केंद्रीय सचिवालय Central Secretariat

  • केंद्रीय सचिवालय मेँ केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग शामिल है। अर्थात प्रशासन की दृष्टि केंद्र सरकार विभिन्न मंत्रालयोँ विभागोँ मेँ विभक्त है।
  • केंद्रीय सचिवालय में ऐसे सभी मंत्रालयोँ विभागोँ की समष्टि है। एक मंत्रालय मेँ सामान्यतः  2-4 विभाग होते हैँ, किंतु किसी-किसी मंत्रालय मेँ कोई विभाग नहीँ होता है, जैसे विदेश मंत्रालय।
  • इस प्रकार कुछ ऐसे विभाग भी हैँ जिन्हें किसी मंत्रालय के अधीन नहीँ रखा गया है, जैसे-परमाणु ऊर्जा विभाग। मंत्रालयों और विभागोँ के राजनीतिक प्रमुख मंत्रीगण तथा प्रशासनिक प्रमुख सचिवगण होते हैं।
  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 77 में केंद्र सरकार के कामकाज को अधिक सुविधाजनक और इन कार्योँ को मंत्रियोँ को सौंपने संबंधी नियम बनाने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति को दिया गया है।
  • यह विभाग विभाजन प्रणाली का आधार है। इसकी विशेषता यह है कि मंत्री को मंत्रालय / विभाग का प्रभारी बनाया जाता है, जो राष्ट्रपति की और से आदेश जारी करता है।
  • इस प्रकार मंत्रालय विभाग की धारणा का सूत्रपात विभाग-विभाजन (पोर्टफोलियो) प्रणाली से हुआ है। कार्य आबंटन के नियम (Allocation of Business rules) मेँ निर्दिष्ट मंत्रालयोँ / विभागोँ के समूह को केंद्रीय सचिवालय के रुप मेँ जाना जाता है।
  • वर्तमान मेँ केंद्र सरकार के मंत्रालय / विभाग भारत सरकार (कार्यो का बंटवारा) नियमावली 1961 से शासित है।

मंत्रालय की संरचना Structure of a Ministry

केंद्र सरकार के मंत्रालय विशेष की संरचना तीन स्तरीय है।

  • राजनीतिक प्रमुख अर्थात कैबिनेट मंत्री जिसकी सहायतार्थ राज्यमंत्री और उपमंत्री होते हैँ। किंतु कभी कभी राज्य मंत्री भी स्वतंत्र प्रभार मेँ मंत्रालय / विभाग का राजनीतिक प्रमुख होता है।
  • सचिव की अध्यक्षता मेँ सचिवालय संगठन / सचिव लोक सेवक होता है। सचिव के सहायतार्थ संयुक्त सचिव, उपसचिव, अवर सचिव और अन्य कर्मचारी होते हैँ। इस प्रकार, सचिवालय- संगठन मेँ दो विशेष घटक- अधिकारी और कार्यालय, कर्मचारियो को निर्देशित और नियंत्रित करने तथा लिपिकीय कार्य को संपादित निष्पादित करने के लिए होते हैँ।
  • विभाग-प्रमुख की अध्यक्षता मेँ कार्यकारी संगठन होता है। इन विभाग प्रमुखोँ को विभिन्न पदोँनामों, जैसे- निदेशक, महानिदेशक, महानिरीक्षक, आयुक्त, महानिरीक्षक, मुख्यनियंत्रक आदि के नाम से जाना जाता है।

सचिवालय के संगठन

नीचे एक मंत्रालय संगठन के सचिवालय संगठन के अधिकारियों के पदक्रम और संरचना का उल्लेख किया गया है-

इकाई   प्रभारी अधिकारी
विभाग सचिव या अतिरिक्त सचिव
स्कंध अतिरिक्त सचिव या सयुंक्त सचिव
प्रभाग निदेशक या उपसचिव
शाखा अवर सचिव
अनुभाग अनुभाग अधिकारी

