों] से आयात किए  गए  माल पर कोई ऐसा  कर अधिरोपित  कर सकेगा जो उस राज्य में विनिार्मित या उत्पादित  वैसे ही माल पर लगता है, किन्तु इस प्रकार कि उससे इस तरह आयात किए  गए  माल और ऐसे  विनिार्मित या उत्पादित  माल के बीच कोई विभेद न हो  ; या

(ख) उस राज्य के साथ या उसके भीतर व्यापार , वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता पर ऐसे  युक्तियुक्त निर्बंधन अधिरोपित  कर सकेगा जो लोक हित में अपेक्षित  हों  :

परंतु  खंड (ख) के प्रयोजनों के लिए  कोई विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति  की पूर्व  मंजूरी के बिना किसी राज्य के विधान-मंडल में पुरःस्थाफित या प्रस्तावित नहीं  किया जाएगा  ।

[2][305. विद्यमान विधियों और राज्य के ऋकाधिकार का उपबंध  करने वाली विधियों की व्यावृत्ति —वहां तक के सिवाय जहां तक राष्ट्रपति  आदेश द्वारा अन्यथा निदेश दे अनुच्छेद 301 और अनुच्छेद 303 की कोई बात किसी विद्यमान विधि के उपबंधों पर कोई प्रभाव नहीं  डालेगी और अनुच्छेद 301 की कोई बात संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 के प्रारंभ से पहले  बनाई गई किसी विधि के प्रवर्तन पर वहां तक कोई प्रभाव नहीं  डालेगी जहां तक वह विधि किसी ऐसे  विषय से संबंधित है, जो अनुच्छेद19 के खंड (6) के उपखंड (त्त्) में निर्दिष्ट है या वह विधि ऐसे  किसी विषय के संबंध में, जो अनुच्छेद19 के खंड (6) के उपखंड (त्त्) में निर्दिष्ट है, विधि बनाने से संसद् या किसी राज्य के विधान-मंडल को नहीं  रोकेगी । ]

306. [पहली  अनुसूची के भाग ख के कुछ राज्यों की व्यापार  और वाणिज्य पर निर्बंधनों के अधिरोपण  की शक्ति  ।]–संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरसित ।

307. अनुच्छेद 301 से अनुच्छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित  करने के लिए  प्राधिकारी की नियुक्ति —संसद् विधि द्वारा, ऐसे  प्राधिकारी की नियुक्ति  कर सकेगी जो वह अनुच्छेद 301, अनुच्छेद 302, अनुच्छेद 303 और अनुच्छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित  करने के लिए  समुचित समझे और इस प्रकार नियुक्त प्राधिकारी को ऐसी  शक्तियां  प्रदान कर सकेगी और ऐसे  कर्तव्य  सौंप  सकेगी जो वह आवश्यक समझे ।

 


[1] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित ।

[2] संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 4 द्वारा अनुच्छेद 305 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

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