  • प्रत्येक मंत्रालय मुख्यतया उसके विभागोँ मेँ बँटा होता है। प्रत्येक विभाग स्कंधों में, प्रत्येक स्कंध प्रभागों मेँ तथा प्रभाग शाखाओं में बंटे होते हैँ। प्रत्येक शाखा अनुभागों मेँ बंटी होती है।
  • अनुभाग (जिसे कार्यालय कहते हैँ) किसी मंत्रालय / विभाग की सबसे छोटी और सबसे निचली स्तर की इकाई है।

विपाटन प्रणाली The Split System

  • भारत मेँ सचिवालय प्रणाली नीति-निर्धारण कार्य को नीति कार्यान्वयन कार्य से अलग रखने के सिद्धांत पर आधारित है।
  • विभाजन की इस प्रणाली में सचिवालय को केवल नीति निर्धारण कार्य तक सीमित रखा गया है और इस प्रकार सचिवालय नीति के कार्यांवयन कार्य मेँ दखल नहीँ दे सकता।
  • नीति को कार्यरुप दिए जाने का कार्य सचिवालय के बाहर की कार्यपालक एजेंसियों पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

विपाटन प्रणाली के लाभ इस प्रकार हैं-

  • इसमेँ सचिवालय कर्मी (नीति निर्माता) को नीति नियोजन कार्य  में राष्ट्रीय हित, लक्ष्योँ और अपेक्षाओं के संबंध मेँ सहायता मिलती है। ऐसा इसलिए है कि वे दिन-प्रतिदिन की प्रशासनिक जिम्मेदारियो से मुक्त हैं।
  • इस प्रणाली की सहायता से सचिव उन प्रस्तावों की जांच सरकार के विस्तृत दृष्टिकोण को ध्यान मेँ रखते हुए निष्पक्ष रुप से कर सकता है, जिन्हें कार्यपालक एजेंसियोँ ने तैयार किया है। ऐसा इसलिए है कि सचिव समग्र रुप से सरकार का सचिव होता है न की मंत्री मात्र का सचिव।
  • इस प्रणाली से कार्यपालक एजेंसियोँ को नीतियों का कार्यांवित करने की आजादी मिलती है, क्योंकि इस प्रणाली के तहत सचिव को नीति कार्यान्वयन के कार्य में दखल नहीँ देना होता है, अपितु स्वयं को नीति निर्माण कार्य तक ही सीमित रखना होता है। इस प्रकार, यह प्रणाली प्राधिकारोँ के विष्टिकरण और प्रत्यायोजन को प्रोत्साहित करती है तथा अति विकेंद्रीकरण को दूर रखती है।
  • इस प्रणाली के द्वारा कानूनोँ का बंटवारा दो अलग-अलग  एजेंसियों में करके सचिवालय के आकार को प्रबंधन की दृष्टि से छोटा करने मेँ मदद मिलती है।
  • कार्यक्षेत्र के कार्यक्रम क्रियान्वयन का निष्पक्ष मूल्यांकन सचिवालय कर्मियोँ द्वारा किया जा सकता है। इस कार्य की जिम्मेदारी कार्यान्वयन एजेंसियों को नहीँ सौंपी जा सकती।

इस संदर्भ मेँ भारतीय सचिवालय का मॉडल ब्रिटिश व्हाइटहॉल मॉडल से भिन्न है। ब्रिटेन मेँ हर मंत्रालय नीति निर्माण और नीति कार्यान्वयन के लिए दोनो के लिए उत्तरदायी है।


भूमिका और कार्य Role and Function

  • सचिवालय एक स्टाफ एजेंसी है। इसका कार्य भारत सरकार को उसकी जिम्मेदारियों और कर्तव्योँ के निर्माण मेँ सहयोग एवँ सहायता करना है।
  • यह सरकार के लिए सूचना भंडार स्वरुप है जो विगत की कार्यवाहियों और कार्यों के प्रकाश में भावी नीतियों, उभरती समस्याओं और वर्तमान कार्यकलापोँ की जांच कार्य मेँ सरकार की सहायता करता है।
  • किसी विषय पर सरकारी स्तर पर लिए जाने वाले निर्णय से पहले विषय की विस्तृत जांच परख का काम सचिवालय द्वारा किया जाता है।
  • शासकीय की पुस्तिका के अनुसार सचिवालय द्वारा मंत्रालयोँ / विभागोँ से जुड़े निम्नलिखित कार्य किए जाते हैँ-
  1. मंत्री को नीति निर्धारण करने तथा समय-समय पर आवश्यकतानुसार उनमेँ संशोधन करने मेँ मदद करना
  2. विधान तथा विनियम और विनिमय बनाना
  3. क्षेत्रीय नियोजन और कार्यक्रम निरूपण
  4. मंत्रालय विभाग के कार्य से संबंधित व्यापक का बजटीय प्रावधान और नियंत्रण, और
  • संचालनात्मक कार्योँ और योजनाओं और उनमेँ संशोधन से संबंधित प्रशासनिक और वित्तीय अनुमोदन देना अथवा लेना।
  • कार्यपालक विभागों या अर्धस्वायत्त कार्यक्षेत्रीय एजेंसियोँ द्वारा नीतियोँ और कार्यक्रमोँ के संचालन और परिणामों का मूल्यांकन।
  • नीतियो की व्याख्या और उनके बीच समन्वय स्थापित करना, सरकार की अन्य शाखाओं की सहायता करना तथा राज्य प्रशासन से संपर्क बनाए रखना।
  • मंत्रालयोँ / विभाग और इसकी कार्यपालक एजेंसीयां इन दोनों  कार्मिक और संगठनिक सक्षमता विकसित करने के उपाय करना और,
  • मंत्री की संसदीय समितियोँ के जिम्मेदारियों के निर्वहन मेँ सहायता प्रदान करना।

कार्यकाल प्रणाली Tenure System

  • सचिवालय मेँ उन पदों को श्रेष्ठ माना गया है जो अधिकारियोँ द्वारा बनाए गए नियमानुसार, राज्यों (औ र कुछ केन्द्रीय सेवाओं) से कुछ विशिष्ट समय के लिए आते हैँ तथा अपने कार्यकाल की समाप्ति पर संबद्ध राज्य या सेवाओं मेँ वापस चले जाते हैँ।
  • सरकारी शब्दावली मेँ इसे कार्यकाल प्रणाली कहते हैं। इस प्रकार कार्यकाल प्रणाली के अंतर्गत प्रतिनियुक्त प्रत्येक कर्मचारी / अधिकारी केंद्रीय सचिवालय मेँ निर्धारित अवधि के लिए कार्य करता है, जिनका सचिवालय मेँ अलग अलग पदक्रम होता है। ये पद क्रम इस प्रकार हैं-
  1. सचिव और संयुक्त सचिव – 5 वर्ष
  2. उप सचिव – 4 वर्ष
  3. अवर सचिव – 3 वर्ष
  • भारत मेँ कार्यकाल प्रणाली की शुरुआत वर्ष 1905 मेँ भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्जन द्वारा की गई थी।
  • लार्ड कर्जन का मानना था कि भारत पर शिमला या कोलकाता से शासन किया जाता है किंतु प्रशासन मैदानों से किया जाता है।
  • लॉर्ड कर्जन जिसे कार्यकाल प्रणाली का जनक भी कहते है के इसी विश्वास के फलस्वरुप ही कार्यकाल प्रणाली की शुरुआत हुई थी।

ब्रिटिश शासनकाल मेँ गठित निम्नलिखित समितियोँ और आयोगों ने कार्यकाल प्रणाली का समर्थन किया था-

  1. लेवोलिन स्मिथ समिति 1919 –  गवर्नमेंट ऑफ इंडिया सेक्रेटेरियट प्रोसीजर कमेटी की रिपोर्ट
  2. साइमन आयोग 1930- इंडियन स्टेचुरी आयोग की रिपोर्ट
  3. व्हीलरसमिति 1936- गवर्नमेंट ऑफ इंडिया सेक्रेटेरियट कमेटी की रिपोर्ट
  4. मैक्सवेल समिति 1937– आर्गेनाइजेशन एंड प्रोसीजर पर रिपोर्ट
  5. रोलैंड समिति 1944-45 – बंगाल एडमिनिस्ट्रेटिव इन्क्वायरी  कमेटी की रिपोर्ट
  • प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष दल ने केंद्रीय सचिवालय में राज्य सचिवालय मेँ (राज्य सचिवालयों में भी) कार्मिक प्रशासन से संबंधित कर्मचारियोँ के कार्यकाल की प्रणाली का समर्थन किया है।

कार्यकाल प्रणाली के समर्थन मेँ निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए हैँ-

  • इस पर प्रणाली द्वारा केंद्र और राज्योँ के बीच प्रसासनिक तालमेल बनाए रखा जा सकता है और इस प्रकार भारतीय संघीय शासनतंत्र को मजबूती प्रदान की जा सकती है।
  • इस प्रणाली के द्वारा केंद्रीय सचिवालय मेँ उन अधिकारियो की नियुक्ति की जा सकती है जिन्हें जिला प्रशासन या क्षेत्र प्रशासन का ही अनुभव प्राप्त होता है।
  • इसमेँ राज्य सरकार के अधिकारियों को राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर अनुभव मिलता है।
  • इससे उन सभी अधिकारियो को समान अवसर प्राप्त होता है जो सचिवालय में निर्धारित अवधि तक तैनात रहने के अधिकारी हैँ।
  • इससे राष्ट्र की प्रशासनिक एकता तथा लोकसेवा की स्वतंत्रता की रक्षा होगी।
  • यह यथार्थवादी राष्ट्रीय नीतियो के निर्माण को प्रोत्साहित करता है जिनका कार्यक्षेत्र मेँ क्रियान्वयन अपेक्षाकृत कम कठिनाई से होगा। इसका कारण है कि सचिवालय के अधिकारी प्रशासन के वास्तविक तथ्योँ से अवगत होते हैँ।
  • यह अधिकारियो के रुढ़िवादी बनने की संभावना को कम करता है, क्योंकि यह सचिवालय मेँ उन्हें लंबी अवधि तक काम करने का अवसर नहीँ देता। यह उन्हें एक अलग प्रकार के वातावरण मेँ कार्य करने का अवसर प्रदान करता है, जो कि उनके दृष्टिकोण मेँ ताजगी ला सकता है।
  • यह अधिकारियों को सचिवालय मेँ नियुक्ति के दौरान विशेष लाभ प्राप्त करने मेँ सक्षम बनाता है और इससे लोक सेवा मेँ उत्साह का संचार होता है।
  • यह सचिवालय के कार्मिक प्रबंधन मेँ आवश्यक लचीलापन उपलब्ध कराता है क्योंकि यह सरल तरीके से अक्षम और अयोग्य अधिकारियो से छुटकारा पाने मेँ प्रबंधन को सक्षम बनाता है।

फिर भी आलोचकोँ ने कार्यकाल प्रणाली के विरोध मेँ निम्नलिखित तर्क दियें हैं-

  • इसके कारण सचिवालय का अति नौकरशाहीकरण और पद- अधिभावी प्रशासन जैसी बुराइयाँ सामने आती हैं। सचिवालय मेँ नियुक्त एक नया अधिकारी के कार्य को पूरा करने के लिए आहार स्थायी पद अवस्थापन पर अधिक निर्भर रहता है।
  • यह विशेषीकरण को सुनिश्चित नहीँ करता है क्योंकि यह सामानय प्रशासन के उच्चतर गुण के मिथक पर अनिवार्य रुप से आधारित है। दूसरी ओर मंत्रालयोँ एवं विभागोँ मेँ कार्य तेजी से विशेषीकृत हो रहा है।
  • इसका मुख्य आवेग जिला या चित्र अनुभव है जि कि सचिवालय कार्य के कई क्षेत्रोँ मेँ अनिवार्य और प्रासंगिक नहीँ है।

उल्लेखनीय रुप से केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयोँ एवं विभागोँ मेँ कार्यकाल प्रणाली कभी-भी मौजूद नहीँ थी। ब्रिटिश काल के दौरान थी अग्रलिखित 4 विभागोँ को कार्यकाल प्रणाली के दायरे से बाहर रखा गया था – भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग, सीमा शुल्क और आयकर विभाग, विदेशी और राजनीति विभाग, डाक और टेलीग्राफ विभाग।

आज कार्यकाल प्रणाली की स्थिति इतनी मजबूत नहीँ है, जितनी स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले थी। प्रणाली को कमजोर बनाने मेँ निम्नलिखित तत्वों का योगदान है-

  1. इस समय अवर सचिव और उपसचिव के अधिकांश पद पर केंद्रीय सचिवालय सेवा संवर्ग के सदस्य हैँ। इस प्रकार वर्ष 1948  मेँ गठित इस सेवा संवर्ग के फलस्वरुप सचिवालयी अधिकारियोँ को  स्थायित्व प्राप्त हुआ। वर्तमान मेँ केंद्रीय सचिवालय सेवा मेँ 5 ग्रेड शामिल हैं-

वरिष्ठ चयन के ग्रेड (निदेशक)

चयन ग्रेड (उप-सचिव)

ग्रेड-1 (अपर सचिव)

अनुभाग अधिकारी ग्रेड और

सहायक ग्रेड

कार्मिक मंत्रालय के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को इस सेवा के संदर्भ में संवर्ग नियंत्रित करने का प्राधिकार है।

  1. वर्ष 1961 मेँ विशेष केंद्रीय सेवा श्रेणी – 1 के रूप में गठित भारतीय आर्थिक सेवा और भारतीय सांख्यिकी विशेष सेवा के अधिकारी, जिनकी संख्या केंद्रीय मेँ अधिक है, कार्यकाल प्रणाली के अंतर्गत नहीँ आटे हैं अर्थात फील्ड और मुख्यालय (सचिवालय) के बीच पदस्थ रहते हैँ।
  2. वर्ष 1938  मेँ गठित वाणिज्य बॉयज पूल (किंतु वर्ष 1946 मेँ समाप्त) तथा 1957 मेँ गठित केंद्रीय प्रशासनिक पूल के माध्यम से कार्यकाल प्रणाली मेँ सुधार किया गया था। केंद्रीय प्रशासनिक पूल मेँ भारतीय प्रशासनिक सेवा, केन्द्रीय सेवा श्रेणी-1, केंद्रीय सचिवालय सेवा – श्रेणी-1 तथा राज्य सेवाओं के लिए श्रेणी-1 के अधिकारी शामिल होते हैं। इसका गठन केंद्रीय सचिवालय मेँ उप-सचिव स्तर या इससे ऊपर के स्तर के पदों के लिए किया गया था। इसमेँ सामान्य और विषेश दोनों श्रेणी के पद हैं। इस पूल का प्रबंधन और नियंत्रण कार्मिक मंत्रालय द्वारा किया जाता है। कार्यकाल प्रणाली के अंतर्गत केंद्रीय सचिवालयी सेवा में आए  अधिकारी अपने मूल विभागों या राज्य सरकारोँ मेँ वापस नहीँ जाते जिसका मुख्य कारण उच्च वेतन, राजधानी नगर की सुविधाएँ तथा केंद्र से निकटता आदि जैसे सचिवालय तैनाती संबंधी लाभ हैं।
  3. राज्य अपने अच्छे अधिकारियों को केंद्र सरकार मेँ भेजने को सदैव उत्सुक नहीँ रहते। राज्य सरकारोँ की इस अनिच्छा के कारण सचिवालय और फील्डक्षेत्र के मध्य अधिकारियों के आदान प्रदान मेँ बाधाएं आती हैं।
  4. कार्यकाल प्रणाली मेँ उस समय अस्तित्व मेँ आई थी जब जहाँ एकात्मक प्रणाली का शासन था किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एकात्मक प्रणाली का स्थान संघीय प्रणाली ने ले लिया। सचिवालय के अधिकारी / कर्मचारी Secretariat Officials

सचिवालय के अधिकारी / कर्मचारियोँ का पदक्रम इस प्रकार है-

सचिव

अपर सचिव

संयुक्त सचिव

निदेशक

उप सचिव

अवर सचिव

उपर्युक्त मेँ से प्रथम तीन पदक्रम के अधिकारी उच्च श्रेणी के प्रबंधन का कार्य तथा अंतिम तीन पदक्रम के अधिकारी मध्यम श्रेणी के प्रबंधन का कार्य देखते हैं। ये सभी अधिकारी अपने स्तर पर कार्यों निपटान करते हैँ तथा महत्वपूर्ण विषयों को उच्च अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करते हैँ। इसके अतरिक्त ये सब अधिकारी भारत सरकार के हितोँ को ध्यान मेँ रखकर अपने कर्तव्योँ का निर्वाह करते हैं। इसलिए सचिव को – सचिव, भारत सरकार के रुप मेँ पद नामित किया गया है, न कि सम्बद्ध मंत्री / मंत्रालय के सचिव के रुप में।

सचिव Secretary

सचिव की भूमिकाएं निम्नलिखित हैं-

  1. वह मंत्रालय विभाग का प्रशासनिक प्रमुख होता है। इस सन्दर्भ मेँ उसकी जिम्मेदारियां पूर्ण और अविभाजित हैं।
  2. वह नीतिगत और प्रशासनिक मामलोँ के सभी पहलुओं पर मंत्री का प्रमुख सलाहकार होता है।
  3. वह संसदीय लोकल समिति के के समक्ष अपने मंत्रालय / विभाग का प्रतिनिधित्व करता है|

अपर / संयुक्त सचिव

अपर सचिव किसी विभाग अथवा विभाग के किसी स्कंध (wing) का प्रभारी होता है। दूसरी ओर संयुक्त सचिव किसी विभाग के स्कंध का अंदर का प्रभारी होता है। संयुक्त सचिव का दर्जा और वेतन अपर सचिव से कम होता है क्योंकि अपर सचिव, संयुक्त सचिव से वरिष्ठ होता है। कुल मिलाकर इन दोनों अधिकारियों के कार्योँ मेँ, अपर सचिव यदि किसी विभाग का प्रभारी नहीँ है तो कोई अधिक अंतर नहीँ है।

निदेशक / उप सचिव

संयुक्त निदेशक का पद वर्ष 1960 में सृजित हुआ था। निदेशक और उप सचिव की जिमेदारियों मेँ कोई अधिक अंतर नहीँ है, न ही किसी उप सचिव को निदेशक के अधीन किया जा सकता है। लेकिन निदेशक का दर्जा और वेतन उप सचिव से अधिक होता है।

उप सचिव, सचिव की ओर से कार्य करता है और प्रभाग का प्रभारी होता है। वह स्वयं अधिकांश मामले का निपटाता है, तथा केवल महत्वपूर्ण मामलोँ पर पर विभाग के संयुक्त / अपर सचिवों अथवा सचिव से मार्गदर्शन प्राप्त करता है।

अवर सचिव

अवर सचिव शाखा का प्रभारी होता है, इसलिए उसे शाखा अधिकारी भी कहते हैं। वह प्रायः प्राप्त अभ्यावेदनों पर कार्यवाही। वह छोटे मामलोँ को स्वयं निपटाता है तथा केवल महत्वपूर्ण मामलोँ को उप सचिव को प्रस्तुत करता है।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले, अवर सचिव से नीचे का सहायक सचिव पद का होता था इस पद को मैक्सवेलl समिति की रिपोर्ट 1937 की अनुशंसाओं पर समाप्त कर दिया गया।

विशेष कार्याधिकारी OSD

विशेष कार्य अधिकारी पद पर विद्यमान अधिकारियो मेँ से किसी अधिकारी की नियुक्ति होती है- वह आवश्यक प्रकृति के उन कार्योँ को देख को देखता है जिस पर पूरा ध्यान दिए जाने की जरुरत होती है। मूलतः यह अस्थायी पद है जिसे अत्यावश्यक दृष्टि से सृजित किया गया है। OSD द्वारा निष्पादित ड्यूटी और कार्य विशेष प्रकृति के होते हैँ। OSD का दर्जा निर्धारित नहीँ है, किंतु इस पद पर सचिव से लेकर अवर सचिव तक के अधिकारी नियुक्त होते हैँ। कभी-कभी अनुभाग अधिकारी को भी OSD नियुक्त किया जाता है।

भारत में OSD का पद एक ब्रिटिश विरासत हैँ। इसके निम्नलिखित गुण है-

  1. यह कार्य के बेहतर समन्वय को संभव बनाता है।
  2. यह कार्य के समापन और निर्णय के अभिलंब क्रियान्वयन को बढ़ावा देता है।

केंद्रीय सचिवालय सेना में विभिन्न ग्रेडों के अधिकारियों का चयन करने वाले निकायोँ (अभिकरणों) का उल्लेख नीचे किया गया है-

सचिवालय के अधिकारियों / कर्मचारियों का चयन
सचिव / अपर सचिव मंत्रिमंडल सचिव
सयुंक्त सचिव वरिष्ठ चयन बोर्ड (मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में)
निदेशक / उपसचिव / अवर सचिव केन्द्रीय संस्थापना बोर्ड (कार्मिक मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में)

उपर्युक्त तीनों मामलों के सम्बन्ध में अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिमंडलीय नियुक्ति समिति द्वारा लिया जाता है।

कार्यालय कर्मचारी Office Staff

सचिवालय मेँ अधिकारी प्रवर्ग के अतिरिक्त कार्यालय कर्मचारियों का भी वर्ग है। सचिवालय के कार्यालय कर्मचारियों मेँ निम्नलिखित कार्मिक शामिल हैं-

अनुभाग अधिकारी (अधीक्षक)

सहायक अनुभाग अधिकारी

उच्च श्रेणी लिपिक

अवर श्रेणी लिपिक

आशुलिपिक-टंकक और टंकक

कर्मकार

अनुभाग अधिकारी कार्यालय / अनुभाग का प्रमुख होता है तथा अनुभाग के सभी कार्मिकोँ और अवर सचिव के मध्य संपर्क बनाए रखता है। अनुभाग अधिकारी का मुख्य कार्य अपने अनुभाग के कार्मिकोँ के कार्य का पर्यवेक्षण करना है। अनुभाग अधिकारी सचिवालय कार्मिक के पदक्रम की दृष्टि से पहली पंक्ति का पर्यवेक्षक है।

सचिवालय के कर्मचारी वर्ग के कार्मिक निम्नलिखित दोनोँ सेवाओं से आते हैँ-

  1. केंद्रीय सचिवालय आशुलिपिक सेवा जिसमेँ 5 ग्रेड है- वरिष्ठ प्रमुख निजी  सचिव का ग्रेड, निजी सचिव ग्रेड, ग्रेड ए+बी (आमेलित), ग्रेड सी, ग्रेड डी।
  2. केंद्रीय सचिवालय लिपिकीय सेवा, जिसमेँ दो ग्रेड हैं- उच्च श्रेणी (लिपिक) ग्रेड, अवर श्रेणी (लिपिक) ग्रेड।

इन दोनो सेवाओं के संवर्ग नियंत्रण का प्रधिकार कार्मिक मंत्रालय के कार्मिक एवँ प्रशिक्षण विभाग के पास है।

वर्ष 1976  के कर्मचारी चयन आयोग अवर श्रेणी के  लिपिकोँ की सीधी भर्ती के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करता रहा है। उच्च श्रेणी लिपिक पदो को सीधी भर्ती द्वारा नहीँ भरा जाता है। इन पदोँ  इन अवर श्रेणी के लिपिकोँ को प्रोन्नत करके भरा जाता है। अनुभाग अधिकारी तथा सहायक अनुभाग अधिकारी के पदों में से कुछ पदो को प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर सीधी भर्ती द्वारा और कुछ को अधीनस्थ कार्मिको की प्रोन्नति द्वारा भरा जाता है।

डेस्क अधिकारी प्रणाली Desk Officer System

डेस्क अधिकारी प्रणाली की शुरुआत से सन 1973 मेँ केंद्र सरकार के मंत्रालयोँ / विभागोँ की कार्य पद्धति मेँ बदलाव सा आ गया था। यह प्रशासनिक सुधार आयोग के तहत देशमुख अध्ययन दल की सिफारिशों के आधार पर किया गया था। इस प्रणाली की शुरुआत व्हाइटहॉल प्रणाली की तर्ज पर की गई थी।

इस नई प्रणाली के अंतर्गत किसी मंत्रालय के सबसे निचले स्तर के कार्य को अलग-अलग डेस्कों मेँ व्यवस्थित किया गया है। प्रत्येक डेस्क मेँ दो अधिकारियोँ अर्थात एक अपर सचिव और एक अनुभाग अधिकारी या एक अनुभाग अधिकारी और एक सहायक अनुभाग अधिकारी या दो अनुभाग अधिकारियों को पदस्थ किया जाता है। प्रत्येक अधिकारी को डेस्क अधिकारी कहा जाता है जिसकी सहायतार्थ आशुलिपिक / लिपिक उपलब्ध होते हैँ। डेस्क अधिकारी मामलोँ को स्वयं निपटाता है तथा नीति से जुड़े महत्वपूर्ण मामलोँ के निपटान हेतु सूचना अधिकारियो को प्रस्तुत करता है।

डेस्क अधिकारी प्रणाली के लाभ इस प्रकार हैं-

  1. इससे मामलों का त्वरित निपटान होता है तथा मामले सीधे उच्च स्तर के अधिकारियो तक पहुंचते हैँ।
  2. इससे लिपकीय स्तर पर मामलोँ की जांच नहीँ करनी पडती है।
  3. इससे सचिवालय के कार्योँ मेँ विलंब होने की संभावना नहीँ रहती।
  4. इससे व्यय मेँ भी कमी आती है।
  5. अधिकारी स्तर पर ही मामलोँ की जांच कर लिए जाने के कारण कार्य की गुणवत्ता बनी रहती है।

कार्यकारी संगठन Executive Organization

  • भारत सरकार के प्रत्येक मंत्रालय में राजनीतिक प्रमुख और सचिव की अध्यक्षता मेँ सचिवालय के संगठन के अतिरिक्त कार्यकारी संगठन भी होते हैं।
  • ये कार्यकारी संगठन सचिवालय संगठन द्वारा तैयार की गई नीतियों को कार्यांवित करते हैं। कार्यकारी संगठन सचिवालय के अधीन कार्य करते हैँ।
  • इनके कार्यकारी प्रमुखों (विभाग प्रमुखोँ) को विभिन्न नामोँ से पदनामित मेँ किया गया है- निदेशक, महानिदेशक, नियंत्रक, मुख्य नियंत्रक, महानिरीक्षक, आयुक्त और महापंजीयक आदि।

कार्य Function

  • सरकारी एजेंसियोँ के दो रुप हैं- संबद्ध कार्यालय और अधीनस्थ कार्यालय। सरकारी कार्यपद्धति की संहिता में इन कार्यालयों की निम्नलिखित व्याख्या की गयी है-
  • एक और जहाँ सरकार की नीतियोँ के कार्यान्वयन के लिए इस कार्य के लिए कार्यकारी दिशानिर्देशों के विकेंद्रीयकरण और फील्ड एजेंसियोँ की स्थापना जरुरी है, वहीँ दूसरी  ओर मंत्रालय के अंतर्गत अधीनस्थ कार्यालय हैं।
  • मंत्रालय द्वारा निर्धारित नीतियो के कार्यांवयन के लिए आवश्यक कार्यकारी निर्देश देने की जिम्मेदारी मंत्रालय से संबद्ध कार्यालयों की है।
  • संबद्ध कार्यालय मंत्रालय को किसी विषय से संबंधित तकनीकी पहलुओं की जानकारी उपलब्ध कराते है, जिसके लिए इन कार्यालयोँ के पास तकनीकी सूचनाओं का भंडार होता है। अधीनस्थ कार्यालय फील्ड प्रतिष्ठान के रुप मेँ अथवा सरकार के निर्णयों के विस्तृत कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी एजेंसी के रुप मेँ कार्य करते हैँ।
  • अधीनस्थ कार्यालय प्रायः संबद्ध कार्यालय के निर्देशन मेँ अथवा कार्यकारी निर्देशों की मात्रा अधिक होने पर सीधे मंत्रालय के निर्देशन मेँ कार्य करते हैं।
  • टोटेनहम समिति (1945-46) और प्रथम वेतन आयोग (वरदाचारियार 1946-47) ने संबद्ध कार्यालयों के मध्य भेद को असंतोषजनक और बनावटी करार देते हुए इन दो श्रेणी  के कार्यालयों के मध्य विवाद को समाप्त करने का सुझाव दिया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *